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दिसम्बर स्वास्थ्य विशेषांक - ठिठुराती ठंड में रखे स्वास्थ्य का ख्याल, बेहतर आहार-विहार से सर्दियों में बनें रहे फिट एंड फाइन

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति. Opinions & Updates

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   Contributors Kavita Chaudhary Kavita Chaudhary 51

दिसम्बर, यानि साल को अलविदा कहता और कपकपाती सर्दियों का स्वागत करता अंतिम महीना. दिसम्बर में समस्त उ

दिसम्बर, यानि साल को अलविदा कहता और कपकपाती सर्दियों का स्वागत करता अंतिम महीना. दिसम्बर में समस्त उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ने लगती है, जहां हिमालयन रेंज में आने वाले राज्य जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर आदि बर्फ से ढक जाते हैं, वहीं उत्तर भारत के राज्यों दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश आदि में शीत लहर और कोहरे का कहर देखा जा सकता है. मौसम में आने वाला यह बदलाव भले ही अनुकूल लगे, लेकिन इस मौसम में बरती गयी थोड़ी सी लापरवाही भी विभिन्न रोगों को आमंत्रित कर सकती है. इसीलिए हमें अपने खान-पान और दिनचर्या में भी सर्दियों के हिसाब से परिवर्तन लाना चाहिए ताकि मौसम के इस रूप का भी खुलकर आनंद लिया जाए.

तो आइये बैलटबॉक्सइंडिया के स्वास्थ्य सीरीज में दिसम्बर माह में स्वस्थ रहने के कुछ प्राकृतिक व आयुर्वेदिक नियमों की चर्चा करते हैं और जानते हं  कि कैसे सर्दियों में रहे फिट एंड फाइन.   

1. दिसम्बर में जलवायु परिवर्तन 

दिसम्बर, यानि साल को अलविदा कहता और कपकपाती सर्दियों का स्वागत करता अंतिम महीना. दिसम्बर में समस्त उ

भारतीय ऋतु वर्णन के अनुसार शीत ऋतु को दो भागों में विभाजित किया गया है - हेमंत तथा शिशिर.

हेमंत ऋतु (मध्य नवम्बर - मध्य दिसम्बर) में ठंड कम व शिशिर (मध्य दिसम्बर - मध्य फरवरी) में अत्यधिक मात्रा में ठंड होती है. पृथ्वी पर पूरे वर्ष सूर्य की किरणें समान रूप से नही पड़ती परिणामस्वरूप पृथ्वी के सूर्य से दूर रहने के कारण शीत ऋतु प्रारंभ हो जाती है.

यूँ तो भारत में सर्दी की शुरुआत नवम्बर से ही हो जाती है, परन्तु ठंड का अत्यधिक प्रकोप दिसम्बर व जनवरी में ही देखने को मिलता है. शीत ऋतु में रातें बेहद लम्बी होती हैं और दिन बेहद छोटे होने लगते है. शीत ऋतु में सूर्य की स्थिति पृथ्वी से दूर होती है, जिस कारण पृथ्वी पर सूर्य की किरणें पूर्ण रूप से नही पहुँच पाती और ठंड बढ़ने लगती है. इसी के चलते दिसम्बर माह में विंटर सोल्सटिस या संक्रांति भी प्रतिवर्ष पड़ती है. साल 2019 का सबसे छोटा दिन 22 दिसम्बर को है, क्योंकि इस दिन सूर्य की किरणें पृथ्वी पर बहुत कम समय के लिए रहेंगी. 

2. दिसम्बर में ऐसा हो आपका खान-पान 

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व्यक्ति का खान पान ही उसकी जीवनशैली को निर्धारित करता है. कहा भी गया है कि “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन”, यानि खान पान यदि सही और मौसम के अनुरूप हो तो व्यक्ति का तन-मन दुरुस्त बना रहता है. सर्दियों के मौसम को वैसे भी सेहत बनाने का मौसम माना जाता है, क्योंकि इस समय हमारी पाचन-शक्ति बढ़ी हुई होती है और कुछ खास प्रकार के आहार को दैनिकचर्या में शामिल करके अच्छा स्वास्थ्य पाया जा सकता है. बेहतर स्वास्थ्य को गति देने के लिए दिसम्बर माह में पोषक तत्वों से भरपूर फलों और सब्जियों को अपनी भोजन शैली का भाग बनाना चाहिए. 

