सिलिकॉन वैली की भीमकाय प्रौद्योगिकी का अभिन्न अंग गूगल, जो वैश्विक रूप से एक यूजर फ्रेंडली ऐप माना जाता रहा है और साथ ही एक कुशल एवं यथार्थवादी नवपरिवर्तन के संयोजन के साथ विकसित होकर अग्रणी रहा है - यदि ऊपरी तौर पर विचार करें तो यह कथन सच ही प्रतीत होता है, परन्तु गहराई से छानबीन करने पर बोध होता है कि गूगल अमेरिकी सैन्य- औद्योगिक मंतव्य को छिपाने वाला एक धुंधला चित्रपटल भर है, जो अप्रत्याशित रूप से एक ऐसे परजीवी की तरह कार्य कर रहा है, जिससे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र धीरे धीरे ताकतवर बन रहा है. केवल यही नहीं बल्कि गूगल अपनी कार्यात्मक शैलियों के माध्यम से अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग (आईसी) को वास्तविक लाभ भी प्रदान कर रहा है.
वर्तमान में पश्चिमी सरकारें अपनी शक्तियों और वर्चस्व को विस्तृत करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रही हैं. हाल ही में इन्सर्ज इंटेलिजेंस के संयुक्त पत्रकारिता जांच परियोजना के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि वैश्विक सूचनाओं पर नियंत्रण करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गूगल को वित्तीय सहायता प्रदान की गयी, समर्थन दिया गया और उसे विकसित होने के तमाम अवसर भी दिए गये. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) और केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) द्वारा वित्त- पोषित गूगल उन प्रमुख प्राइवेट सेक्टर तकनीकी फर्मों में अग्रणीय है, जिसे अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग ने "वैश्विक सूचना आधिपत्य" से जुड़े एक हथियार के रूप में पोषित किया है.
पेरिस में "चार्ली हेब्ड़ो हमलों" के चलते पश्चिमी सरकारों द्वारा आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इंटरनेट निगरानी और नियंत्रण की विस्तारित शक्तियों को वैध बनाने के प्रयासों में तेजी लाई गयी. अमेरिका एवं यूरोपीय राजनेताओं द्वारा एनएसए के इंटरनेट जासूसी के तरीकों की सुरक्षा करने की हामी भरी गयी है, साथ ही यह भी कहा गया कि अवैध एन्क्रिप्शन के आधार पर इंटरनेट गोपनीयता में घुसपेंठ करने की क्षमताओं को उन्नत किया जाए. एक विचार यह भी दिया गया कि एक दूरसंचार साझेदारी की स्थापना की जानी चाहिए, जो अनुपयुक्त परिस्थितियों में "घृणा और हिंसा" से भरी समक्ष सामग्री को एकतरफा रूप से हटा दे. चर्चित 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद भी इंटरनेट से जुड़ी सूचना गोपनीयता पर अंकुश लगाने के प्रयास किये गये, जो सर्वथा आज भी जारी हैं. इन सभी उपायों से आतंकवादी गतिविधियों पर किस प्रकार रोक लग सकती है, यह तो स्वयं में एक रहस्य है, किन्तु गौरतलब तथ्य यह है कि इन सबसे शक्ति का विकेंद्रीकरण जरूर होगा.
इन्सर्ज इंटेलिजेंस द्वारा की गयी गहन पड़ताल से यह भी सामने आया कि वे सब वेब प्लेटफार्म, जिनसे आज विश्व भर के यूजर्स जुड़े हुए हैं, यूएस के इंटेलिजेंस विभागों के जरिये पोषित किये जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त अमेरिकी इंटेलिजेंस वैश्विक "सूचना संघर्ष" से लड़ने के लिए एक तंत्र के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के सामयिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ मुट्ठी भर लोगों तक शक्ति को सीमित कर देने के लिए आतुर है. गूगल आज 21वीं सदी में अपनी अविभाज्य सर्वव्यापकता के साथ यूएस के इन शक्ति-निहित अभियानों को गुप्त रूप से समर्थन प्रदान करता दिख रहा है. अग्रलिखित तथ्यों के आधार पर सीआईए एवं एनएसए की गूगल के साथ मिलीभगत साबित की जा सकती है :-
यूएस इंटेलिजेंस समूह एवं सिलिकॉन वैली -
90 के दशक के मध्य में अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग ने महसूस करना आरम्भ किया कि यदि वें सुपरकंप्यूटिंग स्किल्स के जरिये अध्ययन क्षेत्र से आगे बढ़कर निजी क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट करना शुरू कर देंगे तो इससे बड़ा लाभ कमा सकते हैं. उनके इन विचारों ने ही प्रौद्योगिकी के विशालतम साम्राज्य यानि सिलिकॉन वैली को उदय होने का अवसर प्रदान किया. केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) को यह महसूस हुआ था कि उनके भविष्य को सरकार के बाहर गहराई से आकार देने की संभावना है, यह वह समय था जब क्लिंटन प्रशासन के भीतर सैन्य और खुफिया बजट खतरे में थे और निजी क्षेत्र के पास उनके निपटारे के विशाल संसाधन मौजूद थे.
