एक अलग सौन्दर्य है पतझड़ का,
सुनहरे तरुदल से सुसज्जित शाखाएं,
सूखे पत्तों की चादर ओढ़े धरा,
पवन के साथ विचरण करते,
वे छोटे छोटे सफ़ेद थोथे,
वे रूप बदलते वृक्ष और मैदान....
अखिलेश रावल की लिखी कविता “पतझड़” की ये पंक्तियां
बड़ी ही शिद्दत के साथ दर्शाती हैं कि प्रकृति के इस अनोखे रूप पतझड़ का सौन्दर्य भी
कम नहीं है. उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु और पतझड़ के मौसम का प्रतिनिधित्व करने
वाला सबसे पहला माह है अक्टूबर. पतझड़ को अंग्रेजी में “ऑटम” अथवा “फॉल” का सीजन भी
कहा जाता है क्योंकि इसमें वृक्षों के पत्ते स्वत: ही सूखकर गिरने लगते हैं और
अक्टूबर आते ही मौसम में भी बदलाव आना शुरू हो जाता है.
अक्टूबर लैटिन शब्द “ऑक्टो” से लिया गया है, जिसका
अर्थ होता है आठ. यानि मूलरूप से अक्टूबर को रोमन कैलेंडर का आठवां महीना माना
जाता था. पर बाद में, जनवरी और फरवरी के जुड़ने के बाद यह वर्ष के दसवें महीने में
तब्दील हो गया. अक्टूबर को मात्र मौसमी परिवर्तन की ऋतु ही नहीं अपितु त्यौहारों के देश भारत
में उत्सवों का आगमन भी इसी माह से होता है.
हर्ष, उल्लास, सात्विकता और नवऊर्जा से परिपूर्ण अक्टूबर
यानि आश्विन महीने में पितृपक्ष, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दशहरा इत्यादि त्यौहारों
की रौनक रहती है. वैसे सनातनी कैलेंडर के अनुसार दीपावली कार्तिक माह में मनाई
जाती है, लेकिन यदि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से देखें तो इस वर्ष दीपावली भी
अक्टूबर का ही हिस्सा है.
इस माह से मौसम में परिवर्तन आना प्रारंभ हो जाता है,
प्रात:काल और सांयकाल में हल्की ठंड होने लगती है और धूप का तीखापन भी थोडा सा कम
हो जाता है. मौसम के लिहाज से अनुकूल लगने वाला यह पर्वों का महीना भले ही आनंदित
कर देने वाला लगता है...पर जैसे जैसे ऋतु में बदलाव आने लग जाता है, वैसे ही हमारे शरीर और मन मस्तिष्क में भी परिवर्तन
होता है. जिसे अगर हम नजरअंदाज कर दें तो सेहत बिगड़ते देर नही लगती.
देखा जाये तो जीवन में स्वास्थ्य से बढ़कर अमूल्य धन
और कुछ है भी नहीं, तो क्यों ना ऋतुनुसार चलते हुए इस स्वास्थ्य रूपी धन को संजोकर रखा जाये. इसी
कड़ी में निरोगी काया और समृद्ध तन-मन से जुड़ी हमारी स्वास्थ्य सीरीज में “अक्टूबर स्वास्थ्य विशेषांक” के अंतर्गत अग्रलिखित वर्णित स्वास्थ्य नियमों को आप
भी अपने जीवन में अपनाएं और पाएं आरोग्य का खजाना.
अक्टूबर में
जलवायु परिवर्तन
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार अक्टूबर से शरद
ऋतु का आगमन हो जाता है और उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में मार्च से ही सूर्य की
मकर रेखा की ओर बढ़त के साथ ही तापमान में भी कमी आने लगती है. सामान्यत: अक्टूबर
माह में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक
ही रहता है, जिसमें मध्यम सी
घटत-बढ़त जारी रहती है.
चूंकि अक्टूबर को संधिकाल का महीना माना जाता है और
इसमें कभी गर्मी, कभी ठंडक का मिला जुला सा एहसास होता है. वस्तुतः इस मौसम में
दिन-रात का मौसम ठंडा और दिन में अनुकूल रहता है..पर साथ ही बाहर धूप में गर्मी
बरक़रार रहती है. मौसम के इस मिले जुले रूप से शरीर भी अनभिज्ञ नहीं रहता और जरा सी
लापरवाही हमें मौसमी रोगों की ओर धकेल देती है. इस मिश्रित जलवायु से शरीर में
पित्त और वायु दोष का संचय भी अधिक होता है, जिसके लिए हमें अपनी दिनचर्या में
परिवर्तन लाना पड़ता है.
