अमेरिकी मीडिया
और अमेरिकन लोग फेसबुक को लेकर बौखलाए हुए हैं. कहते हैं जब घर में आग लगती है तो
नुकसान खुद का ही होता है. कल तक दूसरों के घर में आग लगता हुआ देखा चुप-चाप तमाशा
देखने वाले अमेरिकी आज खुद के घर को जलने से नहीं बचा पाये. फेसबुक के गलत इस्तेमाल पर आज तक अमेरिका
ने आवाज़ नहीं उठाई. मगर आज यह बूमरेंग की भांति वापस पलटकर उन्हें ही क्षति पहुंचा
रहा है. राष्ट्रपति चुनाव के अंतिम तीन महीने के दौरान फेसबुक पर सच्ची खबरों से
ज्यादा फेक न्यूज़ देखी और पढ़ी गई. जिसका असर चुनाव पर भी पड़ा. फेसबुक के खिलाब लोग
लामबंद हो रहे हैं मगर कहते हैं ना “अब पछतावत होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत”.

समाज को विचार
शून्यता की ओर ले जाता सोशल मीडिया
पूरी दुनिया
में सूचना और संचार क्रांति की अंधी दौड़ मची है. इसमें बहुत बड़ी भूमिका इंटरनेट
निभा रहा है. आज जिनके पास भी इंटरनेट है उनका एक अहम समय इसपर ही व्यतीत होता है,
खासकर सोशल मीडिया पर. आज सोशल मीडिया ने हमें अपनी बात कहने का एक मंच अवश्य दिया
है पर इसी साधन का लोगों द्वारा दुरुपयोग भी किया जा रहा है. आज सोशल मीडिया का
इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों द्वारा भी जम कर किया जा रहा है मगर इसका इस्तेमाल
जिस तरह से हो रहा है वह वाकई चिंता का विषय है. राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ
उनके समर्थक भी अक्सर शालीनता की सारी हदे पार कर लेते हैं. किसी के निजी जीवन के
साथ उनके परिवार को भी इसमें घसीट लेना आज सोशल मीडिया का चलन बन गया है. माँ,
बहन, बेटी को गाली देना, गलत अफवाह उड़ाना, अश्लील और भद्दी बातें करना, फोटो एडिट
कर कुछ का कुछ और दिखा देना आज आम बात हो चुकी है. मगर जैसा भी हो हम इस स्थिति को
किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहरा सकते. समाज के लिए यह बेहद सोचनीय अवस्था है. आप
अपनी भड़ास निकालने के लिए सारी मर्यादा का उलंघन तो करते ही हैं साथ ही आप इन
मामलों में जिनका कोई लेना देना नहीं है उसे भी घसीट रहे होते हैं. शायद यह समाज
को विचार शून्यता की ओर ले जाने का प्रतीक है.
सोशल मीडिया
बना निजी हमलों का वार रूम
यह समाज के
गिरते स्तर का प्रतीक है. रविश कुमार जैसे नामी पत्रकार सोशल मीडिया से अलग हो
जाते हैं कारण सोशल मीडिया ट्रोल, उनके परिवार को भद्दी-भद्दी गलियां दी जाती हैं.
यह इकलौता मामला नहीं है ऐसे ही असंख्य मामले हैं. इसमें राजनीतिक पार्टियों के
साइबर सेल का भी बहुत बड़ा हाथ है. राजनीतिक पार्टियों ने इसी कार्य के लिए कई
लोगों को बहाल कर रखा है. एक उदहारण देखें तो आम आदमी पार्टी और भाजपा का सोशल
मीडिया वार जग जाहिर है. अपने साइबर सेल और समर्थकों के माध्यम से सोशल मीडिया में
ट्रेंड करवाया जाता है, जिसमें गलत जानकारी भी दी जाती, भद्दी गालियों का भी जमकर
इस्तेमाल किया जाता है यहाँ तक पद की गरिमा को भी भुला दिया जाता है साथ ही आहत
करने वाले निजी हमले भी किये किये जाते हैं. और इन सबके लिए फेक अकाउंट का सहारा
लिया जाता है. मगर फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया इसे रोकने का कोई समाधान
नहीं देती.
