आज से कुछ साढ़े सात हज़ार साल पहले जब श्री राम, ताड़का वध के समय, वन गुरु विश्वामित्र और
लक्षमण के साथ पहुंचे तब उन्होंने पाया कि नदियाँ तालाब, काले हो चुके हैं, हवा
ज़हरीली हो चुकी है और लोग वहां से पलायन कर चुके हैं.
ठीक इसी तरह कृष्ण ने भी यमुना में विष घुला हुआ पाया, जल काला हो चुका था और
यमुना के तट पर लोग बीमार पड़ रहे थे.
श्री राम ने जब क्रुद्ध हो कर समुद्र को सुखा देने के लिए शास्त्र उठाये थे, तो
समुद्र ने भी यही कहा था कि प्रकृति के पांच तत्त्व अपनी मर्यादा में रहते हैं और
अगर इनकी मर्यादा टूटती है तो समय से पहले प्रलय आ सकती है. प्रकृति की इस बात को
सुन श्री राम ने भी धनुष झुका लिया था.
इस विषय और घटनाक्रम के फैक्ट्स पर बहस ज़रूर की जा सकती है, मगर सच्चाई यही है
कि हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार ही प्रकृति की रक्षा कर, सभ्य अचार व्यवहार
की स्थापना करना है.
श्री राम ने सुबाहु, मारीच और ताड़का वध के माध्यम से जो सीख दी, या कृष्ण ने कालिया नाग का वध कर
के जो समझाया, हम उसको पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा से जुड़े हमारे सहज आचरण की
सीख से जोड़ कर देखते हैं,
जिसमे ताड़का और कालिया नाग प्रतीक हैं.. एक सोच के या आचरण के, जिसने नदियों
को विषैला किया है.
हिंडन या हरनंदी पर आज संकट भी इसी तरह का है और राम और कृष्ण के निर्गुण सत्य
की सीख तो हमारे साथ है, मगर हर युग इन प्रत्यक्ष संकटों के साथ नयी चुनौतियाँ ले
कर आता है और इनका का सामना करने के लिए हमें इतिहास में देखना, वर्तमान को समझना
और चरणबद्ध योज़नाएं बनाना ज़रूरी है.
इसी विषय पर चर्चा करने हेतु हमारी विशेषज्ञ टीम के अंतर्गत डॉ. प्रभात कुमार
(पूर्व मंडलायुक्त, मेरठ, आयुक्त कृषि उप्ताद - उत्तर प्रदेश, अपर मुख्य सचिव प्राथमिक शिक्षा - उत्तर प्रदेश, संस्थापक निर्मल हिंडन) एवं श्री रमन कांत (निदेशक, नीर फाउंडेशन) सम्मिलित हुए और
हिंडन के ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करते हुए इससे जुड़ी समस्याओं तथा “निर्मल हिंडन
अभियान” के तहत कुछ निराकरणों पर प्रकाश डाला गया. इस परिचर्चा से जुड़े कुछ अहम
केंद्रीय बिंदु अग्रलिखित रूप से दिए गये हैं.
भाग 1 : हिंडन नदी से जुड़ा इतिहास -
मूलतः हिण्डन नदी का उद्गम सहारनपुर जनपद के पुर का टांडा
गांव को माना जाता रहा है. पुर का टांडा के जंगल से बरसात के समय पानी एकत्र होकर
बहने वाला पानी नदी की एक धारा बनाता है तथा यह धारा सहारनपुर जनपद के ही कमालपुर
गांव के जंगल में जाकर कालूवाला की पहाड़ियों से साफ-शुद्ध पानी लेकर आने वाली
कालूवाला खोल अर्थात हिण्डन में मिल जाती है. इस स्थान पर करीब 90 प्रतिशत पानी
कालूवाला खोल की धारा से आता है जबकि करीब 10 प्रतिशत पानी ही पुर का टांडा से
निकलने वाली धारा से आता है. स्थानीय निवासियों के कथनानुसार यह सब नाम तो बोलचाल
के हैं, वास्तव में यह सब हिंडन नदी ही है.
सर्वप्रथम रमन जी ने हिंडन नदी की ऐतिहासिक गाथा बताते हुए इसके स्वर्णिम
इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया:
हिंडन नदी को ऐतिहासिक दृष्टि से हिंडन को पंचतीर्थी कहा गया है, क्योंकि इसका
नाम हरनंदी है तथा इसके किनारे पांच तीर्थ बसे हुए हैं. बरनावा, लक्ष्याग्रह, शिव मंदिर और
मोहननगर में तीर्थस्थल मौजूद है.
हिंडन नदी की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बरसात के समय सभी नदियों का
पानी पीना निषेध बताया गया है, क्योंकि वे सभी स्त्री रूपा नदियाँ हैं, लेकिन
हिंडन पुरुष रुपी नदी है तो बरसात में भी इसका पानी पीना निषेध नहीं बताया गया. ऐतिहासिक
पन्नो में यह प्रमाण लिखित रूप से मौजूद है.
तीसरे, जब 70 के दशक में बाढ़ आई थी, बाढ़ के कारण काफी तबाही भी हुई थी, उस तरह
की बाढ़ आज तक नहीं आई. तो उस समय हिंडन नदी के किनारे बंधे बनाये गये थे. आज भी वो
बंधे वहां मौजूद है, उन बंधो को बनाने का सारा कार्य समाज के लोगों ने मिलकर किया,
सरकार की तरफ से कोई योगदान इसमें नहीं प्राप्त हुआ. ये बांध बाढ़ को रोकने के लिए समाज
की ओर से बनाये गये थे. यानि यह नदी पूर्णरूपेण समाज से जुड़ी नदी है.
“निर्मल हिंडन अभियान” के सूत्रधार डॉ. प्रभात कुमार जी ने हिंडन के भौगौलिक
स्वरुप को उजागर करते हुए निर्मल हिंडन से जुड़े कुछ अहम तथ्यों को भी स्पष्ट करते
हुए बताया :
मेरठ के अंतर्गत कार्य करते हुए हिंडन नदी को समझने का अवसर प्राप्त हुआ.
हिंडन नदी वास्तव में रेन फेड नदी है और शिवालिक पर्वत के उत्तरी छोर से यह
प्रवाहित होती है. यह नदी वास्तव में उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश की सीमा जहां पर
विभक्त होती है, वहां की शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीचे से यह नदी निकलती है और
उसके बाद यह सात जिलों सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, ग़ाज़ियाबाद और
अंतत गौतमबुद्धनगर के मोमनाथम गांव में यह यमुना में समाहित हो जाती है. हिंडन नदी
की सबसे बड़ी महत्ता यह है कि यह इन सातों जिलों को सिंचती है, जिन्हें कृषि की
दृष्टि से प्रदेश के बेहद महत्वपूर्ण जिलों के रूप में देखा जाता है. इस कारण
हिंडन का जल सिंचाई एवं पेयजल के रूप में इन जिलों के लिए बेहद आवश्यक है.
हिंडन प्रदूषण के मुख्य कारण -
बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण कृषि पिछड़ती चली गयी और उसके साथ साथ उद्योगों से
होने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने का प्रयास भी अधिक नहीं किया गया.
उद्योगों के बढ़ने से भूजल का दोहन तो अत्याधिक किया ही गया, साथ ही
जल-उत्सर्जन की गुणवत्ता भी गिरी.
नदियों के किनारे जब शहरी सभ्यताओं का विकास होना आरम्भ हुआ, तो उनसे उत्पन्न
सीवेज और अपशिष्ट का नदियों में मिलना भी शुरू हुआ.
