एक किस्सा सुनेंगे आप,
उत्तरी जकार्ता के निवासी रासडियोनो जो काफी पहले से समुद्र किनारे पास
ही स्थित एक पहाड़ी पर अपना पारिवारिक व्यवसाय यानि एक छोटा सा भोजनालय “ब्लेस्ड
बोडेगा” चलाते हैं. रासडियोनो के अनुसार पहले समुद्र से इस पहाड़ी और भोजनालय की
दूरी अच्छी खासी थी, पर साल दर साल समुद्र उनके पास आता चला गया, इतना कि एक दिन
इस पूरी पहाड़ी को ही निगल गया. अब समुद्र उनके भोजनालय से ऊँचा हो गया है और शायद
उसे भी एक दिन निगल जाने के इंतजार में है.
न्यूयॉर्क
टाइम्स के हवाले से आई यह कहानी आज के जकार्ता की वास्तविक्ता है, जो हर साल
लगभग 10 इंच जावा समुद्र की गोद में समाता जा रहा है. यह समस्या इस हद तक बढ़ चुकी
है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति श्री जोकोवि ने देश की राजधानी ही जकार्ता से
बदलकर कही और शिफ्ट कर देने का निश्चय कर लिया है.
पर ऐसा भी नहीं कि यह समस्या केवल जकार्ता की ही हो, यह
कहानी हर उस शहर के दर्द को बयाँ करती है, जो कभी अपने समंदर किनारे होने पर नाज
किया करता था. टेक्सास का हॉस्टन हो या इटली का वेनिस..बांग्लादेश का ढाका हो या
थाईलैंड का बैंकाक, सब धीरे धीरे इतिहास के पन्नों में सिमट जाने की कगार पर खड़े
दिख रहे हैं.
और विदेशों के डूबते शहरों की कहानी से अगर कोई जुडाव महसूस
नहीं हुआ तो अपने भारत में ही कुछ उदाहरण देख लीजिए. मुंबई, मंगलौर, काकीनाडा,
कन्याकुमारी के साथ साथ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी इसी सम्भावी खतरे का हिस्सा
बने हुए हैं. यकीन नहीं आता तो आगे दी गयी रिपोर्ट्स पर गौर कीजिये:
1. नासा के वैज्ञानिकों के अनुमानुसार बर्फ की चादरें
पिघलने से समुद्र का स्तर निरंतर बढ़ता चला जाएगा, जिससे मंगलौर, मुंबई और
काकीनाडा प्रभावित होंगे. अगली शताब्दी तक मंगलौर का समुद्र तल लगभग 15.98 सेमी और
मुंबई तकरीबन 15.26 सेमी तक बढ़ सकता है.
2. आईआईटी चेन्नई के क्लाइमेट विशेषज्ञ के द्वारा तैयार की
गयी ग्रीनपीस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में ग्रीनहाउस गैसेस के अत्याधिक
उत्सर्जन के कारण वातावरण के तापमान में 4-5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होगी, जो
समुद्र के जलस्तर में भी इजाफ़ा करेगी. नतीजतन वर्ष 2100 तक देश की आर्थिक राजधानी
मुंबई का अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो जाएगा.
3. 2017 की वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट की माने तो निकट भविष्य में
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पूरी तरह से गायब हो जायेंगे.
एक नजर इन डूबते शहरों पर
1. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता
अधिकतम गति से (लगभग 10 इंच प्रति वर्ष) डूबती जा रही है.
प्रमुख कारण – समुद्री जलस्तर बढ़ना, अत्याधिक भूजल
दोहन, सुनियोजित ढांचागत व्यवस्था का अभाव, खराब सीवर व्यवस्था, पेयजल लाइन्स का
सीमित दायरा आदि.
