लो, सावन बहका है....
बागों में मेले हैं...फूलों के ठेले हैं,
झूलों के मौसम में...साथी अलबेले हैं.
ऋतुएँ जो झाँक रहीं...मौसम को आँक रहीं,
धरती की चूनर पर...गोटे को टाँक रहीं.
लो,
सावन बहका है..!!
_(सावन बहका है/रजनी मोरवाल)
प्रकृति के सबसे मनभावन स्वरुप का प्रतीक माना जाने वाला सावन अथवा श्रावन या
अगस्त वास्तव में हरियाली का सूचक माह है. भारत में बेहद खास है अगस्त का महीना,
इसे भारतीय त्योहारों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. आज़ादी के खुमार का प्रतीक
अगस्त हर लिहाज से भारतवासियों के लिए अप्रतिम है, यह एक ओर रिमझिम बारिश से जुड़ा
है, तो दूसरी ओर राखी-तीज जैसे त्योहारों से. इसमें जहां एक ओर सडकों पर बम बम भोले
का गान सुनाई पड़ता है तो एक ओर हरियाली की चुनर ओढ़े धरती की सौंधी सी महक तन-मन को
प्रफुल्लित कर जाती है.
पर एक ओर जहां सावन की भीनी सी फुहार है, तो दूसरी ओर पल पल बदलते इस मौसम से
स्वास्थ्य को होने वाले खतरे भी बहुत अधिक हैं. बेहद गर्मी के उपरांत कहीं से भी मेघों
की टोली उठकर आ जाती है और एकाएक बारिश हो जाती है..साथ ही बारिश रुकते ही अचानक उमस
का स्तर भी बढ़ जाता है. मौसम के इस अंदाज से हमारा शरीर भी अनभिज्ञ नही रह पाता...अगस्त
माह में विशेषकर...
- परिवर्तित होते मौसम के बीच शरीर का तापमान प्राकृतिक तौर पर नियंत्रित नहीं
रह पाता, नतीजतन वायरल फीवर होने की आशंका बनी रहती है.
- इस माह में हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर रहती है, जो रोगों का प्रमुख
कारण बनती है.
- हुमिडिटी यानि उमस के बढ़ने से वातावरण में संक्रामक परजीवों, बैक्टीरिया और
कीटों की संख्या में भी इजाफ़ा हो जाता है.
- आयुर्वेदिक संरचना के अनुसार इस माह में पित्त और वायु दोष की अधिकता रहती है,
जो कमजोर जठराग्नि को उद्दीप्त करती है.
तो मौसम के इस अप्रत्याशित स्वरुप से बचते हुए कैसे रहे स्वस्थ...अगस्त में
कैसा हो आपका आहार-विहार और मौसमी बीमारियों से लड़ने के लिए स्वयं को फिट और फाइन
कैसे बनाए रखे? यह सभी जानने के लिए जुडें रहे बैलटबॉक्सइंडिया की अगस्त स्वास्थ्य
सीरीज से और बढ़ाएं चंद कदम अचूक स्वास्थ्य की ओर.
1. पोषण और ताजगी से परिपूर्ण हो आपकी आहार शैली
मौसमी फलों से रहे तरोताजा
बेरीज - बेरीज परिवार के सदस्य यानि स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी आदि सभी
अपनी मेडिसनल प्रॉपर्टीज के लिए जानी जाती हैं, इनमें मौजूद फाइटोकेमिकल फाइबर
टाइप 2 डायबिटीज के लिए बेहद मददगार माना गया है.
नाशपाती - अगस्त में नाशपाती भी काफी खाई जाती है, यह फल
फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है, साथ ही इसमें पर्याप्त मात्र में विटामिन सी,
विटामिन बी12, कॉपर इत्यादि मिनरल्स का खजाना मौजूद है.
अनार - दुनिया के सबसे स्वास्थ्यवर्धक फल का ख़िताब पाने
वाला अनार भी इस माह में खाया जाना चाहिए, क्योंकि यह विटामिन सी का बहुत ही अच्छा
स्त्रोत है और साथ ही बारिश के मौसम में होने वाले वायरल से लड़ने में इसका कोई सानी
नहीं है.
