चुनाव सुधार की प्रक्रिया के तहत बैलटबॉक्सइंडिया जिस ‘जनमेला’ की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ा था उसे हर वर्ग का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ है. समाज में बौधिक माने जाने वाला शिक्षक वर्ग हो या साहित्यकारों का वर्ग, प्रशासनिक अधिकारी या डॉक्टर, वकील, से लेकर विद्यार्थियों तक में से अधिकांश ने इसे चुनाव सुधार के लिए बेहतर कदम बताया है. यहाँ तक कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी जनमेला की अवधारणा के प्रति अपनी सहमती जताई है. समाजवादी पार्टी हो या भाजपा, सीपीआई या सीपीआई-एम यहां तक जनता दल यूनाइटेड से लेकर आम आदमी पार्टी ने भी जनमेला की अवधारणा के प्रति अपनी सहमति जताई है और कहा कि जनमेला जैसी परिकल्पना का स्वागत किया जाना चाहिए.
हमने जनमेला की अवधारणा के तहत गहन शोध किया है. साक्षात्कार के माध्यम से, लोगों से बातचीत कर और प्रश्नावली के तहत हमने लोगों से जनमेला से जुड़ी जानकारी इकट्ठी की है. हमने गुणात्मक शोध के द्वारा यह पता करने का प्रयास किया कि समाज जनमेला के बारे में क्या सोचता है. हमने इस बारे में एक डाटा इकट्ठा किया है. हमने प्रश्नावली के माध्यम से कुल 15 संबंधित प्रश्न लोगों से किए. हमारे यह प्रश्न अंग्रेजी व हिंदी दोनों में ही पूछे गए थे, जिसका नतीजा अनुमान के मुताबिक ही आया. आइए जरा इस डाटा को समझा जाए.
हमारा पहला प्रश्न था क्या आप जनमेला की अवधारणा से सहमत हैं?
हाँ – 74.41%
हाँ, पूरी तरह से - 49.31%
हाँ, मगर ये बहुत ही मुश्किल है - 8.15%
हाँ, मग़र कुछ सुझाव हैं - 2.17%
कुछ कह नहीं सकते, और जानकारी चाहिए होगी - 16.28%
नहीं, बिलकुल नहीं - 10.69 %
कोई जवाब नहीं – 2.33 %
अधिकांश लोगों ने इसके जवाब हाँ में दिया, 74.41% लोगों ने यह माना की हां वह जनमेला की अवधारणा से सहमत हैं, तो वहीं ना मानने वालों का प्रतिशत 10.69 रहा. कुछ कह नहीं सकते के साथ 16.28% लोग रहे तो वहीं 2.33% लोगों ने कोई उत्तर नहीं दिया. जनमेला की अवधारणा से सहमत लोगों में 49.31% लोगों ने पूरी तरह से इसके प्रति सहमति जताई. 8.15% ने जवाब हां में जरूर दिया मगर साथ ही यह माना कि यह बहुत मुश्किल है. 2.17% लोगों ने हां कहां मगर साथ ही उनके कुछ सुझाव भी थे.
आज कालाधन को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं. चुनाव के दौरान भी कहीं न कहीं इस बात की अटकलें लगाई जाती हैं की इतना पैसा खर्च किया जाना तब तक संभव नहीं जबतक इसमें कलाधन ना लगा हो ऐसे में हमने अगला प्रश्न इसी को केंद्र में रखकर पूछा. हमारा दूसरा और बेहद ही महत्वपूर्ण प्रश्न था कि चुनाव के दौरान क्या कालाधन भी इस्तेमाल किया जाता है?
हाँ, बड़े पैमाने पर – 76.63%
नहीं- 2.72%
हाँ, थोड़ा-बहुत - 8.69%
कुछ कह नहीं सकते – 5.98%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
एक बड़े स्तर पर लोगों ने चुनाव के दौरान कालाधन के उपयोग की बात पर हामी भरी. हां, बड़े पैमाने पर को विकल्प के तौर पर 76.63% लोगों ने चुना. हां, थोड़ा बहुत के साथ 8.69% लोग रहें तो वहीं कुछ कह नहीं सकते 5.98% और जिन्होंने जवाब नहीं दिया वह भी 5.98% प्रतिशत रहें. कालेधन का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाता है कहने वाले 2.72% लोग ही थे.
हमारा तीसरा प्रश्न चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर था. हमने प्रश्नावली में यह पूछा था कि चुनाव में दलों में उम्मीदवारी मेरिट पर मिलती है या पैसे के जोर पर ?
ज्यादा पैसा थोड़ा मेरिट- 47.28%
सिर्फ़ पैसा - 29.35%
सिर्फ़ मेरिट - 7.06%
थोड़ा पैसा ज्यादा मेरिट –10.86%
कोई जवाब नहीं – 5.43%
उत्तर में 45.28% लोगों ने ज्यादा पैसा थोड़ा मेरिट को उम्मीदवारी का आधार माना. तो वहीं लोगों ने इस बात को स्वीकार किया की चुनाव में एक अच्छे उम्मीदवार से ज्यादा सिर्फ पैसा ही उम्मीदवारों का चुनाव करती है और ऐसा मानने वाले 29.35% लोग रहें. थोड़ा पैसा ज्यादा मेरिट के पक्ष में 10.86% लोग रहे तो वहीं 5.43% लोगों ने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमने लोगों को होने वाली परेशानी और शोर शराबा के बारे में भी इसमें प्रश्न रखा था. हमने अपने चौथे प्रश्न में लोगों से पूछा कि चुनाव के दौरान लगातार होने वाली रैली, जाम, लाउडस्पीकर आदि के शोर से आप परेशान हैं?
