मार्च, जिसे वैदिक संस्कृति में फाल्गुन माह के नाम से भी
जाना जाता है, विशेषत: भारत में ऋतु परिवर्तन की दहलीज के तौर पर देखे जाने वाले
महीनों में से एक है. भारतीय परंपरा के अनुसार बसंत ऋतु (नवम्बर-मार्च) की अवधि
में आने वाला मार्च माह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के हिसाब से शीत ऋतु का ही
अंतिम माह माना जाता है. उत्तर भारत में इस समय मौसम में धीरे धीरे गर्माहट आनी
प्रारंभ हो जाती है, सूर्य की किरणें दिन में बेहद तीखी और रात्रि का तापमान
अनुकूल ही रहता है.
भारत में फाल्गुनी माह के तौर पर देखे जाने वाला मार्च संयुक्त
राज्य अमेरिका में “नेशनल न्यूट्रीशन मंथ” के रूप में देखा जाता है. जिसमें
स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों के लिए जन-जागरूकता का प्रसार बहुतायत किया जाता है.
देखा जाये तो जीवन में स्वास्थ्य से बढ़कर अमूल्य धन और कुछ
है भी नहीं, तो क्यों ना ऋतुनुसार चलते हुए इस स्वास्थ्य रूपी धन को संजोकर रखा
जाये. इसी कड़ी में निरोगी काया और समृद्ध तन-मन से जुड़ी हमारी स्वास्थ्य सीरीज में
“मार्च स्वास्थ्य विशेषांक” के अंतर्गत अग्रलिखित वर्णित स्वास्थ्य नियमों को आप
भी अपने जीवन में अपनाएं और पाएं आरोग्य का खजाना.
मार्च में कैसी हो आपकी ऋतुचर्या –
ऋतुचर्या से हमारा अभिप्राय है, ऋतु के अनुकूल जीवनशैली.
जिस प्रकार प्रकृति खुद को समय समय पर परिवर्तित करती रहती है, ठीक उसी प्रकार
व्यक्ति को भी स्वयं को प्रकृति के अनुरूप बदल लेना चाहिए. ऋतु के अनुसार
आहार-विहार, दिनचर्या इत्यादि आरोग्यता की सर्वप्रथम सीढ़ी है. मसलन, ठंडी तासीर
वाले खाद्य पदार्थ जैसे तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी आदि को सर्दियों में खाने के लिए
मना किया गया है, जबकि गर्मियों में यह सब अमृततुल्य हैं.
मार्च में न अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक सर्दी, यानि
हम मिली-जुली तासीर वाले खाद्य पदार्थों का भरपूर सेवन कर सकते हैं. साथ ही
जनवरी-फरवरी के सर्द महीनों का आलस्य त्यागकर शारीरिक सक्रियता को भी बढाया जाना
चाहिए. वैसे भी बसंत प्रकृति में नवता का सन्देश लेकर आती है, जिसे स्वास्थ्य के
संदर्भ में देखें तो मनुष्य को भी खुद में नवपरिवर्तन के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
ऋतुनुसार आहार शैली –
हमारे खान पान के तरीकों से ही हमारी
स्वस्थ जीवनशैली निर्धारित होती है. “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन” की
अवधारणा पर चलते हुए यदि प्रकृति के अनुरूप खान-पान हो, तो हमारा
तन-मन दुरुस्त बना रहता है. मार्च में मिली-जुली तासीर वाले फल, सब्जियों, अनाज,
मसालों आदि के साथ साथ ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थों को भी दिन के समय अपनी
आहारचर्या में शामिल किया जा सकता है. मार्च में उत्तर भारत में अधिकतम उपयोग होने
वाले खाद्य पदार्थों की फेहरिस्त निम्नांकित है.
मौसमी फल एवं सब्जियां –
आज के तकनीकी युग में देखा जाये, तो
उन्नत कृषि तकनीकों ने हर मौसम में प्रत्येक फल एवं सब्जी की उपलब्धता आसान कर दी
है. परंतु मौसम के अनुसार खाए जाने वाले फलों में पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में
होते हैं, क्योंकि वें प्राकृतिक रूप से तैयार होते हैं.
मार्च माह में पाए जाने वाले प्रमुख
फलों में अंगूर, संतरा, अनानास, केला, पपीता, अनार, खुबानी आदि आते हैं, जो सेहत
के लिहाज से बहुत से पोषक तत्वों से युक्त हैं. जैसे कि अंगूर काले और हरे दोनों
ही रूप में ग्रहण किया जाता है.
संतरे को आयुर्वेद में भी संतरे को
बलवर्धक, रक्तवर्धक, अम्ल-मधुर, पित्त-नाशक आदि माना गया है. इसे रोजाना की डाइट
में जूस या फल के तौर पर जरूर उपयोग में लाना चाहिए.
खट्टा-मीठा फल अनानास फ्रूट चाट,
स्मूदी, मिल्क शेक, पुडिंग्स, रायता आदि के रूप में खाया जाता है.