नतीजा – वर्ष 2050 तक आधे से ज्यादा शहर होगा जलमग्न, तकरीबन
10 करोड़ नागरिकों को बाढ़ से बचाने के लिए राजधानी हस्तांतरित की जाना एकमात्र
उपाय. लगने
वाला समय तकरीबन 10 वर्ष और खर्च 33 अरब डॉलर.
2. इटली का वेनिस शहर जो अपने बेजोड़ ऐतिहासिक स्मारकों के
लिए जाना जाता है, फ्लोटिंग बोट्स का शहर बन चुका है.
प्रमुख कारण – बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण अगली
सदी तक भूमध्य सागर का जल स्तर 140 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है, यानि तकरीबन 4-5
फीट अधिक.
नतीजा – शहर के प्रसिद्द स्मारकों, चर्चों और ऐतिहासिक
इमारतों को नुकसान, वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि अगर
ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो 2100 तक यह शहर जल समाधि ले सकता है.
वर्ष 2018 के समुद्री तूफानों के बाद लगभग 7 अरब के खर्चे से समुद्री दीवार बनाये
जाने की योजना बनाई गयी थी, जो अभी तक अधूरी है.
3. लुसियाना, न्यू ओरलेंस 2 इंच प्रति वर्ष की दर से पानी
में समाता जा रहा है और नासा
के 2016 के अध्ययनानुसार वर्ष 2100 तक इसका एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा.
प्रमुख कारण – निचले तटीय क्षेत्र, डेल्टा प्रदेश के नजदीक
होना, समुद्री तूफानों का अधिकतम आना, भूजल दोहन, सतही जल निष्कासन इत्यादि.
PC - NASA, 2016 STUDY
4. हॉस्टन, टेक्सास का एक बड़ा हिस्सा लगभग 2 इंच प्रति वर्ष
की दर से जलमग्न होता जा रहा है. डलास की साउथर्न
मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी की जियोफिजिकल टीम द्वारा की गयी रिसर्च बताती है कि
धरती में चल रही अंदरूनी प्रतिक्रियाओं के कारण यहां बड़े बड़े सिंकहोल्स बन रहे
हैं, जो एक बड़े खतरे का संकेत हैं.
प्रमुख कारण – अत्याधिक भूजल दोहन, जिसके चलते धरती में
दबाव और घनत्व लगातार बढ़ रहा है. हालांकि हॉस्टन तटीय शहर नहीं है, इसलिए समुद्र
के कारण यह नहीं डूब सकता, किन्तु यहां हरिकेन की संख्या बेहद अप्रत्याशित है, साथ
ही लापरवाह मानवीय रवैये के चलते यहां जमीनी हलचल अधिक है, जिससे इसका कुछ हिस्सा
आने वाले समय में डूब सकता है.
5. थाईलैंड की राजधानी बैंकाक भी लगातार प्रति वर्ष 1.5
सेमी की दर से डूब रहा है. जैसे जैसे गल्फ ऑफ थाईलैंड में इजाफ़ा (लगभग 4मीमी) होता
जा रहा है, शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है.
प्रमुख कारण – अनियोजित शहरीकरण, तटीय क्षेत्र होना, लम्बे समय
तक बनी रहने वाली वृहद् बाढ़. मुख्य रूप से वर्ष 2011 में आई बाढ़
ने बैंकाक को डूबने वाली राजधानी बनाने में बड़ी भूमिका निभाई.
नतीजा – 2011 की बाढ़ में बैंकाक के करोड़ों निवासियों को
प्रभावित किया. इसे बैंकाक के इतिहास की सबसे भयावह बाढ़ के रूप में चिन्हित किया
गया. बचाव के रूप में यहां तकरीबन
11 एकड़ में सेंटेनरी पार्क का निर्माण किया गया है, जो करोड़ों गैलन वर्षा जल को
संगृहीत करने की क्षमता रखता है.
एक नजर भारतीय शहरों पर –
भारत में देखा जाये तो भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री
जलस्तर बढ़ने के चलते तकरीबन 14,000 वर्ग किमी भूमि हर वर्ष जलमग्न हो जाती है.
