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तो किसके लिए था यह एग्रोटेक मेला?

Rakesh Prasad

Rakesh Prasad Opinions & Updates

ByRakesh Prasad Rakesh Prasad   72

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किसान नहीं कंपनियों के हित साधें सीआईआई एग्रोटैक फेयर में 

किसान नहीं कंपनियों के हित साधें सीआईआई एग्रोटैक फेयर में बस देख सकते हैं खरीद नहीं 70 हजार रूपए कीम

बस देख सकते हैं खरीद नहीं 

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70 हजार रूपए कीमत की चारा काटने की मशीन जिसे किसान बस निहारते रहे। उनका कहना है कि इस मशीन को खरीदना उनके बस की बात ही नहीं है। गुरदासपुर के किसान सुखबीर व इंद्रप्रीत ने बताया कि बड़े डेयरी फार्म के लिए है उपयोगी है यह मशनी तो। 

इनके एजेंडे में किसान नहीं था, थे तो ट्रैक्टर और अन्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियां 

सेक्टर 17 स्थित परेड ग्राउंड में आयोजित सीआईआई एग्रोटैक फेयर मेला किसके लिए था?
सवाल लाजिमी है। क्योंकि मेला था तो किसानों के नाम पर । लेकिन यहां किसानों के लिए ज्यादा कुछ नहीं था।
एक दम बिजनेस बीट की तरह आयोजित इस मेले में किसानों के मुद्दे कोसो दूर रहे। तीन दिन तक चले मेले में किसानों की दिक्कतों पर कोई चर्चा नहीं हुई। इसकी जगह यह कोशिश थी कि कैसे किसानों को मिलने वाली सब्सिडी को बड़ी कंपनियों तक पहुंचाया जाए।
किसान नहीं कंपनियों के हित साधें सीआईआई एग्रोटैक फेयर में बस देख सकते हैं खरीद नहीं 70 हजार रूपए कीम
तीन दिन तक चलने वाले इस मेले का उद्धाटन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया। उन्होंने किसान और खेती पर चिंता जताई। उनका कहना था कि किसान की खुशहाली के लिए काम करना होगा। 
इस मेले का उद्धाटन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया। आए दिन इसमें नेता भी आते रहे। बावजूद इसके एक भी जगह ऐसा नजर नहीं आ रहा था कि यह मेला किसान को ध्यान में रख कर आयोजित हो रहा है। 
अब जबकि हरियाणा और पंजाब में किसानों की खेती योग्य जमीन तेजी से कम हो रही है60 फीसदी किसान तो पांच एकड़ से कम जमीन के हैं।लेकिन मेले में इन किसानों के लिए कुछ नहीं था। बड़े बड़े ट्रैक्टर और बड़ी मशनीरी खेती का कारपोरेटाइजेशन करने की दिशा में एक कदम ही मानी जा सकती है। मेले में आए गुरदासपुर के किसान सुखपाल सिंह ने बताया कि
वह आया तो इस उम्मीद में था कि यहां उसे कुछ नया सीखने का मौका मिलेगा। लेकिन यहां तो उसके लिए कुछ है ही नहीं। ऐसा लग रहा है कि यह मेला कंपनियों को ऐसा मंच उपलब्ध करा रहा है 
किसान नहीं कंपनियों के हित साधें सीआईआई एग्रोटैक फेयर में बस देख सकते हैं खरीद नहीं 70 हजार रूपए कीम
आर्टिफिशियल पेड़ पर कपास उगा दिखाए सतरंगी सपने 
बीटी काटन कंपनी ने किसानों को बीज के बढ़िया उत्पादन का दावा किया। उन्होंने किसानों को आकर्षिक करने के लिए आर्टिफिशियल पेड़ पर ही कपास उगा रखी थी। कंपनी का दावा है कि उनके बीजों के इस्तेमाल से कपास का उत्पादन 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। 
इस वक्त जब पंजाब और हरियाणा के किसान आर्थिक संकट से दो चार हो रहे हैं। पंजाब में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे दौर में मेले का यह स्वरूप कतई सही नहीं माना जा सकता है। किसानों ने बताया कि अलग अलग कंपनियों जो जानकारी यहां लेकर आई वह भी अंग्रेजी में हैं। जबकि होना तो यह चाहिए कि इसकी जानकारी हिंदी में हो या फिर स्थानीय भाषा में हो। जो किसानों की आसानी से समझ में आ सके। 
किसानों ने बताया कि मेले में नई तकनीक खास तौर पर ऐसी तकनीक जेा किसानों के लिए बहुत उपयोगी हो इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया। 
यह अनदेखी रही मेले में 
इस मेले में ऐसी तकनीक नहीं थी जो छोटे किसानों पर केंद्रीत हो। जिसका लाभ छोटे किसान आसानी से उठा सके। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हो सके। 
ऐसी तकनीक नहीं है जो सस्ती हो, जिसका किसान सीधे तौर पर इस्तेमाल कर सके। 
किसानों की आर्थिक हालत कैसे सुधरे, इस दिशा में मेले में ध्यान नहीं दिया गया। 
किसान बदले वक्त में कैसे खुद को बचाए रखे इस बारे में भी मेले में कहीं चिंता नहीं थी। 
कृषि विशेषज्ञ डाक्टर एस के चहल ने बताया कि
मेला किसान को ध्यान में रख कर था ही नहीं। यहीं तो सबसे बड़ी समस्या है। किसान मेले या तो बिलकुल ही ऐसे होंगे कि इसमें किसान की वहीं पारंपरिक तकनीक परदर्शित होती है, या फिर इस तरह के मेले में कंपनियों को तवज्जो मिलती है। दोनो ही चीजे सही नहीं है।निश्चित तौर पर इसमें बदलाव होना ही चाहिए। उन्होंने बताया कि कंपनियों के लिए किसान सिर्फ एक कस्टमर भर है। जबकि कंपनी यह भूल जाती है कि जब किसान के पास पैसे ही नहीं होंगे तो वह खरीदेगा क्या? उनका उत्पाद फिर किसके काम आएगा। इस ओर तो मेले में ध्यान ही नहीं दिया गया।
 
