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सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भारत - एक भारत एक आर. टी. आई. डिजिटल भारत पर एक शोध और समीक्षा

  • सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भारत - एक भारत एक आर. टी. आई. डिजिटल भारत पर एक शोध और समीक्षा
  • Jul 12, 2015
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सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शुरुआत बहुत जोर शोर के साथ और इस उम्मीद के साथ हुई कि देश के नागरिकों को सरकारी तंत्र से स्पष्ट और अधिकृत जानकारी, बिना किसी अड़चन के, सुगमता से पाने का अधिकार होगा. इसके लागू होने के १० वर्ष बाद भी इसका बुनियादी ढांचा इतना लचर है कि आज तक इसके दक्ष, युक्तिसंगत, विश्वसनीय और विश्लेषणयोग्य जानकारी देने की क्षमता पर सवालिया निशान खड़े होते रहते है.    

इस कार्य समूह द्वारा हमारी कोशिश होगी कि नागरिकों के लिए बने इस सूचना के अधिकार कानून के अनुपालन होने में देश भर में (केंद्र और सभी राज्यों में) एकरूपता और सुसंगति हो व इसके अंतर्गत प्रदान की जाने वाली जानकारी की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार हो.  

इस कानून के तहत प्राप्त अनुभवों के आधार पर हम समझते है कि इस कानून के अनुपालन में निम्नलिखित मूलभूत सिद्धांतों की प्राथमिकता परमावश्यक है:१. इस क़ानून को सार्थक बनाने के लिए  इसका पारिस्थिकी तंत्र डिजिटल व सुसंगत होना चाहिए एवं उसका स्पष्ट मानकीकरण बनना चाहिये. अखिल भारत के स्तर पर इससे जानकारी का आदान प्रदान सुलभ हो सके इसके लिए इसे एक केंद्रीय व्यवस्था बनानी चाहिये.२. जो भी जानकारी मांगी जाये उसे उचित प्रारूप और मूल तत्व सहित प्रदान करने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए. याचिकाकर्ता जो भी जानकारी हासिल करना चाहे उसे पूर्ण रूप से दिया जाना अनिवार्य हो एवं अधूरी/संकुचित/असत्य अथवा अनावश्यक विवरण से परहेज़ करना चाहिए.३. एक सुदृढ़ व त्वरित कारगर प्रतिपुष्टि तंत्र का निर्माण दोनों पक्षों अर्थात  सरकारी लोक सूचना अधिकारी व याचिकाकर्ताओं के सहायता के लिए बनाना श्रेयस्कर होगा. (विशेषकर जब कोई याचिकाकर्ता बार-बार  ऐसी सूचना चाहता हो जो अधिनियम के मूल उद्देश्यों से इतर हो.)सभी केंद्रीय मंत्रालयों को सुगमता से http://rti.gov.in के माध्यम से अभिगम किया जा सकता है – इससे ये स्पष्ट लाभ है कि केंद्र के आधीन सरकारी तंत्र से अंतराफलक (इंटरफ़ेस) करने के लिए एक मानक व्यवस्था सुस्थापित है. यह वेबसाइट इस्तेमाल करने में भी सहज है और इसका भुगतान अदायगी मार्ग (पेमेंट गेटवे) भी सुदृढ़ है. किसी भी याचिका को कुछ ही मिनटों में इसके द्वारा भेजा जाना सुगम है. आपको दस रुपये का भुगतान नेट बैंकिंग अथवा क्रेडिट कार्ड से करना है और आपकी याचिका सम्बंधित सूचना अधिकारी के पास पहुच जाती है. एक स्वचालित टिकट तंत्र हर याचिका के लिए एक अनोखी संख्या स्वतः निर्दिष्ट कर देता है जिसे एक सन्दर्भ के तौर पर भविष्य में किसी भी अनुवर्तन के लिए उपयोग किया जा सकता है. मगर इस व्यवस्था में भी कुछ खामिया है जो किसी कारगर प्रतिपुष्टि तंत्र के नहीं होने के परिणामस्वरुप है.

मिसाल के तौर पर :    