मौसमी फल एवं सब्जियां
जिस प्रकार मौसम में परिवर्तन होता है उसी प्रकार
हमें भी अपनी जीवनशैली व खानपान में परिवर्तन करना पड़ता है. गर्मियों के मौसम के
बाद सर्दियों का आरंभ होने लगता है और वातावरण में बढ़ रही ठंडक से प्रदूषक तत्वों
के हवा में बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है.
इस परिवर्तन से शरीर के बचाव के लिए हमारा प्रतिरक्षण
तंत्र मजबूत होना आवश्यक है, जिसके लिए शरीर को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की
जरूरत होती है. इस लिहाज से अक्टूबर
में ताज़ी सब्जियों एवं फलों को अपने डायट चार्ट में शामिल किया जाना आवश्यक हो
जाता है.
कुछ इस प्रकार की सब्जियां व फल
अपने खाने में प्रयोग कर आप अक्टूबर में स्वस्थ रह सकते हैं :
1. लौकी/घीया – भरपूर मात्रा में जलतत्त्व से परिपूर्ण लौकी ज्यादातर लोगों को खाने में पसंद
होती है. इस समय मार्केट में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाली लौकी के सेवन से पेट
साफ़ रहता है. हृदय, किडनी, लीवर से जुड़े रोगों एवं मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी
समस्याओं वाले पेशेंट भी लौकी का सेवन आराम से कर सकते हैं.
2. कद्दू/सीताफल – कद्दू में पोटेशियम व फाइबर की मात्रा प्रचुर रूप से होती है, जिससे यह हमारी
प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखता है. भारत में लोग प्राय: कद्दू को सब्जी
बनाने के साथ-साथ, सूप, खीर, पोरियल, सलाद आदि
के रूप में भी सेवन किया जाता है.
3. फ्रेंच बीन्स – सेहत का पौष्टिक विकल्प
फ्रेंच बीन्स न केवल सब्जी अपितु सलाद के तौर पर भी खाया जाता है. इन हरी फलियों
में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम, जो पाचन क्षमता के लिहाज से
बेहद गुणकारी है. इसके सेवन से हृदय रोगों में भी लाभ मिलता है.
4. आंवला – प्राचीनतम आयुर्वेदिक औषधि माना जाने
वाला आंवला हमारी त्वचा और बालों के लिए तो अमृत है ही, अपितु इसके नियमित सेवन से
त्रिदोष (पित्त, कफ, वायु) में संतुलन बना रहता है और हमारा शरीर हर प्रकार के
रोगों से बचा रहता है.
5. मूली – शरीर के लिए प्राकृतिक क्लींजर का कार्य करने वाली मूली हृदय,
किडनी, रक्तचाप, कॉमन कफ और कोल्ड में बेहद लाभकारी है. अक्टूबर में यह ताजे रूप
में मार्केट में आने लगती है, तो आप भी मूली का सेवन कर स्वास्थ्य लाभ पा सकते
हैं.
शरीर को स्वस्थ रखते मौसमी फल
1. नाशपाती - यह फल फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है, साथ ही इसमें पर्याप्त
मात्र में विटामिन सी, विटामिन बी12, कॉपर इत्यादि मिनरल्स का खजाना मौजूद है. यह मौसमी बुखार के निवारण के लिए
बेहद असरदायक है, क्योंकि यह अपनी एंटीपायरेटिक तकनीक के चलते शरीर के तापमान को संतुलित करती
है.
2. सेब - सेब भी इस महीने में मिलने वाले प्रमुख फलों में से है, जिसमें डाइटरी फाइबर की
अधिकता के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है. साथ ही इसमें मौजूद
पॉलिफेलोल एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है और हमें विभिन्न बीमारियों से
सुरक्षित रखता है.
3. अनार – विश्व के सबसे स्वास्थ्यवर्धक फल का ख़िताब लेने वाला अनार
वैसे तो वर्षभर ही बाज़ार में उपलब्ध रहता है, परन्तु अक्टूबर माह में आने वाले
मौसमी परिवर्तन से लड़ने के लिए हमारे शरीर को इसकी सर्वाधिक आवश्यकता होती है.
