लेखक - अमित कुमार यादव
“तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ , खिलौने दे के बहलाया गया हूँ” ...... शाद अज़ीमाबादी ने जब इन पंक्तियों को कागज के पन्नों पर उकेरा होगा तो उन्होने कभी नहीं सोचा होगा की ये पंक्तियाँ हमारे देश के “लचर” और “लाचार” सूचना के अधिकार को चरितार्थ कर जाएंगी ।
आर टी आई : कब कहाँ कैसे ?
एक ऐसा अधिकार जिसकी मांग 1975 से उठनी शुरू हो गयी थी । देश में दरअसल
अंग्रेजों के शासन में शुरू हुए गोपनियता के अधिनियम का फायदा आजादी के बाद की
चुनी हुई सरकारें उठाती रहीं । देश में संविधान निर्माण के दौरान भी इस अधिनियम
में कोई बदलाव नहीं किया गया जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ा । सरकार कितना पैसा कहाँ
खर्च कर रही है या कैसे काम कर रही है किसी को जानने का अधिकार नहीं था पर 1975 की गर्मियों की शुरुआत मे देश की राजनीति
का पारा कुछ ऐसा चढ़ा की जिसने देश की दशा ओर दिशा दोनों को हमेशा के लिए बदल कर रख
दिया । सन 1971 में
रायबरेली में लोकसभा चुनाव में इन्दिरा गांधी के सामने उनके प्रतिद्वंद्वी
राजनरायण ने उन्हे जीत की चुनौती दी.... राजनारायन अपने प्रदर्शन से इतना जोश में
थे की उन्होने नतीजे आने से पहले ही जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया पर जब नतीजे
आए तो उनके होश उड़ गए और एक बड़े अंतर से इंदिरा गांधी उन्हे हराने में कामयाब हो
गईं और राजनारायन जो अपनी जीत
के प्रति अस्वस्थ थे उन्होने न्यायालय मे इंदिरा को चुनौती दे डाली अब जीसके बाद
भारत में शायद पहली बार किसी उच्च न्यायालय के जज ने अपने प्रधानमंत्री को इतनी
सख्त सजा सुनाई ...... इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस डीएस माथुर ने
अपने आदेश में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों
और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जिसके बाद 1971 में हुए रायबरेली के लोकसभा चुनाव को
निरस्त कर दिया गया यह केस अब सर्वोच्च न्यायल पहुंचा जहां एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला
आया जिसके बाद भारतीय जनता ने पहली बार सूचना के अधिकार को स्वरूप लेते हुए देखा
...
न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक आदेश में
लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों का व्यौरा जनता को प्रदान करने को कहा ।
इस निर्णय ने नागरिको को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया।
इसके बाद के घटनाक्रम ने वर्तमान
सूचना के अधिकार की आधार शीला रख दी और मैग्सैसे अवार्ड विजेता श्रीमती अरूणा रॉय
के नेतृत्व में मजदूर किसान शक्ति संगठन के गठन के बाद सूचना का अधिकार के लिए
वर्ष 1992 में राजस्थान
से भीषण आंदोलन शुरू हुआ अप्रेल 1996 में सूचना के अधिकार की मांग को लेकर चालीस दिन का धरना दिया गया और उसके बाद आंदोलन इतना
ज्वलंत हुआ की राजस्थान सरकार में बेहद दबाब चलते तत्कालीन मुख्य मंत्री अशोक
गहलोत ने वर्ष 2000 में राज्य
स्तर पर सूचना का
अधिकार कानून को हरी झंडी दिखा दी और देखते ही देखते दिल्ली समेत नौ राज्यों
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान,कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, असम, गोवा व मध्यप्रदेश में सूचना का अधिकार
कानून लागू हो गया।
