जला है जीवन यह
आतप में दीर्घकाल
सूखी भूमि‚ सूखे तरु
सूखे सिक्त आल
बाल
बन्द हुआ गुंज‚
धूलि धूसर हो गए कुंज
किन्तु पड़ी व्योम–उर बन्धु‚
नील मेघ–माल।
—सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
हिंदी साहित्य के
मूर्धन्य छायाकालीन साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्यग्रंथ “अनामिका”
में जिस प्रकार भारत के ग्रीष्मकालीन मौसम का वर्णन किया गया, उससे यह ज्ञात होता
है कि समस्त उत्तर भारत में मई माह से सूर्य का ताप इतना प्रचंड हो जाता है कि
जीव-निर्जीव सभी त्रस्त दिखाई पड़ते हैं और गर्मी के इस आतप से राहत पाने के लिए
छाया व शीतलता का सहारा खोजते हैं.
मई माह को वैसे तो विश्व भर
में “वर्ल्ड लाफ्टर मंथ” के रूप में जाना जाता है, पर भारत के मामले में यह झुलसा
देने वाली गर्मियों की शुरुआत का सूचक भी है. बढ़ते ताप के साथ ही हमारे रहन-सहन,
आस पास के वातावरण, शारीरिक संरचना और खान-पान में भी परिवर्तन स्वाभाविक तौर पर
आने लगता है, जिस पर सही से ध्यान नहीं देने के कारण हम ऋतुजनक रोगों के भी शिकार
बन जाते हैं.
आज के इस भागदौड़ के समय में
प्रत्येक व्यक्ति तरक्की की राह पर आगे बढ़ना चाहता है और ऐसे में हम अपने
स्वास्थ्य को ताक पर रख देते हैं. ऋतुनुसार जीवनशैली के अभाव में भले ही हम करियर
की दृष्टि से प्रगति कर जायें, पर जरा सोचिये ऐसे धन का क्या लाभ, जिसका व्यय क्लिनिक,
हॉस्पिटल्स या दवाइयों में ही होता रहे. आपका स्वास्थ्य अनमोल है और इसे संरक्षित
करना भी आप ही के हाथों में है. आप हर मौसम में दुरुस्त बने रहें, इसके लिए
बैलटबॉक्सइंडिया प्रस्तुत करता है मई स्वास्थ्य विशेषांक..तो आप भी जानें मई के
गर्म मौसम में भी अचूक स्वास्थ्य रूपी शीतलता से तरोताजा रहने के कुछ सरल, मौसमी,
घरेलू और प्राकृतिक तौर तरीके.
1. मई माह में मौसम और शारीरिक परिवर्तन
जैसे ही वसंत ऋतु
की मादकता समाप्त होती है, ग्रीष्म की प्रखरता बढ़ने लगती है और मई के मध्य से तो
उत्तर पश्चिमी भारत में अधिकतम पारा 48 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाता है. हिंदी कैलेंडर के हिसाब से देखें तो मई माह बैसाख और
ज्येष्ठ का संगम है, जिसमें सूर्य के कर्क रेखा के नजदीक आने से तापमान का अधिकतम
बिंदु भी दक्षिण से उत्तर की और बढ़ता चला जाता है और नतीजा मई के अंत तक झुलसा
देने वाली गर्मी के रूप में दिखाई देता है. मध्य मई से राजस्थान से चलने वाली गर्म
और शुष्क हवाएं लू के रूप में समस्त उत्तर पश्चिमी भारत में चलने लगती हैं, जिससे
वातावरणीय ताप और उमस अत्याधिक बढ़ जाते है.
मई माह में जलवायु में हुए
व्यापक परिवर्तन के कारण हमारे शरीर में भी बहुत से परिवर्तन होते हैं, जिनमें
मुख्य इस प्रकार हैं..
1. हमारा पाचन तंत्र गर्मियों
में प्राय: कमजोर ही रहता है, जिससे भूख कम लगती है.
2. सूर्य के बढ़ते ताप के
कारण शरीर में ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है और अधिक थकान महसूस होती है.
3. शरीर में इलेक्ट्रोलाइट
असंतुलन भी मई में आम है, अधिक पसीना निकलने से सोडियम की मात्रा कम रहती है, साथ
ही शरीर में पोटैशियम, क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड और बायकार्बोनेट का संतुलन
भी गर्मियों में बिगड़ जाता है.
4. आयुर्वेद के अनुसार
ग्रीष्मऋतु में कफ का क्षय तथा वात तत्त्व की शरीर में अधिकता रहती है.
2. मई माह में सुपाच्य, लघु एवं मौसमी हो आहारचर्या
मई के आरम्भ से ही दिन बड़े
और रातें छोटी होने लगती हैं, मौसम में भी व्यापक स्तर पर परिवर्तन आता है, जिसका
असर खान-पान पर भी पड़ता है. हमारी परंपरागत आयुर्वेदिक नियमावली के अनुसार
गर्मियों में ठोस आहार का सेवन कम से कम और पेय पदार्थों का सेवन अत्याधिक करना
हितकर माना जाता है, क्योंकि इस समय प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में जलतत्त्व कम
होने लगता है और शारीरिक ऊर्जा का ह्रास होना भी मई में सामान्य है. ऐसे में
आवश्यक है कि हमारे भोजन में मौसमी फलों, सब्जियों और पेय पदार्थों की अधिकता हो.
मौसमी फलों से पाएं
स्फूर्ति
गर्मियों में मिलने वाले
अधिकांश फलों में पानी की मात्रा अधिक होती है, जिससे शरीर को तरावट और नवऊर्जा
मिलती है. मई माह में विशेषकर उत्तर भारत में पाए जाने वाले प्रमुख फलों में आम,
तरबूजा, खरबूजा, फालसा, जामुन, मौसमी, बेल, आलूबुखारा आदि हैं, जिनके नियमित सेवन
से शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होती है.