 वर्तमान व्यवस्था में अगर कोई सूचना अधिकारी अपने मन में चाह ले तो वो आपकी याचिका को तथाकथित सरकारी मकडजाल में डाल कर आपको घुमाता रहेगा और आपको अभीष्ट सूचना नहीं मिल पाएगी – भले ही आप मुख्य सूचना आयुक्त के पास पहली अपील कर दे या दूसरी अपील भी कर के आजमा ले. हमारे अनुभव से ऐसी स्थिति में सारे प्रयास (समय, साधन और शक्ति) निष्फल हो जाते है. देखा गया है कि याचिकाकर्ता के प्रत्युत्तर में प्रदत्त अपनी प्रथम प्रतिक्रिया में सूचना अधिकारी अमूमन सही जानकारी देने से कतराते है अथवा वो अधूरी और अनर्गल जानकारी दे देते है. याचिकाकर्ता को होशियारी और दृढ आग्रह के साथ संपूर्ण जानकारी सही प्रारूप में लेने का प्रयास जारी रखना चाहिए या भिन्न तरीके तलाशना चाहिए. एक इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मांगी गई सूचना दर्ज करने के बाद आपको कदाचित एक अंतहीन सरकारी कागज़ी श्रंखला से भी सामना करना पड सकता है. इसमें दसियों विभागों के टिकट संख्या/फाइल संख्या शामिल हो सकती है. याचिकाकर्ता को सैकड़ों स्पीड पोस्ट का संज्ञान रखना होता है जो उसे एक विभाग से दुसरे विभाग में भेजे जाने वाले पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि के रूप में मिलता रहता है. आपको भले ही ये हास्यास्पद लगे पर ये अनुभूत है. इतनी  बेमानी जानकारी का ढेर भेजना क्या सरकारी धन, कागज़ और श्रम  के  अपव्यय का एक प्रबल उदहारण नहीं है?     उपरोक्त लिखित खामियों के बावजूद भी वर्तमान व्यवस्था केंद्रीय मंत्रालयों के विभागों से सीधे संवाद स्थापित करने हेतु मूलभूत मंच प्रदान कर देने में बहुत हद तक सफल सिद्ध हुई है. केंद्रीय मंत्रालय आमतौर पर दक्षता से काम करते है और अगर याचिकाकर्ता सविनयता और धीरज के साथ प्रयासरत रहे तो कुछ सकारात्मक प्रतिफल प्राय निकल आता है. याचिकाकर्ता और सूचना अधिकारी के दृष्टिकोण में भिन्नता होना स्वाभाविक है परन्तु इमानदारी से हो रहे तमाम प्रयासों को भी सिरे से नकारा नहीं जा सकता है. राज्यों द्वारा सूचना के अधिकार क़ानून के अनुपालन में विसंगतियां और असमानताए क्यों विद्यमान है?हमारा प्रयास रहेगा कि हम http://rti.gov.in के प्रतिपुष्टि तंत्र को मज़बूत करने के लिए एक स्वतंत्र और विशेष कार्य समूह का गठन कर उससे अपनी मुहिम को मुखर करे परन्तु उसके पहले हम इस सन्दर्भ में राज्यों के हाल पर भी चर्चा करना आवश्यक समझते है. हम सभी इस बात को स्वीकार करेंगे कि जनकल्याण की अधिकतर योजनाये अंततः राज्य सरकारों के माध्यम से ही लोगों तक पहुचती है. जिस गति से केंद्र सरकार अपने तमाम लोकहित कार्यक्रमों को लागू करने का अधिकार राज्य सरकारों को हस्तांतरित कर रही है उससे आवश्यक हो गया है कि राज्यों में सूचना के अधिकार अधिनियम के त्वरित अनुपालन के लिए एक सुदृढ़ तंत्र का विकास हो जो केंद्र के तंत्र (http://rti.gov.in) के समकक्ष और स्पष्ट मानक लिए हुए बने. अगर सूचना के अधिकार अधिनियम के अनुपालन में केंद्र और राज्यों में व्याप्त वस्तुस्थिति का तुलनात्मक विवेचन किया जाये तो दर्जनों विस्मयकारी विसंगतियां प्रगट होती है. 

उदहारण के लिए, अगर किसी राज्य सरकार के अंतर्गत याचिका भेजनी हो तो :    

1. सर्वप्रथम उस राज्य के सम्बंधित विभाग के सूचना अधिकारी और उसके आधिकारिक पता ज्ञात करें.

