आज जहाँ भारत में गूगल का विस्तार बढ़ता जा रहा है, तो वहीँ आम जन अनभिज्ञता की वजह से और साथ ही सरकार और प्रबुद्ध जन के क्षणिक लाभ के चक्कर में गूगल को भारत एक खुले मैदान की तरह सजा कर परोसा जा रहा है.
जहाँ दुनिया में अपनी प्रगति, स्वतंत्रता, विचारधारा और पहचान कायम करने के लिए चीन और यूरोपियन यूनियन के देशों कि अपनी लम्बी रणनीति है, वहीँ भारत अपनी ऐतिहासिक गलतियाँ बिना किसी गहरी सोच के लगातार दोहरा रहा है. ये एक मज़ाक ही तो है जब देश का केंद्रीय मंत्रालय और इसका अपना साइबर सिक्योरिटी डिपार्टमेंट ऐसे जवाब देता है.
Note - यहाँ ये पूछा गया था की भारत से जो फेसबुक, ट्विटर, गूगल इत्यादि द्वारा डाटा इकठ्ठा किया जा रहा है वो किसके कंट्रोल में है?
गूगल को चाइना में नहीं जमने देने के पीछे ना सिर्फ वहां की सरकार बल्कि वहां के आम जन की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है जिन्होंने लम्बे समय तक गूगल का इस्तेमाल ही नहीं किया. कितना अद्भुत है ना वहां तकनीकी क्षेत्र के राष्ट्र परक लोग भी हैं. आज चाइना के लोग अपने देश कि लिये तकनीकी रीढ़ बन पाए हैं क्योंकि क्षणिक लाभ और थोड़े से दिखावे को भुला कर देश परक सोच को स्थान दिया है उन्होंने. आज अलीबाबा हो या baidu, दीदी (जिसने उबर को ख़रीदा) हो या उनके अपने मैसेजिंग ऐप. अभी हाल फ़िलहाल ही चाइना ने फेसबुक को देश से दोबारा खदेड़ कर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सबूत ही दिया है.
इसके उलट आज देखें तो भारत ने गूगल को, उसके पेमेंट गेटवे को, उसके मैप इत्यादि को ना सिर्फ भारत में जमने दिया बल्कि आम जन ने बिना कुछ सोचे समझे उसको लपका भी और अपने जीवन का हिस्सा भी बनाया. आज खबरों और आंकड़ों के मुताबिक "भीम ऐप" की जगह "गूगल तेज़" को प्राथमिकता दिया जाता है. हमारे यहाँ की निर्मित तकनीक को पनपने का मौका ही नहीं दिया जाता है यह हमारी मानसिक गुलामी और भ्रष्ट सोच की और ही इशारा करता है. जबतक गूगल है, तब तक मीडिया की सोच इसकी गुलामी करती रहेगी, और भारत का तकनीकी रीढ़ कभी नहीं बन पाएगी.
जो देश अपने बाज़ार में रोज़ बैठते एक छोटे व्यापारी से दस रूपए की लौकी भी नाखून चुभा कर खरीदता है, आज सात समुन्दर पार से आयी इतनी दीर्घ कालीन प्रभाव वाली तकनीक को बिना किसी सोच के आत्मसात करता है तो ये मानसिक गुलामी और आने वाले समय के दीनता की और ही इशारा करता है.
जानें यूरोप ने क्या किया
वश्विक मार्किट में अपने प्रभुत्त्व का गलत फायदा उठाने के चलते यूरोपीय संघ द्वारा 18 जुलाई, 2018 को गूगल पर 5 बिलियन डॉलर का भारी जुर्माना लगाया गया है. मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रायड की
सहभागीदारी में अन्य मोबाइल कंपनियों को हाशिये पर धकेलने के आरोप में गूगल पर 4.3 बिलियन यूरो (लगभग 373
अरब रुपये) का
स्पर्धा-रोधी जुर्माना लगाने की घोषणा की है. यूरोपीय संघ की प्रतिस्पर्धा आयुक्त
मार्गरेट वेस्टगर ने गूगल के सी.ई.ओ. सुंदर पिचाई को कार्यवाही की अग्रिम जानकारी
दी.
