व्यक्ति
एक सामाजिक प्राणी है। वह हमेशा अपने चारों ओर लोगों से घिरा रहना पसन्द करता है।
इसलिए अकेले रहने वाले व्यक्ति को जिन्दगी में खालीपन लगने लगता है, इससे उसकी
निराशा बढ़ती है। इस कारण उसमें जीने की उमंग ही नहीं रह जाती और वह आत्महत्या करने
की सोचने लगता है।
आत्महत्या
और सामाजिकता इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है कि
जो शक्तियां समाज को तोड़ती हैं वही
व्यक्ति को भी आत्महत्या के लिए मजबूर करती है। सामाजिक जीवन में फंसे हुए अनेक
व्यक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्बन्धों से वंचित रह जाते हैं और कई बार वे अपने
जीवन से निराश भी हो जाते हैं और आत्मसुरक्षा की भावना को खो देते हैं, फलस्वरूप
व्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाता है और वह आत्महत्या कर लेने की स्थिति में होता है।
वर्तमान
नवीन परिस्थितयों में समाज की विभिन्न निर्णायक इकाइयों में तीव्र गति से परिर्वतन
हुए हैं। रीति-रिवाज, धर्म, कला, विश्वास, परम्परा, मान्यता और आधुनिकीकरण आदि सभी कुछ बदला है। परिवार जिसमें
व्यक्ति रहता है, जो कि समाज की प्राथमिक और आधारभूत इकाई है, इसमें भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है। नवीन परिस्थियों के
कारण व्यक्ति ने अपने परिवार को उसके अनुकूल करने का प्रयत्न किया, परन्तु
परिवर्तन की तीव्रता के कारण उसका प्रयास असफल हो रहा है। इस असफल प्रयास के
परिणामस्वरूप ही व्यक्ति आत्महत्या की ओर उन्मुख हो जाता है।
व्यक्ति
निर्धनता, बेकारी, प्रेम में असफल होकर, सामाजिक नियम, रूढ़ि, परम्परा को तोड़ने के पश्चात में या फिर
अपार आर्थिक क्षति हो जाने के कारण देनदारियों से चिंतित होकर आत्महत्या की ओर
प्रवृत्त होता है।
प्रसिद्ध
समाजशास्त्री “इमाइल दुर्खीम” ने अपनी पुस्तक “ले सुसाइड” में आत्महत्या को एक सामाजिक तथ्य माना है
और उसकी व्याख्या के लिए व्यक्तिक अथवा मनोवैज्ञानिक कारकों की अपेक्षा सामाजिक
तथ्यों को आधार रूप में स्वीकार किया है। दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या तीन कारणों
से होती है...
1. अहमवादी आत्महत्या -
जिसके
तहत सामाजिक जीवन से पृथक व्यक्ति एकान्तवास में बोझिल मन को वश में नहीं रख पाता हैं
और आत्महत्या कर लेता है। व्यक्ति यह समझता है कि समाज द्वारा उसकी उपेक्षा की जा
रही है। इसमे यह भी देखने को मिला है कि विवाहित व्यक्तियों की अपेक्षा अविवाहित
लोग पारिवारिक जीवन में कम सम्पर्क होने के कारण अधिक आत्महत्याएं करते हैं।
2. असामान्य आत्महत्याएं -
इस
प्रकार की आत्महत्या तब होती है जब व्यक्ति के सामने एकाएक असमान्य परिस्थिति
उत्पन्न हो जाती है। असामान्य परिस्थिति में व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता
है और वह आत्महत्या कर लेता है। भीषण आर्थिक संकट, जिसमें दिवाला निकल जाने के कारण