साथ ही कृषि में धीरे धीरे रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग भी अधिक
होने लगा, जिसके कारण भी प्रदूषित पानी नदियों में जाने लगा. इस प्रकार मुख्य रूप
से नदियों के प्रदूषण के लिए औद्योगिक अपशिष्ट, सीवरेज और कृषि में उपयुक्त कीटनाशकों
का बढ़ता प्रयोग जिम्मेदार बने.
साथ ही वर्षाजल का संचयन नहीं होना और नदी जल स्त्रोतों का उचित संरक्षण नहीं
होना भी नदियों की दुर्दशा का कारण बना. नदियों के जल स्त्रोतों, जिनमें तालाब,
वेटलैंड आदि थे वो खत्म कर दिए गये और नदी किनारे बने जंगलों को भी समाप्त कर दिया
गया, जिससे स्थिति अधिक विकट हो गयी.
इन सबसे एक ओर तो पानी की मात्रा कम होती गयी और दूसरी ओर प्रदूषण के स्त्रोत
नदी प्रदूषण को बढाते चले गये. नतीजतन आज केवल बारिश के समय ही नदी जल प्रवाह
तुलनात्मक रूप से बेहतर होता है, इसके अतिरिक्त सितम्बर के बाद नदी के पानी की
गुणवत्ता प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब हो जाती है.
हिंडन के किनारे लगभग 850 के करीब ग्राम हैं, उन सबके निवासियों को नदी का
पानी नुकसान पहुँचाने लगा. क्योंकि नदी जल के माध्यम से प्रदूषण हमारी खाद्य
श्रृंखला में प्रवेश कर गया. इस तरह कृषि उत्पादों, पेयजल आदि के माध्यम से यह
निवासियों को नुकसान पहुँचाने लगा और नदी प्रदूषण से लोग बीमार होने लगे. इस
प्रकार लोग मानने लगे कि हिंडन जल प्रदूषण के कारण वें गंभीर रोगों के शिकार हो
रहे हैं.
इस दिशा में कार्य करने के उद्देश्य से ही “निर्मल हिंडन अभियान” चलाया गया,
जिसमें हिंडन को निर्मल बनाने के साथ साथ उसके सतत प्रवाह को सुनिश्चित करने का
उद्देश्य भी रखा गया.
इसमें मुख्य रूप से तीन तथ्यों को सम्मिलित किया गया..
1. किस प्रकार से बरसात के पानी का संचयन करके उसको पूरे वर्ष हिंडन नदी में
प्रवाहित कर सकें, यानि हिंडन से जुड़े जल स्त्रोतों की संवृद्धि की जाये.
2. किस प्रकार से औद्योगिक कचरे, सीवरेज एवं सॉलिड अपशिष्टों को नदी में जाने
से रोकें?
3. किस प्रकार हिंडन के आस पास के निवासियों की सोच में बदलाव लायें, जिससे
वें नदी को अपने जीवन का एक हिस्सा समझकर उसी प्रकार नदी की पवित्रता, अविरलता और
निर्मलता का ध्यान रखें, जैसे वें अपने घर में रखे जल-स्त्रोत का ध्यान रखते हैं.
इन सभी विषयों पर कार्य करने के मंतव्य से हमने इसके पांच मुख्य हिस्से
निर्मित किये, जो इस प्रकार हैं..
1. नदी के किनारे और उसके आस पास के क्षेत्रों में जंगल की सघनता को बढ़ाया
जाये, जिनमें निजी अथवा सरकारी जमीन शामिल हो. इस योजना में लोगों की सहभागीदारी
भी देखी गयी और बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण भी हुआ.
2. नदी किनारे के ग्रामों में परंपरागत जल-स्त्रोतों का जीर्णोधार किया जाये,
जिनमें तालाब, वेटलैंड आते हैं और इनमें वर्षा का पानी सही प्रकार से संचित हो
सके, जिससे वो पानी वर्षभर नदी के जलभृत स्त्रोत में जाता रहे.
3. कार्यक्रम का तीसरा मुख्य स्तंभ रहा कि सॉलिड अपशिष्ट को हर हालत में नदी
में जाने से रोका जाये और सीवेज का सही ट्रीटमेंट होने का बाद ही वो नदी में जाये.
साथ ही जो औद्योगिक अपशिष्ट है, वह उचित ट्रीटमेंट के बाद ही नदी में जाये. इसके
अंतर्गत कुछ अत्याधिक प्रदूषित इंडस्ट्रीज को भी बंद कराने का निर्णय लिया गया.
4. हिंडन से जुड़े ग्रामों के अंतर्गत किसनों को जैविक एवं आर्गेनिक कृषि की ओर
आमुख होने का प्रयास किया जाये, उनका प्रोत्सहन बढ़ाया जाये, ताकि निरंतर बढ़ते
केमिकल्स और उर्वरकों का रन-ऑफ नदी में न जा पाए.
5. सबसे प्रमुख कदम यह था कि जनमानस को इस अभियान से जोड़ा जाये और सकारात्मक
तथ्य यह रहा कि आज आमजन भी इस अभियान से जुड़कर नदी को संरक्षित करने की दिशा में
कार्य कर रहे हैं और निज धन से भी नदी सेवा के कार्य में जुड़े हैं.
हालांकि यह कार्य इतना सरल नहीं हैं, क्योंकि जो नदी सैंकड़ों वर्षों से
प्रदूषित है और नदियों को प्रदूषित करना जनमानस की सोच का हिस्सा रहा है, तो उसमें
अचानक बदलाव लाना असम्भव है. परन्तु इस प्रकार के कार्यक्रमों की निरंतरता बनी
रहनी चाहिए और यह तभी संभव है जब वहां के रहवासी पूरी तरह इस अभियान के साथ जुडें
और नदी प्रदूषण को बढ़ाने की ओर कदम न बढ़ाएं.
यदि यह अभियान उचित प्रकार से चले तो निश्चित रूप से नदी अपने पुराने अविरल
स्वरुप में लौटेगी. जैसा कि हिंडन से जुड़े ग्रामों के बेहद बुजुर्ग निवासी बताते
हैं कि हिंडन का पानी वो सीधे अंजुली भरकर पी लिया करते थे, नदी में स्नान किया
करते थे या नदी में सिक्का डाल देने पर वह नदी तल में दिखाई देता था...यह सब संयुक्त
प्रयासों से ही संभव होगा.
भाग 2 : हिंडन को लेकर चल रहे अभियान को लेकर चुनौतियां और इसके मॉडल के
पुन्राकरण से जुड़े तथ्य –
आज हिंडन की समस्याओं को दूर करने के लिए निर्मल हिंडन अभियान के अंतर्गत बहुत
सी योजनाओं का क्रियान्वन किया गया है और इस मॉडल की सफलता से देश में अन्य नदियों
के साथ भी इसे जोड़ कर देखा जा रहा है. अभियान के अंतर्गत कुछ चुनौतियां भी आती
हैं, जिनके समाधान के लिए एकजुट रूप से निर्णय लिए जाने आवश्यक हैं.
हिंडन नदी की प्रमुख समस्याओं और “निर्मल हिंडन अभियान” के तहत सामने आने वाली
चुनौतियों को समझाते हुए रमन कांत जी ने कहा :
वर्तमान में जो हम चुनौतियों के रूप में देख रहें हैं, वह यह है कि आज नदी में
उतना पर्याप्त पानी नहीं है, जितना बरसात के बाद होना चाहिए. इसका कारण वाटर लेवल
का बहुत नीचे चले जाना है क्योंकि नदी हमेशा ग्राउंड वाटर और सरफेस वाटर दोनों से
मिलकर बनती है, तो ग्राउंड वाटर के नीचे जाने से नदी पूरे साल बह पाने की स्थिति
में नहीं है.