इससे यह कयास
लगाया जा रहा है कि अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के मध्य पहले से पसरा व्यवसायिक
तनाव अधिक गहरा सकता है. इससे पूर्व भी ईयू ने सिलिकॉन वैली की विशालतम कंपनियों
एप्पल और फेसबुक पर मानकों का खंडन करने के चलते भारी जुर्माना लगाया था. अब गूगल
की मूल कंपनी एल्फाबेट को 90 दिनों के भीतर या तो उन पक्षपाती गतिविधियों को बंद करना होगा अथवा उसे औसत दैनिक राजस्व का 5 प्रतिशत जुर्माना के तौर पर भुगतान
करना होगा.
जुर्माना लगाए जाने के प्रमुख कारण :-
1. गूगल द्वारा अन्य मोबाइल निर्माताओं और
मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों को आर्थिक प्रलोभन दिया गया, जिससे वें गूगल सर्च को ही
पूर्व- स्थापित विकल्प (गूगल क्रोम) के तौर पर रखें.
2.
मोबाइल
निर्माताओं को एंड्रायड के ओपन सोर्स कोड पर आधारित प्रतिस्पर्धी ऑपरेटिंग सिस्टम वाले मोबाइल फोन को विक्रय से
रोका गया, यानि अन्य विकल्पों को प्रमुखता नहीं दी गयी.
3. यूरोपियन यूनियन की कार्यकारी शाखा यूरोपियन
संघ द्वारा अपने निर्णय में तथ्य रखे गये कि गूगल अवैध रूप से नए हैंडसेट के
अंतर्गत प्ले- स्टोर तक पहुंचने से पहले अपने ही सर्च इंजन को प्रमुखता देकर
डिफ़ॉल्ट सेट करने के लिए एंड्राइड हैंडसेट व टेबलेट निर्माताओं को विवश करता है.
4.
पहले से स्थापित ऐप्स के जरिये गूगल विज्ञापन लक्षित तकनीकों का उपयोग
अपने मुनाफे के लिए करता है.
5.
सैमसंग और
हुवेई स्मार्टफ़ोन कंपनियों के निर्माताओं द्वारा भी आरोप लगाए गये कि गूगल ने
उन्हें फ़ोन में बहुत से ऐप्स प्री-इंस्टाल करने के लिए मजबूर किया.
6. गूगल के विशेषीकृत बिजनेस ढांचे के अंतर्गत उपयोगकर्ताओं तक विज्ञापनदाताओं की आसान पहुंच बनाने के लिए
अपने एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम का दुरूपयोग किया गया.
यूरोपियन प्रतिस्पर्धा
संघ द्वारा दिए गये बयान :-
यूरोपीयन यूनियन के अधिकारियों का कहना है कि गूगल की मूल कंपनी एल्फाबेट ने स्मार्टफोन
निर्माताओं को गूगल ऐप को प्री-इंस्टॉल करने और अपने ऐप स्टोर, प्ले स्टोर आदि के
साथ संयुक्त रूप से खोज करने के लिए मजबूर कर अपनी सेवाओं का अनुचित तरीके से उपयोग
किया है. यह भी कहा गया है कि गूगल ने फोन
निर्माताओं को अपने डिवाइस पर गूगल सर्च को पूर्व-स्थापित करने और अन्य संशोधित या द्विशाखित संस्करणों को चलाने वाले एंड्राइड फोन्स को बेचने से रोकने के लिए प्रतिस्पर्धा के नियमों का उल्लंघन किया.
यूरोपियन उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए संघ
द्वारा जारी किये गये बयान में प्रतिस्पर्धा के
लिए ईयू आयुक्त मार्गरेट वेस्टगर ने कहा कि:
“गूगल के पास ऐसे उत्पाद हैं, जिन्हें हम सभी पसंद करते हैं और उपयोग भी करते हैं, परन्तु वह एकमात्र चीज जो हमें नापसंद है, वह यह कि वे अपनी सफलता का दुरुपयोग करते हैं और अन्य कंपनियों के खिलाफ पक्षपाती हो जाते हैं. अब गूगल को निश्चित रूप से रुक जाना चाहिए."
