
येल
विश्वविद्यालय द्वारा 4 जून,
2020 को जारी किये गए 180 देशों के पर्यावरण प्रदर्शन में भारत ने
द्विवार्षिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई सूचकांक 2020) के 12 वें संस्करण में 168 रैंक हासिल की.
जो की 2017 में किये गए मूल्यांकन से भी ख़राब स्थिति में
है. वैश्विक सूचकांक पर्यावरणीय प्रदर्शन के अंतर्गत 32 संकेतकों पर विचार किया जाता है, भारत को 2020 के सूचकांक में 100 में से 27.6 अंक दिए गए. अफगानिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश
रैंकिंग में भारत से आगे हैं. पर्यावरणीय प्रदर्शन में भारत से पिछड़ने वाले सिर्फ
11 देश बुरुंडी, हैती, चाड, सोलोमन द्वीप, मेडागास्कर, गिनी, कोटे डी आइवर,
सिएरा लियोन, अफगानिस्तान, म्यांमार और लाइबेरिया है. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक, पर्यावरण स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी प्रणालियों पर 170 देशों का आकलन किया गया. इसमें शीर्ष 10 में यूरोपीय देश हैं, जिनमें स्विट्जरलैंड, लक्समबर्ग और ऑस्ट्रिया शामिल हैं. पर्यावरण प्रदर्शन
सूचकांक के अंतर्गत पारिस्थितिकी तंत्र जीवन शक्ति को 60% और पर्यावरण स्वास्थ्य को 40% अंक देकर सूचकांक का निर्धारण किया जाता है.
डाउन टू अर्थ द्वारा जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में भारत की 2020 में पर्यावरण स्थिति के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत की सतत विकास
लक्ष्यों में भी रैंक निम्न थी.
भारत की पर्यावरण
सूचकांक में यह स्थिति होने के बाबजूद पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन (ईआईए) को लचीला व कमजोर
करती जा रही है. हाल ही में, मंत्रालय ने एक
मसौदा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 का प्रस्ताव दिया गया है, जो वर्तमान अधिसूचना 2006 को कमजोर करता
है.
अधिसूचना की विस्तृत जानकारी - यहां देखें
प्रस्तावित
परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन के लिए पर्यावरण प्रभाव
मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी भी
विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंजूरी देने के लिए लोगों के विचारों को ध्यान
में रखा जाता है. यह मूल रूप से एक निर्णय लेने वाला उपकरण है जो यह तय करता है कि
परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं.
पर्यावरण प्रभाव
मूल्यांकन अधिसूचना 2020 में निम्न
नियमों को कमजोर को करने का प्रस्ताव है..
1.) कार्योत्तर
मंजूरी या स्वीकृति
परियोजनाओं के
लिए मंजूरी दी जा सकती है, भले ही उन्होंने
निर्माण शुरू कर दिया हो या पर्यावरणीय मंजूरी हासिल किए बिना कार्य शुरू कर दिया
हो. इसका अर्थ यह भी है कि परियोजना के कारण होने वाले किसी भी पर्यावरणीय नुकसान
को माफ कर दिया जाएगा, क्योंकि उल्लंघन
वैध हो जाएंगे.
2.) सार्वजनिक
परामर्श प्रक्रिया
प्रस्तावित
अधिसूचना में पर्यावरण मंजूरी की मांग करने वाले किसी भी आवेदन के लिए जनसुनवाई के
दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत करने के लिए 30 दिनों से लेकर 20 दिनों तक की समय अवधि में कमी का प्रावधान है। इससे नुकसान यह है, कि अगर परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों
के विचारों, टिप्पणियों और
सुझावों की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है, तो ऐसी सार्वजनिक सुनवाई सार्थक नहीं होंगी. इससे पूरी ईआईए
प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. इसके अलावा,
समय की कमी विशेष रूप से उन क्षेत्रों में एक
समस्या पैदा करती है. जहां जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है या ऐसे क्षेत्र
जिनमें लोग स्वयं इस प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं.
3.) अनुपालन रिपोर्ट
जारी करना
2006 की अधिसूचना के
अनुसार परियोजना के प्रस्तावक को हर छह महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती
है, जिसमें दिखाया जाता है कि
वे अपनी गतिविधियों को उन शर्तों के अनुसार कर रहे हैं, जिन पर अनुमति दी गई है. नए मसौदे में प्रमोटर को हर साल
केवल एक बार रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी. जिससे इस अवधि के दौरान,
कुछ अपरिवर्तनीय पर्यावरण, परियोजना के सामाजिक या स्वास्थ्य के परिणामों
पर किसी का ध्यान नहीं जा पायेगा. अर्ध-वार्षिक अनुपालन रिपोर्ट इन चिंताओं को दूर
करने में बेहतर मदद करती है.
