Latest on Environment
कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ की प्राचीन धरोहर का विकास और इको-टूरिज्म का नया आयाम
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध संस्कृति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है—कुकरैल रिवर फ्रंट। गोमती नदी की सहायक कुकरैल नदी, जो कभी जीवनदायिनी हुआ करती थी, शहरीकरण और अतिक्रमण की मार झेलते हुए एक छोटे से नाले में सिमट गई थी। लेकिन 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ऐतिहासिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। अब इस प्राचीन नदी को फिर से उसका खोया वैभव लौटाया जा रहा है, और इसे एक आकर्षक इको-टूरिज्म हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। कुकरैल रिवर फ्रंट न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में Read more...
The demise of rivers
The ecology of rivers is irreversibly damaged through riverfront projects in IndiaThe riverfront development project in Lucknow is a classic example of how over-dominance of channel engineering may result in loss of river ecosystems and river processes. The ecology of the river, its floodplain and other key fluvial characteristics were transformed substantially to satisfy the greed of a select few without creating any beneficial public utility or improving the water quality. The river has become Read more...
जैव विविधता संरक्षण के प्रति जागरूक हो समाज, रोकनी होंगी पर्यावरण विरोधी गतिविधियां
वर्ष 1993 में यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली की दूसरी मिटिंग में विश्व के सभी देशों में जैव-विविधता के प्रति समाज को सचेत करने के लिए तय किया गया कि वर्ष में एक ऐसा भी दिन होना चाहिए जिस दिन पूरी दुनिया जैव-विवधता के संबंध में चिंतन करे और उसको बचाने के उपायों को अमल में लाने का कार्य करे। इसी चर्चा के के तहत तय किया गया कि प्रत्येक वर्ष 22 मई को विश्व जैव-विविधता दिवस मनाया जाएगा और वर्ष 2002 से लगातार यह दिवस मनाया भी जा रहा है। जिसमें कि प्रत्येक वर्ष जैव-विविधता से संबंधित एक अलग विषय रखा जाता Read more...
भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.
कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों में बंटे हुए थे, साल की पहली तिमाही होली, दूसरी रक्षा-बंधन और तीसरी दिवाली और इन्ही के बीच में बाकि सब कुछ. इन्ही त्योहारों और ऋतुओं के मेल से लगा हुआ फसल काटने का समय, और उसी फसल को पूजने का समय. दीपावली में सरसों के तेल के दिए ना जलें तो सर्दी में किस किस तरह के जीवाणु कितनो को ही लील ले जाएँ कहना मुश्किल है. वहीँ होली की सफाई, धुलाई, प्रेम व्यवहार ना हो तो वसंत उतना सुहाना नहीं बीतेगा. इतिहास देखें तो बस दो हज़ार साल पहले Read more...
आदि बद्रीबांध निर्माण - विलुप्त हुई पौराणिक सरस्वती नदी का होगा कायाकल्प, हरियाणा और हिमाचल के बीच हुआ समझौता
विलुप्त हो चुकी पौराणिक नदी सरस्वती का जीर्णोद्धार करने के सरकारी प्रयासों को हाल ही में तेजी मिली है, नदी को पुनर्जीवित करने की खबरें हालांकि साल दर साल आती जाती रही हैं। लेकिन इस बार हरियाणा और हिमाचल प्रदेश सरकारों के मध्य हुए "आदिबद्री बांध निर्माण" समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने से नदी के कायाकल्प की संभावनाओं को भी मजबूती मिल गई है। 21 जनवरी, 2022 को दोनों प्रदेशों की सरकार के बीच पंचकूला में 215.35 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से बनने वाली आदिबद्री बांध परियोजना को लेकर हुए समझौते से सरस् Read more...
कोयला खनन की बलि चढ़ता हसदेव अरण्य - क्या छत्तीसगढ़ के श्वसन तंत्र को लील जाएगा औद्योगिक कोरोना
"छत्तीसगढ़ के फेफड़े" के रूप में जाना जाता है, हसदेव अरण्य, जो मध्य भारत में 170,000 हेक्टेयर को कवर करने वाले सबसे बड़े अक्षुण्ण सघन वन क्षेत्रों में से एक हैं। यह वन समृद्ध जैव विविधता से समृद्ध है और वनस्पतियों व जीवों की 450 से भी अधिक प्रजातियों का घर है। हाथियों का कॉरिडर और माईग्रेटरी पक्षियों की मेहमाननवाजी करता हसदेव अरण्य छतीसगढ़ के लिए हरियाली के उपहार की तरह है। विभिन्न आदिवासी समुदायों की लोक संस्कृति यहां सदियों से पोषित होती आई है, यहां तक कि हसदेव बांगो बैराज का कैचमेंट क्षेत्र हो Read more...
