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कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम

Kukrail Nala Lucknow a Major Tributory of river Gomti  - Research and analysis

Kukrail Nala Lucknow a Major Tributory of river Gomti - Research and analysis News and Media Coverage

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   {{descmodel.currdesc.readstats }}

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कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध संस्कृति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है—कुकरैल रिवर फ्रंट। गोमती नदी की सहायक कुकरैल नदी, जो कभी जीवनदायिनी हुआ करती थी, शहरीकरण और अतिक्रमण की मार झेलते हुए एक छोटे से नाले में सिमट गई थी। लेकिन 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ऐतिहासिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। अब इस प्राचीन नदी को फिर से उसका खोया वैभव लौटाया जा रहा है, और इसे एक आकर्षक इको-टूरिज्म हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। कुकरैल रिवर फ्रंट न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह लखनऊ के नागरिकों और पर्यटकों के लिए एक नई जीवनशैली का प्रतीक भी बनने जा रहा है—जहां आधुनिकता और प्रकृति का अद्वितीय संगम देखने को मिलेगा।

कुकरैल रिवर फ्रंट परियोजना: एक नई पहचान की ओर

कुकरैल नदी, जो कभी अपने निर्मल जल से क्षेत्र की खुशहाली का प्रतीक थी, समय के साथ अतिक्रमण और शहरीकरण की चपेट में आकर अपनी पहचान खो चुकी थी। अब, शासन और प्रशासन मिलकर इस नदी को उसके पुराने गौरवशाली स्वरूप में लौटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कुकरैल रिवर फ्रंट परियोजना के तहत साबरमती रिवर फ्रन्ट की तर्ज पर इस नदी को न केवल पुनर्जीवित किया जा रहा है, बल्कि इसे एक ऐसी इको-टूरिज्म डेस्टिनेशन में तब्दील किया जा रहा है जो शहर की पहचान का नया केंद्र बनेगी।

नदी किनारे का सौंदर्यीकरण से लेकर नाइट सफारी और एडवेंचर एक्टिविटीज़ तक, यह परियोजना न केवल कुकरैल की अविरल धारा को लौटाने का वादा करती है, बल्कि लखनऊ के लोगों को एक ऐसा स्थल प्रदान करेगी जहां वे प्रकृति के साथ सुकून के पल बिता सकेंगे। यह परियोजना न सिर्फ़ लखनऊ की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर को सहेजने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नई पर्यावरण-संवेदनशील जीवनशैली को प्रोत्साहित करने का प्रयास भी है।

कुकरैल में नालों की टैपिंग और एसटीपी का निर्माण: प्रदूषण मुक्त भविष्य की पहल 

कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है—नालों की टैपिंग और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण। दशकों से, शहर के गंदे नालों और अव्यवस्थित सीवेज प्रणाली ने इस नदी को गंभीर प्रदूषण की स्थिति में ला खड़ा किया था। अब, इस नदी को फिर से स्वच्छ और प्रवाहमय बनाने के लिए सरकार ने बहुस्तरीय योजनाएं शुरू की हैं।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

कुकरैल में गिरने वाले 39 नालों को रोकने का कार्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। पहले चरण में 17 नालों को टैप कर 95% कार्य पूरा हो चुका है, जिससे गंदगी का प्रवाह नदी में रुकने लगा है। दूसरे चरण में 22 और नालों को टैप कर 6 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) अशोधित सीवेज को रोका जाएगा।

परियोजना का मुख्य आकर्षण 40 एमएलटी (मिलियन लीटर प्रति टन) क्षमता का एसटीपी है, जो कुकरैल में शोधित पानी छोड़ने के लिए बनाया जा रहा है। यह ट्रीटमेंट प्लांट, अकबरनगर में अवैध निर्माण को हटाकर बनाई गई 1.50 हेक्टेयर भूमि पर निर्मित किया जा रहा है, जो इस नदी के जल प्रवाह को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाएगा।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

