Oops! Lost, aren't we?
We can not find what you are looking for. Please check below recommendations. or Go to Home
National Research Action Groups
Local Research Action Groups
Geo Profiles of Interest
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक की स्थिति नाज़ुक फिर भी लचीले नियम प्रस्तावित
Leave a comment for the team.
Subscribe to this research.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें
Join us on the latest researches that matter.
इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.
Responses
{{ survey.name }}@{{ survey.senton }}
{{ survey.message }}Reply
- {{ resobj.ourresponse }}
--{{ resobj.respondername }} On {{ resobj.respondedon }}
How It Works
ये कैसे कार्य करता है ?
Follow & Join.
With more and more following, the research starts attracting best of the coordinators and experts.
Build a Team
Coordinators build a team with experts to pick up the execution. Start building a plan.
Fix the issue.
The team works transparently and systematically fixing the issue, building the leaders of tomorrow.
जुड़ें और फॉलो करें
ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।
संगठित हों
हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे
समाधान पायें
कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।
How can you make a difference?
Do you care about this issue? Do You think a concrete action should be taken?Then Follow and Support this Research Action Group.Following will not only keep you updated on the latest, help voicing your opinions, and inspire our Coordinators & Experts. But will get you priority on our study tours, events, seminars, panels, courses and a lot more on the subject and beyond.
आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?
क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
Communities and Nations where citizens spend time exploring and nurturing their culture, processes, civil liberties and responsibilities. Have a well-researched voice on issues of systemic importance, are the one which flourish to become beacon of light for the world.
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
Share it across your social networks.
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें
Every small step counts, share it across your friends and networks. You never know, the issue you care about, might find a champion.
हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।
Got few hours a week to do public good ?
Join the Research Action Group as a member or expert, work with right team and get funded. To know more contact a Coordinator with a little bit of details on your expertise and experiences.
क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?
इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।
Know someone who can help?
क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
Invite by emails.
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.
Code# 5{{ descmodel.currdesc.id }}
By Gunjan Mishra {{descmodel.currdesc.readstats }}
येल विश्वविद्यालय द्वारा 4 जून, 2020 को जारी किये गए 180 देशों के पर्यावरण प्रदर्शन में भारत ने द्विवार्षिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई सूचकांक 2020) के 12 वें संस्करण में 168 रैंक हासिल की. जो की 2017 में किये गए मूल्यांकन से भी ख़राब स्थिति में है. वैश्विक सूचकांक पर्यावरणीय प्रदर्शन के अंतर्गत 32 संकेतकों पर विचार किया जाता है, भारत को 2020 के सूचकांक में 100 में से 27.6 अंक दिए गए. अफगानिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश रैंकिंग में भारत से आगे हैं. पर्यावरणीय प्रदर्शन में भारत से पिछड़ने वाले सिर्फ 11 देश बुरुंडी, हैती, चाड, सोलोमन द्वीप, मेडागास्कर, गिनी, कोटे डी आइवर, सिएरा लियोन, अफगानिस्तान, म्यांमार और लाइबेरिया है. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक, पर्यावरण स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी प्रणालियों पर 170 देशों का आकलन किया गया. इसमें शीर्ष 10 में यूरोपीय देश हैं, जिनमें स्विट्जरलैंड, लक्समबर्ग और ऑस्ट्रिया शामिल हैं. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक के अंतर्गत पारिस्थितिकी तंत्र जीवन शक्ति को 60% और पर्यावरण स्वास्थ्य को 40% अंक देकर सूचकांक का निर्धारण किया जाता है. डाउन टू अर्थ द्वारा जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में भारत की 2020 में पर्यावरण स्थिति के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत की सतत विकास लक्ष्यों में भी रैंक निम्न थी.
भारत की पर्यावरण सूचकांक में यह स्थिति होने के बाबजूद पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन (ईआईए) को लचीला व कमजोर करती जा रही है. हाल ही में, मंत्रालय ने एक मसौदा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 का प्रस्ताव दिया गया है, जो वर्तमान अधिसूचना 2006 को कमजोर करता है.
