हिन्दू पंचांग के अंतर्गत चंद्र मास का तीसरा महीना जून ज्येष्ठ अथवा जेठ (लोक प्रचलित) माह को माना गया है. इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है, परिणामस्वरुप यह सम्पूर्ण मास जल तत्त्व को समर्पित किया गया है. जून का महीना सम्पूर्ण उत्तर भारत में अधिकतम तापमान और
प्रचंड गर्मी का परिचायक है. विशेषकर उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकतर हिस्सों में इस
माह के अंतर्गत सूर्य किरणों की प्रखरता, 48 डिग्री सेल्सियस तक तापमान, धूल भरी
आंधी सामान्य है, जिससे जनजीवन त्रस्त सा रहता है.
वैसे देखा जाये तो जून का महीना पर्यावरण एवं जल के संरक्षण के लिहाज से भी
बेहद खास माना जाता है, प्रकृति की अनुपम देन जल, वायु, भूमि इत्यादि को सहेजने की
पहल करते हुए “वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे” (5 जून) को मनाने का प्रारंभ वर्ष 1972 में
किया गया था. भारतीय परम्पराओं को गहनता से समझकर देखें तो हमारे ऋषि-मुनियों ने
प्रकृति को संरक्षित करने एवं सम्मान देने का यह क्रम सदियों पहले ही आरंभ कर दिया
था, जून माह में आने वाले पर्व “गंगा-दशहरा”, “निर्जला एकादशी” आदि उसी गौरवान्वित
संस्कृति के प्रतीक हैं.
प्राचीन समय से ही भारत में ऋषि-मुनियों द्वारा जल को संरक्षित करने की बात कही जाती रही है, जिसे आज भी प्रासंगिक माना जाता है. वैज्ञानिक पक्ष पर भी गौर करें तो भयंकर गर्मीं के कारण इस समयावधि में वातावरण, मनुष्य एवं जीव-जन्तुओं सभी में जल तत्त्व का स्तर तेजी से घटता है, इसलिए भारतीय संस्कृति में जल-संरक्षण को लेकर युगों से मनन चलता आ रहा है.
भारतीय जलवायु के अनुसार जून ग्रीष्मऋतु का अंतिम माह है, जिसके उपरांत मानसून
का आगमन हो जाता है और गर्मी की प्रखरता में कमी आ जाती है. इसी कारण जून का महीना
सर्वाधिक गर्म एवं शुष्कता से परिपूर्ण होता है और इसमें स्वस्थ बने रहने के लिए
उचित ऋतुचर्या का पालन करना आवश्यक है, ताकि हम शारीरिक और मानसिक रूप से निरोगी
रहकर प्रचंड गर्मी में भी आरोग्य का वरदान प्राप्त कर सकें.
तो जून के माह में कैसी हो आपकी ऋतुचर्या एवं आपका आहार-विहार, कैसे हीट तो
बीट करते हुए आप अपने स्वास्थ्य को बरक़रार रख सकते हैं और कैसे हर मौसम में बने
रहे दुरुस्त... इसके लिए
बैलटबॉक्सइंडिया प्रस्तुत करता है जून स्वास्थ्य विशेषांक, ताकि आप जान सकें जून
में तरोताजा रहने के कुछ सरल, मौसमी, घरेलू और प्राकृतिक तौर तरीके.
1. जून माह में जलवायु संरचना एवं शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव
ग्रीष्मकालीन ऋतु के अंतर्गत सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा के नजदीक जाने लगता
है, जिससे समस्त भारत में गर्मी की अधिकता दिखाई देने लगती है. साथ ही तापमान का
अधिकतम बिंदु भी दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता है, परिणामस्वरुप उत्तर-पश्चिमी भारत
में तापमान 45-48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, प्राकृतिक जलस्त्रोत सूखने
लगते हैं.
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली इत्यादि राज्यों में इस समय
दिन में “लू” एवं शाम के समय धूल भरी आंधियां चलती हैं, जिनके कारण दृश्यता काफी
न्यून हो जाती है. साथ ही कभी कभी हल्की बारिश भी हो जाती है, जिससे तापमान में तो
कमी आती है, परन्तु आद्रता बढ़ जाती है.
जून में विशेषत: दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं, इसी मौसमी संरचना के चलते
21 जून (कभी कभी 20 या 22 जून) को साल का सबसे बड़ा दिन माना जाता है. इस खगोलीय
घटना को “ग्रीष्म अयनांत” के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें समस्त उत्तरी
गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें 15-16 घंटे तक पृथ्वी पर रहती हैं.
जलवायु में हुए व्यापक परिवर्तन के कारण हमारे शरीर में भी इस
माह में बहुत से परिवर्तन होते हैं, जैसे..
1. कमजोर पाचन तंत्र
2. शारीरिक उर्जा में कमी
3. शरीर में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन
4. अधिक थकान एवं कमजोरी महसूस करना
5. धूल भरी आंधी के कारण आँखों एवं श्वसन तंत्र में
समस्याएं
2. जून माह में आहारचर्या –
जलवायु में परिवर्तन आने से हमारे शारीरिक क्रिया-कलाप,
खान-पान के तरीकों आदि पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. हमारी परंपरागत आयुर्वेदिक
नियमावली के अनुसार गर्मियों में ठोस आहार का सेवन कम से कम और पेय पदार्थों का
सेवन अत्याधिक करना हितकर माना जाता है, क्योंकि इस समय
प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में जल का ह्रास होने लगता है और शारीरिक ऊर्जा में
कमी आ जाती है. ऐसे में आवश्यक है कि हमारे भोजन में ताज़ी सब्जियों, मौसमी फलों, सुपाच्य आहार और
पेय पदार्थों की बहुलता हो.
मौसमी फलों से पाएं शारीरिक स्फूर्ति :
गर्मी के बढ़ने के साथ साथ जहां हमारे शरीर में जल का अभाव
होने लगता है, वहीं प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार ग्रीष्मकालीन ऋतु के अंतर्गत
रसीले फलों जैसे आम, लीची, जामुन, आडू, शहतूत, चैरी आदि भारतीय बाजारों में
बहुतायत बिकने आरंभ हो जाते हैं. जिनसे हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्व प्राप्त
होते हैं और हम सेहतमंद बने रहते हैं.