यदि इंटेलिजेंस विभाग राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए जन निगरानी का संचालन करना चाहता था, तो उसे सरकार और उभरती हुई सुपरकंप्यूटिंग कंपनियों के बीच सहयोग की आवश्यकता होनी लजिमी ही थी. ऐसा करने के लिए, वें अमेरिकी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों तक पहुंचने लगे जो इस सुपरकंप्यूटिंग क्रांति का निर्माण कर रहे थे. बड़ी मात्रा में डेटा संगृहीत करना और उससे लाभ निकलने के तरीके खोज कर ये वैज्ञानिक वह कार्य कर रहे थे, जो सीआईए तथा एनएसए की कार्यशालाओं में कार्यरत समूह सोच भी नहीं सकते थे. साथ ही इंटेलिजेंस विभाग सिलिकॉन वैली के उन तकनीकी प्रयासों को आकार देना चाहता था ताकि वे अमेरिका के सुरक्षा उद्देश्यों के लिए उपयोगी साबित हो सके.
अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों और इंटेलिजेंस विभाग के मध्य सहयोग -
एटोमिक शक्ति के निर्माण से लेकर चाँद तक पहुंचने की सेटेलाइट तकनीकों तक. अमेरिका के खुफिया विभागों एवं अनुभवी वैज्ञानिकों की सहभागिता का एक लम्बा- चौड़ा इतिहास रहा है. वास्तव में, इंटरनेट निर्माण स्वयं में ही इंटेलिजेंस विभाग और दक्ष वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयासों का हिस्सा था. 1970 के दशक में, सैन्य, खुफिया और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए जिम्मेदार एजेंसी "रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी" (डीएआरपीए) ने बड़ी संख्या में डेटा स्थानान्तरण के लिए चार सुपरकंप्यूटर को लिंक किया. इसने ऑपरेशन को एक दशक से भी अधिक समय के लिए नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) को सौंप दिया, जिसने हजारों विश्वविद्यालयों और अंततः सामान्य जनता के नेटवर्क को बढ़ाया, इस प्रकार वर्ल्ड वाइड वेब के लिए मंच तैयार हुआ. सिलिकॉन वैली की कहानी भी इससे अलग नहीं थी. 1990 के दशक के मध्य तक इंटेलिजेंस विभाग अकादमिक के माध्यम से सबसे आशाजनक सुपरकंप्यूटर को वित्त- पोषित करके भारी मात्रा में सूचनाओं को उपयोगी बनाने वाले प्रयासों को मार्गदर्शित करके प्राइवेट सेक्टर के साथ साथ खुद के लिए भी अप्रत्याशित लाभ की तैयारी कर रहा था.
मैसिव डिजिटल डेटा सिस्टम प्रोग्राम (एमडीडीएस) -
एमडीडीएस को स्टैनफोर्ड, कैलटेक, एमआईटी, कार्नेगी मेलॉन, हार्वर्ड और अन्य समुदायों के अग्रणी कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने एक श्वेत पत्र, जिसे मैसिव डिजिटल डेटा सिस्टम प्रोग्राम के अंतर्गत पेश किया था, में बताया गया था कि सीआईए, एनएसए, डीएआरपीए और अन्य एजेंसियां बड़े पैमाने पर डेटा से क्या प्राप्त करने की आशा रखती हैं? श्वेत पत्र में बताया गया कि यदि शोधकार्य खुफिया समुदाय की आशा पर खरा उतरता है तो अनुसंधान को बड़े पैमाने पर एनएसएफ जैसी अवर्गीकृत विज्ञान एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित और प्रबंधित किया जाएगा.