वर्ष 2002 में केन्द्र की राजग सरकार ने सूचना की
स्वतंत्रता विधेयक पारित किया, लेकिन वह राजपत्र में प्रकाशित नहीं होने से कानून का रूप नहीं ले सका। गौर करने वाली बात
है की इस विधेयक में सिर्फ सूचना लेने की स्वतंत्रता दी, सूचना देना या नहीं देना अधिकारी की
मर्जी पर छोड दिया।वर्ष 2004 में
प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के नेतृत्व वाली केन्द्रसरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार
परिषद का गठन किया, जिसने अगस्त 2004 में केन्द्र सरकार को सूचना की स्वतंत्रता
अधिनियम में संशोधन सुझाए और उसी वर्ष यह विधेयक संसद में पेश हो गया। 11 मई 2005 को विधेयक को लोकसभा ने और 12 मई 2005 को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी। 15 जून 2005 को इस पर राष्ट्रपति की सहमति मिलते ही सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 पूरे देश में प्रभावशील हो गया। उक्त
अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) एवं धारा 12, 13, 15, 16, 24, 27, 28 की उपधाराएं (1) एवं (2) तत्काल प्रभाव में आ गई और शेष प्रावधान
अधिनियम बनने की तिथि
से 120 वें दिन
अर्थात् 12 अक्टूबर 2005 से लागू किया गया। प्रत्येक राज्य में
आयोग का गठन करने का प्रावधान रखा गया।
आरटीआई हरियाणा के परिद्रश्य में
हरियाणा सरकार ने हरियाणा सूचना का
अधिकार नियम, 2009 में
संशोधन किया है और नए नियम हरियाणा सूचना का अधिकार (संशोधन) नियम, 2016 कहलाएंगे। संशोधन के अनुसार धारा 6 की उप-धारा (1) के तहत कोई सूचना प्राप्त करने हेतु
आवेदन के साथ 10 रुपये की फीस
लगाई जाएगी और सामान्यत: अनुलग्नकों, राज्य लोक सूचना अधिकारी तथा उस आवेदक के
पता सहित पांच सौ से अधिक शब्द नहीं होंगे। परन्तु कोई भी आवेदन केवल इस आधार पर
रद्द नहीं किया जाएगा कि इसमें पांच सौ से अधिक शब्द हैं।
धारा 7 की उप-धारा (1) के तहत सूचना उपलब्ध करवाने के लिए आवेदक
से ए-4 या ए-3 आकार के कागज पर बनाई गई या प्रतिलिपि की
प्रत्येक पृष्ठ के लिए दो रुपये तथा यदि सूचना उक्त विनिर्दिष्ट से भिन्न बड़े
आकार के कागज पर उपलब्ध करवाई जाती है तो ऐसे कागज की वास्तविक लागत प्रभारित की
जाएगी।
धारा 7 की उप-धारा (5) के तहत सूचना उपलब्ध करवाने के लिए आवेदक
से फ्लॉपी में सूचना उपलब्ध करवाने के लिए 50 रुपये, डिस्किट में सूचना उपलब्ध करवाने के लिए 50 रुपए तथा यदि मांगी गई सूचना ऐसे स्वरूप
में है, जोकि मुद्रित
दस्तावेज में है, जिसकी कीमत
नियत की गई है, तब वह सूचना
मुद्रित दस्तावेज के लिए नियत कीमत प्रभारित करने के बाद उपलब्ध करवाई जाएगी।
बहरहाल, यदि ऐसे
मुद्रित दस्तावेज का केवल उदाहरण या पृष्ठ मांगा गया है, तब प्रति पृष्ठ दो रुपये की फीस प्रभारित
की जाएगी।
रिकॉर्ड के निरीक्षण के लिए कोई फीस
प्रभारित नहीं की जाएगी, यदि ऐसा
निरीक्षण केवल एक घंटे के लिए किया गया है। बहरहाल, यदि निरीक्षण एक घंटे से अधिक की अवधि के
लिए किया गया है तो प्रत्येक पश्चात-वर्ती घंटे या उसके भाग के लिए पांच रुपये फीस
प्रभारित की जाएगी।
सूचना के अधिकार हरियाणा में आम इंसान के
कितना करीब
यह जानने के लिए की हरियाणा सरकार
कितनी फुर्ती के साथ और कितनी सरलता से आमजन की आर्जियों के जवाब देता है
बैलटबॉक्स इंडिया ने एक आरटीआई फ़ाइल की जिसमे कुछ निम्नलिखित बातें सामने आईं
v