डाक्टर चहल ने बताया कि इस मेले में जो तकनीक थी, वह बहुत ही महंगी है। लगता नहीं कि पंजाब व हरियाणा के किसान इतनी महंगी तकनीक इस्तेमाल करते होंगे। इनकी संख्या इतनी ही होगी कि उंगली पर गिनी जा सके। 
किसान नहीं कंपनियों के हित साधें सीआईआई एग्रोटैक फेयर में बस देख सकते हैं खरीद नहीं 70 हजार रूपए कीम
अरे तो अंदर से ट्रैक्टर ऐसा होता है 
ट्रैक्टर के पार्ट्स देखते किसान, किसानों की तो समझ में नहीं आया कि यह तकनीक है क्या और कैसे उसके इस्तेमाल में आ सकती है।
इस वक्त किसानों की समस्या यह है कि कैसे वें अपने उत्पाद के लिए बाजार तलाशे। कैसे वे अपनी फसल से उत्पाद तैयार करे। क्योंकि बहुत लंबे समय से किसानों को बिचौलिए लूट रहे हैं। जो सब्जी किसान के खेत से चार पांच  रूपए प्रति किलोग्राम बिकती है अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचते पहुंचते वह 50 रूपए प्रति किलोग्राम तक हो जाती है।
यह मुनाफा कौन कमाता है? जाहिर है किसान तो नहीं।
जबकि किसान इतनी मेहतन कर सब्जी तैयार करता है। यहीं हाल दूसरी फसलों का भी है। ऐसे में होना यह चाहिए था कि किसान कैसे अपनी फसलों के ऐसे तैयार उत्पाद बना सकते हैं, इसके लिए क्या मशीन हो सकती है। इस तरह की मशीने यहां लाई ही नहीं गई। 
खेती में पानी कैसे बचे, इस ओर भी ध्यान नहीं 
पंजाब में बिजली पर 51 सौ करोड़ रूपए अनुदान दिया जा रहा है। हरियाणा में भी 3500 करोड़ रूपए बिजली अनुदान पर दिए जा रहे हैं।
यह बिजली कृषि क्षेत्र में यूज हो रही है। पानी पर काम कर रहे बाबा संतनाम सिंह ने बताया कि
यदि पंजाब व हरियाणा सिर्फ बिजली अनुदान का पैसा जल बचाने पर लगा दे तो दोनों राज्यों में  खेती में क्रांति आ सकती है। क्योंकि अभी तक पंजाब व हरियााण में 90 फीसदी जमीन पर सीधी सिंचाई हो रही। इसमें पानी और बिजली का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। इसके विपरीत यदि ड्रिप और स्प्रिकलर प्रयोग में आते हैं तो बिजली की बहुत कम जरूरत पड़ेगी। पानी भी बचेगा। लेकिन इस मेले में इस ओर ध्यान हीं दिया गया।
चंडीगढ़ में आयोजित इस मेले को यूं तो हरियााण, पंजाब व हिमाचल के किसानों को ध्यान में रख कर आयोजित किया गया था। 
इधर आयोजकों का कहना है कि मेला किसानों की उम्मीद पर पूरी तरह से खरा उतरा है। उन्हेांने कहा कि किसानों को इसमें नई तकनीक पता चली है। जिससे उनकी खेती के तौर तरीकों में बदलाव आएगा।
औद्योगिक खेती को संस्थागत प्रोत्साहन और इससे होने वाले सामाजिक बदलाव , चाहें वो एक बड़ी जनसँख्या का खेती से उखड कर सर्विसेज और इंडस्ट्रीस में जाना, या जाने की कोशिश करना।  भारत के अद्वितीय समाज शास्त्र पर उसके असर।  
क्या विदेशी जीडीपी के मानक भारत के लिए उपयुक्त होंगे , क्या हर इकनोमिक मॉडल में इंसान को एक दांते की तरह देखना और एक पूंजीवादी अर्थव्यस्था के अधिक और अधिक लाभ के पीछे उसे घुमाते रहना , भारत को किस दिशा में ले जाएंगे ? 
भारत में खेती और समाज के बदलते स्वरुप पर चर्चा ज़ारी रहेगी। 
साभार - मनोज ठाकुर, पंजाब, हरियाणा से कृषि और पर्यावरण समीक्षक। 

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