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य इस शोध अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक मिलियन डॉलर के एक दर्जन से अधिक अनुदान प्रदान करना था. अनुदान को एनएसएफ के माध्यम से काफी हद तक निर्देशित किया जाना था ताकि सबसे आशाजनक, सफल प्रयासों को बौद्धिक संपदा के रूप में परिवर्तित किया जा सके और सिलिकॉन वैली से निवेश आकर्षित करने वाली कंपनियों का आधार बन सके. इस तरह की सार्वजनिक-से-निजी नवाचार प्रणाली ने क्वालकॉम, सिमेंटेक, नेटस्केप और अन्य शक्तिशाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी कंपनियों को लॉन्च करने में सहायता की और डोप्लर रडार और फाइबर ऑप्टिक्स जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए आर्थिक अनुदान प्रदान किया, जो आज एक्वावेदर, वेरिज़ोन और एटी एंड टी जैसी बड़ी कंपनियों के लिए केंद्रीय अनुदान देती है. वर्तमान में एनएसएफ विश्वविद्यालय आधारित कंप्यूटर विज्ञान अनुसंधान के लिए अमेरिकी सरकार सभी संघीय वित्त पोषण का लगभग 90 प्रतिशत प्रदान करता है.
सीआईए और एनएसए का मुख्य उद्देश्य -
सीआईए और एनएसए की शोध शाखाओं द्वारा आशा व्यक्त की गयी कि अकादमिक में सर्वश्रेष्ठ कंप्यूटर-साइंस सिद्धांत यानि "बर्ड्स ऑफ ए फीदर" कहता है कि जैसे कुछ पक्षी बड़े वी आकारों में एक साथ उड़ते हैं या चिड़ियों का झुंड सद्भावना में अचानक एक साथ क्रियाकलाप करता है, ठीक वैसे ही मनुष्यों के समान विचार वाले समूह एक साथ ऑनलाइन चले आयेंगे. इस प्रकार इंटेलिजेंस विभाग ने वैज्ञानिकों के लिए "बर्ड्स ऑफ ए फीदर" ब्रीफिंग को अपनी पहली अवर्गीकृत ब्रीफिंग नामांकित किया. उनका शोध उद्देश्य तेजी से विस्तारित वैश्विक सूचना नेटवर्क के अंदर डिजिटल फिंगरप्रिंट को ट्रैक करना था, जिसे बाद में वर्ल्ड वाइड वेब के नाम से जाना गया और इसके माध्यम से कुछ प्रश्नों के स्वाभाविक उत्तर खोजने का प्रयास किया गया, जैसे - क्या डिजिटल सूचना की पूरी दुनिया व्यवस्थित की जा सकती है ताकि ऐसे नेटवर्क के अंदर किए गए अनुरोधों को ट्रैक किया जा सके और क्रमबद्ध किया जा सके? क्या उनके प्रश्नों को महत्व के क्रम में जोड़ा जा सकता है और रैंक किया जा सकता है? क्या जानकारी के इस समुद्र के अंदर "सम विचारों वाले समुदायों " की पहचान की जा सकती है ताकि समूहों को संगठित तरीके से ट्रैक किया जा सके?
उभरती वाणिज्यिक-डेटा कंपनियों के साथ काम करके, उनका इरादा इंटरनेट पर लोगों के समान विचारधारा समूहों को ट्रैक करना था और उन्हें उनके डिजिटल फिंगरप्रिंटों से पहचानना था, ठीक वैसे, जैसे फोरेंसिक वैज्ञानिक अपराधियों की पहचान करने के लिए फिंगरप्रिंटस का उपयोग करते हैं. जिस प्रकार "समपंखों के पक्षी एक साथ झुंड में उडान भरते हैं", उन्होंने सम्भावना व्यक्त की, कि संभावित आतंकवादी इस नए वैश्विक दौर में एक दूसरे के साथ संवाद करेंगे और वे उन्हें बड़ी मात्रा में नई जानकारी में पैटर्न की पहचान करके प्राप्त कर सकते हैं. एक बार इन समूहों की पहचान हो जाने के बाद, वे हर जगह अपने डिजिटल ट्रेट्स का पालन कर सकते थे.