मौसमी फलों को बनाएं डाइट चार्ट का हिस्सा -

सर्दियों में सबसे ज्यादा मिलने वाले वाले फलों में सेब, अनार, सिंघाड़ा, चीकू, संतरा, केला, अमरुद इत्यादि हैं. इन फलों को आप अपनी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं. पर कोशिश करें कि आप ताजे फलों का ही सेवन करें और बाजार से फलों को लाने के बाद उन्हें नमक या सिरका मिले गुनगुने पानी से धोना ना भूले. फलों को खाने का सबसे अच्छा समय सुबह नाश्ते के बाद और लंच से पहले का माना गया है, आप शाम को स्नैक के तौर पर भी किसी एक फल का सेवन कर सकते हैं. सर्दियों के कुछ फलों के पौष्टिक गुण निम्न रूप से दर्शाए गए हैं. 

1. सेब - एन एप्पल ए डे, कीप्स द डॉक्टर अवे वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी. वास्तव में फाइबर, विटामिन सी-के-ए-ई-बी1-बी2-बी6, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कॉपर आदि की प्रचुरता से युक्त सेब प्रीबायोटिक की भांति काम करता है और अच्छे बैक्टीरिया को शरीर में कायम रखते हुए आंतों को स्वस्थ रखता है. सेब के छिलके में पाया जाने वाला फ्लावोनोइड तत्त्व इम्यून सिस्टम को बूस्ट करते हुए अस्थमा और किसी भी प्रकार के एलर्जिक रिएक्शन से हमें बचाता है.

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2. अमरुद - अमरुद लायकोपिन, पोटैशियम, फोलेट, फॉस्फोरस, फाईटोकेमिकल्स, डाइटरी फाइबर, मैग्नीशियम, विटामिन ए-सी-ई आदि के गुणों से भरपूर है और यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है, जिससे हम बहुत से मौसमी रोगों से बचे रह सकते हैं. मौसम में ठंडक बढ़ने से होने वाले कॉमन कफ एंड कोल्ड में भी यह फल राहत प्रदान करता है. 

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3. चीकू - एक स्वादिष्ट फल के साथ साथ विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर चीकू में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए-सी, फास्फोरस तथा आयरन आदि पाए जाते हैं. यह पाचन तंत्र के लिए काफी अच्छा फल माना जाता है और इसके प्राकृतिक फेक्ट्रोज और सुक्रोज हमें तुरंत एनर्जी प्रदान करते हैं. प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के साथ साथ चीकू हाई बीपी को भी नियंत्रण में रखता है. 

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4. अनार - दुनिया के सबसे स्वास्थ्यवर्धक फल का ख़िताब पाने वाला अनार भी इस माह में खाया जाना चाहिए, क्योंकि यह विटामिन सी का बहुत ही अच्छा स्त्रोत है और शरीर में नए रक्त का निर्माण करने में सहायक है. 

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5. संतरा - विटामिन सी की अधिकता के चलते खट्टा-मीठा सा फल संतरा सर्दियों में आपको स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभा सकता है. यह कॉमन कफ-कोल्ड में आराम दिलाता है. साथ ही इस फल में मौजूद हेस्परिडिन तत्त्व उच्च रक्त चाप को नियंत्रण करने में भी कारगर हैं. पेट से जुड़े रोगों के लिए संतरा लाभकारी है, तो साथ ही अपनी सिट्रस स्मेल के चलते यह मानसिक शांति महसूस कराता है, इसलिए डिप्रेशन जैसे रोगों में डॉक्टर इसके सेवन की सलाह देते हैं. इसके अतिरिक्त संतरे में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स से हमारी त्वचा घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से भी बचती है.   

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मौसमी सब्जियों से पाएं सेहत का खजाना - 

सर्दियों का उपहार मानी जाती हैं हरी-भरी सब्जियां, सर्दियों में बाज़ार तरह तरह की मौसमी और ताज़ी सब्जियों से गुलजार रहता है. पालक, सरसों, मेथी, गाजर, मटर, गोभी, शलजम आदि रंग-बिरंगी सब्जियों में ढेरों पोषक तत्त्वों का भंडार होता है, जिसका लाभ हम सबसे अधिक सर्दियों में ही उठा  सकते हैं. तो चलिए जानते हैं, दिसम्बर माह की ऐसी ही कुछ पौष्टिक सब्जियों के बारे में..