वहीँ भारत के कुछ प्रमुख शहर या तो तटीय क्षेत्र होने के कारण या फिर अर्बन
प्लानिंग डिजास्टर का हिस्सा होने के कारण डूबने की कगार पर हैं. पर समस्या हर ओर
है, मसलन...
1. मुंबई, तटीय क्षेत्र होने के चलते न केवल साइक्लोनिक
गतिविधियों से जूझ रहा है, अपितु साथ ही अनियोजित निकासी के कारण इसके निचले
हिस्से मानसूनी बारिश में जलमग्न हो जाते हैं. जिसका खामियाजा जनता को जान-माल का
नुकसान झेल कर उठाना पड़ता है. वर्ष
2005 में आई मुंबई बाढ़ को भला कौन भूल सकता है, जिसने आर्थिक राजधानी की
रफ़्तार को रोक दिया था.
2. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भी उन शहरों में शामिल
है, जिनके भविष्य में डूब जाने का खतरा है. गंगा
बेल्ट में होने के चलते यहां बाढ़ का खतरा अधिक है, साथ ही यह भूकंप श्रेणी 3
में आता है, जो बेहद संवेदनशील माना जाता है. यूएन रिपोर्ट के अनुसार समुद्री
जलस्तर बढ़ने से वर्ष 2050 तक भारत के लगभग 40 मिलियन लोग प्रभावित होंगे, जिनमें मुंबई
और कोलकाता सर्वाधिक प्रभावित होंगे.
3. ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियरों के
परिणामस्वरुप कर्नाटका का मंगलौर शहर सबसे अधिक प्रभावित होगा. यूएस स्पेस
एजेंसी की लैब में ग्रेडिएंट फिंगरप्रिंट मैपिंग के आधार पर हुई गणना के
अनुसार मंगलौर शहर में अगले 100 वर्षों में 15.98 सेमी तक जलस्तर बढ़ेगा.
4. आंध्रप्रदेश का काकीनाडा भी वैश्विक तापमान वृद्धि के
असर से प्रभावित हो रहा है और आगामी 100 वर्षों में यहाँ का जलस्तर 15.16 सेमी के
आस पास तक बढ़ जाएगा, जो एक बड़ा खतरा होगा. फिलवक्त यह क्षेत्र साइक्लोनिक एक्टिविटीज
और भूगर्भीय
उथल पुथल के कारण सुर्ख़ियों में रहता है. वर्ष 2011 में यहां स्थित “श्यामला
सदन” लगभग एक मंजिल तक धरती में धंस गया था.
उपरोक्त शहरों के अतिरिक्त भी राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम,
चेन्नई, कोच्चि आदि महानगर वर्षा के समय प्राय: जलमग्न ही दिखाई पड़ते हैं, इन
शहरों में अनियोजित अर्बन प्लानिंग विनाशकारी बाढ़ लेकर आती है और अक्सर कुछ ही
घंटो की बारिश भी बाढ़ जैसी विध्वंसक स्थिति निर्मित कर देती है.
प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
विचार मन में आना स्वाभाविक है कि ऐसा हुआ क्या कि कभी
प्राकृतिक सुन्दरता का पर्याय रहे ये शहर आज गुमनाम होने की ओर बढ़ रहे हैं? सीधे
लफ्जों में दोष ग्लोबल वार्मिंग के सर मढ़ दिया जाएगा, पर कभी सोचा है कि ग्लोबल
वार्मिंग इतनी विकसित कैसे हो गयी कि इसने सूखे का पर्याय बन धरती से हरियाली छीन
ली, तो बाढ़ के रूप में गांव-शहर निगलने पर आमादा है और तो और हमारे आसमान तक के
सीने को इसने छलनी कर डाला (ओजोन
लेयर होल).