हरियाणा के सूचना बाकी राज्यों से
थोड़ा जल्दी प्राप्त हुई
v
सूचना में लिखी हुई जानकारी लगभग
पूरी और विस्तृत थी कोई गोलमोल जवाब नहीं थे
v
हालांकि हमे सूचना पूरी और विस्तृत
मिली पर यह बात गौर देने वाली है की सूचना पाना एक आम इंसान के लिए सिर चक्र देने
वाला काम है
v
पूरे नियमों को का ध्यान में रखकर
आरटीआई फ़ाइल करने के बाद भी कोई आवश्यक नहीं की आपको जानकारी मिल ही जाएगी
v
हालांकि अब हरियाणा सरकार ने ऑनलाइन
माध्यम से भी आरटीआई डालने का प्रबंध कर दिया है पर वह भी बेहद मुश्किल और
त्रुटियों से भरा हुआ है
हरियाणा का ऑनलाइन आरटीआई प्रबंधन
अगर आप गूगल पर जाएँ और अँग्रेजी
में “RTI HARYANA”
लिख कर सर्च करेंगे तो आपको कुछ
सरकारी और निजी वेबसाइट्स देखने
को मिलेंगी और अगर आप कोई जानकारी सरकार से आरटीआई के माध्यम से पहली बार प्राप्त
करने की कोशिश कर रहें हैं तो आप सोच में पड़ जाएंगे की अखिकार किस वैबसाइट से
आरटीआई ऑनलाइन माध्यम से दर्ज की जा सकती है।
यह गौर करने वाली बात है की हरियाणा
सरकार ने इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया है कहीं भी इस बात उल्लेख नहीं मिलता है
की एक आम इंसान सही तरह से मनकों को पूरा करके कैसे ऑनलाइन माध्यम से आरटीआई दर्ज
करे
“
आपको जानकार हैरानी होगी की अभी तक
हरियाणा सरकार ने ऑनलाइन आरटीआई फ़ाइल करने की कोई व्यवस्था नहीं की है हाँ कुछ
सरकारी वेबसाइट्स हैं जिनपर जाकर आपको कई जानकारियाँ जरूर मिल सकती हैं
“
मसलन अगर हम हरियाणा सरकार की
वैबसाइट http://web1.hry.nic.in/rtiharyana/ पर जाएँ तो आपको ऐसा लगेगा की मानो आप वक़्त में एक दशक पीछे चले
गायें हो आपको वही टिपिकल इंटरनेट एक्सप्लोरर की सिफ़ारिश करने वाली वैबसाइट देखने को मिलेगी जिसमे ये समझना ही मुश्किल
है की ये आम जन के लिए है या संबन्धित सरकारी अधिकारियों के लिए है । यह वैबसाइट
एनआईसी द्वारा संचालित है जिसके माध्यम से याचिकाकर्ता अपना आरटीआई सटेटस जान सकता
और आरटीआई से जुड़े सरकारी
दस्तावेजों को देख सकता है पर यहाँ भी सरकारी नीरसता दिखाई पड़ती है ।
एक अन्य सरकारी वैबसाइट http://cicharyana.gov.in/ में भी लगभग वही जानकरियाँ आपको मिल जाती
हैं तो यह समझ के परे है की फिर http://web1.hry.nic.in/rtiharyana/ का क्या तात्पर्य रह जाता है , हाँ उस पर तकादा यह की यहाँ लगभग सभी जानकरियाँ केवल अँग्रेजी भाषा में हैं तो
अगर कोई प्रार्थी अँग्रेजी भाषा में कमजोर है तो वह केवल राम भरोसे ही है
अब अगर कोई इसी वैबसाइट के “contact us” सेक्शन में जाएगा और साइट इन्फॉर्मेशन
हरियाणा पर क्लिक करेगा तो उसे स्टेट चीफ़ कमिश्नर का सरकारी नंबर और ई-मेल मिल
जाएगा पर
“
यहाँ एक बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आता है स्टेट चीफ़ कमिश्नर का
सरकारी ई-मेल एक प्राइवेट कंपनी द्वारा संचालित है मतलब सारी गुप्त जानकारी एक
निजी कंपनी के डाटा सेंटर में जा रही है
“
यह सरकारी परियाजनाओ पर सरकारी
नीरसता की पराकाष्ठा को दर्शाता है यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है की यह वैबसाइट भी एनआईसी द्वारा
निर्मित न होकर एक निजी कंपनी द्वारा निर्मित है ।
अब सवाल यह उठता है की हरियाणा
सरकार कैसे इतनी संवेदनशील तथ्यों, जानकारियों को निजी हाथों में दे रही है
।
यह कुछ ऐसे ज्वलंत सवाल हैं जो सरकार को विचलित कर सकते हैं !