बेहद कमजोर है भारत का सायबर कानून
अगर हम देश की बात करें तो इंटरनेट के
दुरुपयोग और इस समस्या से निपटने में अब तक कोई असरदार रणनीति निर्मिंत नहीं हुई
है, हम इसकी भयावहता और समाज
के गिरते स्तर का अंदाज ही नहीं लगा पा रहे हैं. भारत के साइबर कानून बेहद कमजोर
हैं. हम कुछ भी कह कर, लिख कर आसानी से निकल जाते हैं, कोई उनकी गिरफ्त में आसानी
से आ ही नहीं पाता है अगर आ भी गया, तो जमानत के द्वारा
आसानी से छूट जाता है. हालांकि साइबर कानून को मजबूत करने के लिए 2008 के संसोधित कानून
में कुछ संशोधन किये गए मगर यह भी नाकाफी थे. साइबर कानून में आज भी किसी प्रकार
की कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है इससे अपराधी के मन में इस कानून के लिए व इससे
मिलने वाली सजा के लिए कोई भय नजर नहीं आता. शायद यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि देश
में इंटरनेट से सम्बन्धित अपराधों की अधिकता बढ़ती जा रही है. चाहे वह किसी पद के
मान से संबंधित हो या किसी पर निजी हमले को लेकर.
सोशल मीडिया में सोशल जैसी कोई बात नहीं
2014 के लोकसभा चुनाव पर हम
नज़र डालें तो इंटरनेट का जमकर गलत इस्तेमाल हुआ. गलत अफवाहें, गलत सूचनाओं को जमकर
प्रचारित किया गया. निजी हमलों की बाढ़ सी आ गई और इसका फायदा फेसबुक और ट्विटर ने
अपने मार्केटिंग के लिए उठाया. फेसबुक जैसे सोशल मीडिया चैनल अपने हिसाब से फेक
आईडी को ब्लॉक करने का काम करती हैं. 2014 के चुनाव के दौरान अनगिनत फेक आईडी बनाई
गई जिसे फेसबुक ने खुद की कमाई के साधन के रूप में लिया. किसी गलत या फेक आईडी के
बारे में फेसबुक को इन्फॉर्म करने पे उस पर वह त्वरित कारवाई नहीं करता. हमसे कुछ
सवाल पूछता है. वह हमें दिखना बंद हो जाता है मगर क्या इसका यही समाधान है? सोशल
मीडिया टूल अपने निजी हित के लिए कार्य करती है और इनमें सोशल जैसी कोई बात है ही
नहीं.

इंटरनेट का दरुपयोग से दंगे तक संभव
इंटरनेट का सही इस्तेमाल हो सके उसके लिए
सोशल मीडिया चैनल को ठोस कदम उठाने की जरुरत है मगर उससे ज्यादा जरुरत है कि सरकार
साइबर कानून को सख्त बनाए, लोगों में कानून का डर रहे जिससे कोई भी आपत्तिजनक
व्यवहार नहीं हो. अभी की स्थिति में सेंसरशिप जैसी कोई चीज नहीं है. लोगों को खुली
छूट मिल रखी है जिसका बेजा इस्तेमाल किया जाता है. उदहारण के तौर पर देखें तो असम
में 2012 में हुए दंगे का एक कारण फेसबुक पोस्ट था, तो वही दादरी में अखलाक की
निर्मम हत्या का कारण व्हाट्सएप्प के एक मैसेज बना. यही नहीं दुनिया के लिए खतरा बन चुकी
ISIL भारत में भी अपना पैर पसारने लगी है और यहाँ के लोग उसमें शामिल होने लगे
हैं और इसका कारण भी सोशल मीडिया ही बन रहा है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को
चिन्हित कर उनसे संपर्क किया जाता है और धीरे-धीरे उन्हें आइएसआई में शामिल कर
लिया जाता है. हम आज अगर नहीं चेते और इंटरनेट के दुरुपयोग पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो इसका परिणाम और भी
दुखद हो सकता है.