हाँ - 52.72%
नहीं – 6.52%
चुनाव के समय ऐसा होना चाहिए – 26.08%
इस ओर ध्यान ही नहीं जाता – 8.15%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
इसके जवाब में आधे से भी अधिक यानी 52.72% लोगों ने बोला कि वह इससे परेशान हैं. साथ ही चुनाव के दौरान ऐसा होना चाहिए मानने वाले 26.08% लोग थे. तो वहीं 8.15 लोगों ने यह माना कि उनका इस ओर ध्यान ही नहीं जाता. 6.52% ऐसे लोग भी रहे जिन्हें इससे कोई परेशानी नहीं होती और 6.52% वैसे लोग भी थे जिन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमारा पांचवां प्रश्न भी चौथे प्रश्न से जुड़ा हुआ ही था. हमने प्रश्न पूछा कि चुनाव के दौरान लगातार होने वाली रैली, लाउडस्पीकर आदि शोर है या आप को कुछ सूचना भी देते हैं?
काफ़ी कम सूचना, ज्यादा शोर हैं - 55.98%
शोर हैं - 26.63%
काफी सूचना देते हैं –7.61%
मनोरंजन है – 2.72%
कोई जवाब नहीं – 7.06%
इसके उत्तर में आधे से भी अधिक लोगों ने काफी कम सूचना, ज्यादा शोर है माना, इसका प्रतिशत 55.98% रहा. 26.63% लोगों ने इसे सिर्फ शोर बताया तो वहीं 7.61% लोगों ने माना कि यह सूचना भी प्रदान करती है. वहीं 2.72% लोगों ने इसे मनोरंजन बताया तो वहीं 7.06 लोगों ने इसका कोई भी उत्तर देना मुनासिब नहीं समझा.
हमारा छठा प्रश्न चुनाव के दौरान होने वाली रैलियों से संबंधित था. हमने अपने प्रश्न में पूछा कि क्या रैलियों से आपको उम्मीदवारों के सही चयन करने में और उसकी पूरी जानकारी मिल पाती है?
सिर्फ चुनिंदा बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही जानकारी - 48.37%
कोई जानकारी नहीं मिलती - 34.78%
सही जानकारी – 1.63%
सबके बारे में कुछ जानकारी - 9.24%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
इस प्रश्न के जवाब में 48.37% लोगों ने माना कि सिर्फ चुनिंदा और बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही जानकारी उन्हें मिल पाती है. 34.78% ऐसे लोग भी थे जिन्हें लगता है कि रैलियों के दौरान उन्हें कोई भी जानकारी नहीं मिल पाती है. 9.24% ऐसे लोग भी रहे जिन्होंने यह माना कि सब के बारे में थोड़ी जानकारी उन्हें इन रैलियों से प्राप्त हो जाती है. 1.63% ऐसे लोग भी थे जिन्हें लगता है कि रैलियों के दौरान उन्हें सही जानकारी मिल जाती है. इस प्रश्न का 5.98% लोगों ने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला प्रश्न उम्मीदवार से जुड़ा हुआ था. हमने अपने सातवें प्रश्न में लोगों से यह पूछा कि उम्मीदवार चयन में आपको सबसे महत्वपूर्ण सूचना कैसे मिलती है?
परिवार या मित्रों से – 8.69%
किसी अन्य माध्यम से- 5.43%
सोशल मीडिया या नए डिजिटल मीडिया माध्यमों से - 34.24%
अख़बारों या मेनस्ट्रीम मीडिया से – 45.11%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
45.11% लोगों का मानना है कि उन्हें उम्मीदवारों से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण सूचना अखबार या मेनस्ट्रीम मीडिया से मिलती है. इसमें सोशल मीडिया और नए डिजिटल मीडिया माध्यमों का भी लोग काफी योगदान मानते हैं और 34.24% लोग मानते हैं कि इस माध्यम द्वारा उन्हें उम्मीदवारों के बारे में सूचना प्राप्त होती है. 8.69% का यह भी मानना था कि उन्हें परिवार या मित्रों से भी यह जानकारी प्राप्त हो जाती है. इसमें 5.43% ऐसे लोग भी थे जिनका मानना है कि अन्य माध्यमों द्वारा उन्हें इसकी सूचना प्राप्त होती है. यहां 6.52% लोगों ने किसी भी प्रकार का कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला प्रश्न उम्मीदवारों से ही संबंधित था मगर इस बार हमने उसे जनमेला से जोड़ने की कोशिश की. हमारा आठवां प्रश्न था कि क्या जनमेला जिसकी परिकल्पना की गई है वह हर उम्मीदवार के बारे में आपको पूरी जानकारी दे पाएगा?
