सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 - तमिलनाडु सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन का ना जवाब दिया ना इसे ऑनलाइन किया, आपको डाउनग्रेड किया जाता है
0.3 प्रतिशत लोगों ने ही किया आरटीआई का उपयोग
आरटीआई कानून हमारे लिए जरुरी क्यों है? इसे समझना आज बेहद जरुरी है. इस कानून के प्रति जनता की भागीदारी जितनी बढ़ेगी उतना ही ज्यादा इस कानून को मजबूती मिलेगी. बीते दस सालों में यह अपेक्षा की गई कि यह जनता और सरकार को करीब लाएगी. जहां जनता को सरकार के कामकाज की जानकारी प्राप्त करने का हक़ प्राप्त हो सकेगा. सरकार जनता के प्रति गंभीर होकर अपना कार्य करेगी. मगर आज दस साल बीत जाने के बावजूद जिस तरह से जनता का इसके प्रति प्रतिक्रिया रही है वह बेहद ही निराशाजनक है. यह बेहद ही चिंताजनक है की इतने सालों बाद भी सिर्फ देश के 0.3 प्रतिशत लोगों ने ही इसका उपयोग किया है.
अधिकांश जनता आरटीआई से दूर
एक पारदर्शी व्यवस्था बनाने, सरकार के काम–काज पर प्रश्न करने, किसी अन्य तरह की जानकारी हासिल करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने अपनी जनता को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के रुप में एक शक्ति प्रदान की. इससे यह विश्वास जगा की इसके कारण लोकतंत्र को और भी मजबूती मिलेगी और जनता को सरकार से सवाल करने का अधिकार. लगभग 11 वर्ष हो चुके हैं सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को आये. जनता को इससे बेहद फायदा भी हुआ है और आरटीआई की उपयोगिता भी सिद्ध हो चुकी है. मगर इसके प्रति जागरूकता की कमी और सरकारी महकमे का इस और विशेष ध्यान नहीं दिया जाना इस कानून को देश की अधिकांश जनता से दूर रखे हुए है. जरुरी है इस कानून को कारगर बनाने के लिए इस और भी ध्यान दिया जाए.
आरटीआई के लिए पारदर्शिता जरुरी
सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को लेकर यह बात कही है कि जब तक लोग जानेंगे ही नहीं तो वह बोलेंगे क्या. इस बात पर गौर किये जाने की जरुरत है. वाकई जो आम जनता सरकार बनाती है उसे तो यह अधिकार मिलना ही चाहिए की वह सरकार के काम-काज की अथवा सरकार से संबंधित कोई भी जानकारी सुगमता से प्राप्त कर सके. आज के इस दौड़ते-भागते जिंदगी में बभी जब हम जब हम कोई सामान लेते हैं तो बड़े गौर से उसे देखते हैं, दो-चार दुकानों में जाते है वैसे में आम जनता जो सरकार चुनने का कार्य करती है और जिस सरकार के हर एक फैसले का असर उनपर होना होता है उन्हें तो हर हाल में सरकार के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने की एक पारदर्शी और आसन सा साधन मुहैया करवाया जाना चाहिए.
आरटीआई मामलों के निपटारे में लग सकते हैं 17 साल
आरटीआई के जरिये बस एक प्रश्न पूछने के लिए डाकखाना जाना, लंबी कतार में खड़े हो इंतज़ार करना कहां तक तर्कसंगत है? बावजूद उसके आपको अपने जवाब के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, बस यहीं नहीं कोई कमी हो गई तो आपको फिर से उसी प्रक्रिया को फिर से दोहराने की जरुरत होगी. यहीं नहीं विभागों को जवाब नहीं देना हो तो उसकी भी अपनी पेचीदगी है. जिस राज्य में आरटीआई के इतने लंबित मामले पड़े हैं वहां के सूचना आयोग का इतना ढीला रवैया बेहद शर्मिंदगी भरा है. असेसमेंट ऐंड ऐडवोकेसी ग्रुप और साम्य सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज की 2011-13 की रिपोर्ट के मुताबिक़ आरटीआई के लंबित मामलों की जो रफ़्तार है उसके मुताबिक मामलों के निपटारे में राज्यों को 17 साल तक लग सकते हैं, खेद.
सूचना का अधिकार अधिनियम में सुधर लाने का प्रयास कर रहा तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग
तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार करने के लिए कार्य कर रही है, जो की एक अच्छी पहल है मगर इसके प्रति उनकी गंभीरता कितनी है यह भी देखने योग्य होगा. राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार करने के लिए, साथ ही एक सलाहकार समिति बनाने जोकि नियमित रूप से इस इस पर अपने परामर्श देगा ऐसी योजना बनाई है, इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए.