गूगल के सहसंस्थापकों का शोध कार्यों में योगदान -
1995 में, प्रमुख और सर्वाधिक आशाजनक एमडीडीएस अनुदान में से एक एनएसएफ और डीएआरपीए अनुदान के साथ काम करने के एक दशक के लंबे इतिहास के साथ स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान अनुसंधान टीम को दिया गया. इस अनुदान का प्राथमिक उद्देश्य "प्रश्न समूह दृष्टिकोण" का उपयोग करते हुए बहुत ही जटिल प्रश्नों का ऑप्टिमाइज़ेशन करना था. दूसरा डीएआरपीए-एनएसएफ अनुदान गूगल की स्थापना के साथ सबसे करीबी रूप से जुड़ा हुआ है. जिसके अंतर्गत इंटरनेट को मजबूती से प्रयोग करते हुए समन्वित प्रयासों के माध्यम से एक विशाल डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण करना. जिन दो स्नात्तक छात्रों को शोध कार्य के लिए वित्त पोषित शोध प्रदान किया गया, वें गूगल के सहसंस्थापक सर्गेई ब्रिन एवं लैरी पेज थे, जो वेब पेज रैंकिंग में तेजी से प्रगति कर रहे थे और साथ ही साथ उपयोगकर्ता के प्रश्नों को ट्रैक कर समझने का प्रयत्न भी कर रहे थे. इन अनुदानों के तहत ब्रिन और पेज द्वारा किया गया शोध गूगल की नींव बना, जिससे शोध कार्यों का उपयोग करने वाले यूजर सटीक रूप से यह पता लगा सकें कि वे एक बहुत बड़े डेटा सेट के अंदर क्या चाहते थे? वास्तव में गूगल के निर्माण की प्रक्रिया कुछ हद तक यहां से शुरू हो चुकी थी, बस उसके परिणाम भविष्य की गर्त में कहीं छिपे थे.
विचार करें -
भले ही एमडीडीएस अनुसंधान कभी भी गूगल की मूल कहानी का हिस्सा नहीं रहा है परन्तु एमडीडीएस अनुदान के मुख्य जांचकर्ता ने विशेष रूप से अपने शोध के परिणामस्वरूप गूगल को नामित करते हुए कहा कि "इसकी मूल तकनीक, जो इसे अन्य सर्च इंजनों की तुलना में, पृष्ठों को अधिक सटीक रूप से ढूंढने की अनुमति देती है, इस अनुदान द्वारा आंशिक रूप से समर्थित थी". एक प्रकाशित शोध पत्र में जिसमें ब्रिन के कुछ महत्वपूर्ण काम शामिल हैं, लेखक एमडीडीएस कार्यक्रम द्वारा बनाए गए एनएसएफ अनुदान का भी संदर्भ देते हैं.
गूगल हमेशा कहते आया है कि इसे सीआईए द्वारा वित्त पोषित या निर्मित नहीं किया गया. उदाहरण के लिए वर्ष 2006 में जब खबरें प्रकाश में आई कि गूगल ने आतंकवाद- निपटान के प्रयासों में सहायता के लिए इंटेलिजेंस विभाग से वर्षों से धन प्राप्त किया था, तो कंपनी ने वायर्ड पत्रिका के संस्थापक जॉन बैटल को बताया कि "गूगल से संबंधित बयान पूरी तरह से असत्य हैं."
प्रश्न उठता है कि क्या सीआईए ने सीधे तौर पर ब्रिन और पेज को गूगल निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग दिया? तो इसका जवाब होगा, शायद नहीं. परन्तु इसके विपरीत पूछा जाये कि क्या ब्रिन और पेज ने एनएसए, सीआईए एवं अन्य इंटेलिजेंस विभागों के लिए सटीक रूप से शोध किया तथा उनके अनुदान द्वारा सहायता की, तो इसका उत्तर होगा, हां बिलकुल सत्य.