1. हरी सब्जियां - हरी भरी सब्जियां देखने में तो रिफ्रेशिंग होती ही हैं, साथ ही इनमें पोषक तत्त्वों की भी प्रचुरता होती है और सर्दियों की तो सौगात मानी जाती हैं...सरसों का साग, मक्के की रोटी, गुड और छाछ. दिसम्बर में धूप कम निकलती है और शरीर में विटामिन डी की मात्रा में कमी आने से हमारी रक्त कोशिकाएं सिकुड़ने लगती हैं, जिससे हृदय संबंधित रोगों, कोलेस्ट्रोल, बीपी, शुगर आदि की अधिकता भी देखी जाती है. ऐसे में अगर कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन ए, सी, डी, बी 12, मैग्नीशियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम आदि न्यूट्रीएण्ट्स से भरपूर इन हरी सब्जियों को अपने भोजन में शामिल किया जाये तो स्वाद के साथ साथ सेहत का भी ख्याल रखा जा सकता है. 

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2. गाजर - बीटा कैरोटिन, अल्फाग-कैरोटीन और लुटेइन जैसे एंटीऑक्सींडेंट और कैरीटोनॉइड, पोटैश‍ियम, विटामिन A और विटामिन E जैसे ढेरों पोषक तत्त्वों से युक्त गाजर सर्दियों में अक्सर होने वाली इनडाइजेशन से तो बचाती ही है, साथ ही ठंड से हुए जोड़ों में दर्द के लिए भी गाजर रामबाण ईलाज मानी जाती है.

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3. चुकंदर - वहीँ अधिकतर सलाद में प्रयोग होने वाले चुकंदर में विटामिन-बी, सी, फॉस्फोरस, कैल्सियम, पोटैशियम, प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में ब्लड प्यूरिफिकेशन के साथ साथ ऑक्सीजन का लेवल भी बढ़ाते हैं. चुकंदर का जूस शरीर में प्लाज्मा नाइट्रेट के स्तर को बढ़ाकर शरीर को एनेरजेटिक बनाता है और इसमें पाए जाने वाला पोटैशियम हमारी मांसपेशियां को सक्रिय रखता है, जिससे हम आलस और थकान नहीं महसूस करते. 

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4. मूली - बात सर्दियों की हो, तो मूली को कैसे भुला जा सकता है. मिनरल तत्त्वों जैसे आयरन, जिंक, कॉपर..विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन बी व सी का उत्तम स्त्रोत मूली को सलाद के साथ साथ अचार, भाजी अथवा रोटी-परांठे के तौर पर बहुतायत प्रयोग में लाया जाता है. यह शुगर और हृदय रोगियों के लिए लाभदायक मानी जाती हैं. साथ ही इसके जूस से यूरीनल इन्फेक्शन और अपच में भी राहत मिलती है. 

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5. शलजम - शलजम में बीटा केरोटीन पाया जाता है, जो दिमाग की सेहत को दुरुस्त रखता है. इसके सेवन से त्वचा में रूखापन नहीं आता है और यह पाचन शक्ति को भी दुरुस्त रखता है. इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है जो आंत में होने वाली गड़बडि़यों को रोकता है. 

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3. सितम्बर माह में होने वाले रोग एवं उनके आयुर्वेदिक उपचार

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मौसम में आने वाली ठंडक से हमारे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है, ऐसे में यदि खान-पान में हुयी लापरवाही से या किसी लम्बी चली आ रही बीमारी के कारण हमारा प्रतिरक्षा तंत्र थोडा भी कमजोर पड़ता है तो मौसमी बीमारियां हमें एकाएक अपनी चपेट में ले लेती हैं. सर्दियों में अक्सर होने वाले या बढ़ जाने वाले रोगों के लिए हम कुछ आयुर्वेदिक उपायों को भी अमल में ला सकते हैं, जिनका शरीर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता है. मसलन खांसी होने पर यदि एलोपैथी दवा ली जाती है, तो उससे अत्याधिक नींद, गला सूखना, थकान आदि नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं, वहीं यदि इसके आयुर्वेदिक उपचार किये जाए तो उनसे आराम भी होता है और कोई साइडइफेक्ट भी नहीं होता. ऐसी ही कुछ मौसमी बीमारियों और उनके आयुर्वेदिक उपचारों का वर्णन नीचे किया गया है..