चेतना शून्य
होती सरकार
सरकार और
राजनीतिक पार्टियां या तो इसे समझ नहीं पा रही या समझ कर भी नहीं समझना चाहती.
क्योंकि सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें बेहद सस्ते और आसानी से अपने प्रचार और
दूसरों पर प्रहार करने का मौका मिलता है. मगर इंटरनेट के दुरुपयोग का परिणाम कितनी बार हमने देखा है. सरकार अगर अब
भी खामोश रही तो इसके भयावाह परिणाम के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए. मगर हमें
उम्मीद है की सरकार अभी चेतना शून्य नहीं हुई है. कहते हैं कि जब घर में आग लगती
है तो नुकसान भी खुद को ही उठाना पड़ता है.
फेसबुक पर सही खबरों से ज्यादा देखी गई
फेक न्यूज़
फेसबुक के गलत इस्तेमाल पर आज तक अमेरिका
ने आवाज़ नहीं उठाई. मगर आज यह बूमरेंग की भांति वापस पलटकर उन्हें ही क्षति पहुंचा
रहा है. इंटरनेट की दुनिया में सायबर बुलिंग बहुत ही सामान्य सी बात है. इसका अर्थ
है कि कोई किसी को गलत या अश्लील प्रकार का संदेश दे तो वह सायबर बुलिंग कहलता है.
आज यही गलत संदेश अमेरिका में हंगामा खड़ा कर रखा है. फेसबुक पर उंगली उठाई जा रही
है. अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के अंतिम तीन महीने में फेसबुक पर पोस्ट फेक
न्यूज़ सही न्यूज़ के मुकाबले ज्यादा देखी और पढ़ी गई. ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के
बाद अब इसे लेकर अमेरिका में बवाल मचा हुआ है. अब वहां के लोगों की नींद खुल रही
है और इंटरनेट के गलत इस्तेमाल को लेकर आवाजें सुनाई देने लगी है.
अपील, सरकार साइबर कानून को कड़ा बनाए
आज यह सही मौका है और दस्तूर भी की भारत
इंटरनेट के दुरुपयोग को लेकर अपने निजी
हित को छोड़ ठोस कदम उठाए. आज बड़ी आसानी से सिरिया की कोई फोटो भेज कर उसे भारत में
हुए ट्रेन दुर्घटना से जोड़ दिया जाता है. कभी और कहीं की फोटो भेज कर कहा जाता है
इस बच्ची के दिल में छेड़ है और इसके प्रत्येक शेयर पर इसके ऑपरेशन के लिए कुछ खास
रकम मिलेंगे बता दिया जाता है. किसी हैकर द्वारा कोई लिंक आसानी से सोशल मीडिया
में चला दिया जाता है और कहा जाता है इस लिंक पर जाने पर आपके मोबाइल नेटवर्क पर
100 – 200 रूपए का रिचार्ज हो जायेगा. कभी लता मंगेशकर, तो कभी अमिताभ बच्चन को
इंटरनेट पर झूठी खबर फैला का मार तक दिया जाता है. इन सब से बचने के लिए हमारी
सरकार से अपील है कि वह साइबर कानून को कड़ा बनाए और सेंसरशिप जैसी व्यवस्था बने
जिससे भड़काऊ और गलत खबरों पर रोक लग सके, भाषा की मर्यादा बनी रहे, झूठी खबरों पर
रोक लग सके जिससे इंटरनेट से सम्बन्धित अपराधों में कमी आए.
