बालिका हिंसा निषेध की मर्यादा परम्परायें
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By
Arun Tiwari 33
न सभी परम्परायें बुरी हैं और सभी आधुनिकतायें। कई परम्परायें हैं, जो बालिकाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा पर लगाम लाने का कारगर माध्यम मालूम होती हैं। अवध क्षेत्र के कई जि़लों में परंपरा है कि बेटी व बहन से क्रमशः पिता व भाई चरण स्पर्श नहीं करायेंगे। पिता व भाई कितने भी उम्रदराज हो, वे ही बेटी व बहन के चरण स्पर्श करेंगे। बेटी व बहन कोे गलती से भी चरण लग जाये, तो उसके चरण स्पर्श करके क्रमशः पिता व भाई गलती की माफी मांगेंगे। किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रस्थान से पूर्व मां ही नहीं, छोटी से छोटी कन्या के चरण स्पर्श कर आशीष लेंगे। बेटी, पोती, नातिन, भतीजी से लेकर भानजी तक.... सभी अविवाहित कन्या संबंधियों से इसी व्यवहार की परम्परा है। बेटी तथा अपने से उम्र में छोटी बहन से अपनी किसी भी तरह की शारीरिक सेवा कराना, पिता व भाई के लिए निषेध है।
इसी तरह बेटी द्वारा कमाये धन का अपने लिए उपयोग, पिता हेतु निषेध है। बेटी के पिता, बेटी के ससुराल पक्ष का धन अथवा भोजन लेना तो दूर, पानी तक नहीं पीयेंगे। बेटी के ससुराल से आया कोई भी उपहार-भोज्य पदार्थ आदि माता-पिता के लिए निषेध है। यदि वे इसका उपयोग करेंगे, तो उसकी एवज में उतनी धनराशि, बेटी को देंगे। यहां तक कि विवाह आदि मौके पर बेटी पक्ष से आया न्योता भी कुछ रुपया जोडकर लौटाने की परम्परा है।
बेटी किसी भी जाति या धर्म की हो, वह समूचे गांव की बेटी होगी। यह समभाव भारत के कई इलाकों की परंपरा में रहा है। अवध में परंपरा है कि गांव की किसी भी बेटी के ससुराल में, उसके मायके का प्रत्येक पितातुल्य व्यक्ति उक्त न्यूनतम मर्यादाओं का निर्वाह अवश्य करेगा अर्थात भोजन-पानी नहीं ग्रहण करेेगा; यही परम्परा है। कई इलाकोें के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य परिवारों में बेटी और बहू से खेत में काम कराने पर मनाही है।
अवध क्षेत्र में बङे भाई की पत्नी को भौजी कहते हैं और छोटे भाई की पत्नी को भयहो। आपात् स्थिति छोङकर, शेष हर परिस्थिति में भयहो और जेठ का एक-दूसरे को स्पर्श पूरी सख्ती के साथ वर्जित है। ऐसा करने पर प्रायश्चित का प्रावधान है। परम्पराओं में तो मां और पत्नी को छोङकर, किसी भी नारी से एकांत में मिलने पर मनाही है। देश के कई इलाकों में आज भी बेटी के लिए वर नहीं, वर के लिए वधू ढूंढी जाती है।
विश्लेषण कीजिए कि क्या इन परंपराओं की पालना करने पर यौन हिंसा अथवा बालिकाओं पर शारीरिक अत्याचार की सामान्य स्थिति में कहीं कोई गुंजाइश बचती है ? आधुनिकता की चमक ने इन परम्पराओं पर धूल भले ही डाल दी हो, किंतु गंवार और अनपढ़ कहे जाने वाले हजार, लाख नहीं, कई करोङ गंवई लोग आज भी बालिका सुरक्षा और सम्मान की ऐसी कई परंपराओं का पालन करते मिल जाते हैं। बालिका सशक्तिकरण के नये नारे और नई पढ़ाई के जोश में हमने ऐसी कई अच्छी पुरानी परम्परायें भुला दी हैं। शुक्र है कि ऐसी कई अच्छी परम्पराओं का जिक्र कई गंवई इलाकों में आज भी सुनाई दे जाता है। आइये इन्हे ध्यान से सुने और फिर अपने जीवन में गुने। बालिका सशक्तिकरण चाहने वालों को ग्राम गुरु का यही संदेश है।