कहीं का कहीं इन सब समस्याओं की जड़ में है वह विकास जो हमने
अपने विलासिता के साधनों को बढ़ाने की एवज में किया है और आगे भी करते जा रहे हैं.
मसलन स्मार्ट सिटीज बनाने के चलते हमने वन-उपवन का दायरा सीमित कर दिया.
इतना कि अब मुट्ठी भर बचे जंगल हमारे द्वारा किये गए
कार्बन-उत्सर्जन का बोझ नहीं संभाल पाते. नतीजतन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़कर
वैश्विक तापमान को बढ़ा रहा है और साल दर साल तापमान के नए रिकॉर्ड कायम हो रहे
हैं.
बड़ी बड़ी आलीशान इमारतें खड़ी करके हमने अपनी धरती का दम घोट
दिया, इतना कि वर्षा सिंचित जल भी उसकी कोख तक पहुंचने नहीं दिया जाता. वैज्ञानिक
भाषा में कहे तो धरती में मौजूद प्राकृतिक एक़ुइफ़्र्स यानि जलभृत हमारे अव्यवस्थित
संरचनात्मक शहरीकरण के चलते खत्म होते जा रहे हैं.
साधारण शब्दों में कहें तो भूजल दोहन की अधिकता के चलते
धरती अंदरूनी रूप से शिथिल होती जा रही है, जो आज के समय में दिल्ली, मुंबई,
गुरुग्राम, चेन्नई जैसे भारतीय शहरों और न्यू ओरलेंस, हॉस्टन, जकार्ता आदि विदेशी
शहरों को प्राकृतिक रूप से डुबोने का कार्य कर रही है.
प्रकृति ने इंसान को बुद्धिमत्ता शायद इसीलिए प्रदान की थी
कि वह प्रकृतिदत्त संसाधनों का इस्तेमाल संयमित होकर करेगा, किन्तु हुआ बिलकुल इसके
उलट. हमने न केवल असंयमित होकर अन्न, जल, जंगल, जीवों, हरीतिमा को लील जाने की अति
कर डाली अपितु हमारे असहनीय स्वाभाव और आधुनिक जीवनशैली के चलते प्रयोग किये जाने
वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, वाहनों, जीवाश्म ईधन, खान-पान की अस्थायी आदतों के
कारण कार्बन फुटप्रिंट भी बेतहाशा बढ़ता चला जा रहा है.
निरंतर विध्वंसक स्वरुप दिखाते हुए प्रकृति हमें चेता रही है
कि अभी भी समय बचा है और हमें परिवर्तन लाना ही होगा. 2013 की केदारनाथ आपदा हो या
वर्ष 2018 में केरल में आई भयंकर बाढ़...ये सभी कहीं न कहीं हमें सबक दे रहे हैं कि
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना विनाश को बुलाने के समान होगा.
तो आप भी डूबतों को सहारा देने में अपना योगदान दीजिए,
प्रयास करें कि आपका कार्बन फुटप्रिंट कम से कम हो ताकि ग्लोबल वार्मिंग में कुछ
तो नरमी आए और आने वाली पीढ़ी आपको पर्यावरण विध्वंशक नहीं अपितु पर्यावरण मित्र के
तौर पर याद रखे.
By Deepika Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}
एक किस्सा सुनेंगे आप,
न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से आई यह कहानी आज के जकार्ता की वास्तविक्ता है, जो हर साल लगभग 10 इंच जावा समुद्र की गोद में समाता जा रहा है. यह समस्या इस हद तक बढ़ चुकी है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति श्री जोकोवि ने देश की राजधानी ही जकार्ता से बदलकर कही और शिफ्ट कर देने का निश्चय कर लिया है.
पर ऐसा भी नहीं कि यह समस्या केवल जकार्ता की ही हो, यह कहानी हर उस शहर के दर्द को बयाँ करती है, जो कभी अपने समंदर किनारे होने पर नाज किया करता था. टेक्सास का हॉस्टन हो या इटली का वेनिस..बांग्लादेश का ढाका हो या थाईलैंड का बैंकाक, सब धीरे धीरे इतिहास के पन्नों में सिमट जाने की कगार पर खड़े दिख रहे हैं.