किवी - विटामिन सी और ई की प्रचुरता लिए किवी भी हमारी
प्रतिरोधक क्षमता को बहुत प्रभावशाली रूप से बढ़ाता है, तभी डॉक्टर्स भी अक्सर
गंभीर विषाणु/जीवाणु ग्रस्त रोगों जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, टाइफाइड इत्यादि में
इसका विशेष रूप से सेवन करने की सलाह देते हैं.
सेब - सेब भी इस महीने में मिलने वाले प्रमुख फलों में से है, जिसमें डाइटरी
फाइबर की अधिकता के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है. साथ ही
इसमें मौजूद पॉलिफेलोल एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है.
मौसमी सब्जियों के सेवन से रहे दुरुस्त
जुकिनी - विटामिन सी, कॉपर, पोटैशियम, मैग्नीज का
स्त्रोत जुकिनी एक ऐसी सब्जी है, जिसे सलाद, साइड डिश अथवा साधारण भाजी के तौर पर
भी खाया जाता है. यह तनाव, अस्थमा, मधुमेह जैसे रोगों में बेहद कारगर है.
भुट्टा/बेबीकॉर्न - बरसात में चाव से खाया जाने वाला भुट्टा
आयुर्वेद के अनुसार तृप्तिदायक, वातकारक, कफनाशक, पित्तनाशक और
रुचि उत्पादक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आता है. इसकी खासियत ही यह है कि पकाने
के बाद इसकी पौष्टिकता और बढ़ जाती है, पके हुए भुट्टे में पाया जाने वाला कैरोटीनायड
विटामिन-ए का अच्छा स्रोत होता है.
कच्चा केला - कच्चे केले को सब्जी के रूप में सेवन करने से
बरसात में होने वाले पेट के रोगों में बहुत लाभ मिलता है, साथ ही परजीवी संक्रमण,
बैक्टीरियल इन्फेक्शन आदि के कारण हुए रोगों में कच्चा केला बेहद लाभप्रद है.
अरबी के पत्तें - विटामिन ए, बी, सी के अलावा
कैल्शियम और पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर अरबी के पत्तों
को भजिया और सब्जी दोनों ही तरह से भोजन में शामिल किया जाता है. यह शरीर की
इम्युनिटी को बूस्ट करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
मशरूम - मशरूम को भी इस मौसम की पौष्टिक सब्जियों में शामिल
किया जा सकता है, इसमें पाए जाने वाले खनिज और विटामिन शरीर को स्वस्थ रखने में
सहायक सिद्ध होते हैं. साथ ही मशरूम में मौजद सेलेनियम इम्यून सिस्टम के रिस्पॉन्स
को बेहतर करता है, जिससे वायरल इन्फेक्शन बार बार नहीं होता.
2. योग एवं प्राणायाम से पाए आरोग्य का खजाना
योग एवं प्राणायाम हमारे भारत की प्राचीन धरोहर में से एक
हैं, जिन्हें आज वैश्विक रूप से अपनाया जा रहा है. तो क्यों ना
आप भी अपनी दिनचर्या में से कुछ समय अपने अनमोल स्वास्थ्य के लिए निकालें और कुछ
सरल आसनों और प्राणायामों का अनुसरण करते हुए अपने आपको बनाये निरोगी..
नौकासन
नौकासन यानि बोट पोज़ के अंतर्गत सर्वप्रथम मैट पर सीधा
लेटें और श्वास अंदर भरें. अब दोनों पैरों को सीधा मिला कर और हाथों को पैरों की
सीध में घुटने से मिला कर रखें. अब धीरे-धीरे अपने सिर और पैरों को एक साथ ऊपर की
ओर उठाएं और प्रयास करें कि 45 डिग्री का कोण बने. अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए
पूर्व अवस्था में वापस आएं. शुरुआत में धीरे-धीरे इसका प्रयास करें.
भुजंगासन
पेट के बल लेटते हुए दोनों पैरों, एडिय़ों एवं पंजों को आपस में मिलाएं और पैर
सीधे रखें. हाथों को कंधे के सामने जमीन पर रखें और हाथों के बल नाभि से ऊपर शरीर
को जितना संभव हो, ऊपर की ओर उठाएं.
सिर सीधा और ऊपर की ओर रहे, इस क्रिया को
पांच से दस बार तक दोहराएं.