1. आम - गर्मियों में आम को कच्चा एवं पक्का, दोनों ही रूप में
आहार में शामिल किया जाता है. आम लू से बचाव करने के साथ साथ रक्त संचरण को सुचारू
बनाये रखता है, साथ ही आंतों को शुद्ध बनाता है और इम्युनिटी सिस्टम मजबूत बना
रहता है.
2. लीची - स्वाद में मीठी और रसीली होने के साथ ही लीची
सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है, इसके सेवन से हृदय स्वस्थ रहता है. धूल भरी आंधी
से श्वसन तंत्र को होने वाले रोगों जैसे अस्थमा, एलर्जी आदि में लाभ मिलता है और
यह शरीर को हाइड्रेट रखने में भी सहायक है.
3. जामुन – अम्लीय प्रकृति का फल जामुन गर्मियों के मौसम
में ही पैदा होता है और पाचन तंत्र की कमजोरी में उपयोगी माना जाता है. मधुमेह के
रोगियों के लिए रामबाण माने जाने वाला जामुन गर्मी के कारण होने वाले विभिन्न उदर
रोगों जैसे उलटी-दस्त, पेचिश आदि में भी लाभप्रद है.
4. आडू – खट्टा-मीठा आडू यानि पीच विभिन्न पोषक तत्वों और
एंटी ऑक्सीडेंटस का खजाना है. यह रक्त-परिसंचरण को गति देकर आँखों की रोशनी बढ़ाता
है, गुर्दे, पेट एवं लीवर से विषाक्त तत्वों को बाहर कर पाचन प्रक्रिया को दुरुस्त
रखता है और उच्च फाइबर के चलते कब्ज में भी राहत प्रदान करता है.
5. शहतूत – बेहद नर्म एवं मीठा फल शहतूत गर्मियों की एक ऐसी
प्राकृतिक सौगात है, जो विविध गुणों से युक्त है. शहतूत में पाया जाने वाला रेजवर्टेरोल
नामक तत्त्व शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है, पाचन शक्ति को दुरुस्त
करता है तथा इसके नियमित सेवन से लू से भी बचाव होता है.
6. चैरी – 75 प्रतिशत पानी एवं विटामिन सी से युक्त चैरी के
सेवन से नेत्र-ज्योति बढती है. पाचन क्षमता दुरुस्त रहती है तथा शरीर में उर्जा
बनी रहती है. यह रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी संतुलित रखने में सहायक है.
शरीर को ताजगी प्रदान करती मौसमी सब्जियां –
1. फ्रेंच बीन्स – सेहत का पौष्टिक विकल्प फ्रेंच बीन्स न
केवल सब्जी अपितु सलाद के तौर पर भी गर्मियों में खाया जाता है. इन हरी फलियों में
फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम, जो पाचन
क्षमता के लिहाज से बेहद गुणकारी है. इसके सेवन से हृदय रोगों में भी लाभ मिलता
है.
2. भिंडी – औषधीय गुणों से भरपूर भिंडी में घुलनशील फाइबर
होते हैं जो रक्त में जाकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं, इसमें
मौजूद आयरन हमारे स्वास्थय के लिए लाभकारी होता है. भिंडी में उच्च मात्रा में पाए
जाने वाले फाइबर हमारे पाचन तंत्र को ठीक करने में सहायक होते हैं. वहीं इसके सेवन
से आंतों की सूजन में भी लाभ मिलता है.
3. कटहल – उष्णकटिबंधीय फल कटहल विविध पोषक
तत्वों से भरा हुआ एक स्वादिष्ट फल है, जिसे सब्जी के तौर पर भारत में खाया जाता
है. यह शरीर को तुरंत एनर्जी देता है, उच्च रक्तचाप, हीट स्ट्रोक जैसे रोगों से
लड़ने में कोशिकाओं की सहायता करता है तथा फाइबर का उच्च स्त्रोत होने के चलते यह
पाचन क्षमता को सुचारू करता है.
4. कच्चा आम – कच्चा आम यानि आम बोलचाल की भाषा में कैरी का
सेवन आम पन्ना, चटनी, सब्जी, अचार इत्यादि के तौर पर गर्मियों में किया जाता है.
यह रक्त संबंधी विकारों को दूर करता है, हीट स्ट्रोक, लू, डिहाइड्रेशन जैसे गर्मी
जनित रोगों से बचाव करता है तथा अत्याधिक पसीने की समस्या को भी कच्चे आम के सेवन
से कम किया जा सकता है.
5. हरा पपीता – हरा यानि कच्चा पपीता गर्मियों में सलाद,
सूप या सब्जियों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है. कच्चे पपीते के सेवन से
पेटदर्द की समस्या और पेट में गैस की समस्या में आराम मिलता है. इसके साथ ये पाचन
तंत्र को भी ठीक रखने का काम करता है. साथ ही यह यूरिनल इन्फेक्शन में भी राहत
दिलाता है.
6. खीरा - शरीर की आन्तरिक तपन को शांत करने में खीरा
सर्वाधिक सहायक होता है. जिसे केवल भारत में ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में लोग
प्राय: 12 महीने सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं, परन्तु ग्रीष्म
ऋतु से यह ताजा व सरल रूप से बाज़ार में उपलब्ध होता है. यह विभिन्न गर्मीजनित
रोगों जैसे आँखों की जलन, हीट स्ट्रोक, उदर रोगों आदि में हितकर है.
इस प्रकार मौसमी आहार को अपनी दैनिकचर्या में सम्मिलित कर आप उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करते हुए अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं. साथ ही अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थों जैसे सत्तू का घोल, शिकंजी, गन्ने का रस (स्वच्छ रूप से निकला हुआ), ताजा फलों का रस, आम पन्ना, छाछ इत्यादि के साथ साथ कुछ हर्ब्स जैसे पुदीना, करी पत्ता, मधु तुलसी, एलोवेरा का उपयोग विभिन्न मौसमी रोगों में करके भी आप निरोगी बने रह सकते हैं.
