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समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
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Raman Kant 34
हम बदलेंगे, युग बदलेगा। हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा। यह उक्ति इस जहान की तमाम समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की विश्वव्यापी समस्या से सभी कराह रहे हैं, क्योंकि अगर समाधान की दिशा में गंभीरता से आगे नहीं बढ़ा गया तो आने वाले तीन दशकों में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी। समस्या के मूल में वातावरण के अंदर ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता व लगातार बढ़ता कार्बन उत्सर्जन है।
2050 तक डूब जाएगी मुंबई
इस सप्ताह अतंरराष्ट्रीय पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित इस खबर ने सबको सकते में डाल दिया है कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई 2050 तक समुद्र का जल स्तर बढ़ने से डूब जाएगी। विश्व में कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी करीब 5 प्रतिशत है, जबकि चीन की 21 व अमेरिका की 20 प्रतिशत। कार्बन उत्सर्जन के कारणों में बिजली व गर्माहट की सर्वाधिक 24 प्रतिशत, भू-उपयोग में परिवर्तन की 18 प्रतिशत, उद्योग की 10 प्रतिशत तथा कृषि व परिवहन की 13-13 प्रतिशत भागीदारी है।
भारत ने लिया ये संकल्प
पेरिस समझौते के अनुसार भारत ने 2005 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 30 से 35 प्रतिशत कम करने की प्रतिबद्धता जताई है। 2030 तक अपनी कुल बिजली क्षमता के 40 प्रतिशत को अक्षय ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा में तब्दील करना भी भारत का लक्ष्य है, जोकि एक बेहतर कदम है। भारत सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान में गांधी दर्शन की बात करता रहा है अर्थात पंच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश व वायु) का सदुपयोग करके अपने जीवन को व्यतीत करना।
समाधान से पहले फुट प्रिंट को समझना जरुरी
समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले कार्बन फुट प्रिंट को समझना आवश्यकता है। किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाने वाला कार्बन उत्सर्जन जितना है वही उसका कार्बन फुटप्रिंट है। हमें इसमें ही कमी लानी है। इसके लिए निजी, सामाजिक व सरकारी तीनों स्तरों पर तुरंत प्रभावी व दूरगामी प्रभाव वाले कदम उठाने होंगे। हमें किसी भी वस्तु का सदुपयोग करना सीखना होगा न कि उसका दोहन। भारत में प्रति व्यक्ति जितना कार्बन उत्सर्जन किया जाता है वह अमेरिका के मुकाबले सात गुना कम है, लेकिन आबादी अधिक होने के कारण भारत की कुल हिस्सेदारी बढ़ जाती है। हमें इसे और कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें अपने घर में बिजली की खपत को कम करना होगा।
दैनिक दिनचर्या में करें ये बदलाव
एकल उपयोग की वस्तुओं को अपनी दैनिक दिनचर्या से कम अथवा समाप्त करना होगा। घर के रेफ्रिजरेटर की रफ्तार धीमी रखें, सीएफएल बल्बों का उपयोग, वाशिंग मशीन का कम उपयोग, ऊर्जा खपत वाली सभी वस्तुओं का उपयोग सीमित करना होगा, वाहन के टायरों में हवा सही रखें, डिब्बाबंद उत्पादों से छुटकारा व ताजा खाना कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे हम अपना कार्बन फुटप्रिंट घटा सकते हैं। प्रत्येक परिवार अपने घरों की छतों को सफेद पेंट से रंगना सुनिश्चत करे, इससे सूर्य की पराबैंगनी किरणें छत से टकराकर वापस लौट जाती हैं इससे घरों को ठंडा रखने में मदद मिलेगी।
प्रकृति अनुरूप घर बनाने की नीति पर जहां सरकार को अनिवार्य बनानी चाहिए वहीं बिल्डरों व नागरिकों को भी अपने घरों को प्रकृति के अनुरूप बनाना चाहिए। ऐसे घर जिनमें वर्षाजल को संरक्षित करने की व्यवस्था हो, सूर्य का समुचित प्रकाश उपलब्ध हो तथा वायु का संचार बना रहे। इससे बिजली की खपत भी स्वत: ही कम होगी। कार्बन उत्सर्जन में सर्वाधिक योगदान कोयले का है।
कोयले की खपत (उत्पादन व आयात) करने वाला भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। वर्ष 2000 के मुकाबले कोयला उत्पादन में तीन गुणा की बढोत्तरी हुई है। भारत में 80 प्रतिशत बिजली उत्पादन भी कोयले से किया जाता है। कोयला आधारित उद्योगों को अक्षय उर्जा में परिवर्तित करना होगा तथा ऊर्जा की खपत सरकारी व निजी स्तर पर कैसे कम हो इसके लिए सख्त नियम-कायदे बनाने होंगे। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि एक परिवार अधिकतम कितना कार्बन उत्सर्जन कर सकता है। इसी आधार पर अपनी नीतियों को अमल में लाना होगा। भारत द्वारा इंटरनेशनल सोलर एलाइंस के गठन में अग्रणी भूमिका निभाना व उस ओर अपने कदमों को मोड़ना भविष्य के लिए एक बेहतर कदम है।