1. आर्थराइटिस 

मौसम में ठंड बढ़ने से हमारी रक्त कोशिकाओं में संकुचन आ जाता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन धीमा होता है. जिसके कारण जोड़ों में ऐठन और दर्द की समस्या बढ़ जाती है. इसका सबसे अधिक प्रभाव उम्रदराज लोगों और किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति पर पड़ता है. इस समस्या के बढ़ने से खासतौर पर घुटनों, कमर, कंधों इत्यादि में दर्द के साथ साथ खिंचाव महसूस होता है, जो ठंड बढ़ने के साथ बढ़ता चला जाता है. 

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2. मौसमी फ्लू 

सर्दियों में सबसे अधिक परेशान करने वाला रोग मौसमी फ्लू है. आजकल के प्रदूषित माहौल में यह बीमारी तेजी से पनपती है और संक्रामक होने के चलते इसका प्रसार भी अधिक होता है. गले में दर्द यानि टोंसिलाईटिस के साथ शुरू हुई यह बीमारी जुकाम, खांसी, बुखार और सरदर्द के रूप में आपको परेशान कर सकती है. इससे बचाव के लिए सावधानी के तौर पर बाहर जाने से पहले आप मास्क अवश्य लगायें, साथ ही ठंड से बचने के लिए गर्म तासीर वाले पदार्थों को खाने में सम्मिलित करें. 

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3. अस्थमा/ एलर्जिक रिएक्शन 

दिसम्बर में जलवायु स्थिति इस प्रकार की होती है कि प्रदूषक तत्त्व हवा में काफी नीचे तैरते रहते हैं, जिसके कारण वायु काफी अस्वच्छ हो जाती है और इसका सीधा प्रभाव हमारे साइनस सिस्टम पर पड़ता है. प्रदूषकों के महीन कण नासिका से शरीर में जाते हैं, जिससे किसी भी प्रकार का एलर्जिक रिएक्शन हमें प्रभावित कर सकता है. विशेषकर दमा/अस्थमा के रोगियों के लिए तो इस मौसम में समस्याएं अधिक बढ़ जाती हैं और श्वास लेने में दिक्कत होने लगती हैं. 

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4. शुष्क त्वचा/ड्राई स्किन 

वैसे तो हमारे शारीरिक दोषों यानि वात, पित्त और कफ के अनुसार हमारी त्वचा भी तैलीय, शुष्क या मिश्रित होती है. लेकिन सर्दियों में हवा में रूखापन आने से रुखी त्वचा वालों को और अधिक दिक्कतें झेलनी पड़ती है. सर्दी के मौसम में रूखी त्वचा वाले लोगों के लिए त्वचा का फटना, खुजली, जलन व रैशेज आम समस्याएं हैं, जिससे अधिकतर लोग त्रस्त रहते हैं. 

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5. डैंड्रफ       

सर्दियों के दिनों में बालों की देखभाल थोड़ी मुश्किल होती है. इस समय डैंड्रफ, सूखे या छल्‍लेदार बाल, बालों के झड़ने और दो मुंहे बालों की समस्‍या आम हो जाती है. प्राकृतिक तौर पर रूखापन आने से और बालों के प्रति लापरवाही रखने से इस मौसम में बालों से जुडी दिक्कतें काफी अधिक देखने को मिलती हैं. केमिकल भरे प्रोडक्ट्स के उपयोग से, वातावरणीय प्रदूषण, साफ़-सफाई नहीं रखने आदि से बालों की शुष्कता बढती चली जाती है.   