हाल ही में हुए एक समाचार सम्मेलन में भी यूरोपीय संघ की प्रतिस्पर्धा आयुक्त मार्गरेथ
वेस्टर ने निर्णय में प्रस्तुत तर्क को दोहराते हुए कहा कि:
"हमारा निर्णय गूगल को यह नियंत्रित करने से रोकता है कि सर्च एवं ब्राउज़र ऐप्स निर्माता एंड्रॉइड डिवाइस पर कौन से ऐप्स को प्री-इंस्टॉल कर सकते हैं या किस प्रकार के एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम को अपना सकते हैं."
गूगल पर आरोपों
से जुड़ी पृष्ठभूमि :-
यूरोपियन यूनियन की कॉम्पिटीशन कमिश्नर मार्गरेट वैस्टेजर इससे
पहले भी 'शॉपिंग कॉम्पैरिज़न सर्विस' के मामले में गूगल पर 2.4 अरब यूरो का जुर्माना लगा चुकी हैं. गूगल ने
उस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की थी, जिस पर सुनवाई अभी भी जारी है.
केवल यही नहीं, कमीशन गूगल की सर्च विज्ञापन सेवा ऐडसेंस को लेकर भी स्पर्धा- रोधी जांच कर रही
है. इस मामले में गूगल पर आरोप है कि उसने अपनी शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल करके
सर्च नतीजों में अपनी ख़रीदारी सर्विस का ज़्यादा प्रचार किया.
वर्ष 2013 में
फेयरसर्च के अंतर्गत नोकिया, औरेकल और माइक्रोसॉफ्ट आदि मोबाइल निर्माता कंपनियों
ने गूगल के बाजार पर एकाधिकार को लेकर सर्वप्रथम आवाज़ उठाई थी. माइक्रोसॉफ्ट के तत्कालिक सीईओ स्टीव बाल्मर ने भी कहा था कि
गूगल ने बाज़ार पर एकाधिकार कर लिया है और इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए.
गूगल ने अपने बचाव में दिए तर्क :-
गूगल ने अपने समर्थन में बयान देते हुए कहा कि वह यूरोपीय संघ के इस सत्तारूढ़ विचार के खिलाफ बहस
करेगा और साबित करेगा कि उनका सॉफ्टवेयर निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए पूर्णत: समर्पित
है. गूगल के प्रवक्ता अल वर्नी ने इसके खिलाफ अपील करने की बात रखते हुए कहा कि एंड्रायड ने लोगों के लिए
अधिक अवसर
सृजित किए हैं, बगैर किसी पक्षपात के. गूगल द्वारा उपलब्ध करायी गयी मजबूत
परिस्थितियां, तीव्र नवाचार और कम कीमतें बेहतर प्रतिस्पर्धा के पारंपरिक सूचक
हैं.
अपने एक ब्लॉग पोस्ट में गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने लिखा कि,
"आयोग ने आईफोन के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले मुख्य तथ्यों को ही नजरअंदाज कर दिया और इस निर्णय में फोन निर्माताओं, मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों, ऐप डेवलपर्स और उपभोक्ताओं की पसंद-नापसंद पर भी विचार नहीं किया."
उन्होंने कंपनी के ऐप बंडलिंग का भी बचाव करते हुए तर्क
दिया कि उपयोगकर्ताओं के लिए अन्य विकल्पों को इंस्टॉल करना आसान है, यदि वे गूगल के
पूर्व-स्थापित विकल्पों का उपयोग नहीं करना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि
यूरोपीय संघ के फैसले ने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ उनके संतुलन को भी अस्तव्यस्त
कर दिया है. कंपनी फोन निर्माताओं को ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का मुफ्त में उपयोग करने
देती है, लेकिन जब
उपभोक्ता उनके ऐप्स का उपयोग करते हैं तो इससे विज्ञापन राजस्व उत्पन्न होता है.