मानसिक रूप से परेशान होने पर, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक आर्थिक सम्पन्नता, जैसे
लाटरी निकल आने की खुशी के कारण। अर्थात दोनों ही परिस्थितयों में व्यक्ति
आत्महत्या कर सकता है।
3. परार्थी आत्महत्या -
इसमें
सामूहिक हित के लिए आत्म बलिदान की भावना से प्रेरित होकर जो आत्महत्या की जाती है,
उसे परार्थी आत्महत्या कहा जाता है। भारत में सती-प्रथा तथा जापान में हरा-किरी
परार्थी आत्महत्या के ही उदाहरण रहे हैं।
आत्महत्या
व्यक्ति की असंतुलित अवस्था है, जबकि वह अपने चारों ओर की परिस्थितियों को अनुकूल
नहीं कर पाता है।
आत्महत्या
के दूसरे कारणों पर यदि हम चर्चा करें तो पाते है कि इसके और भी कारण समाज में
व्याप्त हैं, जैसे -
प्रत्येक
व्यक्ति के विभिन्न अनुभव होते हैं और उनकी मनोवृतियाँ और दृष्टिकोण भी भिन्न होते
हैं। इसलिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण सामाजिक मूल्यों के अनुकूल नहीं रहते हैं तो व्यक्ति आत्महत्या करने की ओर अग्रसर होता है। इसका
उदाहरण प्रायः समाचार पत्रों आदि में आपको मिल जाता है कि एक व्यक्ति किसी दूसरी
जाति की लडकी से शादी करना चाहता है, परन्तु जाति-बिरादरी उसके आड़े आ जाती है तो
वह प्रेम में असफल होकर आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार समाज में प्रचलित
आत्महत्या, व्यक्तिक मनोवृत्तियों और सामाजिक मूल्यों
के संघर्ष का ही परिणाम होता है।
सामाजिक
संरचना भी आत्महत्या के लिए पर्याप्त उत्तरदायी होती है। प्रत्येक व्यक्ति की एक
मान्य स्थिति होती है। कभी-कभी सामाजिक परिस्थियां एकाएक बदल जाती है, व्यक्ति
परिस्थियों के साथ चलने में असहज महसूस करता है और उसके सामने संकट उत्पन्न होता
है। यह दो प्रकार के होते है-
पहला
“आकस्मिक”, जिसके तहत व्यक्ति को अपने जीवनसम्बन्धी कार्यक्रमों को
एकदम बदलना पड़ता है. इसका उदाहरण यह हो सकता है कि परिवार में एकाएक पति की
आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर पत्नी को बच्चों के पालन-पोषण के लिए धन उपार्जन करना
होगा।
दूसरा
है “संचयी संकट”, जो पहले से ही हो। जैसे सास-बहू में निरंतर
मन-मुटाव। जब यही प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है तो बहू एक दिन आत्महत्या कर लेती
है।
हमारे
यहां शिक्षा-प्रणाली अनुपयोगी है। एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति रोजगार परक शिक्षा न होने
के कारण दर-दर की ठोकरें खाता है और रोजगार न मिलने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर
हो जाता है।
धार्मिक
रूढ़िवादिता-
कई
व्यक्ति धार्मिक रूढ़िवादिता व अंधविश्वास के कारण विभिन्न सामाजिक परिस्थितयों से
अनुकूलन करने में असफल हो जाते हैं और आत्महत्या का शिकार होते हैं। हमारे देश में
मंदिरों व धर्मशालाओं में धर्म की आड़ में दुराचारी व्यक्ति, ठग, बदमाश आदि संरक्षण प्राप्त करते हैं।