3. जून माह में प्रकृति के अनुरूप हो ऋतुचर्या
हमारे शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए प्रकृति ने स्वयं ही
प्रत्येक मौसम के अनरूप आहार, दैनिकचर्या, रहवास इत्यादि की संरचना की है. प्राकृतिक
वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु तथा मनुष्य के कार्य कलाप पूरी तरह से जलवायु की
अवस्था पर ही निर्भर करते हैं. जून माह में गर्मी अपने चरम पर होती है और इसका
प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे रहन-सहन, खान-पान, जीवन शैली आदि पर भी दिखाई देता है.
परंतु बहुत बार हम असंयमित होकर ऋतुविरोधी जीवनचर्या अपनाकर
अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल लेते हैं और विभिन्न रोगों को आने का न्योता
अनजाने ही दे देते हैं. मसलन गर्मियों में शीतल, सरस और मृदु प्रवृति के आहार का
सेवन किया जाना सर्वोत्तम हैं..जैसे फलों का रस, सब्जियों का सूप, दलिया, खिचड़ी,
छाछ, सलाद, ताजे फल इत्यादि, परन्तु हम इनके स्थान पर अत्याधिक चाय/कॉफ़ी, मसालेदार
व्यंजन, अधिक तला-भुना आहार, बासी भोजन और सड़क किनारे बिकने वाले पदार्थ खाने से
भी गुरेज नहीं करते.
साथ ही तेज गर्मी से आकर तुरंत एसी या कूलर में आना या इसके
उलट, ठंडक पाने के लिए फ्रीज़ के ठंडे पानी, आइसक्रीम या कोल्ड ड्रिंक्स पर
निर्भरता पूरी तरह से ऋतुविरोधी है, जिसके तुरंत परिणाम तो मौसमी फ्लू, रक्तचाप
असंतुलन आदि के रूप में दिखाई देते ही हैं..अपितु इस प्रतिकूल व्यवहार के दूरगामी
नतीजे भी जोड़ों में दर्द, अनियंत्रित वजन, शारीरिक स्फूर्ति का अभाव आदि के रूप
में भुगतने पड़ते हैं. अत: इस प्रकार की विरोधाभासी जीवनशैली से दूरी बनाकर रखे और
ऋतुनुसार आदतों से मौसम का आनंद लें. अग्रलिखित कुछ आदतों को अपनाकर आप भयंकर
गर्मियों में भी अपनी प्रतिरोधक क्षमता को कायम रख सकते हैं..
1. सूर्योदय से पहले जागने की आदत डालें और रात्रि के समय
10 बजे से पहले सोने की. यह छोटा सा परिवर्तन आपको पूरे दिन उर्जावान रखने में
सहायता देगा.
2. प्रात: काल नंगे पैर घास पर चलने से भी गर्मी का असर कम
होता है, साथ ही यह आपको प्रकृति के साथ जोड़े रखने का भी बेहतर उपाय है.
3. तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन गर्मियों में हितकर
है, साथ ही चाय/कॉफ़ी का सेवन कम से कम करें क्योंकि गर्मियों में इनसे पित्त दोष
की अधिकता बढती है.
4. ठंडे से गर्म और गर्म से ठंडे वातावरण में एकाएक जाने से
बचें. साथ ही अपने एयर कंडीशनर का तापमान उतना ही रखें, जिसमें आपको कंबल लेने की
आवश्यकता न पड़े. अत्याधिक ठंडी हवा में रहने से भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती
है.
5. केवल मौसमी फलों और सब्जियों को ही अपने आहार में स्थान
दें, बेमौसमी आहार से परहेज करें.
4. जून माह में योगा एवं प्राणायाम –
भारतीय प्राचीन संस्कृति एवं मान्यताओं को समावेशित करता
योग विशुद्ध स्वदेशी विधि है, जिससे शारीरिक-मानसिक नकारात्मकता, अशुद्धियों एवं
रोगों को दूर रखा जा सकता है. जून का महीना इस लिहाज से और अधिक विशेष बन जाता है
क्योंकि इस माह में “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” (21 जून) विश्व भर में मनाया जाता
है. भारत से निकली इस प्राचीन धरोहर का अनुपालन वैश्विक रूप से किया जाना अपने आप
में एक गौरव का विषय है, तो क्यों न इस पुरातन पद्धति का लाभ अपने जीवन में
नवऊर्जा लाने के लिए किया जाये.
जून की तपती गर्मी में अपने शरीर को शीतलता प्रदान करने के
उद्देश्य से बहुत सी यौगिक विधियों, प्राणायाम एवं मुद्राओं को अपनी नियमित
दिनचर्या में सम्मिलित किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं..
1. हलासन – मैट पर पीठ के बल लेटते हुए दोनों हाथों को
पैरों की सीध में रखें. धीरे-धीरे फेफडों में सांस भरते हुए पैरों और हिप्स को ऊपर
उठाएं और सिर की ओर ऐसे ले जाने का प्रयास
करें जैसे पंजे जमीन छु सकें. एक-दो मिनट तक इसी अवस्था में रहें और फिर धीरे-धीरे
सांस छोडते हुए पूर्व स्थिति में वापस आएं. आरम्भ में दो से तीन बार इसका अभ्यास
करें.
2. नौकासन - नौकासन यानि बोट पोज़ के अंतर्गत सर्वप्रथम मैट
पर सीधा लेटें और श्वास अंदर भरें. अब दोनों पैरों को सीधा मिला कर और हाथों को
पैरों की सीध में घुटने से मिला कर रखें. अब धीरे-धीरे अपने सिर और पैरों को एक साथ
ऊपर की ओर उठाएं और प्रयास करें कि 45 डिग्री का कोण बने. अब धीरे-धीरे श्वास
छोड़ते हुए पूर्व अवस्था में वापस आएं. शुरुआत में धीरे-धीरे इसका प्रयास करें.
3. भुजंगासन – पेट के बल लेटते हुए दोनों पैरों, एडिय़ों एवं पंजों
को आपस में मिलाएं और पैर सीधे रखें. हाथों को कंधे के सामने जमीन पर रखें और
हाथों के बल नाभि से ऊपर शरीर को जितना संभव हो, ऊपर की ओर उठाएं.
सिर सीधा और ऊपर की ओर रहे, इस क्रिया को पांच से दस बार तक दोहराएं.
