
काली नदी...वर्षों से नौ जिलों को सींचती एक नदी, जिसके साथ सभ्यता और संस्कृति दोनों ही जुड़े हैं आज अथाह प्रदूषण की मार झेल रही है. मेरठ और मुज्जफरनगर के औद्योगिक मिल, कारखाने, बूचड़खानों व अस्पतालों से निकलने वाला जहरीला अपशिष्ट, शहरों का सीवरेज अंधाधुंध नदी में उडेला जा रहा है. कुंभ आने पर गंगा को स्वच्छ रखने के लिए साधु-महंतों के जोर देने पर सरकार ने कुछ समय के लिए जरुर मेरठ के तीन कारखानों पर रोक लगा दी थी, पर आज दोबारा वे सभी धड़ल्लें से चल रहे हैं. नदी के उद्गम स्थल मुज्जफरनगर के अंतवाडा गांव के बुजुर्ग निवासी बताते हैं कि कभी के समय नदी इतनी प्रवाहशील और स्वच्छ थी कि तले में पड़ा सिक्का भी दिखाई देता था और आज वही काली काल बनकर रह गयी है. जगह जगह पर अवरुद्ध और कचरे से पटी काली नदी को देखकर कोई अंतर नहीं बता सकता कि यह नदी है या नाला. दुर्भाग्यवश आज इसी दूषित पानी से सब्जियां सिंची जा रही हैं, जिससे कैंसर जैसे जानलेवा रोग भी फैल रहे हैं.

वस्तुतः काली नदी उत्तर- प्रदेश की प्रमुख नदी ‘गंगा’ की एक सहायक है, जो कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा तथा फर्रुखाबाद जिलों से होकर बहती है तथा कन्नौज से कुछ पहले ही पवित्र ‘गंगा’ नदी में जाकर मिल जाती है. काली नदी का उद्गम स्थल मुजफ्फरनगर जिले की खतौली तहसील के अंतर्गत आने वाला ‘अंतवाडा गांव’ है. यह नदी 598 कि.मी. की दूरी तय करते हुए इसके किनारों पर स्थित करीब 1200 गांवों से होकर गुजरती है. यह एक ‘मानसूनी नदी’ है, इसी वजह से बरसात के मौसम में नदी में जलभराव होने के कारण इसके किनारों पर स्थित क्षेत्र बुलंदशहर व एटा बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं. मुजफ्फरनगर व मेरठ में यह नदी अनिश्चित मार्ग में बहती है किन्तु बुलंदशहर से यह निश्चित नदी घाटी में प्रवाहमान है.
अध्ययन बताते हैं काली की बिगडती सेहत की कहानी
वर्ष 1999-2001 केंद्रीय भू-जल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, नदी की कुल लम्बाई में से एकत्र किए गए सैंकड़ों जलीय नमूनों (नदी जल व हैण्डपम्प) के परीक्षण से बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए थे. इन नमूनों में सीसा, क्रोमियम, लोहा, कॉपर व जिंक आदि तत्व पाए गए थे और रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरनगर जनपद के चिढोड़ा, याहियापुर व जामड, मेरठ जनपद के धन्जु, देदवा, उलासपुर, बिचौला, आढ़, मैंथना, रसूलपुर, गेसूपुर, कुढ़ला, मुरादपुर बढ़ौला, कौल, जयभीमनगर, यादनगर इत्यादि गांव विषकर जल प्रदूषण का दंश झेलने के लिए विवश हैं.
