पर्यावरण विभाग ने किया अधिकारों का गलत प्रयोग
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है के पर्यावरण विभाग के क्लीयरेंस के बगैर जितनी भी इमारते उन्हें तत्काल प्रभाव से ध्वस्त कर दिया जाये। यही वजह है के हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर ज़मीन का जो नक्शा पास हुआ है, उसको राज्य स्तर पर आनन फानन मे पर्यावरण विभाग की और से क्लीयरेंस प्रदान कर दी गयी जबकि ये उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। गौरतलब है के राज्य इस्तरीय पर्यावरण विभाग के पास सिर्फ 20 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन ही क्लियर करने का अधिकार है। इसके ऊपर की ज़मीन को क्लीयरेंस देने का अधिकार केंद्र सरकार के आधीन पर्यावरण विभाग के पास है। इन सभी को नज़रअंदाज़ करते हुए पर्यावरण, वन एवं जल वायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन की क्लीयरेंस दे दी।
इस सन्दर्भ मे सामाजिक कार्यकर्ता अशोक शंकरम ने राष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत भारत सरकार के आधीन पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, क्षेत्रीय कार्यालय( मध्य) से इस सम्बन्ध मे जानकारी मांगी तो जो जवाब आया वह साबित करने के लिए काफी था की हाई कोर्ट के लिए आवंटित ज़मीन पर दी गयी क्लीयरेंस गलत थी।
दी गयी सूचना मे स्पष्ट कहा गया है के स्वकृति प्रदान करने का अधिकार इस कार्यालय के कार्य क्षेत्र मे नहीं आता। यह कार्य मंत्रालय, नयी दिल्ली एवं सम्बंधित स्टेट इम्पक्टस एनवीरोमेंटल अस्सेस्मेंट अथॉरिटी के माध्यम से किया जाता है। जाहिर है की हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन को राज्य स्तर पे जो पर्यावरण क्लीयरेंस दी गयी वह गलत तोह है ही साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशो की अवमाननां की श्रेणी मे भी आती है।
आइये अब कुछ बातें पर्यावरण विभाग के बारे मे भी जान ले:-
पर्यावरण विभाग की ज़िम्मेदारियाँ और गतिविधियां :
पर्यावरण विभाग सक्रिय रूप से सम्पूर्ण एनवीरोमेंटल असेसमेंट, मॉनिटरिंग, सुरक्षा , और जागरूकता के कार्य मे कार्यत है .विभाग द्वारा बहुआयामी एप्रोच का इस्तेमाल पर्यावरण के संरक्षण और प्रमोशन के लिए होता है. इन सभी नीतियों और कार्यक्रमों को करने मे विभाग सतत विकास और मानवीय वृद्धि के सिद्धांतों से मार्गदर्शित होता है .
- पर्यावरण, U.P निदेशालय के अधिकारियों / कर्मचारियों की स्थापना से संबंधित सभी काम करता है
- पर्यावरण, यूपी निदेशालय के लिए योजना और गैर-योजना बजट का प्रबंधन
- पर्यावरण क्षरण और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों के लिए एक पर्यावरण अनुकूल योजना तैयार करें।
- यूपी की स्थापना की समीक्षा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कर्तव्यों उनके द्वारा प्रदर्शन किया।
- सभी काम करता है पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों में निर्दिष्ट।
- पर्यावरण क्षरण, नुकसान और पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित शिकायत पर कार्रवाई।
- यूपी के साथ समन्वय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निरीक्षण से संबंधित काम पर।
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
तालाबो, झीलों, नालियों और अनेक तरह के जल स्र्तों पे हो रहे अतिक्रमण का सिलसिला बढ़ता जा रहा है . प्राकृतिक तालाब या जल स्त्रोत को सूखा देख उससे पुनः जीवित करने के बजाये उसे प्राइवेट बिल्डर्स को बेचा जा रहा है जिससे हमारे जल स्त्रोत नष्ट हो रहे है . अक्सर तालाब पे कब्ज़े की सूचना सुनने को मिलती है . पिछले बीते वर्षो मे कई राष्ट्रों मे तालाब पे अतिक्रमण के किस्से सामने आये. अब जब हाई कोर्ट पे बे इल्ज़ामात है तालाब कब्जियाने के, जनता मे निराशा है के वो अब पर भोरासा कर सकते है जब न्याय देने वाला है प्रश्नों मे घिरा है . अगर आपके गली मोहल्ले या इलाके मे भी किसी जल स्त्रोत पे अतिक्रमण हो रहा हो तो संपर्क करे.
हम इस रिसर्च के माध्यम से लखनऊ हाई कोर्ट की बिल्डिंग पे चल रहे तालाब अधिग्रहण के केस, या किसी अन्य तालाब अधिग्रहण के मामले की तह तक जाने और इसपे सभी सही जानकारी जाने के कार्यात है . इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है : coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो तालाब अधिग्रहण मे विशेषज्ञ हो या इस केस से सम्बंधित कुछ जानता हो , तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप हमारे साथ कुछ देर अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते है?