4. सर्वांगासन – सर्वांगासन के अंतर्गत पीठ के बल सीधे लेट कर
हाथों को सीधे पैरों से स्पर्श करते हुए रखें और सांस भीतर भरें. अब हाथों की
सहायता से अपने पैरों को धीरे-धीरे 90 डिग्री के कोण तक ले जाने का प्रयास करें और
हाथों से कमर को पकड लें. अब धीरे-धीरे पैरों को वापस लेकर आएं और हाथों को कमर से
हटा कर सीधा कर लें. इसके 2-3 प्रयास आरंभ में करें और धीरे धीरे इसकी आवृति बढ़ाने
का प्रयास करें.
5. शीतली प्राणायाम – शीतली प्राणायाम के अंतर्गत मुख खोलकर,
जीभ को दोनों तरफ से मोड़ते हुए श्वास धीरे-धीरे लय में अंदर खींचे, फिर मुख बंद कर
कुछ देर तक श्वास अंदर रोके रखने के बाद नासिका से निकाल दें. इस विधि को 5-7 बार
करें.
6. शीतकारी प्राणायाम – शीतकारी में दाँतों को भींचते हुए होंठों
से श्वास अन्दर की ओर खींचें और कुछ क्षणों तक रोके रखने के बाद नासिका से निकाल
दें. इस प्रक्रिया को भी 5-7 बार दोहराएं.
7. उज्जयी प्राणायाम – पद्मासन में बैठते हुए गहरा श्वास
नासिका से फेफड़ों में भरें और गर्दन के थाइरोइड वाले हिस्से को कंपन कराके ओम की ध्वनि
उत्पन्न करने की कोशिश करें. श्वास को तब तक अंदर रखें जब तक आप इसको रोक सकतें
हैं, फिर दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका बंदकर बायीं नासिका से धीरे-धीरे श्वास
छोड़ें.
8. वरुण मुद्रा – पद्मासन में बैठते हुए दोनों घुटनों पर
हथेलियाँ आकाश की ओर रखे और कनिष्ठा यानि सबसे छोटी ऊँगली की पोर को अंगूठे से छुए.
बाकी तीनों उँगलियों को सीधा रखें और इसी मुद्रा में श्वास पर ध्यान केंद्रित करते
हुए कुछ मिनट रुकने का प्रयास करें.
9. वायु मुद्रा – वज्रासन या सुखासन में बैठते हुए हथेलियाँ
ऊपर की ओर रखें तथा तर्जनी ऊँगली (अंगूठे के बगल वाली ऊँगली) को अन्दर की ओर मोड़ते
हुए अंगूठे की जड़ में लगा दें. इसी पोज़ में कुछ मिनट रुकें और श्वास पर ध्यान दें.
10. शून्य मुद्रा – सिद्धासन अथवा पद्मासन में बैठते हुए
हथेलियाँ आकाश की ओर रखें तथा मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर
मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखें.
इसी मुद्रा में कुछ मिनट ठहरे एवं सामान्य श्वास लेते हुए सारा ध्यान श्वास पर
केन्द्रित करें.
5. जून माह में होने वाले रोग एवं उनके आयुर्वेदिक उपचार –
चूंकि गर्मियों के मौसम में शरीर से जल एवं नामक अत्याधिक
मात्रा में निष्काषित होते हैं, जिसके चलते शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आना
स्वाभाविक है और इसी मौसमी संरचना के चलते हम बेहद आसानी से विभिन्न संक्रामक
रोगों की चपेट में आ जाते हैं. इसके साथ ही सूर्य किरणों के असहनीय ताप के कारण भी
बहुत से रोग हमें घेर लेते हैं, जिनसे बचाव और आयुर्वेदिक निदानों के संबंध में
चर्चा इस प्रकार की गयी है.
1. हीट स्ट्रोक एवं डिहाइड्रेशन
हीट स्ट्रोक गर्मियों में होने वाली एक घातक बीमारी है, जिस पर यदि ध्यान
नहीं दिया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकती है. हीट स्ट्रोक के कुछ लक्षणों में सांस लेने
में कठिनाई, अनियंत्रित रक्तचाप, शरीर का उच्च
तापमान, भ्रम इत्यादि सम्मिलित हैं. इसके लक्षणों की अधिकता होते ही
चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें.
2. त्वचा संबंधी रोग
जून की तीखी गर्मियों में धूप के संपर्क में आने से सनबर्न,
एलर्जी, घमोरियां इत्यादि होना सामान्य है. सनबर्न होने के लक्षणों में त्वचा का
झुलसना, थकान महसूस होना एवं जी मिचलाना शामिल हैं, जिसमें डॉक्टरी परामर्श
अनिवार्य हो जाता है. वहीँ घमौरियों की समस्या आम है, जिसका निदान घरेलू तौर पर भी
किया जा सकता है. घमौरी, खुजली, रेशिस इत्यादि होने की स्थिति में आप ताजा एलोवेरा जेल, कच्चे दूध, मुल्तानी मिट्टी, पुदीना का लेप इत्यादि प्रभावित स्थल पर लगा सकते हैं, साथ ही पानी अधिक से अधिक पियें, जिससे रक्त संचरण सुचारू हो सके.
3. फ़ूड पोइजनिंग
बासी अथवा बाहर का भोजन अधिक करने से फ़ूड पोइजनिंग की
समस्या हो सकती है, क्योंकि भोजन गर्मियों में अधिक समय तक रखा रहने से उसमें
बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं. परिणामस्वरूप पेट दर्द, लूज़ मोशन, मितली, जी
घबराना, अनियंत्रित रक्तचाप जैसे लक्षण सामने आते हैं.
4. नेत्र संक्रमण
जून माह में अत्याधिक गर्मी के चलते आँखों में संक्रमण, ऑय
फ्लू जैसे रोग आसानी से हमें घेर लेते हैं और लाल आंखें, आँखों से लगातार पानी
आना, आँखों में दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
5. श्वसन संबंधी रोग
जून में धूल भरी आंधी चलने से वातावरण में बेहद महीन डस्ट
पार्टिकल्स उड़ते रहते हैं, जिनके कारण श्वसन तंत्र से जुड़ी समस्याएं जैसे अस्थमा,
एलर्जी, समान्य फ्लू आदि व्यक्ति को बीमार बना सकते हैं. विशेषकर अस्थमा के मरीजों
के लिए यह मौसम खतरनाक हो सकता हैं, इसलिए बेहतर चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें.
