
मुजफ्फरनगर स्थित खतौली का अंतवाडा गांव एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बना, जब अथक
प्रयासों के बाद काली नदी में एकाएक जलधारा फूट पड़ी. आज प्रदूषण के चलते दम तोड़ती
और अपना स्वरुप खोती हमारी प्राचीन नदियों के बारे में तो हर रोज ही चर्चा जारी
रहती है, लेकिन उनके संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयास नहीं दिखाई देते हैं.
परन्तु अंतवाडा से उद्गमित होने वाली गंगा की प्रमुख सहायक काली नदी के संवर्धन के
लिए किये जा रहे प्रयासों ने इस मिथक को तोड़ दिया है.
नीर फाउंडेशन और हेस्को सहित अन्य बहुत सी संस्थाओं और पर्यावरणविदों के काली
नदी को संरक्षित करने के उपाय अब सफल होते दिख रहे हैं. 70 वर्ष पहले अंतवाडा की
जमीन पर यह नदी बलखाते हुए प्रवाहित होती थी, जिसके चलते ग्रामीणों ने इसे “नागिन”
नाम दिया, लेकिन बदलते समय के साथ ही नदी की जमीन को खेती के लिए किसानों ने पाटना
शुरू कर दिया और पिछले लगभग 3 दशकों में तो यह पता लगाना ही मुश्किल हो गया कि कभी
यहां कोई नदी थी भी या नहीं.

काली नदी के संरक्षण के लिए पर्यावरणविद् पदमश्री श्री अनिल जोशी और नीर
फाउंडेशन के निदेशक नदीपुत्र श्री रमन कान्त ने एक वर्ष पूर्व अंतवाडा गांव में
पहुंचकर काली नदी के संरक्षण की समुचित रुपरेखा तैयार की, जिसमें उन्हें ग्रामीणों
का भी पूरा सहयोग मिला. किसानों ने काली की 145 बीघा जमीन से अधिग्रहण छोड़ दिया और
उसके संरक्षण में जुट गए. विगत एक वर्ष में नदी के मार्ग की खुदाई से लेकर,
वृक्षारोपण, तालाबों और रिचार्ज पिट आदि को लेकर युद्धस्तर पर कार्य किया गया,
जिसका नतीजा निकला कि मात्र आठ फीट की खुदाई पर ही नदी से जलधारा प्रवाहित हो उठी.
जिससे कोशिशों में जुटे सभी नदी सेवकों सहित आस पास के गांवों में भी उत्साह का
माहौल है.

नदी श्रमदान, पौधारोपण और संगोष्ठी में जुटी भीड़
गुरूवार, 21 नवम्बर, 2019 का दिन काली नदी के लिए बेहद विशेष रहा, जब काली की
पुकार पर दूर दूर से लोगों की भीड़ अंतवाडा में नदी श्रमदान, किनारों पर पौधारोपण
और पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ हुयी संगोष्ठी के लिए पहुंची. सुबह काली की
प्रस्फुटित धारा के पास पूजन-अर्चन करते हुए नदीपुत्र रमनकान्त ने कलश स्थापना की
और उसके उपरांत नदी के आस पास पौधारोपण किया गया.

इसके साथ ही संगोष्ठी में पधारे विभिन्न नदी विशेषज्ञों, सामाजिक
कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों, प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ताओं, मीडियाकर्मियों ने
अपने अपने विचार साझा किये और नदी की महत्ता पर प्रकाश डालने के साथ साथ इससे जुड़े
विभिन्न परिप्रेक्ष्यों को समझा गया. संगोष्ठी में हेस्को के संस्थापक पदमश्री
अनिल जोशी, रमनकांत त्यागी, प्रगतिशील किसान पद्मश्री कंवल
सिंह चौहान, संघ की पर्यावरण गतिविधियों के राष्ट्रीय सहसंयोजक राकेश कुमार जैन, नारायण
फाउंडेशन से राहुल देव, बैलटबॉक्सइंडिया के संस्थापक राकेश प्रसाद, पथिक सेना के संस्थापक
मुखिया गुर्जर, अर्थ डे नेटवर्क इंडिया से डायरेक्टर अनिल अरोड़ा, जिला पंचायत
सदस्य राजीव सैनी, गांव 100 से राजीव त्यागी, सामाजिक कार्यकर्ता नवीन प्रधान,
राहुल देव, शुभम कौशिक, गौरव शर्मा, मुकेश त्यागी, सिद्धार्थ शर्मा, इन्द्रजीत
सिंह, योगेन्द्र त्यागी, मस्तराम नागर, आशु पटेल, अजय शर्मा, रमेश चंद गुज्जर
इत्यादि सहित अन्य बहुत से मान्यगण मौजूद रहे.

