दिल्ली का जलभराव - समस्या और समाधान
एक अपील ‘जन गण मन’ के उस ‘जन’ से जिसे भारत का भाग्य-विधाता कहा गया है. आज उसे य समझना होगा की सरकारी तंत्र उसे नहीं बल्कि तंत्र को वह चलाते हैं. आज उसे यह समझना होगा की भारत की जिस छवि को वह देखना चाहते हैं उसके निर्माण और भाग्य का फैसला अब उसे ही करना है. उसे आज समझने की जरुरत है कि उसके देश की राजधानी एक बारिश में क्यों डूब जाती है, उसे बदला कैसे जाए? उसके पीछे समस्या क्या है और इसका समाधान क्या हो सकता है? हमने एक कोशिश की है, अब आप जरा सी मेहनत इसे पढने और समझने में करें.
दिल्ली में बारिश होते ही पूरी दिल्ली पानी में डूब जाती है. जलभराव के कारण पूरी दिल्ली ठहर सी जाती है. मगर जब हर बार ही ऐसा होता है तो सरकारी महकमा इसपर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा पाता है? कारण लापरवाही और समस्या के प्रति गंभीरता का ना होना है. समाधान की ओर अगर गंभीरता से सोचा जाए तो इस चुनौती से भी निपटा जा सकता है मगर जिम्मेदारियों का एक दूसरे पर थोप कर बच निकलने की हमारी आदत पुरानी रही है.

आइए समझने की कोशिश करते है इस खेल को. करीब 17 सरकारी ऐजेंसियां दिल्ली की सड़क, नालियों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार हैं. मगर मुख्य तौर पर एमसीडी और पीडब्लूडी की जवाबदेही कुछ ज्यादा है. एमसीडी पर 23,931 किलोमीटर सड़कों की जिम्मेदारी है, उसे नालों से गाद और कूड़े की सफाई करनी होती है जिसके लिए वह करदाताओं के 500 करोड़ हर वर्ष खर्च करता है. वहीं पीडब्लूडी के हिस्से 1200 किलोमीटर सड़क आती है. उसे नालों से गाद, कूड़ा हटाना और गड्ढों को भरना होता है जिसपर वह प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपये खर्च करता है. प्रति वर्ष 700 करोड़ रुपये और साथ ही अन्य सरकारी ऐजेंसियां द्वारा किये जाने वाला खर्च के बावजूद जब दिल्ली पानी-पानी होता है तो यहां के निवासियों का सीना गर्व से तो फूल ही जाता होगा?

वर्ष दर वर्ष दिल्ली पर आबादी का बोझ बढ़ता ही गया है. मगर जल निकासी की व्यवस्था के लिए कोई ठोस कदम उठाये ही नहीं गए हैं. 'दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम 70 साल पुराना है मगर तब से अबतक आबादी का बोझ कई गुणा बढ़ गया है. जहां ड्रेनेज की क्षमता बढ़नी चाहिए थी वो 30 फीसदी तक घट गई है. ड्रेनेज सिस्टम को ठीक किये बिना जलभराव से निजात पाना संभव ही नहीं है. यहां के कई ड्रेन भर चुके हैं. शहरीकरण के खेल में अनियमित कॉलोनियां बनी जिससे ड्रेनेज बर्बाद हो गए. ड्रेनेज के कचरे को साफ़ नहीं किया जाता. कैग की 2014 की रिपोर्ट में कहा गया था कि नालियों से
गाद निकालने का काम एक धोखा है. बाढ़ नियंत्रण विभाग ने 2010-13 में 8,30,000 क्यूबिक मीटर गाद नजफगढ और ट्रंक
वन ड्रेन से निकाली, लेकिन सिर्फ 1,00,000 क्यूबिक मीटर वहां से हटाया गया. बाकी वहीं छोड़ दिया गया. क्या
यह वापस बह कर उसी में नहीं गई होगी?