ताड़ासन
इस आसन में सीधे खडे़ होकर अपने पैरों, कमर और गर्दन को सीधी रेखा में रखते हए अपनी
उंगलियों को सामने की तरफ कर मुट्ठी बांधिए और गहरी श्वास लेते हुए अपनी बंद
मुट्ठी के साथ अपने हाथों को ऊपर की तरफ उठाइए. सांसों को रोकते हुए पंजों के बल
खड़े होने का अभ्यास कीजिये और शरीर को ऊपर की ओर खींचिए. शुरुआत में यह क्रिया 5
से 10 बार दोहराइए.
अधोमुख स्वान आसन
अधोमुख स्वान आसन में शरीर की पोज़ कुत्ते के समान रखी जाती
है, यानि सर्वप्रथम हाथ और पैरों को जमीन के बल रख लीजिए और श्वास भरते हुए कमर को
धीरे धीरे ऊपर की ओर ले जायें और कोहनियों व घुटनों को मजबूती प्रदान करते हुए
शरीर को चित्र के अनुसार स्ट्रेच करें. इस अवस्था में कुछ सेकंड्स रुकते हुए पुन:
विश्राम मुद्रा में आ जायें.
तितली आसन
सामान्य मुद्रा में बैठते हुए दोनों पैरों को सामने की ओर
फैला लें, अब दोनों पैर को घुटनों से मोड़ते हुए पैरों के दोनों तलवो
को आपस में मिला लें. अब अपने दोनों हाथों से पैरों की उंगलियो को पकड़कर एडियों को
शरीर के पास लाने का प्रयास करे और फिर टाइटल के पंखों की भांति दोनों पैरों को 20-25
बार ऊपर नीचे करें.
नाडी शोधक प्राणायाम
इस प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास
लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए पहले दायिने अंगूठे
से दायीं बंद करते हुए बायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है और फिर ऐसे ही श्वास भरते हुए बायीं नासिका को बंद कर
दायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है. इस साधारण से प्राणायाम को 5-10 मिनट रोजाना
करते रहना चाहिए.
कपालभाति प्राणायाम
यह प्राणायाम तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया पर
निर्भर है. इसके रोजाना मात्र 10 मिनट के अभ्यास से शरीर उर्जावान और हल्का लगने
लगता है.
3. अगस्त माह में ऐसी हो आपकी जीवनचर्या
उत्तम स्वास्थ्य किसे अच्छा नही लगता. किन्तु स्वस्थ बने
रहना भी किसी साधना से कम नहीं है. आज भी यदि हम भारतीय ग्रामों का रुख करें तो
पाएंगे कि हमारे बुजुर्ग बिना किसी बीमारी के लंबी आयु तक जीते हैं. वहीं इसके ठीक
उलट शहरों में अल्पायु में ही हम डाइबिटीज, थायोरोइड, अनियंत्रित
रक्तचाप, किडनी रोग, हृदय रोगों आदि का शिकार हो रहे हैं.
इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा बदलता लाइफस्टाइल, जो मौसम और ऋतु
के बिल्कुल विपरीत होता है. हमें जानना और समझना होगा कि वो कौन सी सावधानियां हैं,
जिन्हें इस माह में अपनी दिनचर्या में शामिल कर आप भी पा सकते हैं रोगमुक्त शरीर
का वरदान....
- अगस्त में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें, साफ पानी पिएं, स्वच्छ जल से
स्नान करें. अपने आस पास के माहौल को भी साफ बनाये रखे.
- इस माह में उमस के चलते संक्रामक रोगों की अधिकता रहती है, इसके लिए नीम का
सेवन विशेष रूप से करें.
- आपका पेट संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है, इसलिए पेट साफ
रहना इस ऋतु में सर्वाधिक आवश्यक है. नियमित रूप से त्रिफला का सेवन करना अगस्त
में उपयोगी है.
- दूषित जल और बरसात में भीगने से इस माह में बचना चाहिए.
- मच्छरों से बचने के लिए नीम का धूपन घर में करें, साथ ही गेंदें का
पौधा भी दरवाजे के पास रखने से मच्छरों, मक्खियों और
कीटों से बचाव होता है.
4. जुलाई माह में होने वाले रोग और उनके आयुर्वेदिक निदान
सावन का महीना एक और जहां अपने साथ हर्षोल्लास लेकर आता है, वहीं जरा सी
असावधानी से यह हमारे लिए गंभीर रोगों का प्रवेश द्वार भी बन सकता है. जैसे बारिश
के मौसम में तापमान कम-ज्यादा लगा ही रहता है और नमी अत्याधिक बढ़ जाती है.
