हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला 14 से 17 दिसंबर 2017, यानी चार दिनों तक चलने वाला यह मेला गाजियाबाद के रामलीला मैदान, कवि नगर में आयोजित किया गया. भारतीय विरासत, भारतीय संस्कृति पर केंद्रित इस मेले का आयोजन बेहद सफल रहा.
आज की पीढ़ी जो कि अपनी मूल संस्कृति से दूर होती जा रही है उसे समझाने का एक छोटा सा प्रयास था यह मेला. इस मेले के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया गया. कोशिश की गई कि आज के बदलते परिवेश और बदलते सोच को फिर से अपनी परंपरा की तरफ लौटा कर उसकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाए जिसमें आयोजक बेहद हद तक सफल रहें.
हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला वैसे तो भारतीय संस्कृति पर केंद्रित था, मगर मेले के 6 मूल सिद्धांत थे:
पारिस्थितिकी संरक्षण.
नारी सम्मान को प्रोत्साहन.
वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण.
देशभक्ति का भाव जगाना.
पर्यावरण का संरक्षण.
मानवीय और पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देना.
इन 6 मूल सिद्धांतों को ही मेले में लागू किया गया था और इसी से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे. अलग-अलग माध्यमों द्वारा इन सिद्धांतों को दर्शाने की कोशिश की गई.
मेले में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. एक साथ अलग-अलग जगहों पर विभिन्न कार्यक्रम के आयोजन से लोगों के पास भी सुविधा थी कि उन्हें अपनी रुचि के अनुरूप जिन कार्यक्रमों में सम्मिलित होना है उसमें वह हो सकते थे. मेले में कई आकर्षण के केंद्र थे उचित मूल्य पर खाने पीने की सुविधाओं के साथ साथ लोक नृत्य का भी आयोजन किया गया था मगर मेले के विशेष आकर्षण रहें:
बोलता सनातन वृक्ष.
प्रसिद्ध लोक नृत्य.
ध्रुवा संस्कृत बैंड का मनमोहक प्रदर्शन.
150 से अधिक संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों द्वारा अपने सेवाकार्यों का प्रदर्शन.
चाणक्य नाटक, बॉलीवुड कलाकार मनोज जोशी के द्वारा निर्देशित. बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक खेल तमाशे.
सुंदर झांकियां और साथ ही साथ कठपुतली का खेल, नाटक आदि मुख्य आकर्षण का केंद्र रहें.
कहते हैं कि लोग जब किसी को समाज के लिए बेहतर कार्य करते हुए देखते हैं तो उन्हें भी इससे प्रेरणा मिलती है. लोगों के अंदर भी समाज के लिए कुछ बेहतर करने की जागृति पनपती है. ऐसे में हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला में डेढ़ सौ से भी अधिक स्वयंसेवी संगठनों ने अपने सेवा कार्य के बारे में यहां लोगों को जानकारी दी. हो सकता है इससे कई ऐसे लोग जुड़े जो इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं या कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें इससे प्रोत्साहन मिल पाए. इन सभी संस्थाओं के बारे में बता पाना तो संभव नहीं मगर फिर भी आप तक कुछ संस्थाओं के प्रयासों को बताना बेहद जरूरी है.
भारत लोक शिक्षा परिषद के एकल अभियान का लक्ष्य है पंचमुखी शिक्षा से गांव का सर्वागीण विकास करना. उसके तहत वह शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, जागरण और संस्कार शिक्षा पर जोर देते हैं. एकल अभियान की अग्रणी संस्था के रूप में भारत लोक शिक्षा परिषद की स्थापना सन् 2000 में दिल्ली में हुई. करोड़ों ग्रामवासियों व वनवासी बंधुओं के शैक्षणिक आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण हेतु यह संस्था समर्पित है. उनका मानना है कि अगर गरीब बच्चे विद्यालय नहीं जा सकते तो विद्यालयों को उन तक पहुंचना चाहिए. 1989 में झारखंड से प्रारंभ हुआ एकल अभियान आज देश के 22 प्रांतों के लगभग 55000 गांव में पहुंच चुका है आगामी लक्ष्य एक लाख गांव को शक्ति केंद्र बनाना है. शिक्षित भारत, स्वस्थ भारत, समृद्ध एवं स्वाभिमानी भारत की कल्पना को साकार करने हेतु पंचमुखी शिक्षा को वह आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हैं.