भूमिगत जल संचयन के लिए विकसित करने होंगे प्राकृतिक तौर-तरीके
बरसात आने को है. पिछले 3 दशकों से पूरी दुनिया में, भौम गत जल (under ground water) का अंधाधुंध दोहन किया गया है. पीने के लिये भी और खेती के लिए भी. नतीजा यह हुआ कि धरती में पानी का सन्तुलन बिगड़ गया. अर्थात पर्याप्त एवं सही समय पर पानी न बरसने की आवृत्ति बढ़ गई. यूरोप, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से सबसे सुरक्षित माना जाता था, वहां भी भयंकर सूखा है. यदि धरती को रहने योग्य बनाये रखना है तो धरती के अन्दर पानी को पहुंचाने के निम्न प्राकृतिक तरीकों को विकसित करना होगा.1. वनों/बागों का समुचित अनुपात बनाना Read more...
सुनिश्चित समृद्ध भविष्य की व्यवस्था
(युवकों के लिए विशेष)(समस्त जिला पंचायत सदस्यों तथा ग्राम स्तरीय पंचायत के सदस्यों को विकास कार्यो की प्राथमिकतायें निश्चित करने में सहायक जानकारी.)(धर्मवीर कपिल IFS Rtd, महासचिव स्लम फा. ट्रस्ट)1. पर्यावरण (Environment) इस शब्द को आजकल आप अक्सर सुनते रहते होंगे. कुछ दशक पहले तक यह किसी पाठ्यक्रम का हिस्सा भी नहीं था. आम जनता के बीच चर्चा का विषय तो हो ही नहीं सकता था. इस शब्द का अर्थ अभी भी कुछ अलग अलग सन्दर्भों में उपयोग हो रहा है.जीवों के स्वास्थ्य पर बहुत सी बातों का प्रभाव पड़ता Read more...
सुनिश्चित समृद्ध भविष्य की व्यवस्था
(युवकों के लिए विशेष)(समस्त जिला पंचायत सदस्यों तथा ग्राम स्तरीय पंचायत के सदस्यों को विकास कार्यो की प्राथमिकतायें निश्चित करने में सहायक जानकारी.)(धर्मवीर कपिल IFS Rtd, महासचिव स्लम फा. ट्रस्ट)1. पर्यावरण (Environment) इस शब्द को आजकल आप अक्सर सुनते रहते होंगे. कुछ दशक पहले तक यह किसी पाठ्यक्रम का हिस्सा भी नहीं था. आम जनता के बीच चर्चा का विषय तो हो ही नहीं सकता था. इस शब्द का अर्थ अभी भी कुछ अलग अलग सन्दर्भों में उपयोग हो रहा है.जीवों के स्वास्थ्य पर बहुत सी बातों का प्रभाव पड़ता Read more...
Impacts of Climate Change on Natural Ecosystem and Human Health in India
The current scenario of climate change is negatively impacting the ecosystem services and human health in India. The research is linking the accelerated rate of climate change with spread of more outbreaks of Infectious diseases in tropical and subtropical parts in India. It is one of the main cause behind the shrinking of ecosystem services that are necessary for a healthy environment and wellbeing of humans. This research analysis will help in understanding the causes of extreme weather, clima Read more...
छोटी नदियों और उनके इकोसिस्टम को मरने के लिए छोड़ दिया तो गंगा में जल कहां से आएगा? - डॉ वेंकटेश दत्ता
आज कोरोना के कारण हम गांवों तक नहीं जा पा रहे हैं लेकिन हमने अपने हितधारकों के साथ मिलकर काम किया है। हम सब भी अलग अलग गांवों से आते हैं, जहां ताल-तलैया, छोटी छोटी नदियां आदि हुआ करती थी। अकेले लखनऊ में ही पाँच नदियां हैं, जिनमें गोमती, कुकरैल, बेहता, बक्शी का तालाब स्थित रैठ नदी और कादू नदी प्रमुख हैं। यानि हम सभी को कहीं न कहीं अपने गांव की वो छोटी छोटी नदियां, ताल-तलैया याद होते हैं, जो कभी स्वच्छ व अविरल हुआ करते थे लेकिन अब धीरे धीरे वह सभी हमारे राजस्व रिकॉर्ड से गायब होते जा रहे हैं। बहुत Read more...