कबतक ज़िम्मेदारी से बच पाएगी फेसबुक जैसी कंपनियां
फेसबुक के मालिक श्री जुखरबर्ग ने फेक ख़बर मसले के बाद कहा -
हम तकनीक के लोग हैं, सच के ठेकेदार नहीं
श्रीमान हम भी तकनीक की उसी दुनियां से हैं, और जब अपना देश झूठ और फ़रेब की, आपके लालच की भड़काई आग में जल रहा होता है तब सच की ज़िम्मेदारी सबकी होती है। तकनीक को नैतिकता से दूर कर एटम बम का इज़ाद किया गया था, आप भी उसी कतार में ना खड़ें हों तो अच्छा होगा।
आपसे भी कुछ सालों बाद पूछेंगे, नैतिकता और सच का ये सवाल जब अमेरिका गटर की राजनीती में सराबोर हो रहा होगा।
आपने तो ३५० बिलियन डॉलर कमा लिया, १४ आलीशान महल बना लिए, मगर हमारे देश को ट्रॉलों का देश बना दिया, और हमारे नेताओं को सेल्फ़ी नेता।
आज़ आग आपके घर तक पोहोंची हैं , देखें सेल्फी मंच किस दिशा जाता है।
बैलटबॉक्सइंडिया तकनीक के इस विनाशकारी और विदेशी कंपनियों के लिए अति लाभकारी धंधे पर पैनी नज़र रखे हुए है। अगर आप इस विषय के बारे में जानना चाहें, इस चर्चा से जुड़ना चाहें , या सुझाव देना चाहें तो नीचे फॉलो बटन दबा कर इस अभियान से जुड़ें
By
Swarntabh Kumar 5831
समाज को विचार शून्यता की ओर ले जाता सोशल मीडिया
सोशल मीडिया बना निजी हमलों का वार रूम
यह समाज के गिरते स्तर का प्रतीक है. रविश कुमार जैसे नामी पत्रकार सोशल मीडिया से अलग हो जाते हैं कारण सोशल मीडिया ट्रोल, उनके परिवार को भद्दी-भद्दी गलियां दी जाती हैं. यह इकलौता मामला नहीं है ऐसे ही असंख्य मामले हैं. इसमें राजनीतिक पार्टियों के साइबर सेल का भी बहुत बड़ा हाथ है. राजनीतिक पार्टियों ने इसी कार्य के लिए कई लोगों को बहाल कर रखा है. एक उदहारण देखें तो आम आदमी पार्टी और भाजपा का सोशल मीडिया वार जग जाहिर है. अपने साइबर सेल और समर्थकों के माध्यम से सोशल मीडिया में ट्रेंड करवाया जाता है, जिसमें गलत जानकारी भी दी जाती, भद्दी गालियों का भी जमकर इस्तेमाल किया जाता है यहाँ तक पद की गरिमा को भी भुला दिया जाता है साथ ही आहत करने वाले निजी हमले भी किये किये जाते हैं. और इन सबके लिए फेक अकाउंट का सहारा लिया जाता है. मगर फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया इसे रोकने का कोई समाधान नहीं देती.बेहद कमजोर है भारत का सायबर कानून
अगर हम देश की बात करें तो इंटरनेट के दुरुपयोग और इस समस्या से निपटने में अब तक कोई असरदार रणनीति निर्मिंत नहीं हुई है, हम इसकी भयावहता और समाज के गिरते स्तर का अंदाज ही नहीं लगा पा रहे हैं. भारत के साइबर कानून बेहद कमजोर हैं. हम कुछ भी कह कर, लिख कर आसानी से निकल जाते हैं, कोई उनकी गिरफ्त में आसानी से आ ही नहीं पाता है अगर आ भी गया, तो जमानत के द्वारा आसानी से छूट जाता है. हालांकि साइबर कानून को मजबूत करने के लिए 2008 के संसोधित कानून में कुछ संशोधन किये गए मगर यह भी नाकाफी थे. साइबर कानून में आज भी किसी प्रकार की कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है इससे अपराधी के मन में इस कानून के लिए व इससे मिलने वाली सजा के लिए कोई भय नजर नहीं आता. शायद यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि देश में इंटरनेट से सम्बन्धित अपराधों की अधिकता बढ़ती जा रही है. चाहे वह किसी पद के मान से संबंधित हो या किसी पर निजी हमले को लेकर.