दूसरी समस्या यह है कि इस समय जो पानी नदी में मौजूद है, उसमें लगभग 30
प्रतिशत इंडस्ट्रियल वेस्ट है और 70 प्रतिशत सीवरेज वेस्ट है. इंडस्ट्रियल वेस्ट
पर एनजीटी ने अभी लगाम लगाई है, 124 इंडस्ट्रीज अभी बंद की गयी है और बाकी पर भी
कार्यवाही चल रही है, लेकिन सीवरेज पर काम होना अभी बाकी है. सीवरेज पर काम न तो
आम आदमी को करना है और न ही किसी एजेंसी को करना है, ये कार्य वहां की लोकल बॉडीज
करेंगी या फिर सरकार..यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.
हिंडन नदी क्षेत्र में कार्य करते हुए वहां के लोगों को गहनता से जानने का
अवसर मिला, कार्यक्षेत्र में जाने के दौरान हमें कहीं न कहीं ऐसे लोग मिल जाते है
जो कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से जूझ रहें है और अगले ही हफ्ते पता चलता है कि उस
व्यक्ति की मृत्यु हो गयी. सुनने में बेहद दुखद लगता है, क्योंकि पांच तीर्थो के
नाम से प्रचलित इस जगह पर कहीं से पलायन कर के एक पूरा समाज इसलिए बसा होगा, क्योंकि
यहां पानी है.
हिंडन के पास ही एक गाँव है “अटाली”. उस गाँव में जो लोग पहले नदी के किनारे
घर बसा कर रहते थे, अब उन्होंने दूर खेतो में अपने घर बना लिए है और वहां से भी 1
किलोमीटर दूर रहने लगे हैं.
यानि वर्तमान में यह बदलाव संस्कृति में देखने को मिल रहा है कि जो समाज नदी
किनारे बसा आज वो अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर उजड़ने की कगार पर है. जिसका कारण
इंडस्ट्रियल प्रदूषण, सीवरेज प्रदुषण या कृषि के अंतर्गत प्रयोग में लाये जाने
वाले उर्वरक व पेस्टीसाइडस का प्रदूषण है.
तीसरी चुनौती यह है कि अभी हमने वहां नदी किनारे की कुछ सब्जियां टेस्ट करायी
तो वहां की सब्जियों में, नदी के स्लज में, नदी के पानी में, आसपास के ग्राउंड
वाटर में और मिटटी में जो एग्रीकल्चर मिटटी है, इन पांचो जगहों में पोपस (Persistent organic pollutants) मिले और ये पोपस (POPs) इंटरनेशनल लेवल पर बैन पेस्टीसाइडस हैं, इनकी संख्या पहले
20 के आस पास थी, जो अब अधिक बढ़ गयी है. यू.एन के कन्वेंशन के द्वारा इनको सीमित
किया गया था और इन पेस्टीसाइडस पर दुनिया भर में प्रतिबंध लगा हैं. यह इतने खतरनाक
हैं कि 100 वर्ष तक ज्यों के त्यों बने रह सकते हैं, हवा के साथ उड़ते हुए, पानी के साथ बहते हुए ये अगर
शरीर में ऑब्जर्व हो गये तो 100 वर्षों तक शरीर में बनें रहेंगे.
कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं हमने और समाज ने गलती की. परन्तु वर्तमान में जबसे
निर्मल हिंडन कार्यक्रम आरंभ हुआ है और डॉ. प्रभात कुमार जी के दिशा निर्देशन में
निर्मल हिंडन कार्य शुरू हुआ तब से हम जब गाँव में जाते हैं, तो समाज को लगता है
अब बदलाव हो सकता है.
एक तरफ इंडस्ट्रीज पर कार्यवाही चल रही है. दूसरी तरफ नगर पंचायतों के नगर
निगम के एसटीपी के भी प्लांट बनने शुरू हो गये हैं, तीसरी तरफ कुछ किसान स्वेच्छा
से जैविक खेती या रसायन मुक्त कृषि की ओर आगे बढ़ रहे हैं. इससे जागरूकता तो आ ही
रही है और कुछ लोग सफाई करने के लिए स्वयं आगे आ रहें हैं तो ये सब निर्मल हिंडन
कार्यक्रम का ही असर है. इतनी चुनौतियों के बाद भी अब उम्मीद है कि हिंडन यानि
हमारी हरनंदी, निर्मल होकर रहेगी, भले ही इसमें 4-5 वर्ष का समय लगे परन्तु अब
हिंडन अविरल होकर रहेगी.
डॉ. प्रभात कुमार ने हिंडन से जुड़ी चुनौतियों और शासन- प्रशासन की इस पर
भूमिका को लेकर बताया :
यहां सबसे बड़ी जरूरत इस चीज की है कि नदी की पवित्रता और निर्मलता हमारी
प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए. शासन-प्रशासन-जनता सभी के दिमाग में यह बात होनी
चाहिए कि नदी का पानी स्वच्छ रखना केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं अपितु कर्तव्य भी
है.
इसके लिए हमें समानुरूप संसाधन आबंटित करने होंगे. नदियों के प्रदूषित होने की
प्रतीक्षा करने के स्थान पर निवारण को प्रमुखता देनी ही होगी. साथ ही ध्यान रखना
होगा कि जितने भी संसाधनों को निर्धारित किया जाये, उसमें सभी नदियों के जल को
निर्मल रखने की सुविधा की जाये.
वर्तमान में केंद्र सरकार स्वच्छता अभियान चला रही है, उसका असर देखने को मिला
है. ठीक उसी प्रकार नदी संरक्षण को लेकर भी नियम-कानून बनाये जाये, जिनका
दीर्घकालीन प्रभाव हो.
प्रशासन स्तर पर संजीदगी से इन कायदे-कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी होनी
चाहिए. सीवरेज ट्रीटमेंट के लिए प्लांट्स बनाए जाने चाहिए, चाहे वह लघु स्तर पर हो
या बड़े स्तर पर हो और सीवरेज बजट को नगर निगम बजट का अहम हिस्सा बनाया जाना चाहिए,
जिससे सम्पूर्ण मानव स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़े.
हमे शिक्षा और जन जागरूकता के अंतर्गत नदियों के संरक्षण की बात लानी होगी.
जिसमें स्वयं भी वें नदियों का सम्मान करें और दूसरों को भी नदियों को प्रदूषित
करने से रोके और इन सभी मानकों की प्रतिस्थापना सही स्तर पर होनी चाहिए.
नदी जल गुणवत्ता जांचने के लिए वैज्ञानिक सर्वे किये जाने बेहद आवश्यक है,
ताकि नदी में सीवरेज और अन्य रासायनिक केमिकल्स के घटाव बढ़ाव आदि पर निरंतर
मोनिटरिंग की जा सके.
जैविक कृषि से नदी जल पर कितना प्रभाव पड़ा आदि विषयों के लिए निर्धारित मानक
तय करने होंगे और इन सबके अंतर्गत शासन-प्रशासन और जनता की भागीदारी होने के
पश्चात इन सबको परिमाणित करना होगा तथा लगातार मोनिटरिंग से इनकी सततता जांचकर
उसको दस्तावेजित करते रहना होगा.