जिस काली के जल को कभी काली खांसी दूर करने के लिए अमृत माना जाता था, आज उस काली के पास से भी नाक ढक कर लोग गुजरते हैं. एनजीटी के निर्देश पर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने सितम्बर 2018 को एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके प्रकाशन के बाद पता चला कि काली नदी प्रदेश की दूसरी सबसे प्रदूषित नदी है, जिसमें बीओडी यानि बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का लोड मानक सीमा से कहीं अधिक मिला. मुज्जफरनगर से मेरठ के बीच लिए गए सैम्पलों के आधार पर की गयी जांच में बीओडी की मात्रा 8-78 मिली पाई गयी, जो कि प्रति लीटर में 3 एमएल से अधिक नहीं होनी चाहिए.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ साझेदारी परियोजना में, पूर्वी काली वाटरकीपर और मूल संगठन नीर फाउंडेशन ने भी डाबल और मोरकुका गांव के आठ अलग-अलग स्थानों पर जल निकायों के भूजल और सतही जल परीक्षण को सफलतापूर्वक संचालित किया था, जिसके आधार पर निकले परिणामों से भी काली प्रदूषण का पता चला था. जिसके बाद से ही नीर फाउंडेशन निरंतर काली नदी को स्वच्छ बनाने की दिशा में काम कर रहा है.

प्रदूषण के प्रमुख कारण
काली नदी के प्रदूषण का सर्वप्रमुख कारण औद्योगिक कचरा है. चीनी प्रसंस्करण इकाइयाँ और उनसे संबंधित अल्कोहल निर्माण डिस्टिलरीज, पेपर मिल्स, डेयरी, टैनरीज़ सहित प्रमुख उद्योग नदी के नजदीक स्थित हैं. चीनी मिलों और पेपर मिलों को 17 सबसे जहरीले अपशिष्ट पैदा करने वाले उद्योगों में शामिल किया गया है. इन उद्योगों से न केवल विनिर्माण प्रक्रियाओं के दौरान सतही जल निकायों की बड़ी मात्रा प्रदूषित होती है बल्कि ये उद्योग अपगामी अपशिष्टों द्वारा नदी पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हुए उसे संदूषित करते हैं.
दूसरा, काली नदी हजारों प्रधान और लघु आवासों से असंशोधित मानव उत्सर्जन की बड़ी मात्रा प्राप्त करती है. दूसरे शब्दों में, यह प्रमुख शहरों और शहरी कस्बों के ट्रंक सीवर के रूप में कार्य करती है. इसमें सोडा, डीडीटी, बीएचसी, पेट्रोलियम उत्पाद इत्यादि जैसे घरेलू अपशिष्ट भी शामिल हैं जो इंगित करता है कि इसमें भारी धातु मानकों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है.
तीसरा, पश्चिमी यू.पी. एक तेजी से उभरता कृषि क्षेत्र है, जहां रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कृंतकों आदि का एक बहुतायत उपयोग किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. यें रसायन व भारी धातु भू - क्षरण की प्रक्रिया के माध्यम से नदी में प्रवाहित होते हैं एवं मृदा के जरिये प्रमुख जल संसाधन में अंतर्निहित जलवाही स्तर को प्रदूषित करते हैं. इसके साथ ही यहां आज भी गन्ना, धान आदि बड़ी मात्रा में बोया जाता है, जिससे भूमिगत जल में कमी आना स्वाभाविक है और इसका एक बड़ा प्रभाव नदी के जलस्तर पर भी पड़ता है.
एक आस जगाते हैं नीर फाउंडेशन के प्रयास
प्रदेश की नदियों को अविरल और स्वच्छ बनाने की दिशा में विगत दो दशकों से नीर फाउंडेशन प्रयासों में लगा है. काली पुनरोद्धार के लिए यह संस्था नदी के उद्गम स्थल से प्रवाहमान काली के लिए संकल्पित होकर कार्य कर रही है. नदी की 143 बीघा जमीन का अतिक्रमण जब से ग्रामवासियों ने छोड़ा है, तभी से इस जमीन पर जलाशय, जल पिट आदि के जरिये भूजल को संचित किया जा रहा है. सिंचाई विभाग से गाँव से निकलने वाले पानी को संशोधित करने के विषय में भी वार्तालाप चल रहा है और नदी की खुदाई का कार्य भी बड़े पैमाने पर जारी है. इन सभी प्रयासों का नतीजा हुआ कि नदी से आठ फुट की गहराई पर ही जलधारा फूट पड़ी, जिसने एक उम्मीद लोगों में जगाई कि प्रयासों से असम्भव को भी संभव बनाया जा सकता है.