सही जानकारी - 22.83%
कुछ कह नहीं सकते – 28.81%
कोई जानकारी नहीं -10.33%
कुछ जानकारी - 32.06%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
इस प्रश्न के जवाब में 32.06% लोगों ने माना कि जनमेला के द्वारा उन्हें कुछ जानकारी मिल पाएगी तो वहीं 28.81% लोगों को लगता है कि वह अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं, तो वहीं दूसरी ओर 22.83% लोगों ने यह भी माना कि जनमेला उम्मीदवारों के बारे में सही जानकारी दे पाएगा. यहां 10.33% ऐसे भी लोग थे जिन्हें लगता है कि जनमेला द्वारा उन्हें कोई भी जानकारी नहीं प्राप्त हो पाएगी इसके साथ-साथ 5.98% लोगों ने इसका कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमने अपने दसवें प्रश्न में जनमेला को मतदाता से भी जोड़ने का काम किया. हमने अपने अगले प्रश्न में लोगों से पूछा कि क्या जनमेला हर मतदाता के लिए अनिवार्य होना चाहिए?
हाँ – 78.93%
नहीं – 19.73%
कोई जवाब नहीं – 1.71%
इस प्रश्न के जवाब में बहुत से लोगों ने यानी 78.93% ने इसका जबाब हां के रूप में दिया. वहीं 19.73% लोगों ने इसका जवाब नहीं दिया और 1.71% लोगों ने किसी भी विकल्प को नहीं चुना.
हमने अपने ग्यारहवें प्रश्न में जनमेला के आयोजन को लेकर प्रश्न किया जिसमें हमने वॉलंटियर को इसमें जोड़ने की भी बात की. हमने अपने प्रश्न में कहां कि क्या आप वॉलंटियर के तौर पर जनमेला के आयोजन में मदद करना चाहेंगे?
हाँ – 49.33%
अभी कुछ कह नहीं सकते – 33.18%
नहीं – 14.79%
कोई जवाब नहीं – 3.41%
लोगों का जबाब बेहद ही सुखद रहा. लगभग आधे लोगों ने यानी 49.33% लोगों ने जवाब हां के तौर पर दिया तो वहीं 35.18% ऐसे लोग भी थे जो अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थे. 14.79% लोग ऐसे भी थे जिनका जवाब नहीं था, वहीं दूसरी ओर 3.41% लोग ऐसे थे जिन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमने अपने बारहवें प्रश्न में लोगों से जनमेला के समन्वयन को लेकर प्रश्न किया. हमने पूछा कि क्या आप इस मुहिम का समन्वयन अपने जिले से करना चाहेंगे?
हाँ – 58.29%
अभी कुछ कह नहीं सकते – 29.59%
नहीं - 10.32%
कोई जवाब नहीं – 1.71%
लोगों के जवाब से हमें लगा की सामज में लोग वाकई में कुछ अच्छा करना चाहते हैं. आधे से भी अधिक लोगों ने जबाब हां के रूप में दिया. 58.29% लोग ऐसे थे जो जनमेला का समन्वयन अपने जिले में करना चाहते हैं. यहां ऐसे भी लोग थे जो अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है तो साथ ही 10.32% ऐसे भी लोग हैं जो इसका समन्वय नहीं करना चाहते हैं, तो 1.71% ऐसे लोग भी रहे जिन्होंने किसी भी विकल्प को नहीं चुना.
हमें जनमेला से बहुत सारी उम्मीदें हैं और हमें ऐसा लगता है कि जनमेला के द्वारा चुनाव में बहुत हद तक सुधार लाया जा सकता है. ऐसे में हमने अपने तेरहवें प्रश्न में लोगों से यह पूछा कि क्या आपको लगता है जनमेला की मुहिम सफल हो पाएगी?
हाँ, जरूर हो पाएगी - 27.72%
हाँ, मुश्किल है मग़र लगातार लगे रहने से होने की उम्मीद है - 46.74%
नहीं, नामुमकिन है भारत के संदर्भ में ये बहुत ही बड़ा लक्ष्य है - 7.06%
लक्ष्य बड़ा नहीं, मग़र नेता होने नहीं देंगे - 11.96%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
लोगों के जवाब में हां का प्रतिशत ही सबसे ज्यादा रहा और 46.74% लोगों ने माना कि हां, मुश्किल है मगर लगातार रहने लगे रहने से होने की उम्मीद है. साथ ही 27.72% को यह लगता है कि हां यह जरूर हो पायेगी. तो वहीं कुछ लोग मानते हैं कि नेता इस रास्ते में बाधा बन सकते हैं, 11.96% लोगों ने यह कहा कि लक्ष्य बड़ा नहीं मगर नेता इसे होने नहीं देंगे. वहीं दूसरी तरफ भारत के परिदृश्य में 7.06% लोग मानते हैं कि यह नामुमकिन है भारत के संदर्भ में बहुत ही बड़ा लक्ष्य है. तो वहीं 6.52% लोगों ने इस प्रश्न पर भी अपनी कोई राय नहीं बना सके.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है ऐसे में चुनाव एक पर्व की तरह मनाया जाता है, मगर चुनाव के दौरान बेहद ही ज्यादा खर्चें होते हैं जिसका कहीं ना कहीं बोझ आम लोगों के ऊपर भी पड़ता है. ऐसे में हमारा अगला और चौदहवां प्रश्न था कि भारतीय चुनाव प्रक्रिया में खर्चें के बारे में आपकी क्या राय है?