इस तथ्य को समझने के लिए आपको यह समझना होगा कि इंटेलिजेंस विभाग क्या हासिल करने की कोशिश कर रहा था, जो उसने अकादमिक में सर्वश्रेष्ठ कंप्यूटर-साइंस तकनीकों में अनुदान दिया. सीआईए और एनएसए ने एक अवर्गीकृत, विभाजित कार्यक्रम को वित्त पोषित किया है ताकि इसे शुरुआत से डिजाइन किया जा सके या ऐसा कुछ जो बिलकुल गूगल की तरह दिखता है. यूजर्स के प्रश्नों को ट्रैक करके और उन्हें विभिन्न सर्च इंजनों से जोड़कर पेज रैंकिंग पर ब्रिन का सफल शोध-अनिवार्य रूप से "बर्ड्स ऑफ ए फीदर" की पहचान करना- मुख्य रूप से इंटेलिजेंस विभाग के एमडीडीएस कार्यक्रम का उद्देश्य है और कहीं ना कहीं गूगल की आशातीत सफलता का पर्याय भी.
By Deepika Chaudhary Contributors Rakesh Prasad {{descmodel.currdesc.readstats }}
सिलिकॉन वैली की भीमकाय प्रौद्योगिकी का अभिन्न अंग गूगल, जो वैश्विक रूप से एक यूजर फ्रेंडली ऐप माना जाता रहा है और साथ ही एक कुशल एवं यथार्थवादी नवपरिवर्तन के संयोजन के साथ विकसित होकर अग्रणी रहा है - यदि ऊपरी तौर पर विचार करें तो यह कथन सच ही प्रतीत होता है, परन्तु गहराई से छानबीन करने पर बोध होता है कि गूगल अमेरिकी सैन्य- औद्योगिक मंतव्य को छिपाने वाला एक धुंधला चित्रपटल भर है, जो अप्रत्याशित रूप से एक ऐसे परजीवी की तरह कार्य कर रहा है, जिससे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र धीरे धीरे ताकतवर बन रहा है. केवल यही नहीं बल्कि गूगल अपनी कार्यात्मक शैलियों के माध्यम से अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग (आईसी) को वास्तविक लाभ भी प्रदान कर रहा है.
वर्तमान में पश्चिमी सरकारें अपनी शक्तियों और वर्चस्व को विस्तृत करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रही हैं. हाल ही में इन्सर्ज इंटेलिजेंस के संयुक्त पत्रकारिता जांच परियोजना के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि वैश्विक सूचनाओं पर नियंत्रण करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गूगल को वित्तीय सहायता प्रदान की गयी, समर्थन दिया गया और उसे विकसित होने के तमाम अवसर भी दिए गये. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) और केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) द्वारा वित्त- पोषित गूगल उन प्रमुख प्राइवेट सेक्टर तकनीकी फर्मों में अग्रणीय है, जिसे अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग ने "वैश्विक सूचना आधिपत्य" से जुड़े एक हथियार के रूप में पोषित किया है.
पेरिस में "चार्ली हेब्ड़ो हमलों" के चलते पश्चिमी सरकारों द्वारा आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इंटरनेट निगरानी और नियंत्रण की विस्तारित शक्तियों को वैध बनाने के प्रयासों में तेजी लाई गयी. अमेरिका एवं यूरोपीय राजनेताओं द्वारा एनएसए के इंटरनेट जासूसी के तरीकों की सुरक्षा करने की हामी भरी गयी है, साथ ही यह भी कहा गया कि अवैध एन्क्रिप्शन के आधार पर इंटरनेट गोपनीयता में घुसपेंठ करने की क्षमताओं को उन्नत किया जाए. एक विचार यह भी दिया गया कि एक दूरसंचार साझेदारी की स्थापना की जानी चाहिए, जो अनुपयुक्त परिस्थितियों में "घृणा और हिंसा" से भरी समक्ष सामग्री को एकतरफा रूप से हटा दे. चर्चित 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद भी इंटरनेट से जुड़ी सूचना गोपनीयता पर अंकुश लगाने के प्रयास किये गये, जो सर्वथा आज भी जारी हैं. इन सभी उपायों से आतंकवादी गतिविधियों पर किस प्रकार रोक लग सकती है, यह तो स्वयं में एक रहस्य है, किन्तु गौरतलब तथ्य यह है कि इन सबसे शक्ति का विकेंद्रीकरण जरूर होगा.
