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जानें कैसे प्रदूषण हमें बना रहा है बीमार, सघन वनरोपण से किया जा सकता है प्रदूषण नियंत्रित

Venkatesh Dutta

Venkatesh Dutta Opinions & Updates

ByVenkatesh Dutta Venkatesh Dutta   57

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैस

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैसे दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, हरियाणा आदि में आबोहवा इतनी विषाक्त हो चुकी है कि सरकारों के तमाम प्रयास विफल साबित हो रहे हैं. हमारी नदियां, भूजल और प्राकृतिक जल के स्त्रोतों पर भी प्रदूषण का ग्रहण लग चुका है और इसी अवजल से सींचें जाने के चलते हमारा अन्न भी सुरक्षित नहीं रह गया है. प्रदूषण को लेकर जितने सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए, उतने नहीं हो पाना हमारे लिए एक बड़ी विफलता साबित हो रही है. आज जब हमें स्वच्छ अन्न, जल और वायु के हमारे अधिकार को लेकर सबसे अधिक जागरूक होना चाहिए, वहां हम जीवट जन के अन्य मुद्दों पर आवाज उठाये हुए हैं. यूनिसेफ की ओर से बाल अधिकार अभियान के तहत पृथ्वी रक्षक मुहिम में पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि कैसे प्रदूषण हमें प्रभावित कर रहा है और इससे बचने के उपाय क्या होने चाहिए. 

अन्न, जल और वायु प्रदूषण को रोकना होगा 

बीबीएयू के पर्यावरण विभाग के डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि आज प्रदूषण के कारण हमारी तीनों मूलभूल जरूरतें मिलावट की जद में आ गई हैं. हवा में प्रदूषण से एक्यूआई की हालत गंभीर है, ऐसे में जब शरीर में जाने वाली ऑक्सिजन शुद्ध नहीं होगी तो हमारी उम्र घटेगी ही. वहीं, पानी इतना कंटामिनेटेड हो गया है कि बिना ट्रीटमेंट पीने लायक ही नहीं है. इसी तरह खाने की चीजों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हमें रोगी बना रहा है. ऐसे में पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आने से बीमारियां बढ़ रही हैं. यानि अब सर्वाधिक जरुरी हो गया है कि जीवन के इन तीन मूलभूत तत्त्वों की सुरक्षा के लिए कोशिश की जाये.

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैस

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ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रही हैं वेक्टर जनित बीमारियां  

वेक्‍टर यानि ऐसे जीव समूह, जो रोगाणुओं और परजीवियों को किसी संक्रमित व्‍यक्ति (अथवा पशु) से अन्‍य व्‍यक्ति तक पहुंचाते हैं. वेक्‍टरजन्‍य रोग ऐसी बीमारियां हैं, जो इन रोगाणुओं और परजीवियों द्वारा मनुष्‍यों में फैलती हैं और विश्‍व में सभी संक्रामक बीमारियों में से लगभग 17 प्रतिशत इन्‍हीं बीमारियों के कारण हैं. वैसे तो यह बीमारियां उष्‍णकटिबंधीय क्षेत्रों में सर्वाधिक होती हैं, जहां 40 फीसदी अनुमानत आबादी इनसे प्रभावित होती है, लेकिन वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और अंधाधुंध शहरीकरण ने उन देशों में भी इन बीमारियों का प्रचार कर दिया है, जहां इनका कोई अस्तित्व भी नहीं था. 

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैस

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डॉ. वेंकटेश के अनुसार प्रकृति में हर चीज का संतुलन जरूरी है. सांस लेने और छोड़ने के दौरान जो भी कार्बन डाई ऑक्साइड हम छोड़ते हैं, उसे पेड़-पौधे और समुद्र अवशोषित करते हैं और कार्बन सिंक का काम करते हैं. लेकिन वर्तमान में जिस तेजी से पेड़ों का कटाव हो रहा है इससे यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है. कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ी मात्रा और पानी आपस में मिलकर समुद्र की एसिडिटी बढ़ा रहे हैं, इससे समुद्र का पीएच बैलेंस प्रभावित हो रहा है और जलीय जीवन को आघात पहुंच रहा है. वहीं, जंगलों के खत्म होने से बीते सौ वर्षों में धरती का तापमान 1 से 9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है, जिससे संक्रामक रोग भी तेजी से पनप रहे हैं. 

सघन वृक्षारोपण एक बेहतर उपाय  

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अधिक से अधिक वृक्ष किसी भी क्षेत्र की वायु को तो स्वच्छ बनाये ही रखते हैं बल्कि भू जलस्तर को भी रिचार्ज रखने में सहायक बनेंगे. डॉ. वेंकटेश ने बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार को अपनी बनाई पॉलिसी की मॉनिटरिंग करनी होगी. वहीं, लोगों को चाहिए कि घरों के आसपास पेड़ पौधे लगाने के साथ माइक्रोफॉरेस्ट बनाने जायें और इसके लिए एक एरिया में 40 से 50 पेड़ कम दूरी पर लगाएं. सघन वृक्षारोपण से पर्यावरण को स्थिरता और वायु को स्वच्छता दोनों ही मिलते हैं, जो प्रदूषण को कम करने में सहायता दे सकते हैं. 

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैस

प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल में दिखाएं समझदारी  

ऋग्वेद में कहा गया है कि यह पृथ्वीलोक, अन्तरिक्ष, वनस्पतियां, रस तथा जल एक बार ही उत्पन्न होता है, बार-बार नहीं, अतः इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है, इसके बावजूद भी हम स्वार्थवश इन अनमोल उपहारों का विनाश करने पर तुले हैं. व्यक्ति की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, अगर हम अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करें तो प्रकृति पर भी अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा. जैसे हम अगर साल में दो चमड़े के जूते खरीदते हैं तो एक का इस्तेमाल करें. इससे चमड़े का प्रॉडक्शन कम होगा और इंवारनमेंट पर दवाब कम पड़ेगा. अगर मौसम अनुकूल लगे तो कार या घर में लगे एयर कंडीशनर का उपयोग भी बंद कर दे, जिससे वातावरणीय ताप कम उपन्न होगा.  

आज प्रदूषण के कारण दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ, सरकारें और वैज्ञानिक परेशान हैं, भारतीय नगरों जैस

मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य और पृथ्वी के संरक्षण के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि इस पर पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों का सन्तुलन बरक़रार रहे. पृथ्वी से ही नाना प्रकार के फल-फूल, औषधियाँ, अनाज, पेड़-पौधे आदि उत्पन्न होते हैं तथा पृथ्वी-तल के नीचे बहुमूल्य धातुओं एवं जल का अक्षय भण्डार है, जिनसे हमारा जीवन कायम है. अतः इसका संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है ताकि पृथ्वी के ऊपर जीव-जगत सदैव फलता-फूलता रहे. 

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