मेले में उपस्थित रही एक और शिक्षा से ही जुड़ी संस्था संकल्प से भी बहुत लोग लाभान्वित हुए हैं. संकल्प का उद्देश्य है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के कई दशक बाद भी देश में चारों ओर भूख, बीमारी, बेकारी, भ्रष्टाचार, विश्वासघात और चरित्र का संकट नजर आता है. किसी भी देश तंत्र की रीढ़ की हड्डी उसके प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. ये वे लोग हैं जो राष्ट्र मंदिर की नींव को ठोस आधार दे सकते हैं. इसी पृष्ठभूमि में विचार उभरा कि ईमानदार, सामाजिक रुप से प्रतिबद्ध, भारतीय संस्कृति में पोशित, मौलिक एवं कल्पनाशील प्रशासकों के सिविल सेवा में आने से देश में परिवर्तन की प्रक्रिया तेज होगी और लाखों-करोड़ों भारतवासियों के लिए विकास के द्वार खुल सकेंगे. अत: प्रतिभाशाली प्रतिभागियों को खोज कर उनमें ईमानदारी और राष्ट्रप्रेम के संस्कार डालने तथा कुशल प्रशासक के रूप में उनका विकास करने के लिए वर्ष 1986 में संकल्प नामक प्रकल्प का प्रारंभ किया गया.
संकल्प विद्यालय स्तर पर भी काम करती है. इसमें नौवीं कक्षा से मेधावी विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है. इस चरण में विशेष शिक्षण योजना के अंतर्गत पत्राचार एवं संपर्क कार्यक्रम द्वारा प्रकल्प के विद्यार्थियों को सामान्य जागरूकता, व्यक्तित्व विकास, सांस्कृतिक चेतना, संप्रेषण क्षमता, मूल्यबोध, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा चयनित पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई जाती है. समय समय पर संबंधित विषयों की कक्षाएं ली जाती हैं.
इस मेले में एक और सेवा संस्था 'सक्षम' की भी मौजूदगी रही. सक्षम यानी समदृष्टि, क्षमता, विकास एवं अनुसंधान मंडल. इसकी टैग लाइन है नेत्रदान - श्रेष्ठदान, विकलांग सेवा - श्रेष्ठ सेवा. सक्षम नि:शक्तजनों (दिव्यांगो) के सर्वांगीण उन्नति हेतु समर्पित राष्ट्रीय संगठन है. इनकी मान्यता है कि नि:शक्त अपने परिवार और समाज पर बोझ नहीं है. यदि इनकी योग्यता, क्षमता व प्रतिभा के प्रोत्साहन हेतु अवसर उपलब्ध है तो यह स्वावलंबी बनकर राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपना योगदान कर सकते हैं. इन्हीं विचारों को लेकर सक्षम की स्थापना 20 , जून 2008 को नागपुर में हुई थी. तब से लेकर अब तक नि:शक्तजनों के शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वालंबन और सामाजिक विकास के लिए यह निरंतर कार्य कर रही है.
मेले में इसी तरह कई और सेवा संस्थान थे जैसे 'दिव्य प्रेम सेवा मिशन' जो सेवा को समर्पित अध्यात्म प्रेरित स्वैच्छिक सेवा संस्थान है. यहां मुफ्त में कुष्ठ रोगियों के लिए चिकित्सालय है. तो वहीं निर्धनों के लिए विद्यालय भी है और साथ ही छात्रावास भी उपलब्ध करवाया गया है. साथ ही यहां दूसरे चिकित्सालय एवं शोध केंद्र भी है. दूसरी ओर यह स्वच्छता को लेकर भी समर्पित हैं और निर्मल गंगा स्वच्छ भारत अभियान को चला रहे हैं.
मेले में वृंदावन की सेवा संस्थान 'केशवधाम' की भी मौजूदगी रही. केशवधाम में हिंसा एवं अलगावग्रस्त, पूर्वोत्तर राज्यों के सुदूर गांवों के वनवासी, जनजाति बालकों को निशुल्क शिक्षा के साथ भोजन तथा आवास की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है. आसपास के क्षेत्रों के बच्चों के लिए यहां विद्यालय की भी व्यवस्था है तो वहीं सेवाव्रती वृद्धजनों के लिए आवास का भी प्रबंध किया गया है जिससे उनके अनुभव का उपयोग नई पीढ़ी को प्राप्त हो सके. केशवधाम में वेदविज्ञान शोध केंद्र, धर्मार्थ चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग संस्थान भी है. वहीं कृषि प्रकल्प के द्वारा जैविक खेती भी की जाती है, तो वहीं गायों के संरक्षण के लिए गोसदन भी स्थापित किया गया है. राष्ट्र निर्माण हेतु मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है. पुस्तकालय की व्यवस्था के साथ-साथ कुष्ठ रोगियों के लिए यहां सेवा केंद्र भी है.