सोशल मीडिया में सोशल जैसी कोई बात नहीं
2014 के लोकसभा चुनाव पर हम नज़र डालें तो इंटरनेट का जमकर गलत इस्तेमाल हुआ. गलत अफवाहें, गलत सूचनाओं को जमकर प्रचारित किया गया. निजी हमलों की बाढ़ सी आ गई और इसका फायदा फेसबुक और ट्विटर ने अपने मार्केटिंग के लिए उठाया. फेसबुक जैसे सोशल मीडिया चैनल अपने हिसाब से फेक आईडी को ब्लॉक करने का काम करती हैं. 2014 के चुनाव के दौरान अनगिनत फेक आईडी बनाई गई जिसे फेसबुक ने खुद की कमाई के साधन के रूप में लिया. किसी गलत या फेक आईडी के बारे में फेसबुक को इन्फॉर्म करने पे उस पर वह त्वरित कारवाई नहीं करता. हमसे कुछ सवाल पूछता है. वह हमें दिखना बंद हो जाता है मगर क्या इसका यही समाधान है? सोशल मीडिया टूल अपने निजी हित के लिए कार्य करती है और इनमें सोशल जैसी कोई बात है ही नहीं.इंटरनेट का दरुपयोग से दंगे तक संभव
इंटरनेट का सही इस्तेमाल हो सके उसके लिए सोशल मीडिया चैनल को ठोस कदम उठाने की जरुरत है मगर उससे ज्यादा जरुरत है कि सरकार साइबर कानून को सख्त बनाए, लोगों में कानून का डर रहे जिससे कोई भी आपत्तिजनक व्यवहार नहीं हो. अभी की स्थिति में सेंसरशिप जैसी कोई चीज नहीं है. लोगों को खुली छूट मिल रखी है जिसका बेजा इस्तेमाल किया जाता है. उदहारण के तौर पर देखें तो असम में 2012 में हुए दंगे का एक कारण फेसबुक पोस्ट था, तो वही दादरी में अखलाक की निर्मम हत्या का कारण व्हाट्सएप्प के एक मैसेज बना. यही नहीं दुनिया के लिए खतरा बन चुकी ISIL भारत में भी अपना पैर पसारने लगी है और यहाँ के लोग उसमें शामिल होने लगे हैं और इसका कारण भी सोशल मीडिया ही बन रहा है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को चिन्हित कर उनसे संपर्क किया जाता है और धीरे-धीरे उन्हें आइएसआई में शामिल कर लिया जाता है. हम आज अगर नहीं चेते और इंटरनेट के दुरुपयोग पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो इसका परिणाम और भी दुखद हो सकता है.चेतना शून्य होती सरकार
सरकार और राजनीतिक पार्टियां या तो इसे समझ नहीं पा रही या समझ कर भी नहीं समझना चाहती. क्योंकि सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें बेहद सस्ते और आसानी से अपने प्रचार और दूसरों पर प्रहार करने का मौका मिलता है. मगर इंटरनेट के दुरुपयोग का परिणाम कितनी बार हमने देखा है. सरकार अगर अब भी खामोश रही तो इसके भयावाह परिणाम के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए. मगर हमें उम्मीद है की सरकार अभी चेतना शून्य नहीं हुई है. कहते हैं कि जब घर में आग लगती है तो नुकसान भी खुद को ही उठाना पड़ता है.फेसबुक पर सही खबरों से ज्यादा देखी गई फेक न्यूज़