परिवारिक
परिस्थति परिवार में बच्चों पर ज्यादा लाड-दुलार भी उनकी मनमानी की छूट देता है,
परन्तु जब उन पर रोक लगाई जाती है तो रोक को वह सहन नहीं करते है और आत्महत्या कर
लेते हैं।
कुछ
व्यक्ति युद्ध के मैदान में भयंकर दृश्यों को देखकर मानसिक संतुलन खो देते हैं। माताएं
व पत्नियां अपने पुत्रों व पतियों को खोकर पागल हो जाती हैं और आत्महत्या कर लेती
हैं। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ऐसे कई
प्रकरण देखने को मिले।
निर्धनता
भी आत्महत्या का एक कारण है। विभिन्न समाचार पत्रों, रेडियो व टी.वी. चैनलों से पता लगता है कि गरीबी से तंग आकर बडी संख्या में
लोग आत्महत्याएं करते हैं।
बेकारी
की स्थिति में व्यक्ति अपने आपको असहज महसूस करता है और उसके मन में आशंका, अशान्ति व परेशानी रहती है और वह एक प्रकार से मानसिक रोगी की तरह हरकतें करने लगता
है।
आर्थिक
संकट कई बार व्यक्ति किसी बडी हानि को सहन नहीं कर पाते हैं और अपना मानसिक संतुलन
खो बैठते हैं।
एक
कारण जनसंख्या वृद्धि भी है, जिसके कारण सभी को रोजगार मिल पाना संभव नहीं है, इससे निर्धनता, बेकारी आदि को प्रोत्साहन मिलता है। इसमें
व्यक्ति परेशान होता है।
औद्योगिक
तनाव –
उद्योगधंधों
के विकास के साथ ही औाद्योगिक तनाव भी बढ़ा है। हड़ताल, तालाबन्दी के कारण श्रमिक बेकार, निर्धनता, ऋणग्रस्तता आदि से दब जाता है।
गंदी
बस्तियां –
गंदी
जगहों पर रहने के कारण अनेक भयंकर रोगों से ग्रसित व्यक्ति के पास इलाज के लिए
पैसा न होने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होता है।
आधुनिकता का आकर्षण -
चलचित्र
या सिनेमा में प्रदर्शित आकर्षण, भोगविलास व रोमांसपूर्ण जीवन को देखकर अनेक
युवक-युवतियां उसका अनुसरण करना चाहते हैं, परन्तु सामाजिक दबाव में जब नहीं कर
पाते हैं तो मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और ऐसी धुन में वह आत्महत्या तक कर लेते
हैं।
समाचार
पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित कलापूर्ण चोरी, डकैती, जालसाजी, अपहरण आदि की घटनाएं युवक-युवतियों को गलत
रास्ते पर चलने को प्रेरित करती है, जिसका परिणाम भी अंत में आत्महत्या करने पर ही
समाप्त होता है।
मोबाइल
आज झूठ बोलने की फैक्ट्री के रूप में उभर कर सामने आया है. आज मोबाइल से
युवक-युवतियां अपने परिवार में अपने माता-पिता से ही झूठ बोलते है और जब उनका झूठ
पकड़ा जाता है तो वह भी आत्महत्या तक जा पहुँचता है।
युवा
तनाव –
देश
के युवा वर्ग की इच्छाओं व आकांक्षाओं का कोई सम्मान नहीं होता है तो ऐसी स्थिति
में अनेक युवा सामाजिक मूल्यों के विरोधी हो जाते है और उनकी इच्छापूर्ति न होने
के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।
राजनीतिक
उथल-पुथल, व्यक्तिगत असमानताएं, भौतिकवादी विचारधारा, धनी-निर्धन का भारी भेद भी समाज में आत्महत्या
को प्रोत्साहित करते हुए देखे गये हैं.