इतना खर्च तो होना ही चाहिए - 2.19%
कुछ कह नहीं सकते - 7.29%
बेहद महंगा - 86.13%
कोई जवाब नहीं – 4.38%
अब तक प्राप्त सारे जवाबों में से इसके एक विकल्प का प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा. ऐसा कहा जा सकता है कि लगभग सभी लोगों ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया को माना कि यह एक खर्चीली प्रक्रिया है और ऐसा मानने वाले 86.13% ऐसे लोग थे जो इसे बेहद महंगा मानते हैं. इसमें 2.19% ऐसे लोग भी थे जो मानते हैं कि चुनाव के दौरान इतना खर्चा तो होना ही चाहिए. साथ ही साथ कुछ लोग अभी भी कुछ कह नहीं सकते की स्थिति में थे जिनका प्रतिशत 7.29 रहा, वहीं 4.38% लोग ऐसे थे जिन्होंने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला और अंतिम प्रश्न भारतीय चुनाव प्रक्रिया को लेकर ही था, जिसमें हमने अपने पंद्रहवें प्रश्न में लोगों से यह जानना चाहा कि भारतीय चुनाव अगर महंगा है तो इस पर आपकी राय?
इसे कम किया जाना चाहिए - 47.45%
कोई अगर सार्थक बदलाव लाए तो हम उसके समर्थन में आगे आयेंगे - 42.34%
कोई राय नहीं - 00.73%
जैसा है वैसा ही रहे - 2.92%
कोई जवाब नहीं – 6.57%
47.45% लोगों ने कहा इसे कम किया जाना चाहिए. तो वहीं बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनका मानना है कि कोई अगर सार्थक बदलाव लाए तो हम उसके समर्थन में आगे आएंगे और इस का प्रतिशत 42.34 रहा. कोई भी राय नहीं बना पाने वाले लोगों का प्रतिशत 0.73 रहा तो 2.9% लोग ऐसे भी थे जो मानते हैं जैसा है वैसा ही रहे. 6.57% ऐसे भी लोग थे जो किसी भी प्रकार का कोई जवाब ना दे सके.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो जनमेला भारतीय चुनाव प्रक्रिया के लिए एक बहुत ही बेहतर कदम साबित हो सकता है. हमारी जो परिकल्पना थी वह अनुमान के मुताबिक ही निकली. अधिकांश लोग जब जनमेला की अवधारणा से सहमत दिखाई देते हैं तो पता चलता है कि अभी की चुनावी प्रक्रिया में एक बेहतर बदलाव लाने की जरूरत है. अधिकांश लोग मानते हैं कि कालेधन का चुनाव में उपयोग होता है तो ऐसे में जरूरत है कि जनमेला जैसी अवधारणा को चुनाव आयोग द्वारा चलन में लाया जाए. राजनीतिक पार्टियों द्वारा भी जब उम्मीदवारों के चयन को लेकर लोगों को यह लगने लगे कि इसमें योग्यता से ज्यादा पैसे को बल दिया जाता है तो वाकई यह सोचनीय है. पहले जो रैली, लाउडस्पीकर अपनी बात रखने का जरिया थे लोगों को चुनाव में अब वह शोर लगने लगे हैं. भले ही कुछ लोग अभी भी मानते हैं कि चुनाव के दौरान ऐसी चीजें होनी चाहिए. लोगों की नज़र में रैलियां सिर्फ चुनिंदा और बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही उन्हें सही जानकारी देता है वरना उन्हें रैलियों से कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं होती. नए डिजिटल मीडिया माध्यम और सोशल मीडिया के साथ-साथ मेनस्ट्रीम मीडिया अब ये काम करने लगे हैं, लोगों तक सूचना पहुंचा पाने एक बड़ा माध्यम बनकर उभरे हैं. लोग मानते हैं कि जनमेला उन्हें सही जानकारी या नहीं तो थोड़ी बहुत जानकारी उनके उम्मीदवारों के बारे में दे ही पाएगा. जनमेला के प्रति लोगों ने बहुत हद तक भरोसा जताया है और वह जनमेला के आयोजन में मदद करना चाहते हैं और साथ ही साथ अपने जिले में भी उसका समन्वयन करने को इच्छुक हैं. चुनाव बहुत ही महंगी प्रक्रिया बन चुकी है ऐसे में लोग चाहते हैं कि जनमेला जिसकी अवधारणा की गई है वह चुनाव आयोग द्वारा लाया जाए जिससे कि चुनाव सुधार प्रक्रिया की ओर हम आगे बढ़ सके और हमारा लोकतांत्रिक पर्व फिर से पर्व की तरह मनाया जा सके.