डॉक्टर भी सितम्बर और अक्टूबर में अनार का सेवन करने की सलाह देते हैं.
4. अनानास – अनानास में पाया जाने वाला ब्रोमेलैन
नामक तत्त्व पेट के बहुत से रोगों के लिए रामबाण इलाज है और हमारे पाचन तंत्र के
लिए बेहद आवश्यक भी. साथ ही अपने एंटी- इंफ्लेमेटरी गुणों के चलते बदलते मौसम में
होने वाले वाले जोड़ों के दर्द में भी लाभ मिलता है.
5. केला – केले में मौजूद प्रोबायोटिक बैक्टीरिया पेट को ठीक रखता है
और बदलते मौसम में भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखता है. केले में पाए जाने
वाला पेसटिन तत्व कब्ज दूर रखता है और हमारी जठराग्नि को बढाता है.
प्राणायाम
से पाएं आरोग्य
ऋतु के संधिकाल पर हमें भी अपनी जीवन शैली में योग और प्राणायाम को
शामिल कर स्वास्थ्य लाभ पाना चाहिए. स्वस्थ जीवनशैली में योग का विशेष महत्व है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया
जा सकता है. योगाचार्य महर्षि पतंजलि के अनुसार,
“चित्त
को एक जगह स्थापित करना योग है.”
यानि योग से न केवल शारीरिक अपितु मानसिक शांति भी प्राप्त की जा
सकती है. उत्तम स्वास्थ्य के लिहाज से योगासनों को लाभप्रद माना जाता रहा है.
ऋतुचर्या के अनुकूल यौगिक आसनों,
प्राणायाम एवं मुद्राओं का अभ्यास किया जाना चाहिए. अपने मस्तिष्क को
एकाग्र करने के लिए प्राणायाम से जुड़े अग्रलिखित विकल्प अमल में लाये जा सकते
हैं..
1. अनुलोम विलोम प्राणायाम
इस
प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए पहले
दायिने अंगूठे से दायीं बंद करते हुए बायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है और फिर
ऐसे ही श्वास भरते हुए बायीं नासिका को बंद कर दायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती
है. इस साधारण से प्राणायाम को 5-10 मिनट रोजाना करते रहना चाहिए.
2. कपालभाति प्राणायाम
यह प्राणायाम तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की
क्रिया पर निर्भर है. इसके रोजाना मात्र 10 मिनट के अभ्यास से शरीर उर्जावान और हल्का लगने लगता है.
3. उज्जयी प्राणायाम
पद्मासन में बैठते हुए गहरा श्वास नासिका से
फेफड़ों में भरें और गर्दन के थाइरोइड वाले हिस्से को कंपन कराके ओम की ध्वनि
उत्पन्न करने की कोशिश करें. श्वास को तब तक अंदर रखें जब तक आप इसको रोक सकतें
हैं, फिर दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका बंदकर बायीं नासिका से
धीरे-धीरे श्वास छोड़ें.
4. भ्रामरी प्राणायाम
पद्मासन में बैठते हुए अपने अंगूठों से कानों को हल्के से बंद
करें. दो उँगलियों से आँखों को ढकें. अब तेज गति से श्वास भरें और भ्रमर की भांति गुनगुनाते
हुए भीतर ही भीतर ओम का उच्चारण करते हुए उसकी तरंगों को मस्तिष्क में महसूस होने
दें.
5. उद्धव
गीत प्राणायाम
ध्यान मुद्रा में बैठकर ओम शब्द के गहन उच्चारण के द्वारा मस्तिष्क
को एकाग्र करने का प्रयास करना उद्धव गीत प्राणायाम है. इसमें गहन तौर पर ओम शब्द
का उच्चारण किया जाता है, जिससे शरीर तरोताजा होता है.
स्वास्थ्य
सिद्धि का आध्यात्मिक पक्ष – शारदीय नवरात्र
ऋतु परिवर्तन में शरीर को शुद्ध रखने हेतु की जाने वाली प्रक्रिया
नवरात्रि के नाम से सर्वविख्यात है. नवरात्रि केवल आध्यात्मिक मंथन का ही प्रतीक
नहीं है अपितु शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक पवित्रता का भी द्योतक माना जाता है. वैभव
व सौभाग्य की अधिष्ठात्री, जगत
जननी माँ दुर्गा की आराधना के महापर्व माने जाने वाले नवरात्रि के अवसर पर लोग नौ
दिन का उपवास रखते है. इन नौ दिनों के उपवास के दौरान केवल सात्विक आहारचर्या का
ही पालन किया जाता है. इसलिए यह बेहद आवश्यक होता है कि व्यक्ति शारदीय नवरात्रि
के व्रत में समाहित धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक तथ्य को
भी अवश्य जानें.