आत्महत्या
से बचने के उपाय-
मनुष्य
का मन विचारों का कारखाना है। विचारों का यह कारखना उसका भविष्य तय करता है और उसे
कल्याण तथा बुराई की ओर अग्रसर करता है।
विचारों
पर नियंत्रण -
मनुष्य
ऐसा प्राणी है जिसकी सोच कभी सकारात्मक और कभी नकारात्मक होती है। व्यक्ति को अपनी
सोच को नियन्त्रित रखना होगा ताकि सफल जीवन जी सके। यदि आपके मन में सकारात्मक
विचार होंगे तो आपके सफल होने की उम्मीद कई गुना बढ़ जाती है। क्योंकि सकारात्मक
व्यक्ति की सोच की विविधता और गुणवत्ता ही उसके जीवन जीने की कला को निश्चित करती
है। अतः हम कह सकते हैं कि सुन्दर विचार मनुष्य और समाज को सफलता के चरम तक ले जा
सकते हैं।
नियमित
व्यायाम एवं योगा -
कुछ
अन्य उपायों के तहत व्यक्ति को एक्सरसाइज करनी चाहिए क्योंकि एक्ससाइज करने से
ब्रेन से एंडाफिन्स नामक हार्मोन सक्रिय होते हैं जो अच्छा महसूस कराते हैं। इसके
अतिरक्त योगा भी किया जा सकता है। खासकर दिनभर बैठ कर काम करने वाले व्यक्यिों के
लिए यह आवश्यक ही है।
स्वयं
को दें उपहार -
प्रत्येक
दिवस दूसरों के लिए जीने के अतिरिक्त कभी-कभार खुद के लिए भी जिएं। बाजार में जाकर
अपनी पसन्द की शॉपिंग करें तथा कुछ अच्छा खायें-पियें। इससे आपको आत्मिक सुकून
महसूस होगा।
साथ
ही अपने अच्छे दोस्तों से मिलने का कार्यक्रम बनाये तथा मिलने पर पुरानी यादों में
खो जाये तथा उन यादों में हंसी वाले पलों को याद करके हंसें व हंसायें।
दैनिक
कार्यों को करें सूचीबद्ध -
अपने
काम की सूची पहले से ही बनाकर रखें तथा उसमें प्राथमिकता का ध्यान रखें। इससे तनाव
काफी हद तक कम हो जायेगा और आप स्वयं को और पारिवारिक जनों को भी समय दे पाएंगे.
इसके
अतिरिक्त कभी-कभी न कहना भी सीखें, जैसे आपके पास यदि पहले से ही काफी काम है और
आपको अभी उसे निपटानें में समय लगेगा तो आप विनम्रता से अगला काम न लेने का निवेदन
सामने वाले से कर सकते हैं।
अपने
बैठने के स्थान व अपनी मेज कुर्सी आदि की साफ-सफाई रखें अनावश्यक फाइलों और
वस्तुओं को कही साइड में बन्द कर रखें। इससे नवीन सोच बनाने में आपको सहायता
मिलेगी।
एक
ही जगह पर अधिक देर तक न बैठे। हर दो घण्टे बाद टहल लेने से मन में बोझ नहीं रहेगा
और सुकून महसूस होगा।
हॉबी
से बनें क्रिएटिव -
अपनी
हॉबी को कमाई का जरिया बनाकर काम करें। जैसे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना, पेंटिंग सीखना, बागवानी करना आदि।
हमेशा
काम करते रहना। यह व्यक्ति को न केवल स्वस्थ्य रखेगा वरन् उसको नकारात्मक सोच से
भी दूर रखेगा। टाइम अनुसूची बनाकर काम करने से व्यक्ति की जिंदगी में उत्साह व
सकारात्मकता भी बनी रहती है और जिन्दगी खुशहाल रहती है।
संगीत
बन सकता है खुशहाल जीवन का माध्यम -
लंन्दन
के गोल्डस्मिथ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विषय के द्वारा किये गये शोध के अनुसार,
“संगीत
आपको आत्महत्या या हार्टअटैक से बचा सकता है। यदि कोई अपने हाथों में वाद्ययंत्र
लेकर स्वयं प्रेक्टिस करें तो उन्हे इससे काफी आराम मिलता है”
संगीत
आपके लिए एक औषधि के रूप में काम करता है यह आपका मूड भी ठीक करेगा तथा बीमारी से
भी बचाएगा। विभाग की प्रमुख डॉ. लारिनस्टेवर्ड का कहना है कि शोध से यह बात सामने
आई है कि हीन भवना से ग्रस्त लोगों को उभारने में वाद्ययंत्र प्रभावशाली भूमिका
निभाते हैं।
यदि
आपको वाद्ययंत्र बजाना नहीं आता है तो रेडियो या किसी वाकमैन पर अपने मन पसन्द का
संगीत सुने।
अतः
आज प्रयास यह होना चाहिए कि समाज में आत्महत्या को रोकने हेतु रचनात्मक प्रकारों
को प्रोत्साहित करना चाहिए।
अन्त
में.. मैं तो बस यही कहूँगा कि यदि आप आस्तिक है तो सबकुछ ऊपर वाले के हाथों में
छोडकर और यदि आप नास्तिक है तो अपने ऊपर पूरा भरोसा कर सिर्फ खुश रहना चाहिए। खुशमिजाजी
आपके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली बनाती है। हमेशा चिंतित और परेशान न होकर प्रसन्नता और धीरज से व्यवहार करना सीखें. इससे लोगों के बीच आपकी छवि भी सकारात्मक
बनेगी और आप समाज व देश के लिए कुछ करने में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वाहन
करेंगे।
एक
गीत के बोल हैं -मैंने
दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी....नासमझ लाया गम तो ये गम ही सही........