By Swarntabh Kumar {{descmodel.currdesc.readstats }}
चुनाव सुधार की प्रक्रिया के तहत बैलटबॉक्सइंडिया जिस ‘जनमेला’ की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ा था उसे हर वर्ग का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ है. समाज में बौधिक माने जाने वाला शिक्षक वर्ग हो या साहित्यकारों का वर्ग, प्रशासनिक अधिकारी या डॉक्टर, वकील, से लेकर विद्यार्थियों तक में से अधिकांश ने इसे चुनाव सुधार के लिए बेहतर कदम बताया है. यहाँ तक कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी जनमेला की अवधारणा के प्रति अपनी सहमती जताई है. समाजवादी पार्टी हो या भाजपा, सीपीआई या सीपीआई-एम यहां तक जनता दल यूनाइटेड से लेकर आम आदमी पार्टी ने भी जनमेला की अवधारणा के प्रति अपनी सहमति जताई है और कहा कि जनमेला जैसी परिकल्पना का स्वागत किया जाना चाहिए.
हमने जनमेला की अवधारणा के तहत गहन शोध किया है. साक्षात्कार के माध्यम से, लोगों से बातचीत कर और प्रश्नावली के तहत हमने लोगों से जनमेला से जुड़ी जानकारी इकट्ठी की है. हमने गुणात्मक शोध के द्वारा यह पता करने का प्रयास किया कि समाज जनमेला के बारे में क्या सोचता है. हमने इस बारे में एक डाटा इकट्ठा किया है. हमने प्रश्नावली के माध्यम से कुल 15 संबंधित प्रश्न लोगों से किए. हमारे यह प्रश्न अंग्रेजी व हिंदी दोनों में ही पूछे गए थे, जिसका नतीजा अनुमान के मुताबिक ही आया. आइए जरा इस डाटा को समझा जाए.
हमारा पहला प्रश्न था क्या आप जनमेला की अवधारणा से सहमत हैं?
हाँ – 74.41%
हाँ, पूरी तरह से - 49.31%
हाँ, मगर ये बहुत ही मुश्किल है - 8.15%
हाँ, मग़र कुछ सुझाव हैं - 2.17%
कुछ कह नहीं सकते, और जानकारी चाहिए होगी - 16.28%
नहीं, बिलकुल नहीं - 10.69 %
कोई जवाब नहीं – 2.33 %
अधिकांश लोगों ने इसके जवाब हाँ में दिया, 74.41% लोगों ने यह माना की हां वह जनमेला की अवधारणा से सहमत हैं, तो वहीं ना मानने वालों का प्रतिशत 10.69 रहा. कुछ कह नहीं सकते के साथ 16.28% लोग रहे तो वहीं 2.33% लोगों ने कोई उत्तर नहीं दिया. जनमेला की अवधारणा से सहमत लोगों में 49.31% लोगों ने पूरी तरह से इसके प्रति सहमति जताई. 8.15% ने जवाब हां में जरूर दिया मगर साथ ही यह माना कि यह बहुत मुश्किल है. 2.17% लोगों ने हां कहां मगर साथ ही उनके कुछ सुझाव भी थे.
आज कालाधन को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं. चुनाव के दौरान भी कहीं न कहीं इस बात की अटकलें लगाई जाती हैं की इतना पैसा खर्च किया जाना तब तक संभव नहीं जबतक इसमें कलाधन ना लगा हो ऐसे में हमने अगला प्रश्न इसी को केंद्र में रखकर पूछा. हमारा दूसरा और बेहद ही महत्वपूर्ण प्रश्न था कि चुनाव के दौरान क्या कालाधन भी इस्तेमाल किया जाता है?
हाँ, बड़े पैमाने पर – 76.63%
नहीं- 2.72%
हाँ, थोड़ा-बहुत - 8.69%
कुछ कह नहीं सकते – 5.98%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
एक बड़े स्तर पर लोगों ने चुनाव के दौरान कालाधन के उपयोग की बात पर हामी भरी. हां, बड़े पैमाने पर को विकल्प के तौर पर 76.63% लोगों ने चुना. हां, थोड़ा बहुत के साथ 8.69% लोग रहें तो वहीं कुछ कह नहीं सकते 5.98% और जिन्होंने जवाब नहीं दिया वह भी 5.98% प्रतिशत रहें. कालेधन का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाता है कहने वाले 2.72% लोग ही थे.
हमारा तीसरा प्रश्न चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर था. हमने प्रश्नावली में यह पूछा था कि चुनाव में दलों में उम्मीदवारी मेरिट पर मिलती है या पैसे के जोर पर ?
ज्यादा पैसा थोड़ा मेरिट- 47.28%
सिर्फ़ पैसा - 29.35%
सिर्फ़ मेरिट - 7.06%
थोड़ा पैसा ज्यादा मेरिट –10.86%
कोई जवाब नहीं – 5.43%
उत्तर में 45.28% लोगों ने ज्यादा पैसा थोड़ा मेरिट को उम्मीदवारी का आधार माना. तो वहीं लोगों ने इस बात को स्वीकार किया की चुनाव में एक अच्छे उम्मीदवार से ज्यादा सिर्फ पैसा ही उम्मीदवारों का चुनाव करती है और ऐसा मानने वाले 29.35% लोग रहें. थोड़ा पैसा ज्यादा मेरिट के पक्ष में 10.86% लोग रहे तो वहीं 5.43% लोगों ने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमने लोगों को होने वाली परेशानी और शोर शराबा के बारे में भी इसमें प्रश्न रखा था. हमने अपने चौथे प्रश्न में लोगों से पूछा कि चुनाव के दौरान लगातार होने वाली रैली, जाम, लाउडस्पीकर आदि के शोर से आप परेशान हैं?