साथ ही विभिन्न रोगों जैसे पेट से जुड़े रोग, एलर्जी,
अस्थमा, चर्म रोग, वायरल फीवर इत्यादि से भी हमें दो-चार होना पड़ता है. कहा जाता
है “प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्योर”...इसलिए या तो इन रोगों को होने ही नहीं दिया
जाये और यदि लापरवाही से ये रोग हो भी जाते हैं तो बेहतर डॉक्टरी परामर्श के साथ
साथ कुछ आयुर्वेदिक उपायों को अमल में लाया जा सकता है.
अल्सर
बारिश में गलत खानपान के चलते हमारे शरीर को विभिन्न
बीमारियों ने घेर लिया है, जिसमें से एक अल्सर है. अल्सर कई प्रकार के होते है
जैसे कि पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रिक अल्सर, ड्यूडिनल अल्सर
और इसोफेगल अल्सर. बरसात में पित्त दोष की अधिकता होने से से शरीर में एसिड
अत्याधिक बनता है, जिससे गैस्ट्रिक अल्सर हो सकता है.
स्किन एक्जिमा
अक्सर बारिश में अधिक देर रहने से चर्म रोगों की संभावना बढ़
जाती है, जिनमें एक्जिमा सर्वप्रमुख है. एक्जिमा के शुरूआती लक्षणों में त्वचा में
खुजली, लालिमा और छाले शामिल हैं. अगर इन लक्षणों का समय रहते इलाज
नहीं कराया जाए, तो त्वचा खुरदुरी और शुष्क हो सकती है.
अपच
अगस्त माह में अक्सर हमारी जठराग्नि मंद रहती है, जिसके
चलते हमारा पेट कोई भी भारी भोज्य पदार्थ नहीं पचा पाता. ऐसे में यदि गरिष्ठ या
बासी भोजन कर लिया जाये तो अपच, अरुचि जैसी उदर समस्याओं के होने का खतरा बढ़ जाता
है.
एलर्जी
बारिश के मौसम में वातावरण में नमी स्थायी रूप से अपना डेरा
जमा लेती है और विभिन्न जीवाणुओं एवं कीटाणुओं को घरों में पनपने का अवसर मिल जाता
है. जिसके चलते जो लोग सेंसटिव होते हैं या थोड़े कमजोर होते हैं..खासकर बुजुर्ग
अथवा छोटे बच्चे, उन्हें एलर्जी अपनी गिरफ्त में जल्दी लेती है.
वायरल फीवर
वर्षा के कारण जगह जगह पानी भरने से उसमें मच्छरों के पैदा
होने का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही विषैले जीव जंतुओं, कीटों, मच्छर एवं मक्खियों द्वारा
भोज्य पदार्थों और पानी को संक्रमित कर दिया जाता है, जिससे मौसमी बुखार फैलता है.
सर्दी-जुकाम से आरंभ हुए इस बुखार में शरीर में अत्याधिक कमजोरी आ जाती है.
5. धार्मिक-सांस्कृतिक रूप से बहुत कुछ सिखाते हैं अगस्त के
पर्व
यूँ तो हमारे सभी पर्वों के पीछे गहन वैज्ञानिक तथ्य जुड़े
हैं, पर बात जब अगस्त
की हो तो समस्त उत्तर भारत में बारिश के साथ साथ तमाम त्यौहारों की भी झड़ी शुरू हो
जाती है और ये सभी पर्व बोलते से प्रतीत होते हैं.
बात यदि सावन में कावड़ियों के गंगा जल लाकर महादेव पर चढ़ाने
की हो तो इसके पीछे छिपा है गंगा जल के महत्व का संरक्षणवादी दृष्टिकोण. हमारे ऋषि
मुनियों ने नदियों, वृक्षों, पर्वतों को शायद
धर्म से इसीलिए जोड़ा होगा कि शायद कलयुग में स्वार्थ अधीन मुनष्य इनके महत्व को
बिसरा देगा.