6. टाइफाइड ज्वर
टाइफाइड एक ऐसी बीमारी है, जो साल्मोनेला टाइफीमुरियम
बैक्टीरिया के कारण होती है, यह जीवाणु मनुष्यों के रक्त प्रवाह और आंत में रहता
है. दूषित भोजन और पानी के स्रोत बैक्टीरिया के प्रजनन स्थल बन जाते हैं, इसी कारण
गर्मियों में यह रोग अधिकतर फैलता है. टाइफाइड के प्रमुख लक्षणों में कमजोरी, भूख कम लगना, थकान, पेट में दर्द, तेज बुखार आदि
हैं.
अत: गर्मियों के इस तीक्ष्ण मौसम में भी स्वस्थ बनें रहने के लिए संयमित दिनचर्या का पालन करें, मौसमी आहार ग्रहण करें और योग के जरिये सेहतमंद बने रहें. साथ ही जल एवं पर्यावरण के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे और प्रकृति के मित्र बनकर भावी पीढ़ी के सम्मुख एक कल्याणकारी सन्देश रखने का प्रयास अवश्य करें, ताकि आप शारीरिक और मानसिक आरोग्य के साथ स्वस्थ विचारों से भी परिपूर्ण रहे.
By Deepika Chaudhary Contributors Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
हिन्दू पंचांग के अंतर्गत चंद्र मास का तीसरा महीना जून ज्येष्ठ अथवा जेठ (लोक प्रचलित) माह को माना गया है. इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है, परिणामस्वरुप यह सम्पूर्ण मास जल तत्त्व को समर्पित किया गया है. जून का महीना सम्पूर्ण उत्तर भारत में अधिकतम तापमान और प्रचंड गर्मी का परिचायक है. विशेषकर उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकतर हिस्सों में इस माह के अंतर्गत सूर्य किरणों की प्रखरता, 48 डिग्री सेल्सियस तक तापमान, धूल भरी आंधी सामान्य है, जिससे जनजीवन त्रस्त सा रहता है.
वैसे देखा जाये तो जून का महीना पर्यावरण एवं जल के संरक्षण के लिहाज से भी बेहद खास माना जाता है, प्रकृति की अनुपम देन जल, वायु, भूमि इत्यादि को सहेजने की पहल करते हुए “वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे” (5 जून) को मनाने का प्रारंभ वर्ष 1972 में किया गया था. भारतीय परम्पराओं को गहनता से समझकर देखें तो हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति को संरक्षित करने एवं सम्मान देने का यह क्रम सदियों पहले ही आरंभ कर दिया था, जून माह में आने वाले पर्व “गंगा-दशहरा”, “निर्जला एकादशी” आदि उसी गौरवान्वित संस्कृति के प्रतीक हैं.
भारतीय जलवायु के अनुसार जून ग्रीष्मऋतु का अंतिम माह है, जिसके उपरांत मानसून का आगमन हो जाता है और गर्मी की प्रखरता में कमी आ जाती है. इसी कारण जून का महीना सर्वाधिक गर्म एवं शुष्कता से परिपूर्ण होता है और इसमें स्वस्थ बने रहने के लिए उचित ऋतुचर्या का पालन करना आवश्यक है, ताकि हम शारीरिक और मानसिक रूप से निरोगी रहकर प्रचंड गर्मी में भी आरोग्य का वरदान प्राप्त कर सकें.
तो जून के माह में कैसी हो आपकी ऋतुचर्या एवं आपका आहार-विहार, कैसे हीट तो बीट करते हुए आप अपने स्वास्थ्य को बरक़रार रख सकते हैं और कैसे हर मौसम में बने रहे दुरुस्त... इसके लिए बैलटबॉक्सइंडिया प्रस्तुत करता है जून स्वास्थ्य विशेषांक, ताकि आप जान सकें जून में तरोताजा रहने के कुछ सरल, मौसमी, घरेलू और प्राकृतिक तौर तरीके.
ग्रीष्मकालीन ऋतु के अंतर्गत सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा के नजदीक जाने लगता है, जिससे समस्त भारत में गर्मी की अधिकता दिखाई देने लगती है. साथ ही तापमान का अधिकतम बिंदु भी दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता है, परिणामस्वरुप उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 45-48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, प्राकृतिक जलस्त्रोत सूखने लगते हैं.
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली इत्यादि राज्यों में इस समय दिन में “लू” एवं शाम के समय धूल भरी आंधियां चलती हैं, जिनके कारण दृश्यता काफी न्यून हो जाती है. साथ ही कभी कभी हल्की बारिश भी हो जाती है, जिससे तापमान में तो कमी आती है, परन्तु आद्रता बढ़ जाती है.
जून में विशेषत: दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं, इसी मौसमी संरचना के चलते 21 जून (कभी कभी 20 या 22 जून) को साल का सबसे बड़ा दिन माना जाता है. इस खगोलीय घटना को “ग्रीष्म अयनांत” के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें समस्त उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें 15-16 घंटे तक पृथ्वी पर रहती हैं.
जलवायु में हुए व्यापक परिवर्तन के कारण हमारे शरीर में भी इस माह में बहुत से परिवर्तन होते हैं, जैसे..
1. कमजोर पाचन तंत्र
2. शारीरिक उर्जा में कमी
3. शरीर में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन
4. अधिक थकान एवं कमजोरी महसूस करना
5. धूल भरी आंधी के कारण आँखों एवं श्वसन तंत्र में समस्याएं
जलवायु में परिवर्तन आने से हमारे शारीरिक क्रिया-कलाप, खान-पान के तरीकों आदि पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. हमारी परंपरागत आयुर्वेदिक नियमावली के अनुसार गर्मियों में ठोस आहार का सेवन कम से कम और पेय पदार्थों का सेवन अत्याधिक करना हितकर माना जाता है, क्योंकि इस समय प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में जल का ह्रास होने लगता है और शारीरिक ऊर्जा में कमी आ जाती है. ऐसे में आवश्यक है कि हमारे भोजन में ताज़ी सब्जियों, मौसमी फलों, सुपाच्य आहार और पेय पदार्थों की बहुलता हो.