हाँ - 52.72%
नहीं – 6.52%
चुनाव के समय ऐसा होना चाहिए – 26.08%
इस ओर ध्यान ही नहीं जाता – 8.15%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
इसके जवाब में आधे से भी अधिक यानी 52.72% लोगों ने बोला कि वह इससे परेशान हैं. साथ ही चुनाव के दौरान ऐसा होना चाहिए मानने वाले 26.08% लोग थे. तो वहीं 8.15 लोगों ने यह माना कि उनका इस ओर ध्यान ही नहीं जाता. 6.52% ऐसे लोग भी रहे जिन्हें इससे कोई परेशानी नहीं होती और 6.52% वैसे लोग भी थे जिन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमारा पांचवां प्रश्न भी चौथे प्रश्न से जुड़ा हुआ ही था. हमने प्रश्न पूछा कि चुनाव के दौरान लगातार होने वाली रैली, लाउडस्पीकर आदि शोर है या आप को कुछ सूचना भी देते हैं?
काफ़ी कम सूचना, ज्यादा शोर हैं - 55.98%
शोर हैं - 26.63%
काफी सूचना देते हैं –7.61%
मनोरंजन है – 2.72%
कोई जवाब नहीं – 7.06%
इसके उत्तर में आधे से भी अधिक लोगों ने काफी कम सूचना, ज्यादा शोर है माना, इसका प्रतिशत 55.98% रहा. 26.63% लोगों ने इसे सिर्फ शोर बताया तो वहीं 7.61% लोगों ने माना कि यह सूचना भी प्रदान करती है. वहीं 2.72% लोगों ने इसे मनोरंजन बताया तो वहीं 7.06 लोगों ने इसका कोई भी उत्तर देना मुनासिब नहीं समझा.
हमारा छठा प्रश्न चुनाव के दौरान होने वाली रैलियों से संबंधित था. हमने अपने प्रश्न में पूछा कि क्या रैलियों से आपको उम्मीदवारों के सही चयन करने में और उसकी पूरी जानकारी मिल पाती है?
सिर्फ चुनिंदा बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही जानकारी - 48.37%
कोई जानकारी नहीं मिलती - 34.78%
सही जानकारी – 1.63%
सबके बारे में कुछ जानकारी - 9.24%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
इस प्रश्न के जवाब में 48.37% लोगों ने माना कि सिर्फ चुनिंदा और बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही जानकारी उन्हें मिल पाती है. 34.78% ऐसे लोग भी थे जिन्हें लगता है कि रैलियों के दौरान उन्हें कोई भी जानकारी नहीं मिल पाती है. 9.24% ऐसे लोग भी रहे जिन्होंने यह माना कि सब के बारे में थोड़ी जानकारी उन्हें इन रैलियों से प्राप्त हो जाती है. 1.63% ऐसे लोग भी थे जिन्हें लगता है कि रैलियों के दौरान उन्हें सही जानकारी मिल जाती है. इस प्रश्न का 5.98% लोगों ने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला प्रश्न उम्मीदवार से जुड़ा हुआ था. हमने अपने सातवें प्रश्न में लोगों से यह पूछा कि उम्मीदवार चयन में आपको सबसे महत्वपूर्ण सूचना कैसे मिलती है?
परिवार या मित्रों से – 8.69%
किसी अन्य माध्यम से- 5.43%
सोशल मीडिया या नए डिजिटल मीडिया माध्यमों से - 34.24%
अख़बारों या मेनस्ट्रीम मीडिया से – 45.11%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
45.11% लोगों का मानना है कि उन्हें उम्मीदवारों से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण सूचना अखबार या मेनस्ट्रीम मीडिया से मिलती है. इसमें सोशल मीडिया और नए डिजिटल मीडिया माध्यमों का भी लोग काफी योगदान मानते हैं और 34.24% लोग मानते हैं कि इस माध्यम द्वारा उन्हें उम्मीदवारों के बारे में सूचना प्राप्त होती है. 8.69% का यह भी मानना था कि उन्हें परिवार या मित्रों से भी यह जानकारी प्राप्त हो जाती है. इसमें 5.43% ऐसे लोग भी थे जिनका मानना है कि अन्य माध्यमों द्वारा उन्हें इसकी सूचना प्राप्त होती है. यहां 6.52% लोगों ने किसी भी प्रकार का कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला प्रश्न उम्मीदवारों से ही संबंधित था मगर इस बार हमने उसे जनमेला से जोड़ने की कोशिश की. हमारा आठवां प्रश्न था कि क्या जनमेला जिसकी परिकल्पना की गई है वह हर उम्मीदवार के बारे में आपको पूरी जानकारी दे पाएगा?