इसके साथ ही अपनत्व, आत्मिक भावों और सकारात्मक विचारधारा से भरा है रक्षाबंधन
का त्योहार, जो परिवारों या
पड़ोस में आपसी सौहार्द एवं पारस्परिक प्रेम भाव को बढाता है. वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार खुश रहने से डिप्रेशन, स्ट्रेस जैसे मनोरोगों में कमी आती है.
हरियाली तीज भी इसी माह का एक ऐसा पर्व है, जो हमारी वर्षों
पुरानी भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और
एकत्व को उभारता है. वृक्षों पर पड़े झूले आभास कराते हैं कि आज भी हमे इन वृक्षों
का आशीष चाहिये, साथ ही त्योहारों
की मिठास हमें खुशहाली प्रदान करती है, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है.
देश का स्वतंत्रता पर्व भी इसी मांगलिक माह में आता है, जो हमें हमारे
स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है यानि हमें कृतार्थ होना सिखाता है अगस्त का
यह पावन महीना. 200 वर्षों की गुलामी से संघर्ष करके पायी गयी स्वतंत्रता की
अहमियत के साथ साथ हम एक आशावादी सोच भी लेकर चलते हैं कि अंधेरा कितना भी अधिक
क्यों न हो...सुबह का उजाला उसे खत्म कर ही देता है.
तो आप भी सावन के इस मंगल माह में अपनाएं स्वास्थ्य से जुड़े उपरोक्त कुछ सरल
उपाय और सेहतमंद होकर आनंद लें प्रकृति के विविध आयामों का. साथ ही पॉजिटिव विचारों
के साथ संकल्पित मन से आगे बढ़ते रहे और मुक्त हो जायें हर उस दिशाविहीन सोच से जो
आपकी निज प्रगति में बाधक हो.
By Deepika Chaudhary Contributors Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
_(सावन बहका है/रजनी मोरवाल)
प्रकृति के सबसे मनभावन स्वरुप का प्रतीक माना जाने वाला सावन अथवा श्रावन या अगस्त वास्तव में हरियाली का सूचक माह है. भारत में बेहद खास है अगस्त का महीना, इसे भारतीय त्योहारों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. आज़ादी के खुमार का प्रतीक अगस्त हर लिहाज से भारतवासियों के लिए अप्रतिम है, यह एक ओर रिमझिम बारिश से जुड़ा है, तो दूसरी ओर राखी-तीज जैसे त्योहारों से. इसमें जहां एक ओर सडकों पर बम बम भोले का गान सुनाई पड़ता है तो एक ओर हरियाली की चुनर ओढ़े धरती की सौंधी सी महक तन-मन को प्रफुल्लित कर जाती है.
पर एक ओर जहां सावन की भीनी सी फुहार है, तो दूसरी ओर पल पल बदलते इस मौसम से स्वास्थ्य को होने वाले खतरे भी बहुत अधिक हैं. बेहद गर्मी के उपरांत कहीं से भी मेघों की टोली उठकर आ जाती है और एकाएक बारिश हो जाती है..साथ ही बारिश रुकते ही अचानक उमस का स्तर भी बढ़ जाता है. मौसम के इस अंदाज से हमारा शरीर भी अनभिज्ञ नही रह पाता...अगस्त माह में विशेषकर...
तो मौसम के इस अप्रत्याशित स्वरुप से बचते हुए कैसे रहे स्वस्थ...अगस्त में कैसा हो आपका आहार-विहार और मौसमी बीमारियों से लड़ने के लिए स्वयं को फिट और फाइन कैसे बनाए रखे? यह सभी जानने के लिए जुडें रहे बैलटबॉक्सइंडिया की अगस्त स्वास्थ्य सीरीज से और बढ़ाएं चंद कदम अचूक स्वास्थ्य की ओर.
मौसमी फलों से रहे तरोताजा
बेरीज - बेरीज परिवार के सदस्य यानि स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी आदि सभी अपनी मेडिसनल प्रॉपर्टीज के लिए जानी जाती हैं, इनमें मौजूद फाइटोकेमिकल फाइबर टाइप 2 डायबिटीज के लिए बेहद मददगार माना गया है.
नाशपाती - अगस्त में नाशपाती भी काफी खाई जाती है, यह फल फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है, साथ ही इसमें पर्याप्त मात्र में विटामिन सी, विटामिन बी12, कॉपर इत्यादि मिनरल्स का खजाना मौजूद है.