दिल्ली में पाइप सिस्टम की भी समस्या
अहम है. दक्षिण और पश्चमी दिल्ली में पानी निकलने के लिए मोटे पाइप नहीं डले हैं, इस कारण पंपों से पानी निकाल भी ले तो
भी पानी आगे नहीं जा पाता. कई ड्रेन में कनेक्टिविटी की समस्या है. गलत योजना के
कारण कहीं-कहीं तो बड़े ड्रेन आगे जाकर बेहद ही संकरे ड्रेन में मिलते हैं. इसके
चलते पंप सही से काम नहीं कर पा रहे हैं. यहां यह जानकारी होना भी बेहद जरुरी है
की कभी दिल्ली में 600 वाटर बॉडी होती थीं, जो अब 150 रह गई हैं. आखिर ड्रेनेज
सिस्टम दुरुस्त हो भी जाए तो यह पानी जाए कहां, क्योंकि सभी ड्रेनेज को आपस में
जोड़ पाना कतई संभव नहीं है. कैग की ही रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्ष 2001 में बने
दिल्ली के मास्टर प्लान में बेहतर ड्रेनेज के लिए भी प्लान बनना था. इसके लिए वर्ष
2005 में एक कमेटी भी बनाई गई लेकिन वर्ष 2012 तक भी कुछ नहीं हुआ. हम जिस ड्रेनेज
की अनदेखी की बात कर रहें हैं कैग भी अपनी इसी रिपोर्ट में कहता है कि यहां ड्रेनेज
सिस्टम ही ठीक नहीं है और न ही इसकी ठीक से सफाई की जाती है. यहां की 56 सड़कों का ढलान
ही ठीक नहीं है जिससे की पानी निकल सके. तो वहीं 60 प्रतिशत जाम खराब नालियों से जलभराव
के कारण होता है.

समस्या जितनी गंभीर है चिंता उससे कहीं ज्यादा कम. हमें अपनी जिम्मेदारी भी तय करने की जरूरत है आखिर हमने साफ-सुथरी दिल्ली के लिए क्या किया? जहां सरकार और सरकारी एजेंसियां सोई हों वहां कौम को जगना ही पड़ता है. जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती. और कहते है ना, ‘जो जिंदा हैं तो जिंदा नज़र आना जरूरी है. तो आइए हमारी कोशिश में आप भी सहभागीदार बने, BallotBoxIndia के साथ अपने समाज को बदलने और बनाने में आप भी अपनी भूमिका अदा करें. देश के लिए कुछ करने की अब आपकी बारी.
तबतक – जलभराव के मुख्य कारण और ड्रेनेज सिस्टम की अनदेखी पर हमारी ग्राउंड जीरो वाली रिसर्च रिपोर्ट देखें :
Team BallotBoxIndia
By
Swarntabh Kumar 64
दिल्ली का जलभराव - समस्या और समाधान
एक अपील ‘जन गण मन’ के उस ‘जन’ से जिसे भारत का भाग्य-विधाता कहा गया है. आज उसे य समझना होगा की सरकारी तंत्र उसे नहीं बल्कि तंत्र को वह चलाते हैं. आज उसे यह समझना होगा की भारत की जिस छवि को वह देखना चाहते हैं उसके निर्माण और भाग्य का फैसला अब उसे ही करना है. उसे आज समझने की जरुरत है कि उसके देश की राजधानी एक बारिश में क्यों डूब जाती है, उसे बदला कैसे जाए? उसके पीछे समस्या क्या है और इसका समाधान क्या हो सकता है? हमने एक कोशिश की है, अब आप जरा सी मेहनत इसे पढने और समझने में करें.
दिल्ली में बारिश होते ही पूरी दिल्ली पानी में डूब जाती है. जलभराव के कारण पूरी दिल्ली ठहर सी जाती है. मगर जब हर बार ही ऐसा होता है तो सरकारी महकमा इसपर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा पाता है? कारण लापरवाही और समस्या के प्रति गंभीरता का ना होना है. समाधान की ओर अगर गंभीरता से सोचा जाए तो इस चुनौती से भी निपटा जा सकता है मगर जिम्मेदारियों का एक दूसरे पर थोप कर बच निकलने की हमारी आदत पुरानी रही है.
आइए समझने की कोशिश करते है इस खेल को. करीब 17 सरकारी ऐजेंसियां दिल्ली की सड़क, नालियों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार हैं. मगर मुख्य तौर पर एमसीडी और पीडब्लूडी की जवाबदेही कुछ ज्यादा है. एमसीडी पर 23,931 किलोमीटर सड़कों की जिम्मेदारी है, उसे नालों से गाद और कूड़े की सफाई करनी होती है जिसके लिए वह करदाताओं के 500 करोड़ हर वर्ष खर्च करता है. वहीं पीडब्लूडी के हिस्से 1200 किलोमीटर सड़क आती है. उसे नालों से गाद, कूड़ा हटाना और गड्ढों को भरना होता है जिसपर वह प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपये खर्च करता है. प्रति वर्ष 700 करोड़ रुपये और साथ ही अन्य सरकारी ऐजेंसियां द्वारा किये जाने वाला खर्च के बावजूद जब दिल्ली पानी-पानी होता है तो यहां के निवासियों का सीना गर्व से तो फूल ही जाता होगा?