मौसमी फलों से पाएं शारीरिक स्फूर्ति :
गर्मी के बढ़ने के साथ साथ जहां हमारे शरीर में जल का अभाव होने लगता है, वहीं प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार ग्रीष्मकालीन ऋतु के अंतर्गत रसीले फलों जैसे आम, लीची, जामुन, आडू, शहतूत, चैरी आदि भारतीय बाजारों में बहुतायत बिकने आरंभ हो जाते हैं. जिनसे हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं और हम सेहतमंद बने रहते हैं.
1. आम - गर्मियों में आम को कच्चा एवं पक्का, दोनों ही रूप में आहार में शामिल किया जाता है. आम लू से बचाव करने के साथ साथ रक्त संचरण को सुचारू बनाये रखता है, साथ ही आंतों को शुद्ध बनाता है और इम्युनिटी सिस्टम मजबूत बना रहता है.
2. लीची - स्वाद में मीठी और रसीली होने के साथ ही लीची सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है, इसके सेवन से हृदय स्वस्थ रहता है. धूल भरी आंधी से श्वसन तंत्र को होने वाले रोगों जैसे अस्थमा, एलर्जी आदि में लाभ मिलता है और यह शरीर को हाइड्रेट रखने में भी सहायक है.
3. जामुन – अम्लीय प्रकृति का फल जामुन गर्मियों के मौसम में ही पैदा होता है और पाचन तंत्र की कमजोरी में उपयोगी माना जाता है. मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण माने जाने वाला जामुन गर्मी के कारण होने वाले विभिन्न उदर रोगों जैसे उलटी-दस्त, पेचिश आदि में भी लाभप्रद है.
4. आडू – खट्टा-मीठा आडू यानि पीच विभिन्न पोषक तत्वों और एंटी ऑक्सीडेंटस का खजाना है. यह रक्त-परिसंचरण को गति देकर आँखों की रोशनी बढ़ाता है, गुर्दे, पेट एवं लीवर से विषाक्त तत्वों को बाहर कर पाचन प्रक्रिया को दुरुस्त रखता है और उच्च फाइबर के चलते कब्ज में भी राहत प्रदान करता है.
5. शहतूत – बेहद नर्म एवं मीठा फल शहतूत गर्मियों की एक ऐसी प्राकृतिक सौगात है, जो विविध गुणों से युक्त है. शहतूत में पाया जाने वाला रेजवर्टेरोल नामक तत्त्व शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है, पाचन शक्ति को दुरुस्त करता है तथा इसके नियमित सेवन से लू से भी बचाव होता है.
6. चैरी – 75 प्रतिशत पानी एवं विटामिन सी से युक्त चैरी के सेवन से नेत्र-ज्योति बढती है. पाचन क्षमता दुरुस्त रहती है तथा शरीर में उर्जा बनी रहती है. यह रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी संतुलित रखने में सहायक है.
शरीर को ताजगी प्रदान करती मौसमी सब्जियां –
1. फ्रेंच बीन्स – सेहत का पौष्टिक विकल्प फ्रेंच बीन्स न केवल सब्जी अपितु सलाद के तौर पर भी गर्मियों में खाया जाता है. इन हरी फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम, जो पाचन क्षमता के लिहाज से बेहद गुणकारी है. इसके सेवन से हृदय रोगों में भी लाभ मिलता है.
2. भिंडी – औषधीय गुणों से भरपूर भिंडी में घुलनशील फाइबर होते हैं जो रक्त में जाकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं, इसमें मौजूद आयरन हमारे स्वास्थय के लिए लाभकारी होता है. भिंडी में उच्च मात्रा में पाए जाने वाले फाइबर हमारे पाचन तंत्र को ठीक करने में सहायक होते हैं. वहीं इसके सेवन से आंतों की सूजन में भी लाभ मिलता है.
3. कटहल – उष्णकटिबंधीय फल कटहल विविध पोषक तत्वों से भरा हुआ एक स्वादिष्ट फल है, जिसे सब्जी के तौर पर भारत में खाया जाता है. यह शरीर को तुरंत एनर्जी देता है, उच्च रक्तचाप, हीट स्ट्रोक जैसे रोगों से लड़ने में कोशिकाओं की सहायता करता है तथा फाइबर का उच्च स्त्रोत होने के चलते यह पाचन क्षमता को सुचारू करता है.
4. कच्चा आम – कच्चा आम यानि आम बोलचाल की भाषा में कैरी का सेवन आम पन्ना, चटनी, सब्जी, अचार इत्यादि के तौर पर गर्मियों में किया जाता है. यह रक्त संबंधी विकारों को दूर करता है, हीट स्ट्रोक, लू, डिहाइड्रेशन जैसे गर्मी जनित रोगों से बचाव करता है तथा अत्याधिक पसीने की समस्या को भी कच्चे आम के सेवन से कम किया जा सकता है.
5. हरा पपीता – हरा यानि कच्चा पपीता गर्मियों में सलाद, सूप या सब्जियों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है. कच्चे पपीते के सेवन से पेटदर्द की समस्या और पेट में गैस की समस्या में आराम मिलता है. इसके साथ ये पाचन तंत्र को भी ठीक रखने का काम करता है. साथ ही यह यूरिनल इन्फेक्शन में भी राहत दिलाता है.
6. खीरा - शरीर की आन्तरिक तपन को शांत करने में खीरा सर्वाधिक सहायक होता है. जिसे केवल भारत में ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में लोग प्राय: 12 महीने सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं, परन्तु ग्रीष्म ऋतु से यह ताजा व सरल रूप से बाज़ार में उपलब्ध होता है. यह विभिन्न गर्मीजनित रोगों जैसे आँखों की जलन, हीट स्ट्रोक, उदर रोगों आदि में हितकर है.