सही जानकारी - 22.83%
कुछ कह नहीं सकते – 28.81%
कोई जानकारी नहीं -10.33%
कुछ जानकारी - 32.06%
कोई जवाब नहीं – 5.98%
इस प्रश्न के जवाब में 32.06% लोगों ने माना कि जनमेला के द्वारा उन्हें कुछ जानकारी मिल पाएगी तो वहीं 28.81% लोगों को लगता है कि वह अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं, तो वहीं दूसरी ओर 22.83% लोगों ने यह भी माना कि जनमेला उम्मीदवारों के बारे में सही जानकारी दे पाएगा. यहां 10.33% ऐसे भी लोग थे जिन्हें लगता है कि जनमेला द्वारा उन्हें कोई भी जानकारी नहीं प्राप्त हो पाएगी इसके साथ-साथ 5.98% लोगों ने इसका कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमने अपने दसवें प्रश्न में जनमेला को मतदाता से भी जोड़ने का काम किया. हमने अपने अगले प्रश्न में लोगों से पूछा कि क्या जनमेला हर मतदाता के लिए अनिवार्य होना चाहिए?
हाँ – 78.93%
नहीं – 19.73%
कोई जवाब नहीं – 1.71%
इस प्रश्न के जवाब में बहुत से लोगों ने यानी 78.93% ने इसका जबाब हां के रूप में दिया. वहीं 19.73% लोगों ने इसका जवाब नहीं दिया और 1.71% लोगों ने किसी भी विकल्प को नहीं चुना.
हमने अपने ग्यारहवें प्रश्न में जनमेला के आयोजन को लेकर प्रश्न किया जिसमें हमने वॉलंटियर को इसमें जोड़ने की भी बात की. हमने अपने प्रश्न में कहां कि क्या आप वॉलंटियर के तौर पर जनमेला के आयोजन में मदद करना चाहेंगे?
हाँ – 49.33%
अभी कुछ कह नहीं सकते – 33.18%
नहीं – 14.79%
कोई जवाब नहीं – 3.41%
लोगों का जबाब बेहद ही सुखद रहा. लगभग आधे लोगों ने यानी 49.33% लोगों ने जवाब हां के तौर पर दिया तो वहीं 35.18% ऐसे लोग भी थे जो अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थे. 14.79% लोग ऐसे भी थे जिनका जवाब नहीं था, वहीं दूसरी ओर 3.41% लोग ऐसे थे जिन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया.
हमने अपने बारहवें प्रश्न में लोगों से जनमेला के समन्वयन को लेकर प्रश्न किया. हमने पूछा कि क्या आप इस मुहिम का समन्वयन अपने जिले से करना चाहेंगे?
हाँ – 58.29%
अभी कुछ कह नहीं सकते – 29.59%
नहीं - 10.32%
कोई जवाब नहीं – 1.71%
लोगों के जवाब से हमें लगा की सामज में लोग वाकई में कुछ अच्छा करना चाहते हैं. आधे से भी अधिक लोगों ने जबाब हां के रूप में दिया. 58.29% लोग ऐसे थे जो जनमेला का समन्वयन अपने जिले में करना चाहते हैं. यहां ऐसे भी लोग थे जो अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है तो साथ ही 10.32% ऐसे भी लोग हैं जो इसका समन्वय नहीं करना चाहते हैं, तो 1.71% ऐसे लोग भी रहे जिन्होंने किसी भी विकल्प को नहीं चुना.
हमें जनमेला से बहुत सारी उम्मीदें हैं और हमें ऐसा लगता है कि जनमेला के द्वारा चुनाव में बहुत हद तक सुधार लाया जा सकता है. ऐसे में हमने अपने तेरहवें प्रश्न में लोगों से यह पूछा कि क्या आपको लगता है जनमेला की मुहिम सफल हो पाएगी?
हाँ, जरूर हो पाएगी - 27.72%
हाँ, मुश्किल है मग़र लगातार लगे रहने से होने की उम्मीद है - 46.74%
नहीं, नामुमकिन है भारत के संदर्भ में ये बहुत ही बड़ा लक्ष्य है - 7.06%
लक्ष्य बड़ा नहीं, मग़र नेता होने नहीं देंगे - 11.96%
कोई जवाब नहीं – 6.52%
लोगों के जवाब में हां का प्रतिशत ही सबसे ज्यादा रहा और 46.74% लोगों ने माना कि हां, मुश्किल है मगर लगातार रहने लगे रहने से होने की उम्मीद है. साथ ही 27.72% को यह लगता है कि हां यह जरूर हो पायेगी. तो वहीं कुछ लोग मानते हैं कि नेता इस रास्ते में बाधा बन सकते हैं, 11.96% लोगों ने यह कहा कि लक्ष्य बड़ा नहीं मगर नेता इसे होने नहीं देंगे. वहीं दूसरी तरफ भारत के परिदृश्य में 7.06% लोग मानते हैं कि यह नामुमकिन है भारत के संदर्भ में बहुत ही बड़ा लक्ष्य है. तो वहीं 6.52% लोगों ने इस प्रश्न पर भी अपनी कोई राय नहीं बना सके.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है ऐसे में चुनाव एक पर्व की तरह मनाया जाता है, मगर चुनाव के दौरान बेहद ही ज्यादा खर्चें होते हैं जिसका कहीं ना कहीं बोझ आम लोगों के ऊपर भी पड़ता है. ऐसे में हमारा अगला और चौदहवां प्रश्न था कि भारतीय चुनाव प्रक्रिया में खर्चें के बारे में आपकी क्या राय है?