भाग 3 : एक सोच समाधान की ओर
आज हमारे देश की नदियां मर रही हैं. प्रदूषण उनमें इतना बढ़
गया है कि वह ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित कर रहा है. खतरनाक केमिकल्स के कारण
नदियां विषैली हो गई हैं. उससे होने वाली खेती आम लोगों के लिए मौत की दस्तक के
समान है. हमने अपनी जीवनदाता नदियों का ही जीवन छीन लिया है. ऐसे में आज जरूरत है
कि देश में जल नीति बनाई जाए. सरकार ने नमामि गंगे के तहत गंगा को साफ करने की
इच्छा शक्ति तो दिखाई है मगर क्या यह कदम पूर्ण है? इस पर चर्चा आवश्यक है, वास्तव में हमारी
कल कल नदियां जन जन के लिए जीवन का स्वरुप है. यदि नदी स्वच्छता को लेकर बहुत सी
चुनौतियां और समस्याएं हैं, तो उनके समाधान की ओर भी हमें देखना होगा.
इसी कड़ी में सर्वप्रथम रमन कांत जी ने निर्मल हिंडन मॉडल के
अंतर्गत ज़मीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वन पर जोर देते हुए बताया :
निर्मल हिंडन कार्यक्रम के अंतर्गत जो प्रत्युत्तर की बात सामने आ रही है,
उसमें देखा जा रहा है कि एनएमसीजी और देश भर में छोटी नदियों पर काम करने वाले लोग
निर्मल हिंडन के मॉडल की सफलता को लेकर निरंतर पूछ रहे हैं. जिनके लिए हमारा उत्तर
है कि इस अभियान में प्रत्येक वस्तु ज़मीनी स्तर पर ली गयी है.
नदी डेटा (जमीन, जंगल, तालाब आदि) के अंतर्गत विस्तारपूर्वक सभी चीजों को
शामिल किया गया है. पंचतत्त्व के आधार पर समस्या, समाधान सुझाकर उनके सटीक
क्रियान्वन पर जोर दिया गया है. निर्मल हिंडन कार्यक्रम का मॉडल एक विजन
डॉक्यूमेंट है, जो छोटी नदियों पर भी सफलता पूर्वक लागू किया जा सकता है.
एक बड़ी समस्या जो देखने में आती है, वह यह है कि यह नदी समाज से जुड़ी है.
इसलिए इसके प्रदूषण के कारण आज ग्रामवासियों में बहुत सी समस्याएं जैसे कैंसर, पेट
की बीमारियां, बाँझपन आदि देखा जा रहा है, परन्तु सीजीडब्ल्यू की रिपोर्ट इस बात
को नकारती आई है कि यह बीमारियां जल जनित हैं.
इस प्रकार निर्मल हिंडन अभियान के अंतर्गत इन तथ्यों को भी सम्मिलित किया गया
है और इन सभी कारणों को विस्तारपूर्वक हमें इस अभियान के अंतर्गत खोजना और सत्यापित
करना है.
आज हिंडन अभियान से जुड़े लोग अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, विभिन्न
डिस्ट्रिक्स में समितियां बनी हुई हैं और विभिन्न ग्रामों में कार्यक्रम चल रहे
हैं. अमेरिका के बफैलो शहर में आयोजित वाटर कीपर कांफ्रेस में भी इस योजना को बेहद
सराहा गया कि यदि समाज को जोड़कर नदी के लिए कार्य किया जा सकता है तो इसे सफलता
मिलनी निश्चित है.
समाधान की दिशा में शासन प्रशासन और जनता की भूमिका किस प्रकार सुनिश्चित की
जाये, इस पर डॉ. प्रभात कुमार जी ने अपने विचार साझा करते हुए बताया :
आज नदी का पानी बीमार है, यह सब जानते हैं..बीमारी का कारण क्या है? यह भी
मालूम है और इसके ईलाज के तरीके भी हमें पता हैं, परन्तु ईलाज कैसे करना है, इस पर
विचार करने की बेहद आवश्यकता है.
आम जनता के लिए तत्कालीन रूप से करने योग्य कुछ समाधान –
1. जैविक कृषि को निरंतर बढ़ावा, विशेष रूप से नदी किनारों के आस पास लगभग 1
किमी के क्षेत्र में जैविक कृषि की जाये. आज हमें ऐसे लोगों की जरूरत है, जो
किसानों को जैविक कृषि की तरफ प्रोत्साहित करें, जैसे कि बुलंदशहर में जैविक कृषि
विशेषज्ञ श्री भारतभूषण जी जैसे किसानों की आवश्यकता हैं, जो किसानों को अपने दम
पर जैविक कृषि की ओर मोड़ रहे हैं.
2. नदी के किनारे एक किमी तक वृक्षारोपण किया जाये, जिसमें आर्किड इत्यादि के
वृक्षों को लगाया जाये, क्योंकि वृक्षों की जड़ों से रिसकर पानी पूरे वर्ष नदी में
जाएगा, साथ ही यह बरसात में नमी को भी संरक्षित करने का कार्य करेंगे.
3. गांवों के सभी तालाबों का जीर्णोधार किया जाये और इनमें बरसात का पानी
संरक्षित रहे और भूजल भी व्यवस्थित रूप से रिचार्ज होता रहे और नदी जल में इसका
रिसाव रहेगा.
4. खेतों में शौच करने पर प्रतिबंध पूर्ण रूप से लगाया जाना चाहिए, जिसके लिए
ग्रामीणों को निरंतर समझाना होगा.
5. प्रति सप्ताह ग्राम के पास से गुजरने वाली नदी की सफाई करने की दिशा में
लोगों को प्रोत्साहित करना होगा. ग्रामों में युवा वर्ग को इससे जोड़ा जा सकता है,
जो “निर्मल हिंडन अभियान” में भी सम्मिलित किया गया था.
निर्मल हिंडन अभियान के तहत तालाबों का चिन्हांकन किया गया है, उनका जीर्णोधार
भी किया जा रहा है, सार्वजनिक भूमि पर वृक्षरोपण भी किया गया है..किन्तु आज
आवश्यकता इस चीज की है कि हिंडन के संगम क्षेत्र यानि मोमनाथम से चलकर इसके उद्गम
स्थल कालूवाला खोल तक लगभग 1 किमी दोनों ही किनारों पर जंगल होना चाहिए.
शहरों में नगर निगम के समक्ष नदी संरक्षण की व्यवस्था –
शहरों में नगर निगम का दायित्व यह है कि सीवरेज और सॉलिड अपशिष्ट का निष्कासन
वैज्ञानिक तरीके से करें. इसको लेकर हमारे देश में पर्यावरण सुरक्षा एक्ट के
अंतर्गत बहुत से प्रावधान एवं कानून मौजूद हैं. साथ ही नगर निगम को अपशिष्ट के
सुरक्षित निष्कासन की जिम्मेदारी दी गयी है, परन्तु इसमें दो प्रकार की अड़चन सामने
आ रही है..
1. सर्वप्रथम हमारे नगर निगमों के पास संसाधनों का अभाव है, हालांकि 73-74वें
संसोधन के बाद निगम को फण्ड उपलब्ध कराए गये हैं, परन्तु उसका काफी हिस्सा नगर
निगम के प्रतिष्ठान में ही खर्च हो जाता है.