समझना होगा प्रकृति का विज्ञान – डॉ अनिल जोशी
हमारी नदियां धीरे धीरे मर रही हैं. हर चीज का विज्ञान है और हमने सभी तरह के
विज्ञान पर काम किया है. आज विज्ञान ने काफी तरक्की की है, हम चंद्रमा पर जाना
चाहते हैं, मंगल पर जाना
चाहते हैं, लेकिन प्रकृति के
विज्ञान को नहीं समझना चाहते हैं. नदियों के मरने का जिम्मेदार समाज ही है. हमने
नदियों का भोग तो किया, पर हमने बदले में
उन्हें कुछ नहीं दिया. आज जरूरत है कि हम पृथ्वी को समझें, प्रकृति को समझें
और प्रकृति के विज्ञान को समझें.

संगोष्ठी में नदियों के मर्म पर प्रकाश डालने के साथ साथ डॉ
अनिल जोशी ने बताया कि मेरठ और मुज्जफरनगर क्रांति का गढ़ रहा है और अब यह नदी
क्रांति भी यहीं से शुरू होगी. उन्होंने कहा कि,
नदियां पृथ्वी की धमनियों की तरह हैं, जिस तरह हमारी
धमनियों के रूप जाने से जीवन ख़त्म हो जाता है, ठीक वैसे ही यदि नदियां सुनी हो
जायेंगी तो पृथ्वी भी समाप्त हो जाएगी. आज दूषित प्राणवायु, जहरीली मिटटी के चलते
नदियां खत्म हो रही है. सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, परन्तु नदियों के
लिए सभी को आगे आना होगा, जनक्रांति लानी होगी. समाज को जागृत और गंभीर होना होगा.
हम राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं, अब समय है समाज को समझाएं
कि अब वोट हवा, पानी और मिटटी के लिए ही दिया जायेगा.
रोकना होगा रासायनिक खाद का प्रयोग, लाने होंगे नए विकल्प –
पदमश्री कंवल सिंह चौहान
प्रगतिशील किसान पदमश्री कंवल सिंह चौहान ने बताया कि
रासायनिक कृषि हमारे स्वास्थ्य के साथ साथ जमीन और नदियों के लिए भी घातक है. यह
पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है. उन्होंने संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए
कहा,
“मैं जब सीपीसीबी में सेवारत था, तब प्लास्टिक पर रोक लगाने
और रासायनिक खाद का विकल्प खोजने की बात सरकार के समक्ष रखी थी, जिस पर सरकार आज
गंभीर हुयी है. अब जाकर पॉलिथीन और सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर रोक लगायी गयी है. हमें
यदि पर्यावरण को बचाना है तो रासायनिक खाद के प्रयोग पर भी रोक लगानी होगी.

काली नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए किये जा रहे हैं
वैज्ञानिक व तकनीकी उपाय – रमनकांत त्यागी
नदीपुत्र रमन कांत ने बताया कि काली को संरक्षित और संवर्धित
करने के लिए पिछले एक वर्ष से कड़े प्रयास किये जा रहे हैं, जिनमें विभिन्न
संस्थाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और आमजन का सहयोग मिल रहा है. नदी के लिए वैज्ञानिक
रूप से प्रयास किये जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं..
1. नदी किनारे छह जलाशय खोद दिए गए हैं और अन्य छह भी बची
हुयी जमीन पर खोदे जायेंगे. इन जलाशयों के जरिये खेतों और गांव से निकलने वाला
पानी एकत्रित होगा और भूजल को रिचार्ज करता रहेगा. एक जलाशय की क्षमता 13 लाख लीटर
प्रतिवर्ष की है और अनुमान करें तो प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 30 लाख तक जल संग्रहण
इनमें हो सकेगा.

2. जलाशयों के साथ साथ 30 फीट की दूरी पर तकरीबन 300
रिचार्ज पिट भी खोदे जाने हैं, जिनमें से कुछ तो खोदे भी जा चुके हैं. इन जल पिटों
की संग्रहण क्षमता लगभग 45 लाख लीटर की है.

3. इसके साथ ही गांव से निकलने वाले पानी के शोधन के लिए भी
सीपीसीबी के साथ वार्तालाप जारी है.
4. वन विभाग के सहयोग से नदी के किनारों पर सघन वन निर्मित
करने का कार्य जारी है, इससे इलाके के तापमान को संतुलित होने में सहायता मिलेगी
और यह अच्छी वर्षा का भी कारक बनेगा. यहां 10,000 पौधे रोपने का संकल्प लिया गया
है, जिनमें 300 से अधिक पौधे तो लगाये भी जा चुके हैं. ब्लॉक्स में विभाजित करके
पौधारोपण किया जायेगा, जिनमें फल, फूल, औषधीय पौधों के आधार पर वाटिकाएं स्थापित
होंगी.