नवरात्रि से जुड़ें कुछ वैज्ञानिक तथ्य :
1. ऋतु
परिवर्तन के इस माह में शरीर में वात, पित्त और कफ दोष के बढ़ने से हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी
आती है.
2. प्रतिरोधक
क्षमता के घटने के साथ-साथ हमारे पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली क्षीण रहती है, जो केवल हल्का व सुपाच्य
आहार ही पचाने में सक्षम होती है.
3. हमारे
ऋषि मुनियों के समय से चली आ रही मान्यता हमें संधिकाल की इस बेला में हमें गरिष्ठ
भोजन त्याग कर अल्पाहार की ओर केन्द्रित करती है. इसी कारण नवरात्रि के नौ दिन
उपवास रखने से पाचन तंत्र बेहतर होता है.
4. नवरात्रि
के दौरान उचित प्रकार से उपवास रखने से हमारा शरीर वर्ष भर तक रोगों से दूर रहता
है.
5. संधिकाल
के अंतर्गत संक्रामक रोगों (जिन्हें वैदिक काल में आसुरी शक्तियों की संज्ञा दी
जाती थी) का प्रकोप अत्याधिक होता है. इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा
नवरात्रि यानि नौ रात्रि तक विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों के प्रयोग से हवन
पूजन इत्यादि करके वातावरण शुद्धि की प्रक्रिया अमल में लाई जाती थी.
अक्टूबर में होने वाले रोग एवं उनका आयुर्वेदिक समाधान
संधिकाल में होने वाले मौसमी बदलाव में शरीर की
प्रतिरोधक क्षमता पर बेहद प्रभाव पड़ता है, हालांकि
यह माह अनुकूल माना जाता है. परन्तु सर्द-गर्म के इस मिलेजुले मौसम में हम न चाहते
हुए भी कुछ मौसमी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.
वातावरण में आने वाले बदलाव के चलते विभिन्न
संक्रामक बीमारियां भी फैलने लगती हैं. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी इस मौसम
में काफी प्रभाव पड़ता है. अक्टूबर माह में होने वाली मुख्य बीमारियों को नजरंदाज न
कर के उपयुक्त चिकित्सीय सलाह व आयुर्वेद के माध्यम से उनका निदान करना बेहद
आवश्यक है.
1. एलर्जी
शरद ऋतु के प्रारंभ में ठंड बढ़ने लगती है और प्रदूषक तत्त्व
वातावरण में हवा के साथ उड़ते रहते हैं. जिसके चलते ये कण लोगों की आँखों या नासिका
के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं और परिणामस्वरुप आँखों में जलन, साइनस से जुड़ी समस्याएं
और श्वसन तंत्र में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.
2. कफ
और कोल्ड
वैसे तो खांसी और जुकाम सर्दियों में अधिक होता है, परन्तु बदलते मौसम में
सर्द-गर्म की प्रवृति और अधिक रहती है, जिसके चलते अक्सर ऋतु परिवर्तन के समय हम
विभिन्न संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाते हैं. मौसम परिवर्तन के कारण खांसी-जुकाम
तेजी से फैलता है और विशेष रूप से छोटे बच्चों, बुजुर्गों को परेशान कर सकता है.
3. मौसमी फ्लू/ इन्फ्लुएंजा
मौसम में आए परिवर्तन से हमारा शरीर परिचित नहीं हो पाता है और
मौसमी बुखार का शिकार बन जाता है. अपने शारीरिक तापमान को मौसम में ढलने के लिए
समय दिए बिना ही हम उसके उलट क्रियाकलाप आरम्भ कर देते हैं, जिससे प्रतिरक्षण तंत्र
प्रभावित होता है और इसका नतीजा ज्वर के रूप में देखने को मिलता है.
4. चिकनगुनिया
चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है, जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है. एडिस मच्छर
के काटने से खून में प्रवेश करने वाले इस विषाणु के लक्षण भी डेंगू के ही समान है.
हालांकि यह डेंगू के समान जानलेवा नहीं होता किन्तु इससे पीड़ित रोगी को अत्याधिक
कमजोरी, जोड़ों में बेहद
दर्द और महीनों तक थकान का अनुभव होता है.