By Dr. Dharmendra Singh Katiyar {{descmodel.currdesc.readstats }}
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह हमेशा अपने चारों ओर लोगों से घिरा रहना पसन्द करता है। इसलिए अकेले रहने वाले व्यक्ति को जिन्दगी में खालीपन लगने लगता है, इससे उसकी निराशा बढ़ती है। इस कारण उसमें जीने की उमंग ही नहीं रह जाती और वह आत्महत्या करने की सोचने लगता है।
आत्महत्या और सामाजिकता इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है कि जो शक्तियां समाज को तोड़ती हैं वही व्यक्ति को भी आत्महत्या के लिए मजबूर करती है। सामाजिक जीवन में फंसे हुए अनेक व्यक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्बन्धों से वंचित रह जाते हैं और कई बार वे अपने जीवन से निराश भी हो जाते हैं और आत्मसुरक्षा की भावना को खो देते हैं, फलस्वरूप व्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाता है और वह आत्महत्या कर लेने की स्थिति में होता है।
वर्तमान नवीन परिस्थितयों में समाज की विभिन्न निर्णायक इकाइयों में तीव्र गति से परिर्वतन हुए हैं। रीति-रिवाज, धर्म, कला, विश्वास, परम्परा, मान्यता और आधुनिकीकरण आदि सभी कुछ बदला है। परिवार जिसमें व्यक्ति रहता है, जो कि समाज की प्राथमिक और आधारभूत इकाई है, इसमें भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है। नवीन परिस्थियों के कारण व्यक्ति ने अपने परिवार को उसके अनुकूल करने का प्रयत्न किया, परन्तु परिवर्तन की तीव्रता के कारण उसका प्रयास असफल हो रहा है। इस असफल प्रयास के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति आत्महत्या की ओर उन्मुख हो जाता है।
व्यक्ति निर्धनता, बेकारी, प्रेम में असफल होकर, सामाजिक नियम, रूढ़ि, परम्परा को तोड़ने के पश्चात में या फिर अपार आर्थिक क्षति हो जाने के कारण देनदारियों से चिंतित होकर आत्महत्या की ओर प्रवृत्त होता है।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री “इमाइल दुर्खीम” ने अपनी पुस्तक “ले सुसाइड” में आत्महत्या को एक सामाजिक तथ्य माना है और उसकी व्याख्या के लिए व्यक्तिक अथवा मनोवैज्ञानिक कारकों की अपेक्षा सामाजिक तथ्यों को आधार रूप में स्वीकार किया है। दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या तीन कारणों से होती है...