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4. करें योग..रहें निरोग 

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हमारे भारत की प्राचीनतम धरोहर हैं योग एवं प्राणायाम, जिनके आगे आज विश्व के अन्य देश भी नतमस्तक हैं. बहुत से आधुनिक अध्ययन ही स्पष्ट करते हैं कि योग और ध्यान क्रियाओं से मानसिक तनाव सहित विभिन्न बीमारियों से राहत मिलती है. एक अध्ययन के अनुसार योग क्रियाओं से प्रमुख स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल की रिलीज़ में कमी आती है, जिससे तनाव नहीं होता. तो क्यों ना आप भी अपनी दिनचर्या में से कुछ समय अपने अनमोल स्वास्थ्य के लिए निकालें और कुछ सरल आसनों और प्राणायामों का अनुसरण करते हुए अपने आपको बनाये निरोगी..

1. गरुड़ासन 

कमर और पैरों को लचीला और मजबूत बनाने वाला आसन माना जाता है गरुड़ासन, जिसमें शरीर की पोज गरुड़ यानि गिद्ध के समान हो जाती है. इस आसन में सीधे खड़े होकर घुटनों को मोड़ते हुए बायें पैर को उठाकर दाहिने पैर के ऊपर घुमातें हैं. दाहिने हाथ को बायें हाथ के ऊपर क्रॉस करते हुए हथेलियों को एक दूसरे के सामने रखें. इसी पोज़ में कुछ देर स्थिर रहते हुए श्वास चक्र सामान्य रखें और फिर पुनः धीरे धीरे सामान्य अवस्था में आ जायें. 

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2. सूर्य नमस्कार 

सूर्य नमस्कार का अर्थ है सूरज को नमन करना. सूर्य नमस्कार को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने से आपका तन और मन दोनों ही स्वस्थ रहते हैं. इसे करते समय सूरज की किरणों का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है, विटामिन डी की आपूर्ति होती है और रक्त संचार बढ़ता है, जिससे शरीर को अनगिनत लाभ मिलते हैं. इसे सभी योगासनों से सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जिससे आज के आपाधापी से भरे समय में मानसिक तनाव जैसी समस्या के राहत मिलती है. इसके एक चक्र से शुरुआत करते हुए आप चार-पांच चक्र तक बढ़ा सकते हैं. 

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3. त्रिकोणासन 

शरीर को त्रिकोण की मुद्रा में लाते हुए व्यायाम करना त्रिकोणासन है, इससे कमर दर्द में आराम मिलता है और साथ ही शरीर को उचित गर्माहट भी मिलती है. इस आसन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मधुमेह को दूर रखने में सहायक है. 

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4. कपालभाति 

इस प्राणायाम में श्वास को तेज गति से ग्रहण किया और छोड़ा जाता है, जिससे हमारी श्वसन नलिका में उपस्थित अवरोध खुलते हैं और साँसों का आवागमन आसान हो जाता है. इसके अतिरिक्त इस प्राणायाम से हमारा नाड़ीतंत्र मजबूत होता है, रक्त प्रवाह बढ़ता है तथा मानसिक शांति मिलती है. इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से सर्दी में राहत मिलती है. 

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5. अनुलोम-विलोम/नाड़ीशोधन प्राणायाम 

इस प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए पहले दायिने अंगूठे से दायीं बंद करते हुए बायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है और फिर ऐसे ही श्वास भरते हुए बायीं नासिका को बंद कर दायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है. इस साधारण से प्राणायाम को 5-10 मिनट रोजाना करते रहना चाहिए.

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5. आयुर्वेदिक दिनचर्या से बने रहे निरोगी

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उत्तम स्वास्थ्य किसे अच्छा नही लगता. किन्तु स्वस्थ बने रहना भी किसी साधना से कम नहीं है. आज मौसम में जरा सा बदलाव भी हमें विभिन्न रोगों का शिकार बना देता है, जिसके पीछे हमारी कमजोर होती जा रही इम्युनिटी पॉवर सबसे बड़ा कारण है. आज हमारा लाइफ स्टाइल इस कदर बिगड़ चुका है कि हम मौसम और प्रकृति के अनुसार नहीं बल्कि अपनी इच्छानुसार जीवन चला रहे हैं. बेमौसमी खान-पान, आलस्य से भरी जीवन शैली आदि हमारे स्वास्थ्य को आघात पहुंचा रही है, जिससे बचने के लिए हमें प्रकृति के बनाएं नियमों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए.  