फेसबुक के गलत इस्तेमाल पर आज तक अमेरिका ने आवाज़ नहीं उठाई. मगर आज यह बूमरेंग की भांति वापस पलटकर उन्हें ही क्षति पहुंचा रहा है. इंटरनेट की दुनिया में सायबर बुलिंग बहुत ही सामान्य सी बात है. इसका अर्थ है कि कोई किसी को गलत या अश्लील प्रकार का संदेश दे तो वह सायबर बुलिंग कहलता है. आज यही गलत संदेश अमेरिका में हंगामा खड़ा कर रखा है. फेसबुक पर उंगली उठाई जा रही है. अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के अंतिम तीन महीने में फेसबुक पर पोस्ट फेक न्यूज़ सही न्यूज़ के मुकाबले ज्यादा देखी और पढ़ी गई. ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अब इसे लेकर अमेरिका में बवाल मचा हुआ है. अब वहां के लोगों की नींद खुल रही है और इंटरनेट के गलत इस्तेमाल को लेकर आवाजें सुनाई देने लगी है.अपील, सरकार साइबर कानून को कड़ा बनाए
आज यह सही मौका है और दस्तूर भी की भारत इंटरनेट के दुरुपयोग को लेकर अपने निजी हित को छोड़ ठोस कदम उठाए. आज बड़ी आसानी से सिरिया की कोई फोटो भेज कर उसे भारत में हुए ट्रेन दुर्घटना से जोड़ दिया जाता है. कभी और कहीं की फोटो भेज कर कहा जाता है इस बच्ची के दिल में छेड़ है और इसके प्रत्येक शेयर पर इसके ऑपरेशन के लिए कुछ खास रकम मिलेंगे बता दिया जाता है. किसी हैकर द्वारा कोई लिंक आसानी से सोशल मीडिया में चला दिया जाता है और कहा जाता है इस लिंक पर जाने पर आपके मोबाइल नेटवर्क पर 100 – 200 रूपए का रिचार्ज हो जायेगा. कभी लता मंगेशकर, तो कभी अमिताभ बच्चन को इंटरनेट पर झूठी खबर फैला का मार तक दिया जाता है. इन सब से बचने के लिए हमारी सरकार से अपील है कि वह साइबर कानून को कड़ा बनाए और सेंसरशिप जैसी व्यवस्था बने जिससे भड़काऊ और गलत खबरों पर रोक लग सके, भाषा की मर्यादा बनी रहे, झूठी खबरों पर रोक लग सके जिससे इंटरनेट से सम्बन्धित अपराधों में कमी आए.कबतक ज़िम्मेदारी से बच पाएगी फेसबुक जैसी कंपनियांफेसबुक के मालिक श्री जुखरबर्ग ने फेक ख़बर मसले के बाद कहा - श्रीमान हम भी तकनीक की उसी दुनियां से हैं, और जब अपना देश झूठ और फ़रेब की, आपके लालच की भड़काई आग में जल रहा होता है तब सच की ज़िम्मेदारी सबकी होती है। तकनीक को नैतिकता से दूर कर एटम बम का इज़ाद किया गया था, आप भी उसी कतार में ना खड़ें हों तो अच्छा होगा। आपसे भी कुछ सालों बाद पूछेंगे, नैतिकता और सच का ये सवाल जब अमेरिका गटर की राजनीती में सराबोर हो रहा होगा। आपने तो ३५० बिलियन डॉलर कमा लिया, १४ आलीशान महल बना लिए, मगर हमारे देश को ट्रॉलों का देश बना दिया, और हमारे नेताओं को सेल्फ़ी नेता। आज़ आग आपके घर तक पोहोंची हैं , देखें सेल्फी मंच किस दिशा जाता है। बैलटबॉक्सइंडिया तकनीक के इस विनाशकारी और विदेशी कंपनियों के लिए अति लाभकारी धंधे पर पैनी नज़र रखे हुए है। अगर आप इस विषय के बारे में जानना चाहें, इस चर्चा से जुड़ना चाहें , या सुझाव देना चाहें तो नीचे फॉलो बटन दबा कर इस अभियान से जुड़ें