1. आम – विभिन्न किस्मों एवं रंगों में मिलने वाले आम को इसके
रसीले एवं बेमिसाल स्वाद के कारण फलों का राजा कहा जाता है. गर्मियों में आम को
कच्चा एवं पक्का, दोनों ही रूप में आहार में शामिल किया जाता है. जहां मेंगो शेक,
स्मूदी, आइसक्रीम आदि में प्रयोग होकर आम बच्चों का पसंदीदा फल है, वहीं कच्चे आम
की चटनी या उत्तर प्रदेश के बहुत से ग्रामों में बनाई जाने वाली कच्ची कैरी की
सब्जी स्वाद और पोषण से भरपूर होती है. आम में बीटा कैरोटीन, विटामिन ए-ई-सी, पोटैशियम रेशे,
सेलेनियम, पेक्टिन, आयरन एवं पोटैशियम के
साथ ही पाचन एंजाइम भी प्रचुर मात्रा में होते हैं.
2. तरबूज – लगभग 90 प्रतिशत जल की मात्रा को अवशोषित
किये हुए तरबूज में थैमाइन, रिबोफ़्लिविन, नियासिन, विटामिन बी 6, पैंटोथेनिक एसिड, कोलीन, लाइकोपीन, बीटेन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, मैंगनीज, सेलेनियम आदि तत्वों की प्रचुरता होती है. राष्ट्रीय तरबूज संवर्धन बोर्ड के
अनुसार तरबूज में किसी भी अन्य फल या सब्जी की तुलना में अधिक लाइकोपीन होता है,
जो इसे बेहद स्वास्थ्यवर्धक बनाता है.
3. खरबूजा – खरबूजे को भी तरबूज के ही परिवार से संबंधित
माना जाता है, क्योंकि इसमें भी जलतत्व भरपूर पाया जाता है. यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के
अनुसार, नारंगी रंग के खरबूजे
में गाजर के ही समान बीटा-कैरोटिन पाया जाता है. साथ ही इसमें विटामिन सी, फोलेट,
फाइबर, पोटैशियम, जिंक, कॉपर, सेलेनियम, विटामिन के, कैल्शियम आदि तत्वों का भी
सम्मिश्रण होता है.
4. फालसा – तिलासिया परिवार के सदस्य फालसे को भारत के
स्वदेशी फल के रूप में जाना जाता है, जो स्थानीय तौर पर अधिक लोकप्रिय फल है. आमतौर
पर मई-जून के महीने में पकने वाले फालसे को शर्बत के रूप में बहुतायत प्रयोग किया
जाता है. इसमें मौजूद कैल्शियम,
आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए-बी-सी, लिनोलेनिक ऐसिड, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और एंटी-ऑक्सीडेंट इसे बेहद लाभप्रद बनाते हैं.
5. बेल - बेल
अथार्त वुड एप्पल आध्यात्मिक दृष्टि से पूजनीय होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी
भरपूर है. कफनाशक प्रवृति होने के कारण बेल पेट के लिए पूर्ण रूप से औषधि का कार्य
करता है. बेल का जूस गर्मियों में शरीर को तरोताजा बनाये रखने में बेहद लाभप्रद
है. यह विटामिन सी, बीटा-कैरोटिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, प्रोटीन आदि का उत्तम
स्त्रोत है.
6. आलूबुखारा – खट्टा-मीठा फल आलूबुखारा, जिसे प्लम के नाम
से भी जाना जाता है, बहुत से पोषक तत्वों से भरपूर है. आलूबुखारा में मौजूद
पोटैशियम, डाइटरी फाइबर, एंथोसाईनिन जैसे तत्त्व तो पाए जाते ही हैं, साथ ही आलूबुखारा
में कार्बोहाइड्रेट की अधिक तथा कैलोरी और फैट की मात्रा बहुत कम होती है. फ्लोरिडा एवं ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के अनुसार इसमें मौजूद कैल्शियम इसे हड्डियों
के स्वास्थ्य के लिए खास बनाता है.
शरीर को शीतलता प्रदान करती
कुछ मौसमी सब्जियां
1. तोरई – तोरई जिसे ‘तुरई’ व ‘तुरूई’ के नाम से भी जाना जाता है. यह सर्वत्र भारतवर्ष
में सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है. आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त व कफ़ दोष को
समाप्त करती है. तराई को सब्जी, सूप, चटनी अथवा रायते के रूप में प्रयोग में लाया
जाता है. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, फाइबर आदि
प्रचुर मात्रा में मिलते हैं.
2. खीरा - शरीर की आन्तरिक तपन को शांत करने में खीरा
सर्वाधिक सहायक होता है. जिसे केवल भारत में ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में लोग
प्राय: 12 महीने सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं, परन्तु ग्रीष्म ऋतु से यह
ताजा व सरल रूप से बाज़ार में उपलब्ध होता है. खीरे में मिनरल्स, विटामिन्स, कॉपर,
पोटैशियम के साथ ही जल की मात्रा अत्याधिक होती है.
3. करेला - विभिन्न पोषक तत्वों जैसे विटामिन ए-सी,
पोटैशियम, मैग्नीशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट, आयरन, कैल्शियम से भरपूर करेला सम्पूर्ण
भारत में सब्जी व अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. करेला स्वाद में बेहद
कड़वा होता है परन्तु यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है.
4. पुदीना – उच्च एंटी-ऑक्सीडेंट क्षमता से भरपूर पुदीना
एक हर्ब के तौर पर भारत में प्रयोग किया जाता है. इसमें 85 प्रतिशत जल की मात्रा
के साथ ही यह कैल्शियम, फास्फोरस तथा आयरन की प्राप्ति का अच्छा साधन
है. इसमें विटामिन ए भी बहुत अधिक होता है जो कि कैरोटिन के रूप में उपस्थित रहता
है, साथ ही पुदीने में प्रोटीन व विटामिन सी भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स में हुए एक अध्ययन के अनुसार पुदीना श्वसन तंत्र के रोगों के लिए रामबाण
औषधि है.
5. ककड़ी – खीरे की ही भांति ककड़ी में भी जल की मात्रा बेहद अधिक
होती है, जिससे शरीर में शीतलता बनी रहती है और मष्तिष्क भी तनाव मुक्त रहता है.
सुपरफ़ूड कही जाने वाली ककड़ी में विटामिन बी-बी2-बी3-बी5-बी6-सी, फोलिक एसिड,
कैल्शियम, के साथ ही प्रचुर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं, जो हमारी
प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखते हैं.