इन्सर्ज इंटेलिजेंस द्वारा की गयी गहन पड़ताल से यह भी सामने आया कि वे सब वेब प्लेटफार्म, जिनसे आज विश्व भर के यूजर्स जुड़े हुए हैं, यूएस के इंटेलिजेंस विभागों के जरिये पोषित किये जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त अमेरिकी इंटेलिजेंस वैश्विक "सूचना संघर्ष" से लड़ने के लिए एक तंत्र के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के सामयिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ मुट्ठी भर लोगों तक शक्ति को सीमित कर देने के लिए आतुर है. गूगल आज 21वीं सदी में अपनी अविभाज्य सर्वव्यापकता के साथ यूएस के इन शक्ति-निहित अभियानों को गुप्त रूप से समर्थन प्रदान करता दिख रहा है. अग्रलिखित तथ्यों के आधार पर सीआईए एवं एनएसए की गूगल के साथ मिलीभगत साबित की जा सकती है :-
यूएस इंटेलिजेंस समूह एवं सिलिकॉन वैली -
90 के दशक के मध्य में अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग ने महसूस करना आरम्भ किया कि यदि वें सुपरकंप्यूटिंग स्किल्स के जरिये अध्ययन क्षेत्र से आगे बढ़कर निजी क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट करना शुरू कर देंगे तो इससे बड़ा लाभ कमा सकते हैं. उनके इन विचारों ने ही प्रौद्योगिकी के विशालतम साम्राज्य यानि सिलिकॉन वैली को उदय होने का अवसर प्रदान किया. केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) को यह महसूस हुआ था कि उनके भविष्य को सरकार के बाहर गहराई से आकार देने की संभावना है, यह वह समय था जब क्लिंटन प्रशासन के भीतर सैन्य और खुफिया बजट खतरे में थे और निजी क्षेत्र के पास उनके निपटारे के विशाल संसाधन मौजूद थे.
यदि इंटेलिजेंस विभाग राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए जन निगरानी का संचालन करना चाहता था, तो उसे सरकार और उभरती हुई सुपरकंप्यूटिंग कंपनियों के बीच सहयोग की आवश्यकता होनी लजिमी ही थी. ऐसा करने के लिए, वें अमेरिकी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों तक पहुंचने लगे जो इस सुपरकंप्यूटिंग क्रांति का निर्माण कर रहे थे. बड़ी मात्रा में डेटा संगृहीत करना और उससे लाभ निकलने के तरीके खोज कर ये वैज्ञानिक वह कार्य कर रहे थे, जो सीआईए तथा एनएसए की कार्यशालाओं में कार्यरत समूह सोच भी नहीं सकते थे. साथ ही इंटेलिजेंस विभाग सिलिकॉन वैली के उन तकनीकी प्रयासों को आकार देना चाहता था ताकि वे अमेरिका के सुरक्षा उद्देश्यों के लिए उपयोगी साबित हो सके.
अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों और इंटेलिजेंस विभाग के मध्य सहयोग -
एटोमिक शक्ति के निर्माण से लेकर चाँद तक पहुंचने की सेटेलाइट तकनीकों तक. अमेरिका के खुफिया विभागों एवं अनुभवी वैज्ञानिकों की सहभागिता का एक लम्बा- चौड़ा इतिहास रहा है. वास्तव में, इंटरनेट निर्माण स्वयं में ही इंटेलिजेंस विभाग और दक्ष वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयासों का हिस्सा था. 1970 के दशक में, सैन्य, खुफिया और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए जिम्मेदार एजेंसी "रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी" (डीएआरपीए) ने बड़ी संख्या में डेटा स्थानान्तरण के लिए चार सुपरकंप्यूटर को लिंक किया. इसने ऑपरेशन को एक दशक से भी अधिक समय के लिए नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) को सौंप दिया, जिसने हजारों विश्वविद्यालयों और अंततः सामान्य जनता के नेटवर्क को बढ़ाया, इस प्रकार वर्ल्ड वाइड वेब के लिए मंच तैयार हुआ. सिलिकॉन वैली की कहानी भी इससे अलग नहीं थी. 1990 के दशक के मध्य तक इंटेलिजेंस विभाग अकादमिक के माध्यम से सबसे आशाजनक सुपरकंप्यूटर को वित्त- पोषित करके भारी मात्रा में सूचनाओं को उपयोगी बनाने वाले प्रयासों को मार्गदर्शित करके प्राइवेट सेक्टर के साथ साथ खुद के लिए भी अप्रत्याशित लाभ की तैयारी कर रहा था.