इस प्रकार मौसमी आहार को अपनी दैनिकचर्या में सम्मिलित कर आप उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करते हुए अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं. साथ ही अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थों जैसे सत्तू का घोल, शिकंजी, गन्ने का रस (स्वच्छ रूप से निकला हुआ), ताजा फलों का रस, आम पन्ना, छाछ इत्यादि के साथ साथ कुछ हर्ब्स जैसे पुदीना, करी पत्ता, मधु तुलसी, एलोवेरा का उपयोग विभिन्न मौसमी रोगों में करके भी आप निरोगी बने रह सकते हैं.
हमारे शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए प्रकृति ने स्वयं ही प्रत्येक मौसम के अनरूप आहार, दैनिकचर्या, रहवास इत्यादि की संरचना की है. प्राकृतिक वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु तथा मनुष्य के कार्य कलाप पूरी तरह से जलवायु की अवस्था पर ही निर्भर करते हैं. जून माह में गर्मी अपने चरम पर होती है और इसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे रहन-सहन, खान-पान, जीवन शैली आदि पर भी दिखाई देता है.
साथ ही तेज गर्मी से आकर तुरंत एसी या कूलर में आना या इसके उलट, ठंडक पाने के लिए फ्रीज़ के ठंडे पानी, आइसक्रीम या कोल्ड ड्रिंक्स पर निर्भरता पूरी तरह से ऋतुविरोधी है, जिसके तुरंत परिणाम तो मौसमी फ्लू, रक्तचाप असंतुलन आदि के रूप में दिखाई देते ही हैं..अपितु इस प्रतिकूल व्यवहार के दूरगामी नतीजे भी जोड़ों में दर्द, अनियंत्रित वजन, शारीरिक स्फूर्ति का अभाव आदि के रूप में भुगतने पड़ते हैं. अत: इस प्रकार की विरोधाभासी जीवनशैली से दूरी बनाकर रखे और ऋतुनुसार आदतों से मौसम का आनंद लें. अग्रलिखित कुछ आदतों को अपनाकर आप भयंकर गर्मियों में भी अपनी प्रतिरोधक क्षमता को कायम रख सकते हैं..
1. सूर्योदय से पहले जागने की आदत डालें और रात्रि के समय 10 बजे से पहले सोने की. यह छोटा सा परिवर्तन आपको पूरे दिन उर्जावान रखने में सहायता देगा.
2. प्रात: काल नंगे पैर घास पर चलने से भी गर्मी का असर कम होता है, साथ ही यह आपको प्रकृति के साथ जोड़े रखने का भी बेहतर उपाय है.
3. तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन गर्मियों में हितकर है, साथ ही चाय/कॉफ़ी का सेवन कम से कम करें क्योंकि गर्मियों में इनसे पित्त दोष की अधिकता बढती है.
4. ठंडे से गर्म और गर्म से ठंडे वातावरण में एकाएक जाने से बचें. साथ ही अपने एयर कंडीशनर का तापमान उतना ही रखें, जिसमें आपको कंबल लेने की आवश्यकता न पड़े. अत्याधिक ठंडी हवा में रहने से भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती है.
5. केवल मौसमी फलों और सब्जियों को ही अपने आहार में स्थान दें, बेमौसमी आहार से परहेज करें.
भारतीय प्राचीन संस्कृति एवं मान्यताओं को समावेशित करता योग विशुद्ध स्वदेशी विधि है, जिससे शारीरिक-मानसिक नकारात्मकता, अशुद्धियों एवं रोगों को दूर रखा जा सकता है. जून का महीना इस लिहाज से और अधिक विशेष बन जाता है क्योंकि इस माह में “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” (21 जून) विश्व भर में मनाया जाता है. भारत से निकली इस प्राचीन धरोहर का अनुपालन वैश्विक रूप से किया जाना अपने आप में एक गौरव का विषय है, तो क्यों न इस पुरातन पद्धति का लाभ अपने जीवन में नवऊर्जा लाने के लिए किया जाये.
जून की तपती गर्मी में अपने शरीर को शीतलता प्रदान करने के उद्देश्य से बहुत सी यौगिक विधियों, प्राणायाम एवं मुद्राओं को अपनी नियमित दिनचर्या में सम्मिलित किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं..
1. हलासन – मैट पर पीठ के बल लेटते हुए दोनों हाथों को पैरों की सीध में रखें. धीरे-धीरे फेफडों में सांस भरते हुए पैरों और हिप्स को ऊपर उठाएं और सिर की ओर ऐसे ले जाने का प्रयास करें जैसे पंजे जमीन छु सकें. एक-दो मिनट तक इसी अवस्था में रहें और फिर धीरे-धीरे सांस छोडते हुए पूर्व स्थिति में वापस आएं. आरम्भ में दो से तीन बार इसका अभ्यास करें.
2. नौकासन - नौकासन यानि बोट पोज़ के अंतर्गत सर्वप्रथम मैट पर सीधा लेटें और श्वास अंदर भरें. अब दोनों पैरों को सीधा मिला कर और हाथों को पैरों की सीध में घुटने से मिला कर रखें. अब धीरे-धीरे अपने सिर और पैरों को एक साथ ऊपर की ओर उठाएं और प्रयास करें कि 45 डिग्री का कोण बने. अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए पूर्व अवस्था में वापस आएं. शुरुआत में धीरे-धीरे इसका प्रयास करें.
3. भुजंगासन – पेट के बल लेटते हुए दोनों पैरों, एडिय़ों एवं पंजों को आपस में मिलाएं और पैर सीधे रखें. हाथों को कंधे के सामने जमीन पर रखें और हाथों के बल नाभि से ऊपर शरीर को जितना संभव हो, ऊपर की ओर उठाएं. सिर सीधा और ऊपर की ओर रहे, इस क्रिया को पांच से दस बार तक दोहराएं.
4. सर्वांगासन – सर्वांगासन के अंतर्गत पीठ के बल सीधे लेट कर हाथों को सीधे पैरों से स्पर्श करते हुए रखें और सांस भीतर भरें. अब हाथों की सहायता से अपने पैरों को धीरे-धीरे 90 डिग्री के कोण तक ले जाने का प्रयास करें और हाथों से कमर को पकड लें. अब धीरे-धीरे पैरों को वापस लेकर आएं और हाथों को कमर से हटा कर सीधा कर लें. इसके 2-3 प्रयास आरंभ में करें और धीरे धीरे इसकी आवृति बढ़ाने का प्रयास करें.