सरकारी वैबसाइट में आख्या से जुड़े
सभी दस्तावेज़ कानूनी भाषा में लिखे होते हैं अब माध्यम चाहे हिन्दी हो या अंगरेजी
इस जटिल कानूनी भाषा को समझना एक आम इंसान के लिए लगभग ना के बराबर है । जब सरकार
यह सारे अधिनियम , कानून या
आदेश जनता के लिए जारी करती है तो जनता को यह तथ्य एक सरल भाषा में समझाने का
प्रयास क्यू नहीं होता ? कुछ
बुद्धिजीवी यहाँ सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े कर जाते हैं
तो अगर पूरी बात को कम शब्दों में
कहा जाए तो एक आम इंसान के लिए आरटीआई की जानकारी ऑनलाइन माध्यम से हासिल करना
भूसे में सुई ढूँढने के समान है यहाँ सरकारी ढांचा लगभग पूरी तरह से विफल होता नजर
आता है हालांकि
हरियाणा सरकार अब इसे और बेहतर करने की बात कह रही है पर कबतक करेगी इसका कोई पता
नहीं ।
यहाँ महत्वपूर्ण ये भी है की सभी
राज्य सरकारों की आरटीआई से जुड़ी वैबसाइटों को rti.gov.in से क्यूँ नहीं जोड़ा जाता ? या क्यूँ नहीं इन सभी ऑनलाइन कामों के लिए एक
केन्द्रीय वैबसाइट का निर्माण किया जाता जिससे आम जनता के लिए थोड़ी राहत मिले । यह भी सामने आया है की इन सरकारी खामियों
का फायदा उठा कर कुछ लोग पैसे कमाने की रेस में लग गए हैं । यह लोग आम लोगों से
पैसे लेकर उनकी आरटीआई को बेहतर तरीके से फ़ाइल करने का दावा करते हैं यहाँ बाकायदा
लोग वैबसाइट्स के जरिये लोगों को अपने जाल में फसा रहे हैं ओर इस तरह की वैबसाइट्स
गूगल सर्च में बहुतायत में सरकारी वैबसाइट्स के भी ऊपर सर्च में दिखाई देती हैं !
तो एक बार फिर आम जन को आरटीआई के
नाम पर “तमन्नाओं में उलझाया गया है और खिलौने दे के बहलाया गया है” !
अमित कुमार यादव
(शोधकर्ता- बैलटबॉक्स इंडिया)
By Amit Kumar Yadav {{descmodel.currdesc.readstats }}
लेखक - अमित कुमार यादव
“तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ , खिलौने दे के बहलाया गया हूँ” ...... शाद अज़ीमाबादी ने जब इन पंक्तियों को कागज के पन्नों पर उकेरा होगा तो उन्होने कभी नहीं सोचा होगा की ये पंक्तियाँ हमारे देश के “लचर” और “लाचार” सूचना के अधिकार को चरितार्थ कर जाएंगी ।
आर टी आई : कब कहाँ कैसे ?
एक ऐसा अधिकार जिसकी मांग 1975 से उठनी शुरू हो गयी थी । देश में दरअसल अंग्रेजों के शासन में शुरू हुए गोपनियता के अधिनियम का फायदा आजादी के बाद की चुनी हुई सरकारें उठाती रहीं । देश में संविधान निर्माण के दौरान भी इस अधिनियम में कोई बदलाव नहीं किया गया जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ा । सरकार कितना पैसा कहाँ खर्च कर रही है या कैसे काम कर रही है किसी को जानने का अधिकार नहीं था पर 1975 की गर्मियों की शुरुआत मे देश की राजनीति का पारा कुछ ऐसा चढ़ा की जिसने देश की दशा ओर दिशा दोनों को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया । सन 1971 में रायबरेली में लोकसभा चुनाव में इन्दिरा गांधी के सामने उनके प्रतिद्वंद्वी राजनरायण ने उन्हे जीत की चुनौती दी.... राजनारायन अपने प्रदर्शन से इतना जोश में थे की उन्होने नतीजे आने से पहले ही जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया पर जब नतीजे आए तो उनके होश उड़ गए और एक बड़े अंतर से इंदिरा गांधी उन्हे हराने में कामयाब हो गईं और राजनारायन जो अपनी जीत के प्रति अस्वस्थ थे उन्होने न्यायालय मे इंदिरा को चुनौती दे डाली अब जीसके बाद भारत में शायद पहली बार किसी उच्च न्यायालय के जज ने अपने प्रधानमंत्री को इतनी सख्त सजा सुनाई ...... इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस डीएस माथुर ने अपने आदेश में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जिसके बाद 1971 में हुए रायबरेली के लोकसभा चुनाव को निरस्त कर दिया गया यह केस अब सर्वोच्च न्यायल पहुंचा जहां एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला आया जिसके बाद भारतीय जनता ने पहली बार सूचना के अधिकार को स्वरूप लेते हुए देखा ...