2. नगर निकायों के अंतर्गत टैक्सेशन एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है और इसमें
जब तक तर्कसंगत व्याख्या नहीं की जाएगी कि स्वच्छता के कार्यों को करने के लिए नगर
निकायों को टैक्सेशन से पृथक होकर चलना होगा.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार स्वच्छता के लिए कार्य करना नगर निगम का संवैधानिक
कर्तव्य है. नगर निगम के अंतर्गत जो भी नीति निर्माण की योजनाएं बनाई जाती हैं,
उनके अंतर्गत सीवरेज निष्कासन को लेकर कठोर नीतियां बनाई जानी चाहिए. साथ ही
धरातलीय स्तर पर इन नीतियों पर कार्य सही मोनिटरिंग के साथ होना चाहिए.
By Rakesh Prasad Contributors Raman Kant Dr Prabhat Kumar Deepika Chaudhary Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
आज से कुछ साढ़े सात हज़ार साल पहले जब श्री राम, ताड़का वध के समय, वन गुरु विश्वामित्र और लक्षमण के साथ पहुंचे तब उन्होंने पाया कि नदियाँ तालाब, काले हो चुके हैं, हवा ज़हरीली हो चुकी है और लोग वहां से पलायन कर चुके हैं.
ठीक इसी तरह कृष्ण ने भी यमुना में विष घुला हुआ पाया, जल काला हो चुका था और यमुना के तट पर लोग बीमार पड़ रहे थे.
श्री राम ने जब क्रुद्ध हो कर समुद्र को सुखा देने के लिए शास्त्र उठाये थे, तो समुद्र ने भी यही कहा था कि प्रकृति के पांच तत्त्व अपनी मर्यादा में रहते हैं और अगर इनकी मर्यादा टूटती है तो समय से पहले प्रलय आ सकती है. प्रकृति की इस बात को सुन श्री राम ने भी धनुष झुका लिया था.
इस विषय और घटनाक्रम के फैक्ट्स पर बहस ज़रूर की जा सकती है, मगर सच्चाई यही है कि हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार ही प्रकृति की रक्षा कर, सभ्य अचार व्यवहार की स्थापना करना है.
श्री राम ने सुबाहु, मारीच और ताड़का वध के माध्यम से जो सीख दी, या कृष्ण ने कालिया नाग का वध कर के जो समझाया, हम उसको पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा से जुड़े हमारे सहज आचरण की सीख से जोड़ कर देखते हैं,
जिसमे ताड़का और कालिया नाग प्रतीक हैं.. एक सोच के या आचरण के, जिसने नदियों को विषैला किया है.
हिंडन या हरनंदी पर आज संकट भी इसी तरह का है और राम और कृष्ण के निर्गुण सत्य की सीख तो हमारे साथ है, मगर हर युग इन प्रत्यक्ष संकटों के साथ नयी चुनौतियाँ ले कर आता है और इनका का सामना करने के लिए हमें इतिहास में देखना, वर्तमान को समझना और चरणबद्ध योज़नाएं बनाना ज़रूरी है.
इसी विषय पर चर्चा करने हेतु हमारी विशेषज्ञ टीम के अंतर्गत डॉ. प्रभात कुमार (पूर्व मंडलायुक्त, मेरठ, आयुक्त कृषि उप्ताद - उत्तर प्रदेश, अपर मुख्य सचिव प्राथमिक शिक्षा - उत्तर प्रदेश, संस्थापक निर्मल हिंडन) एवं श्री रमन कांत (निदेशक, नीर फाउंडेशन) सम्मिलित हुए और हिंडन के ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करते हुए इससे जुड़ी समस्याओं तथा “निर्मल हिंडन अभियान” के तहत कुछ निराकरणों पर प्रकाश डाला गया. इस परिचर्चा से जुड़े कुछ अहम केंद्रीय बिंदु अग्रलिखित रूप से दिए गये हैं.
मूलतः हिण्डन नदी का उद्गम सहारनपुर जनपद के पुर का टांडा गांव को माना जाता रहा है. पुर का टांडा के जंगल से बरसात के समय पानी एकत्र होकर बहने वाला पानी नदी की एक धारा बनाता है तथा यह धारा सहारनपुर जनपद के ही कमालपुर गांव के जंगल में जाकर कालूवाला की पहाड़ियों से साफ-शुद्ध पानी लेकर आने वाली कालूवाला खोल अर्थात हिण्डन में मिल जाती है. इस स्थान पर करीब 90 प्रतिशत पानी कालूवाला खोल की धारा से आता है जबकि करीब 10 प्रतिशत पानी ही पुर का टांडा से निकलने वाली धारा से आता है. स्थानीय निवासियों के कथनानुसार यह सब नाम तो बोलचाल के हैं, वास्तव में यह सब हिंडन नदी ही है.
सर्वप्रथम रमन जी ने हिंडन नदी की ऐतिहासिक गाथा बताते हुए इसके स्वर्णिम इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया:
हिंडन नदी को ऐतिहासिक दृष्टि से हिंडन को पंचतीर्थी कहा गया है, क्योंकि इसका नाम हरनंदी है तथा इसके किनारे पांच तीर्थ बसे हुए हैं. बरनावा, लक्ष्याग्रह, शिव मंदिर और मोहननगर में तीर्थस्थल मौजूद है.
हिंडन नदी की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बरसात के समय सभी नदियों का पानी पीना निषेध बताया गया है, क्योंकि वे सभी स्त्री रूपा नदियाँ हैं, लेकिन हिंडन पुरुष रुपी नदी है तो बरसात में भी इसका पानी पीना निषेध नहीं बताया गया. ऐतिहासिक पन्नो में यह प्रमाण लिखित रूप से मौजूद है.
तीसरे, जब 70 के दशक में बाढ़ आई थी, बाढ़ के कारण काफी तबाही भी हुई थी, उस तरह की बाढ़ आज तक नहीं आई. तो उस समय हिंडन नदी के किनारे बंधे बनाये गये थे. आज भी वो बंधे वहां मौजूद है, उन बंधो को बनाने का सारा कार्य समाज के लोगों ने मिलकर किया, सरकार की तरफ से कोई योगदान इसमें नहीं प्राप्त हुआ. ये बांध बाढ़ को रोकने के लिए समाज की ओर से बनाये गये थे. यानि यह नदी पूर्णरूपेण समाज से जुड़ी नदी है.
“निर्मल हिंडन अभियान” के सूत्रधार डॉ. प्रभात कुमार जी ने हिंडन के भौगौलिक स्वरुप को उजागर करते हुए निर्मल हिंडन से जुड़े कुछ अहम तथ्यों को भी स्पष्ट करते हुए बताया :
मेरठ के अंतर्गत कार्य करते हुए हिंडन नदी को समझने का अवसर प्राप्त हुआ. हिंडन नदी वास्तव में रेन फेड नदी है और शिवालिक पर्वत के उत्तरी छोर से यह प्रवाहित होती है. यह नदी वास्तव में उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश की सीमा जहां पर विभक्त होती है, वहां की शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीचे से यह नदी निकलती है और उसके बाद यह सात जिलों सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, ग़ाज़ियाबाद और अंतत गौतमबुद्धनगर के मोमनाथम गांव में यह यमुना में समाहित हो जाती है. हिंडन नदी की सबसे बड़ी महत्ता यह है कि यह इन सातों जिलों को सिंचती है, जिन्हें कृषि की दृष्टि से प्रदेश के बेहद महत्वपूर्ण जिलों के रूप में देखा जाता है. इस कारण हिंडन का जल सिंचाई एवं पेयजल के रूप में इन जिलों के लिए बेहद आवश्यक है.