अनार - दुनिया के सबसे स्वास्थ्यवर्धक फल का ख़िताब पाने वाला अनार भी इस माह में खाया जाना चाहिए, क्योंकि यह विटामिन सी का बहुत ही अच्छा स्त्रोत है और साथ ही बारिश के मौसम में होने वाले वायरल से लड़ने में इसका कोई सानी नहीं है.
किवी - विटामिन सी और ई की प्रचुरता लिए किवी भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बहुत प्रभावशाली रूप से बढ़ाता है, तभी डॉक्टर्स भी अक्सर गंभीर विषाणु/जीवाणु ग्रस्त रोगों जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, टाइफाइड इत्यादि में इसका विशेष रूप से सेवन करने की सलाह देते हैं.
सेब - सेब भी इस महीने में मिलने वाले प्रमुख फलों में से है, जिसमें डाइटरी फाइबर की अधिकता के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है. साथ ही इसमें मौजूद पॉलिफेलोल एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है.
मौसमी सब्जियों के सेवन से रहे दुरुस्त
जुकिनी - विटामिन सी, कॉपर, पोटैशियम, मैग्नीज का स्त्रोत जुकिनी एक ऐसी सब्जी है, जिसे सलाद, साइड डिश अथवा साधारण भाजी के तौर पर भी खाया जाता है. यह तनाव, अस्थमा, मधुमेह जैसे रोगों में बेहद कारगर है.
भुट्टा/बेबीकॉर्न - बरसात में चाव से खाया जाने वाला भुट्टा आयुर्वेद के अनुसार तृप्तिदायक, वातकारक, कफनाशक, पित्तनाशक और रुचि उत्पादक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आता है. इसकी खासियत ही यह है कि पकाने के बाद इसकी पौष्टिकता और बढ़ जाती है, पके हुए भुट्टे में पाया जाने वाला कैरोटीनायड विटामिन-ए का अच्छा स्रोत होता है.
कच्चा केला - कच्चे केले को सब्जी के रूप में सेवन करने से बरसात में होने वाले पेट के रोगों में बहुत लाभ मिलता है, साथ ही परजीवी संक्रमण, बैक्टीरियल इन्फेक्शन आदि के कारण हुए रोगों में कच्चा केला बेहद लाभप्रद है.
अरबी के पत्तें - विटामिन ए, बी, सी के अलावा कैल्शियम और पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर अरबी के पत्तों को भजिया और सब्जी दोनों ही तरह से भोजन में शामिल किया जाता है. यह शरीर की इम्युनिटी को बूस्ट करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
मशरूम - मशरूम को भी इस मौसम की पौष्टिक सब्जियों में शामिल किया जा सकता है, इसमें पाए जाने वाले खनिज और विटामिन शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होते हैं. साथ ही मशरूम में मौजद सेलेनियम इम्यून सिस्टम के रिस्पॉन्स को बेहतर करता है, जिससे वायरल इन्फेक्शन बार बार नहीं होता.
योग एवं प्राणायाम हमारे भारत की प्राचीन धरोहर में से एक हैं, जिन्हें आज वैश्विक रूप से अपनाया जा रहा है. तो क्यों ना आप भी अपनी दिनचर्या में से कुछ समय अपने अनमोल स्वास्थ्य के लिए निकालें और कुछ सरल आसनों और प्राणायामों का अनुसरण करते हुए अपने आपको बनाये निरोगी..
नौकासन
नौकासन यानि बोट पोज़ के अंतर्गत सर्वप्रथम मैट पर सीधा लेटें और श्वास अंदर भरें. अब दोनों पैरों को सीधा मिला कर और हाथों को पैरों की सीध में घुटने से मिला कर रखें. अब धीरे-धीरे अपने सिर और पैरों को एक साथ ऊपर की ओर उठाएं और प्रयास करें कि 45 डिग्री का कोण बने. अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए पूर्व अवस्था में वापस आएं. शुरुआत में धीरे-धीरे इसका प्रयास करें.
भुजंगासन
पेट के बल लेटते हुए दोनों पैरों, एडिय़ों एवं पंजों को आपस में मिलाएं और पैर सीधे रखें. हाथों को कंधे के सामने जमीन पर रखें और हाथों के बल नाभि से ऊपर शरीर को जितना संभव हो, ऊपर की ओर उठाएं. सिर सीधा और ऊपर की ओर रहे, इस क्रिया को पांच से दस बार तक दोहराएं.