भारत में गूगल के स्पर्धा-रोधी व्यव्हार से जुड़ा मामला :-
फरवरी 2018 में
मैट्रीमनी.कॉम और कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसायटी की शिकायत पर भारतीय
प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) विश्व के
सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल पर
भारतीय बाजार में अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए 136 करोड़ रुपये
का जुर्माना लगा चुकी है. जिस पर अप्रैल में राष्ट्रीय कंपनी
विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) द्वारा रोक
लगा दी गयी थी और आगे सुनवाई के आदेश भी दिए गये थे. साथ ही न्यायमूर्ति
एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली एनसीएलएटी पीठ ने सीसीआई के आदेश के खिलाफ
गूगल की याचिका स्वीकार करते हुए दिग्गज सर्च इंजन कंपनी को जुर्माने की 10 प्रतिशत राशि चार हफ्ते में जमा
करने के निर्देश दिए गये थे.
वैश्विक रूप से गूगल का बढ़ता
एकाधिकार वास्तव में चिंतन का विषय है, जिस पर वाकई हर देश को गौर किये जाने की
विशेष आवश्यकता है. गूगल पहले से ही अमेरिकी सैन्य कार्यवाहियों में अपनी आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस सेवाएं देने के चलते विश्व भर के टेक-अनुभवी विशेषज्ञों की आँखों में
खटक रहा है, ऐसे में ईयू के निर्धारित मानकों के खिलाफ वातावरण निर्मित कर गूगल ने
अपनी मुश्किलें अधिक बढ़ा ली है. हालांकि यह मामला अभी काफी वक्त तक चल सकता है,
परन्तु गूगल की आधिपत्य नीतियों के खिलाफ धीरे धीरे ही सही, पर आवाज़ उठाना एक
अच्छा संकेत माना जा सकता है. फिलवक्त जीडीपीआर के चलते यूरोपियन यूनियन के संदर्भ
में तो सिलिकॉन वैली की इन भीमकाय कंपनियों की एकतरफा रणनीतियों पर कुछ हद तक तो
रोक लग ही सकती है, बशर्तें कानूनों का पालन उचित तौर पर किया जाए. स्वाभविक रूप
से आशा यही की जा सकती है कि भारत में भी, जहां स्मार्टफ़ोन के उपयोगकर्ता तेजी से
बढ़ रहे हैं, एंड्राइड सिस्टम और डेटा सम्बन्धी नियमों को कठोर करके इन कंपनियों की
एकाधिपत्य की नीतियों पर अंकुश लगाया जा सके.
आम नागरिक इसकी गंभीरता को समझने के लिए आज मार्किट में बिना एंड्राइड का और बिना गूगल ट्रैकिंग वाला फ़ोन ख़रीद कर दिखाएँ, मुद्दा अपने आप समझ में आ जाएगा.
By Deepika Chaudhary Contributors Rakesh Prasad {{descmodel.currdesc.readstats }}
आज जहाँ भारत में गूगल का विस्तार बढ़ता जा रहा है, तो वहीँ आम जन अनभिज्ञता की वजह से और साथ ही सरकार और प्रबुद्ध जन के क्षणिक लाभ के चक्कर में गूगल को भारत एक खुले मैदान की तरह सजा कर परोसा जा रहा है.
जहाँ दुनिया में अपनी प्रगति, स्वतंत्रता, विचारधारा और पहचान कायम करने के लिए चीन और यूरोपियन यूनियन के देशों कि अपनी लम्बी रणनीति है, वहीँ भारत अपनी ऐतिहासिक गलतियाँ बिना किसी गहरी सोच के लगातार दोहरा रहा है. ये एक मज़ाक ही तो है जब देश का केंद्रीय मंत्रालय और इसका अपना साइबर सिक्योरिटी डिपार्टमेंट ऐसे जवाब देता है.
Note - यहाँ ये पूछा गया था की भारत से जो फेसबुक, ट्विटर, गूगल इत्यादि द्वारा डाटा इकठ्ठा किया जा रहा है वो किसके कंट्रोल में है?