'प्रेरणा सेवा आश्रम' प्रेरणा सेवा संस्थान द्वारा कवि नगर, गाजियाबाद में आश्रयहीन, असहाय, लाचारों के सेवार्थ संचालित सेवा संस्थान है. यहां ऐसे लावारिस असहाय बीमारों को भर्ती कर सेवाएं प्रदान की जा रही है जो कि रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सार्वजनिक एवं धार्मिक स्थलों पर असीम गंदगी एवं वेदनादायक स्थिति में पड़े हुए जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे होते हैं. अंतिम समय में इनके पास भोजन, कपड़ा एवं दवा तो दूर की बात है पानी तक नसीब नहीं होता. इन्हें लोग छूना तक पसंद नहीं करते इन दीनजनों को संस्था द्वारा अपनापन, चिकित्सा, भोजन, आवास, वस्त्र, सेवा आदि निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है.
मेले में 'सेवा भारती' नामक संस्थान की भी उपलब्धता रही. सेवा भारती राष्ट्रहित और समाजहित में तत्पर सामाजिक संगठन है. सेवा भारती का उद्देश्य अपने प्रकल्पों और अनुशासित, संस्कारित सदस्यों के माध्यम से सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, सुसंस्कृत, सुदृढ़ समाज का निर्माण करना है. सत्यनिष्ठ और धर्मनिष्ठ मनुष्य ही उन्नत और सदाचार से युक्त समाज का संगठन कर सकता है. इस उद्देश्य से सेवा भारती सत्य, संयम, सदाचार और सेवा को प्रत्येक मनुष्य के जीवन में प्रतिष्ठित करना चाहती है. अपने संस्कार केंद्र, सेवा प्रकल्प व सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जागरण के कार्यक्रमों के माध्यम से सेवा भारती समाज के वंचित और निर्बल लोगों के जीवन स्तर को सामाजिक और आर्थिक रुप से उन्नत करने को संकल्पित है.
'निरीह मातृ - पितृ सेवाश्रम' संस्थान जो तिरस्कृत महिलाओं से उत्पादन कराकर आत्मनिर्भरता की राह दिखाता है. तो वहीं निरीह माताओं - पिताओं द्वारा उनकी शारीरिक व मानसिक क्षमताओं के अनुरूप उनके अनुभव को जन्य लाभों को प्रेरणा मान कर उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य करता है.
उसी तरह 'माता - पिता समान सेवा ट्रस्ट (पंजी.) जोकि बुजुर्ग माता पिता के सम्मान की लड़ाई लड़ता है.
एक और ट्रस्ट 'लक्ष्य' जिसका उद्देश्य ज्ञान का प्रसार है. लक्ष्य का मानना है कि संपनता के साथ हर कोई जन्म नहीं लेता. कुछ लोगों को मूलभूत आवश्यकताएं भी जुटानी पड़ती है. उन्हें सफलता की राह पर कदम रखने में मदद करें, समाज को शिक्षित करने में योगदान दें. लक्ष्य लोगों से अपील करते हुए कहता है कि - हम आपकी अनुपयोगी हो चुकी पुस्तकों को एकत्रित कर अपने पुस्तकालय में संग्रहित करते हैं, जिन्हें गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है. अब आप जब भी पुस्तकों को रद्दी में डालने की सोचें, हमें याद कीजिएगा, हम आपकी मदद कर सकते हैं किसी निर्धन बच्चे के अंधकारमय भविष्य में एक प्रकाश की किरण बनने में.
ऐसे ही कोई और सेवा संस्थान की इस हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला में उपस्थिति रही. शायद जिनके सेवाकार्यों से लोगों को प्रोत्साहन मिल सके और वह भी सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाएं. चार दिनों तक चले मेले के सफल आयोजन के पीछे मुख्य तौर पर डॉ. दिनेश अरोड़ा, ललित जायसवाल और राहुल सिंह की भूमिका रही. अलग-अलग कार्यक्रमों और सभी आयु वर्गों के रुचि से संबंधित कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए पूरी टीम का प्रयास सराहनीय रहा.