1. अहमवादी आत्महत्या -
जिसके तहत सामाजिक जीवन से पृथक व्यक्ति एकान्तवास में बोझिल मन को वश में नहीं रख पाता हैं और आत्महत्या कर लेता है। व्यक्ति यह समझता है कि समाज द्वारा उसकी उपेक्षा की जा रही है। इसमे यह भी देखने को मिला है कि विवाहित व्यक्तियों की अपेक्षा अविवाहित लोग पारिवारिक जीवन में कम सम्पर्क होने के कारण अधिक आत्महत्याएं करते हैं।
2. असामान्य आत्महत्याएं -
इस प्रकार की आत्महत्या तब होती है जब व्यक्ति के सामने एकाएक असमान्य परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। असामान्य परिस्थिति में व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह आत्महत्या कर लेता है। भीषण आर्थिक संकट, जिसमें दिवाला निकल जाने के कारण मानसिक रूप से परेशान होने पर, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक आर्थिक सम्पन्नता, जैसे लाटरी निकल आने की खुशी के कारण। अर्थात दोनों ही परिस्थितयों में व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है।
3. परार्थी आत्महत्या -
इसमें सामूहिक हित के लिए आत्म बलिदान की भावना से प्रेरित होकर जो आत्महत्या की जाती है, उसे परार्थी आत्महत्या कहा जाता है। भारत में सती-प्रथा तथा जापान में हरा-किरी परार्थी आत्महत्या के ही उदाहरण रहे हैं।
आत्महत्या व्यक्ति की असंतुलित अवस्था है, जबकि वह अपने चारों ओर की परिस्थितियों को अनुकूल नहीं कर पाता है।
प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न अनुभव होते हैं और उनकी मनोवृतियाँ और दृष्टिकोण भी भिन्न होते हैं। इसलिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण सामाजिक मूल्यों के अनुकूल नहीं रहते हैं तो व्यक्ति आत्महत्या करने की ओर अग्रसर होता है। इसका उदाहरण प्रायः समाचार पत्रों आदि में आपको मिल जाता है कि एक व्यक्ति किसी दूसरी जाति की लडकी से शादी करना चाहता है, परन्तु जाति-बिरादरी उसके आड़े आ जाती है तो वह प्रेम में असफल होकर आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार समाज में प्रचलित आत्महत्या, व्यक्तिक मनोवृत्तियों और सामाजिक मूल्यों के संघर्ष का ही परिणाम होता है।
सामाजिक संरचना भी आत्महत्या के लिए पर्याप्त उत्तरदायी होती है। प्रत्येक व्यक्ति की एक मान्य स्थिति होती है। कभी-कभी सामाजिक परिस्थियां एकाएक बदल जाती है, व्यक्ति परिस्थियों के साथ चलने में असहज महसूस करता है और उसके सामने संकट उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार के होते है-
पहला “आकस्मिक”, जिसके तहत व्यक्ति को अपने जीवनसम्बन्धी कार्यक्रमों को एकदम बदलना पड़ता है. इसका उदाहरण यह हो सकता है कि परिवार में एकाएक पति की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर पत्नी को बच्चों के पालन-पोषण के लिए धन उपार्जन करना होगा।
दूसरा है “संचयी संकट”, जो पहले से ही हो। जैसे सास-बहू में निरंतर मन-मुटाव। जब यही प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है तो बहू एक दिन आत्महत्या कर लेती है।
धार्मिक रूढ़िवादिता-