5. शीतली प्राणायाम – शीतली प्राणायाम के अंतर्गत मुख खोलकर, जीभ को दोनों तरफ से मोड़ते हुए श्वास धीरे-धीरे लय में अंदर खींचे, फिर मुख बंद कर कुछ देर तक श्वास अंदर रोके रखने के बाद नासिका से निकाल दें. इस विधि को 5-7 बार करें.
6. शीतकारी प्राणायाम – शीतकारी में दाँतों को भींचते हुए होंठों से श्वास अन्दर की ओर खींचें और कुछ क्षणों तक रोके रखने के बाद नासिका से निकाल दें. इस प्रक्रिया को भी 5-7 बार दोहराएं.
7. उज्जयी प्राणायाम – पद्मासन में बैठते हुए गहरा श्वास नासिका से फेफड़ों में भरें और गर्दन के थाइरोइड वाले हिस्से को कंपन कराके ओम की ध्वनि उत्पन्न करने की कोशिश करें. श्वास को तब तक अंदर रखें जब तक आप इसको रोक सकतें हैं, फिर दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका बंदकर बायीं नासिका से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें.
8. वरुण मुद्रा – पद्मासन में बैठते हुए दोनों घुटनों पर हथेलियाँ आकाश की ओर रखे और कनिष्ठा यानि सबसे छोटी ऊँगली की पोर को अंगूठे से छुए. बाकी तीनों उँगलियों को सीधा रखें और इसी मुद्रा में श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए कुछ मिनट रुकने का प्रयास करें.
9. वायु मुद्रा – वज्रासन या सुखासन में बैठते हुए हथेलियाँ ऊपर की ओर रखें तथा तर्जनी ऊँगली (अंगूठे के बगल वाली ऊँगली) को अन्दर की ओर मोड़ते हुए अंगूठे की जड़ में लगा दें. इसी पोज़ में कुछ मिनट रुकें और श्वास पर ध्यान दें.
10. शून्य मुद्रा – सिद्धासन अथवा पद्मासन में बैठते हुए हथेलियाँ आकाश की ओर रखें तथा मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखें. इसी मुद्रा में कुछ मिनट ठहरे एवं सामान्य श्वास लेते हुए सारा ध्यान श्वास पर केन्द्रित करें.
चूंकि गर्मियों के मौसम में शरीर से जल एवं नामक अत्याधिक मात्रा में निष्काषित होते हैं, जिसके चलते शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आना स्वाभाविक है और इसी मौसमी संरचना के चलते हम बेहद आसानी से विभिन्न संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाते हैं. इसके साथ ही सूर्य किरणों के असहनीय ताप के कारण भी बहुत से रोग हमें घेर लेते हैं, जिनसे बचाव और आयुर्वेदिक निदानों के संबंध में चर्चा इस प्रकार की गयी है.
1. हीट स्ट्रोक एवं डिहाइड्रेशन
हीट स्ट्रोक गर्मियों में होने वाली एक घातक बीमारी है, जिस पर यदि ध्यान नहीं दिया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकती है. हीट स्ट्रोक के कुछ लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, अनियंत्रित रक्तचाप, शरीर का उच्च तापमान, भ्रम इत्यादि सम्मिलित हैं. इसके लक्षणों की अधिकता होते ही चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें.
2. त्वचा संबंधी रोग
जून की तीखी गर्मियों में धूप के संपर्क में आने से सनबर्न, एलर्जी, घमोरियां इत्यादि होना सामान्य है. सनबर्न होने के लक्षणों में त्वचा का झुलसना, थकान महसूस होना एवं जी मिचलाना शामिल हैं, जिसमें डॉक्टरी परामर्श अनिवार्य हो जाता है. वहीँ घमौरियों की समस्या आम है, जिसका निदान घरेलू तौर पर भी किया जा सकता है. घमौरी, खुजली, रेशिस इत्यादि होने की स्थिति में आप ताजा एलोवेरा जेल, कच्चे दूध, मुल्तानी मिट्टी, पुदीना का लेप इत्यादि प्रभावित स्थल पर लगा सकते हैं, साथ ही पानी अधिक से अधिक पियें, जिससे रक्त संचरण सुचारू हो सके.
3. फ़ूड पोइजनिंग
बासी अथवा बाहर का भोजन अधिक करने से फ़ूड पोइजनिंग की समस्या हो सकती है, क्योंकि भोजन गर्मियों में अधिक समय तक रखा रहने से उसमें बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं. परिणामस्वरूप पेट दर्द, लूज़ मोशन, मितली, जी घबराना, अनियंत्रित रक्तचाप जैसे लक्षण सामने आते हैं.
4. नेत्र संक्रमण
जून माह में अत्याधिक गर्मी के चलते आँखों में संक्रमण, ऑय फ्लू जैसे रोग आसानी से हमें घेर लेते हैं और लाल आंखें, आँखों से लगातार पानी आना, आँखों में दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
5. श्वसन संबंधी रोग
जून में धूल भरी आंधी चलने से वातावरण में बेहद महीन डस्ट पार्टिकल्स उड़ते रहते हैं, जिनके कारण श्वसन तंत्र से जुड़ी समस्याएं जैसे अस्थमा, एलर्जी, समान्य फ्लू आदि व्यक्ति को बीमार बना सकते हैं. विशेषकर अस्थमा के मरीजों के लिए यह मौसम खतरनाक हो सकता हैं, इसलिए बेहतर चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें.
6. टाइफाइड ज्वर
टाइफाइड एक ऐसी बीमारी है, जो साल्मोनेला टाइफीमुरियम बैक्टीरिया के कारण होती है, यह जीवाणु मनुष्यों के रक्त प्रवाह और आंत में रहता है. दूषित भोजन और पानी के स्रोत बैक्टीरिया के प्रजनन स्थल बन जाते हैं, इसी कारण गर्मियों में यह रोग अधिकतर फैलता है. टाइफाइड के प्रमुख लक्षणों में कमजोरी, भूख कम लगना, थकान, पेट में दर्द, तेज बुखार आदि हैं.
Attached Images