By Swarntabh Kumar {{descmodel.currdesc.readstats }}
हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला 14 से 17 दिसंबर 2017, यानी चार दिनों तक चलने वाला यह मेला गाजियाबाद के रामलीला मैदान, कवि नगर में आयोजित किया गया. भारतीय विरासत, भारतीय संस्कृति पर केंद्रित इस मेले का आयोजन बेहद सफल रहा.
आज की पीढ़ी जो कि अपनी मूल संस्कृति से दूर होती जा रही है उसे समझाने का एक छोटा सा प्रयास था यह मेला. इस मेले के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया गया. कोशिश की गई कि आज के बदलते परिवेश और बदलते सोच को फिर से अपनी परंपरा की तरफ लौटा कर उसकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाए जिसमें आयोजक बेहद हद तक सफल रहें.
हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला वैसे तो भारतीय संस्कृति पर केंद्रित था, मगर मेले के 6 मूल सिद्धांत थे:
पारिस्थितिकी संरक्षण.
नारी सम्मान को प्रोत्साहन.
वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण.
देशभक्ति का भाव जगाना.
पर्यावरण का संरक्षण.
मानवीय और पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देना.
इन 6 मूल सिद्धांतों को ही मेले में लागू किया गया था और इसी से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे. अलग-अलग माध्यमों द्वारा इन सिद्धांतों को दर्शाने की कोशिश की गई.
मेले में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. एक साथ अलग-अलग जगहों पर विभिन्न कार्यक्रम के आयोजन से लोगों के पास भी सुविधा थी कि उन्हें अपनी रुचि के अनुरूप जिन कार्यक्रमों में सम्मिलित होना है उसमें वह हो सकते थे. मेले में कई आकर्षण के केंद्र थे उचित मूल्य पर खाने पीने की सुविधाओं के साथ साथ लोक नृत्य का भी आयोजन किया गया था मगर मेले के विशेष आकर्षण रहें:
बोलता सनातन वृक्ष.
प्रसिद्ध लोक नृत्य.
ध्रुवा संस्कृत बैंड का मनमोहक प्रदर्शन.
150 से अधिक संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों द्वारा अपने सेवाकार्यों का प्रदर्शन.
चाणक्य नाटक, बॉलीवुड कलाकार मनोज जोशी के द्वारा निर्देशित. बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक खेल तमाशे.
सुंदर झांकियां और साथ ही साथ कठपुतली का खेल, नाटक आदि मुख्य आकर्षण का केंद्र रहें.
कहते हैं कि लोग जब किसी को समाज के लिए बेहतर कार्य करते हुए देखते हैं तो उन्हें भी इससे प्रेरणा मिलती है. लोगों के अंदर भी समाज के लिए कुछ बेहतर करने की जागृति पनपती है. ऐसे में हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला में डेढ़ सौ से भी अधिक स्वयंसेवी संगठनों ने अपने सेवा कार्य के बारे में यहां लोगों को जानकारी दी. हो सकता है इससे कई ऐसे लोग जुड़े जो इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं या कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें इससे प्रोत्साहन मिल पाए. इन सभी संस्थाओं के बारे में बता पाना तो संभव नहीं मगर फिर भी आप तक कुछ संस्थाओं के प्रयासों को बताना बेहद जरूरी है.
भारत लोक शिक्षा परिषद के एकल अभियान का लक्ष्य है पंचमुखी शिक्षा से गांव का सर्वागीण विकास करना. उसके तहत वह शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, जागरण और संस्कार शिक्षा पर जोर देते हैं. एकल अभियान की अग्रणी संस्था के रूप में भारत लोक शिक्षा परिषद की स्थापना सन् 2000 में दिल्ली में हुई. करोड़ों ग्रामवासियों व वनवासी बंधुओं के शैक्षणिक आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण हेतु यह संस्था समर्पित है. उनका मानना है कि अगर गरीब बच्चे विद्यालय नहीं जा सकते तो विद्यालयों को उन तक पहुंचना चाहिए. 1989 में झारखंड से प्रारंभ हुआ एकल अभियान आज देश के 22 प्रांतों के लगभग 55000 गांव में पहुंच चुका है आगामी लक्ष्य एक लाख गांव को शक्ति केंद्र बनाना है. शिक्षित भारत, स्वस्थ भारत, समृद्ध एवं स्वाभिमानी भारत की कल्पना को साकार करने हेतु पंचमुखी शिक्षा को वह आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हैं.