मैसिव डिजिटल डेटा सिस्टम प्रोग्राम (एमडीडीएस) -
एमडीडीएस को स्टैनफोर्ड, कैलटेक, एमआईटी, कार्नेगी मेलॉन, हार्वर्ड और अन्य समुदायों के अग्रणी कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने एक श्वेत पत्र, जिसे मैसिव डिजिटल डेटा सिस्टम प्रोग्राम के अंतर्गत पेश किया था, में बताया गया था कि सीआईए, एनएसए, डीएआरपीए और अन्य एजेंसियां बड़े पैमाने पर डेटा से क्या प्राप्त करने की आशा रखती हैं? श्वेत पत्र में बताया गया कि यदि शोधकार्य खुफिया समुदाय की आशा पर खरा उतरता है तो अनुसंधान को बड़े पैमाने पर एनएसएफ जैसी अवर्गीकृत विज्ञान एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित और प्रबंधित किया जाएगा.
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य इस शोध अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक मिलियन डॉलर के एक दर्जन से अधिक अनुदान प्रदान करना था. अनुदान को एनएसएफ के माध्यम से काफी हद तक निर्देशित किया जाना था ताकि सबसे आशाजनक, सफल प्रयासों को बौद्धिक संपदा के रूप में परिवर्तित किया जा सके और सिलिकॉन वैली से निवेश आकर्षित करने वाली कंपनियों का आधार बन सके. इस तरह की सार्वजनिक-से-निजी नवाचार प्रणाली ने क्वालकॉम, सिमेंटेक, नेटस्केप और अन्य शक्तिशाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी कंपनियों को लॉन्च करने में सहायता की और डोप्लर रडार और फाइबर ऑप्टिक्स जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए आर्थिक अनुदान प्रदान किया, जो आज एक्वावेदर, वेरिज़ोन और एटी एंड टी जैसी बड़ी कंपनियों के लिए केंद्रीय अनुदान देती है. वर्तमान में एनएसएफ विश्वविद्यालय आधारित कंप्यूटर विज्ञान अनुसंधान के लिए अमेरिकी सरकार सभी संघीय वित्त पोषण का लगभग 90 प्रतिशत प्रदान करता है.
सीआईए और एनएसए का मुख्य उद्देश्य -
सीआईए और एनएसए की शोध शाखाओं द्वारा आशा व्यक्त की गयी कि अकादमिक में सर्वश्रेष्ठ कंप्यूटर-साइंस सिद्धांत यानि "बर्ड्स ऑफ ए फीदर" कहता है कि जैसे कुछ पक्षी बड़े वी आकारों में एक साथ उड़ते हैं या चिड़ियों का झुंड सद्भावना में अचानक एक साथ क्रियाकलाप करता है, ठीक वैसे ही मनुष्यों के समान विचार वाले समूह एक साथ ऑनलाइन चले आयेंगे. इस प्रकार इंटेलिजेंस विभाग ने वैज्ञानिकों के लिए "बर्ड्स ऑफ ए फीदर" ब्रीफिंग को अपनी पहली अवर्गीकृत ब्रीफिंग नामांकित किया. उनका शोध उद्देश्य तेजी से विस्तारित वैश्विक सूचना नेटवर्क के अंदर डिजिटल फिंगरप्रिंट को ट्रैक करना था, जिसे बाद में वर्ल्ड वाइड वेब के नाम से जाना गया और इसके माध्यम से कुछ प्रश्नों के स्वाभाविक उत्तर खोजने का प्रयास किया गया, जैसे - क्या डिजिटल सूचना की पूरी दुनिया व्यवस्थित की जा सकती है ताकि ऐसे नेटवर्क के अंदर किए गए अनुरोधों को ट्रैक किया जा सके और क्रमबद्ध किया जा सके? क्या उनके प्रश्नों को महत्व के क्रम में जोड़ा जा सकता है और रैंक किया जा सकता है? क्या जानकारी के इस समुद्र के अंदर "सम विचारों वाले समुदायों " की पहचान की जा सकती है ताकि समूहों को संगठित तरीके से ट्रैक किया जा सके?