हिंडन प्रदूषण के मुख्य कारण -
बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण कृषि पिछड़ती चली गयी और उसके साथ साथ उद्योगों से होने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने का प्रयास भी अधिक नहीं किया गया.
उद्योगों के बढ़ने से भूजल का दोहन तो अत्याधिक किया ही गया, साथ ही जल-उत्सर्जन की गुणवत्ता भी गिरी.
नदियों के किनारे जब शहरी सभ्यताओं का विकास होना आरम्भ हुआ, तो उनसे उत्पन्न सीवेज और अपशिष्ट का नदियों में मिलना भी शुरू हुआ.
साथ ही कृषि में धीरे धीरे रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग भी अधिक होने लगा, जिसके कारण भी प्रदूषित पानी नदियों में जाने लगा. इस प्रकार मुख्य रूप से नदियों के प्रदूषण के लिए औद्योगिक अपशिष्ट, सीवरेज और कृषि में उपयुक्त कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग जिम्मेदार बने.
साथ ही वर्षाजल का संचयन नहीं होना और नदी जल स्त्रोतों का उचित संरक्षण नहीं होना भी नदियों की दुर्दशा का कारण बना. नदियों के जल स्त्रोतों, जिनमें तालाब, वेटलैंड आदि थे वो खत्म कर दिए गये और नदी किनारे बने जंगलों को भी समाप्त कर दिया गया, जिससे स्थिति अधिक विकट हो गयी.
इन सबसे एक ओर तो पानी की मात्रा कम होती गयी और दूसरी ओर प्रदूषण के स्त्रोत नदी प्रदूषण को बढाते चले गये. नतीजतन आज केवल बारिश के समय ही नदी जल प्रवाह तुलनात्मक रूप से बेहतर होता है, इसके अतिरिक्त सितम्बर के बाद नदी के पानी की गुणवत्ता प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब हो जाती है.
हिंडन के किनारे लगभग 850 के करीब ग्राम हैं, उन सबके निवासियों को नदी का पानी नुकसान पहुँचाने लगा. क्योंकि नदी जल के माध्यम से प्रदूषण हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर गया. इस तरह कृषि उत्पादों, पेयजल आदि के माध्यम से यह निवासियों को नुकसान पहुँचाने लगा और नदी प्रदूषण से लोग बीमार होने लगे. इस प्रकार लोग मानने लगे कि हिंडन जल प्रदूषण के कारण वें गंभीर रोगों के शिकार हो रहे हैं.
इसमें मुख्य रूप से तीन तथ्यों को सम्मिलित किया गया..
1. किस प्रकार से बरसात के पानी का संचयन करके उसको पूरे वर्ष हिंडन नदी में प्रवाहित कर सकें, यानि हिंडन से जुड़े जल स्त्रोतों की संवृद्धि की जाये.
2. किस प्रकार से औद्योगिक कचरे, सीवरेज एवं सॉलिड अपशिष्टों को नदी में जाने से रोकें?
3. किस प्रकार हिंडन के आस पास के निवासियों की सोच में बदलाव लायें, जिससे वें नदी को अपने जीवन का एक हिस्सा समझकर उसी प्रकार नदी की पवित्रता, अविरलता और निर्मलता का ध्यान रखें, जैसे वें अपने घर में रखे जल-स्त्रोत का ध्यान रखते हैं.
इन सभी विषयों पर कार्य करने के मंतव्य से हमने इसके पांच मुख्य हिस्से निर्मित किये, जो इस प्रकार हैं..
1. नदी के किनारे और उसके आस पास के क्षेत्रों में जंगल की सघनता को बढ़ाया जाये, जिनमें निजी अथवा सरकारी जमीन शामिल हो. इस योजना में लोगों की सहभागीदारी भी देखी गयी और बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण भी हुआ.
2. नदी किनारे के ग्रामों में परंपरागत जल-स्त्रोतों का जीर्णोधार किया जाये, जिनमें तालाब, वेटलैंड आते हैं और इनमें वर्षा का पानी सही प्रकार से संचित हो सके, जिससे वो पानी वर्षभर नदी के जलभृत स्त्रोत में जाता रहे.
3. कार्यक्रम का तीसरा मुख्य स्तंभ रहा कि सॉलिड अपशिष्ट को हर हालत में नदी में जाने से रोका जाये और सीवेज का सही ट्रीटमेंट होने का बाद ही वो नदी में जाये. साथ ही जो औद्योगिक अपशिष्ट है, वह उचित ट्रीटमेंट के बाद ही नदी में जाये. इसके अंतर्गत कुछ अत्याधिक प्रदूषित इंडस्ट्रीज को भी बंद कराने का निर्णय लिया गया.
4. हिंडन से जुड़े ग्रामों के अंतर्गत किसनों को जैविक एवं आर्गेनिक कृषि की ओर आमुख होने का प्रयास किया जाये, उनका प्रोत्सहन बढ़ाया जाये, ताकि निरंतर बढ़ते केमिकल्स और उर्वरकों का रन-ऑफ नदी में न जा पाए.
5. सबसे प्रमुख कदम यह था कि जनमानस को इस अभियान से जोड़ा जाये और सकारात्मक तथ्य यह रहा कि आज आमजन भी इस अभियान से जुड़कर नदी को संरक्षित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं और निज धन से भी नदी सेवा के कार्य में जुड़े हैं.
हालांकि यह कार्य इतना सरल नहीं हैं, क्योंकि जो नदी सैंकड़ों वर्षों से प्रदूषित है और नदियों को प्रदूषित करना जनमानस की सोच का हिस्सा रहा है, तो उसमें अचानक बदलाव लाना असम्भव है. परन्तु इस प्रकार के कार्यक्रमों की निरंतरता बनी रहनी चाहिए और यह तभी संभव है जब वहां के रहवासी पूरी तरह इस अभियान के साथ जुडें और नदी प्रदूषण को बढ़ाने की ओर कदम न बढ़ाएं.
यदि यह अभियान उचित प्रकार से चले तो निश्चित रूप से नदी अपने पुराने अविरल स्वरुप में लौटेगी. जैसा कि हिंडन से जुड़े ग्रामों के बेहद बुजुर्ग निवासी बताते हैं कि हिंडन का पानी वो सीधे अंजुली भरकर पी लिया करते थे, नदी में स्नान किया करते थे या नदी में सिक्का डाल देने पर वह नदी तल में दिखाई देता था...यह सब संयुक्त प्रयासों से ही संभव होगा.
आज हिंडन की समस्याओं को दूर करने के लिए निर्मल हिंडन अभियान के अंतर्गत बहुत सी योजनाओं का क्रियान्वन किया गया है और इस मॉडल की सफलता से देश में अन्य नदियों के साथ भी इसे जोड़ कर देखा जा रहा है. अभियान के अंतर्गत कुछ चुनौतियां भी आती हैं, जिनके समाधान के लिए एकजुट रूप से निर्णय लिए जाने आवश्यक हैं.
हिंडन नदी की प्रमुख समस्याओं और “निर्मल हिंडन अभियान” के तहत सामने आने वाली चुनौतियों को समझाते हुए रमन कांत जी ने कहा :
वर्तमान में जो हम चुनौतियों के रूप में देख रहें हैं, वह यह है कि आज नदी में उतना पर्याप्त पानी नहीं है, जितना बरसात के बाद होना चाहिए. इसका कारण वाटर लेवल का बहुत नीचे चले जाना है क्योंकि नदी हमेशा ग्राउंड वाटर और सरफेस वाटर दोनों से मिलकर बनती है, तो ग्राउंड वाटर के नीचे जाने से नदी पूरे साल बह पाने की स्थिति में नहीं है.
