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उत्तर प्रदेश के उत्तर में स्थित कानपुर देहात कानपुर नगर, हमीरपुर, जालौन, औरैया और कन्नौज जिलों के बीच स्थित है. यमुना नदी कानपुर देहात और जालौन को विभाजित करती है. प्रारंभ में जिले का नाम रमाबाई नगर था, लेकिन जुलाई 2012 में जिले का नाम बदलकर कानपुर देहात कर दिया गया. प्रारंभ में यह जिला कानपुर के साथ ही संलग्न था, जिसे विभाजन के बाद कानपुर देहात के रूप में जाना गया. इसमें औद्योगिक क्षेत्र रनिया से जौनपुर तक का बहुत बड़ा खंड है. खेती को यहां की आय का मुख्य स्त्रोत माना जाता है. कानपुर नगर और कानपुर देहात का विभाजन वर्ष 1981 में हुआ था.

इतिहास-

23 अप्रैल 1981 में हुए विभाजन हुए कानपुर देहात और कानपुर नगर का इतिहास बेहद प्राचीन है. लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इस सम्पूर्ण परिक्षेत्र को अकबरपुर, शाहपुर और अकबरपुर बीरबल के नाम से भी जाना जाता था. एक रिपोर्ट के अनुसार माउंट गॉर्नरी ने शाहपुर को गौराईखेरा बताया गया है. एफ.एन. राइट की किताब सांख्यिकीय वर्णनात्मक और ऐतिहासिक लेखों में जिन दो तालाबों का जिक्र हुआ है, वह जहानाबाद के नवाब अलमस अली खान के दरबारी शीतल शुक्ल और छब्बा कलार द्वारा बनवाए गए थे.

अकबरपुर के इतिहासकार श्रीधर शास्त्री के अनुसार1413 एवं 1415 के मध्य बहादुर शाह गद्दी पर बैठे, तब उनके मंत्री मुबारकशाह ने इस क्षेत्र को लूट लिया था और इस क्षेत्र का नाम शाहपुर रख दिया.

प्राचीन समय में यानि 1847 में यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर था. सुन्दरता के प्रति रूप के साथ इस स्थान की जनसंख्या करीब 5485 थी. मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में इस स्थान के बनने का अंदाजा लगाया जाता है. यह भी माना जाता है, कि इसी समय गौराईखेरा से इसका नाम बदलकर अकबरपुर कर दिया. 1857 के दौरान इस स्थान पर बने शुक्ला तालाब के पास के नीम के पेड़ पर 7 लोगों को लटका अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया था.

1857 की क्रांति के समय इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासतों को काफी नुक्सान पहुंचा था. कानपुर शहर से पहले कानपुर देहात अस्तित्व में आया था और इसे ही शहर का केन्द्र माना जाता है. प्राचीन समय में मुग़ल शासकों द्वारा कानपुर देहात को दिल्ली से जोड़ने के प्रयास लगातार किये जाते थे. जनस्तुति के अनुसार इस स्थान को लक्ष्मीपुरवा भी कहा जाता था. परंपरागत तौर पर गाए जाने वाले संगीत आज भी ईश्वर भक्ति गीत-संगीत के रूप में यहां सुना जाता है.

भौगोलिक ढांचा

जलवायु-

कानपुर देहात में औसतन 782.8 मिमी प्रतिवर्ष वर्षा हो जाती है. क्षेत्र के लिए यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कृषि को ही इस क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय माना जाता है. दक्षिण पश्चिम के मानसून के बिना यहां सूखा पड़ने के भी आसार रहते हैं. जून से सितंबर से होने वाली बारिश से सिंचाई के साथ भूमिगत जल को एकत्रित करने में भी सहयोग करता है. शीत ऋतु के अंतर्गत जनवरी में सर्वाधिक एवं ग्रीष्म ऋतु में जून माह में सर्वाधिक वर्षा होती है. फसल की दृष्टि से देखें तो दोनों ही माह फसल की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.