उभरती वाणिज्यिक-डेटा कंपनियों के साथ काम करके, उनका इरादा इंटरनेट पर लोगों के समान विचारधारा समूहों को ट्रैक करना था और उन्हें उनके डिजिटल फिंगरप्रिंटों से पहचानना था, ठीक वैसे, जैसे फोरेंसिक वैज्ञानिक अपराधियों की पहचान करने के लिए फिंगरप्रिंटस का उपयोग करते हैं. जिस प्रकार "समपंखों के पक्षी एक साथ झुंड में उडान भरते हैं", उन्होंने सम्भावना व्यक्त की, कि संभावित आतंकवादी इस नए वैश्विक दौर में एक दूसरे के साथ संवाद करेंगे और वे उन्हें बड़ी मात्रा में नई जानकारी में पैटर्न की पहचान करके प्राप्त कर सकते हैं. एक बार इन समूहों की पहचान हो जाने के बाद, वे हर जगह अपने डिजिटल ट्रेट्स का पालन कर सकते थे.
गूगल के सहसंस्थापकों का शोध कार्यों में योगदान -
1995 में, प्रमुख और सर्वाधिक आशाजनक एमडीडीएस अनुदान में से एक एनएसएफ और डीएआरपीए अनुदान के साथ काम करने के एक दशक के लंबे इतिहास के साथ स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान अनुसंधान टीम को दिया गया. इस अनुदान का प्राथमिक उद्देश्य "प्रश्न समूह दृष्टिकोण" का उपयोग करते हुए बहुत ही जटिल प्रश्नों का ऑप्टिमाइज़ेशन करना था. दूसरा डीएआरपीए-एनएसएफ अनुदान गूगल की स्थापना के साथ सबसे करीबी रूप से जुड़ा हुआ है. जिसके अंतर्गत इंटरनेट को मजबूती से प्रयोग करते हुए समन्वित प्रयासों के माध्यम से एक विशाल डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण करना. जिन दो स्नात्तक छात्रों को शोध कार्य के लिए वित्त पोषित शोध प्रदान किया गया, वें गूगल के सहसंस्थापक सर्गेई ब्रिन एवं लैरी पेज थे, जो वेब पेज रैंकिंग में तेजी से प्रगति कर रहे थे और साथ ही साथ उपयोगकर्ता के प्रश्नों को ट्रैक कर समझने का प्रयत्न भी कर रहे थे. इन अनुदानों के तहत ब्रिन और पेज द्वारा किया गया शोध गूगल की नींव बना, जिससे शोध कार्यों का उपयोग करने वाले यूजर सटीक रूप से यह पता लगा सकें कि वे एक बहुत बड़े डेटा सेट के अंदर क्या चाहते थे? वास्तव में गूगल के निर्माण की प्रक्रिया कुछ हद तक यहां से शुरू हो चुकी थी, बस उसके परिणाम भविष्य की गर्त में कहीं छिपे थे.
विचार करें -
भले ही एमडीडीएस अनुसंधान कभी भी गूगल की मूल कहानी का हिस्सा नहीं रहा है परन्तु एमडीडीएस अनुदान के मुख्य जांचकर्ता ने विशेष रूप से अपने शोध के परिणामस्वरूप गूगल को नामित करते हुए कहा कि "इसकी मूल तकनीक, जो इसे अन्य सर्च इंजनों की तुलना में, पृष्ठों को अधिक सटीक रूप से ढूंढने की अनुमति देती है, इस अनुदान द्वारा आंशिक रूप से समर्थित थी". एक प्रकाशित शोध पत्र में जिसमें ब्रिन के कुछ महत्वपूर्ण काम शामिल हैं, लेखक एमडीडीएस कार्यक्रम द्वारा बनाए गए एनएसएफ अनुदान का भी संदर्भ देते हैं.
गूगल हमेशा कहते आया है कि इसे सीआईए द्वारा वित्त पोषित या निर्मित नहीं किया गया. उदाहरण के लिए वर्ष 2006 में जब खबरें प्रकाश में आई कि गूगल ने आतंकवाद- निपटान के प्रयासों में सहायता के लिए इंटेलिजेंस विभाग से वर्षों से धन प्राप्त किया था, तो कंपनी ने वायर्ड पत्रिका के संस्थापक जॉन बैटल को बताया कि "गूगल से संबंधित बयान पूरी तरह से असत्य हैं."
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