पेय पदार्थों के जरिये मई
के उमस भरे मौसम में भी बनाए अपने तन-मन को तरोताजा
1. नारियल पानी – गर्मियों के सर्वाधिक लोकप्रिय नारियल पानी के एक गिलास में लगभग 50 ग्राम कैलोरी और 10
ग्राम प्राकृतिक शर्करा होती है. इसमें पोटेशियम, मैग्नेशियम, कैल्शियम और मैगनीज़
प्रचुर मात्रा में होते है, साथ ही नारियल पानी कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन के साथ
साथ बहुत से विटामिन और मिनरल्स का खजाना भी है.
2. आम पन्ना – भुने कच्चे आम से तैयार शर्बत आम पन्ना न
केवल स्वाद में बल्कि गुणों में भी अव्वल है. एक गिलास आम पन्ना में लगभग 180
कैलोरी पाई जाती है और यह कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए-बी1-बी2-सी आदि
से भी भरपूर होने के साथ साथ आयरन,
सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों से भी
युक्त हैं.
3. बेल शरबत – बेल के गुदे से तैयार किया जाने वाला रस
आयुर्वेद के अनुसार शीतलता और स्फूर्ति देने के साथ साथ लू से भी बचाव करता है. बेल
में प्रोटीन, बीटा-कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है.
4. गुलाब शरबत – प्राचीन समय से देशी गुलाब की पंखुड़ियों का
प्रयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता रहा है और इसके शरबत को गर्मियों के मौसम
में औषधि के रूप में देखा जाता है. गुलाब की पंखुड़ियों, मिश्री और पीपल के वृक्ष
की टहनियां, पत्ती और फल मिला कर उबल कर बनाया गया शर्बत शरीर से अंदरूनी गर्मी को
शांत करता है और मष्तिष्क को तरोताजा रखने में भी सहायक है.
5. खसखस का शरबत – सुगन्धित घास खसखस की तासीर ठंडी होने के
कारण आयुर्वेद में इसे संदीपन, स्निग्धता से भरपूर, शीतल माना गया है और भारत में
इसे विभिन्न रूप में उपयोग में लाया जाया है.
3. योगासन एवं प्राणायाम से पाएं अंदरूनी ठंडक
भारत की बेहद
प्राचीन पद्धति योग से तन और मन को स्वस्थ रखा जा सकता है और गर्मी की उष्णता को
भी अल्प करने में भी योगासन और प्राणायाम सहायक माने जाते हैं. व्यायाम हमारी
जीवनशैली का महत्वपूर्ण अंग माना गया है और योगाभ्यास द्वारा शरीर की इम्युनिटी
में भी वृद्धि की जाती है, जिससे शरीर विभिन्न रोगों से लड़ने में सक्षम हो
सके. इसी दृष्टिकोण से हमें स्वस्थ शरीर व गर्मी से राहत पाने के लिए ऋतुचर्या के
अनुसार प्राणायाम व आसनों को उपयोग में लाना चाहिए :
चंद्रभेदी प्राणायाम
शरीर के नर्वस
सिस्टम को शीतलता प्रदान करने वाला यह प्राणायाम बेहद हितकारी है. गर्मियों में
इसके नियमित रूप से अभ्यास से निम्न लाभ होते हैं..
1. चंद्र नाडी की
क्रियाशीलता बढ़ने से समस्त नाडी तंत्र में शीतलता बढती है.
2. पेट की गर्मी
समाप्त होती है, जिससे गर्मी से उत्पन्न मुंह के छाले भी ठीक होते हैं.
3. चरम रोगों,
नेत्र रोगों में यह बेहद लाभप्रद है.
शीतली प्राणायाम
शीतली प्राणायाम
अर्थात शरीर को शीतलता प्रदान करना. इसके लाभ इस प्रकार हैं..
1. इस प्राणायाम
के माध्यम से व्यक्ति तनावमुक्त होता है.
2. शरीर के
तापमान को नियंत्रित रखने के लिए यह बेहद उपयोगी होता है.
3. यह प्राणायाम
त्वचा एवं नेत्र सम्बन्धी रोगों के लिए भी लाभदायक है.
अनुलोम विलोम
प्राणायाम
श्वासों को साधने
के लिए किया जाने वाले इस प्राणायाम के अनगिनत लाभ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है..
1. इस प्राणायाम
के द्वारा व्यक्ति अपने शरीर की ऊर्जा प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने में
सहायक होता है.
2. इसके अभ्यास
से कुछ ही समय में व्यक्ति का मन स्थिर व शांत होता है.
3. अनुलोम विलोम
प्राणायाम से तनाव व थकान से भी राहत मिलती है.
4. यह शरीर के
तापमान को नियंत्रित रखने में भी कारगर सिद्ध होता है.
शीतकारी
प्राणायाम
मुख से “ओ” का आकार बनाकर साँस लेने से जीभ के द्वारा शीतल वायु शरीर के अंदर प्रवेश करती
है, इसी प्रक्रिया को शीतकारी
प्राणायाम कहा जाता है.
1. इस प्राणायाम के
माध्यम से व्यक्ति को गर्मी से राहत मिलती है.
2. मुंह को खोलकर
तथा जीभ को बाहर निकाल कर मुंह के द्वारा गहरी साँस लेने से ठंडी हवा का शरीर में
समाहित होती है, जो गर्मी के लिए
बेहद उपयोगी होता है.
इन सभी
प्राणायामों के साथ साथ शशांकासन, मत्सयासन, चक्रासन, धनुरासन, ताड़ासन जैसे सरल
आसन भी अपनी दैनिक चर्या में शामिल कर सकते हैं. योग करते समय कुछ नियमों का पालन
अवश्य करें, जिससे योग का लाभ कईं गुना अधिक बढ़ जाएगा..
1. कोशिश करें कि
प्रात:काल के समय खुली हवा में प्राणायाम करें.
2. योग के समय
सूती एवं ढीले वस्त्रों को धारण करें.
3. योग के तुरंत
बाद कभी स्नान नहीं करें.
4. कोई भी योग या
आसन पूर्ण विधि से एवं बेहद धीरे धीरे सामर्थ्यानुसार करें.
5. योग करने से
पूर्व भोजन ग्रहण नहीं करें, साथ ही योग के दौरान या एकदम बाद ठंडा पानी पीना भी
स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है.
6. गर्भवती महिलाएं,
बीमार एवं बुजुर्ग व्यक्ति, तीन साल से छोटे बच्चे अथवा किसी क्रोनिक बीमारी से
पीड़ित व्यक्ति योग केवल किसी निरीक्षक की निगरानी में ही करें.
