हाल ही में महादेव की नगरी वाराणसी में विश्वनाथधाम के लोकार्पण के बाद आयोजित सभा में पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि "यहां अगर औरंगजेब आता है, तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं।" हालांकि ऐतिहासिक या सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से देखें तो पंक्ति भारतीय संदर्भ में यथार्थ है लेकिन समय, परिस्थिति और देशकाल के लिहाज से देखा जाए तो प्रधानमंत्री महोदय का यह भाषण बहुत से प्रश्न खड़े करता है। आजादी से अब तक 74 सालों में जिस देश को हम हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान और जातिगत हिंसा के फेर से नहीं निकाल पाएं हों वहां चुनावों से ऐन पहले देश के प्रतिनिधि के यह बोल एक अलग ही संदेश प्रसारित कर जाते हैं। नतीजतन राजनीति के गलियारों को चर्चा का एक नया विषय मिल जाता है और विभिन्न प्रतिक्रियाएं निकल कर सामने आने लगती हैं।
देखा जाएं तो पीएम के इस भाषण सबसे ज्यादा तूल जब मिल जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज करते हुए कहा कि अंतिम समय पर काशी से अच्छी जगह कोई और नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री को एक महीने के बजाय तीन महीने तक बनारस में रहना चाहिए। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान सामने आते ही पक्ष-विपक्ष की तीखी टिप्पणियों को हवा मिल गई और नई पॉलिटीकल कोन्टरोवर्सी निकल आई। अब बात निकली है, तो बातें तो बनेंगी ही..की तर्ज पर सत्ता के गलियारों में हलचल बढ़ गई है। नेताओं द्वारा एक दूसरे पर टिप्पणी या कटाक्ष करना हालांकि कोई नई बात नहीं है लेकिन भारत में यह टिप्पणी कल्चर जिस तरह बढ़ रहा है वह विचारणीय जरूर है।
इस मामले को लेकर विभिन्न दलों के नेताओं ने अपने विचार रखें हैं, आइए देखतें हैं कि इन टिप्पणियों पर नेताओं की क्या राय है, वह किसे सही और किसे गलत मानते हैं और राजनीति में कटाक्षों की इस परंपरा पर उनकी प्रतिक्रिया क्या है..
चुनावी लाभ के लिए देश को विभाजित करने वाला पीएम का वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण - आशुतोष पांडे (जिलाध्यक्ष, आप, कानपुर देहात)
"मैं समझता हूँ कि पीएम किसी एक वर्ग या समाज के नहीं हैं बल्कि सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करते हैं और यदि उनके संबोधन में कहीं भी यह दिखाई देता है कि हमारे देश में कहीं न कहीं एक विभाजन की लकीर है तो यह सरासर गलत है। इतने बड़े पद और ओहदे पर होने के बाद उनका यह वक्तव्य हमारे देश व समाज को विभाजित और कमजोर करता है। औरंगजेब के अलावा भी अनेकों विदेशी आक्रमणकारी भारत आए, जिन्होंने देश को राजनीतिक, सामाजिक तौर पर प्रभावित किया, लेकिन यह एक अलग ऐतिहासिक अवलोकन का विषय है। पीएम महोदय के द्वारा प्रत्येक वक्तव्य में शिवाजी का जिक्र करना यह संदेश देता है कि देश के सामाजिक ढांचे को एक दायरे में रख कर देखा जाए। चुनावी लाभ के लिए यह वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण है, हमें वर्तमान में शिक्षा, स्वास्थ्य, सैन्य सुरक्षा, मजबूती व विकास की बातें करनी चाहिए लेकिन इन सभी बातों को न करके यह सभी वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण हैं। उन्हें इस प्रकार के विभाजित करने वाले बयानों से बचना चाहिए और यदि आप एक लोकप्रिय व्यक्ति हैं तो उन्हें सारे देश को एकजुट करके चलना चाहिए।"
"अखिलेश जी पर कहूंगा कि वह मुख्यमंत्री रहें हैं, मुलायम सिंह यादव जी के सुपुत्र हैं, तो उसका असर उनके बयानों में कहीं न कहीं दिखाई देता है। वह सेकंडरी स्तर की राजनीति कर रहे हैं, जिसमें जनता के मुद्दे नहीं हैं। उनके काम करने का तरीका बेहद सीमित है और राजनीति का आधार जातिगत रहा है। इसी कारण ही प्रदेश में भाजपा एक विकल्प के तौर पर निकल कर आई लेकिन वर्तमान में यदि सपा को आगे आना है तो उन्हें भी हर वर्ग को साथ लेकर चलना चाहिए। उनका औरंगजेब वाले वक्तव्य पर दिया गया राजनीतिक बयान उचित नहीं था, बाद में भले ही उन्होंने सफाई पेश की लेकिन राजनीति में इस प्रकार के स्टैटमेंट देने से बचना चाहिए। क्योंकि राजनीति में योगदान प्रत्येक व्यक्ति अपनी विचारधारा के अनुसार करता है और सत्ता प्राप्त करने के लिए नकारात्मक वक्तव्य व्यक्ति की कमजोरी और बौखलाहट को दर्शाते हैं। ऐसे वक्तव्यों से पार्टी को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलता है, इसके लिए जनता की समस्याओं के लिए लड़ना पड़ता है, 30 वर्षों में सपा, बसपा केवल राजनीतिक मुद्दों पर ही आवाज उठा रही हैं।"
काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन नहीं बल्कि प्रदर्शन करने आए थे पीएम मोदी - डॉ जनक कुशवाहा (प्रदेश सचिव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी)
"यह देश सबका है और काशी तो स्वयं प्रधानमंत्री जी का लोकसभा क्षेत्र है। उनके आने का बहुत बहुत धन्यवाद लेकिन वह यहां दर्शन करने नहीं आए बल्कि प्रदर्शन करने आए थे। गंगा जी में अकेले पीएम मोदी का स्नान करना भी उनका सनातनी धर्म का प्रदर्शन करना है। काशी विश्वनाथ मंदिर और मां गंगा करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा के प्रतीक हैं लेकिन जिस तरह प्रधानमंत्री जी ने वहां दर्शन के स्थान पर प्रदर्शन किया, वह निंदनीय है। उस पर अखिलेश यादव ने उनके राजनीतिक दिनों के अंतिम समय की बात की, तो वह मुझे कहीं से अनुचित नहीं लगा क्योंकि वह पीएम पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं कर रहे थे। उनके बयान को देश की मीडिया ने तोड़मरोड़ कर दिखाया। हमारा मानना है कि हमारी भारतीय संस्कृति का आप सम्मान करें, दर्शन करें न कि वहां जाकर प्रदर्शन करें। आने वाले चुनावों में भाजपा 50 सीटों से भी कम में सिमट जाएगी और माननीय प्रियंका गांधी जी के नेतृत्व में कॉंग्रेस का नया राजनीतिक उदय यहां होगा।"
हिंदू-मुस्लिमों की भावनाओं में आग लगाकर राजनीति की रोटियां सेंकना चाहते हैं हमारे प्रधानमंत्री - उपेन्द्र साहनी (राष्ट्रीय जन्सम्भावना पार्टी)"
प्रधानमंत्री जी ने चुनावों से ठीक पहले काशी में "औरंगजेब और शिवाजी" को लेकर जो बयान दिया, इसका क्या मतलब है, इसका अर्थ यह है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी हिंदू-मुसलमानों की भावनाओं में आग लगाकर उसके धुएं के पीछे राजनीति की रोटियां सेंकेने का काम करना चाहते हैं। लेकिन यूपी के साथ साथ समस्त देश की जनता इनके चाल ढाल को समझ चुकी है। एक बार लोगों को बरगलाकर उन्होंने देश-प्रदेश में सरकार बना ली और फिर देश की बड़ी संपत्ति को बेच डाला लेकिन इस बार उनकी चालों में कोई आने वाला नहीं है। इनके भाषणों में सिर्फ हिंदू-मुस्लिम, हिंदुस्तान-पाकिस्तान, मंदिर-मस्जिद ही रहता है, और कुछ नहीं होता है। यदि इन विषयों को इनके भाषण से हटा दिया जाए तो इनके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। इस बार जनता के हाथों इन्हें मुंह की खानी पड़ेगी। इस बार राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी पूरे पांचों राज्यों में अपना प्रत्याशी उतारेंगे और जीतेंगे भी क्योंकि हमारे समर्थन में हर जाति, हर मजहब से लोग खड़े हैं।
"यूपी चुनावों में हार के डर से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कर रहे हैं प्रधानमंत्री - सच्चिदानंद श्रीवास्तव (अध्यक्ष, समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा)
समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष के नाते मैं केवल यह कहना चाहूंगा कि एक तो प्रधानमंत्री जी को बहुत डर सता रहा है कि वह यूपी चुनावों में हार जाएंगे इसलिए वह हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करके रणनीति बना रहे हैं। उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी और उनकी टीम पर भी विश्वास नहीं है इलसिए लगातार उनका यूपी दौरा चल रहा है। दूसरी चीज यह है कि लोग अब समझने लगे हैं कि प्रधानमंत्री झूठ बोलकर लोगों को बहलाते है, हाल ही में मैं पूर्वांचाल में लक्ष्मीनगर चीनी मिल पर था, जहां पीएम के खिलाफ लोगों में असंतोष साफ झलक रहा था। उन्होंने 2014 में कुशीनगर में आकर कहा था कि 100 दिनों में द्रोणा चीनी मिल चलवा देंगे लेकिन कुशीनगर जिले की पांच मिलें बंद पड़ी है और इसी मुद्दे पर लक्ष्मीनगर चीनी मिल पर धरना चल रहा है। वहां के व्यापारी, किसान, मजदूर सभी एकजुट होकर बाजार बंद कर रहे हैं और परेशान हैं लेकिन वहीं शराब के कारखानों का उद्घाटन यहां लगातार चल रहा है।