4.) पर्यावरण प्रभाव
मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार
मसौदा अधिसूचना
में कहा गया है कि स्ट्रेटेजिक परियोजनाओं से संबंधित कोई भी जानकारी सार्वजनिक
डोमेन में नहीं रखी जाएगी. किसी भी तरह का पर्यावरणीय उल्लंघन केवल परियोजना
प्रस्तावक द्वारा, या एक सरकारी
प्राधिकरण, मूल्यांकन समिति, या नियामक प्राधिकरण द्वारा रिपोर्ट किए जा
सकते हैं. यह भारतीय संविधान के नियमो के विरूद्ध है.
इसके अलावा,
मसौदा अधिसूचना में कहा गया है कि नई निर्माण
परियोजनाएं 1,50,000 वर्ग मीटर
(मौजूदा 20,000 वर्ग मीटर के
बजाय) को विशेषज्ञ समिति द्वारा "विस्तृत जांच" की आवश्यकता नहीं है,
न ही उन्हें ईआईए अध्ययन और सार्वजनिक परामर्श
की आवश्यकता है.
उपरोक्त
प्रस्तावित नियमों को देखा जाये तो स्पष्ट है कि नीति निर्माताओं ने देश के
प्राकतिक संसाधनों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को दरकिनार कर अस्थायी विकास पर
ज्यादा ध्यान दिया है. हालाँकि पर्यावरण मंजूरी के बिना काम कर रही औद्योगिक
परियोजनाओं के खिलाफ अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया है, कि इस तरह की अनुमति देना पर्यावरण के लिए
हानिकारक होगा. लेकिन हाल ही में कोरोना वायरस महामारी के समय 30 परियोजनाओं को पर्यावरणीय अनुमति दी गयी.
जिससे बहुत अधिक पर्यावरणीय नुकसान होना है. उदाहरण के लिए अरुणाचल की दिबांग घाटी
में जलविद्युत परियोजना के लिए 2.7 लाख पेड़ काटे
जायेंगे. जबकि ये सिद्ध हो चुका है कि जैव विविधता का संरक्षण न होने के कारण
कोरोना वायरस जैसी बीमारियां फेल रहीं हैं, इसलिए मानव व प्रकृति के अच्छे स्वास्थ के लिए एक अच्छा
पर्यावरण सूचकांक बनाये रखना राज और समाज दोनों की जिम्मेदारी है.
अतः सरकार को
विकास के नाम पर पर्यावरणीय नियमों को कमजोर नहीं करना चाहिए एवं एक अच्छे
लोकतंत्र का उदाहरण दुनिया के सामने रखना चाहिए.
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Gunjan Mishra 31
येल विश्वविद्यालय द्वारा 4 जून, 2020 को जारी किये गए 180 देशों के पर्यावरण प्रदर्शन में भारत ने द्विवार्षिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई सूचकांक 2020) के 12 वें संस्करण में 168 रैंक हासिल की. जो की 2017 में किये गए मूल्यांकन से भी ख़राब स्थिति में है. वैश्विक सूचकांक पर्यावरणीय प्रदर्शन के अंतर्गत 32 संकेतकों पर विचार किया जाता है, भारत को 2020 के सूचकांक में 100 में से 27.6 अंक दिए गए. अफगानिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश रैंकिंग में भारत से आगे हैं. पर्यावरणीय प्रदर्शन में भारत से पिछड़ने वाले सिर्फ 11 देश बुरुंडी, हैती, चाड, सोलोमन द्वीप, मेडागास्कर, गिनी, कोटे डी आइवर, सिएरा लियोन, अफगानिस्तान, म्यांमार और लाइबेरिया है. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक, पर्यावरण स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी प्रणालियों पर 170 देशों का आकलन किया गया. इसमें शीर्ष 10 में यूरोपीय देश हैं, जिनमें स्विट्जरलैंड, लक्समबर्ग और ऑस्ट्रिया शामिल हैं. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक के अंतर्गत पारिस्थितिकी तंत्र जीवन शक्ति को 60% और पर्यावरण स्वास्थ्य को 40% अंक देकर सूचकांक का निर्धारण किया जाता है. डाउन टू अर्थ द्वारा जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में भारत की 2020 में पर्यावरण स्थिति के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत की सतत विकास लक्ष्यों में भी रैंक निम्न थी.