आरटीआई के जवाब के लिए मांगे गए 2.46 करोड़ रूपए
मगर यह सच्चाई भी उसी तमिलनाडु की है जहां चेन्नई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता ने राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण से आवेदन के जरिये हाई टाइड लाइन और इकोलॉजिकल सेंसिटिव एरिया के आंकड़ों की सॉफ्ट कॉपी की मांग की, इस जानकारी को उपलब्ध करवाने के एवज में उनसे 2.46 करोड़ रूपए मांगे गए. किसी भी आम इंसान हो या कोई भी पैसे वाला व्यक्ति उसके लिए यह रकम बहुत ही ज्यादा है. इस तरह की रकम की मांग ही यह बताने के लिए काफी है कि इससे लोगों का विश्वास आरटीआई के प्रति कम करेगा. निःसंदेह हम इस बारे में भी सोचने की जरुरत है. तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को भी इसे गंभीरता से लेने की जरुरत है.
तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को खुद सुधार लाने की जरुरत
इसमें कोई दो राय नहीं कि तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार लाने के लिए जो प्रयास कर रही है वह सराहनीय कदम है. मगर इसमें भी दो राय नहीं कि जिस तरह से हमारे आरटीआई द्वारा पूछे गए साधारण सवाल का जवाब तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग ने एक वर्ष से अधिक अवधी के बीत जाने के बावजूद नहीं दिया उससे सबसे पहले खुद उसमें सुधार लाने की जरुरत है. ज्ञात हो पिछले वर्ष 13.06.2015 को हमने एक याचिका के माध्यम से आपसे जवाब माँगा था कि आप राज्य में सूचना के अधिकार सम्बन्धी तंत्र को पूरी तरह कब तक ऑनलाइन करेंगे और उसे rti.gov.in से जोड़ सकेंगे अथवा सुगम एवं सुव्यवस्थित विकल्प दे पायेंगे एक वर्ष से अधिक की अवधि गुजर जाने के बावजूद ना ही आपका कोई जवाब आया और ना ही इतने समय बीत जाने बाद भी आप ऑनलाइन व्यवस्था दे पायें. इन्हीं कारणों से हम तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं.

क्या चाहते हैं हम?
एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?
अगर आप आरटीआई विशेषज्ञ हैं या आरटीआई कार्यकर्ता जो वास्तव में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.
आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.
अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.
क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय,कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.
धन्यवाद
Coordinators @ballotboxindia.com
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Swarntabh Kumar 73
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 - तमिलनाडु सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन का ना जवाब दिया ना इसे ऑनलाइन किया, आपको डाउनग्रेड किया जाता है
0.3 प्रतिशत लोगों ने ही किया आरटीआई का उपयोग
आरटीआई कानून हमारे लिए जरुरी क्यों है? इसे समझना आज बेहद जरुरी है. इस कानून के प्रति जनता की भागीदारी जितनी बढ़ेगी उतना ही ज्यादा इस कानून को मजबूती मिलेगी. बीते दस सालों में यह अपेक्षा की गई कि यह जनता और सरकार को करीब लाएगी. जहां जनता को सरकार के कामकाज की जानकारी प्राप्त करने का हक़ प्राप्त हो सकेगा. सरकार जनता के प्रति गंभीर होकर अपना कार्य करेगी. मगर आज दस साल बीत जाने के बावजूद जिस तरह से जनता का इसके प्रति प्रतिक्रिया रही है वह बेहद ही निराशाजनक है. यह बेहद ही चिंताजनक है की इतने सालों बाद भी सिर्फ देश के 0.3 प्रतिशत लोगों ने ही इसका उपयोग किया है.
अधिकांश जनता आरटीआई से दूर
एक पारदर्शी व्यवस्था बनाने, सरकार के काम–काज पर प्रश्न करने, किसी अन्य तरह की जानकारी हासिल करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने अपनी जनता को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के रुप में एक शक्ति प्रदान की. इससे यह विश्वास जगा की इसके कारण लोकतंत्र को और भी मजबूती मिलेगी और जनता को सरकार से सवाल करने का अधिकार. लगभग 11 वर्ष हो चुके हैं सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को आये. जनता को इससे बेहद फायदा भी हुआ है और आरटीआई की उपयोगिता भी सिद्ध हो चुकी है. मगर इसके प्रति जागरूकता की कमी और सरकारी महकमे का इस और विशेष ध्यान नहीं दिया जाना इस कानून को देश की अधिकांश जनता से दूर रखे हुए है. जरुरी है इस कानून को कारगर बनाने के लिए इस और भी ध्यान दिया जाए.