नदी एवं भूजल व्यवस्था-

कानपुर देहात गंगा-यमुना दोआब पर बना हिस्सा है. क्षेत्र की 80 प्रतिशत आबादी यमुना-सेंगर नदी के किनारे की पुरानी जलोढ़ भूमि का विकास लगातार किया जा रहा है. यहां जल को नमक मिश्रित जल भी प्रभावित करता है. बाढ़ से क्षेत्र को बचाने के लिए रिंद, यमुना और सेंगर नदी से संबंध इलाके को प्रतिबंधित करा गया है. इसके अलावा क्षेत्र में जलोढ़, दोमट एवं रेतीली मिट्टी अधिक पाई जाती है.

ज्यादातर भूमिगत जल का दोहन किया जाता है. 2003 से 2012 तक जल स्तर में गिरावट देखी गई. बारिश की मात्रा कम और सिंचाई के लिए उचित मात्रा में जल का दोहन करने से जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. बावजूद इसके बरसात में जल स्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा भी बढ़ता जाता है. बरसात के बाद जल स्तर 8 से 82 मिमी तक पाया जाता है वहीं बरसात के पहले औसतन यह स्तर 1.8 से 71 मिमी  रहता है. 

प्रशासनिक इकाइयां

कानपुर देहात की 2001 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1031 गांव मौजूद हैं. साल 2015-16 में नगर पालिका परिषद की संख्या 1 है. 12 कस्बे, 102 न्याय पंचायत, 640 ग्राम सभाएं, 10 विकास खंड एवं 6 तहसील हैं.

निर्वाचन क्षेत्र-

लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 4 लोकसभा सीट आती हैं, जो क्रमश: कन्नौज, अकबरपुर, इटावा, जालौन हैं. वहीं 4 विधानसभाएं रसूलाबाद,अकबरपुर-रानिया, सिकंदरा, भोगनीपुर हैं.

तहसील-

कानपुर देहात के अंतर्गत निम्न तहसील भी आती हैं. जो भोगनीपुर, डेरापुर, अकबरपुर, रसूलाबाद, सिकन्दरा, मैथा हैं.

जिला मुख्यालय-

क्षेत्र के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए सरकार 11 अप्रैल 1994 में इस स्थान पर कानपुर देहात का मुख्यालय घोषित किया. बाद में यहां कलेक्ट्रेट, विकास भवन, पुलिस स्टेशन आदि का निर्माण किया गया है.

जिला मुख्यालय अकबरपुर माती लगभग 50 किमी कानपुर-झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है. जिले की स्थापना के बाद माती में जिला मुख्यालय घोषित किया गया. राजमार्ग पर होने के कारण मुख्यालय जाने वालों को अब पहुंचने वालों को काफी आसानी होती है.

अर्थव्यवस्था

कृषि एवं सिंचाई व्यवस्था-

भारत को एक कृषि प्रधान देश माना जाता है और इस परिभाषा को कानपुर देहात के लिए विशेष माना जा सकता है. यहां का प्रमुख आय स्त्रोत कृषि है. कृषि यहां की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुख्य भूमिका निभाती है.

1991 की जनगणना आंकड़ों की माने तो कानपुर देहात में करीब छ लाख बाइस हजार तीन सौ मजदूर हैं जो कि पूरी जनसंख्या का 29 प्रतिशत है. सिंचाई व्यवस्था की उचित सुविधाएं न होने के कारण कृषि में उन्नत प्रगति नहीं हो पा रही है. डेरापुर और झींझक में कृषि अधिक होती है. मैथा और ककवान में कृषि की स्थिति कुछ ठीक नहीं है जिससे ये लगातार विकास कराए जाने की श्रेणी में आते हैं. लगभग 70 प्रतिशत किसानों के पास 1 हैक्टेयर से भी कम भूमि है. कृषि से पूरे वर्ष गुजारा ठीक से नहीं हो पाता है.  जो लोग बड़े पैमाने पर भूमि के स्वामित्व पर निर्भर हैं उनके लिए यह आर्थिक स्थिति में असमानता को दर्शाता है.

