
आधुनिक भारत के निर्माण में दो महान समकालीन राजनेता है डाॅ. भीमराव अम्बेडकर जिनका जन्म् 14 अप्रैल,1891 तथा निर्वाण 06 दिसम्बर, 1956 हो हुई थी, इसी क्रम में पं. जवाहर लाल नेहरू जिनका जन्म् 14 नवम्बर, 1889 तथा निर्वाण 27 मई 1964 को हुआ था। इन दोनों ही राजनेताओं को भारत का आधुनिक निर्माता कहा जाता है। जहाॅं पं. नेहरू इलाहाबाद में कुलीन ब्राम्हण परिवार में जन्में वहीं डाॅ. अम्बेडकर का जन्म एक दलित (महार जाति) परिवार में हुआ था। दोनों के लालन-पालन में बहुत बड़ा अन्तर था एक अमीर परिवार में तथा दूसरा...। उसे तो बचपन से ही छुआछूत का सामना करना पड़ा और बड़े होकर भी इस दंश ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। जबकि बढौदा के महाराजा गायकवाड जी महाराज की छात्रवृत्ति पर वे पढ़ने के लिए अमरीका और ब्रिटेन गये वहाॅं उन्होने अर्थशास्त्र और कानून की पढाई पूरी की। उन्होने कोलंबिया यूनिर्वसिटी से 6 विषयों (अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, दर्शनशास्त्र, मानव विज्ञान में एम.ए. किया) में एक साथ उपाधियाॅ गृहण की। अर्थशास्त्र में पीएचडी और डीएससी किया था साथ में बैरिस्टर भी थे।
डाॅ. भीमराव बाबा साहेब अम्बेडकर को हमें आधुनिक मिथ भंजक के रूप में देखना चाहिए। भारत और लोकतंत्र के बारे में परम्परावादियों, सनातनियों, राजनीतिज्ञों, ब्रिटिश बुद्धिजीवियों और शासकों आदि नें अनेक मिथों का प्रचार किया। ये मिथ आज भी आम जनता में अपनी जड़ें जमाये हुए है। डाॅं. अम्बेडकर ने कहा कि ’आज भारत के लोग दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। संविधान की प्रस्तावना में दर्ज स्वतंत्रता, समता और भाईचारा उनके राजनीतिक आदर्श हैं। लेकिन उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इंकार करते है।" बाबा साहेब ने भारतीय समाज का अध्ययन करते हुए उसके बारे में एक नई सोच पैदा की है। भारतीय समाज के अनेक विववादास्पद पहलुओं का आलोचनात्मक और मौलिक विवेचन किया है।
"शिक्षित बनों, संगठित रहो, संघर्ष करो", लोकतांत्रिक संघर्ष के बेहद असरदार इस महामंत्र को देने वाले डाॅ. अम्केडकर की आज दुनियाॅं भर में सराहना की जाती है। बाबा साहेब ने संसदीय लोकतंत्र की व्याख्या करते हुए लिखा-’’संसदीय लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें जनता का काम अपने मालिकों के लिए वोट देना और उन्हें हुकूमत करने के लिए छोड़ देना होता है।’’ अम्बेडकर ने लोकतंत्र को मजदूर वर्ग के नजरियें से देखा और और उस पर अमल करने पर भी जोर दिया।
25 मई 1921 को ’यंग इंडिया’ के जरिये गाॅंधी को भी आना पडा़ और दो टूक शब्दों में लिखना पड़ा कि- यदि हम भारत की आबादी के 5वें हिस्से (यानी दलितों) को स्थायी गुलामी की हालत में रखना चाहते हैं और उन्हें जान बूझकर राष्ट्रीय संस्कृति के फलों से वंचित रखना चाहते हैं तो, ’स्वराज’ एक अर्थहीन शब्द मात्र होगा।
अम्बेडकर जी के राजनीतिक जीवन की घटना महाड के चवदार तलै (यानी मीठे पानी का तालाब वाली घटना) थी। वे महाड परिषद के अध्यक्ष की हैसियत से अस्प्रश्यों में जागृति फैलाने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए। इस कार्यक्रम में जाति से कायस्थ विनायक चित्रे नाम के एक सज्जन को धन्यवाद ज्ञापन की जिम्मेदारी सौंची गई थी, उन्होंने अपने भाषण में यह सुझाव दिया कि बंबई विधान परिषद के कानून के मुताबित महाड की नगर पालिका ने यहाॅं की चवदार तालाब को सभी जातियों के लिए खोल तो दिया है लेकिन अभी भी किसी अस्प्रश्य की यह हिम्मत नहीं हुई है कि वह तालाब से पानी भर लाये। इसलिए यदि हम अध्यक्ष (यानि अम्बेडकर जी) के साथ तालाब पर चलें और इस रूढ़ि को तोडें ताकि इस कानून की असल परीक्षा भी हो जाये। इस पर ब्राम्हणों ने दलितों के द्वारा मंदिर पर हमला करने जैसी एक झूठी अफवाह के तहत लाठी डण्डों से दलितों पर हमला कर दिया। इसके बाद ब्राम्हणें ने उस तालाब में पंचगब्य मिलाकर और वैदिक मंत्रोचार से उस तालाब को शुद्ध किया। डाॅ. अम्बेडकर जी ने देखा कि किसी भी राजनेता ने ब्राह्मणों द्वारा किये गये इस कुकृत्य पर खेद तक प्रकट नहीं किया, इससे उनका हिन्दू धर्म से विश्वास उठ गया।

