निर्मल काली..अविरल काली, पूर्वी काली नदी के संवर्धन की ओर बढाएं एक कदम
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By
Raman Kant 30
नदियों का हमारे समाज से संबंध युगों प्राचीन रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु नदी की बात करें या मेसोपोटामिया में टिगरिस एवं युफ्रेट्स नदियों के दोआब की या बात की जायें मिस्र की नील नदी की, इन सभी के किनारे मानवीय सभ्यताओं को पोषण मिला है. आज भी हमारी भारतीय पौराणिक संस्कृति के वाहक बहुत से स्थान जैसे वाराणसी, हरिद्वार, अयोध्या, उज्जैन, मथुरा आदि का रुख करें तो इनका विकास भी नदी किनारे ही हुआ मिलेगा. यानि नदियों से मानव समाज का रिश्ता बेहद आत्मिक रहा है, लेकिन अंधाधुंध विकास का परिणाम सर्वाधिक यदि किसी ने झेला तो वो भी हमारी नदियां ही हैं. गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी जैसी प्रमुख नदियों के साथ साथ इनकी प्रमुख सहायक नदियां गोमती, काली, हिंडन आदि भी आज बढ़ते शहरीकरण की मार झेल रही हैं.
इन्हीं सहायकों की फेहरिस्त में एक नाम काली नदी का भी है, जिसका उद्गम स्थल मुज्जफरनगर के अंतवाडा गांव से होता है. गंगा नदी की प्रमुख सहायक यह नदिका कभी बेहद पवित्र और सुरुचिपूर्ण मानी जाती थी, किवदंतियों के अनुसार इसका पानी काली खांसी के ईलाज में प्रयोग किया जाता था. किन्तु पिछले दो दशकों से, नदी को डंपिंग ग्राउंड के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें काफी मात्रा में दूषित पदार्थों और संशोधित ना किए गए प्रदूषित कारक हैं, जिनकी उत्त्पत्ति विभिन्न स्रोतों से है. इसके प्रमुख स्त्रोतों में औद्योगिक असंसाधित तत्त्व, घरेलू सीवेज, कृषि अपवाह, पॉलिथिन आदि का अंधाधुंध उपयोग हैं. इसके संरक्षण के प्रयास भी विगत दो दशकों से किये जा रहे हैं, जिनमें नीर फाउंडेशन के द्वारा चलाये गए नदी सेवा अभियान, काली को नमामि गंगे अभियान का हिस्सा बनाना, तटीय इलाके के लोगों को जागरूक करना सर्वप्रमुख रहा है.
मुज्जफरनगर से बहती हुयी काली नदी मेरठ, हापुड़, अलीगढ, कासगंज, ईटा, फर्रुखाबाद से होते हुए कन्नौज जिले में गंगा से मिल जाती है. सोचिये इतने जिलों की जीवनरेखा काली आज इन्हीं जिलों में स्थापित कारखानों और सीवरेज से इतनी अधिक प्रदूषित हो चुकी है कि कईं स्थानों पर तो ग्रामीणों ने इससे पूरी तरह दूरी बना ली है. काली नदी को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से किये जा रहे प्रयासों की श्रृंखला में लम्बे समय से प्रयासरत नीर फाउंडेशन अंतवाडा में इसके उद्गम स्थल पर नदी को पुनः प्रवाहमान करने की तैयारियों में जुटा है और इसके लिए विभिन्न प्रयास जारी हैं. इनके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं.
काली नदी को स्वच्छ और अविरल बनाने की दिशा में आप भी एक कदम आगे बढा सकते हैं. बृहस्पतिवार 21 नवम्बर 2019, को काली नदी के उद्गम स्थल पर श्रमदान, पौधारोपण और गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें विभिन्न समाजसेवी, नदी एवं पर्यावरण विशेषज्ञ, मीडियाकर्मी, एनजीओ व आमजन सम्मिलित रहेंगे. पिछले काफी समय से नीर फाउंडेशन, हेस्को के साथ साथ बहुत सी अन्य संस्थाएं काली नदी संरक्षण की दिशा में अग्रणी होकर कार्य कर रही हैं. जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति नदी सेवा को अपना दायित्त्व मानकर चलेगा तो अवश्य ही हमारी नदियां संवर्धित होंगी और "क्लीन काली..ग्रीन काली" श्रमदान अभियान, नदी सेवा की इसी पुनीत विचारधारा की उपज है.