केले को स्मूदी, मिल्क शेक, पेनकेक,
फ्रूट चाट, ब्रेड या ऐसे ही सेवन करें और इसके गुणों का लाभ उठाए.
एक स्वादिष्ट और
स्वास्थ्यवर्धक फल होने के साथ साथ ही पपीता विभिन्न औषधीय गुणों से भी भरपूर है. पपीते
को डिनर के बाद सेवन किया जाना बेहद उपयोगी होता है.
अनार को तो औषधीय गुणों की खान माना जाता है, इसे जूस,
फ्रूट चाट, पुडिंग्स, पोहा (ऊपर से छिडक कर) इत्यादि के तौर पर सेवन किया जाना
चाहिए.
खुबानी अत्यंत प्राचीन फलों में से एक
है, जिसकी खेती पिछले 3000 सालों से भारत में की जा रही है. खुबानी को सूखे मेवों
की तरह उपयोग में लाया जाता है, इसे रातभर भिगोकर सुबह नाश्ते में लेना स्वास्थ्यवर्धक
माना जाता है.
सब्जियों में मार्च माह के अंतर्गत
मुख्य तौर पर पालक, मेथी, शिमला मिर्च, परवल, टिंडा और कद्दू होते हैं, जिनमें
विभिन्न पोषक तत्वों की भरमार होती है.
पालक और मेथी को साग, भाजी, रायता, पूरी,
परांठा, चपाती, ठेपला, थालीपीठ, ढोकला, इडली, डोसा, सलाद जैसे व्यंजनों में आम तौर
पर प्रयोग किया जाता है. इनमें पनीर, टोफू और टमाटर का प्रयोग करने से इनकी
पौष्टिकता और स्वाद दोनों ही बढ़ जाते हैं.
भारतीय और चाइनीज दोनों ही प्रकार के
भोजन में बहुतायत उपयोग की जाने वाली शिमला मिर्च हरे, लाल और पीले रंग में उपलब्ध
होती है और इसका प्रयोग भाजी, तरह तरह की चटनियों, रायता, परांठा, नूडल्स, भारतीय सेंवई,
पुलाव, खिचड़ी, सलाद आदि में काफी अधिक किया जाता है.
पाचन क्षमता के लिए उपयोगी परवल का
सेवन भाजी, मिठाई, पुलाव, रायता जैसे खाद्य पदार्थों के रूप में किया जा सकता है.
दक्षिण एशिया की प्रमुख सब्जियों में
से एक टिंडा या एप्पल गौर्ड है, जिसे बहुत से स्वास्थ्य लाभों के चलते सुपर फ़ूड भी
कहा जाता है. एंटी-इंफ्लामैट्री गुणों से युक्त टिंडा आर्थराइटिस रोग में बेहद
कारगर है. इसे सब्जी, चटनी, सूप इत्यादि के तौर पर भारत में खाया जाता है.
कद्दू अथवा सीताफल पूरे भारत में उपयोग
की जाने वाली सब्जियों में से एक है. कद्दू को सादी भाजी, कटलेट, सूप, हलवा, खीर, पोरियल,
सलाद आदि के रूप में रोजमर्रा के भोजन में शामिल किया जा सकता है.
मौसमी अनाज एवं दालें –
गेहूं, ज्वार, रागी, मूंग, सोयाबीन आदि
मार्च माह में उपयुक्त होने वाले प्रमुख अनाजों और दालों में से हैं. गेहूं भारत
के प्रमुख खाद्यानों में से एक है, जिसका प्रयोग उत्तर भारत में बहुतायत किया जाता
है. उत्तर भारतीयों के भोजन की थाली रोटी के बिना अधूरी मानी जाती है. साथ ही
गेहूं के आते से चीला, डोसा, ब्रेड, लड्डू, हलवा, आटा मोमोज, पेनकेक जैसे अनगिनत
भोज्य पदार्थ तैयार किये जा सकते हैं. गेहूं को अंकुरित रूप से उपयोग किये जाने पर
यह पाचन क्षमता को भी दुरुस्त करता है.
गोल्डन ग्रेन माना जाने वाला ज्वार वजन
कम रहे लोगों के लिए काफी उपयोगी है. इसे चपाती, उपमा, खिचड़ी, डोसा, पोर्रिज, इडली
आदि के तौर पर भारत में खाया जाता है. हालांकि कमजोर पाचन शक्ति वाले लोगों को
इसका सेवन सीमित करने की सलाह दी जाती है.
रागी पचने में बेहद हलकी होती है, इसे
आप अपने आहार में चपाती, पोर्रिज, डोसा, रागी माल्ट, इडली आदि के रूप में खाया
जाता है, यदि रागी को अंकुरित करके खाया जाए तो विटामिन सी का लेवल अधिक बढ़ जाता
है.
मूंग बीन्स को अपने रोजाना के भोजन में
दाल, स्प्राउट्स, चीला, बड़ियों आदि के रूप में लिया जाता है.