5. इन सभी प्रयासों के साथ ही नदी किनारे बसे ग्रामों में
आर्गेनिक कृषि को लेकर भी जन जागरूकता का प्रचार प्रसार किया जायेगा. आशा है कि इन
सभी प्रयासों से नदी को प्रवाह मिलेगा और अंतवाडा से एक बार फिर अविरल काली बहेगी.
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Raman Kant 52
मुजफ्फरनगर स्थित खतौली का अंतवाडा गांव एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बना, जब अथक प्रयासों के बाद काली नदी में एकाएक जलधारा फूट पड़ी. आज प्रदूषण के चलते दम तोड़ती और अपना स्वरुप खोती हमारी प्राचीन नदियों के बारे में तो हर रोज ही चर्चा जारी रहती है, लेकिन उनके संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयास नहीं दिखाई देते हैं. परन्तु अंतवाडा से उद्गमित होने वाली गंगा की प्रमुख सहायक काली नदी के संवर्धन के लिए किये जा रहे प्रयासों ने इस मिथक को तोड़ दिया है.
नीर फाउंडेशन और हेस्को सहित अन्य बहुत सी संस्थाओं और पर्यावरणविदों के काली नदी को संरक्षित करने के उपाय अब सफल होते दिख रहे हैं. 70 वर्ष पहले अंतवाडा की जमीन पर यह नदी बलखाते हुए प्रवाहित होती थी, जिसके चलते ग्रामीणों ने इसे “नागिन” नाम दिया, लेकिन बदलते समय के साथ ही नदी की जमीन को खेती के लिए किसानों ने पाटना शुरू कर दिया और पिछले लगभग 3 दशकों में तो यह पता लगाना ही मुश्किल हो गया कि कभी यहां कोई नदी थी भी या नहीं.
काली नदी के संरक्षण के लिए पर्यावरणविद् पदमश्री श्री अनिल जोशी और नीर फाउंडेशन के निदेशक नदीपुत्र श्री रमन कान्त ने एक वर्ष पूर्व अंतवाडा गांव में पहुंचकर काली नदी के संरक्षण की समुचित रुपरेखा तैयार की, जिसमें उन्हें ग्रामीणों का भी पूरा सहयोग मिला. किसानों ने काली की 145 बीघा जमीन से अधिग्रहण छोड़ दिया और उसके संरक्षण में जुट गए. विगत एक वर्ष में नदी के मार्ग की खुदाई से लेकर, वृक्षारोपण, तालाबों और रिचार्ज पिट आदि को लेकर युद्धस्तर पर कार्य किया गया, जिसका नतीजा निकला कि मात्र आठ फीट की खुदाई पर ही नदी से जलधारा प्रवाहित हो उठी. जिससे कोशिशों में जुटे सभी नदी सेवकों सहित आस पास के गांवों में भी उत्साह का माहौल है.
नदी श्रमदान, पौधारोपण और संगोष्ठी में जुटी भीड़
गुरूवार, 21 नवम्बर, 2019 का दिन काली नदी के लिए बेहद विशेष रहा, जब काली की पुकार पर दूर दूर से लोगों की भीड़ अंतवाडा में नदी श्रमदान, किनारों पर पौधारोपण और पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ हुयी संगोष्ठी के लिए पहुंची. सुबह काली की प्रस्फुटित धारा के पास पूजन-अर्चन करते हुए नदीपुत्र रमनकान्त ने कलश स्थापना की और उसके उपरांत नदी के आस पास पौधारोपण किया गया.
इसके साथ ही संगोष्ठी में पधारे विभिन्न नदी विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों, प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ताओं, मीडियाकर्मियों ने अपने अपने विचार साझा किये और नदी की महत्ता पर प्रकाश डालने के साथ साथ इससे जुड़े विभिन्न परिप्रेक्ष्यों को समझा गया. संगोष्ठी में हेस्को के संस्थापक पदमश्री अनिल जोशी, रमनकांत त्यागी, प्रगतिशील किसान पद्मश्री कंवल सिंह चौहान, संघ की पर्यावरण गतिविधियों के राष्ट्रीय सहसंयोजक राकेश कुमार जैन, नारायण फाउंडेशन से राहुल देव, बैलटबॉक्सइंडिया के संस्थापक राकेश प्रसाद, पथिक सेना के संस्थापक मुखिया गुर्जर, अर्थ डे नेटवर्क इंडिया से डायरेक्टर अनिल अरोड़ा, जिला पंचायत सदस्य राजीव सैनी, गांव 100 से राजीव त्यागी, सामाजिक कार्यकर्ता नवीन प्रधान, राहुल देव, शुभम कौशिक, गौरव शर्मा, मुकेश त्यागी, सिद्धार्थ शर्मा, इन्द्रजीत सिंह, योगेन्द्र त्यागी, मस्तराम नागर, आशु पटेल, अजय शर्मा, रमेश चंद गुज्जर इत्यादि सहित अन्य बहुत से मान्यगण मौजूद रहे.