4. मई माह में होने वाले रोग एवं उनके आयुर्वेदिक समाधान
प्रचंड गर्मियों के
आगमन के साथ ही शरीर में भी ऋतु परिवर्तन का असर दिखाई देने लगता है. वातावरण में
तपिश के कारण विभिन्न संक्रामक बीमारियां भी फैलने लगती हैं. शरीर की प्रतिरोधक
क्षमता पर भी इस मौसम में काफी प्रभाव पड़ता है. मई माह में होने वाली मुख्य
बीमारियों को नजरंदाज न कर के उपयुक्त चिकित्सीय सलाह व आयुर्वेद के माध्यम से
उनका निदान करना बेहद आवश्यक होता है.
सनबर्न –
सूर्य की
अल्ट्रावायलेट किरणों के सीधे संपर्क में आने से त्वचा में मौजूद मेलेनिन नामक
तत्त्व नष्ट हो जाता है और त्वचा झुलस जाती है. यह भाप से जली हुई त्वचा के ही
समान कष्टकारक होता है.
डिहाइड्रेशन -
गर्मी के मौसम
में जिन व्यक्तियों को अत्यधिक पसीना आता है, उन्हें डिहाइड्रेशन की समस्या का खतरा अत्यधिक होता है.
शरीर से आवश्यक खनिज व तरल पदार्थ की हानि को डिहाइड्रेशन कहा जाता है. इसके कारण
व्यक्ति के शरीर में जल की कमी होने लगती है.
फ़ूड पोईजनिंग –
गर्मियों में भोजन जल्दी ही
खराब हो जाता है और उसमें तेजी से बैक्टीरिया व सूक्ष्म जीव पनपते हैं. बासी,
फरमेंटिड भोजन ग्रहण करने से अक्सर फ़ूड पोईजनिंग की समस्या गर्मियों में अत्याधिक
देखने को मिलती है. इसके रोगियों में पेट दर्द, जी मिचलाना, लूज़ मोशन, घबराहट,
अनिय्न्त्रीर रक्तचाप, सर दर्द, कमजोरी, अपच जैसे लक्ष्ण देखे जाते हैं.
ऑय फ्लू अथवा नेत्र संक्रमण
–
सर्दियों में
मीठी लगने वाली धूप गर्मियों में शरीर को बेहद प्रभावित करती है. तेज धूप के कारण
हमारी आंखे भी संक्रमित होती है. आँखों का संक्रमण किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को
हो सकता है. यदि इस से भी निदान नही मिलता तो चिकित्सकीय परामर्श लेने में कोताही
न बरतें. आंखें लाल होना, सूज जाना, आँखों में लगातार पीड़ा होना, पानी आना जैसे
लक्षण ऑय फ्लू के रोगियों में आम हैं.
मौसमी फ्लू –
ताप में अत्याधिक
वृद्धि के चलते शारीरिक ऊर्जा का ह्रास होने से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर
होने लगती है और नतीजतन हमारा शरीर आसानी से वातावरण में पनप रहे वायरस के संपर्क
में आ जाता है और मौसमी बुखार, जुखाम, खांसी इत्यादि का सामना हमें करना पड़ सकता
है.
5. चलिए बढ़ाएं एक कदम प्रकृति की ओर
मौसम बदलते ही
चलने वाली ठंडी हवा का मुकाबला एयर कंडीशनर की कृत्रिम हवा कभी नहीं कर सकती, कोई
भी सुगन्धित होम फ्रेशनर पहली बारिश से आने वाली मिट्टी की खुशबू को चुनौती नहीं
दे सकता...प्रकृति का सान्निध्य बिल्कुल माँ की गोद की तरह है, जिसमें मिलने वाली
आत्मिक शांति का अनुभव हम उससे जुड़ कर ही कर सकते हैं. आज हम अपनी भोग विलासिता के
चलते इतने कृत्रिम हो गए हैं कि कोई भी मौसम हमारे लिए बस न्यूज़ हेडलाइंस में सिमट
कर रह जाता है, हम अपने आलीशान डाइनिंग टेबल पर फ़ास्ट फ़ूड का आनंद लेते हुए हर
मौसम की चर्चा तो करते है, परन्तु उसे महसूस करना जरूरी नहीं समझते.
तो क्यों न हर
बदलते मौसम में से थोडा सा वक्त निकाल कर हम कुदरत से जुड़ने का प्रयास करें, बस इन
कुछ छोटे छोटे तरीकों को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाकर हम न केवल प्रकृति से
जुडाव रख सकते हैं बल्कि अपने और परिवारिकजनों के स्वास्थ्य को भी बेहतर बना सकते
हैं...
1. फ्रीज के ठंडे
पानी के स्थान पर मिट्टी के मटकों या सुराही में रखा पानी पियें, ऐसा करके आप अपने
बच्चों को भी मिट्टी की सौंधी सी महक से जोड़ पाएंगे और हमारे कुम्हारों की
जीविकापार्जन में भी सहायक होंगे.
2. आपने “खस की
टाटी”, का नाम बहुतायत सुना होगा, भारत के मरुस्थलीय भूभागों में उत्पन्न यह घास
घनी और खुशबूदार होती है, जिससे बनाये गये पर्दों को दरवाजों और खिड़की पर लगाकर,
उन्हें पानी से गीला कर प्राकृतिक रूप से वातावरण के ताप को कम किया जा सकता है.
जिससे एसी, फ्रीज़ पर से निर्भरता कम हो सके.
3. अपने फलों और
सब्जियों को बड़े बाज़ारों या मार्ट आदि से खरीदने के स्थान पर सीधे किसानों से
खरीदने का प्रयास करें और उन्हें आर्गेनिक खेती के लिए अग्रसर करें. जिस दिन आपका
भोजन सीधे खेत से आपकी प्लेट तक आने लगेगा, यकीन मानिये आपके आधे से अधिक रोग भी
हवा हो जायेंगे.
4. विचार करें
प्रकृति ने प्रत्येक मौसम के लिहाज से आहार का सृजन किया है, इसलिए आप भी केवल
मौसमी आहार ही ग्रहण करें और गैर मौसमी खाद्य पदार्थों को न कहें.