भारत की पर्यावरण सूचकांक में यह स्थिति होने के बाबजूद पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन (ईआईए) को लचीला व कमजोर करती जा रही है. हाल ही में, मंत्रालय ने एक मसौदा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 का प्रस्ताव दिया गया है, जो वर्तमान अधिसूचना 2006 को कमजोर करता है.
अधिसूचना की विस्तृत जानकारी - यहां देखें
प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंजूरी देने के लिए लोगों के विचारों को ध्यान में रखा जाता है. यह मूल रूप से एक निर्णय लेने वाला उपकरण है जो यह तय करता है कि परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं.
1.) कार्योत्तर मंजूरी या स्वीकृति
परियोजनाओं के लिए मंजूरी दी जा सकती है, भले ही उन्होंने निर्माण शुरू कर दिया हो या पर्यावरणीय मंजूरी हासिल किए बिना कार्य शुरू कर दिया हो. इसका अर्थ यह भी है कि परियोजना के कारण होने वाले किसी भी पर्यावरणीय नुकसान को माफ कर दिया जाएगा, क्योंकि उल्लंघन वैध हो जाएंगे.
2.) सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया
प्रस्तावित अधिसूचना में पर्यावरण मंजूरी की मांग करने वाले किसी भी आवेदन के लिए जनसुनवाई के दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत करने के लिए 30 दिनों से लेकर 20 दिनों तक की समय अवधि में कमी का प्रावधान है। इससे नुकसान यह है, कि अगर परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों के विचारों, टिप्पणियों और सुझावों की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है, तो ऐसी सार्वजनिक सुनवाई सार्थक नहीं होंगी. इससे पूरी ईआईए प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. इसके अलावा, समय की कमी विशेष रूप से उन क्षेत्रों में एक समस्या पैदा करती है. जहां जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है या ऐसे क्षेत्र जिनमें लोग स्वयं इस प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं.
3.) अनुपालन रिपोर्ट जारी करना
2006 की अधिसूचना के अनुसार परियोजना के प्रस्तावक को हर छह महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है, जिसमें दिखाया जाता है कि वे अपनी गतिविधियों को उन शर्तों के अनुसार कर रहे हैं, जिन पर अनुमति दी गई है. नए मसौदे में प्रमोटर को हर साल केवल एक बार रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी. जिससे इस अवधि के दौरान, कुछ अपरिवर्तनीय पर्यावरण, परियोजना के सामाजिक या स्वास्थ्य के परिणामों पर किसी का ध्यान नहीं जा पायेगा. अर्ध-वार्षिक अनुपालन रिपोर्ट इन चिंताओं को दूर करने में बेहतर मदद करती है.
4.) पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार
मसौदा अधिसूचना में कहा गया है कि स्ट्रेटेजिक परियोजनाओं से संबंधित कोई भी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में नहीं रखी जाएगी. किसी भी तरह का पर्यावरणीय उल्लंघन केवल परियोजना प्रस्तावक द्वारा, या एक सरकारी प्राधिकरण, मूल्यांकन समिति, या नियामक प्राधिकरण द्वारा रिपोर्ट किए जा सकते हैं. यह भारतीय संविधान के नियमो के विरूद्ध है.
उपरोक्त प्रस्तावित नियमों को देखा जाये तो स्पष्ट है कि नीति निर्माताओं ने देश के प्राकतिक संसाधनों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को दरकिनार कर अस्थायी विकास पर ज्यादा ध्यान दिया है. हालाँकि पर्यावरण मंजूरी के बिना काम कर रही औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया है, कि इस तरह की अनुमति देना पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा. लेकिन हाल ही में कोरोना वायरस महामारी के समय 30 परियोजनाओं को पर्यावरणीय अनुमति दी गयी. जिससे बहुत अधिक पर्यावरणीय नुकसान होना है. उदाहरण के लिए अरुणाचल की दिबांग घाटी में जलविद्युत परियोजना के लिए 2.7 लाख पेड़ काटे जायेंगे. जबकि ये सिद्ध हो चुका है कि जैव विविधता का संरक्षण न होने के कारण कोरोना वायरस जैसी बीमारियां फेल रहीं हैं, इसलिए मानव व प्रकृति के अच्छे स्वास्थ के लिए एक अच्छा पर्यावरण सूचकांक बनाये रखना राज और समाज दोनों की जिम्मेदारी है.
अतः सरकार को विकास के नाम पर पर्यावरणीय नियमों को कमजोर नहीं करना चाहिए एवं एक अच्छे लोकतंत्र का उदाहरण दुनिया के सामने रखना चाहिए.