मेले में उपस्थित रही एक और शिक्षा से ही जुड़ी संस्था संकल्प से भी बहुत लोग लाभान्वित हुए हैं. संकल्प का उद्देश्य है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के कई दशक बाद भी देश में चारों ओर भूख, बीमारी, बेकारी, भ्रष्टाचार, विश्वासघात और चरित्र का संकट नजर आता है. किसी भी देश तंत्र की रीढ़ की हड्डी उसके प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. ये वे लोग हैं जो राष्ट्र मंदिर की नींव को ठोस आधार दे सकते हैं. इसी पृष्ठभूमि में विचार उभरा कि ईमानदार, सामाजिक रुप से प्रतिबद्ध, भारतीय संस्कृति में पोशित, मौलिक एवं कल्पनाशील प्रशासकों के सिविल सेवा में आने से देश में परिवर्तन की प्रक्रिया तेज होगी और लाखों-करोड़ों भारतवासियों के लिए विकास के द्वार खुल सकेंगे. अत: प्रतिभाशाली प्रतिभागियों को खोज कर उनमें ईमानदारी और राष्ट्रप्रेम के संस्कार डालने तथा कुशल प्रशासक के रूप में उनका विकास करने के लिए वर्ष 1986 में संकल्प नामक प्रकल्प का प्रारंभ किया गया.
संकल्प विद्यालय स्तर पर भी काम करती है. इसमें नौवीं कक्षा से मेधावी विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है. इस चरण में विशेष शिक्षण योजना के अंतर्गत पत्राचार एवं संपर्क कार्यक्रम द्वारा प्रकल्प के विद्यार्थियों को सामान्य जागरूकता, व्यक्तित्व विकास, सांस्कृतिक चेतना, संप्रेषण क्षमता, मूल्यबोध, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा चयनित पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई जाती है. समय समय पर संबंधित विषयों की कक्षाएं ली जाती हैं.
इस मेले में एक और सेवा संस्था 'सक्षम' की भी मौजूदगी रही. सक्षम यानी समदृष्टि, क्षमता, विकास एवं अनुसंधान मंडल. इसकी टैग लाइन है नेत्रदान - श्रेष्ठदान, विकलांग सेवा - श्रेष्ठ सेवा. सक्षम नि:शक्तजनों (दिव्यांगो) के सर्वांगीण उन्नति हेतु समर्पित राष्ट्रीय संगठन है. इनकी मान्यता है कि नि:शक्त अपने परिवार और समाज पर बोझ नहीं है. यदि इनकी योग्यता, क्षमता व प्रतिभा के प्रोत्साहन हेतु अवसर उपलब्ध है तो यह स्वावलंबी बनकर राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपना योगदान कर सकते हैं. इन्हीं विचारों को लेकर सक्षम की स्थापना 20 , जून 2008 को नागपुर में हुई थी. तब से लेकर अब तक नि:शक्तजनों के शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वालंबन और सामाजिक विकास के लिए यह निरंतर कार्य कर रही है.
मेले में इसी तरह कई और सेवा संस्थान थे जैसे 'दिव्य प्रेम सेवा मिशन' जो सेवा को समर्पित अध्यात्म प्रेरित स्वैच्छिक सेवा संस्थान है. यहां मुफ्त में कुष्ठ रोगियों के लिए चिकित्सालय है. तो वहीं निर्धनों के लिए विद्यालय भी है और साथ ही छात्रावास भी उपलब्ध करवाया गया है. साथ ही यहां दूसरे चिकित्सालय एवं शोध केंद्र भी है. दूसरी ओर यह स्वच्छता को लेकर भी समर्पित हैं और निर्मल गंगा स्वच्छ भारत अभियान को चला रहे हैं.
मेले में वृंदावन की सेवा संस्थान 'केशवधाम' की भी मौजूदगी रही. केशवधाम में हिंसा एवं अलगावग्रस्त, पूर्वोत्तर राज्यों के सुदूर गांवों के वनवासी, जनजाति बालकों को निशुल्क शिक्षा के साथ भोजन तथा आवास की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है. आसपास के क्षेत्रों के बच्चों के लिए यहां विद्यालय की भी व्यवस्था है तो वहीं सेवाव्रती वृद्धजनों के लिए आवास का भी प्रबंध किया गया है जिससे उनके अनुभव का उपयोग नई पीढ़ी को प्राप्त हो सके. केशवधाम में वेदविज्ञान शोध केंद्र, धर्मार्थ चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग संस्थान भी है. वहीं कृषि प्रकल्प के द्वारा जैविक खेती भी की जाती है, तो वहीं गायों के संरक्षण के लिए गोसदन भी स्थापित किया गया है. राष्ट्र निर्माण हेतु मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है. पुस्तकालय की व्यवस्था के साथ-साथ कुष्ठ रोगियों के लिए यहां सेवा केंद्र भी है.
'प्रेरणा सेवा आश्रम' प्रेरणा सेवा संस्थान द्वारा कवि नगर, गाजियाबाद में आश्रयहीन, असहाय, लाचारों के सेवार्थ संचालित सेवा संस्थान है. यहां ऐसे लावारिस असहाय बीमारों को भर्ती कर सेवाएं प्रदान की जा रही है जो कि रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सार्वजनिक एवं धार्मिक स्थलों पर असीम गंदगी एवं वेदनादायक स्थिति में पड़े हुए जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे होते हैं. अंतिम समय में इनके पास भोजन, कपड़ा एवं दवा तो दूर की बात है पानी तक नसीब नहीं होता. इन्हें लोग छूना तक पसंद नहीं करते इन दीनजनों को संस्था द्वारा अपनापन, चिकित्सा, भोजन, आवास, वस्त्र, सेवा आदि निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है.
मेले में 'सेवा भारती' नामक संस्थान की भी उपलब्धता रही. सेवा भारती राष्ट्रहित और समाजहित में तत्पर सामाजिक संगठन है. सेवा भारती का उद्देश्य अपने प्रकल्पों और अनुशासित, संस्कारित सदस्यों के माध्यम से सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, सुसंस्कृत, सुदृढ़ समाज का निर्माण करना है. सत्यनिष्ठ और धर्मनिष्ठ मनुष्य ही उन्नत और सदाचार से युक्त समाज का संगठन कर सकता है. इस उद्देश्य से सेवा भारती सत्य, संयम, सदाचार और सेवा को प्रत्येक मनुष्य के जीवन में प्रतिष्ठित करना चाहती है. अपने संस्कार केंद्र, सेवा प्रकल्प व सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जागरण के कार्यक्रमों के माध्यम से सेवा भारती समाज के वंचित और निर्बल लोगों के जीवन स्तर को सामाजिक और आर्थिक रुप से उन्नत करने को संकल्पित है.
'निरीह मातृ - पितृ सेवाश्रम' संस्थान जो तिरस्कृत महिलाओं से उत्पादन कराकर आत्मनिर्भरता की राह दिखाता है. तो वहीं निरीह माताओं - पिताओं द्वारा उनकी शारीरिक व मानसिक क्षमताओं के अनुरूप उनके अनुभव को जन्य लाभों को प्रेरणा मान कर उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य करता है.
उसी तरह 'माता - पिता समान सेवा ट्रस्ट (पंजी.) जोकि बुजुर्ग माता पिता के सम्मान की लड़ाई लड़ता है.
एक और ट्रस्ट 'लक्ष्य' जिसका उद्देश्य ज्ञान का प्रसार है. लक्ष्य का मानना है कि संपनता के साथ हर कोई जन्म नहीं लेता. कुछ लोगों को मूलभूत आवश्यकताएं भी जुटानी पड़ती है. उन्हें सफलता की राह पर कदम रखने में मदद करें, समाज को शिक्षित करने में योगदान दें. लक्ष्य लोगों से अपील करते हुए कहता है कि - हम आपकी अनुपयोगी हो चुकी पुस्तकों को एकत्रित कर अपने पुस्तकालय में संग्रहित करते हैं, जिन्हें गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है. अब आप जब भी पुस्तकों को रद्दी में डालने की सोचें, हमें याद कीजिएगा, हम आपकी मदद कर सकते हैं किसी निर्धन बच्चे के अंधकारमय भविष्य में एक प्रकाश की किरण बनने में.
ऐसे ही कोई और सेवा संस्थान की इस हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला में उपस्थिति रही. शायद जिनके सेवाकार्यों से लोगों को प्रोत्साहन मिल सके और वह भी सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाएं. चार दिनों तक चले मेले के सफल आयोजन के पीछे मुख्य तौर पर डॉ. दिनेश अरोड़ा, ललित जायसवाल और राहुल सिंह की भूमिका रही. अलग-अलग कार्यक्रमों और सभी आयु वर्गों के रुचि से संबंधित कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए पूरी टीम का प्रयास सराहनीय रहा.
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