गूगल को चाइना में नहीं जमने देने के पीछे ना सिर्फ वहां की सरकार बल्कि वहां के आम जन की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है जिन्होंने लम्बे समय तक गूगल का इस्तेमाल ही नहीं किया. कितना अद्भुत है ना वहां तकनीकी क्षेत्र के राष्ट्र परक लोग भी हैं. आज चाइना के लोग अपने देश कि लिये तकनीकी रीढ़ बन पाए हैं क्योंकि क्षणिक लाभ और थोड़े से दिखावे को भुला कर देश परक सोच को स्थान दिया है उन्होंने. आज अलीबाबा हो या baidu, दीदी (जिसने उबर को ख़रीदा) हो या उनके अपने मैसेजिंग ऐप. अभी हाल फ़िलहाल ही चाइना ने फेसबुक को देश से दोबारा खदेड़ कर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सबूत ही दिया है.
इसके उलट आज देखें तो भारत ने गूगल को, उसके पेमेंट गेटवे को, उसके मैप इत्यादि को ना सिर्फ भारत में जमने दिया बल्कि आम जन ने बिना कुछ सोचे समझे उसको लपका भी और अपने जीवन का हिस्सा भी बनाया. आज खबरों और आंकड़ों के मुताबिक "भीम ऐप" की जगह "गूगल तेज़" को प्राथमिकता दिया जाता है. हमारे यहाँ की निर्मित तकनीक को पनपने का मौका ही नहीं दिया जाता है यह हमारी मानसिक गुलामी और भ्रष्ट सोच की और ही इशारा करता है. जबतक गूगल है, तब तक मीडिया की सोच इसकी गुलामी करती रहेगी, और भारत का तकनीकी रीढ़ कभी नहीं बन पाएगी.
जो देश अपने बाज़ार में रोज़ बैठते एक छोटे व्यापारी से दस रूपए की लौकी भी नाखून चुभा कर खरीदता है, आज सात समुन्दर पार से आयी इतनी दीर्घ कालीन प्रभाव वाली तकनीक को बिना किसी सोच के आत्मसात करता है तो ये मानसिक गुलामी और आने वाले समय के दीनता की और ही इशारा करता है.
जानें यूरोप ने क्या किया
वश्विक मार्किट में अपने प्रभुत्त्व का गलत फायदा उठाने के चलते यूरोपीय संघ द्वारा 18 जुलाई, 2018 को गूगल पर 5 बिलियन डॉलर का भारी जुर्माना लगाया गया है. मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रायड की सहभागीदारी में अन्य मोबाइल कंपनियों को हाशिये पर धकेलने के आरोप में गूगल पर 4.3 बिलियन यूरो (लगभग 373 अरब रुपये) का स्पर्धा-रोधी जुर्माना लगाने की घोषणा की है. यूरोपीय संघ की प्रतिस्पर्धा आयुक्त मार्गरेट वेस्टगर ने गूगल के सी.ई.ओ. सुंदर पिचाई को कार्यवाही की अग्रिम जानकारी दी.
इससे यह कयास लगाया जा रहा है कि अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के मध्य पहले से पसरा व्यवसायिक तनाव अधिक गहरा सकता है. इससे पूर्व भी ईयू ने सिलिकॉन वैली की विशालतम कंपनियों एप्पल और फेसबुक पर मानकों का खंडन करने के चलते भारी जुर्माना लगाया था. अब गूगल की मूल कंपनी एल्फाबेट को 90 दिनों के भीतर या तो उन पक्षपाती गतिविधियों को बंद करना होगा अथवा उसे औसत दैनिक राजस्व का 5 प्रतिशत जुर्माना के तौर पर भुगतान करना होगा.
जुर्माना लगाए जाने के प्रमुख कारण :-
1. गूगल द्वारा अन्य मोबाइल निर्माताओं और मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों को आर्थिक प्रलोभन दिया गया, जिससे वें गूगल सर्च को ही पूर्व- स्थापित विकल्प (गूगल क्रोम) के तौर पर रखें.
2. मोबाइल निर्माताओं को एंड्रायड के ओपन सोर्स कोड पर आधारित प्रतिस्पर्धी ऑपरेटिंग सिस्टम वाले मोबाइल फोन को विक्रय से रोका गया, यानि अन्य विकल्पों को प्रमुखता नहीं दी गयी.