हिंदू कुश से लेकर हिमालय तक का ग्लेशियर तेजी से हो रहा है कम, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की रिपोर्ट
हिंदू कुश पर्वतमाला से हिमालय के क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर, जो करोड़ों वर्षों से जीवन सभ्यताओं को सींच रहे हैं, उन्हें लेकर इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की ओर से बहुत बड़ा शोध किया गया है। जिसके आधार पर स्पष्ट किया गया है कि यदि भविष्य में जलवायु परिवर्तन इसी प्रकार बना रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब धीरे धीरे यहां मौजूद ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाएंगे। जिससे इन पर निर्भर लगभग 2 अरब लोगों के लिए जल का महासंकट उत्पन्न हो जाएगा। तेजी से कम हो रहे हैं हिंदू कुश और हिमालय Read more...
निरंतर घटता जल प्रवाह कर रहा है गोमती को प्रदूषित, संरक्षण जरूरी
नदियां जो हमें जीवन देती हैं, पानी देती हैं, खेती के लिए भूमि देती हैं, सदियों तक सभ्यताओं को बाँध के रखती है; हमारे देश में उन्हीं की बेक़द्री है। जीवनदायनी और सबसे ज्यादा पूजे जाने वाली नदियाँ गंगा और यमुना आज भारत वर्ष की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियाँ है और यही हाल इन प्रमुख नदियों की सहायक और भारत में बाकी 275 नदियों का है। चिंताजनक बात यह है के इन नदियों की हालात सुधरने के बजाय बदतर होती जा रही है। सरकार और जनता की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इनकी स्थिति मे कोई सुधार नही आ रहा है। केंद्रीय प्रदू Read more...
मिर्जापुर में मलिन हो रही गंगा नदी, 17 नाले बना रहे हैं गंगा को प्रदूषित
सनातन धर्म शास्त्रों में पतित पावनी गंगा नदी को मोक्षदायिनी "मां" का गौरव प्राप्त है, अनेकों संस्कृतियाँ, परम्पराएं और सभ्यताऐं गंगा के पवित्र तटों पर विकसित हुई हैं। महाकाव्य "रामायण" और "महाभारत" की बात करें, तो यदि गंगा नहीं होती, तो यह कथाएं भी अपूर्ण रह जाती। पौराणिक काल से ही उत्तर भरत के विकास की बागडोर गंगा ने संभाली हुई है, न केवल धार्मिक या ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य अपितु अर्थव्यवस्था के विकास में भी गंगा का योगदान किसी से छिपा नहीं है। किंतु वर्तमान में गंगा नदी मानवीय कृत्यों, भौतिकतावाद Read more...
यमुना संसद के तत्वावधान में राजधानी दिल्ली में बनाई गई मानव शृंखला, यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की हुई पहल
राजधानी दिल्ली का जीवन आधार कही जाने वाली यमुना नदी के प्रदूषण की कहानी किसी से छिपी नहीं है, सरकार के अनेकों प्रयासों के बावजूद भी अभी तक यमुना स्वच्छ नहीं हो पाई है। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने हेतु विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर एक अनूठी पहल "यमुना संसद" के द्वारा की गई, जिसके अंतर्गत बड़ी संख्या में आम नागरिक, वरिष्ठ जन, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता और विभिन्न संस्थाओं ने भागीदारी लेते हुए मानव शृंखला का निर्माण किया। अभियान में बड़ी संख्या में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और धार्मिक स Read more...