क्या मुझे काम करने के पैसे मिलेंगे?हाँ ! अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है. आपके काम को फण्ड किया जायेगा .
Your efforts can bring a change!
:Team-BBI
Source: www.drishtant.co.in
By Anant Srivastava 39
पर्यावरण विभाग ने किया अधिकारों का गलत प्रयोग
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है के पर्यावरण विभाग के क्लीयरेंस के बगैर जितनी भी इमारते उन्हें तत्काल प्रभाव से ध्वस्त कर दिया जाये। यही वजह है के हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर ज़मीन का जो नक्शा पास हुआ है, उसको राज्य स्तर पर आनन फानन मे पर्यावरण विभाग की और से क्लीयरेंस प्रदान कर दी गयी जबकि ये उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। गौरतलब है के राज्य इस्तरीय पर्यावरण विभाग के पास सिर्फ 20 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन ही क्लियर करने का अधिकार है। इसके ऊपर की ज़मीन को क्लीयरेंस देने का अधिकार केंद्र सरकार के आधीन पर्यावरण विभाग के पास है। इन सभी को नज़रअंदाज़ करते हुए पर्यावरण, वन एवं जल वायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन की क्लीयरेंस दे दी।
इस सन्दर्भ मे सामाजिक कार्यकर्ता अशोक शंकरम ने राष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत भारत सरकार के आधीन पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, क्षेत्रीय कार्यालय( मध्य) से इस सम्बन्ध मे जानकारी मांगी तो जो जवाब आया वह साबित करने के लिए काफी था की हाई कोर्ट के लिए आवंटित ज़मीन पर दी गयी क्लीयरेंस गलत थी।
दी गयी सूचना मे स्पष्ट कहा गया है के स्वकृति प्रदान करने का अधिकार इस कार्यालय के कार्य क्षेत्र मे नहीं आता। यह कार्य मंत्रालय, नयी दिल्ली एवं सम्बंधित स्टेट इम्पक्टस एनवीरोमेंटल अस्सेस्मेंट अथॉरिटी के माध्यम से किया जाता है। जाहिर है की हाई कोर्ट के लिए आवंटित 1 लाख 40 हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन को राज्य स्तर पे जो पर्यावरण क्लीयरेंस दी गयी वह गलत तोह है ही साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशो की अवमाननां की श्रेणी मे भी आती है।
आइये अब कुछ बातें पर्यावरण विभाग के बारे मे भी जान ले:-
पर्यावरण विभाग की ज़िम्मेदारियाँ और गतिविधियां :
पर्यावरण विभाग सक्रिय रूप से सम्पूर्ण एनवीरोमेंटल असेसमेंट, मॉनिटरिंग, सुरक्षा , और जागरूकता के कार्य मे कार्यत है .विभाग द्वारा बहुआयामी एप्रोच का इस्तेमाल पर्यावरण के संरक्षण और प्रमोशन के लिए होता है. इन सभी नीतियों और कार्यक्रमों को करने मे विभाग सतत विकास और मानवीय वृद्धि के सिद्धांतों से मार्गदर्शित होता है .
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
तालाबो, झीलों, नालियों और अनेक तरह के जल स्र्तों पे हो रहे अतिक्रमण का सिलसिला बढ़ता जा रहा है . प्राकृतिक तालाब या जल स्त्रोत को सूखा देख उससे पुनः जीवित करने के बजाये उसे प्राइवेट बिल्डर्स को बेचा जा रहा है जिससे हमारे जल स्त्रोत नष्ट हो रहे है . अक्सर तालाब पे कब्ज़े की सूचना सुनने को मिलती है . पिछले बीते वर्षो मे कई राष्ट्रों मे तालाब पे अतिक्रमण के किस्से सामने आये. अब जब हाई कोर्ट पे बे इल्ज़ामात है तालाब कब्जियाने के, जनता मे निराशा है के वो अब पर भोरासा कर सकते है जब न्याय देने वाला है प्रश्नों मे घिरा है . अगर आपके गली मोहल्ले या इलाके मे भी किसी जल स्त्रोत पे अतिक्रमण हो रहा हो तो संपर्क करे.
हम इस रिसर्च के माध्यम से लखनऊ हाई कोर्ट की बिल्डिंग पे चल रहे तालाब अधिग्रहण के केस, या किसी अन्य तालाब अधिग्रहण के मामले की तह तक जाने और इसपे सभी सही जानकारी जाने के कार्यात है . इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है : coordinators@ballotboxindia.com
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क्या मुझे काम करने के पैसे मिलेंगे?हाँ ! अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है. आपके काम को फण्ड किया जायेगा .
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Source: www.drishtant.co.in