शाकाहारी प्रोटीन का सर्वश्रेष्ठ
स्त्रोत सोयाबीन को माना गया है. इंग्लैंड के हुल विश्वविद्यालय में हुई रिसर्च के
अनुसार सोयाबीन महिलाओं को ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है क्योंकि इसमें
आइसोफ्लेवोंस नामक रसायन होता है. इसे दाल, बड़ियों, टोफू आदि के तौर पर खाया जा
सकता है.
यौगिक क्रियाओं और प्राणायाम से
पाएं आरोग्य –
मौसम में गर्माहट बढ़ना एक अच्छा संकेत
है कि आपका शरीर व्यायाम के लिए तैयार है. स्वस्थ जीवनशैली में योग का विशेष महत्व
है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. योगाचार्य महर्षि पतंजलि के अनुसार,
“चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है.”
यानि योग से न केवल शारीरिक अपितु
मानसिक शांति भी प्राप्त की जा सकती है. उत्तम स्वास्थ्य के लिहाज से योगासनों को
लाभप्रद माना जाता रहा है. ऋतुचर्या के अनुकूल यौगिक आसनों, प्राणायाम एवं
मुद्राओं का अभ्यास किया जाना चाहिए. मार्च में योगा से जुड़े अग्रलिखित विकल्प
उपयोग में लाये जा सकते हैं..
1. अर्ध चन्द्रासन –
इसमें सीधे खड़े
होकर दोनों हाथो को सर के ऊपर आपस में जोड़ते हुए श्वास छोड़ते हुए पहले दायें
चन्द्राकार झुका जाता है और फिर श्वास भरते हुए वापस सीधे खड़े होकर दोबारा श्वास
छोड़ते हुए बाएँ चन्द्राकार शरीर को मोड़ा जाता है.
2. ताड़ासन -
इस आसन में सीधे खडे़ होकर
अपने पैरों, कमर और गर्दन को सीधी रेखा में रखते हए अपनी उंगलियों को
सामने की तरफ कर मुट्ठी बांधिए और गहरी श्वास लेते हुए अपनी बंद मुट्ठी के साथ
अपने हाथों को ऊपर की तरफ उठाइए. सांसों को रोकते हुए पंजों के बल खड़े होने का
अभ्यास कीजिये और शरीर को ऊपर की ओर खींचिए. शुरुआत में यह क्रिया 5 से 10 बार
दोहराइए.
3. भुजंगासन -
जमीन पर पेट के बल लेट
जाइए और अपने माथे को जमीन से छुएं. हथेलियों को भुजाओं के नीचे रखिए. पैरों को
सीधा रखते हुए अपने सिर को पीछे की तरफ हल्का सा ले जाते हुए श्वास भरिये. अपने
हाथों से सीने और सिर पर आगे की तरफ दबाव डालिए और इस स्थिति में पीठ को मोडे रखिए.
इस स्थिति में 10 सेकंड्स तक रुकने का प्रयास करें. प्रारंभ में इस क्रिया को 5
बार करें.
4. त्रिकोणासन -
इस आसन में शरीर
त्रिकोण की आकृति का हो जाता है,
इसीलिए इसका नाम त्रिकोणासन रखा गया है. इसमें सीधे खड़े
होकर दोनों पैरों के मध्य लगभग 1-2 फुट का फासला रखें. दोनों हाथों को कंधों से
सीधा रखते हुए पहले दाहिने हाथ से बायां पैर छुए और फिर यही क्रिया विपरीत क्रम
में दोहराएं. प्रारंभ में इसके 4-5 चक्रों का अभ्यास करें.
5. अनुलोम-विलोम प्राणायाम -
अनुलोम
विलोम हमारे श्वसन तंत्र को सुचारू करता है और इसे एक लय में लेकर आता है जिससे
शरीर स्वस्थ होता है.
6. कपालभाति प्राणायाम –
यह प्राणायाम
तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया पर निर्भर है.
7. उज्जयी प्राणायाम -
इस प्राणायाम के
अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए बायीं नासिका का प्रयोग
किया जाता है. श्वास छोड़ते समय गले से ध्वनि उत्पन्न की जाती है.
8. भ्रामरी प्राणायाम –
इसमें दोनों
हाथों से हल्के से आंखें और कान बंद करके श्वास भरते हुए मधुमक्खी के समान आवाज की
जाती है. इस क्रिया का 5-8 बार अभ्यास किया जाना चाहिए.
9. उद्धव गीत प्राणायाम –
ध्यान मुद्रा
में बैठकर ओम शब्द के गहन उच्चारण के द्वारा मस्तिष्क को एकाग्र करने का प्रयास
करना उद्धव गीत प्राणायाम है.
इसके अतिरिक्त कुछ यौगिक मुद्राओं का अभ्यास भी सेहत के लिए जरुरी है. जिन्हें रोजाना करने से शारीरिक और मानसिक लाभ
होता है.