5. जोड़ों में दर्द/आर्थराइटिस
इसके अतिरिक्त गठिया, जोड़ों के दर्द आदि से प्रभावित मरीजों के लिए भी यह समय दुष्कर
होता है. मौसम का अनिश्चित चक्र, जैसे अक्टूबर में वर्षा से
उत्पन्न ठंड सरदर्द, जोड़ो के दर्द, थकान इत्यादि को बढ़ावा देती है, जिसका
असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी देखने को मिलता है. अनिद्रा, व्यवहार परिवर्तन, गतिशीलता
में कमी इत्यादि देखने को मिलते हैं.
संधिकाल के प्रतीक अक्टूबर
माह में स्वास्थ्य के प्रति बरती गयी थोड़ी सी भी लापरवाही आपको वर्षभर के लिए
विभिन्न रोग दे सकती है, इसलिए अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करते हुए ऋतुकाल के
अनुसार आहारचर्या एवं दिनचर्या का अनुसरण करें और अनुपम स्वास्थ्य से अपने तन-मन
की शुद्धि को बरक़रार रखें.
By Deepika Chaudhary Contributors Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
अखिलेश रावल की लिखी कविता “पतझड़” की ये पंक्तियां बड़ी ही शिद्दत के साथ दर्शाती हैं कि प्रकृति के इस अनोखे रूप पतझड़ का सौन्दर्य भी कम नहीं है. उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु और पतझड़ के मौसम का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे पहला माह है अक्टूबर. पतझड़ को अंग्रेजी में “ऑटम” अथवा “फॉल” का सीजन भी कहा जाता है क्योंकि इसमें वृक्षों के पत्ते स्वत: ही सूखकर गिरने लगते हैं और अक्टूबर आते ही मौसम में भी बदलाव आना शुरू हो जाता है.
हर्ष, उल्लास, सात्विकता और नवऊर्जा से परिपूर्ण अक्टूबर यानि आश्विन महीने में पितृपक्ष, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दशहरा इत्यादि त्यौहारों की रौनक रहती है. वैसे सनातनी कैलेंडर के अनुसार दीपावली कार्तिक माह में मनाई जाती है, लेकिन यदि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से देखें तो इस वर्ष दीपावली भी अक्टूबर का ही हिस्सा है.
इस माह से मौसम में परिवर्तन आना प्रारंभ हो जाता है, प्रात:काल और सांयकाल में हल्की ठंड होने लगती है और धूप का तीखापन भी थोडा सा कम हो जाता है. मौसम के लिहाज से अनुकूल लगने वाला यह पर्वों का महीना भले ही आनंदित कर देने वाला लगता है...पर जैसे जैसे ऋतु में बदलाव आने लग जाता है, वैसे ही हमारे शरीर और मन मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है. जिसे अगर हम नजरअंदाज कर दें तो सेहत बिगड़ते देर नही लगती.
देखा जाये तो जीवन में स्वास्थ्य से बढ़कर अमूल्य धन और कुछ है भी नहीं, तो क्यों ना ऋतुनुसार चलते हुए इस स्वास्थ्य रूपी धन को संजोकर रखा जाये. इसी कड़ी में निरोगी काया और समृद्ध तन-मन से जुड़ी हमारी स्वास्थ्य सीरीज में “अक्टूबर स्वास्थ्य विशेषांक” के अंतर्गत अग्रलिखित वर्णित स्वास्थ्य नियमों को आप भी अपने जीवन में अपनाएं और पाएं आरोग्य का खजाना.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार अक्टूबर से शरद ऋतु का आगमन हो जाता है और उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में मार्च से ही सूर्य की मकर रेखा की ओर बढ़त के साथ ही तापमान में भी कमी आने लगती है. सामान्यत: अक्टूबर माह में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक ही रहता है, जिसमें मध्यम सी घटत-बढ़त जारी रहती है.
चूंकि अक्टूबर को संधिकाल का महीना माना जाता है और इसमें कभी गर्मी, कभी ठंडक का मिला जुला सा एहसास होता है. वस्तुतः इस मौसम में दिन-रात का मौसम ठंडा और दिन में अनुकूल रहता है..पर साथ ही बाहर धूप में गर्मी बरक़रार रहती है. मौसम के इस मिले जुले रूप से शरीर भी अनभिज्ञ नहीं रहता और जरा सी लापरवाही हमें मौसमी रोगों की ओर धकेल देती है. इस मिश्रित जलवायु से शरीर में पित्त और वायु दोष का संचय भी अधिक होता है, जिसके लिए हमें अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना पड़ता है.
