रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेण्टर के 40 साल के अध्यन से
पता चला कि गोमती के 45% जलस्त्रोत ख़त्म हो चुके है . चार दशक (1972-2013) के अध्यन मे वैज्ञानिको ने गोमती की गतिशीलता , नदी की सतह , भूगर्भीय
जलस्त्रोतों का अध्यन किया और पानी के सैंपल भी लिए . इसके आधार पे उन्होंने
रिहाइशी अतिक्रमण , अनुयोजित औद्योगीकरण , और प्रदूषण को इसका कारण
बताया . ये जानकारी सोमवार को राजधानी मे इंडियन वाटर सोसाइटी की आयोजित
सेमिनार मे आये वैज्ञानिको ने दी .
सेंटर के वैज्ञानिक राजीव मोहन और सुधाकर शुक्ल ने बताया की नदी के स्त्रोत इसी के 30,520 वर्ग किलोमाटर के बेसिन के भूगर्भ से आते
है. 1972 के बाद हुए अनियंत्रित अतिक्रमणों ने 45% जल स्त्रोत ख़त्म कर दिए
है . यही वजह है के इन क्षेत्रों मे रहने वाले नागरिको के लिए भूगर्भीय
जल दोहन मजबूरी हो गया है . इसकी वजह से गोमती का जल सिमट रहा है .
दूसरा संकट है भूगर्भीय जल को रिचार्ज करने के लिए हो रहे असुरक्षित
प्रयास, जिससे भूगर्भीय जल प्रदूषित हो रहा है .
सेंटर के वैज्ञानिको ने 2014 मैं 900 किलोमीटर के बहाव क्षेत्र मे 93 जगह के भूगर्भीय जल के सैंपल लिए और पाया के वो पीने योग्य नहीं
थे . इनमे मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ी पायी गयी है . सॅटॅलाइट इमेजेज से भी पता चला है जहाँ के सैम्पल्स मे मैग्नीशियम बढ़ पाया गया वहाँ औद्योगिक मलबा और गोमती मे गन्दा पानी गिराया जाता रहा है .
रिपोर्ट मे वैज्ञानिको ने बताया के उन्नाव के मोहान ,
प्रतापगढ़ के बेलघाट , जयपुर के पिलखिन , सीतापुर के खैराबाद , और रायबरेली के कई हिस्सो मे भूगर्भीय जल पीने लायक नहीं है . इसे पीने से सेहत खराब हो सकती है .
तो क्या जलस्त्रोतों को बचने के बजाये गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसे प्रोजेक्ट्स ज्यादा
जरुरी है ?
सरकार 3000 करोड़ रूपए का राजधानी मे गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट
बनवा रही है जिसके अनेक नुक्सान और गलत प्रभाव पर्यावरण पे पड़ रहे है . ऐसे मे सरकार को जरुरी है के वो प्राकृतिक जलस्त्रोतों को सहेजे और उनसे
हो रहे खिलवाड़ को रोके, बजाये के उसे और बिगाड़ने वाले प्रोजेक्ट्स लगाए . जब भूगर्भीय जल ही
नहीं रहेगा तोह ऐसे रिवर फ्रंट का क्या करेगी आम जनता ? जब पीने का पानी ही नहीं रहेगा तोह आम जनता सेल्फी खीच के क्या करेगी ? 3000 करोड़ बहुत होते
है और कर दाताओ का पैसा सही ढंग से प्रयोग मे आने चाहिए न कि उसे
नुक्सान पहुचने वाले पोजेक्टस को डेवेलोप करने मे लगाना चाहिए .
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
हम इस एक्शन ग्रुप के
जरिये गोमती पर हो रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण की समीक्षा कर रहे है। गोमती पर करवाये
जा रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण के बहुत दुष्परिणाम हो सकते है। कुछ तो दिखने भी लगे
है। लखनऊ मे बहती गोमती के कई हिस्सों पे निर्माण चल रहा है। नदी की सतह में जमी गाद
और गन्दगी को करोड़ों खर्च के ड्रेजिंग कर के निकाला जा रहा है। वही दूसरी ओर उसमे नाले
सीवेज गिरा रहे है। सरकार गोमती की सफाई के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुकी है और आम जनता
का पैसा लगातार अनुयोजित ढंग से खर्च किया जा रहा है। बहुत विशेषज्ञों ने रिवरफ्रण्ट
की आलोचना भी की है और इससे रोकने की भी निवेदन किया पर सरकार ने कार्य को बिना रोके
कार्यात रखा।
हम इस एक्शन ग्रुप से
गोमती रिवरफ्रण्ट की समीक्षा करेंगे और विशेषज्ञों की राय और साइंटिफिक रिसर्च से रिवर फ्रंट के दुष्परिणाम और उसमे मुनासिब बदलाव
के मौको को तलाशेंगे और सरकार को सुझाएंगे। इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तो आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है : coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो तालाब अधिग्रहण मे विशेषज्ञ हो या इस केस से सम्बंधित कुछ जानता हो , तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप हमारे साथ कुछ देर अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते है?
अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है.
By Anant Srivastava 127
रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेण्टर के 40 साल के अध्यन से पता चला कि गोमती के 45% जलस्त्रोत ख़त्म हो चुके है . चार दशक (1972-2013) के अध्यन मे वैज्ञानिको ने गोमती की गतिशीलता , नदी की सतह , भूगर्भीय जलस्त्रोतों का अध्यन किया और पानी के सैंपल भी लिए . इसके आधार पे उन्होंने रिहाइशी अतिक्रमण , अनुयोजित औद्योगीकरण , और प्रदूषण को इसका कारण बताया . ये जानकारी सोमवार को राजधानी मे इंडियन वाटर सोसाइटी की आयोजित सेमिनार मे आये वैज्ञानिको ने दी .
सेंटर के वैज्ञानिक राजीव मोहन और सुधाकर शुक्ल ने बताया की नदी के स्त्रोत इसी के 30,520 वर्ग किलोमाटर के बेसिन के भूगर्भ से आते है. 1972 के बाद हुए अनियंत्रित अतिक्रमणों ने 45% जल स्त्रोत ख़त्म कर दिए है . यही वजह है के इन क्षेत्रों मे रहने वाले नागरिको के लिए भूगर्भीय जल दोहन मजबूरी हो गया है . इसकी वजह से गोमती का जल सिमट रहा है . दूसरा संकट है भूगर्भीय जल को रिचार्ज करने के लिए हो रहे असुरक्षित प्रयास, जिससे भूगर्भीय जल प्रदूषित हो रहा है .
सेंटर के वैज्ञानिको ने 2014 मैं 900 किलोमीटर के बहाव क्षेत्र मे 93 जगह के भूगर्भीय जल के सैंपल लिए और पाया के वो पीने योग्य नहीं थे . इनमे मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ी पायी गयी है . सॅटॅलाइट इमेजेज से भी पता चला है जहाँ के सैम्पल्स मे मैग्नीशियम बढ़ पाया गया वहाँ औद्योगिक मलबा और गोमती मे गन्दा पानी गिराया जाता रहा है .
रिपोर्ट मे वैज्ञानिको ने बताया के उन्नाव के मोहान , प्रतापगढ़ के बेलघाट , जयपुर के पिलखिन , सीतापुर के खैराबाद , और रायबरेली के कई हिस्सो मे भूगर्भीय जल पीने लायक नहीं है . इसे पीने से सेहत खराब हो सकती है .
तो क्या जलस्त्रोतों को बचने के बजाये गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसे प्रोजेक्ट्स ज्यादा जरुरी है ?
सरकार 3000 करोड़ रूपए का राजधानी मे गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट बनवा रही है जिसके अनेक नुक्सान और गलत प्रभाव पर्यावरण पे पड़ रहे है . ऐसे मे सरकार को जरुरी है के वो प्राकृतिक जलस्त्रोतों को सहेजे और उनसे हो रहे खिलवाड़ को रोके, बजाये के उसे और बिगाड़ने वाले प्रोजेक्ट्स लगाए . जब भूगर्भीय जल ही नहीं रहेगा तोह ऐसे रिवर फ्रंट का क्या करेगी आम जनता ? जब पीने का पानी ही नहीं रहेगा तोह आम जनता सेल्फी खीच के क्या करेगी ? 3000 करोड़ बहुत होते है और कर दाताओ का पैसा सही ढंग से प्रयोग मे आने चाहिए न कि उसे नुक्सान पहुचने वाले पोजेक्टस को डेवेलोप करने मे लगाना चाहिए .
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
हम इस एक्शन ग्रुप के जरिये गोमती पर हो रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण की समीक्षा कर रहे है। गोमती पर करवाये जा रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण के बहुत दुष्परिणाम हो सकते है। कुछ तो दिखने भी लगे है। लखनऊ मे बहती गोमती के कई हिस्सों पे निर्माण चल रहा है। नदी की सतह में जमी गाद और गन्दगी को करोड़ों खर्च के ड्रेजिंग कर के निकाला जा रहा है। वही दूसरी ओर उसमे नाले सीवेज गिरा रहे है। सरकार गोमती की सफाई के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुकी है और आम जनता का पैसा लगातार अनुयोजित ढंग से खर्च किया जा रहा है। बहुत विशेषज्ञों ने रिवरफ्रण्ट की आलोचना भी की है और इससे रोकने की भी निवेदन किया पर सरकार ने कार्य को बिना रोके कार्यात रखा।
हम इस एक्शन ग्रुप से गोमती रिवरफ्रण्ट की समीक्षा करेंगे और विशेषज्ञों की राय और साइंटिफिक रिसर्च से रिवर फ्रंट के दुष्परिणाम और उसमे मुनासिब बदलाव के मौको को तलाशेंगे और सरकार को सुझाएंगे। इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तो आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है : coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो तालाब अधिग्रहण मे विशेषज्ञ हो या इस केस से सम्बंधित कुछ जानता हो , तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप हमारे साथ कुछ देर अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते है?
अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है.