अधिसूचना की विस्तृत जानकारी - यहां देखें
प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंजूरी देने के लिए लोगों के विचारों को ध्यान में रखा जाता है. यह मूल रूप से एक निर्णय लेने वाला उपकरण है जो यह तय करता है कि परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं.
1.) कार्योत्तर मंजूरी या स्वीकृति
परियोजनाओं के लिए मंजूरी दी जा सकती है, भले ही उन्होंने निर्माण शुरू कर दिया हो या पर्यावरणीय मंजूरी हासिल किए बिना कार्य शुरू कर दिया हो. इसका अर्थ यह भी है कि परियोजना के कारण होने वाले किसी भी पर्यावरणीय नुकसान को माफ कर दिया जाएगा, क्योंकि उल्लंघन वैध हो जाएंगे.
2.) सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया
प्रस्तावित अधिसूचना में पर्यावरण मंजूरी की मांग करने वाले किसी भी आवेदन के लिए जनसुनवाई के दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत करने के लिए 30 दिनों से लेकर 20 दिनों तक की समय अवधि में कमी का प्रावधान है। इससे नुकसान यह है, कि अगर परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों के विचारों, टिप्पणियों और सुझावों की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है, तो ऐसी सार्वजनिक सुनवाई सार्थक नहीं होंगी. इससे पूरी ईआईए प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. इसके अलावा, समय की कमी विशेष रूप से उन क्षेत्रों में एक समस्या पैदा करती है. जहां जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है या ऐसे क्षेत्र जिनमें लोग स्वयं इस प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं.
3.) अनुपालन रिपोर्ट जारी करना
2006 की अधिसूचना के अनुसार परियोजना के प्रस्तावक को हर छह महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है, जिसमें दिखाया जाता है कि वे अपनी गतिविधियों को उन शर्तों के अनुसार कर रहे हैं, जिन पर अनुमति दी गई है. नए मसौदे में प्रमोटर को हर साल केवल एक बार रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी. जिससे इस अवधि के दौरान, कुछ अपरिवर्तनीय पर्यावरण, परियोजना के सामाजिक या स्वास्थ्य के परिणामों पर किसी का ध्यान नहीं जा पायेगा. अर्ध-वार्षिक अनुपालन रिपोर्ट इन चिंताओं को दूर करने में बेहतर मदद करती है.
4.) पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार
मसौदा अधिसूचना में कहा गया है कि स्ट्रेटेजिक परियोजनाओं से संबंधित कोई भी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में नहीं रखी जाएगी. किसी भी तरह का पर्यावरणीय उल्लंघन केवल परियोजना प्रस्तावक द्वारा, या एक सरकारी प्राधिकरण, मूल्यांकन समिति, या नियामक प्राधिकरण द्वारा रिपोर्ट किए जा सकते हैं. यह भारतीय संविधान के नियमो के विरूद्ध है.
उपरोक्त प्रस्तावित नियमों को देखा जाये तो स्पष्ट है कि नीति निर्माताओं ने देश के प्राकतिक संसाधनों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को दरकिनार कर अस्थायी विकास पर ज्यादा ध्यान दिया है. हालाँकि पर्यावरण मंजूरी के बिना काम कर रही औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया है, कि इस तरह की अनुमति देना पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा. लेकिन हाल ही में कोरोना वायरस महामारी के समय 30 परियोजनाओं को पर्यावरणीय अनुमति दी गयी. जिससे बहुत अधिक पर्यावरणीय नुकसान होना है. उदाहरण के लिए अरुणाचल की दिबांग घाटी में जलविद्युत परियोजना के लिए 2.7 लाख पेड़ काटे जायेंगे. जबकि ये सिद्ध हो चुका है कि जैव विविधता का संरक्षण न होने के कारण कोरोना वायरस जैसी बीमारियां फेल रहीं हैं, इसलिए मानव व प्रकृति के अच्छे स्वास्थ के लिए एक अच्छा पर्यावरण सूचकांक बनाये रखना राज और समाज दोनों की जिम्मेदारी है.
अतः सरकार को विकास के नाम पर पर्यावरणीय नियमों को कमजोर नहीं करना चाहिए एवं एक अच्छे लोकतंत्र का उदाहरण दुनिया के सामने रखना चाहिए.
Attached Images