जिस प्रकार मौसम में परिवर्तन होता है उसी प्रकार हमें भी अपनी जीवनशैली व खानपान में परिवर्तन करना पड़ता है. गर्मियों के मौसम के बाद सर्दियों का आरंभ होने लगता है और वातावरण में बढ़ रही ठंडक से प्रदूषक तत्वों के हवा में बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है.
इस परिवर्तन से शरीर के बचाव के लिए हमारा प्रतिरक्षण तंत्र मजबूत होना आवश्यक है, जिसके लिए शरीर को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इस लिहाज से अक्टूबर में ताज़ी सब्जियों एवं फलों को अपने डायट चार्ट में शामिल किया जाना आवश्यक हो जाता है.
कुछ इस प्रकार की सब्जियां व फल अपने खाने में प्रयोग कर आप अक्टूबर में स्वस्थ रह सकते हैं :
1. लौकी/घीया – भरपूर मात्रा में जलतत्त्व से परिपूर्ण लौकी ज्यादातर लोगों को खाने में पसंद होती है. इस समय मार्केट में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाली लौकी के सेवन से पेट साफ़ रहता है. हृदय, किडनी, लीवर से जुड़े रोगों एवं मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं वाले पेशेंट भी लौकी का सेवन आराम से कर सकते हैं.
2. कद्दू/सीताफल – कद्दू में पोटेशियम व फाइबर की मात्रा प्रचुर रूप से होती है, जिससे यह हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखता है. भारत में लोग प्राय: कद्दू को सब्जी बनाने के साथ-साथ, सूप, खीर, पोरियल, सलाद आदि के रूप में भी सेवन किया जाता है.
3. फ्रेंच बीन्स – सेहत का पौष्टिक विकल्प फ्रेंच बीन्स न केवल सब्जी अपितु सलाद के तौर पर भी खाया जाता है. इन हरी फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम, जो पाचन क्षमता के लिहाज से बेहद गुणकारी है. इसके सेवन से हृदय रोगों में भी लाभ मिलता है.
4. आंवला – प्राचीनतम आयुर्वेदिक औषधि माना जाने वाला आंवला हमारी त्वचा और बालों के लिए तो अमृत है ही, अपितु इसके नियमित सेवन से त्रिदोष (पित्त, कफ, वायु) में संतुलन बना रहता है और हमारा शरीर हर प्रकार के रोगों से बचा रहता है.
5. मूली – शरीर के लिए प्राकृतिक क्लींजर का कार्य करने वाली मूली हृदय, किडनी, रक्तचाप, कॉमन कफ और कोल्ड में बेहद लाभकारी है. अक्टूबर में यह ताजे रूप में मार्केट में आने लगती है, तो आप भी मूली का सेवन कर स्वास्थ्य लाभ पा सकते हैं.
शरीर को स्वस्थ रखते मौसमी फल
1. नाशपाती - यह फल फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है, साथ ही इसमें पर्याप्त मात्र में विटामिन सी, विटामिन बी12, कॉपर इत्यादि मिनरल्स का खजाना मौजूद है. यह मौसमी बुखार के निवारण के लिए बेहद असरदायक है, क्योंकि यह अपनी एंटीपायरेटिक तकनीक के चलते शरीर के तापमान को संतुलित करती है.
2. सेब - सेब भी इस महीने में मिलने वाले प्रमुख फलों में से है, जिसमें डाइटरी फाइबर की अधिकता के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है. साथ ही इसमें मौजूद पॉलिफेलोल एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है और हमें विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित रखता है.
3. अनार – विश्व के सबसे स्वास्थ्यवर्धक फल का ख़िताब लेने वाला अनार वैसे तो वर्षभर ही बाज़ार में उपलब्ध रहता है, परन्तु अक्टूबर माह में आने वाले मौसमी परिवर्तन से लड़ने के लिए हमारे शरीर को इसकी सर्वाधिक आवश्यकता होती है. डॉक्टर भी सितम्बर और अक्टूबर में अनार का सेवन करने की सलाह देते हैं.