कुकरैल नाइट सफारी: इको-टूरिज्म का अहम केंद्र

लखनऊ के दिल में बसी कुकरैल नाइट सफारी, भारत की पहली नाइट सफारी के रूप में उभरने जा रही है। यह परियोजना न केवल लखनऊ को वैश्विक पर्यटन के नक्शे पर लाएगी, बल्कि यह पर्यटकों को वन्य जीवन का अनोखा अनुभव भी प्रदान करेगी। कुकरैल नाइट सफारी अपने आप में एक ऐसा इको-टूरिज्म हब होगा, जो प्रकृति प्रेमियों और साहसिक यात्रियों के लिए एक अद्वितीय आकर्षण का केंद्र बनेगा।

यहां आने वाले पर्यटक 5.5 किलोमीटर ट्राम-वे और 1.92 किलोमीटर पाथ-वे के जरिए सफारी का आनंद उठा सकेंगे, जहां वे बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, घड़ियाल, तेंदुआ, उड़न गिलहरी, और हायना जैसे रोमांचक वन्य जीवों को रात के अंधेरे में देख सकेंगे। सफारी में 42 इनक्लोजर्स में 54 प्रजातियों के जानवर रखे जाएंगे, जिन्हें इंडियन वॉकिंग ट्रेल, इंडियन फुटहिल, इंडियन वेटलैंड, और अफ्रीकन वेटलैंड जैसी विशिष्ट थीम पर आधारित क्षेत्रों में रखा जाएगा, जो इसे और भी खास बनाएंगे।

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कुकरैल नाइट सफारी न केवल वन्य जीव प्रेमियों के लिए एक सपना साकार करेगी, बल्कि यह एडवेंचर एक्टिविटी और प्राकृतिक सौंदर्य का मिश्रण भी होगी। दोनों किनारों पर विकसित किए जाने वाले सुंदर पार्क, सैर-सपाटे और परिवार के साथ समय बिताने के लिए आदर्श स्थान बनेंगे। यह नाइट सफारी लखनऊ की नई पहचान बनेगी और आने वाले समय में इको-टूरिज्म का प्रतीक मानी जाएगी, जो शहर के विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों के संतुलन को दर्शाएगी।

अवैध निर्माण हटाकर पुनर्जीवित होते जल स्रोत

कुकरैल नदी का पुनरुद्धार केवल एक परियोजना नहीं है, बल्कि यह शहर के खोए हुए जल स्रोतों को नया जीवन देने का एक व्यापक अभियान है। दशकों से शहरीकरण और अवैध कब्जों के चलते कुकरैल नदी और उसके आसपास के क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होते आए हैं। पर अब, शासन-प्रशासन ने इन अवैध निर्माणों के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

अकबरनगर में हुए बड़े पैमाने पर अतिक्रमणों को हटाकर करीब 24.5 एकड़ भूमि को पुनः नदी के लिए खाली किया गया है। इसमें 1169 मकानों और 101 व्यावसायिक निर्माणों को ध्वस्त कर, कुकरैल के प्रवाह के लिए रास्ता खोला गया है। यह व्यापक अभियान दिसंबर 2023 में शुरू होकर अनवरत चलता रहा और आखिरकार जून 2024 में इस क्षेत्र को पूरी तरह से अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया।

अतिक्रमणों से मुक्त इस क्षेत्र को अब एक इको-टूरिज्म हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। कुकरैल नदी का उद्गम स्थल बख्शी का तालाब के पास स्थित दशौली गांव को मानते हुए वहीं से पुनर्विकास शुरू किया जाएगा। इसके साथ ही सभी तालाबों को आपस में जोड़ने का कार्य किया जा रहा है ताकि यहां का जल स्तर बरकरार रहे और क्षेत्र में स्वच्छ जल की आपूर्ति होती रहे।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

