धान पुराल डंप करना क्यों बन रहा है किसानों भाइयों के लिए समस्या ?
इन दिनों हरियाणा के धान उत्पादक किसान एक बड़ी परेशानी से दो-चार हो रहे हैं। किसानों की समस्या है धान का पुराल। जिसे खेत से खत्म करना उनके लिए बड़ा चैलेंज बन गया है। पिछले कुछ सालों तक तो किसान सीधे पुराल में आग लगा देते थे। चार साल से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर रोक लगा दी है। तर्क दिया है कि पुराल जलाने से प्रदूषण होता है। यह प्रदूषित हवा दिल्ली तक पहुंच जाती है। इससे दिल्ली में प्रदूषण का लेवल बढ़ जाता है। हरियाणा किसान युनियन के प्रधान गुरनाम सिंह चढुनी ने बताया कि इसके पीछे कोई रिसर्च नहीं है। बस यह मान लिया गया कि पुराल जलाने से प्रदूषण होता है। इसी सोच के चलते एनजीटी ने पुराल जलाने पर न सिर्फ रोक लगा दी, बल्कि यदि कोई किसान ऐसा करता पाया गया तो उसके खिलाफ जुर्माना भी लगाया जाएगा। हरियाणा में 360 किसानों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो गई है।
आखिर क्यों कानून हाथ में ले रहे किसान ?
यमुनानगर के किसान हरपाल सिंह ने बताया कि पुराल को खत्म करना बेहद मुश्किल काम है। क्योंकि धान की कटाई के बाद किसानों को एक दम से गेहूं की बिजाई करनी होती है। इसके पीछे सोच यह रहती है कि किसान धान की नमी में ही गेहूं की बिजाई कर ले। क्योंकि सर्दी के सीजन में यदि खेत की सिंचाई कर गेहूं की बिजाई का काम किया जाता है तो इसमें तकरीबन 15 से लेकर 25 दिन तक लग सकते हैं। पुराल वाले खेत की बुहाई के किसानों को हैवी मशीन चाहिए,जैसे बड़ा ट्रैक्टर। अब दिक्कत यह है कि ज्यादातर किसान तो गरीब है, इतनी बड़ी मशीन वें खरीद ही नहीं सकते। ऐसे में आसान रास्ता बचता है आग लगाना। यहीं वजह है कि किसान खेत में आग लगा देते है।
धान पुराल क्यों बन रहा समस्या ?
करनाल के किसान महेंद्र ने बताया कि इसकी वजह यह है कि खेतों में काम करने वाली लेबर की भारी कमी है। किसान धान की कटाई के लिए अब हारवेस्टर मशीन का इस्तेमाल करते है। हाथ से धान कटाई के बाद पुराल नहीं बचता था। यह लंबी प्रक्रिया थी और इसमें काफी समय भी लगता है। हारवेस्टर से एक घंटे में करीब दो एकड़ धान कट जाती है जबकि हाथ से इतना धान काटने के लिए तीन से चार दिन लग जाते थे। लेकिन हारवेस्टर खेत में पुराल छोड़ देता है। वह बीच से धान को काटता है, इस वजह से न तो इसकी बुहाई हो सकती है और न ही इसे निपटाया जा सकता है। इस कारण पुराल किसानों के लिए समस्या बना हुआ है।
पुराल से क्या वास्तव में प्रदूषण हो रहा है?