न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों का व्यौरा जनता को प्रदान करने को कहा । इस निर्णय ने नागरिको को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया।
इसके बाद के घटनाक्रम ने वर्तमान सूचना के अधिकार की आधार शीला रख दी और मैग्सैसे अवार्ड विजेता श्रीमती अरूणा रॉय के नेतृत्व में मजदूर किसान शक्ति संगठन के गठन के बाद सूचना का अधिकार के लिए वर्ष 1992 में राजस्थान से भीषण आंदोलन शुरू हुआ अप्रेल 1996 में सूचना के अधिकार की मांग को लेकर चालीस दिन का धरना दिया गया और उसके बाद आंदोलन इतना ज्वलंत हुआ की राजस्थान सरकार में बेहद दबाब चलते तत्कालीन मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2000 में राज्य स्तर पर सूचना का अधिकार कानून को हरी झंडी दिखा दी और देखते ही देखते दिल्ली समेत नौ राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान,कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, असम, गोवा व मध्यप्रदेश में सूचना का अधिकार कानून लागू हो गया।
वर्ष 2002 में केन्द्र की राजग सरकार ने सूचना की स्वतंत्रता विधेयक पारित किया, लेकिन वह राजपत्र में प्रकाशित नहीं होने से कानून का रूप नहीं ले सका। गौर करने वाली बात है की इस विधेयक में सिर्फ सूचना लेने की स्वतंत्रता दी, सूचना देना या नहीं देना अधिकारी की मर्जी पर छोड दिया।वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के नेतृत्व वाली केन्द्रसरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया, जिसने अगस्त 2004 में केन्द्र सरकार को सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन सुझाए और उसी वर्ष यह विधेयक संसद में पेश हो गया। 11 मई 2005 को विधेयक को लोकसभा ने और 12 मई 2005 को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी। 15 जून 2005 को इस पर राष्ट्रपति की सहमति मिलते ही सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 पूरे देश में प्रभावशील हो गया। उक्त अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) एवं धारा 12, 13, 15, 16, 24, 27, 28 की उपधाराएं (1) एवं (2) तत्काल प्रभाव में आ गई और शेष प्रावधान अधिनियम बनने की तिथि से 120 वें दिन अर्थात् 12 अक्टूबर 2005 से लागू किया गया। प्रत्येक राज्य में आयोग का गठन करने का प्रावधान रखा गया।
आरटीआई हरियाणा के परिद्रश्य में
हरियाणा सरकार ने हरियाणा सूचना का अधिकार नियम, 2009 में संशोधन किया है और नए नियम हरियाणा सूचना का अधिकार (संशोधन) नियम, 2016 कहलाएंगे। संशोधन के अनुसार धारा 6 की उप-धारा (1) के तहत कोई सूचना प्राप्त करने हेतु आवेदन के साथ 10 रुपये की फीस लगाई जाएगी और सामान्यत: अनुलग्नकों, राज्य लोक सूचना अधिकारी तथा उस आवेदक के पता सहित पांच सौ से अधिक शब्द नहीं होंगे। परन्तु कोई भी आवेदन केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा कि इसमें पांच सौ से अधिक शब्द हैं।
धारा 7 की उप-धारा (1) के तहत सूचना उपलब्ध करवाने के लिए आवेदक से ए-4 या ए-3 आकार के कागज पर बनाई गई या प्रतिलिपि की प्रत्येक पृष्ठ के लिए दो रुपये तथा यदि सूचना उक्त विनिर्दिष्ट से भिन्न बड़े आकार के कागज पर उपलब्ध करवाई जाती है तो ऐसे कागज की वास्तविक लागत प्रभारित की जाएगी।