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Raman Kant 31
काली नदी...वर्षों से नौ जिलों को सींचती एक नदी, जिसके साथ सभ्यता और संस्कृति दोनों ही जुड़े हैं आज अथाह प्रदूषण की मार झेल रही है. मेरठ और मुज्जफरनगर के औद्योगिक मिल, कारखाने, बूचड़खानों व अस्पतालों से निकलने वाला जहरीला अपशिष्ट, शहरों का सीवरेज अंधाधुंध नदी में उडेला जा रहा है. कुंभ आने पर गंगा को स्वच्छ रखने के लिए साधु-महंतों के जोर देने पर सरकार ने कुछ समय के लिए जरुर मेरठ के तीन कारखानों पर रोक लगा दी थी, पर आज दोबारा वे सभी धड़ल्लें से चल रहे हैं. नदी के उद्गम स्थल मुज्जफरनगर के अंतवाडा गांव के बुजुर्ग निवासी बताते हैं कि कभी के समय नदी इतनी प्रवाहशील और स्वच्छ थी कि तले में पड़ा सिक्का भी दिखाई देता था और आज वही काली काल बनकर रह गयी है. जगह जगह पर अवरुद्ध और कचरे से पटी काली नदी को देखकर कोई अंतर नहीं बता सकता कि यह नदी है या नाला. दुर्भाग्यवश आज इसी दूषित पानी से सब्जियां सिंची जा रही हैं, जिससे कैंसर जैसे जानलेवा रोग भी फैल रहे हैं.
वस्तुतः काली नदी उत्तर- प्रदेश की प्रमुख नदी ‘गंगा’ की एक सहायक है, जो कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा तथा फर्रुखाबाद जिलों से होकर बहती है तथा कन्नौज से कुछ पहले ही पवित्र ‘गंगा’ नदी में जाकर मिल जाती है. काली नदी का उद्गम स्थल मुजफ्फरनगर जिले की खतौली तहसील के अंतर्गत आने वाला ‘अंतवाडा गांव’ है. यह नदी 598 कि.मी. की दूरी तय करते हुए इसके किनारों पर स्थित करीब 1200 गांवों से होकर गुजरती है. यह एक ‘मानसूनी नदी’ है, इसी वजह से बरसात के मौसम में नदी में जलभराव होने के कारण इसके किनारों पर स्थित क्षेत्र बुलंदशहर व एटा बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं. मुजफ्फरनगर व मेरठ में यह नदी अनिश्चित मार्ग में बहती है किन्तु बुलंदशहर से यह निश्चित नदी घाटी में प्रवाहमान है.
अध्ययन बताते हैं काली की बिगडती सेहत की कहानी
वर्ष 1999-2001 केंद्रीय भू-जल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, नदी की कुल लम्बाई में से एकत्र किए गए सैंकड़ों जलीय नमूनों (नदी जल व हैण्डपम्प) के परीक्षण से बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए थे. इन नमूनों में सीसा, क्रोमियम, लोहा, कॉपर व जिंक आदि तत्व पाए गए थे और रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरनगर जनपद के चिढोड़ा, याहियापुर व जामड, मेरठ जनपद के धन्जु, देदवा, उलासपुर, बिचौला, आढ़, मैंथना, रसूलपुर, गेसूपुर, कुढ़ला, मुरादपुर बढ़ौला, कौल, जयभीमनगर, यादनगर इत्यादि गांव विषकर जल प्रदूषण का दंश झेलने के लिए विवश हैं.