आरटीआई के लिए पारदर्शिता जरुरी
सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को लेकर यह बात कही है कि जब तक लोग जानेंगे ही नहीं तो वह बोलेंगे क्या. इस बात पर गौर किये जाने की जरुरत है. वाकई जो आम जनता सरकार बनाती है उसे तो यह अधिकार मिलना ही चाहिए की वह सरकार के काम-काज की अथवा सरकार से संबंधित कोई भी जानकारी सुगमता से प्राप्त कर सके. आज के इस दौड़ते-भागते जिंदगी में बभी जब हम जब हम कोई सामान लेते हैं तो बड़े गौर से उसे देखते हैं, दो-चार दुकानों में जाते है वैसे में आम जनता जो सरकार चुनने का कार्य करती है और जिस सरकार के हर एक फैसले का असर उनपर होना होता है उन्हें तो हर हाल में सरकार के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने की एक पारदर्शी और आसन सा साधन मुहैया करवाया जाना चाहिए.
आरटीआई मामलों के निपटारे में लग सकते हैं 17 साल
आरटीआई के जरिये बस एक प्रश्न पूछने के लिए डाकखाना जाना, लंबी कतार में खड़े हो इंतज़ार करना कहां तक तर्कसंगत है? बावजूद उसके आपको अपने जवाब के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, बस यहीं नहीं कोई कमी हो गई तो आपको फिर से उसी प्रक्रिया को फिर से दोहराने की जरुरत होगी. यहीं नहीं विभागों को जवाब नहीं देना हो तो उसकी भी अपनी पेचीदगी है. जिस राज्य में आरटीआई के इतने लंबित मामले पड़े हैं वहां के सूचना आयोग का इतना ढीला रवैया बेहद शर्मिंदगी भरा है. असेसमेंट ऐंड ऐडवोकेसी ग्रुप और साम्य सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज की 2011-13 की रिपोर्ट के मुताबिक़ आरटीआई के लंबित मामलों की जो रफ़्तार है उसके मुताबिक मामलों के निपटारे में राज्यों को 17 साल तक लग सकते हैं, खेद.
सूचना का अधिकार अधिनियम में सुधर लाने का प्रयास कर रहा तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग
तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार करने के लिए कार्य कर रही है, जो की एक अच्छी पहल है मगर इसके प्रति उनकी गंभीरता कितनी है यह भी देखने योग्य होगा. राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार करने के लिए, साथ ही एक सलाहकार समिति बनाने जोकि नियमित रूप से इस इस पर अपने परामर्श देगा ऐसी योजना बनाई है, इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए.
आरटीआई के जवाब के लिए मांगे गए 2.46 करोड़ रूपए
मगर यह सच्चाई भी उसी तमिलनाडु की है जहां चेन्नई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता ने राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण से आवेदन के जरिये हाई टाइड लाइन और इकोलॉजिकल सेंसिटिव एरिया के आंकड़ों की सॉफ्ट कॉपी की मांग की, इस जानकारी को उपलब्ध करवाने के एवज में उनसे 2.46 करोड़ रूपए मांगे गए. किसी भी आम इंसान हो या कोई भी पैसे वाला व्यक्ति उसके लिए यह रकम बहुत ही ज्यादा है. इस तरह की रकम की मांग ही यह बताने के लिए काफी है कि इससे लोगों का विश्वास आरटीआई के प्रति कम करेगा. निःसंदेह हम इस बारे में भी सोचने की जरुरत है. तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को भी इसे गंभीरता से लेने की जरुरत है.
तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को खुद सुधार लाने की जरुरत
इसमें कोई दो राय नहीं कि तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार के विभागों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुपालन में सुधार लाने के लिए जो प्रयास कर रही है वह सराहनीय कदम है. मगर इसमें भी दो राय नहीं कि जिस तरह से हमारे आरटीआई द्वारा पूछे गए साधारण सवाल का जवाब तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग ने एक वर्ष से अधिक अवधी के बीत जाने के बावजूद नहीं दिया उससे सबसे पहले खुद उसमें सुधार लाने की जरुरत है. ज्ञात हो पिछले वर्ष 13.06.2015 को हमने एक याचिका के माध्यम से आपसे जवाब माँगा था कि आप राज्य में सूचना के अधिकार सम्बन्धी तंत्र को पूरी तरह कब तक ऑनलाइन करेंगे और उसे rti.gov.in से जोड़ सकेंगे अथवा सुगम एवं सुव्यवस्थित विकल्प दे पायेंगे एक वर्ष से अधिक की अवधि गुजर जाने के बावजूद ना ही आपका कोई जवाब आया और ना ही इतने समय बीत जाने बाद भी आप ऑनलाइन व्यवस्था दे पायें. इन्हीं कारणों से हम तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं.
क्या चाहते हैं हम?
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