धारा 7 की उप-धारा (5) के तहत सूचना उपलब्ध करवाने के लिए आवेदक से फ्लॉपी में सूचना उपलब्ध करवाने के लिए 50 रुपये, डिस्किट में सूचना उपलब्ध करवाने के लिए 50 रुपए तथा यदि मांगी गई सूचना ऐसे स्वरूप में है, जोकि मुद्रित दस्तावेज में है, जिसकी कीमत नियत की गई है, तब वह सूचना मुद्रित दस्तावेज के लिए नियत कीमत प्रभारित करने के बाद उपलब्ध करवाई जाएगी। बहरहाल, यदि ऐसे मुद्रित दस्तावेज का केवल उदाहरण या पृष्ठ मांगा गया है, तब प्रति पृष्ठ दो रुपये की फीस प्रभारित की जाएगी।
रिकॉर्ड के निरीक्षण के लिए कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी, यदि ऐसा निरीक्षण केवल एक घंटे के लिए किया गया है। बहरहाल, यदि निरीक्षण एक घंटे से अधिक की अवधि के लिए किया गया है तो प्रत्येक पश्चात-वर्ती घंटे या उसके भाग के लिए पांच रुपये फीस प्रभारित की जाएगी।
सूचना के अधिकार हरियाणा में आम इंसान के कितना करीब
यह जानने के लिए की हरियाणा सरकार कितनी फुर्ती के साथ और कितनी सरलता से आमजन की आर्जियों के जवाब देता है बैलटबॉक्स इंडिया ने एक आरटीआई फ़ाइल की जिसमे कुछ निम्नलिखित बातें सामने आईं
v हरियाणा के सूचना बाकी राज्यों से थोड़ा जल्दी प्राप्त हुई
v सूचना में लिखी हुई जानकारी लगभग पूरी और विस्तृत थी कोई गोलमोल जवाब नहीं थे
v हालांकि हमे सूचना पूरी और विस्तृत मिली पर यह बात गौर देने वाली है की सूचना पाना एक आम इंसान के लिए सिर चक्र देने वाला काम है
v पूरे नियमों को का ध्यान में रखकर आरटीआई फ़ाइल करने के बाद भी कोई आवश्यक नहीं की आपको जानकारी मिल ही जाएगी
v हालांकि अब हरियाणा सरकार ने ऑनलाइन माध्यम से भी आरटीआई डालने का प्रबंध कर दिया है पर वह भी बेहद मुश्किल और त्रुटियों से भरा हुआ है
हरियाणा का ऑनलाइन आरटीआई प्रबंधन
अगर आप गूगल पर जाएँ और अँग्रेजी में “RTI HARYANA” लिख कर सर्च करेंगे तो आपको कुछ सरकारी और निजी वेबसाइट्स देखने को मिलेंगी और अगर आप कोई जानकारी सरकार से आरटीआई के माध्यम से पहली बार प्राप्त करने की कोशिश कर रहें हैं तो आप सोच में पड़ जाएंगे की अखिकार किस वैबसाइट से आरटीआई ऑनलाइन माध्यम से दर्ज की जा सकती है।
यह गौर करने वाली बात है की हरियाणा सरकार ने इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया है कहीं भी इस बात उल्लेख नहीं मिलता है की एक आम इंसान सही तरह से मनकों को पूरा करके कैसे ऑनलाइन माध्यम से आरटीआई दर्ज करे
“
आपको जानकार हैरानी होगी की अभी तक हरियाणा सरकार ने ऑनलाइन आरटीआई फ़ाइल करने की कोई व्यवस्था नहीं की है हाँ कुछ सरकारी वेबसाइट्स हैं जिनपर जाकर आपको कई जानकारियाँ जरूर मिल सकती हैं
“
मसलन अगर हम हरियाणा सरकार की वैबसाइट http://web1.hry.nic.in/rtiharyana/ पर जाएँ तो आपको ऐसा लगेगा की मानो आप वक़्त में एक दशक पीछे चले गायें हो आपको वही टिपिकल इंटरनेट एक्सप्लोरर की सिफ़ारिश करने वाली वैबसाइट देखने को मिलेगी जिसमे ये समझना ही मुश्किल है की ये आम जन के लिए है या संबन्धित सरकारी अधिकारियों के लिए है । यह वैबसाइट एनआईसी द्वारा संचालित है जिसके माध्यम से याचिकाकर्ता अपना आरटीआई सटेटस जान सकता और आरटीआई से जुड़े सरकारी दस्तावेजों को देख सकता है पर यहाँ भी सरकारी नीरसता दिखाई पड़ती है ।