डाॅ. अम्बेडकर ने गौतमबुद्ध और महात्मा फूले की सोच को केन्द्र में रखकर कड़ा संघर्ष किया और आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता, समता, न्याय और बन्धुत्व का एक सशक्त संदेश दिया। अम्बेडकर की नजर में वास्तविक लोकतंत्र का अर्थ है-’’सभी किस्म के विशेषाधिकारों का खात्मा। नागरिक सेवाओं से लेकर फौज तक, व्यापार से लेकर उद्योग धंधें तक सभी किस्म के विशेषाधिकारों को खत्म किया जाये। वे सारी चीजें खत्म की जायें जिससे असमानता पैदा होती है और जो सही मायनें में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का वाहक बना हुआ है।"
डॉ. अम्बेडकर प्रभावशाली राजनेता और विचारक रहे हैं। वे भारतीय समाज और बाहरी मुल्कों के समाजों की अर्थशास्त्रीय, कानूनी और समाजशास्त्रीय तौर पर गहन जानकारी रखते थे। उन्होंने अध्ययन, लेखन, भाषण, संगठन और सामाजिक आन्दोलनों के बहुत ऐसे काम किए जिसकी बदौलत राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और साॅंस्कृतिक क्षेत्रों में बड़े बदलाव देखने को मिले है। बाबा साहेब कहते थे कि जो व्यक्ति इस सिद्धान्त को मानता है कि एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता है, उसी तरह उसे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग या जाति दूसरे वर्ग या जाति पर शासन नहीं कर सकते है।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है, इसकी धुरी है संविधान, इसी पर हमारा लोकतंत्र अपना संतुलन बनाये हुए है। डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि मैं महसूस करता हॅूं कि संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ इतना मजबूत भी है कि देश को शांति एवं युद्ध दोनों समय में जोड़ कर रख सके। अम्बेडकर जी ने एक ऐसे माॅडल पर विचार किया जो समाजवादी था। उनका विश्वास था कि समाजवादी मॅाडल को स्वीकार किये बिना ना भारत के समाज की दशा को नहीं सुधारा जा सकता है।

डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार-’ मैं ऐसे धर्म को मानता हॅूं जो स्वतंत्रता, समता, न्याय और भाईचारा सिखाये और यदि हम एक एकीकृत आधुनिक भारत चाहते है तो सभी धमों के शास्त्रों के संम्प्रभता का अन्त होना चाहिए।"
धर्म व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति धर्म के लिए नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार देने की वकालत करने वाले डाॅ. अम्बेडकर के बारे में किसी ने नहीं सोंचा होगा कि अम्बेडकर की लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को आधार बनाकर समाज का सबसे कमजोर तबका सत्ता के केन्द्र तक पहुॅंच जायेगा। असल में ये अम्बेडकर के विचारों की जीत है।
आज बहुसंख्यक लोग लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित उनके विचारों और कठोर जीवन संघर्ष से प्रेरित होकर बर्चस्ववादी ताकतों को नकारते हुए लोकतंत्र की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे है। लोकतांत्रिक विचारों के प्रति डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि ’’मनुष्य नश्वर है और उसी तरह विचार भी नश्वर है। प्रत्येक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जिस तरह किसी पौधें को पानी नही दो तो वह मुरझाकर मर जाता है।" लोकतंत्र के विकास में बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के अतुलनीय योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।
