पंजाब में कैप्टन सरकार का चुनावी वायदे का सच, सीएम बोले पांच रूपए में खाना देना संभव नहीं
क्यों रैली बंद होनी चाहिए। क्यों घोषणा पत्र के वायदे पूरे होने चाहिए। क्यों यह आवाज उठनी चाहिए। इसलिए ताकि नेता मतदाता को मूर्ख बना कर उनका वोट हासिल कर सत्ता हासिल ना कर पाए। क्योंकि यह हकीकत है, हर बार ज्यादातर मतदाता ठगे जाते हैं। पंजाब चुनाव को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए। लेकिन सत्ता में आने वाली कांग्रेस सरकार अपने वायदों से पीछे हट रही है। वोट से पहले वायदा था पांच रूपए में भरपेट भोजन, सत्ता मिली तो बोले नुकसान ज्यादा है कैसे दे सस्ता खाना। कांग्रेस ने अपेन मेनिफेस्टो में वायदा किया था कि गरीब लोगों को पांच रूपए में खाना दिया जाएगा। अब उनकी सरकार है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह सीएम है। उन्होंने कहा पांच रूपए में गरीबों को खाना देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि रेड क्रॉस सोसायटीज ने पांच रूपए में खाना देने में असमर्थता जताई है। इससे सोसायटी को नुकसान होगा। जिसकी भर पाई कैसे हो इस पर सरकार विचार कर रही है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में सस्ती रोटी के नाम पर सब डिविजन मुख्यालयों पर कम्यूनिटी किचन चलाए जाने की घोषणा हुई थी। मगर अब यह घोषणा महज घोषणा बनकर ही रह जायेगी।
क्या यह वायदा पूरा करना इतना मुश्किल है
बड़ा सवाल कया यह वायदा पूरा करना इतना मुश्किल है? पंजाब सोशल स्टीज के पूर्व प्रोफेसर डाक्टर हरनेक सिंह सवाल करते हैं, उनका कहना है कि सरकार की इच्छा शक्ति ही नहीं है। अन्यथा जो पंजाब पूरे देश के लिए अनाज पैदा कर रहा है, वह अपने भूखे लोगों के लिए सस्ता राशन उपलब्ध नहीं करा सकता क्या? इससे साफ है कि नेता मतदाता के साथ सीधे सीधे खिलवाड़ करते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि चुनाव से पहले कैसे भी झूठ बोल कर वोट हासिल कर लिया जाए। इसके बाद जो होगा देखा जाएगा। यह बहुत ही खराब स्थिति है। आम आदमी सोचता है कि वह जिस पार्टी को वोट दे रहा है, वह उसके लिए कुछ न कुछ करेगी। इसी सोच के तहत वह उस पार्टी को वोट डाल देता है। लेकिन वोट मिलते ही पार्टी कैसा व्यवहार करती है? पंजाब सरकार का सस्ते खाने पर यह स्टैंड साफ कर रहा है।
होनी चाहिए कानूनी बाध्यता
जानकाकारों का कहना है कि इसके लिए कानूनी बाध्यता होनी चाहिए। आखिर कोई भी पार्टी ऐसा वायदा कर भी कैसे सकती है। इसके लिए उनकी जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। इसके लिए कानून बनना चाहिए। चुनाव आयोग को इस बारे में पहल करनी चाहिए। यह कहना है पंजाब के आत्महत्या कर चूके किसानों के परिजनों की देखरेख कर रहे स्वयंसेवी संस्था पहल के अध्यक्ष संतोष सिंह बैंस के। उन्होंने कहा कि नेता इतना वेतन ले रहे हैं। सुविधाओं पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। आप गरीब को भोजन नहीं दे सकते। कैसा समाज बनाना चाह रहे हैं यह नेता। आखिर क्यों यह वायदा किया था। अभी तो इस सरकार को आए एक पखवाड़ा भर ही हुआ है। तब यह हाल है। आने वाले दिनों में क्या होगा? इसका तो अंदाजा भी लगाया नहीं जा सकता है।
बननी चाहिए कोई पॅालिसी