4. अनानास – अनानास में पाया जाने वाला ब्रोमेलैन नामक तत्त्व पेट के बहुत से रोगों के लिए रामबाण इलाज है और हमारे पाचन तंत्र के लिए बेहद आवश्यक भी. साथ ही अपने एंटी- इंफ्लेमेटरी गुणों के चलते बदलते मौसम में होने वाले वाले जोड़ों के दर्द में भी लाभ मिलता है.
5. केला – केले में मौजूद प्रोबायोटिक बैक्टीरिया पेट को ठीक रखता है और बदलते मौसम में भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखता है. केले में पाए जाने वाला पेसटिन तत्व कब्ज दूर रखता है और हमारी जठराग्नि को बढाता है.
ऋतु के संधिकाल पर हमें भी अपनी जीवन शैली में योग और प्राणायाम को शामिल कर स्वास्थ्य लाभ पाना चाहिए. स्वस्थ जीवनशैली में योग का विशेष महत्व है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. योगाचार्य महर्षि पतंजलि के अनुसार,
यानि योग से न केवल शारीरिक अपितु मानसिक शांति भी प्राप्त की जा सकती है. उत्तम स्वास्थ्य के लिहाज से योगासनों को लाभप्रद माना जाता रहा है. ऋतुचर्या के अनुकूल यौगिक आसनों, प्राणायाम एवं मुद्राओं का अभ्यास किया जाना चाहिए. अपने मस्तिष्क को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम से जुड़े अग्रलिखित विकल्प अमल में लाये जा सकते हैं..
1. अनुलोम विलोम प्राणायाम
इस प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए पहले दायिने अंगूठे से दायीं बंद करते हुए बायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है और फिर ऐसे ही श्वास भरते हुए बायीं नासिका को बंद कर दायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है. इस साधारण से प्राणायाम को 5-10 मिनट रोजाना करते रहना चाहिए.
2. कपालभाति प्राणायाम
यह प्राणायाम तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया पर निर्भर है. इसके रोजाना मात्र 10 मिनट के अभ्यास से शरीर उर्जावान और हल्का लगने लगता है.
3. उज्जयी प्राणायाम
पद्मासन में बैठते हुए गहरा श्वास नासिका से फेफड़ों में भरें और गर्दन के थाइरोइड वाले हिस्से को कंपन कराके ओम की ध्वनि उत्पन्न करने की कोशिश करें. श्वास को तब तक अंदर रखें जब तक आप इसको रोक सकतें हैं, फिर दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका बंदकर बायीं नासिका से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें.
4. भ्रामरी प्राणायाम
पद्मासन में बैठते हुए अपने अंगूठों से कानों को हल्के से बंद करें. दो उँगलियों से आँखों को ढकें. अब तेज गति से श्वास भरें और भ्रमर की भांति गुनगुनाते हुए भीतर ही भीतर ओम का उच्चारण करते हुए उसकी तरंगों को मस्तिष्क में महसूस होने दें.
5. उद्धव गीत प्राणायाम
ध्यान मुद्रा में बैठकर ओम शब्द के गहन उच्चारण के द्वारा मस्तिष्क को एकाग्र करने का प्रयास करना उद्धव गीत प्राणायाम है. इसमें गहन तौर पर ओम शब्द का उच्चारण किया जाता है, जिससे शरीर तरोताजा होता है.
ऋतु परिवर्तन में शरीर को शुद्ध रखने हेतु की जाने वाली प्रक्रिया नवरात्रि के नाम से सर्वविख्यात है. नवरात्रि केवल आध्यात्मिक मंथन का ही प्रतीक नहीं है अपितु शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक पवित्रता का भी द्योतक माना जाता है. वैभव व सौभाग्य की अधिष्ठात्री, जगत जननी माँ दुर्गा की आराधना के महापर्व माने जाने वाले नवरात्रि के अवसर पर लोग नौ दिन का उपवास रखते है. इन नौ दिनों के उपवास के दौरान केवल सात्विक आहारचर्या का ही पालन किया जाता है. इसलिए यह बेहद आवश्यक होता है कि व्यक्ति शारदीय नवरात्रि के व्रत में समाहित धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक तथ्य को भी अवश्य जानें.
नवरात्रि से जुड़ें कुछ वैज्ञानिक तथ्य :
1. ऋतु परिवर्तन के इस माह में शरीर में वात, पित्त और कफ दोष के बढ़ने से हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है.