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Dr. Dharmendra Singh Katiyar 52
आधुनिक भारत के निर्माण में दो महान समकालीन राजनेता है डाॅ. भीमराव अम्बेडकर जिनका जन्म् 14 अप्रैल,1891 तथा निर्वाण 06 दिसम्बर, 1956 हो हुई थी, इसी क्रम में पं. जवाहर लाल नेहरू जिनका जन्म् 14 नवम्बर, 1889 तथा निर्वाण 27 मई 1964 को हुआ था। इन दोनों ही राजनेताओं को भारत का आधुनिक निर्माता कहा जाता है। जहाॅं पं. नेहरू इलाहाबाद में कुलीन ब्राम्हण परिवार में जन्में वहीं डाॅ. अम्बेडकर का जन्म एक दलित (महार जाति) परिवार में हुआ था। दोनों के लालन-पालन में बहुत बड़ा अन्तर था एक अमीर परिवार में तथा दूसरा...। उसे तो बचपन से ही छुआछूत का सामना करना पड़ा और बड़े होकर भी इस दंश ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। जबकि बढौदा के महाराजा गायकवाड जी महाराज की छात्रवृत्ति पर वे पढ़ने के लिए अमरीका और ब्रिटेन गये वहाॅं उन्होने अर्थशास्त्र और कानून की पढाई पूरी की। उन्होने कोलंबिया यूनिर्वसिटी से 6 विषयों (अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, दर्शनशास्त्र, मानव विज्ञान में एम.ए. किया) में एक साथ उपाधियाॅ गृहण की। अर्थशास्त्र में पीएचडी और डीएससी किया था साथ में बैरिस्टर भी थे।
डाॅ. भीमराव बाबा साहेब अम्बेडकर को हमें आधुनिक मिथ भंजक के रूप में देखना चाहिए। भारत और लोकतंत्र के बारे में परम्परावादियों, सनातनियों, राजनीतिज्ञों, ब्रिटिश बुद्धिजीवियों और शासकों आदि नें अनेक मिथों का प्रचार किया। ये मिथ आज भी आम जनता में अपनी जड़ें जमाये हुए है। डाॅं. अम्बेडकर ने कहा कि ’आज भारत के लोग दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। संविधान की प्रस्तावना में दर्ज स्वतंत्रता, समता और भाईचारा उनके राजनीतिक आदर्श हैं। लेकिन उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इंकार करते है।" बाबा साहेब ने भारतीय समाज का अध्ययन करते हुए उसके बारे में एक नई सोच पैदा की है। भारतीय समाज के अनेक विववादास्पद पहलुओं का आलोचनात्मक और मौलिक विवेचन किया है।
"शिक्षित बनों, संगठित रहो, संघर्ष करो", लोकतांत्रिक संघर्ष के बेहद असरदार इस महामंत्र को देने वाले डाॅ. अम्केडकर की आज दुनियाॅं भर में सराहना की जाती है। बाबा साहेब ने संसदीय लोकतंत्र की व्याख्या करते हुए लिखा-’’संसदीय लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें जनता का काम अपने मालिकों के लिए वोट देना और उन्हें हुकूमत करने के लिए छोड़ देना होता है।’’ अम्बेडकर ने लोकतंत्र को मजदूर वर्ग के नजरियें से देखा और और उस पर अमल करने पर भी जोर दिया।
अम्बेडकर जी के राजनीतिक जीवन की घटना महाड के चवदार तलै (यानी मीठे पानी का तालाब वाली घटना) थी। वे महाड परिषद के अध्यक्ष की हैसियत से अस्प्रश्यों में जागृति फैलाने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए। इस कार्यक्रम में जाति से कायस्थ विनायक चित्रे नाम के एक सज्जन को धन्यवाद ज्ञापन की जिम्मेदारी सौंची गई थी, उन्होंने अपने भाषण में यह सुझाव दिया कि बंबई विधान परिषद के कानून के मुताबित महाड की नगर पालिका ने यहाॅं की चवदार तालाब को सभी जातियों के लिए खोल तो दिया है लेकिन अभी भी किसी अस्प्रश्य की यह हिम्मत नहीं हुई है कि वह तालाब से पानी भर लाये। इसलिए यदि हम अध्यक्ष (यानि अम्बेडकर जी) के साथ तालाब पर चलें और इस रूढ़ि को तोडें ताकि इस कानून की असल परीक्षा भी हो जाये। इस पर ब्राम्हणों ने दलितों के द्वारा मंदिर पर हमला करने जैसी एक झूठी अफवाह के तहत लाठी डण्डों से दलितों पर हमला कर दिया। इसके बाद ब्राम्हणें ने उस तालाब में पंचगब्य मिलाकर और वैदिक मंत्रोचार से उस तालाब को शुद्ध किया। डाॅ. अम्बेडकर जी ने देखा कि किसी भी राजनेता ने ब्राह्मणों द्वारा किये गये इस कुकृत्य पर खेद तक प्रकट नहीं किया, इससे उनका हिन्दू धर्म से विश्वास उठ गया।