दूसरी समस्या यह है कि इस समय जो पानी नदी में मौजूद है, उसमें लगभग 30 प्रतिशत इंडस्ट्रियल वेस्ट है और 70 प्रतिशत सीवरेज वेस्ट है. इंडस्ट्रियल वेस्ट पर एनजीटी ने अभी लगाम लगाई है, 124 इंडस्ट्रीज अभी बंद की गयी है और बाकी पर भी कार्यवाही चल रही है, लेकिन सीवरेज पर काम होना अभी बाकी है. सीवरेज पर काम न तो आम आदमी को करना है और न ही किसी एजेंसी को करना है, ये कार्य वहां की लोकल बॉडीज करेंगी या फिर सरकार..यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.
हिंडन नदी क्षेत्र में कार्य करते हुए वहां के लोगों को गहनता से जानने का अवसर मिला, कार्यक्षेत्र में जाने के दौरान हमें कहीं न कहीं ऐसे लोग मिल जाते है जो कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से जूझ रहें है और अगले ही हफ्ते पता चलता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी. सुनने में बेहद दुखद लगता है, क्योंकि पांच तीर्थो के नाम से प्रचलित इस जगह पर कहीं से पलायन कर के एक पूरा समाज इसलिए बसा होगा, क्योंकि यहां पानी है.
हिंडन के पास ही एक गाँव है “अटाली”. उस गाँव में जो लोग पहले नदी के किनारे घर बसा कर रहते थे, अब उन्होंने दूर खेतो में अपने घर बना लिए है और वहां से भी 1 किलोमीटर दूर रहने लगे हैं.
यानि वर्तमान में यह बदलाव संस्कृति में देखने को मिल रहा है कि जो समाज नदी किनारे बसा आज वो अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर उजड़ने की कगार पर है. जिसका कारण इंडस्ट्रियल प्रदूषण, सीवरेज प्रदुषण या कृषि के अंतर्गत प्रयोग में लाये जाने वाले उर्वरक व पेस्टीसाइडस का प्रदूषण है.
तीसरी चुनौती यह है कि अभी हमने वहां नदी किनारे की कुछ सब्जियां टेस्ट करायी तो वहां की सब्जियों में, नदी के स्लज में, नदी के पानी में, आसपास के ग्राउंड वाटर में और मिटटी में जो एग्रीकल्चर मिटटी है, इन पांचो जगहों में पोपस (Persistent organic pollutants) मिले और ये पोपस (POPs) इंटरनेशनल लेवल पर बैन पेस्टीसाइडस हैं, इनकी संख्या पहले 20 के आस पास थी, जो अब अधिक बढ़ गयी है. यू.एन के कन्वेंशन के द्वारा इनको सीमित किया गया था और इन पेस्टीसाइडस पर दुनिया भर में प्रतिबंध लगा हैं. यह इतने खतरनाक हैं कि 100 वर्ष तक ज्यों के त्यों बने रह सकते हैं, हवा के साथ उड़ते हुए, पानी के साथ बहते हुए ये अगर शरीर में ऑब्जर्व हो गये तो 100 वर्षों तक शरीर में बनें रहेंगे.
कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं हमने और समाज ने गलती की. परन्तु वर्तमान में जबसे निर्मल हिंडन कार्यक्रम आरंभ हुआ है और डॉ. प्रभात कुमार जी के दिशा निर्देशन में निर्मल हिंडन कार्य शुरू हुआ तब से हम जब गाँव में जाते हैं, तो समाज को लगता है अब बदलाव हो सकता है.
एक तरफ इंडस्ट्रीज पर कार्यवाही चल रही है. दूसरी तरफ नगर पंचायतों के नगर निगम के एसटीपी के भी प्लांट बनने शुरू हो गये हैं, तीसरी तरफ कुछ किसान स्वेच्छा से जैविक खेती या रसायन मुक्त कृषि की ओर आगे बढ़ रहे हैं. इससे जागरूकता तो आ ही रही है और कुछ लोग सफाई करने के लिए स्वयं आगे आ रहें हैं तो ये सब निर्मल हिंडन कार्यक्रम का ही असर है. इतनी चुनौतियों के बाद भी अब उम्मीद है कि हिंडन यानि हमारी हरनंदी, निर्मल होकर रहेगी, भले ही इसमें 4-5 वर्ष का समय लगे परन्तु अब हिंडन अविरल होकर रहेगी.
डॉ. प्रभात कुमार ने हिंडन से जुड़ी चुनौतियों और शासन- प्रशासन की इस पर भूमिका को लेकर बताया :
यहां सबसे बड़ी जरूरत इस चीज की है कि नदी की पवित्रता और निर्मलता हमारी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए. शासन-प्रशासन-जनता सभी के दिमाग में यह बात होनी चाहिए कि नदी का पानी स्वच्छ रखना केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं अपितु कर्तव्य भी है.
इसके लिए हमें समानुरूप संसाधन आबंटित करने होंगे. नदियों के प्रदूषित होने की प्रतीक्षा करने के स्थान पर निवारण को प्रमुखता देनी ही होगी. साथ ही ध्यान रखना होगा कि जितने भी संसाधनों को निर्धारित किया जाये, उसमें सभी नदियों के जल को निर्मल रखने की सुविधा की जाये.
वर्तमान में केंद्र सरकार स्वच्छता अभियान चला रही है, उसका असर देखने को मिला है. ठीक उसी प्रकार नदी संरक्षण को लेकर भी नियम-कानून बनाये जाये, जिनका दीर्घकालीन प्रभाव हो.
प्रशासन स्तर पर संजीदगी से इन कायदे-कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए. सीवरेज ट्रीटमेंट के लिए प्लांट्स बनाए जाने चाहिए, चाहे वह लघु स्तर पर हो या बड़े स्तर पर हो और सीवरेज बजट को नगर निगम बजट का अहम हिस्सा बनाया जाना चाहिए, जिससे सम्पूर्ण मानव स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़े.
हमे शिक्षा और जन जागरूकता के अंतर्गत नदियों के संरक्षण की बात लानी होगी. जिसमें स्वयं भी वें नदियों का सम्मान करें और दूसरों को भी नदियों को प्रदूषित करने से रोके और इन सभी मानकों की प्रतिस्थापना सही स्तर पर होनी चाहिए.
नदी जल गुणवत्ता जांचने के लिए वैज्ञानिक सर्वे किये जाने बेहद आवश्यक है, ताकि नदी में सीवरेज और अन्य रासायनिक केमिकल्स के घटाव बढ़ाव आदि पर निरंतर मोनिटरिंग की जा सके.
जैविक कृषि से नदी जल पर कितना प्रभाव पड़ा आदि विषयों के लिए निर्धारित मानक तय करने होंगे और इन सबके अंतर्गत शासन-प्रशासन और जनता की भागीदारी होने के पश्चात इन सबको परिमाणित करना होगा तथा लगातार मोनिटरिंग से इनकी सततता जांचकर उसको दस्तावेजित करते रहना होगा.