जानकारों का कहना है कि झूठे वायदों पर रोक लगने के लिए कोई पॉलिसी तो बननी ही चाहिए। आखिर कैसे कोई नेता झूठे वायदे कर निकल लेते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाया जाना चाहिए। क्योंकि यह सीधे सीधे भावनाओं से खिलवाड़ करने जैसा है। फिर कैसे कोई नेता की बात पर यकीन करेगा। यह तो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी सही नहीं माना जा सकता है। इस के लिए किसी भी स्तर पर कोई पहल तो होनी ही चाहिए। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कांग्रेस जैसी पार्टी ने सस्ते खाने को अपने घोषणापत्र में शामिल ही क्यों किया? इसके पीछे उनकी क्या सोच है। क्या इसके लिए उन्होंने कोई रिसर्च किया या यूं ही गरीब लोगों के वोट बटोरने के लिए बोल दिया गया। अब जब वायदा कर ही लिया तो इसे पूरा किया जाना चाहिए। रेड क्रास सोसायटी क्यों, सरकार खुद की कैंटीन क्यों नहीं चला सकती? यह कहना है कि संतोष सिंह बैंस का। इनका कहना है कि रेड क्रास सोसायटी का इस तरह से इस्तेमाल करना ही गलत है।
विपक्ष भी चुपचाप तमाशा देखता है
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष की भूमिका बड़ी मानी जाती है। देखने में आता है कि विपक्ष भी आम तौर पर पब्लिक इंटरेस्ट में मुद्दे उठाते हैं। लेकिन हो यह रहा है कि विपक्ष आराम से बैठ कर तमाश देखता है। क्योंकि उनकी सोच रहती है कि जनता यदि तंग है तो वह अपने किए पर पछताएगी, इस तरह से उनके पक्ष में खुद ब खुद माहौल बन जाएगा। फिर चुनाव आएंगे और तब विपक्ष भी उसी तरह से हथकंडे अपनाता है। इसलिए जब एक दल सत्ता में होता है तो दूसरा विपक्ष में तो विपक्ष चुनावा वायदों को लेकर ज्यादा बोलता नहीं है। पंजाब में सस्ते भोजन का ही मामला ले लें, अब किसी भी विपक्षी ने इस पर कुछ नहीं बोला है। क्योंकि वें जानते हैं कि आज यदि वे इस पर सवाल उठाएंगे तो कल जब वे इस तरह के झूठे वायदों पर सत्ता में होंगे तो उन्हें भी इन सवालों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए यह मिलाजुला खेल चल रहा है।
घोषणा पत्र बस चुनावी पुलिंदा भर नहीं
निसंदेह अपने घोषणापत्र में कही गई बातों के लिए सोचा होगा, उसकी प्लानिंग की होगी। एक पूरी टीम इस घोषणा पत्र को बनाती है और उन्हें किस तरह से पूरा किया जाए उसकी पूरी प्लानिंग करती है। मगर सरकार बनते ही आप अपने ही घोषणापत्र को इस तरह नकार देते हैं जैसे सिर्फ यह एक कागज का टुकड़ा भर है। घोषणापत्र किसी भी राजनीतिक पार्टी का दस्तावेज होता है जिसमें यह तय किया जाता है कि सरकार की कार्यप्रणाली क्या होगी, सरकार को कैसे काम करना है और किन-किन विषयों पर सरकार को ध्यान देना है। मगर यह किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए बेहद दुखद स्थिति है कि चुनाव से पहले कोई भी राजनीतिक पार्टी घोषणा पत्र द्वारा बड़े-बड़े वादे करने के बाद सरकार बनते ही वह अपने वादों से मुकर जाती है। यह एक तरह से हमारे लोकतंत्र, हमारे समाज और मतदाताओं से किया गया छल है। लोकतांत्रिक सुधार की प्रक्रिया में हमें इन बातों पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। हमें इस दिशा में भी बदलाव लाने की जरूरत है इसके लिए कड़े कदम उठाए जाने की सख्त आवश्यकता है। ताकि लोगों का विश्वास लोकतांत्रिक प्रणाली और चुनाव के दौरान पार्टियों के घोषणा पत्र पर बना रहे और घोषणा पत्र बस चुनावी पुलिंदा भर बन कर ना रह जाए।