और विदेशों के डूबते शहरों की कहानी से अगर कोई जुडाव महसूस नहीं हुआ तो अपने भारत में ही कुछ उदाहरण देख लीजिए. मुंबई, मंगलौर, काकीनाडा, कन्याकुमारी के साथ साथ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी इसी सम्भावी खतरे का हिस्सा बने हुए हैं. यकीन नहीं आता तो आगे दी गयी रिपोर्ट्स पर गौर कीजिये:
1. नासा के वैज्ञानिकों के अनुमानुसार बर्फ की चादरें पिघलने से समुद्र का स्तर निरंतर बढ़ता चला जाएगा, जिससे मंगलौर, मुंबई और काकीनाडा प्रभावित होंगे. अगली शताब्दी तक मंगलौर का समुद्र तल लगभग 15.98 सेमी और मुंबई तकरीबन 15.26 सेमी तक बढ़ सकता है.
2. आईआईटी चेन्नई के क्लाइमेट विशेषज्ञ के द्वारा तैयार की गयी ग्रीनपीस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में ग्रीनहाउस गैसेस के अत्याधिक उत्सर्जन के कारण वातावरण के तापमान में 4-5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होगी, जो समुद्र के जलस्तर में भी इजाफ़ा करेगी. नतीजतन वर्ष 2100 तक देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो जाएगा.
3. 2017 की वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट की माने तो निकट भविष्य में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पूरी तरह से गायब हो जायेंगे.
एक नजर इन डूबते शहरों पर
1. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता अधिकतम गति से (लगभग 10 इंच प्रति वर्ष) डूबती जा रही है.
प्रमुख कारण – समुद्री जलस्तर बढ़ना, अत्याधिक भूजल दोहन, सुनियोजित ढांचागत व्यवस्था का अभाव, खराब सीवर व्यवस्था, पेयजल लाइन्स का सीमित दायरा आदि.
नतीजा – वर्ष 2050 तक आधे से ज्यादा शहर होगा जलमग्न, तकरीबन 10 करोड़ नागरिकों को बाढ़ से बचाने के लिए राजधानी हस्तांतरित की जाना एकमात्र उपाय. लगने वाला समय तकरीबन 10 वर्ष और खर्च 33 अरब डॉलर.
2. इटली का वेनिस शहर जो अपने बेजोड़ ऐतिहासिक स्मारकों के लिए जाना जाता है, फ्लोटिंग बोट्स का शहर बन चुका है.
प्रमुख कारण – बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण अगली सदी तक भूमध्य सागर का जल स्तर 140 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है, यानि तकरीबन 4-5 फीट अधिक.
नतीजा – शहर के प्रसिद्द स्मारकों, चर्चों और ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान, वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो 2100 तक यह शहर जल समाधि ले सकता है. वर्ष 2018 के समुद्री तूफानों के बाद लगभग 7 अरब के खर्चे से समुद्री दीवार बनाये जाने की योजना बनाई गयी थी, जो अभी तक अधूरी है.
3. लुसियाना, न्यू ओरलेंस 2 इंच प्रति वर्ष की दर से पानी में समाता जा रहा है और नासा के 2016 के अध्ययनानुसार वर्ष 2100 तक इसका एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा.
प्रमुख कारण – निचले तटीय क्षेत्र, डेल्टा प्रदेश के नजदीक होना, समुद्री तूफानों का अधिकतम आना, भूजल दोहन, सतही जल निष्कासन इत्यादि.