5. पौधों-वृक्षों
को अपने आस पास स्थान दें, जगह कम है तब भी घर में हरियाली लाने वाली लताओं, छायादार
पौधों को कमरों में रखें. एलोवेरा, नाग पौधा, फ़र्न, एरेका पाम ट्री, लेमन बाम,
केटनिप कुछ ऐसे पौधें हैं, जो बिना अधिक स्थान लिए वातावरण को स्वच्छ एवं शीतल रखते हैं.
6. अपनी सहनीय
क्षमता को अच्छे आहार-विहार से पोषित करें और हर मौसम का आनंद लें. किसी भी मौसम
की निरंतर निंदा करते रहने से मौसम पर असर भले ही न पड़े, किन्तु आपकी मानसिकता में
नकारात्मकता जरूर आयेगी, जो आपको उस मौसम के लाभों से वंचित कर देगी. जैसे कि सोचें वर्षा हमें आनंद क्यों देती है? जवाब आसान है, क्योंकि बारिश गर्मी के बाद ही होती है.
स्वास्थ्य किसी भी प्रकार के संचित धन से बढ़कर है, अत: अपने स्वास्थ्य को पोषित करने का एक छोटा सा प्रयास अवश्य करें. उपरोक्त उपायों को अमल में लाते हुए अपने जीवन में परिवर्तन को महसूस करें. प्रकृति के सान्निध्य में रहते हुए प्रत्येक मौसम और ऋतु का भरपूर आनंद लें और स्वयं को तन-मन से सेहतमंद बनाएं.
By Deepika Chaudhary Contributors Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
हिंदी साहित्य के मूर्धन्य छायाकालीन साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्यग्रंथ “अनामिका” में जिस प्रकार भारत के ग्रीष्मकालीन मौसम का वर्णन किया गया, उससे यह ज्ञात होता है कि समस्त उत्तर भारत में मई माह से सूर्य का ताप इतना प्रचंड हो जाता है कि जीव-निर्जीव सभी त्रस्त दिखाई पड़ते हैं और गर्मी के इस आतप से राहत पाने के लिए छाया व शीतलता का सहारा खोजते हैं.
आज के इस भागदौड़ के समय में प्रत्येक व्यक्ति तरक्की की राह पर आगे बढ़ना चाहता है और ऐसे में हम अपने स्वास्थ्य को ताक पर रख देते हैं. ऋतुनुसार जीवनशैली के अभाव में भले ही हम करियर की दृष्टि से प्रगति कर जायें, पर जरा सोचिये ऐसे धन का क्या लाभ, जिसका व्यय क्लिनिक, हॉस्पिटल्स या दवाइयों में ही होता रहे. आपका स्वास्थ्य अनमोल है और इसे संरक्षित करना भी आप ही के हाथों में है. आप हर मौसम में दुरुस्त बने रहें, इसके लिए बैलटबॉक्सइंडिया प्रस्तुत करता है मई स्वास्थ्य विशेषांक..तो आप भी जानें मई के गर्म मौसम में भी अचूक स्वास्थ्य रूपी शीतलता से तरोताजा रहने के कुछ सरल, मौसमी, घरेलू और प्राकृतिक तौर तरीके.
जैसे ही वसंत ऋतु की मादकता समाप्त होती है, ग्रीष्म की प्रखरता बढ़ने लगती है और मई के मध्य से तो उत्तर पश्चिमी भारत में अधिकतम पारा 48 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाता है. हिंदी कैलेंडर के हिसाब से देखें तो मई माह बैसाख और ज्येष्ठ का संगम है, जिसमें सूर्य के कर्क रेखा के नजदीक आने से तापमान का अधिकतम बिंदु भी दक्षिण से उत्तर की और बढ़ता चला जाता है और नतीजा मई के अंत तक झुलसा देने वाली गर्मी के रूप में दिखाई देता है. मध्य मई से राजस्थान से चलने वाली गर्म और शुष्क हवाएं लू के रूप में समस्त उत्तर पश्चिमी भारत में चलने लगती हैं, जिससे वातावरणीय ताप और उमस अत्याधिक बढ़ जाते है.
मई माह में जलवायु में हुए व्यापक परिवर्तन के कारण हमारे शरीर में भी बहुत से परिवर्तन होते हैं, जिनमें मुख्य इस प्रकार हैं..
1. हमारा पाचन तंत्र गर्मियों में प्राय: कमजोर ही रहता है, जिससे भूख कम लगती है.
2. सूर्य के बढ़ते ताप के कारण शरीर में ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है और अधिक थकान महसूस होती है.
3. शरीर में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन भी मई में आम है, अधिक पसीना निकलने से सोडियम की मात्रा कम रहती है, साथ ही शरीर में पोटैशियम, क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड और बायकार्बोनेट का संतुलन भी गर्मियों में बिगड़ जाता है.
4. आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्मऋतु में कफ का क्षय तथा वात तत्त्व की शरीर में अधिकता रहती है.
मई के आरम्भ से ही दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं, मौसम में भी व्यापक स्तर पर परिवर्तन आता है, जिसका असर खान-पान पर भी पड़ता है. हमारी परंपरागत आयुर्वेदिक नियमावली के अनुसार गर्मियों में ठोस आहार का सेवन कम से कम और पेय पदार्थों का सेवन अत्याधिक करना हितकर माना जाता है, क्योंकि इस समय प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में जलतत्त्व कम होने लगता है और शारीरिक ऊर्जा का ह्रास होना भी मई में सामान्य है. ऐसे में आवश्यक है कि हमारे भोजन में मौसमी फलों, सब्जियों और पेय पदार्थों की अधिकता हो.
मौसमी फलों से पाएं स्फूर्ति
गर्मियों में मिलने वाले अधिकांश फलों में पानी की मात्रा अधिक होती है, जिससे शरीर को तरावट और नवऊर्जा मिलती है. मई माह में विशेषकर उत्तर भारत में पाए जाने वाले प्रमुख फलों में आम, तरबूजा, खरबूजा, फालसा, जामुन, मौसमी, बेल, आलूबुखारा आदि हैं, जिनके नियमित सेवन से शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होती है.