जिस काली के जल को कभी काली खांसी दूर करने के लिए अमृत माना जाता था, आज उस काली के पास से भी नाक ढक कर लोग गुजरते हैं. एनजीटी के निर्देश पर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने सितम्बर 2018 को एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके प्रकाशन के बाद पता चला कि काली नदी प्रदेश की दूसरी सबसे प्रदूषित नदी है, जिसमें बीओडी यानि बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का लोड मानक सीमा से कहीं अधिक मिला. मुज्जफरनगर से मेरठ के बीच लिए गए सैम्पलों के आधार पर की गयी जांच में बीओडी की मात्रा 8-78 मिली पाई गयी, जो कि प्रति लीटर में 3 एमएल से अधिक नहीं होनी चाहिए.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ साझेदारी परियोजना में, पूर्वी काली वाटरकीपर और मूल संगठन नीर फाउंडेशन ने भी डाबल और मोरकुका गांव के आठ अलग-अलग स्थानों पर जल निकायों के भूजल और सतही जल परीक्षण को सफलतापूर्वक संचालित किया था, जिसके आधार पर निकले परिणामों से भी काली प्रदूषण का पता चला था. जिसके बाद से ही नीर फाउंडेशन निरंतर काली नदी को स्वच्छ बनाने की दिशा में काम कर रहा है.
प्रदूषण के प्रमुख कारण
काली नदी के प्रदूषण का सर्वप्रमुख कारण औद्योगिक कचरा है. चीनी प्रसंस्करण इकाइयाँ और उनसे संबंधित अल्कोहल निर्माण डिस्टिलरीज, पेपर मिल्स, डेयरी, टैनरीज़ सहित प्रमुख उद्योग नदी के नजदीक स्थित हैं. चीनी मिलों और पेपर मिलों को 17 सबसे जहरीले अपशिष्ट पैदा करने वाले उद्योगों में शामिल किया गया है. इन उद्योगों से न केवल विनिर्माण प्रक्रियाओं के दौरान सतही जल निकायों की बड़ी मात्रा प्रदूषित होती है बल्कि ये उद्योग अपगामी अपशिष्टों द्वारा नदी पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हुए उसे संदूषित करते हैं.
दूसरा, काली नदी हजारों प्रधान और लघु आवासों से असंशोधित मानव उत्सर्जन की बड़ी मात्रा प्राप्त करती है. दूसरे शब्दों में, यह प्रमुख शहरों और शहरी कस्बों के ट्रंक सीवर के रूप में कार्य करती है. इसमें सोडा, डीडीटी, बीएचसी, पेट्रोलियम उत्पाद इत्यादि जैसे घरेलू अपशिष्ट भी शामिल हैं जो इंगित करता है कि इसमें भारी धातु मानकों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है.
तीसरा, पश्चिमी यू.पी. एक तेजी से उभरता कृषि क्षेत्र है, जहां रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कृंतकों आदि का एक बहुतायत उपयोग किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. यें रसायन व भारी धातु भू - क्षरण की प्रक्रिया के माध्यम से नदी में प्रवाहित होते हैं एवं मृदा के जरिये प्रमुख जल संसाधन में अंतर्निहित जलवाही स्तर को प्रदूषित करते हैं. इसके साथ ही यहां आज भी गन्ना, धान आदि बड़ी मात्रा में बोया जाता है, जिससे भूमिगत जल में कमी आना स्वाभाविक है और इसका एक बड़ा प्रभाव नदी के जलस्तर पर भी पड़ता है.
एक आस जगाते हैं नीर फाउंडेशन के प्रयास
प्रदेश की नदियों को अविरल और स्वच्छ बनाने की दिशा में विगत दो दशकों से नीर फाउंडेशन प्रयासों में लगा है. काली पुनरोद्धार के लिए यह संस्था नदी के उद्गम स्थल से प्रवाहमान काली के लिए संकल्पित होकर कार्य कर रही है. नदी की 143 बीघा जमीन का अतिक्रमण जब से ग्रामवासियों ने छोड़ा है, तभी से इस जमीन पर जलाशय, जल पिट आदि के जरिये भूजल को संचित किया जा रहा है. सिंचाई विभाग से गाँव से निकलने वाले पानी को संशोधित करने के विषय में भी वार्तालाप चल रहा है और नदी की खुदाई का कार्य भी बड़े पैमाने पर जारी है. इन सभी प्रयासों का नतीजा हुआ कि नदी से आठ फुट की गहराई पर ही जलधारा फूट पड़ी, जिसने एक उम्मीद लोगों में जगाई कि प्रयासों से असम्भव को भी संभव बनाया जा सकता है.