फाल्गुनी पर्व “होली” भी देता है
स्वास्थ्यवर्धक संदेश-
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि
को मनाया जाने वाला पर्व होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो
सांस्कृतिक, आध्यात्मिक जागरण के अतिरिक स्वास्थ्य के भी गूढ़ रहस्यों को छिपाए हुए
है.
मसलन होलिका दहन के समय पूजन किये जाने
पर आस पास के विषैले तत्त्व समाप्त होते हैं. इसी कारण से हमारे ऋषि-मुनियों
द्वारा सामूहिक रूप से यज्ञ अथवा हवन किये जाते थे. गेहूं की बालियां जलाकर प्रसाद
रूप में ग्रहण करने की परम्परा भी यही सिखाती है कि हमारी संस्कृति में अन्न का
सम्मान किया जाता रहा है.
रंगों का भी स्वास्थ्य में बहुत बड़ा
योगदान है, अलग अलग रंग व्यक्ति पर पृथक प्रभाव डालते हैं. रंगों से हमारा समायोजन
अथवा अलगाव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संतुलन, मनोभाव का निर्धारण करता
है.
भारतीय संस्कृति में बिना विचारे कोई
परंपरा नहीं चलाई गयी, अपितु प्रत्येक पर्व, त्यौहार या मंगल उत्सव अपने साथ
वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेकर चलता है. रंगों के हमारे जीवन में महत्व को देखते हुए ही
शायद इस रंग-उत्सव को मान्यता दी गयी होगी, जिसमें सभी रंग एकसार हो जाते हैं और
व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो उठता है. साथ ही होली की ठंडाई यह दिखाती है कि अब
ग्रीष्म ऋतु बस द्वार पर ही खड़ी है.
मौसमी रोग और आयुर्वेदिक निवारण –
मार्च में होने वाले मौसमी बदलाव में शरीर
की प्रतिरोधक क्षमता पर बेहद प्रभाव पड़ता है, हालांकि यह माह अनुकूल माना जाता है.
परन्तु सर्द-गर्म के इस मिलेजुले मौसम में हम न चाहते हुए भी कुछ मौसमी बीमारियों
के शिकार हो जाते हैं.
मसलन हलकी सी गर्मी लगने पर एयर
कंडीशनर चला लेना या फिर स्नान के तुरंत बाद हीटर चला कर बैठ जाना, ये कुछ ऐसी
स्वाभाविक गलतियां हैं, जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती हैं. नतीजतन
हम बीमार पड़ जाते हैं. मार्च में होने वाली ऐसी ही कुछ प्रमुख बीमारियां और उनका
आयुर्वेदिक निदान इस प्रकार है..
1. एलर्जी –
बसंत में आमतौर पर पौधे और
वृक्ष फल-फूल रहे होते हैं और तेज हवा से उनके पराग कण वातावरण में उड़ते रहते हैं.
जिसके चलते ये कण लोगों की आँखों या नासिका के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं और
परिणामस्वरुप आँखों में जलन, साइनस से जुड़ी समस्याएं और श्वसन तंत्र में दिक्कत का
सामना करना पड़ सकता है.
2. कफ और कोल्ड –
वैसे तो खांसी और
जुकाम सर्दियों में अधिक होता है, परन्तु बसंत को इस संक्रामक रोग के लिहाज से भी
जाना जाता है. मौसम परिवर्तन के कारण यह रोग तेजी से फैलता है और विशेष रूप से
छोटे बच्चों, बुजुर्गों को परेशान कर सकता है.
3. अल्सर रोग –
मार्च में अनुकूल मौसम
के चलते हमारी जठराग्नि तीव्र गति से कार्य करती है, जिसके चलते हम अधिक मात्रा
में गरिष्ठ भोजन खाना पसंद करते है. इस कारण से पेट में हाइड्रोक्लोरिक एवं
गैस्ट्रिक रस अधिक उत्पन्न होता है, जो अल्सर का प्रमुख कारण बनता है.
4. अस्थमा रोग –
एलर्जी बढ़ने के करण
अस्थमा रोग भी इस समय बढ़ जाता है. पराग कणों के हवा में मौजूद रहने से तथा तापमान
में बदलाव से अस्थमा रोगियों को अधिक परेशानी बढती है, उन्हें फेफड़ों सम्बन्धी
दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
5. सरदर्द एवं मौसमी फ्लू –
मौसम में
आए परिवर्तन से हमारा शरीर परिचित नहीं हो पाता है और मौसमी बुखार का शिकार बन
जाता है. सरदर्द इस माह में होने वाली समस्याओं में प्रमुख है. अपने शारीरिक
तापमान को मौसम में ढलने के लिए समय दिए बिना ही हम उसके उलट क्रियाकलाप आरम्भ कर
देते हैं, जिससे प्रतिरक्षण तंत्र प्रभावित होता है और इसका नतीजा ज्वर के रूप में
देखने को मिलता है.