ताड़ासन
इस आसन में सीधे खडे़ होकर अपने पैरों, कमर और गर्दन को सीधी रेखा में रखते हए अपनी उंगलियों को सामने की तरफ कर मुट्ठी बांधिए और गहरी श्वास लेते हुए अपनी बंद मुट्ठी के साथ अपने हाथों को ऊपर की तरफ उठाइए. सांसों को रोकते हुए पंजों के बल खड़े होने का अभ्यास कीजिये और शरीर को ऊपर की ओर खींचिए. शुरुआत में यह क्रिया 5 से 10 बार दोहराइए.
अधोमुख स्वान आसन
अधोमुख स्वान आसन में शरीर की पोज़ कुत्ते के समान रखी जाती है, यानि सर्वप्रथम हाथ और पैरों को जमीन के बल रख लीजिए और श्वास भरते हुए कमर को धीरे धीरे ऊपर की ओर ले जायें और कोहनियों व घुटनों को मजबूती प्रदान करते हुए शरीर को चित्र के अनुसार स्ट्रेच करें. इस अवस्था में कुछ सेकंड्स रुकते हुए पुन: विश्राम मुद्रा में आ जायें.
तितली आसन
सामान्य मुद्रा में बैठते हुए दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लें, अब दोनों पैर को घुटनों से मोड़ते हुए पैरों के दोनों तलवो को आपस में मिला लें. अब अपने दोनों हाथों से पैरों की उंगलियो को पकड़कर एडियों को शरीर के पास लाने का प्रयास करे और फिर टाइटल के पंखों की भांति दोनों पैरों को 20-25 बार ऊपर नीचे करें.
नाडी शोधक प्राणायाम
इस प्राणायाम के अंतर्गत दोनों नासिकाओं से श्वास लेते हुए श्वास छोड़ने के लिए पहले दायिने अंगूठे से दायीं बंद करते हुए बायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है और फिर ऐसे ही श्वास भरते हुए बायीं नासिका को बंद कर दायीं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है. इस साधारण से प्राणायाम को 5-10 मिनट रोजाना करते रहना चाहिए.
कपालभाति प्राणायाम
यह प्राणायाम तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया पर निर्भर है. इसके रोजाना मात्र 10 मिनट के अभ्यास से शरीर उर्जावान और हल्का लगने लगता है.
उत्तम स्वास्थ्य किसे अच्छा नही लगता. किन्तु स्वस्थ बने रहना भी किसी साधना से कम नहीं है. आज भी यदि हम भारतीय ग्रामों का रुख करें तो पाएंगे कि हमारे बुजुर्ग बिना किसी बीमारी के लंबी आयु तक जीते हैं. वहीं इसके ठीक उलट शहरों में अल्पायु में ही हम डाइबिटीज, थायोरोइड, अनियंत्रित रक्तचाप, किडनी रोग, हृदय रोगों आदि का शिकार हो रहे हैं.
इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा बदलता लाइफस्टाइल, जो मौसम और ऋतु के बिल्कुल विपरीत होता है. हमें जानना और समझना होगा कि वो कौन सी सावधानियां हैं, जिन्हें इस माह में अपनी दिनचर्या में शामिल कर आप भी पा सकते हैं रोगमुक्त शरीर का वरदान....
सावन का महीना एक और जहां अपने साथ हर्षोल्लास लेकर आता है, वहीं जरा सी असावधानी से यह हमारे लिए गंभीर रोगों का प्रवेश द्वार भी बन सकता है. जैसे बारिश के मौसम में तापमान कम-ज्यादा लगा ही रहता है और नमी अत्याधिक बढ़ जाती है.
साथ ही विभिन्न रोगों जैसे पेट से जुड़े रोग, एलर्जी, अस्थमा, चर्म रोग, वायरल फीवर इत्यादि से भी हमें दो-चार होना पड़ता है. कहा जाता है “प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्योर”...इसलिए या तो इन रोगों को होने ही नहीं दिया जाये और यदि लापरवाही से ये रोग हो भी जाते हैं तो बेहतर डॉक्टरी परामर्श के साथ साथ कुछ आयुर्वेदिक उपायों को अमल में लाया जा सकता है.