हमें जानना और समझना होगा कि वो कौन सी सावधानियां और प्राकृतिक उपाय हैं, जिन्हें इस माह में अपनी दिनचर्या में शामिल कर आप भी पा सकते हैं रोगमुक्त शरीर का वरदान... 

1. शरीर को कुदरती तौर पर गरम रखने के लिए गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थ जैसे सूखे मेवे, तिल, मूंगफली, गुड, फ्लेक्स सीड आदि को अपने भोजन में जरुर रखें. 

2. ठंडी हवाओं से बचने के लिए अपने सर, कानों, हथेलियों, तलवों और छाती को गर्म वस्त्रों से ढककर रखें, जिससे शीत लहर के प्रकोप से आप बचे. 

3. कभी भी बहुत अधिक ठंडे या तेज गरम पानी से स्नान नहीं करें, क्योंकि जहां ठंडा पानी आपके ब्लड सर्कुलेशन की प्रक्रिया को शॉक दे सकता है तो वहीं गर्म पानी से त्वचा रुखी होने के साथ साथ ही यह आपकी इम्युनिटी को कमजोर कर देगा. 

4. सर्दियों में थोड़ी देर के लिए धूप में जरुर बैठे, इससे आपकी पेशियां सक्रिय होंगी और शरीर में जमा अतिरिक्त कफ पिघलेगा. 

5. ठंड के मौसम में निष्क्रियता को खुद पर हावी नहीं होने दे क्योंकि ऐसा करके आप अतिरिक्त कैलोरी को बर्न नहीं कर पाएंगे, जो बुरे कोलेस्ट्रोल में बदलकर आपके ह्रदय को नुक्सान पहुंचा सकती है. 

6. विंटर डिप्रेशन को करें बाय बाय

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मौसमी डिप्रेशन यानि सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से अवसाद, तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. अक्सर मौसम में तेजी से आये परिवर्तन के कारण यह समस्या देखने को मिलती है क्योंकि हमारा मस्तिष्क मौसमी बदलाव के लिए एकाएक तैयार नहीं होता. सर्दियों में यह डिसऑर्डर अधिक देखने को मिलता है और महिलाओं में यह समस्या ज्यादा पाई जाती है. 

दरअसल सर्दियों में दिन छोटे और रातें बड़ी हो जाने से हमारे जागने और सोने का चक्र गड़बड़ा जाता है, जिससे शरीर में थकान अधिक रहती है. साथ ही सर्दियों में सूरज की रोशनी भी कम होती है, जिससे हमारा मस्तिष्क ज्यादा मात्रा में मेलैटोनिन हॉर्मोन बनाने लगता है. अध्ययन बताते हैं कि यह हार्मोन हमें चिडचिडा और उनींदा बनाये रखता है. यह सामान्य तौर पर स्लीप हॉर्मोन है, जिसका सीधा संबंध प्रकाश और अंधकार से होता है. इसके चलते सर्दियों में हमारी शारीरिक सक्रियता भी थोड़ी कम हो जाती है और हम स्वयं को बीमार सा महसूस करते हैं. यह सब विंटर डिप्रेशन का संकेत भी हो सकता है. 

इससे बचाव के लिए आप शारीरिक तौर पर सक्रिय रहे, खुद को घर के कार्यों में या हॉबी क्लासेज में व्यस्त रखें. जैसे डांसिंग, सिंगिंग, पेंटिंग, बागवानी, होम मैनेजमेंट आदि कुछ भी रचनात्मक कार्य में आप संलग्न हो सकते हैं, इन सभी से हमारा मूड अच्छा बना रहता है और मस्तिष्क थकता है, जिससे नींद अच्छी आती है. सक्रिय रहने से और थोड़ी देर धूप में बिताने से आप स्वयं ही बेहतर महसूस करने लगते है, जो इस डिप्रेशन का सबसे बड़ा प्राकृतिक ईलाज है.   

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तो सर्दियों की इस ठिठुरन का लुत्फ़ उठाये बेहतर स्वास्थ्य और प्रसन्न मन के साथ. आपका स्वास्थ्य है सबसे अनमोल, उसे सहेजे, संवारे और सकारात्मक मन से हर मौसम को कहे सुस्वागतम.    

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