दूसरी बात समाजवादी पार्टी को भी हार का डर सता रहा है क्योंकि 2017 के चुनावों में सपा हाशिये पर खड़ी थी। पीएम के औरंगजेब वाले भाषण पर टिप्पणी से अखिलेश यादव की मंशा यहां मरने जीने से नहीं थी, बल्कि वह भाजपा के अंतिम समय की बात यहां कर रहे थे। वहीं इस प्रतिक्रिया पर भाजपा नेताओं ने भी तरह तरह की बयानबाजी की। इन सभी से यही निचोड़ निकलता है कि यह सभी बड़े राजनैतिक दल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फंड से चलाए जा रहे हैं इसलिए दोनों ही दल एकदूसरे पर छींटाकशी जारी रखे हुए हैं क्योंकि दोनों को ही 2022 के चुनावों में सत्ता खोने का डर है। दोनों ही दलों के नेता निरंतर बैनर, पोस्टर, यात्राओं आदि के जरिए प्रचार करने में जुटे हैं और पूंजीपतियों का पैसा यहां बहाया जा रहा है। हमारा कहना है कि जिस देश में 30 प्रतिशत गरीबी है आप उसे विकसित नहीं कह सकते हैं। यदि केवल योगी जी के गोरखपुर और मोदी जी काशी की ही बात करें तो यह जो सड़कों के विकास की बात करते हुए उनपर हवाई जहाज उतारने की बात बोलते हैं तो मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि यदि आप गोरखपुर या कुशीनगर जिले के किसी स्थान से आप बनारस जाएं तो बमुश्किल 15-20 किमी की औसत गति वाहनों की रहती है और ऐसी सड़कों पर हवाई जहाज उतारने की बात करना बेमानी है। इसलिए अब बीजेपी औरंगजेब, शिवाजी इत्यादि की बातें करके हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जरिए वोट बैंक साधने का प्रयास कर रही है।
By Deepika Chaudhary Contributors Swarntabh Kumar 0
हाल ही में महादेव की नगरी वाराणसी में विश्वनाथधाम के लोकार्पण के बाद आयोजित सभा में पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि "यहां अगर औरंगजेब आता है, तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं।" हालांकि ऐतिहासिक या सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से देखें तो पंक्ति भारतीय संदर्भ में यथार्थ है लेकिन समय, परिस्थिति और देशकाल के लिहाज से देखा जाए तो प्रधानमंत्री महोदय का यह भाषण बहुत से प्रश्न खड़े करता है। आजादी से अब तक 74 सालों में जिस देश को हम हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान और जातिगत हिंसा के फेर से नहीं निकाल पाएं हों वहां चुनावों से ऐन पहले देश के प्रतिनिधि के यह बोल एक अलग ही संदेश प्रसारित कर जाते हैं। नतीजतन राजनीति के गलियारों को चर्चा का एक नया विषय मिल जाता है और विभिन्न प्रतिक्रियाएं निकल कर सामने आने लगती हैं।
देखा जाएं तो पीएम के इस भाषण सबसे ज्यादा तूल जब मिल जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज करते हुए कहा कि अंतिम समय पर काशी से अच्छी जगह कोई और नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री को एक महीने के बजाय तीन महीने तक बनारस में रहना चाहिए। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान सामने आते ही पक्ष-विपक्ष की तीखी टिप्पणियों को हवा मिल गई और नई पॉलिटीकल कोन्टरोवर्सी निकल आई। अब बात निकली है, तो बातें तो बनेंगी ही..की तर्ज पर सत्ता के गलियारों में हलचल बढ़ गई है। नेताओं द्वारा एक दूसरे पर टिप्पणी या कटाक्ष करना हालांकि कोई नई बात नहीं है लेकिन भारत में यह टिप्पणी कल्चर जिस तरह बढ़ रहा है वह विचारणीय जरूर है।
इस मामले को लेकर विभिन्न दलों के नेताओं ने अपने विचार रखें हैं, आइए देखतें हैं कि इन टिप्पणियों पर नेताओं की क्या राय है, वह किसे सही और किसे गलत मानते हैं और राजनीति में कटाक्षों की इस परंपरा पर उनकी प्रतिक्रिया क्या है..
चुनावी लाभ के लिए देश को विभाजित करने वाला पीएम का वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण - आशुतोष पांडे (जिलाध्यक्ष, आप, कानपुर देहात)
काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन नहीं बल्कि प्रदर्शन करने आए थे पीएम मोदी - डॉ जनक कुशवाहा (प्रदेश सचिव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी)
हिंदू-मुस्लिमों की भावनाओं में आग लगाकर राजनीति की रोटियां सेंकना चाहते हैं हमारे प्रधानमंत्री - उपेन्द्र साहनी (राष्ट्रीय जन्सम्भावना पार्टी)"
"यूपी चुनावों में हार के डर से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कर रहे हैं प्रधानमंत्री - सच्चिदानंद श्रीवास्तव (अध्यक्ष, समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा)