असम सूचना आयोग को आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम 2005) का कोई जवाब ना देने और आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाने के कारण डाउनग्रेड करते हैं.
आरटीआई की खामियों को दूर करने का विचार, क्या एक विचार भर ही है?
पिछले वर्ष असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 से संबंधित एक दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए जब कहा था कि असम अग्रणी राज्यों में से एक है जो 2002 में एक अलग राज्य अधिनियम द्वारा सूचना के अधिकार की शुरुआत की थी. उन्होंने साथ ही यह भी कहा था कि
सूचना का अधिकार को एक प्रभावी उपकरण बनाया जा सकता है जहां समाज के वंचित और उपेक्षित वर्गों की आवाज जोर और स्पष्ट सुना जा सके. उन्होंने आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खामियों को दूर करने में नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा था, "जिस उद्देश्य के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया गया है उसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इस के लिए खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिससे इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके. इस के लिए, नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी बहुत जरूरी है."
1.5% पाइप्ड वाटर, सीवरेज कनेक्शन 3%, 1.3% ढकें ड्रेन और ख़्वाब समार्ट सिटी का

समार्ट सिटी के लिए शहरी विकास मंत्रालय द्वारा चयनित 20 शहरों में से असम की राजधानी गुवाहाटी को 17 रैंक प्राप्त हुआ. मगर यहां की हकीकत यह है कि असम के कई जिले अब भी मूलभूत सविधाओं के आभाव में ही जीने को विवश हैं. असम का गोलपारा जिला जहां सरकार अब तक बस 1.5 प्रतिशत ही पाइप्ड वाटर की सुविधा दे सकी है तो वहीं, सीवरेज कनेक्शन 3 प्रतिशत तक ही सीमित है, मछरों और बीमारियों को पनपने देने के लिए यहां के लगभग सभी ड्रेन खुले हुए हैं और मात्र 1.3 प्रतिशत ही ढकें हुए ड्रेन हैं. यह सिर्फ एक जिले का हाल नहीं यहां के लगभग सारे जिलों का हश्र कुछ ऐसा ही है. हो सकता है कई लोग इसपर सरकार से सवाल करना चाहते हो? हो सकता है कई लोगों को सरकारी कामकाज को लेकर बहुत सारे सवाल हो? उनके पास आरटीआई जैसा माध्यम भी है पर शायद उनके पास डाकखाना जाने का समय नहीं हो, या एक बार समय निकाल भी ले तो सरकारी रवैये और एक विभाग से दूसरे विभाग या कोई कमी निकाल कर फिर से आरटीआई के उसी प्रक्रिया को झेलने भर का धैर्य ना हो. ऑनलाइन आरटीआई करने की सुविधा एक विकल्प है पर इस पर भी असम सूचना आयोग को सोचने तक की फुर्सत नहीं है.
असम राज्य सूचना आयोग करता है नियमों को अनदेखा
यह कितना शर्मनाक है की जहां लोगों को राज्य सरकार से आरटीआई अपील और शिकायतों के त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिए क मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति और कम से कम दो राज्य सूचना आयुक्तों की बहाली के लिए अनुरोध करना पड़ता है. असम राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त से अलग दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है जो ज्यादातर सिर्फ एक आयुक्त के साथ कार्य कर रहा है. यह स्पष्ट रूप से लोगों के लिए एक पारदर्शी और जवाबदेह शासन को उपलब्ध कराने में राज्य की ओर से उदासीनता या शायद इच्छाशक्ति की कमी को इंगित करता है.
10 वर्षों में मात्र 1.4 लाख आरटीआई
एक आकड़ें के मुताबिक पिछले 10 साल में जब से सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभाव में आया है तबसे भारत में अब तक लगभग पाँच करोड़ आरटीआई आवेदन किया गया है. जिनमें से मात्र 1.4 लाख असम में दायर किया गया है. इसमें असम की हिस्सेदारी बहुत ही उत्साहवर्धक नहीं लगती. यहां बेहद जागरूकता की जरुरत है. शायद ऑनलाइन आरटीआई करने की सुविधा का विकल्प इसमें कारगर हो.
असम राज्य सूचना आयोग का उदासीन रवैया
जनवरी, 2016 तक असम राज्य सूचना आयोग में 6,220 मामले लंबित पड़े हुए हैं. इनमें से 1,815 शिकायत और 4,405 अपील लंबित हैं. एक आकड़ें यह बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह असम राज्य सूचना आयोग सूचन का अधिकार के प्रति उदासीन है.
असम राज्य सूचना आयोग हुआ डाउनग्रेड
एक वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी असम राज्य सूचना आयोग द्वारा हमारे द्वारा पूछे गए आरटीआई सवाल में कि क्या आपके पास आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था है? का अब तक कोई जवाब नहीं आया है. ना ही ये अब तक आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था दे पाये हैं. असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने कहा था कि जिस उद्देश्य के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया गया है उसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इस के लिए खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिससे इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके. मगर राज्य सूचना आयोग को देख कर ऐसा कतई नहीं लगता की वह इसके प्रति गंभीर भी हैं. यही नहीं एक ओर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल 2021 तक 25000 गांव को डिजिटल बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं तो दूसरी और उनका सरकारी सरकारी महकमा ही डिजिटल होने को तैयार नहीं.
आरटीआई का कोई जवाब ना देने और आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाने के कारण हम असम सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं.

क्या चाहते हैं हम?
एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?
अगर आप आरटीआई विशेषज्ञ हैं या आरटीआई कार्यकर्ता जो वास्तव में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.
आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.
अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.
क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय,कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.
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Coordinators@ballotboxindia.com
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Swarntabh Kumar 94
असम सूचना आयोग को आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम 2005) का कोई जवाब ना देने और आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाने के कारण डाउनग्रेड करते हैं.
आरटीआई की खामियों को दूर करने का विचार, क्या एक विचार भर ही है?
पिछले वर्ष असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 से संबंधित एक दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए जब कहा था कि असम अग्रणी राज्यों में से एक है जो 2002 में एक अलग राज्य अधिनियम द्वारा सूचना के अधिकार की शुरुआत की थी. उन्होंने साथ ही यह भी कहा था कि
सूचना का अधिकार को एक प्रभावी उपकरण बनाया जा सकता है जहां समाज के वंचित और उपेक्षित वर्गों की आवाज जोर और स्पष्ट सुना जा सके. उन्होंने आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खामियों को दूर करने में नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा था, "जिस उद्देश्य के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया गया है उसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इस के लिए खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिससे इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके. इस के लिए, नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी बहुत जरूरी है."
1.5% पाइप्ड वाटर, सीवरेज कनेक्शन 3%, 1.3% ढकें ड्रेन और ख़्वाब समार्ट सिटी का
समार्ट सिटी के लिए शहरी विकास मंत्रालय द्वारा चयनित 20 शहरों में से असम की राजधानी गुवाहाटी को 17 रैंक प्राप्त हुआ. मगर यहां की हकीकत यह है कि असम के कई जिले अब भी मूलभूत सविधाओं के आभाव में ही जीने को विवश हैं. असम का गोलपारा जिला जहां सरकार अब तक बस 1.5 प्रतिशत ही पाइप्ड वाटर की सुविधा दे सकी है तो वहीं, सीवरेज कनेक्शन 3 प्रतिशत तक ही सीमित है, मछरों और बीमारियों को पनपने देने के लिए यहां के लगभग सभी ड्रेन खुले हुए हैं और मात्र 1.3 प्रतिशत ही ढकें हुए ड्रेन हैं. यह सिर्फ एक जिले का हाल नहीं यहां के लगभग सारे जिलों का हश्र कुछ ऐसा ही है. हो सकता है कई लोग इसपर सरकार से सवाल करना चाहते हो? हो सकता है कई लोगों को सरकारी कामकाज को लेकर बहुत सारे सवाल हो? उनके पास आरटीआई जैसा माध्यम भी है पर शायद उनके पास डाकखाना जाने का समय नहीं हो, या एक बार समय निकाल भी ले तो सरकारी रवैये और एक विभाग से दूसरे विभाग या कोई कमी निकाल कर फिर से आरटीआई के उसी प्रक्रिया को झेलने भर का धैर्य ना हो. ऑनलाइन आरटीआई करने की सुविधा एक विकल्प है पर इस पर भी असम सूचना आयोग को सोचने तक की फुर्सत नहीं है.
असम राज्य सूचना आयोग करता है नियमों को अनदेखा
यह कितना शर्मनाक है की जहां लोगों को राज्य सरकार से आरटीआई अपील और शिकायतों के त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिए क मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति और कम से कम दो राज्य सूचना आयुक्तों की बहाली के लिए अनुरोध करना पड़ता है. असम राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त से अलग दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है जो ज्यादातर सिर्फ एक आयुक्त के साथ कार्य कर रहा है. यह स्पष्ट रूप से लोगों के लिए एक पारदर्शी और जवाबदेह शासन को उपलब्ध कराने में राज्य की ओर से उदासीनता या शायद इच्छाशक्ति की कमी को इंगित करता है.
10 वर्षों में मात्र 1.4 लाख आरटीआई
एक आकड़ें के मुताबिक पिछले 10 साल में जब से सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभाव में आया है तबसे भारत में अब तक लगभग पाँच करोड़ आरटीआई आवेदन किया गया है. जिनमें से मात्र 1.4 लाख असम में दायर किया गया है. इसमें असम की हिस्सेदारी बहुत ही उत्साहवर्धक नहीं लगती. यहां बेहद जागरूकता की जरुरत है. शायद ऑनलाइन आरटीआई करने की सुविधा का विकल्प इसमें कारगर हो.
असम राज्य सूचना आयोग का उदासीन रवैया
जनवरी, 2016 तक असम राज्य सूचना आयोग में 6,220 मामले लंबित पड़े हुए हैं. इनमें से 1,815 शिकायत और 4,405 अपील लंबित हैं. एक आकड़ें यह बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह असम राज्य सूचना आयोग सूचन का अधिकार के प्रति उदासीन है.
असम राज्य सूचना आयोग हुआ डाउनग्रेड
एक वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी असम राज्य सूचना आयोग द्वारा हमारे द्वारा पूछे गए आरटीआई सवाल में कि क्या आपके पास आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था है? का अब तक कोई जवाब नहीं आया है. ना ही ये अब तक आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था दे पाये हैं. असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने कहा था कि जिस उद्देश्य के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया गया है उसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इस के लिए खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिससे इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके. मगर राज्य सूचना आयोग को देख कर ऐसा कतई नहीं लगता की वह इसके प्रति गंभीर भी हैं. यही नहीं एक ओर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल 2021 तक 25000 गांव को डिजिटल बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं तो दूसरी और उनका सरकारी सरकारी महकमा ही डिजिटल होने को तैयार नहीं.
आरटीआई का कोई जवाब ना देने और आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाने के कारण हम असम सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं.
क्या चाहते हैं हम?
एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?