वर्ष दर वर्ष दिल्ली पर आबादी का बोझ बढ़ता ही गया है. मगर जल निकासी की व्यवस्था के लिए कोई ठोस कदम उठाये ही नहीं गए हैं. 'दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम 70 साल पुराना है मगर तब से अबतक आबादी का बोझ कई गुणा बढ़ गया है. जहां ड्रेनेज की क्षमता बढ़नी चाहिए थी वो 30 फीसदी तक घट गई है. ड्रेनेज सिस्टम को ठीक किये बिना जलभराव से निजात पाना संभव ही नहीं है. यहां के कई ड्रेन भर चुके हैं. शहरीकरण के खेल में अनियमित कॉलोनियां बनी जिससे ड्रेनेज बर्बाद हो गए. ड्रेनेज के कचरे को साफ़ नहीं किया जाता. कैग की 2014 की रिपोर्ट में कहा गया था कि नालियों से गाद निकालने का काम एक धोखा है. बाढ़ नियंत्रण विभाग ने 2010-13 में 8,30,000 क्यूबिक मीटर गाद नजफगढ और ट्रंक वन ड्रेन से निकाली, लेकिन सिर्फ 1,00,000 क्यूबिक मीटर वहां से हटाया गया. बाकी वहीं छोड़ दिया गया. क्या यह वापस बह कर उसी में नहीं गई होगी?
दिल्ली में पाइप सिस्टम की भी समस्या अहम है. दक्षिण और पश्चमी दिल्ली में पानी निकलने के लिए मोटे पाइप नहीं डले हैं, इस कारण पंपों से पानी निकाल भी ले तो भी पानी आगे नहीं जा पाता. कई ड्रेन में कनेक्टिविटी की समस्या है. गलत योजना के कारण कहीं-कहीं तो बड़े ड्रेन आगे जाकर बेहद ही संकरे ड्रेन में मिलते हैं. इसके चलते पंप सही से काम नहीं कर पा रहे हैं. यहां यह जानकारी होना भी बेहद जरुरी है की कभी दिल्ली में 600 वाटर बॉडी होती थीं, जो अब 150 रह गई हैं. आखिर ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त हो भी जाए तो यह पानी जाए कहां, क्योंकि सभी ड्रेनेज को आपस में जोड़ पाना कतई संभव नहीं है. कैग की ही रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्ष 2001 में बने दिल्ली के मास्टर प्लान में बेहतर ड्रेनेज के लिए भी प्लान बनना था. इसके लिए वर्ष 2005 में एक कमेटी भी बनाई गई लेकिन वर्ष 2012 तक भी कुछ नहीं हुआ. हम जिस ड्रेनेज की अनदेखी की बात कर रहें हैं कैग भी अपनी इसी रिपोर्ट में कहता है कि यहां ड्रेनेज सिस्टम ही ठीक नहीं है और न ही इसकी ठीक से सफाई की जाती है. यहां की 56 सड़कों का ढलान ही ठीक नहीं है जिससे की पानी निकल सके. तो वहीं 60 प्रतिशत जाम खराब नालियों से जलभराव के कारण होता है.
समस्या जितनी गंभीर है चिंता उससे कहीं ज्यादा कम. हमें अपनी जिम्मेदारी भी तय करने की जरूरत है आखिर हमने साफ-सुथरी दिल्ली के लिए क्या किया? जहां सरकार और सरकारी एजेंसियां सोई हों वहां कौम को जगना ही पड़ता है. जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती. और कहते है ना, ‘जो जिंदा हैं तो जिंदा नज़र आना जरूरी है. तो आइए हमारी कोशिश में आप भी सहभागीदार बने, BallotBoxIndia के साथ अपने समाज को बदलने और बनाने में आप भी अपनी भूमिका अदा करें. देश के लिए कुछ करने की अब आपकी बारी.
तबतक – जलभराव के मुख्य कारण और ड्रेनेज सिस्टम की अनदेखी पर हमारी ग्राउंड जीरो वाली रिसर्च रिपोर्ट देखें :
Team BallotBoxIndia