इसके अतिरिक्त गठिया, जोड़ों के दर्द
आदि से प्रभावित मरीजों के लिए भी यह समय दुष्कर होता है. मौसम का अनिश्चित चक्र,
जैसे मार्च में वर्षा से उत्पन्न ठंड सरदर्द, जोड़ो के दर्द, थकान इत्यादि को बढ़ावा
देती है, जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी देखने को मिलता है. अनिद्रा, व्यवहार
परिवर्तन, गतिशीलता में कमी इत्यादि देखने को मिलते हैं.
अंतत कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य
ईश्वर की दी हुई वह अनुपम देन है, जिसे सहेज कर रखना प्रत्येक व्यक्ति का
सर्वप्रथम दायित्त्व है. मार्च के इस मिले जुले मौसम में भी आप उपर्युक्त जीवन
शैली का पालन कर आरोग्यता का वरदान प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को स्वास्थ्य
के विविध रंगों से सजाकर प्रतिक्षण का आनंद उठा सकते हैं.
By Deepika Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
मार्च, जिसे वैदिक संस्कृति में फाल्गुन माह के नाम से भी जाना जाता है, विशेषत: भारत में ऋतु परिवर्तन की दहलीज के तौर पर देखे जाने वाले महीनों में से एक है. भारतीय परंपरा के अनुसार बसंत ऋतु (नवम्बर-मार्च) की अवधि में आने वाला मार्च माह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के हिसाब से शीत ऋतु का ही अंतिम माह माना जाता है. उत्तर भारत में इस समय मौसम में धीरे धीरे गर्माहट आनी प्रारंभ हो जाती है, सूर्य की किरणें दिन में बेहद तीखी और रात्रि का तापमान अनुकूल ही रहता है.
भारत में फाल्गुनी माह के तौर पर देखे जाने वाला मार्च संयुक्त राज्य अमेरिका में “नेशनल न्यूट्रीशन मंथ” के रूप में देखा जाता है. जिसमें स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों के लिए जन-जागरूकता का प्रसार बहुतायत किया जाता है.
देखा जाये तो जीवन में स्वास्थ्य से बढ़कर अमूल्य धन और कुछ है भी नहीं, तो क्यों ना ऋतुनुसार चलते हुए इस स्वास्थ्य रूपी धन को संजोकर रखा जाये. इसी कड़ी में निरोगी काया और समृद्ध तन-मन से जुड़ी हमारी स्वास्थ्य सीरीज में “मार्च स्वास्थ्य विशेषांक” के अंतर्गत अग्रलिखित वर्णित स्वास्थ्य नियमों को आप भी अपने जीवन में अपनाएं और पाएं आरोग्य का खजाना.
ऋतुचर्या से हमारा अभिप्राय है, ऋतु के अनुकूल जीवनशैली. जिस प्रकार प्रकृति खुद को समय समय पर परिवर्तित करती रहती है, ठीक उसी प्रकार व्यक्ति को भी स्वयं को प्रकृति के अनुरूप बदल लेना चाहिए. ऋतु के अनुसार आहार-विहार, दिनचर्या इत्यादि आरोग्यता की सर्वप्रथम सीढ़ी है. मसलन, ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थ जैसे तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी आदि को सर्दियों में खाने के लिए मना किया गया है, जबकि गर्मियों में यह सब अमृततुल्य हैं.
मार्च में न अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक सर्दी, यानि हम मिली-जुली तासीर वाले खाद्य पदार्थों का भरपूर सेवन कर सकते हैं. साथ ही जनवरी-फरवरी के सर्द महीनों का आलस्य त्यागकर शारीरिक सक्रियता को भी बढाया जाना चाहिए. वैसे भी बसंत प्रकृति में नवता का सन्देश लेकर आती है, जिसे स्वास्थ्य के संदर्भ में देखें तो मनुष्य को भी खुद में नवपरिवर्तन के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
हमारे खान पान के तरीकों से ही हमारी स्वस्थ जीवनशैली निर्धारित होती है. “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन” की अवधारणा पर चलते हुए यदि प्रकृति के अनुरूप खान-पान हो, तो हमारा तन-मन दुरुस्त बना रहता है. मार्च में मिली-जुली तासीर वाले फल, सब्जियों, अनाज, मसालों आदि के साथ साथ ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थों को भी दिन के समय अपनी आहारचर्या में शामिल किया जा सकता है. मार्च में उत्तर भारत में अधिकतम उपयोग होने वाले खाद्य पदार्थों की फेहरिस्त निम्नांकित है.
मौसमी फल एवं सब्जियां –
आज के तकनीकी युग में देखा जाये, तो उन्नत कृषि तकनीकों ने हर मौसम में प्रत्येक फल एवं सब्जी की उपलब्धता आसान कर दी है. परंतु मौसम के अनुसार खाए जाने वाले फलों में पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं, क्योंकि वें प्राकृतिक रूप से तैयार होते हैं.
मार्च माह में पाए जाने वाले प्रमुख फलों में अंगूर, संतरा, अनानास, केला, पपीता, अनार, खुबानी आदि आते हैं, जो सेहत के लिहाज से बहुत से पोषक तत्वों से युक्त हैं. जैसे कि अंगूर काले और हरे दोनों ही रूप में ग्रहण किया जाता है.