1. आम – विभिन्न किस्मों एवं रंगों में मिलने वाले आम को इसके रसीले एवं बेमिसाल स्वाद के कारण फलों का राजा कहा जाता है. गर्मियों में आम को कच्चा एवं पक्का, दोनों ही रूप में आहार में शामिल किया जाता है. जहां मेंगो शेक, स्मूदी, आइसक्रीम आदि में प्रयोग होकर आम बच्चों का पसंदीदा फल है, वहीं कच्चे आम की चटनी या उत्तर प्रदेश के बहुत से ग्रामों में बनाई जाने वाली कच्ची कैरी की सब्जी स्वाद और पोषण से भरपूर होती है. आम में बीटा कैरोटीन, विटामिन ए-ई-सी, पोटैशियम रेशे, सेलेनियम, पेक्टिन, आयरन एवं पोटैशियम के साथ ही पाचन एंजाइम भी प्रचुर मात्रा में होते हैं.
2. तरबूज – लगभग 90 प्रतिशत जल की मात्रा को अवशोषित किये हुए तरबूज में थैमाइन, रिबोफ़्लिविन, नियासिन, विटामिन बी 6, पैंटोथेनिक एसिड, कोलीन, लाइकोपीन, बीटेन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, मैंगनीज, सेलेनियम आदि तत्वों की प्रचुरता होती है. राष्ट्रीय तरबूज संवर्धन बोर्ड के अनुसार तरबूज में किसी भी अन्य फल या सब्जी की तुलना में अधिक लाइकोपीन होता है, जो इसे बेहद स्वास्थ्यवर्धक बनाता है.
3. खरबूजा – खरबूजे को भी तरबूज के ही परिवार से संबंधित माना जाता है, क्योंकि इसमें भी जलतत्व भरपूर पाया जाता है. यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के अनुसार, नारंगी रंग के खरबूजे में गाजर के ही समान बीटा-कैरोटिन पाया जाता है. साथ ही इसमें विटामिन सी, फोलेट, फाइबर, पोटैशियम, जिंक, कॉपर, सेलेनियम, विटामिन के, कैल्शियम आदि तत्वों का भी सम्मिश्रण होता है.
4. फालसा – तिलासिया परिवार के सदस्य फालसे को भारत के स्वदेशी फल के रूप में जाना जाता है, जो स्थानीय तौर पर अधिक लोकप्रिय फल है. आमतौर पर मई-जून के महीने में पकने वाले फालसे को शर्बत के रूप में बहुतायत प्रयोग किया जाता है. इसमें मौजूद कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए-बी-सी, लिनोलेनिक ऐसिड, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और एंटी-ऑक्सीडेंट इसे बेहद लाभप्रद बनाते हैं.
5. बेल - बेल अथार्त वुड एप्पल आध्यात्मिक दृष्टि से पूजनीय होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है. कफनाशक प्रवृति होने के कारण बेल पेट के लिए पूर्ण रूप से औषधि का कार्य करता है. बेल का जूस गर्मियों में शरीर को तरोताजा बनाये रखने में बेहद लाभप्रद है. यह विटामिन सी, बीटा-कैरोटिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, प्रोटीन आदि का उत्तम स्त्रोत है.
6. आलूबुखारा – खट्टा-मीठा फल आलूबुखारा, जिसे प्लम के नाम से भी जाना जाता है, बहुत से पोषक तत्वों से भरपूर है. आलूबुखारा में मौजूद पोटैशियम, डाइटरी फाइबर, एंथोसाईनिन जैसे तत्त्व तो पाए जाते ही हैं, साथ ही आलूबुखारा में कार्बोहाइड्रेट की अधिक तथा कैलोरी और फैट की मात्रा बहुत कम होती है. फ्लोरिडा एवं ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के अनुसार इसमें मौजूद कैल्शियम इसे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए खास बनाता है.
शरीर को शीतलता प्रदान करती कुछ मौसमी सब्जियां
1. तोरई – तोरई जिसे ‘तुरई’ व ‘तुरूई’ के नाम से भी जाना जाता है. यह सर्वत्र भारतवर्ष में सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है. आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त व कफ़ दोष को समाप्त करती है. तराई को सब्जी, सूप, चटनी अथवा रायते के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, फाइबर आदि प्रचुर मात्रा में मिलते हैं.
2. खीरा - शरीर की आन्तरिक तपन को शांत करने में खीरा सर्वाधिक सहायक होता है. जिसे केवल भारत में ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में लोग प्राय: 12 महीने सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं, परन्तु ग्रीष्म ऋतु से यह ताजा व सरल रूप से बाज़ार में उपलब्ध होता है. खीरे में मिनरल्स, विटामिन्स, कॉपर, पोटैशियम के साथ ही जल की मात्रा अत्याधिक होती है.
3. करेला - विभिन्न पोषक तत्वों जैसे विटामिन ए-सी, पोटैशियम, मैग्नीशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट, आयरन, कैल्शियम से भरपूर करेला सम्पूर्ण भारत में सब्जी व अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. करेला स्वाद में बेहद कड़वा होता है परन्तु यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है.
4. पुदीना – उच्च एंटी-ऑक्सीडेंट क्षमता से भरपूर पुदीना एक हर्ब के तौर पर भारत में प्रयोग किया जाता है. इसमें 85 प्रतिशत जल की मात्रा के साथ ही यह कैल्शियम, फास्फोरस तथा आयरन की प्राप्ति का अच्छा साधन है. इसमें विटामिन ए भी बहुत अधिक होता है जो कि कैरोटिन के रूप में उपस्थित रहता है, साथ ही पुदीने में प्रोटीन व विटामिन सी भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स में हुए एक अध्ययन के अनुसार पुदीना श्वसन तंत्र के रोगों के लिए रामबाण औषधि है.
5. ककड़ी – खीरे की ही भांति ककड़ी में भी जल की मात्रा बेहद अधिक होती है, जिससे शरीर में शीतलता बनी रहती है और मष्तिष्क भी तनाव मुक्त रहता है. सुपरफ़ूड कही जाने वाली ककड़ी में विटामिन बी-बी2-बी3-बी5-बी6-सी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, के साथ ही प्रचुर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं, जो हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखते हैं.
पेय पदार्थों के जरिये मई के उमस भरे मौसम में भी बनाए अपने तन-मन को तरोताजा
1. नारियल पानी – गर्मियों के सर्वाधिक लोकप्रिय नारियल पानी के एक गिलास में लगभग 50 ग्राम कैलोरी और 10 ग्राम प्राकृतिक शर्करा होती है. इसमें पोटेशियम, मैग्नेशियम, कैल्शियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होते है, साथ ही नारियल पानी कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन के साथ साथ बहुत से विटामिन और मिनरल्स का खजाना भी है.