इतना खर्च तो होना ही चाहिए - 2.19%
कुछ कह नहीं सकते - 7.29%
बेहद महंगा - 86.13%
कोई जवाब नहीं – 4.38%
अब तक प्राप्त सारे जवाबों में से इसके एक विकल्प का प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा. ऐसा कहा जा सकता है कि लगभग सभी लोगों ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया को माना कि यह एक खर्चीली प्रक्रिया है और ऐसा मानने वाले 86.13% ऐसे लोग थे जो इसे बेहद महंगा मानते हैं. इसमें 2.19% ऐसे लोग भी थे जो मानते हैं कि चुनाव के दौरान इतना खर्चा तो होना ही चाहिए. साथ ही साथ कुछ लोग अभी भी कुछ कह नहीं सकते की स्थिति में थे जिनका प्रतिशत 7.29 रहा, वहीं 4.38% लोग ऐसे थे जिन्होंने कोई भी जवाब नहीं दिया.
हमारा अगला और अंतिम प्रश्न भारतीय चुनाव प्रक्रिया को लेकर ही था, जिसमें हमने अपने पंद्रहवें प्रश्न में लोगों से यह जानना चाहा कि भारतीय चुनाव अगर महंगा है तो इस पर आपकी राय?
इसे कम किया जाना चाहिए - 47.45%
कोई अगर सार्थक बदलाव लाए तो हम उसके समर्थन में आगे आयेंगे - 42.34%
कोई राय नहीं - 00.73%
जैसा है वैसा ही रहे - 2.92%
कोई जवाब नहीं – 6.57%
47.45% लोगों ने कहा इसे कम किया जाना चाहिए. तो वहीं बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनका मानना है कि कोई अगर सार्थक बदलाव लाए तो हम उसके समर्थन में आगे आएंगे और इस का प्रतिशत 42.34 रहा. कोई भी राय नहीं बना पाने वाले लोगों का प्रतिशत 0.73 रहा तो 2.9% लोग ऐसे भी थे जो मानते हैं जैसा है वैसा ही रहे. 6.57% ऐसे भी लोग थे जो किसी भी प्रकार का कोई जवाब ना दे सके.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो जनमेला भारतीय चुनाव प्रक्रिया के लिए एक बहुत ही बेहतर कदम साबित हो सकता है. हमारी जो परिकल्पना थी वह अनुमान के मुताबिक ही निकली. अधिकांश लोग जब जनमेला की अवधारणा से सहमत दिखाई देते हैं तो पता चलता है कि अभी की चुनावी प्रक्रिया में एक बेहतर बदलाव लाने की जरूरत है. अधिकांश लोग मानते हैं कि कालेधन का चुनाव में उपयोग होता है तो ऐसे में जरूरत है कि जनमेला जैसी अवधारणा को चुनाव आयोग द्वारा चलन में लाया जाए. राजनीतिक पार्टियों द्वारा भी जब उम्मीदवारों के चयन को लेकर लोगों को यह लगने लगे कि इसमें योग्यता से ज्यादा पैसे को बल दिया जाता है तो वाकई यह सोचनीय है. पहले जो रैली, लाउडस्पीकर अपनी बात रखने का जरिया थे लोगों को चुनाव में अब वह शोर लगने लगे हैं. भले ही कुछ लोग अभी भी मानते हैं कि चुनाव के दौरान ऐसी चीजें होनी चाहिए. लोगों की नज़र में रैलियां सिर्फ चुनिंदा और बड़े उम्मीदवारों के बारे में ही उन्हें सही जानकारी देता है वरना उन्हें रैलियों से कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं होती. नए डिजिटल मीडिया माध्यम और सोशल मीडिया के साथ-साथ मेनस्ट्रीम मीडिया अब ये काम करने लगे हैं, लोगों तक सूचना पहुंचा पाने एक बड़ा माध्यम बनकर उभरे हैं. लोग मानते हैं कि जनमेला उन्हें सही जानकारी या नहीं तो थोड़ी बहुत जानकारी उनके उम्मीदवारों के बारे में दे ही पाएगा. जनमेला के प्रति लोगों ने बहुत हद तक भरोसा जताया है और वह जनमेला के आयोजन में मदद करना चाहते हैं और साथ ही साथ अपने जिले में भी उसका समन्वयन करने को इच्छुक हैं. चुनाव बहुत ही महंगी प्रक्रिया बन चुकी है ऐसे में लोग चाहते हैं कि जनमेला जिसकी अवधारणा की गई है वह चुनाव आयोग द्वारा लाया जाए जिससे कि चुनाव सुधार प्रक्रिया की ओर हम आगे बढ़ सके और हमारा लोकतांत्रिक पर्व फिर से पर्व की तरह मनाया जा सके.
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