डाॅ. अम्बेडकर ने गौतमबुद्ध और महात्मा फूले की सोच को केन्द्र में रखकर कड़ा संघर्ष किया और आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता, समता, न्याय और बन्धुत्व का एक सशक्त संदेश दिया। अम्बेडकर की नजर में वास्तविक लोकतंत्र का अर्थ है-’’सभी किस्म के विशेषाधिकारों का खात्मा। नागरिक सेवाओं से लेकर फौज तक, व्यापार से लेकर उद्योग धंधें तक सभी किस्म के विशेषाधिकारों को खत्म किया जाये। वे सारी चीजें खत्म की जायें जिससे असमानता पैदा होती है और जो सही मायनें में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का वाहक बना हुआ है।"
डॉ. अम्बेडकर प्रभावशाली राजनेता और विचारक रहे हैं। वे भारतीय समाज और बाहरी मुल्कों के समाजों की अर्थशास्त्रीय, कानूनी और समाजशास्त्रीय तौर पर गहन जानकारी रखते थे। उन्होंने अध्ययन, लेखन, भाषण, संगठन और सामाजिक आन्दोलनों के बहुत ऐसे काम किए जिसकी बदौलत राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और साॅंस्कृतिक क्षेत्रों में बड़े बदलाव देखने को मिले है। बाबा साहेब कहते थे कि जो व्यक्ति इस सिद्धान्त को मानता है कि एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता है, उसी तरह उसे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग या जाति दूसरे वर्ग या जाति पर शासन नहीं कर सकते है।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है, इसकी धुरी है संविधान, इसी पर हमारा लोकतंत्र अपना संतुलन बनाये हुए है। डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि मैं महसूस करता हॅूं कि संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ इतना मजबूत भी है कि देश को शांति एवं युद्ध दोनों समय में जोड़ कर रख सके। अम्बेडकर जी ने एक ऐसे माॅडल पर विचार किया जो समाजवादी था। उनका विश्वास था कि समाजवादी मॅाडल को स्वीकार किये बिना ना भारत के समाज की दशा को नहीं सुधारा जा सकता है।
धर्म व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति धर्म के लिए नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार देने की वकालत करने वाले डाॅ. अम्बेडकर के बारे में किसी ने नहीं सोंचा होगा कि अम्बेडकर की लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को आधार बनाकर समाज का सबसे कमजोर तबका सत्ता के केन्द्र तक पहुॅंच जायेगा। असल में ये अम्बेडकर के विचारों की जीत है।
आज बहुसंख्यक लोग लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित उनके विचारों और कठोर जीवन संघर्ष से प्रेरित होकर बर्चस्ववादी ताकतों को नकारते हुए लोकतंत्र की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे है। लोकतांत्रिक विचारों के प्रति डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि ’’मनुष्य नश्वर है और उसी तरह विचार भी नश्वर है। प्रत्येक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जिस तरह किसी पौधें को पानी नही दो तो वह मुरझाकर मर जाता है।" लोकतंत्र के विकास में बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के अतुलनीय योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।