2. आम पन्ना – भुने कच्चे आम से तैयार शर्बत आम पन्ना न केवल स्वाद में बल्कि गुणों में भी अव्वल है. एक गिलास आम पन्ना में लगभग 180 कैलोरी पाई जाती है और यह कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए-बी1-बी2-सी आदि से भी भरपूर होने के साथ साथ आयरन, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों से भी युक्त हैं.
3. बेल शरबत – बेल के गुदे से तैयार किया जाने वाला रस आयुर्वेद के अनुसार शीतलता और स्फूर्ति देने के साथ साथ लू से भी बचाव करता है. बेल में प्रोटीन, बीटा-कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है.
4. गुलाब शरबत – प्राचीन समय से देशी गुलाब की पंखुड़ियों का प्रयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता रहा है और इसके शरबत को गर्मियों के मौसम में औषधि के रूप में देखा जाता है. गुलाब की पंखुड़ियों, मिश्री और पीपल के वृक्ष की टहनियां, पत्ती और फल मिला कर उबल कर बनाया गया शर्बत शरीर से अंदरूनी गर्मी को शांत करता है और मष्तिष्क को तरोताजा रखने में भी सहायक है.
5. खसखस का शरबत – सुगन्धित घास खसखस की तासीर ठंडी होने के कारण आयुर्वेद में इसे संदीपन, स्निग्धता से भरपूर, शीतल माना गया है और भारत में इसे विभिन्न रूप में उपयोग में लाया जाया है.
भारत की बेहद प्राचीन पद्धति योग से तन और मन को स्वस्थ रखा जा सकता है और गर्मी की उष्णता को भी अल्प करने में भी योगासन और प्राणायाम सहायक माने जाते हैं. व्यायाम हमारी जीवनशैली का महत्वपूर्ण अंग माना गया है और योगाभ्यास द्वारा शरीर की इम्युनिटी में भी वृद्धि की जाती है, जिससे शरीर विभिन्न रोगों से लड़ने में सक्षम हो सके. इसी दृष्टिकोण से हमें स्वस्थ शरीर व गर्मी से राहत पाने के लिए ऋतुचर्या के अनुसार प्राणायाम व आसनों को उपयोग में लाना चाहिए :
चंद्रभेदी प्राणायाम
शरीर के नर्वस सिस्टम को शीतलता प्रदान करने वाला यह प्राणायाम बेहद हितकारी है. गर्मियों में इसके नियमित रूप से अभ्यास से निम्न लाभ होते हैं..
1. चंद्र नाडी की क्रियाशीलता बढ़ने से समस्त नाडी तंत्र में शीतलता बढती है.
2. पेट की गर्मी समाप्त होती है, जिससे गर्मी से उत्पन्न मुंह के छाले भी ठीक होते हैं.
3. चरम रोगों, नेत्र रोगों में यह बेहद लाभप्रद है.
शीतली प्राणायाम
शीतली प्राणायाम अर्थात शरीर को शीतलता प्रदान करना. इसके लाभ इस प्रकार हैं..
1. इस प्राणायाम के माध्यम से व्यक्ति तनावमुक्त होता है.
2. शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए यह बेहद उपयोगी होता है.
3. यह प्राणायाम त्वचा एवं नेत्र सम्बन्धी रोगों के लिए भी लाभदायक है.
अनुलोम विलोम प्राणायाम
श्वासों को साधने के लिए किया जाने वाले इस प्राणायाम के अनगिनत लाभ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है..
1. इस प्राणायाम के द्वारा व्यक्ति अपने शरीर की ऊर्जा प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक होता है.
2. इसके अभ्यास से कुछ ही समय में व्यक्ति का मन स्थिर व शांत होता है.
3. अनुलोम विलोम प्राणायाम से तनाव व थकान से भी राहत मिलती है.
4. यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में भी कारगर सिद्ध होता है.
शीतकारी प्राणायाम
मुख से “ओ” का आकार बनाकर साँस लेने से जीभ के द्वारा शीतल वायु शरीर के अंदर प्रवेश करती है, इसी प्रक्रिया को शीतकारी प्राणायाम कहा जाता है.
1. इस प्राणायाम के माध्यम से व्यक्ति को गर्मी से राहत मिलती है.
2. मुंह को खोलकर तथा जीभ को बाहर निकाल कर मुंह के द्वारा गहरी साँस लेने से ठंडी हवा का शरीर में समाहित होती है, जो गर्मी के लिए बेहद उपयोगी होता है.
इन सभी प्राणायामों के साथ साथ शशांकासन, मत्सयासन, चक्रासन, धनुरासन, ताड़ासन जैसे सरल आसन भी अपनी दैनिक चर्या में शामिल कर सकते हैं. योग करते समय कुछ नियमों का पालन अवश्य करें, जिससे योग का लाभ कईं गुना अधिक बढ़ जाएगा..
1. कोशिश करें कि प्रात:काल के समय खुली हवा में प्राणायाम करें.
2. योग के समय सूती एवं ढीले वस्त्रों को धारण करें.
3. योग के तुरंत बाद कभी स्नान नहीं करें.
4. कोई भी योग या आसन पूर्ण विधि से एवं बेहद धीरे धीरे सामर्थ्यानुसार करें.
5. योग करने से पूर्व भोजन ग्रहण नहीं करें, साथ ही योग के दौरान या एकदम बाद ठंडा पानी पीना भी स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है.
6. गर्भवती महिलाएं, बीमार एवं बुजुर्ग व्यक्ति, तीन साल से छोटे बच्चे अथवा किसी क्रोनिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति योग केवल किसी निरीक्षक की निगरानी में ही करें.
प्रचंड गर्मियों के आगमन के साथ ही शरीर में भी ऋतु परिवर्तन का असर दिखाई देने लगता है. वातावरण में तपिश के कारण विभिन्न संक्रामक बीमारियां भी फैलने लगती हैं. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी इस मौसम में काफी प्रभाव पड़ता है. मई माह में होने वाली मुख्य बीमारियों को नजरंदाज न कर के उपयुक्त चिकित्सीय सलाह व आयुर्वेद के माध्यम से उनका निदान करना बेहद आवश्यक होता है.