एक अन्य सरकारी वैबसाइट http://cicharyana.gov.in/ में भी लगभग वही जानकरियाँ आपको मिल जाती हैं तो यह समझ के परे है की फिर http://web1.hry.nic.in/rtiharyana/ का क्या तात्पर्य रह जाता है , हाँ उस पर तकादा यह की यहाँ लगभग सभी जानकरियाँ केवल अँग्रेजी भाषा में हैं तो अगर कोई प्रार्थी अँग्रेजी भाषा में कमजोर है तो वह केवल राम भरोसे ही है
अब अगर कोई इसी वैबसाइट के “contact us” सेक्शन में जाएगा और साइट इन्फॉर्मेशन हरियाणा पर क्लिक करेगा तो उसे स्टेट चीफ़ कमिश्नर का सरकारी नंबर और ई-मेल मिल जाएगा पर
“
यहाँ एक बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आता है स्टेट चीफ़ कमिश्नर का सरकारी ई-मेल एक प्राइवेट कंपनी द्वारा संचालित है मतलब सारी गुप्त जानकारी एक निजी कंपनी के डाटा सेंटर में जा रही है
“
यह सरकारी परियाजनाओ पर सरकारी नीरसता की पराकाष्ठा को दर्शाता है यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है की यह वैबसाइट भी एनआईसी द्वारा निर्मित न होकर एक निजी कंपनी द्वारा निर्मित है ।
अब सवाल यह उठता है की हरियाणा सरकार कैसे इतनी संवेदनशील तथ्यों, जानकारियों को निजी हाथों में दे रही है । यह कुछ ऐसे ज्वलंत सवाल हैं जो सरकार को विचलित कर सकते हैं !
सरकारी वैबसाइट में आख्या से जुड़े सभी दस्तावेज़ कानूनी भाषा में लिखे होते हैं अब माध्यम चाहे हिन्दी हो या अंगरेजी इस जटिल कानूनी भाषा को समझना एक आम इंसान के लिए लगभग ना के बराबर है । जब सरकार यह सारे अधिनियम , कानून या आदेश जनता के लिए जारी करती है तो जनता को यह तथ्य एक सरल भाषा में समझाने का प्रयास क्यू नहीं होता ? कुछ बुद्धिजीवी यहाँ सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े कर जाते हैं
तो अगर पूरी बात को कम शब्दों में कहा जाए तो एक आम इंसान के लिए आरटीआई की जानकारी ऑनलाइन माध्यम से हासिल करना भूसे में सुई ढूँढने के समान है यहाँ सरकारी ढांचा लगभग पूरी तरह से विफल होता नजर आता है हालांकि हरियाणा सरकार अब इसे और बेहतर करने की बात कह रही है पर कबतक करेगी इसका कोई पता नहीं ।
यहाँ महत्वपूर्ण ये भी है की सभी राज्य सरकारों की आरटीआई से जुड़ी वैबसाइटों को rti.gov.in से क्यूँ नहीं जोड़ा जाता ? या क्यूँ नहीं इन सभी ऑनलाइन कामों के लिए एक केन्द्रीय वैबसाइट का निर्माण किया जाता जिससे आम जनता के लिए थोड़ी राहत मिले । यह भी सामने आया है की इन सरकारी खामियों का फायदा उठा कर कुछ लोग पैसे कमाने की रेस में लग गए हैं । यह लोग आम लोगों से पैसे लेकर उनकी आरटीआई को बेहतर तरीके से फ़ाइल करने का दावा करते हैं यहाँ बाकायदा लोग वैबसाइट्स के जरिये लोगों को अपने जाल में फसा रहे हैं ओर इस तरह की वैबसाइट्स गूगल सर्च में बहुतायत में सरकारी वैबसाइट्स के भी ऊपर सर्च में दिखाई देती हैं !
तो एक बार फिर आम जन को आरटीआई के नाम पर “तमन्नाओं में उलझाया गया है और खिलौने दे के बहलाया गया है” !
अमित कुमार यादव
(शोधकर्ता- बैलटबॉक्स इंडिया)
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