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इस पहल से न केवल जल स्रोतों का पुनर्जीवन होगा बल्कि यह लखनऊ के पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देगा। कुकरैल रिवर फ्रंट परियोजना के माध्यम से अवैध निर्माणों के खात्मे ने जल संरक्षण और स्वच्छता के प्रति नई जागरूकता पैदा की है, जो आने वाले समय में एक स्थायी पर्यावरणीय सुधार की दिशा में अहम कदम साबित होगी।

बख्शी के तालाब से कुकरैल का पुनर्विकास: एक धरोहर को पुनर्जीवन 

कुकरैल नदी, जिसका उद्गम स्थल बख्शी का तालाब के पास स्थित दशौली गांव में है, अब अपने खोए हुए गौरव को पुनः प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। लंबे समय तक शहरीकरण और अतिक्रमण से प्रभावित इस नदी को पुनर्जीवित करने का कार्य शासन और प्रशासन की प्राथमिकताओं में शामिल हो गया है। कुकरैल के पुनर्विकास की यह पहल न केवल इस ऐतिहासिक धारा को पुनः संजीवनी देगी, बल्कि इसे एक आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल संरचना में भी बदल देगी।

दशौली गांव से ही नदी के विकास की योजना की शुरुआत की जा रही है। इस प्रयास के तहत यहां मौजूद तालाबों को आपस में इंटरलिंक करके एक सशक्त जल संरचना तैयार की जा रही है। इन जल निकायों को जोड़ने से कुकरैल नदी में जल प्रवाह बढ़ेगा और क्षेत्र में स्वच्छ जल की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बनेगा। यह नदी, जो कभी ग्रामीण इलाकों में सिंचाई और पेयजल का मुख्य स्त्रोत थी, अब एक बार फिर से अपनी पुरानी भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर हो रही है।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

इसके साथ ही नगर विकास विभाग और अन्य संबंधित विभागों की देखरेख में यहां नई परियोजनाएं मूर्त रूप ले रही हैं। आने वाले समय में इको-टूरिज्म के हब के रूप में कुकरैल का विकास इसे न केवल एक पर्यावरणीय मॉडल बनाएगा बल्कि लोगों को जल संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन के महत्व से भी अवगत कराएगा। यह पुनर्विकास न केवल कुकरैल नदी के अस्तित्व को पुनः स्थापित करेगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत धरोहर भी छोड़ेगा, जो जल स्रोतों और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता रहेगा।

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कुकरैल नदी का ऐतिहासिक महत्व: एक प्राकृतिक धरोहर की गौरवगाथा

कुकरैल नदी, जो लखनऊ की प्राचीन धरोहरों में से एक है, न केवल एक नदी के रूप में बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धारा के रूप में भी विशेष महत्व रखती है। दशौली गांव के पास स्थित बख्शी का तालाब से निकलने वाली यह नदी कभी 28 किलोमीटर लंबी धारा के रूप में गोमती नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक हुआ करती थी। स्थानीय इतिहास में इस नदी का जल न केवल सिंचाई और पेयजल का प्रमुख स्रोत था, बल्कि इसकी धारा को पवित्र और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता था।

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम-लखनऊ की

कुकरैल का इतिहास केवल पानी की एक कहानी मात्र नहीं है, बल्कि यह उस विश्वास और आस्था से भी जुड़ा है, जो सदियों से यहां के लोगों ने इस नदी पर जताया है। माना जाता था कि इस नदी के जल में स्नान करने से रैबीज जैसी गंभीर बीमारी ठीक हो जाती थी। आज भी बख्शी का तालाब और आस-पास के लोग इस मान्यता को संजोए हुए हैं, और कई लोग यहां स्नान करने आते हैं।