सनबर्न –
सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के सीधे संपर्क में आने से त्वचा में मौजूद मेलेनिन नामक तत्त्व नष्ट हो जाता है और त्वचा झुलस जाती है. यह भाप से जली हुई त्वचा के ही समान कष्टकारक होता है.
डिहाइड्रेशन -
गर्मी के मौसम में जिन व्यक्तियों को अत्यधिक पसीना आता है, उन्हें डिहाइड्रेशन की समस्या का खतरा अत्यधिक होता है. शरीर से आवश्यक खनिज व तरल पदार्थ की हानि को डिहाइड्रेशन कहा जाता है. इसके कारण व्यक्ति के शरीर में जल की कमी होने लगती है.
फ़ूड पोईजनिंग –
गर्मियों में भोजन जल्दी ही खराब हो जाता है और उसमें तेजी से बैक्टीरिया व सूक्ष्म जीव पनपते हैं. बासी, फरमेंटिड भोजन ग्रहण करने से अक्सर फ़ूड पोईजनिंग की समस्या गर्मियों में अत्याधिक देखने को मिलती है. इसके रोगियों में पेट दर्द, जी मिचलाना, लूज़ मोशन, घबराहट, अनिय्न्त्रीर रक्तचाप, सर दर्द, कमजोरी, अपच जैसे लक्ष्ण देखे जाते हैं.
ऑय फ्लू अथवा नेत्र संक्रमण –
सर्दियों में मीठी लगने वाली धूप गर्मियों में शरीर को बेहद प्रभावित करती है. तेज धूप के कारण हमारी आंखे भी संक्रमित होती है. आँखों का संक्रमण किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकता है. यदि इस से भी निदान नही मिलता तो चिकित्सकीय परामर्श लेने में कोताही न बरतें. आंखें लाल होना, सूज जाना, आँखों में लगातार पीड़ा होना, पानी आना जैसे लक्षण ऑय फ्लू के रोगियों में आम हैं.
मौसमी फ्लू –
ताप में अत्याधिक वृद्धि के चलते शारीरिक ऊर्जा का ह्रास होने से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने लगती है और नतीजतन हमारा शरीर आसानी से वातावरण में पनप रहे वायरस के संपर्क में आ जाता है और मौसमी बुखार, जुखाम, खांसी इत्यादि का सामना हमें करना पड़ सकता है.
मौसम बदलते ही चलने वाली ठंडी हवा का मुकाबला एयर कंडीशनर की कृत्रिम हवा कभी नहीं कर सकती, कोई भी सुगन्धित होम फ्रेशनर पहली बारिश से आने वाली मिट्टी की खुशबू को चुनौती नहीं दे सकता...प्रकृति का सान्निध्य बिल्कुल माँ की गोद की तरह है, जिसमें मिलने वाली आत्मिक शांति का अनुभव हम उससे जुड़ कर ही कर सकते हैं. आज हम अपनी भोग विलासिता के चलते इतने कृत्रिम हो गए हैं कि कोई भी मौसम हमारे लिए बस न्यूज़ हेडलाइंस में सिमट कर रह जाता है, हम अपने आलीशान डाइनिंग टेबल पर फ़ास्ट फ़ूड का आनंद लेते हुए हर मौसम की चर्चा तो करते है, परन्तु उसे महसूस करना जरूरी नहीं समझते.
तो क्यों न हर बदलते मौसम में से थोडा सा वक्त निकाल कर हम कुदरत से जुड़ने का प्रयास करें, बस इन कुछ छोटे छोटे तरीकों को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाकर हम न केवल प्रकृति से जुडाव रख सकते हैं बल्कि अपने और परिवारिकजनों के स्वास्थ्य को भी बेहतर बना सकते हैं...
1. फ्रीज के ठंडे पानी के स्थान पर मिट्टी के मटकों या सुराही में रखा पानी पियें, ऐसा करके आप अपने बच्चों को भी मिट्टी की सौंधी सी महक से जोड़ पाएंगे और हमारे कुम्हारों की जीविकापार्जन में भी सहायक होंगे.
2. आपने “खस की टाटी”, का नाम बहुतायत सुना होगा, भारत के मरुस्थलीय भूभागों में उत्पन्न यह घास घनी और खुशबूदार होती है, जिससे बनाये गये पर्दों को दरवाजों और खिड़की पर लगाकर, उन्हें पानी से गीला कर प्राकृतिक रूप से वातावरण के ताप को कम किया जा सकता है. जिससे एसी, फ्रीज़ पर से निर्भरता कम हो सके.
3. अपने फलों और सब्जियों को बड़े बाज़ारों या मार्ट आदि से खरीदने के स्थान पर सीधे किसानों से खरीदने का प्रयास करें और उन्हें आर्गेनिक खेती के लिए अग्रसर करें. जिस दिन आपका भोजन सीधे खेत से आपकी प्लेट तक आने लगेगा, यकीन मानिये आपके आधे से अधिक रोग भी हवा हो जायेंगे.
4. विचार करें प्रकृति ने प्रत्येक मौसम के लिहाज से आहार का सृजन किया है, इसलिए आप भी केवल मौसमी आहार ही ग्रहण करें और गैर मौसमी खाद्य पदार्थों को न कहें.
5. पौधों-वृक्षों को अपने आस पास स्थान दें, जगह कम है तब भी घर में हरियाली लाने वाली लताओं, छायादार पौधों को कमरों में रखें. एलोवेरा, नाग पौधा, फ़र्न, एरेका पाम ट्री, लेमन बाम, केटनिप कुछ ऐसे पौधें हैं, जो बिना अधिक स्थान लिए वातावरण को स्वच्छ एवं शीतल रखते हैं.
6. अपनी सहनीय क्षमता को अच्छे आहार-विहार से पोषित करें और हर मौसम का आनंद लें. किसी भी मौसम की निरंतर निंदा करते रहने से मौसम पर असर भले ही न पड़े, किन्तु आपकी मानसिकता में नकारात्मकता जरूर आयेगी, जो आपको उस मौसम के लाभों से वंचित कर देगी. जैसे कि सोचें वर्षा हमें आनंद क्यों देती है? जवाब आसान है, क्योंकि बारिश गर्मी के बाद ही होती है.
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