संतरे को आयुर्वेद में भी संतरे को बलवर्धक, रक्तवर्धक, अम्ल-मधुर, पित्त-नाशक आदि माना गया है. इसे रोजाना की डाइट में जूस या फल के तौर पर जरूर उपयोग में लाना चाहिए.
खट्टा-मीठा फल अनानास फ्रूट चाट, स्मूदी, मिल्क शेक, पुडिंग्स, रायता आदि के रूप में खाया जाता है.
केले को स्मूदी, मिल्क शेक, पेनकेक, फ्रूट चाट, ब्रेड या ऐसे ही सेवन करें और इसके गुणों का लाभ उठाए.
एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक फल होने के साथ साथ ही पपीता विभिन्न औषधीय गुणों से भी भरपूर है. पपीते को डिनर के बाद सेवन किया जाना बेहद उपयोगी होता है.
अनार को तो औषधीय गुणों की खान माना जाता है, इसे जूस, फ्रूट चाट, पुडिंग्स, पोहा (ऊपर से छिडक कर) इत्यादि के तौर पर सेवन किया जाना चाहिए.
खुबानी अत्यंत प्राचीन फलों में से एक है, जिसकी खेती पिछले 3000 सालों से भारत में की जा रही है. खुबानी को सूखे मेवों की तरह उपयोग में लाया जाता है, इसे रातभर भिगोकर सुबह नाश्ते में लेना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है.
सब्जियों में मार्च माह के अंतर्गत मुख्य तौर पर पालक, मेथी, शिमला मिर्च, परवल, टिंडा और कद्दू होते हैं, जिनमें विभिन्न पोषक तत्वों की भरमार होती है.
पालक और मेथी को साग, भाजी, रायता, पूरी, परांठा, चपाती, ठेपला, थालीपीठ, ढोकला, इडली, डोसा, सलाद जैसे व्यंजनों में आम तौर पर प्रयोग किया जाता है. इनमें पनीर, टोफू और टमाटर का प्रयोग करने से इनकी पौष्टिकता और स्वाद दोनों ही बढ़ जाते हैं.
भारतीय और चाइनीज दोनों ही प्रकार के भोजन में बहुतायत उपयोग की जाने वाली शिमला मिर्च हरे, लाल और पीले रंग में उपलब्ध होती है और इसका प्रयोग भाजी, तरह तरह की चटनियों, रायता, परांठा, नूडल्स, भारतीय सेंवई, पुलाव, खिचड़ी, सलाद आदि में काफी अधिक किया जाता है.
पाचन क्षमता के लिए उपयोगी परवल का सेवन भाजी, मिठाई, पुलाव, रायता जैसे खाद्य पदार्थों के रूप में किया जा सकता है.
दक्षिण एशिया की प्रमुख सब्जियों में से एक टिंडा या एप्पल गौर्ड है, जिसे बहुत से स्वास्थ्य लाभों के चलते सुपर फ़ूड भी कहा जाता है. एंटी-इंफ्लामैट्री गुणों से युक्त टिंडा आर्थराइटिस रोग में बेहद कारगर है. इसे सब्जी, चटनी, सूप इत्यादि के तौर पर भारत में खाया जाता है.
कद्दू अथवा सीताफल पूरे भारत में उपयोग की जाने वाली सब्जियों में से एक है. कद्दू को सादी भाजी, कटलेट, सूप, हलवा, खीर, पोरियल, सलाद आदि के रूप में रोजमर्रा के भोजन में शामिल किया जा सकता है.
मौसमी अनाज एवं दालें –
गेहूं, ज्वार, रागी, मूंग, सोयाबीन आदि मार्च माह में उपयुक्त होने वाले प्रमुख अनाजों और दालों में से हैं. गेहूं भारत के प्रमुख खाद्यानों में से एक है, जिसका प्रयोग उत्तर भारत में बहुतायत किया जाता है. उत्तर भारतीयों के भोजन की थाली रोटी के बिना अधूरी मानी जाती है. साथ ही गेहूं के आते से चीला, डोसा, ब्रेड, लड्डू, हलवा, आटा मोमोज, पेनकेक जैसे अनगिनत भोज्य पदार्थ तैयार किये जा सकते हैं. गेहूं को अंकुरित रूप से उपयोग किये जाने पर यह पाचन क्षमता को भी दुरुस्त करता है.
गोल्डन ग्रेन माना जाने वाला ज्वार वजन कम रहे लोगों के लिए काफी उपयोगी है. इसे चपाती, उपमा, खिचड़ी, डोसा, पोर्रिज, इडली आदि के तौर पर भारत में खाया जाता है. हालांकि कमजोर पाचन शक्ति वाले लोगों को इसका सेवन सीमित करने की सलाह दी जाती है.