PC - NASA, 2016 STUDY
4. हॉस्टन, टेक्सास का एक बड़ा हिस्सा लगभग 2 इंच प्रति वर्ष की दर से जलमग्न होता जा रहा है. डलास की साउथर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी की जियोफिजिकल टीम द्वारा की गयी रिसर्च बताती है कि धरती में चल रही अंदरूनी प्रतिक्रियाओं के कारण यहां बड़े बड़े सिंकहोल्स बन रहे हैं, जो एक बड़े खतरे का संकेत हैं.
प्रमुख कारण – अत्याधिक भूजल दोहन, जिसके चलते धरती में दबाव और घनत्व लगातार बढ़ रहा है. हालांकि हॉस्टन तटीय शहर नहीं है, इसलिए समुद्र के कारण यह नहीं डूब सकता, किन्तु यहां हरिकेन की संख्या बेहद अप्रत्याशित है, साथ ही लापरवाह मानवीय रवैये के चलते यहां जमीनी हलचल अधिक है, जिससे इसका कुछ हिस्सा आने वाले समय में डूब सकता है.
5. थाईलैंड की राजधानी बैंकाक भी लगातार प्रति वर्ष 1.5 सेमी की दर से डूब रहा है. जैसे जैसे गल्फ ऑफ थाईलैंड में इजाफ़ा (लगभग 4मीमी) होता जा रहा है, शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है.
प्रमुख कारण – अनियोजित शहरीकरण, तटीय क्षेत्र होना, लम्बे समय तक बनी रहने वाली वृहद् बाढ़. मुख्य रूप से वर्ष 2011 में आई बाढ़ ने बैंकाक को डूबने वाली राजधानी बनाने में बड़ी भूमिका निभाई.
नतीजा – 2011 की बाढ़ में बैंकाक के करोड़ों निवासियों को प्रभावित किया. इसे बैंकाक के इतिहास की सबसे भयावह बाढ़ के रूप में चिन्हित किया गया. बचाव के रूप में यहां तकरीबन 11 एकड़ में सेंटेनरी पार्क का निर्माण किया गया है, जो करोड़ों गैलन वर्षा जल को संगृहीत करने की क्षमता रखता है.
एक नजर भारतीय शहरों पर –
भारत में देखा जाये तो भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री जलस्तर बढ़ने के चलते तकरीबन 14,000 वर्ग किमी भूमि हर वर्ष जलमग्न हो जाती है. वहीँ भारत के कुछ प्रमुख शहर या तो तटीय क्षेत्र होने के कारण या फिर अर्बन प्लानिंग डिजास्टर का हिस्सा होने के कारण डूबने की कगार पर हैं. पर समस्या हर ओर है, मसलन...
1. मुंबई, तटीय क्षेत्र होने के चलते न केवल साइक्लोनिक गतिविधियों से जूझ रहा है, अपितु साथ ही अनियोजित निकासी के कारण इसके निचले हिस्से मानसूनी बारिश में जलमग्न हो जाते हैं. जिसका खामियाजा जनता को जान-माल का नुकसान झेल कर उठाना पड़ता है. वर्ष 2005 में आई मुंबई बाढ़ को भला कौन भूल सकता है, जिसने आर्थिक राजधानी की रफ़्तार को रोक दिया था.
2. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भी उन शहरों में शामिल है, जिनके भविष्य में डूब जाने का खतरा है. गंगा बेल्ट में होने के चलते यहां बाढ़ का खतरा अधिक है, साथ ही यह भूकंप श्रेणी 3 में आता है, जो बेहद संवेदनशील माना जाता है. यूएन रिपोर्ट के अनुसार समुद्री जलस्तर बढ़ने से वर्ष 2050 तक भारत के लगभग 40 मिलियन लोग प्रभावित होंगे, जिनमें मुंबई और कोलकाता सर्वाधिक प्रभावित होंगे.
3. ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियरों के परिणामस्वरुप कर्नाटका का मंगलौर शहर सबसे अधिक प्रभावित होगा. यूएस स्पेस एजेंसी की लैब में ग्रेडिएंट फिंगरप्रिंट मैपिंग के आधार पर हुई गणना के अनुसार मंगलौर शहर में अगले 100 वर्षों में 15.98 सेमी तक जलस्तर बढ़ेगा.