यह नदी कभी लखनऊ के ग्रामीण इलाकों में खेती के लिए जीवनरेखा के रूप में जानी जाती थी। इसके पानी से खेतों की सिंचाई होती थी और यह गाँवों के पेयजल का प्रमुख स्रोत थी। लेकिन समय के साथ शहरीकरण और अनियंत्रित अतिक्रमण ने इस ऐतिहासिक धारा को नाले का रूप दे दिया। कभी शक्तिशाली धारा बहाने वाली कुकरैल अब शहर के गंदे नालों का शिकार हो गई और उसकी पहचान एक प्रदूषित धारा तक सिमट गई।

फिर भी, कुकरैल के इतिहास में अनेकों कहानियाँ समाहित हैं—आस्था, पर्यावरणीय संरक्षण, और मानव जीवन से जुड़े उसके अनगिनत पहलू। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक जीवंत धरोहर है, जिसने कई पीढ़ियों को अपने जल से पोषित किया। इस नदी के प्रति लोगों की भावनाएँ इतनी गहरी हैं कि लखनऊ के पूर्व विधायक स्व आशुतोष टंडन स्वयं बाल्यकाल के एक किस्सा साझा करते हुए बताते थे कि जब बचपन में एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया था, तो उन्हें कुकरैल के जल में स्नान कराया गया था, और यह मान्यता आज भी ग्रामीण इलाकों में मानी जाती है।

कुकरैल का इतिहास इसके पुनरुद्धार को और भी विशेष बनाता है। जब यह नदी फिर से अपनी पुरानी धारा में लौटेगी, तो यह केवल जल स्रोत नहीं बल्कि लखनऊ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में एक बार फिर से स्थापित होगी। इसके पुनर्विकास का यह सफर लखनऊ के अतीत को उसके वर्तमान से जोड़ता है, और भविष्य के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत करता है।

कुकरैल नदी की पुनःस्थापना - भविष्य की धरोहर और गोमती नदी को संजीवनी

कुकरैल नदी का पुनरुद्धार केवल एक पर्यावरणीय परियोजना नहीं, बल्कि लखनऊ की प्राचीन धरोहर गोमती नदी को संजीवनी देने का एक प्रेरणादायक प्रयास है। वर्षों के अतिक्रमण और प्रदूषण ने इसे भले ही एक नाले में तब्दील कर दिया हो, लेकिन कुकरैल नदी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी अटूट है। इस परियोजना के माध्यम से न केवल नदी को पुनर्जीवित किया जा रहा है, बल्कि इसे इको-टूरिज्म हब के रूप में विकसित करके आने वाली पीढ़ियों के लिए एक विरासत के रूप में संरक्षित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चल रही इस पहल ने न केवल नदी को उसकी प्राकृतिक धारा में लौटाने का संकल्प लिया है, बल्कि इसके तटों को प्रदूषण मुक्त और सौंदर्यपूर्ण बनाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाए हैं। नाइट सफारी, इको पार्क, और जल निकायों के पुनरुद्धार जैसी योजनाएं इस परियोजना को एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक मॉडल के रूप में स्थापित करेंगी।

कुकरैल का यह पुनरुत्थान लखनऊ के लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है और इसके साथ ही यह गोमती नदी को भी महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करेगा। गोमती नदी, जो वर्षों से प्रदूषण की मार झेल रही है, अब कुकरैल के पुनरुद्धार से लाभान्वित होगी। कुकरैल नदी से होने वाली जल निकासी और उसकी स्वच्छता गोमती नदी के जल गुणवत्ता में सुधार लाने में मददगार साबित होगी, जिससे शहर का पर्यावरणीय संतुलन बेहतर होगा।

यह परियोजना आने वाले समय में न केवल लखनऊ के पर्यावरण को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि इसे एक नई पहचान भी देगी—एक ऐसी पहचान, जो इतिहास और आधुनिकता का अनूठा संगम होगी। कुकरैल नदी का यह पुनर्निर्माण न केवल प्रकृति की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह इस बात का संदेश भी है कि यदि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने का संकल्प लें, तो हम अपनी धरोहरों को पुनः प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें भविष्य के लिए संरक्षित कर सकते हैं।

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