समझना होगा प्रकृति का विज्ञान – डॉ अनिल जोशी
हमारी नदियां धीरे धीरे मर रही हैं. हर चीज का विज्ञान है और हमने सभी तरह के विज्ञान पर काम किया है. आज विज्ञान ने काफी तरक्की की है, हम चंद्रमा पर जाना चाहते हैं, मंगल पर जाना चाहते हैं, लेकिन प्रकृति के विज्ञान को नहीं समझना चाहते हैं. नदियों के मरने का जिम्मेदार समाज ही है. हमने नदियों का भोग तो किया, पर हमने बदले में उन्हें कुछ नहीं दिया. आज जरूरत है कि हम पृथ्वी को समझें, प्रकृति को समझें और प्रकृति के विज्ञान को समझें.
संगोष्ठी में नदियों के मर्म पर प्रकाश डालने के साथ साथ डॉ अनिल जोशी ने बताया कि मेरठ और मुज्जफरनगर क्रांति का गढ़ रहा है और अब यह नदी क्रांति भी यहीं से शुरू होगी. उन्होंने कहा कि,
रोकना होगा रासायनिक खाद का प्रयोग, लाने होंगे नए विकल्प – पदमश्री कंवल सिंह चौहान
प्रगतिशील किसान पदमश्री कंवल सिंह चौहान ने बताया कि रासायनिक कृषि हमारे स्वास्थ्य के साथ साथ जमीन और नदियों के लिए भी घातक है. यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है. उन्होंने संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए कहा,
काली नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए किये जा रहे हैं वैज्ञानिक व तकनीकी उपाय – रमनकांत त्यागी
नदीपुत्र रमन कांत ने बताया कि काली को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए पिछले एक वर्ष से कड़े प्रयास किये जा रहे हैं, जिनमें विभिन्न संस्थाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और आमजन का सहयोग मिल रहा है. नदी के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रयास किये जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं..
1. नदी किनारे छह जलाशय खोद दिए गए हैं और अन्य छह भी बची हुयी जमीन पर खोदे जायेंगे. इन जलाशयों के जरिये खेतों और गांव से निकलने वाला पानी एकत्रित होगा और भूजल को रिचार्ज करता रहेगा. एक जलाशय की क्षमता 13 लाख लीटर प्रतिवर्ष की है और अनुमान करें तो प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 30 लाख तक जल संग्रहण इनमें हो सकेगा.
2. जलाशयों के साथ साथ 30 फीट की दूरी पर तकरीबन 300 रिचार्ज पिट भी खोदे जाने हैं, जिनमें से कुछ तो खोदे भी जा चुके हैं. इन जल पिटों की संग्रहण क्षमता लगभग 45 लाख लीटर की है.
3. इसके साथ ही गांव से निकलने वाले पानी के शोधन के लिए भी सीपीसीबी के साथ वार्तालाप जारी है.
4. वन विभाग के सहयोग से नदी के किनारों पर सघन वन निर्मित करने का कार्य जारी है, इससे इलाके के तापमान को संतुलित होने में सहायता मिलेगी और यह अच्छी वर्षा का भी कारक बनेगा. यहां 10,000 पौधे रोपने का संकल्प लिया गया है, जिनमें 300 से अधिक पौधे तो लगाये भी जा चुके हैं. ब्लॉक्स में विभाजित करके पौधारोपण किया जायेगा, जिनमें फल, फूल, औषधीय पौधों के आधार पर वाटिकाएं स्थापित होंगी.
5. इन सभी प्रयासों के साथ ही नदी किनारे बसे ग्रामों में आर्गेनिक कृषि को लेकर भी जन जागरूकता का प्रचार प्रसार किया जायेगा. आशा है कि इन सभी प्रयासों से नदी को प्रवाह मिलेगा और अंतवाडा से एक बार फिर अविरल काली बहेगी.