कई व्यक्ति धार्मिक रूढ़िवादिता व अंधविश्वास के कारण विभिन्न सामाजिक परिस्थितयों से अनुकूलन करने में असफल हो जाते हैं और आत्महत्या का शिकार होते हैं। हमारे देश में मंदिरों व धर्मशालाओं में धर्म की आड़ में दुराचारी व्यक्ति, ठग, बदमाश आदि संरक्षण प्राप्त करते हैं।
परिवारिक परिस्थति परिवार में बच्चों पर ज्यादा लाड-दुलार भी उनकी मनमानी की छूट देता है, परन्तु जब उन पर रोक लगाई जाती है तो रोक को वह सहन नहीं करते है और आत्महत्या कर लेते हैं।
कुछ व्यक्ति युद्ध के मैदान में भयंकर दृश्यों को देखकर मानसिक संतुलन खो देते हैं। माताएं व पत्नियां अपने पुत्रों व पतियों को खोकर पागल हो जाती हैं और आत्महत्या कर लेती हैं। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ऐसे कई प्रकरण देखने को मिले।
निर्धनता भी आत्महत्या का एक कारण है। विभिन्न समाचार पत्रों, रेडियो व टी.वी. चैनलों से पता लगता है कि गरीबी से तंग आकर बडी संख्या में लोग आत्महत्याएं करते हैं।
बेकारी की स्थिति में व्यक्ति अपने आपको असहज महसूस करता है और उसके मन में आशंका, अशान्ति व परेशानी रहती है और वह एक प्रकार से मानसिक रोगी की तरह हरकतें करने लगता है।
आर्थिक संकट कई बार व्यक्ति किसी बडी हानि को सहन नहीं कर पाते हैं और अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं।
एक कारण जनसंख्या वृद्धि भी है, जिसके कारण सभी को रोजगार मिल पाना संभव नहीं है, इससे निर्धनता, बेकारी आदि को प्रोत्साहन मिलता है। इसमें व्यक्ति परेशान होता है।
औद्योगिक तनाव –
उद्योगधंधों के विकास के साथ ही औाद्योगिक तनाव भी बढ़ा है। हड़ताल, तालाबन्दी के कारण श्रमिक बेकार, निर्धनता, ऋणग्रस्तता आदि से दब जाता है।
गंदी बस्तियां –
गंदी जगहों पर रहने के कारण अनेक भयंकर रोगों से ग्रसित व्यक्ति के पास इलाज के लिए पैसा न होने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होता है।
आधुनिकता का आकर्षण -
चलचित्र या सिनेमा में प्रदर्शित आकर्षण, भोगविलास व रोमांसपूर्ण जीवन को देखकर अनेक युवक-युवतियां उसका अनुसरण करना चाहते हैं, परन्तु सामाजिक दबाव में जब नहीं कर पाते हैं तो मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और ऐसी धुन में वह आत्महत्या तक कर लेते हैं।
समाचार पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित कलापूर्ण चोरी, डकैती, जालसाजी, अपहरण आदि की घटनाएं युवक-युवतियों को गलत रास्ते पर चलने को प्रेरित करती है, जिसका परिणाम भी अंत में आत्महत्या करने पर ही समाप्त होता है।
मोबाइल आज झूठ बोलने की फैक्ट्री के रूप में उभर कर सामने आया है. आज मोबाइल से युवक-युवतियां अपने परिवार में अपने माता-पिता से ही झूठ बोलते है और जब उनका झूठ पकड़ा जाता है तो वह भी आत्महत्या तक जा पहुँचता है।
युवा तनाव –
देश के युवा वर्ग की इच्छाओं व आकांक्षाओं का कोई सम्मान नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में अनेक युवा सामाजिक मूल्यों के विरोधी हो जाते है और उनकी इच्छापूर्ति न होने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।
राजनीतिक उथल-पुथल, व्यक्तिगत असमानताएं, भौतिकवादी विचारधारा, धनी-निर्धन का भारी भेद भी समाज में आत्महत्या को प्रोत्साहित करते हुए देखे गये हैं.