रागी पचने में बेहद हलकी होती है, इसे आप अपने आहार में चपाती, पोर्रिज, डोसा, रागी माल्ट, इडली आदि के रूप में खाया जाता है, यदि रागी को अंकुरित करके खाया जाए तो विटामिन सी का लेवल अधिक बढ़ जाता है.
मूंग बीन्स को अपने रोजाना के भोजन में दाल, स्प्राउट्स, चीला, बड़ियों आदि के रूप में लिया जाता है.
शाकाहारी प्रोटीन का सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत सोयाबीन को माना गया है. इंग्लैंड के हुल विश्वविद्यालय में हुई रिसर्च के अनुसार सोयाबीन महिलाओं को ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है क्योंकि इसमें आइसोफ्लेवोंस नामक रसायन होता है. इसे दाल, बड़ियों, टोफू आदि के तौर पर खाया जा सकता है.
मौसम में गर्माहट बढ़ना एक अच्छा संकेत है कि आपका शरीर व्यायाम के लिए तैयार है. स्वस्थ जीवनशैली में योग का विशेष महत्व है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. योगाचार्य महर्षि पतंजलि के अनुसार,
“चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है.”
यानि योग से न केवल शारीरिक अपितु मानसिक शांति भी प्राप्त की जा सकती है. उत्तम स्वास्थ्य के लिहाज से योगासनों को लाभप्रद माना जाता रहा है. ऋतुचर्या के अनुकूल यौगिक आसनों, प्राणायाम एवं मुद्राओं का अभ्यास किया जाना चाहिए. मार्च में योगा से जुड़े अग्रलिखित विकल्प उपयोग में लाये जा सकते हैं..
1. अर्ध चन्द्रासन –
इसमें सीधे खड़े होकर दोनों हाथो को सर के ऊपर आपस में जोड़ते हुए श्वास छोड़ते हुए पहले दायें चन्द्राकार झुका जाता है और फिर श्वास भरते हुए वापस सीधे खड़े होकर दोबारा श्वास छोड़ते हुए बाएँ चन्द्राकार शरीर को मोड़ा जाता है.
2. ताड़ासन -
इस आसन में सीधे खडे़ होकर अपने पैरों, कमर और गर्दन को सीधी रेखा में रखते हए अपनी उंगलियों को सामने की तरफ कर मुट्ठी बांधिए और गहरी श्वास लेते हुए अपनी बंद मुट्ठी के साथ अपने हाथों को ऊपर की तरफ उठाइए. सांसों को रोकते हुए पंजों के बल खड़े होने का अभ्यास कीजिये और शरीर को ऊपर की ओर खींचिए. शुरुआत में यह क्रिया 5 से 10 बार दोहराइए.
3. भुजंगासन -
जमीन पर पेट के बल लेट जाइए और अपने माथे को जमीन से छुएं. हथेलियों को भुजाओं के नीचे रखिए. पैरों को सीधा रखते हुए अपने सिर को पीछे की तरफ हल्का सा ले जाते हुए श्वास भरिये. अपने हाथों से सीने और सिर पर आगे की तरफ दबाव डालिए और इस स्थिति में पीठ को मोडे रखिए. इस स्थिति में 10 सेकंड्स तक रुकने का प्रयास करें. प्रारंभ में इस क्रिया को 5 बार करें.
4. त्रिकोणासन -
इस आसन में शरीर त्रिकोण की आकृति का हो जाता है, इसीलिए इसका नाम त्रिकोणासन रखा गया है. इसमें सीधे खड़े होकर दोनों पैरों के मध्य लगभग 1-2 फुट का फासला रखें. दोनों हाथों को कंधों से सीधा रखते हुए पहले दाहिने हाथ से बायां पैर छुए और फिर यही क्रिया विपरीत क्रम में दोहराएं. प्रारंभ में इसके 4-5 चक्रों का अभ्यास करें.
5. अनुलोम-विलोम प्राणायाम -
अनुलोम विलोम हमारे श्वसन तंत्र को सुचारू करता है और इसे एक लय में लेकर आता है जिससे शरीर स्वस्थ होता है.
6. कपालभाति प्राणायाम –
यह प्राणायाम तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया पर निर्भर है.
7. उज्जयी प्राणायाम -
इस प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए बायीं नासिका का प्रयोग किया जाता है. श्वास छोड़ते समय गले से ध्वनि उत्पन्न की जाती है.
8. भ्रामरी प्राणायाम –
इसमें दोनों हाथों से हल्के से आंखें और कान बंद करके श्वास भरते हुए मधुमक्खी के समान आवाज की जाती है. इस क्रिया का 5-8 बार अभ्यास किया जाना चाहिए.
9. उद्धव गीत प्राणायाम –
ध्यान मुद्रा में बैठकर ओम शब्द के गहन उच्चारण के द्वारा मस्तिष्क को एकाग्र करने का प्रयास करना उद्धव गीत प्राणायाम है.
इसके अतिरिक्त कुछ यौगिक मुद्राओं का अभ्यास भी सेहत के लिए जरुरी है. जिन्हें रोजाना करने से शारीरिक और मानसिक लाभ होता है.