जनसंख्या-

2011 की जनगणना के अनुसार  कानपुर देहात की जनसंख्या 17 लाख 95 हजार 92 थी. 9 लाख 64 हजार 84 पुरुष और 8 लाख 30 हजार 8 सौ आठ महिलाएं थी. कानपुर देहात में कुल शहरी आबादी तकरीबन 1 लाख 73 हजार 4 सौ 38 रही जो 2001 की जनसंख्या की तुलना में 14.82 प्रतिशत अधिक रही. इससे पहले 1991 की जनगणना के अनुसार यह वृद्धि करीब 97 प्रतिशत बताई गई थी. 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 862 थी वहीं 2001 में ये आंकड़ा 852 था.

शिक्षा एवं स्वास्थ्य-

शिक्षा की दृष्टि से जिले में उचित सुविधाएं उपलब्ध हैं. लोगों की कुल साक्षरता दर 77.52 प्रतिशत रही. इसमें पुरूषों की दर 85.27 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 68.48 प्रतिशत थी. आंगनबाड़ी क्षेत्र की बात करें तो कुल 1520 केन्द्र मौजूद हैं. स्कूलों की संख्या भी 2406 है, जिनमें उचित शिक्षा एवं संस्कार देने की पूरी व्यवस्था रहती है.

स्वास्थ्य सेवा की दृष्टि से भी क्षेत्र में उचित सेवाएं मौजूद हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल द्वारा क्षेत्र में लोगों के लिए नर्सिंगहोम, पौथोलॉजी, एक्स-रे सेंटर मौजूद हैं. इसके अलावा कानपुर देहात से ज्यादातर लोग कानपुर शहर में उचित व बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आते हैं. इसके अलावा महिला आरोग्य समिति, आशा आदि सुविधाएं भी जनसामान्य के लिए मौजूद हैं.

संस्कृति और विरासत-

कानपुर देहात की अकबरपुर विधानसभा का नाम मुगल बादशाह अकबर के नाम पर रखा गया. लक्ष्मी जी के आस्था का प्रतीक लक्ष्मीखेरा अपने आप में अतुलनीय है. इसके अलावा प्राचीन गीत-संगीत,रीति-रिवाज एवं त्योहारों को परंपरागत ढंग से मनाने की अमूल्य निधि क्षेत्र के कण-कण में बसी है, जो इसे अतुलनीय बनाती है. प्राचीन विरासत से लेकर आधुनिक कनपुरिया भाषा का सर्वोत्तम उदाहरण देखना हो तो कानपुर देहात से बेहतर कुछ भी नहीं है.

पर्यटन क्षेत्र

कानपुर देहात पर्यटन की दृष्टि से विशेष माना जाता है. क्षेत्र में इतिहास एवं संस्कृति को दर्शाने वाले कई क्षेत्र हैं. गांव की वास्तविकता देखने के लिए सबसे उपयुक्त स्थानों में एक है. क्षेत्र गंगा एवं यमुना नदी के तट पर बसा है. जिले की मुख्यता का अंदाजा यहां मौजूद मुगल एवं इतिहास की अन्य संबंधित कथाओं से लगाया जा सकता है. चैरा नामक स्थान मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थल है जो कि कानपुर देहात में है.

इसके अलावा शिव बजरंग धाम मंदिर वर्षों पुराने विशाल बरगद के वृक्ष का उदाहरण बनता है, तो वहीं कात्यायनी देवी का मंदिर (खत्री गांव) अपनी पौराणिकताओं की झलक दिखाता है. जहां नवरात्रों में विशाल जनसमूह एकत्र हो आस्था की लहर बिखराता है. दुर्वाशा ऋषि का आश्रम (नाउघी गांव) भी आस्था का प्रतीक बनता है. पूर्ण गांव की झलक पाने के लिए सर्वोत्तम स्थान की श्रेणी में आता है.

संदर्भ

https://kanpurdehat.nic.in/history/

https://kanpurdehat.nic.in/administrative-setup/

https://kanpurdehat.nic.in/economy/

http://censusindia.gov.in/2011census/dchb/0932_PART_B_DCHB_KANPUR%20DEHAT.pdf

http://nuhm.upnrhm.gov.in/urban/pip/kanpurdehatpip.pdf 

http://cgwb.gov.in/District_Profile/UP/Kanpur%20Dehat.pdf 

https://kanpurdehat.nic.in/places-of-interest/

https://kanpurdehat.nic.in/tourist-places/

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