आज हमारे देश की नदियां मर रही हैं. प्रदूषण उनमें इतना बढ़ गया है कि वह ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित कर रहा है. खतरनाक केमिकल्स के कारण नदियां विषैली हो गई हैं. उससे होने वाली खेती आम लोगों के लिए मौत की दस्तक के समान है. हमने अपनी जीवनदाता नदियों का ही जीवन छीन लिया है. ऐसे में आज जरूरत है कि देश में जल नीति बनाई जाए. सरकार ने नमामि गंगे के तहत गंगा को साफ करने की इच्छा शक्ति तो दिखाई है मगर क्या यह कदम पूर्ण है? इस पर चर्चा आवश्यक है, वास्तव में हमारी कल कल नदियां जन जन के लिए जीवन का स्वरुप है. यदि नदी स्वच्छता को लेकर बहुत सी चुनौतियां और समस्याएं हैं, तो उनके समाधान की ओर भी हमें देखना होगा.
इसी कड़ी में सर्वप्रथम रमन कांत जी ने निर्मल हिंडन मॉडल के अंतर्गत ज़मीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वन पर जोर देते हुए बताया :
निर्मल हिंडन कार्यक्रम के अंतर्गत जो प्रत्युत्तर की बात सामने आ रही है, उसमें देखा जा रहा है कि एनएमसीजी और देश भर में छोटी नदियों पर काम करने वाले लोग निर्मल हिंडन के मॉडल की सफलता को लेकर निरंतर पूछ रहे हैं. जिनके लिए हमारा उत्तर है कि इस अभियान में प्रत्येक वस्तु ज़मीनी स्तर पर ली गयी है.
नदी डेटा (जमीन, जंगल, तालाब आदि) के अंतर्गत विस्तारपूर्वक सभी चीजों को शामिल किया गया है. पंचतत्त्व के आधार पर समस्या, समाधान सुझाकर उनके सटीक क्रियान्वन पर जोर दिया गया है. निर्मल हिंडन कार्यक्रम का मॉडल एक विजन डॉक्यूमेंट है, जो छोटी नदियों पर भी सफलता पूर्वक लागू किया जा सकता है.
एक बड़ी समस्या जो देखने में आती है, वह यह है कि यह नदी समाज से जुड़ी है. इसलिए इसके प्रदूषण के कारण आज ग्रामवासियों में बहुत सी समस्याएं जैसे कैंसर, पेट की बीमारियां, बाँझपन आदि देखा जा रहा है, परन्तु सीजीडब्ल्यू की रिपोर्ट इस बात को नकारती आई है कि यह बीमारियां जल जनित हैं.
इस प्रकार निर्मल हिंडन अभियान के अंतर्गत इन तथ्यों को भी सम्मिलित किया गया है और इन सभी कारणों को विस्तारपूर्वक हमें इस अभियान के अंतर्गत खोजना और सत्यापित करना है.
आज हिंडन अभियान से जुड़े लोग अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, विभिन्न डिस्ट्रिक्स में समितियां बनी हुई हैं और विभिन्न ग्रामों में कार्यक्रम चल रहे हैं. अमेरिका के बफैलो शहर में आयोजित वाटर कीपर कांफ्रेस में भी इस योजना को बेहद सराहा गया कि यदि समाज को जोड़कर नदी के लिए कार्य किया जा सकता है तो इसे सफलता मिलनी निश्चित है.
समाधान की दिशा में शासन प्रशासन और जनता की भूमिका किस प्रकार सुनिश्चित की जाये, इस पर डॉ. प्रभात कुमार जी ने अपने विचार साझा करते हुए बताया :
आज नदी का पानी बीमार है, यह सब जानते हैं..बीमारी का कारण क्या है? यह भी मालूम है और इसके ईलाज के तरीके भी हमें पता हैं, परन्तु ईलाज कैसे करना है, इस पर विचार करने की बेहद आवश्यकता है.
आम जनता के लिए तत्कालीन रूप से करने योग्य कुछ समाधान –
1. जैविक कृषि को निरंतर बढ़ावा, विशेष रूप से नदी किनारों के आस पास लगभग 1 किमी के क्षेत्र में जैविक कृषि की जाये. आज हमें ऐसे लोगों की जरूरत है, जो किसानों को जैविक कृषि की तरफ प्रोत्साहित करें, जैसे कि बुलंदशहर में जैविक कृषि विशेषज्ञ श्री भारतभूषण जी जैसे किसानों की आवश्यकता हैं, जो किसानों को अपने दम पर जैविक कृषि की ओर मोड़ रहे हैं.
2. नदी के किनारे एक किमी तक वृक्षारोपण किया जाये, जिसमें आर्किड इत्यादि के वृक्षों को लगाया जाये, क्योंकि वृक्षों की जड़ों से रिसकर पानी पूरे वर्ष नदी में जाएगा, साथ ही यह बरसात में नमी को भी संरक्षित करने का कार्य करेंगे.
3. गांवों के सभी तालाबों का जीर्णोधार किया जाये और इनमें बरसात का पानी संरक्षित रहे और भूजल भी व्यवस्थित रूप से रिचार्ज होता रहे और नदी जल में इसका रिसाव रहेगा.
4. खेतों में शौच करने पर प्रतिबंध पूर्ण रूप से लगाया जाना चाहिए, जिसके लिए ग्रामीणों को निरंतर समझाना होगा.
5. प्रति सप्ताह ग्राम के पास से गुजरने वाली नदी की सफाई करने की दिशा में लोगों को प्रोत्साहित करना होगा. ग्रामों में युवा वर्ग को इससे जोड़ा जा सकता है, जो “निर्मल हिंडन अभियान” में भी सम्मिलित किया गया था.
निर्मल हिंडन अभियान के तहत तालाबों का चिन्हांकन किया गया है, उनका जीर्णोधार भी किया जा रहा है, सार्वजनिक भूमि पर वृक्षरोपण भी किया गया है..किन्तु आज आवश्यकता इस चीज की है कि हिंडन के संगम क्षेत्र यानि मोमनाथम से चलकर इसके उद्गम स्थल कालूवाला खोल तक लगभग 1 किमी दोनों ही किनारों पर जंगल होना चाहिए.
शहरों में नगर निगम के समक्ष नदी संरक्षण की व्यवस्था –
शहरों में नगर निगम का दायित्व यह है कि सीवरेज और सॉलिड अपशिष्ट का निष्कासन वैज्ञानिक तरीके से करें. इसको लेकर हमारे देश में पर्यावरण सुरक्षा एक्ट के अंतर्गत बहुत से प्रावधान एवं कानून मौजूद हैं. साथ ही नगर निगम को अपशिष्ट के सुरक्षित निष्कासन की जिम्मेदारी दी गयी है, परन्तु इसमें दो प्रकार की अड़चन सामने आ रही है..
1. सर्वप्रथम हमारे नगर निगमों के पास संसाधनों का अभाव है, हालांकि 73-74वें संसोधन के बाद निगम को फण्ड उपलब्ध कराए गये हैं, परन्तु उसका काफी हिस्सा नगर निगम के प्रतिष्ठान में ही खर्च हो जाता है.
2. नगर निकायों के अंतर्गत टैक्सेशन एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है और इसमें जब तक तर्कसंगत व्याख्या नहीं की जाएगी कि स्वच्छता के कार्यों को करने के लिए नगर निकायों को टैक्सेशन से पृथक होकर चलना होगा.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार स्वच्छता के लिए कार्य करना नगर निगम का संवैधानिक कर्तव्य है. नगर निगम के अंतर्गत जो भी नीति निर्माण की योजनाएं बनाई जाती हैं, उनके अंतर्गत सीवरेज निष्कासन को लेकर कठोर नीतियां बनाई जानी चाहिए. साथ ही धरातलीय स्तर पर इन नीतियों पर कार्य सही मोनिटरिंग के साथ होना चाहिए.
Attached Images