आत्महत्या से बचने के उपाय-
मनुष्य का मन विचारों का कारखाना है। विचारों का यह कारखना उसका भविष्य तय करता है और उसे कल्याण तथा बुराई की ओर अग्रसर करता है।
विचारों पर नियंत्रण -
मनुष्य ऐसा प्राणी है जिसकी सोच कभी सकारात्मक और कभी नकारात्मक होती है। व्यक्ति को अपनी सोच को नियन्त्रित रखना होगा ताकि सफल जीवन जी सके। यदि आपके मन में सकारात्मक विचार होंगे तो आपके सफल होने की उम्मीद कई गुना बढ़ जाती है। क्योंकि सकारात्मक व्यक्ति की सोच की विविधता और गुणवत्ता ही उसके जीवन जीने की कला को निश्चित करती है। अतः हम कह सकते हैं कि सुन्दर विचार मनुष्य और समाज को सफलता के चरम तक ले जा सकते हैं।
नियमित व्यायाम एवं योगा -
कुछ अन्य उपायों के तहत व्यक्ति को एक्सरसाइज करनी चाहिए क्योंकि एक्ससाइज करने से ब्रेन से एंडाफिन्स नामक हार्मोन सक्रिय होते हैं जो अच्छा महसूस कराते हैं। इसके अतिरक्त योगा भी किया जा सकता है। खासकर दिनभर बैठ कर काम करने वाले व्यक्यिों के लिए यह आवश्यक ही है।
स्वयं को दें उपहार -
प्रत्येक दिवस दूसरों के लिए जीने के अतिरिक्त कभी-कभार खुद के लिए भी जिएं। बाजार में जाकर अपनी पसन्द की शॉपिंग करें तथा कुछ अच्छा खायें-पियें। इससे आपको आत्मिक सुकून महसूस होगा।
साथ ही अपने अच्छे दोस्तों से मिलने का कार्यक्रम बनाये तथा मिलने पर पुरानी यादों में खो जाये तथा उन यादों में हंसी वाले पलों को याद करके हंसें व हंसायें।
दैनिक कार्यों को करें सूचीबद्ध -
अपने काम की सूची पहले से ही बनाकर रखें तथा उसमें प्राथमिकता का ध्यान रखें। इससे तनाव काफी हद तक कम हो जायेगा और आप स्वयं को और पारिवारिक जनों को भी समय दे पाएंगे.
इसके अतिरिक्त कभी-कभी न कहना भी सीखें, जैसे आपके पास यदि पहले से ही काफी काम है और आपको अभी उसे निपटानें में समय लगेगा तो आप विनम्रता से अगला काम न लेने का निवेदन सामने वाले से कर सकते हैं।
अपने बैठने के स्थान व अपनी मेज कुर्सी आदि की साफ-सफाई रखें अनावश्यक फाइलों और वस्तुओं को कही साइड में बन्द कर रखें। इससे नवीन सोच बनाने में आपको सहायता मिलेगी।
एक ही जगह पर अधिक देर तक न बैठे। हर दो घण्टे बाद टहल लेने से मन में बोझ नहीं रहेगा और सुकून महसूस होगा।
हॉबी से बनें क्रिएटिव -
अपनी हॉबी को कमाई का जरिया बनाकर काम करें। जैसे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना, पेंटिंग सीखना, बागवानी करना आदि।
हमेशा काम करते रहना। यह व्यक्ति को न केवल स्वस्थ्य रखेगा वरन् उसको नकारात्मक सोच से भी दूर रखेगा। टाइम अनुसूची बनाकर काम करने से व्यक्ति की जिंदगी में उत्साह व सकारात्मकता भी बनी रहती है और जिन्दगी खुशहाल रहती है।
संगीत बन सकता है खुशहाल जीवन का माध्यम -
लंन्दन के गोल्डस्मिथ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विषय के द्वारा किये गये शोध के अनुसार,
संगीत आपके लिए एक औषधि के रूप में काम करता है यह आपका मूड भी ठीक करेगा तथा बीमारी से भी बचाएगा। विभाग की प्रमुख डॉ. लारिनस्टेवर्ड का कहना है कि शोध से यह बात सामने आई है कि हीन भवना से ग्रस्त लोगों को उभारने में वाद्ययंत्र प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं।
यदि आपको वाद्ययंत्र बजाना नहीं आता है तो रेडियो या किसी वाकमैन पर अपने मन पसन्द का संगीत सुने।
अतः आज प्रयास यह होना चाहिए कि समाज में आत्महत्या को रोकने हेतु रचनात्मक प्रकारों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
अन्त में.. मैं तो बस यही कहूँगा कि यदि आप आस्तिक है तो सबकुछ ऊपर वाले के हाथों में छोडकर और यदि आप नास्तिक है तो अपने ऊपर पूरा भरोसा कर सिर्फ खुश रहना चाहिए। खुशमिजाजी आपके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली बनाती है। हमेशा चिंतित और परेशान न होकर प्रसन्नता और धीरज से व्यवहार करना सीखें. इससे लोगों के बीच आपकी छवि भी सकारात्मक बनेगी और आप समाज व देश के लिए कुछ करने में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वाहन करेंगे।
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