3. यूरोपियन यूनियन की कार्यकारी शाखा यूरोपियन संघ द्वारा अपने निर्णय में तथ्य रखे गये कि गूगल अवैध रूप से नए हैंडसेट के अंतर्गत प्ले- स्टोर तक पहुंचने से पहले अपने ही सर्च इंजन को प्रमुखता देकर डिफ़ॉल्ट सेट करने के लिए एंड्राइड हैंडसेट व टेबलेट निर्माताओं को विवश करता है.
4. पहले से स्थापित ऐप्स के जरिये गूगल विज्ञापन लक्षित तकनीकों का उपयोग अपने मुनाफे के लिए करता है.
5. सैमसंग और हुवेई स्मार्टफ़ोन कंपनियों के निर्माताओं द्वारा भी आरोप लगाए गये कि गूगल ने उन्हें फ़ोन में बहुत से ऐप्स प्री-इंस्टाल करने के लिए मजबूर किया.
6. गूगल के विशेषीकृत बिजनेस ढांचे के अंतर्गत उपयोगकर्ताओं तक विज्ञापनदाताओं की आसान पहुंच बनाने के लिए अपने एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम का दुरूपयोग किया गया.
यूरोपियन प्रतिस्पर्धा संघ द्वारा दिए गये बयान :-
यूरोपीयन यूनियन के अधिकारियों का कहना है कि गूगल की मूल कंपनी एल्फाबेट ने स्मार्टफोन निर्माताओं को गूगल ऐप को प्री-इंस्टॉल करने और अपने ऐप स्टोर, प्ले स्टोर आदि के साथ संयुक्त रूप से खोज करने के लिए मजबूर कर अपनी सेवाओं का अनुचित तरीके से उपयोग किया है. यह भी कहा गया है कि गूगल ने फोन निर्माताओं को अपने डिवाइस पर गूगल सर्च को पूर्व-स्थापित करने और अन्य संशोधित या द्विशाखित संस्करणों को चलाने वाले एंड्राइड फोन्स को बेचने से रोकने के लिए प्रतिस्पर्धा के नियमों का उल्लंघन किया.
यूरोपियन उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए संघ द्वारा जारी किये गये बयान में प्रतिस्पर्धा के लिए ईयू आयुक्त मार्गरेट वेस्टगर ने कहा कि:
हाल ही में हुए एक समाचार सम्मेलन में भी यूरोपीय संघ की प्रतिस्पर्धा आयुक्त मार्गरेथ वेस्टर ने निर्णय में प्रस्तुत तर्क को दोहराते हुए कहा कि:
गूगल पर आरोपों से जुड़ी पृष्ठभूमि :-
यूरोपियन यूनियन की कॉम्पिटीशन कमिश्नर मार्गरेट वैस्टेजर इससे पहले भी 'शॉपिंग कॉम्पैरिज़न सर्विस' के मामले में गूगल पर 2.4 अरब यूरो का जुर्माना लगा चुकी हैं. गूगल ने उस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की थी, जिस पर सुनवाई अभी भी जारी है.
केवल यही नहीं, कमीशन गूगल की सर्च विज्ञापन सेवा ऐडसेंस को लेकर भी स्पर्धा- रोधी जांच कर रही है. इस मामले में गूगल पर आरोप है कि उसने अपनी शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल करके सर्च नतीजों में अपनी ख़रीदारी सर्विस का ज़्यादा प्रचार किया.
वर्ष 2013 में फेयरसर्च के अंतर्गत नोकिया, औरेकल और माइक्रोसॉफ्ट आदि मोबाइल निर्माता कंपनियों ने गूगल के बाजार पर एकाधिकार को लेकर सर्वप्रथम आवाज़ उठाई थी. माइक्रोसॉफ्ट के तत्कालिक सीईओ स्टीव बाल्मर ने भी कहा था कि गूगल ने बाज़ार पर एकाधिकार कर लिया है और इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए.