अल्सर
बारिश में गलत खानपान के चलते हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों ने घेर लिया है, जिसमें से एक अल्सर है. अल्सर कई प्रकार के होते है जैसे कि पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रिक अल्सर, ड्यूडिनल अल्सर और इसोफेगल अल्सर. बरसात में पित्त दोष की अधिकता होने से से शरीर में एसिड अत्याधिक बनता है, जिससे गैस्ट्रिक अल्सर हो सकता है.
स्किन एक्जिमा
अक्सर बारिश में अधिक देर रहने से चर्म रोगों की संभावना बढ़ जाती है, जिनमें एक्जिमा सर्वप्रमुख है. एक्जिमा के शुरूआती लक्षणों में त्वचा में खुजली, लालिमा और छाले शामिल हैं. अगर इन लक्षणों का समय रहते इलाज नहीं कराया जाए, तो त्वचा खुरदुरी और शुष्क हो सकती है.
अपच
अगस्त माह में अक्सर हमारी जठराग्नि मंद रहती है, जिसके चलते हमारा पेट कोई भी भारी भोज्य पदार्थ नहीं पचा पाता. ऐसे में यदि गरिष्ठ या बासी भोजन कर लिया जाये तो अपच, अरुचि जैसी उदर समस्याओं के होने का खतरा बढ़ जाता है.
एलर्जी
बारिश के मौसम में वातावरण में नमी स्थायी रूप से अपना डेरा जमा लेती है और विभिन्न जीवाणुओं एवं कीटाणुओं को घरों में पनपने का अवसर मिल जाता है. जिसके चलते जो लोग सेंसटिव होते हैं या थोड़े कमजोर होते हैं..खासकर बुजुर्ग अथवा छोटे बच्चे, उन्हें एलर्जी अपनी गिरफ्त में जल्दी लेती है.
वायरल फीवर
वर्षा के कारण जगह जगह पानी भरने से उसमें मच्छरों के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही विषैले जीव जंतुओं, कीटों, मच्छर एवं मक्खियों द्वारा भोज्य पदार्थों और पानी को संक्रमित कर दिया जाता है, जिससे मौसमी बुखार फैलता है. सर्दी-जुकाम से आरंभ हुए इस बुखार में शरीर में अत्याधिक कमजोरी आ जाती है.
यूँ तो हमारे सभी पर्वों के पीछे गहन वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हैं, पर बात जब अगस्त की हो तो समस्त उत्तर भारत में बारिश के साथ साथ तमाम त्यौहारों की भी झड़ी शुरू हो जाती है और ये सभी पर्व बोलते से प्रतीत होते हैं.
बात यदि सावन में कावड़ियों के गंगा जल लाकर महादेव पर चढ़ाने की हो तो इसके पीछे छिपा है गंगा जल के महत्व का संरक्षणवादी दृष्टिकोण. हमारे ऋषि मुनियों ने नदियों, वृक्षों, पर्वतों को शायद धर्म से इसीलिए जोड़ा होगा कि शायद कलयुग में स्वार्थ अधीन मुनष्य इनके महत्व को बिसरा देगा.
इसके साथ ही अपनत्व, आत्मिक भावों और सकारात्मक विचारधारा से भरा है रक्षाबंधन का त्योहार, जो परिवारों या पड़ोस में आपसी सौहार्द एवं पारस्परिक प्रेम भाव को बढाता है. वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार खुश रहने से डिप्रेशन, स्ट्रेस जैसे मनोरोगों में कमी आती है.
हरियाली तीज भी इसी माह का एक ऐसा पर्व है, जो हमारी वर्षों पुरानी भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और एकत्व को उभारता है. वृक्षों पर पड़े झूले आभास कराते हैं कि आज भी हमे इन वृक्षों का आशीष चाहिये, साथ ही त्योहारों की मिठास हमें खुशहाली प्रदान करती है, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है.
देश का स्वतंत्रता पर्व भी इसी मांगलिक माह में आता है, जो हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है यानि हमें कृतार्थ होना सिखाता है अगस्त का यह पावन महीना. 200 वर्षों की गुलामी से संघर्ष करके पायी गयी स्वतंत्रता की अहमियत के साथ साथ हम एक आशावादी सोच भी लेकर चलते हैं कि अंधेरा कितना भी अधिक क्यों न हो...सुबह का उजाला उसे खत्म कर ही देता है.
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