2. प्रतिरोधक क्षमता के घटने के साथ-साथ हमारे पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली क्षीण रहती है, जो केवल हल्का व सुपाच्य आहार ही पचाने में सक्षम होती है.
3. हमारे ऋषि मुनियों के समय से चली आ रही मान्यता हमें संधिकाल की इस बेला में हमें गरिष्ठ भोजन त्याग कर अल्पाहार की ओर केन्द्रित करती है. इसी कारण नवरात्रि के नौ दिन उपवास रखने से पाचन तंत्र बेहतर होता है.
4. नवरात्रि के दौरान उचित प्रकार से उपवास रखने से हमारा शरीर वर्ष भर तक रोगों से दूर रहता है.
5. संधिकाल के अंतर्गत संक्रामक रोगों (जिन्हें वैदिक काल में आसुरी शक्तियों की संज्ञा दी जाती थी) का प्रकोप अत्याधिक होता है. इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा नवरात्रि यानि नौ रात्रि तक विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों के प्रयोग से हवन पूजन इत्यादि करके वातावरण शुद्धि की प्रक्रिया अमल में लाई जाती थी.
अक्टूबर में होने वाले रोग एवं उनका आयुर्वेदिक समाधान
संधिकाल में होने वाले मौसमी बदलाव में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर बेहद प्रभाव पड़ता है, हालांकि यह माह अनुकूल माना जाता है. परन्तु सर्द-गर्म के इस मिलेजुले मौसम में हम न चाहते हुए भी कुछ मौसमी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.
वातावरण में आने वाले बदलाव के चलते विभिन्न संक्रामक बीमारियां भी फैलने लगती हैं. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी इस मौसम में काफी प्रभाव पड़ता है. अक्टूबर माह में होने वाली मुख्य बीमारियों को नजरंदाज न कर के उपयुक्त चिकित्सीय सलाह व आयुर्वेद के माध्यम से उनका निदान करना बेहद आवश्यक है.
1. एलर्जी
शरद ऋतु के प्रारंभ में ठंड बढ़ने लगती है और प्रदूषक तत्त्व वातावरण में हवा के साथ उड़ते रहते हैं. जिसके चलते ये कण लोगों की आँखों या नासिका के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं और परिणामस्वरुप आँखों में जलन, साइनस से जुड़ी समस्याएं और श्वसन तंत्र में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.
2. कफ और कोल्ड
वैसे तो खांसी और जुकाम सर्दियों में अधिक होता है, परन्तु बदलते मौसम में सर्द-गर्म की प्रवृति और अधिक रहती है, जिसके चलते अक्सर ऋतु परिवर्तन के समय हम विभिन्न संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाते हैं. मौसम परिवर्तन के कारण खांसी-जुकाम तेजी से फैलता है और विशेष रूप से छोटे बच्चों, बुजुर्गों को परेशान कर सकता है.
3. मौसमी फ्लू/ इन्फ्लुएंजा
मौसम में आए परिवर्तन से हमारा शरीर परिचित नहीं हो पाता है और मौसमी बुखार का शिकार बन जाता है. अपने शारीरिक तापमान को मौसम में ढलने के लिए समय दिए बिना ही हम उसके उलट क्रियाकलाप आरम्भ कर देते हैं, जिससे प्रतिरक्षण तंत्र प्रभावित होता है और इसका नतीजा ज्वर के रूप में देखने को मिलता है.
4. चिकनगुनिया
चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है, जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है. एडिस मच्छर के काटने से खून में प्रवेश करने वाले इस विषाणु के लक्षण भी डेंगू के ही समान है. हालांकि यह डेंगू के समान जानलेवा नहीं होता किन्तु इससे पीड़ित रोगी को अत्याधिक कमजोरी, जोड़ों में बेहद दर्द और महीनों तक थकान का अनुभव होता है.
5. जोड़ों में दर्द/आर्थराइटिस
इसके अतिरिक्त गठिया, जोड़ों के दर्द आदि से प्रभावित मरीजों के लिए भी यह समय दुष्कर होता है. मौसम का अनिश्चित चक्र, जैसे अक्टूबर में वर्षा से उत्पन्न ठंड सरदर्द, जोड़ो के दर्द, थकान इत्यादि को बढ़ावा देती है, जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी देखने को मिलता है. अनिद्रा, व्यवहार परिवर्तन, गतिशीलता में कमी इत्यादि देखने को मिलते हैं.
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