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला पर्व होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो सांस्कृतिक, आध्यात्मिक जागरण के अतिरिक स्वास्थ्य के भी गूढ़ रहस्यों को छिपाए हुए है.
मसलन होलिका दहन के समय पूजन किये जाने पर आस पास के विषैले तत्त्व समाप्त होते हैं. इसी कारण से हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा सामूहिक रूप से यज्ञ अथवा हवन किये जाते थे. गेहूं की बालियां जलाकर प्रसाद रूप में ग्रहण करने की परम्परा भी यही सिखाती है कि हमारी संस्कृति में अन्न का सम्मान किया जाता रहा है.
रंगों का भी स्वास्थ्य में बहुत बड़ा योगदान है, अलग अलग रंग व्यक्ति पर पृथक प्रभाव डालते हैं. रंगों से हमारा समायोजन अथवा अलगाव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संतुलन, मनोभाव का निर्धारण करता है.
भारतीय संस्कृति में बिना विचारे कोई परंपरा नहीं चलाई गयी, अपितु प्रत्येक पर्व, त्यौहार या मंगल उत्सव अपने साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेकर चलता है. रंगों के हमारे जीवन में महत्व को देखते हुए ही शायद इस रंग-उत्सव को मान्यता दी गयी होगी, जिसमें सभी रंग एकसार हो जाते हैं और व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो उठता है. साथ ही होली की ठंडाई यह दिखाती है कि अब ग्रीष्म ऋतु बस द्वार पर ही खड़ी है.
मार्च में होने वाले मौसमी बदलाव में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर बेहद प्रभाव पड़ता है, हालांकि यह माह अनुकूल माना जाता है. परन्तु सर्द-गर्म के इस मिलेजुले मौसम में हम न चाहते हुए भी कुछ मौसमी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.
मसलन हलकी सी गर्मी लगने पर एयर कंडीशनर चला लेना या फिर स्नान के तुरंत बाद हीटर चला कर बैठ जाना, ये कुछ ऐसी स्वाभाविक गलतियां हैं, जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती हैं. नतीजतन हम बीमार पड़ जाते हैं. मार्च में होने वाली ऐसी ही कुछ प्रमुख बीमारियां और उनका आयुर्वेदिक निदान इस प्रकार है..
1. एलर्जी –
बसंत में आमतौर पर पौधे और वृक्ष फल-फूल रहे होते हैं और तेज हवा से उनके पराग कण वातावरण में उड़ते रहते हैं. जिसके चलते ये कण लोगों की आँखों या नासिका के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं और परिणामस्वरुप आँखों में जलन, साइनस से जुड़ी समस्याएं और श्वसन तंत्र में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.
2. कफ और कोल्ड –
वैसे तो खांसी और जुकाम सर्दियों में अधिक होता है, परन्तु बसंत को इस संक्रामक रोग के लिहाज से भी जाना जाता है. मौसम परिवर्तन के कारण यह रोग तेजी से फैलता है और विशेष रूप से छोटे बच्चों, बुजुर्गों को परेशान कर सकता है.
3. अल्सर रोग –
मार्च में अनुकूल मौसम के चलते हमारी जठराग्नि तीव्र गति से कार्य करती है, जिसके चलते हम अधिक मात्रा में गरिष्ठ भोजन खाना पसंद करते है. इस कारण से पेट में हाइड्रोक्लोरिक एवं गैस्ट्रिक रस अधिक उत्पन्न होता है, जो अल्सर का प्रमुख कारण बनता है.
4. अस्थमा रोग –
एलर्जी बढ़ने के करण अस्थमा रोग भी इस समय बढ़ जाता है. पराग कणों के हवा में मौजूद रहने से तथा तापमान में बदलाव से अस्थमा रोगियों को अधिक परेशानी बढती है, उन्हें फेफड़ों सम्बन्धी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
5. सरदर्द एवं मौसमी फ्लू –
मौसम में आए परिवर्तन से हमारा शरीर परिचित नहीं हो पाता है और मौसमी बुखार का शिकार बन जाता है. सरदर्द इस माह में होने वाली समस्याओं में प्रमुख है. अपने शारीरिक तापमान को मौसम में ढलने के लिए समय दिए बिना ही हम उसके उलट क्रियाकलाप आरम्भ कर देते हैं, जिससे प्रतिरक्षण तंत्र प्रभावित होता है और इसका नतीजा ज्वर के रूप में देखने को मिलता है.
इसके अतिरिक्त गठिया, जोड़ों के दर्द आदि से प्रभावित मरीजों के लिए भी यह समय दुष्कर होता है. मौसम का अनिश्चित चक्र, जैसे मार्च में वर्षा से उत्पन्न ठंड सरदर्द, जोड़ो के दर्द, थकान इत्यादि को बढ़ावा देती है, जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी देखने को मिलता है. अनिद्रा, व्यवहार परिवर्तन, गतिशीलता में कमी इत्यादि देखने को मिलते हैं.
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