इस पर अभी तक हरियाणा में तो कोई रिसर्च नहीं हुआ है। हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हरियाणा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मैंबर सेक्रेटरी एस नारायणन ने बताय कि इस बारे में कोई निश्चित डाटा तो नहीं है। यह तो कामन सी बात है, कुछ भी जलता है तो उससे प्रदूषण होता ही है। प्रदूषण बोर्ड के एक अन्य सदस्य ने बताया कि क्योंकि इन दिनों दिल्ली में धुएं के बादल बन जाते हैं। इधर पंजाब व हरियाणा में किसान खेत में पुराल जलाते हैं, इसलिए यह सोच बनी है कि इसकी वजह पुराल जलाना है। यहीं वजह है कि पुराल के जलान पर एनजीटी ने रोक लगा दी। लेकिन किसान इस बात से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि धान के पुराल से सिर्फ राख होती है। इससे ज्यादा धुआं तो फैक्ट्रियों से निकल रहा है। प्रदूषण की वजह कुछ और हैं, लेकिन दंडित उन्हें किया जा रहा है।
अपनी जिम्मेदारी किसानों पर डाल रही सरकार
इधर किसानों ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच रही है। पुराल की समस्या का समाधान क्या हो, इस बारे में सरकार ने कुछ नहीं किया। जबकि कृषि विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को धान कटाई से पहले ही इस ओर देखना चाहिए था। किसानों के पास जब पुराल को ठिकान लगाने का विकल्प ही नहीं होता तो वें करेंगे क्या? भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशायक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार हैवी मशीनरी किसानों के लिए सस्ते रेट पर उपलब्ध नहीं करा रही है।
और कागजों में ही उलझ गया प्रपोजल
करीब एक साल पहले हरियाणा के कृषि विभाग ने धान पुराल जलाने से किसानों को रोकने के लिए 20 करोड़ रुपए का प्रपोजल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास भेज दिया। लेकिन यह स्पष्ट नही किया कि इससे प्रदूषण कम कैसे होगा। कितना कम होगा। एक साल तक यह फाइल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर में पड़ी रही। हालांकि योजना यह थी कि इस फंड से ऐसी मशीन ली जाए तो पुराल के बंडल बना ले। इन बंडलों को किसान गत्ता व कागज बनाने वाली फैक्टरी को बेच सकते थे। दूसरी ऐसी मशीन किसानों के लिए खरीदी जानी थी जिससे किसान पुराल वाले खेत में सीधी बिजाई कर सके। सरकारी विभागों की लापरवाही की वजह से यह योजना पूरी नहीं हो सकी। अब किसानों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
गरीब किसान के जुर्माने के पैसे से होगी जागरूकता
पुराल का प्रदूषण दिल्ली के खतरा है, इधर सरकारों के पास किसानों को जागरूक करने तक के लिए फंड नहीं है। इस बार अभी तक किसानों से 10 लाख रूपए जुर्माना वसूला गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की योजना यह है कि इस पैसे से किसानों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता लाई जाए। पर्यावरण विशेषज्ञ डाक्टर अजय गुप्ता ने बताया कि इससे साफ पता चल रहा है कि सरकार पुराल के प्रदूषण को लेकर कितनी गंभीर है। क्योंकि एनजीटी का डंडा चला है, इसलिए सरकार ने किसान की कमर सामने कर दी। ताकि खुद को बचाया जा सके। अन्यथा सरकार का पुराल के प्रदूषण से कोई लेना देना ही नहीं है।
किसानों के लिए भी आत्मघाती कदम है पुराल जलाना
कृषि विशेषज्ञ डाक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि खेत में पुराल जलाना किसानों के लिए आत्मघाती कदम है। पहली बात तो यह है कि जब पुराल जलता है तो किसान को मौके पर रहना पड़ता है। क्योंकि डर रहता है कि आग भड़क कर दूसरे खेतों में न चली जाए। दूसरी वजह यह है कि इसका जमीन पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है। आग से जमीन का तापमान बढ़ जाता है, इससे कई तहर के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जमीन के पोषक तत्व कम हो जाते हैं। इसके साथ ही जमीन बंजर होना शुरू हो जाती है। इसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है।
पर किसान के पास विकल्प क्या है?
यदि इस पुराल को खेत में ही सड़ा दिया जाए तो यह जमीन के लिए बहुत अच्छी खाद बन सकती है। यह तभी संभव है जब सरकार इसके लिए योजना बनाए। क्योंकि इसके लिए अलग से योजना बनानी होगी। पुराल वाले खेत में गेहूं की सीधी बिजाई संभव नहीं है। इसके लिए स्प्रिंकलर चाहिए, इससे धान धीरे धीरे खेत में ही खाद में तब्दील हो जाएगा। ऐसा हुआ तो गेहूं में रसायनिक खाद डालने की जरूरत कुछ हद तक कम होगी। इससे किसानों का पैसा बचेगा। इस दिशा में योजना बननी चाहिए। डाक्टर अशोक का कहना है कि प्रदूषण का हल जुर्माना नहीं किसानों के लिए विकल्प उपलब्ध कराना है।
चुनावी फ़ायदा देखती है सरकार
अभी क्योंकि हरियाणा में चुनाव नहीं है, इसलिए सरकार किसानों पर जुर्माना लगा सकती है। तीन साल बाद जब चुनाव होंगे तो जुर्माना नहीं लगा सकती। तब सरकार किसानों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। पंजाब में ऐसा ही हो रहा है। पंजाब में एक भी किसान पर जुर्माना नहीं लगा। लेकिन यह प्रदूषण का हल नहीं है। हल है- सही और सस्ते विकल्प, जो किसान की पहुंच में भी हो।
This is only a prelim research, stay tuned while we explore more factors behind the smog along with the actual solutions starting with the crop stubble burning in Punjab and Haryana.
Ways to keep in touch and support this initiative.