गूगल ने अपने बचाव में दिए तर्क :-
गूगल ने अपने समर्थन में बयान देते हुए कहा कि वह यूरोपीय संघ के इस सत्तारूढ़ विचार के खिलाफ बहस करेगा और साबित करेगा कि उनका सॉफ्टवेयर निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए पूर्णत: समर्पित है. गूगल के प्रवक्ता अल वर्नी ने इसके खिलाफ अपील करने की बात रखते हुए कहा कि एंड्रायड ने लोगों के लिए अधिक अवसर सृजित किए हैं, बगैर किसी पक्षपात के. गूगल द्वारा उपलब्ध करायी गयी मजबूत परिस्थितियां, तीव्र नवाचार और कम कीमतें बेहतर प्रतिस्पर्धा के पारंपरिक सूचक हैं.
अपने एक ब्लॉग पोस्ट में गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने लिखा कि,
उन्होंने कंपनी के ऐप बंडलिंग का भी बचाव करते हुए तर्क दिया कि उपयोगकर्ताओं के लिए अन्य विकल्पों को इंस्टॉल करना आसान है, यदि वे गूगल के पूर्व-स्थापित विकल्पों का उपयोग नहीं करना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के फैसले ने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ उनके संतुलन को भी अस्तव्यस्त कर दिया है. कंपनी फोन निर्माताओं को ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का मुफ्त में उपयोग करने देती है, लेकिन जब उपभोक्ता उनके ऐप्स का उपयोग करते हैं तो इससे विज्ञापन राजस्व उत्पन्न होता है.
भारत में गूगल के स्पर्धा-रोधी व्यव्हार से जुड़ा मामला :-
फरवरी 2018 में मैट्रीमनी.कॉम और कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसायटी की शिकायत पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) विश्व के सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल पर भारतीय बाजार में अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए 136 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुकी है. जिस पर अप्रैल में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) द्वारा रोक लगा दी गयी थी और आगे सुनवाई के आदेश भी दिए गये थे. साथ ही न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली एनसीएलएटी पीठ ने सीसीआई के आदेश के खिलाफ गूगल की याचिका स्वीकार करते हुए दिग्गज सर्च इंजन कंपनी को जुर्माने की 10 प्रतिशत राशि चार हफ्ते में जमा करने के निर्देश दिए गये थे.
वैश्विक रूप से गूगल का बढ़ता एकाधिकार वास्तव में चिंतन का विषय है, जिस पर वाकई हर देश को गौर किये जाने की विशेष आवश्यकता है. गूगल पहले से ही अमेरिकी सैन्य कार्यवाहियों में अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेवाएं देने के चलते विश्व भर के टेक-अनुभवी विशेषज्ञों की आँखों में खटक रहा है, ऐसे में ईयू के निर्धारित मानकों के खिलाफ वातावरण निर्मित कर गूगल ने अपनी मुश्किलें अधिक बढ़ा ली है. हालांकि यह मामला अभी काफी वक्त तक चल सकता है, परन्तु गूगल की आधिपत्य नीतियों के खिलाफ धीरे धीरे ही सही, पर आवाज़ उठाना एक अच्छा संकेत माना जा सकता है. फिलवक्त जीडीपीआर के चलते यूरोपियन यूनियन के संदर्भ में तो सिलिकॉन वैली की इन भीमकाय कंपनियों की एकतरफा रणनीतियों पर कुछ हद तक तो रोक लग ही सकती है, बशर्तें कानूनों का पालन उचित तौर पर किया जाए. स्वाभविक रूप से आशा यही की जा सकती है कि भारत में भी, जहां स्मार्टफ़ोन के उपयोगकर्ता तेजी से बढ़ रहे हैं, एंड्राइड सिस्टम और डेटा सम्बन्धी नियमों को कठोर करके इन कंपनियों की एकाधिपत्य की नीतियों पर अंकुश लगाया जा सके.
आम नागरिक इसकी गंभीरता को समझने के लिए आज मार्किट में बिना एंड्राइड का और बिना गूगल ट्रैकिंग वाला फ़ोन ख़रीद कर दिखाएँ, मुद्दा अपने आप समझ में आ जाएगा.
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