बहलोलपुर में हिंडन के लाल हुए पानी की वीडियो हुई वायरल, प्रदूषण फैला रही 16 औद्योगिक इकाइयों को यूपीपीसीबी ने किया सील
नोएडा के बहलोलपुर में बहने वाली हिंडन नदी का रंग हाल ही में खून जैसा लाल नजर आया, कचरे से अटी हिंडन नदी के पानी का रंग लाल, पीला या काला होने से स्थानीय निवासियों को कोई हैरानी नहीं है क्योंकि उनके लिए यह जैसे रोजाना की बात हो गई है। हिंडन के इस तरह रंग बदलने का कारण बहलोलपुर गांव में चल रही औद्योगिक इकाइयां हैं, जो सरकारी और न्यायिक निर्देशों के बावजूद भी विषैले औद्योगिक अपशिष्ट को लगातार हिंडन में बहा रही हैं। इसी पर सख्त होते हुए यूपीपीसीबी (उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) ने हिंडन नदी क Read more...
घर, आँगन,परिवार
घर, आँगन,परिवार घर है मेरा छोटा-सा, ये धरती मेरा अंगना है| प्रेम,विश्वास, सम्मान से, सबको यहाँ रहना है|बाबा- दादी, माता- पिता, चाचा- चची भी रहते है|एक दूसरे का सदा, उपकार करते है|दिल में सबके लिए शुभ भावना, यही सबका गहना है| प्रेम, विश्वास, सम्मान से सबको यहाँ रहना हे|सभी स्वस्थ रहे धरती पर, यही रहती है सबकी कामनासभी समझदार हो जग में, सबकी यही भावना|सब सुख से रहे नित यहाँ, यही सबका चाहना है|प्रेम, विश्वास, सम्मान से सबको यहाँ रहना हे|जल, जंगल, जमींन, जानवर, यहाँ जन- जन के पोषक है| न समझदार मान Read more...
कानून, व्यवस्था व व्यवहार को आइना दिखाती एक जंगल बुक वाइल्डलाइफ इण्डिया@50
जब दिमाग और दुनिया...दोनों का पारा चढ़ रहा हो, खुशियों की हरियाली घट रही हो और मन का रेगिस्तान बढ़ रहा हो तो किसी को आइना भी झूठ लग सकता है। किन्तु सच यह है कि आइना झूठ नहीं बोलता। कहते हैं कि किताबें वक्त का आइना होती हैं। किन्तु दूसरी ओर अनुभव कहता है कि ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए राइटर्स से ज्यादा प्रेक्टिशनर्स पर यकीन किया जाना चाहिए। इस वर्ष - 2022 के ऐसे वैश्विक माहौल में एक ऐसी भारतीय किताब का आना बेहद अहम् है, जिसे लिखने वाले वे हैं, जिन्होने जंगली जीवों की संवेदनाओं व उनसे इंसानी रिश्तों को Read more...
केवल बाढ़ नियंत्रण पर काम करना नहीं है पर्याप्त, देश को है जल-निकासी आयोग के गठन की आवश्यकता
गुजराती में एक कहावत है, "छतरी पलटी गयी, कागड़ी थई गई"। जिसका अर्थ होता है कि बरसात में आंधी-पानी से अगर छतरी उलट जाये तो उसमें और कौवे में कोई अन्तर नहीं रह जाता। आजकल कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखण्ड, बिहार आदि प्रान्तों से बाढ़ और वहां के शहरों से गाड़ियों, ट्रकों के बह जाने, लोगों की बिजली के खम्भों को पकड़ कर जीने की कोशिशों की फोटो, गिरते हुए घरों आदि के भयानक दृष्य टी.वी. पर देखने को मिल रहे हैं। कुछ दिन पहले यही विवरण अन्य असम्भव स्थानों से भी देखने में आ रही थीं Read more...
177.6 एमएलडी की क्षमता वाले नए सीवेज प्लांट से क्या आगरा में यमुना होगी स्वच्छ?
यमुना क्या एक नदी भर है? यह सवाल यदि खुद से भी पूछे तो जवाब ना में ही आएगा, क्यों? क्योंकि यह एक नदी नहीं है अपितु हमारी आस्था है, हम इसकी पूजा करते हैं, इसे जीवनदायीनी मानते हैं। यमुना के बिना इलाहबाद के संगम की कल्पना अधूरी है। यह नदी उत्तर भारत की संस्कृति भी है, सभ्यता भी और अस्मिता भी। इस नदी ने खुद अपनी आँखों से इन तमाम संस्कृतियों को आपस में लड़ते, मिलते, बिछुड़ते और बढ़ते देखा है। तमाम बसावटों को बसते-उजड़ते देखने का सुख व दर्द, दोनों का एहसास आज भी यमुना की लहरों में जिंदा है। यमुना हमार Read more...