By Swarntabh Kumar 34
पंजाब में कैप्टन सरकार का चुनावी वायदे का सच, सीएम बोले पांच रूपए में खाना देना संभव नहीं
क्यों रैली बंद होनी चाहिए। क्यों घोषणा पत्र के वायदे पूरे होने चाहिए। क्यों यह आवाज उठनी चाहिए। इसलिए ताकि नेता मतदाता को मूर्ख बना कर उनका वोट हासिल कर सत्ता हासिल ना कर पाए। क्योंकि यह हकीकत है, हर बार ज्यादातर मतदाता ठगे जाते हैं। पंजाब चुनाव को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए। लेकिन सत्ता में आने वाली कांग्रेस सरकार अपने वायदों से पीछे हट रही है। वोट से पहले वायदा था पांच रूपए में भरपेट भोजन, सत्ता मिली तो बोले नुकसान ज्यादा है कैसे दे सस्ता खाना। कांग्रेस ने अपेन मेनिफेस्टो में वायदा किया था कि गरीब लोगों को पांच रूपए में खाना दिया जाएगा। अब उनकी सरकार है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह सीएम है। उन्होंने कहा पांच रूपए में गरीबों को खाना देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि रेड क्रॉस सोसायटीज ने पांच रूपए में खाना देने में असमर्थता जताई है। इससे सोसायटी को नुकसान होगा। जिसकी भर पाई कैसे हो इस पर सरकार विचार कर रही है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में सस्ती रोटी के नाम पर सब डिविजन मुख्यालयों पर कम्यूनिटी किचन चलाए जाने की घोषणा हुई थी। मगर अब यह घोषणा महज घोषणा बनकर ही रह जायेगी।
क्या यह वायदा पूरा करना इतना मुश्किल है
बड़ा सवाल कया यह वायदा पूरा करना इतना मुश्किल है? पंजाब सोशल स्टीज के पूर्व प्रोफेसर डाक्टर हरनेक सिंह सवाल करते हैं, उनका कहना है कि सरकार की इच्छा शक्ति ही नहीं है। अन्यथा जो पंजाब पूरे देश के लिए अनाज पैदा कर रहा है, वह अपने भूखे लोगों के लिए सस्ता राशन उपलब्ध नहीं करा सकता क्या? इससे साफ है कि नेता मतदाता के साथ सीधे सीधे खिलवाड़ करते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि चुनाव से पहले कैसे भी झूठ बोल कर वोट हासिल कर लिया जाए। इसके बाद जो होगा देखा जाएगा। यह बहुत ही खराब स्थिति है। आम आदमी सोचता है कि वह जिस पार्टी को वोट दे रहा है, वह उसके लिए कुछ न कुछ करेगी। इसी सोच के तहत वह उस पार्टी को वोट डाल देता है। लेकिन वोट मिलते ही पार्टी कैसा व्यवहार करती है? पंजाब सरकार का सस्ते खाने पर यह स्टैंड साफ कर रहा है।
होनी चाहिए कानूनी बाध्यता
जानकाकारों का कहना है कि इसके लिए कानूनी बाध्यता होनी चाहिए। आखिर कोई भी पार्टी ऐसा वायदा कर भी कैसे सकती है। इसके लिए उनकी जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। इसके लिए कानून बनना चाहिए। चुनाव आयोग को इस बारे में पहल करनी चाहिए। यह कहना है पंजाब के आत्महत्या कर चूके किसानों के परिजनों की देखरेख कर रहे स्वयंसेवी संस्था पहल के अध्यक्ष संतोष सिंह बैंस के। उन्होंने कहा कि नेता इतना वेतन ले रहे हैं। सुविधाओं पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। आप गरीब को भोजन नहीं दे सकते। कैसा समाज बनाना चाह रहे हैं यह नेता। आखिर क्यों यह वायदा किया था। अभी तो इस सरकार को आए एक पखवाड़ा भर ही हुआ है। तब यह हाल है। आने वाले दिनों में क्या होगा? इसका तो अंदाजा भी लगाया नहीं जा सकता है।
बननी चाहिए कोई पॅालिसी
जानकारों का कहना है कि झूठे वायदों पर रोक लगने के लिए कोई पॉलिसी तो बननी ही चाहिए। आखिर कैसे कोई नेता झूठे वायदे कर निकल लेते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाया जाना चाहिए। क्योंकि यह सीधे सीधे भावनाओं से खिलवाड़ करने जैसा है। फिर कैसे कोई नेता की बात पर यकीन करेगा। यह तो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी सही नहीं माना जा सकता है। इस के लिए किसी भी स्तर पर कोई पहल तो होनी ही चाहिए। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कांग्रेस जैसी पार्टी ने सस्ते खाने को अपने घोषणापत्र में शामिल ही क्यों किया? इसके पीछे उनकी क्या सोच है। क्या इसके लिए उन्होंने कोई रिसर्च किया या यूं ही गरीब लोगों के वोट बटोरने के लिए बोल दिया गया। अब जब वायदा कर ही लिया तो इसे पूरा किया जाना चाहिए। रेड क्रास सोसायटी क्यों, सरकार खुद की कैंटीन क्यों नहीं चला सकती? यह कहना है कि संतोष सिंह बैंस का। इनका कहना है कि रेड क्रास सोसायटी का इस तरह से इस्तेमाल करना ही गलत है।
विपक्ष भी चुपचाप तमाशा देखता है
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष की भूमिका बड़ी मानी जाती है। देखने में आता है कि विपक्ष भी आम तौर पर पब्लिक इंटरेस्ट में मुद्दे उठाते हैं। लेकिन हो यह रहा है कि विपक्ष आराम से बैठ कर तमाश देखता है। क्योंकि उनकी सोच रहती है कि जनता यदि तंग है तो वह अपने किए पर पछताएगी, इस तरह से उनके पक्ष में खुद ब खुद माहौल बन जाएगा। फिर चुनाव आएंगे और तब विपक्ष भी उसी तरह से हथकंडे अपनाता है। इसलिए जब एक दल सत्ता में होता है तो दूसरा विपक्ष में तो विपक्ष चुनावा वायदों को लेकर ज्यादा बोलता नहीं है। पंजाब में सस्ते भोजन का ही मामला ले लें, अब किसी भी विपक्षी ने इस पर कुछ नहीं बोला है। क्योंकि वें जानते हैं कि आज यदि वे इस पर सवाल उठाएंगे तो कल जब वे इस तरह के झूठे वायदों पर सत्ता में होंगे तो उन्हें भी इन सवालों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए यह मिलाजुला खेल चल रहा है।
घोषणा पत्र बस चुनावी पुलिंदा भर नहीं
निसंदेह अपने घोषणापत्र में कही गई बातों के लिए सोचा होगा, उसकी प्लानिंग की होगी। एक पूरी टीम इस घोषणा पत्र को बनाती है और उन्हें किस तरह से पूरा किया जाए उसकी पूरी प्लानिंग करती है। मगर सरकार बनते ही आप अपने ही घोषणापत्र को इस तरह नकार देते हैं जैसे सिर्फ यह एक कागज का टुकड़ा भर है। घोषणापत्र किसी भी राजनीतिक पार्टी का दस्तावेज होता है जिसमें यह तय किया जाता है कि सरकार की कार्यप्रणाली क्या होगी, सरकार को कैसे काम करना है और किन-किन विषयों पर सरकार को ध्यान देना है। मगर यह किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए बेहद दुखद स्थिति है कि चुनाव से पहले कोई भी राजनीतिक पार्टी घोषणा पत्र द्वारा बड़े-बड़े वादे करने के बाद सरकार बनते ही वह अपने वादों से मुकर जाती है। यह एक तरह से हमारे लोकतंत्र, हमारे समाज और मतदाताओं से किया गया छल है। लोकतांत्रिक सुधार की प्रक्रिया में हमें इन बातों पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। हमें इस दिशा में भी बदलाव लाने की जरूरत है इसके लिए कड़े कदम उठाए जाने की सख्त आवश्यकता है। ताकि लोगों का विश्वास लोकतांत्रिक प्रणाली और चुनाव के दौरान पार्टियों के घोषणा पत्र पर बना रहे और घोषणा पत्र बस चुनावी पुलिंदा भर बन कर ना रह जाए।