4. आंध्रप्रदेश का काकीनाडा भी वैश्विक तापमान वृद्धि के असर से प्रभावित हो रहा है और आगामी 100 वर्षों में यहाँ का जलस्तर 15.16 सेमी के आस पास तक बढ़ जाएगा, जो एक बड़ा खतरा होगा. फिलवक्त यह क्षेत्र साइक्लोनिक एक्टिविटीज और भूगर्भीय उथल पुथल के कारण सुर्ख़ियों में रहता है. वर्ष 2011 में यहां स्थित “श्यामला सदन” लगभग एक मंजिल तक धरती में धंस गया था.
प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
विचार मन में आना स्वाभाविक है कि ऐसा हुआ क्या कि कभी प्राकृतिक सुन्दरता का पर्याय रहे ये शहर आज गुमनाम होने की ओर बढ़ रहे हैं? सीधे लफ्जों में दोष ग्लोबल वार्मिंग के सर मढ़ दिया जाएगा, पर कभी सोचा है कि ग्लोबल वार्मिंग इतनी विकसित कैसे हो गयी कि इसने सूखे का पर्याय बन धरती से हरियाली छीन ली, तो बाढ़ के रूप में गांव-शहर निगलने पर आमादा है और तो और हमारे आसमान तक के सीने को इसने छलनी कर डाला (ओजोन लेयर होल).
कहीं का कहीं इन सब समस्याओं की जड़ में है वह विकास जो हमने अपने विलासिता के साधनों को बढ़ाने की एवज में किया है और आगे भी करते जा रहे हैं. मसलन स्मार्ट सिटीज बनाने के चलते हमने वन-उपवन का दायरा सीमित कर दिया.
बड़ी बड़ी आलीशान इमारतें खड़ी करके हमने अपनी धरती का दम घोट दिया, इतना कि वर्षा सिंचित जल भी उसकी कोख तक पहुंचने नहीं दिया जाता. वैज्ञानिक भाषा में कहे तो धरती में मौजूद प्राकृतिक एक़ुइफ़्र्स यानि जलभृत हमारे अव्यवस्थित संरचनात्मक शहरीकरण के चलते खत्म होते जा रहे हैं.
प्रकृति ने इंसान को बुद्धिमत्ता शायद इसीलिए प्रदान की थी कि वह प्रकृतिदत्त संसाधनों का इस्तेमाल संयमित होकर करेगा, किन्तु हुआ बिलकुल इसके उलट. हमने न केवल असंयमित होकर अन्न, जल, जंगल, जीवों, हरीतिमा को लील जाने की अति कर डाली अपितु हमारे असहनीय स्वाभाव और आधुनिक जीवनशैली के चलते प्रयोग किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, वाहनों, जीवाश्म ईधन, खान-पान की अस्थायी आदतों के कारण कार्बन फुटप्रिंट भी बेतहाशा बढ़ता चला जा रहा है.
निरंतर विध्वंसक स्वरुप दिखाते हुए प्रकृति हमें चेता रही है कि अभी भी समय बचा है और हमें परिवर्तन लाना ही होगा. 2013 की केदारनाथ आपदा हो या वर्ष 2018 में केरल में आई भयंकर बाढ़...ये सभी कहीं न कहीं हमें सबक दे रहे हैं कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना विनाश को बुलाने के समान होगा.
तो आप भी डूबतों को सहारा देने में अपना योगदान दीजिए, प्रयास करें कि आपका कार्बन फुटप्रिंट कम से कम हो ताकि ग्लोबल वार्मिंग में कुछ तो नरमी आए और आने वाली पीढ़ी आपको पर्यावरण विध्वंशक नहीं अपितु पर्यावरण मित्र के तौर पर याद रखे.
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