2. सम्बंधित राज्य में याचिका के साथ कितनी निर्धारित शुल्क राशि जमा करनी है इसकी भी पुख्ता जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है. आपके द्वारा भेजी गई याचिका के साथ शुल्क राशि अपर्याप्त है तो प्रबल सम्भावना है कि आपकी याचिका को सरसरी तौर पर ही खारिज कर दिया जाएगा.3. यदि सम्बंधित राज्य में याचिका दायर करने के लिए कोई विशेष प्रारूप है तो उसकी जानकारी भी अवश्य ले और अपनी याचिका को उसी प्रारूप में भर कर देना होगा अन्यथा आपकी याचिका को  ख़ारिज कर दिया जायेगा. सनद रहे कि सादे कागज़ में दाखिल की गई याचिका भले ही सुस्पष्ट व सम्बंधित विषयवस्तु से संपूर्ण हो; यहाँ निर्धारित प्रारूप के अलावा जमा किसी भी याचिका पर कार्यवाही होना संदिग्ध ही है.4. अब आपको अपने नजदीकी डाक घर में जाकर निर्धारित राशि के पोस्टल आर्डर खरीद कर उसे अपनी याचिका के साथ संलग्न करना होगा. विडम्बना ये भी है ये पोस्टल आर्डर डाक घरों में प्राय अनुपलब्ध रहते है और जहाँ उपलब्ध भी है वहां डाक घर इन्हें दिन में कुछ घंटो के लिए ही खिड़की से निर्गत करते है. अस्तु निर्धारित शुल्क हेतु पोस्टल आर्डर को प्राप्त करना भी दुसाध्य है और उसके लिए भी आपको धैर्य और अपने स्थानीय सामाजिक संपर्कों की ज़रुरत पड़ती है.5. इसके पश्चात ही  आप अपनी याचिका को सम्बंधित राज्य सूचना अधिकारी के पते पर स्पीड पोस्ट अथवा पंजीकृत डाक से भेज सकते है.6. किसी प्रतिपुष्टि तंत्र के अभाव में या तो आप किसी आधिकारिक प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा  में महीनो बैठे रहे अथवा अपने स्तर से जानकारी हासिल करने का प्रयास करे. संभव है कि राज्य सूचना अधिकारी के अधीनस्थ विभाग से आपको ये भी उत्तर मिले कि आपकी याचिका अपूर्ण है (निर्धारित शुल्क अपर्याप्त है अथवा सही प्रारूप में दाखिल नहीं है अथवा कोई अन्य कारण) और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है. ये भी मुमकिन है कि इन्ही क्षुद्र बहानो के आड़ में वो आपकी याचिका पर कोई कार्यवाही/उत्तर देने की जहमत ना उठाते हुए उदासीन भाव से बैठे रहे. यह चित्रण आपको निरुत्साहित करने के लिए नहीं है – अगर आप भाग्यशाली है और आपके द्वारा मांगी गई सूचना साधारण है तो संभव है कि आपके धैर्यपूर्वक किये गए श्रम का कोई सार्थक प्रतिफल निकल आये.    

इस का असर हम पर क्या पड़ता है? (उत्तर- अंदाज़न १५५७ करोड़ प्रतिवर्ष और ये बढ़ते जाना है )

एक मोटे आकलन से ये माना जा सकता है कि प्रत्येक याचिका जो राज्य सूचना अधिकारी के पास दर्ज होती है उसके लिए कम से कम एक मानव दिवस उसे दर्ज करने में लग जाता है और एक दिवस उसके लिए पोस्टल आर्डर क्रय करने, चिठ्ठी डाक से भेजने आदि में लगना आम बात है. इस आकलन में हम डाक विभाग का समय, श्रम, कागज़, सरकारी और व्यक्तिगत धन व्यय, इत्यादि को संज्ञान में ले ही नहीं रहे है. (और ना आपके द्वारा सही गए मानसिक वेदना की कीमत को)विश्व बैंक के जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में सन २०१४ में प्रति व्यक्ति आय $५६७० (वैश्विक क्रय शक्ति समानता के आधार पर) मानी गई है. वर्ष भर में २४२ कार्य दिवस होते है उसके अनुसार एक मानव दिवस का उत्पादक मूल्य करीब $२३.५ (रुपये १४९४.००) प्रतिदिन बैठता है. अगर हम डाक विभाग को पत्र भेजने के श्रम, खर्च, पर्यावरण प्रभाव इत्यादि की धन लागत को मात्र $२ (रुपये १२७.००) भी मान ले तो एक याचिका की मूल्य लागत का समीकरण $ ४९ बैठता है     [ $२३.५ प्रतिदिन x २ मानव दिवस + $२ (डाक विभाग खर्च) = $ ४९] जो लगभग रुपये ३११५  है.केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा जारी किये गए आंकड़ों से हम देख पायेंगे कि विगत चंद वर्षों में सूचना के अधिकार के अंतर्गत याचिका की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. इस तथ्य को संज्ञान मे लेना आवश्यक है कि अगर एक आम भारतीय नागरिक सरकारी विभागों से गाहे बगाहे संपर्क साधना चाहता है और सूचना का अधिकार २००५ के अंतर्गत जानकारी पाने का एक सुगम रास्ता उसके लिया बनाया गया है; तो निकट भविष्य में इस अधिनियम के अंतर्गत याचिकाओं में अभिवृद्धि निश्चित है क्योंकि आम लोगों में शनै-शनै अपने इस अधिकार की जागरूकता बढ़नी ही है. अगर हम मोटे तौर पर ये अनुमान करे कि देश के १ प्रतिशत नागरिक भी अगर इस अधिकार का उपयोग करेगे तो भी ये संख्या लगभग १ करोड के पार हो जायेगी. स्पष्ट है कि हमारे सरकारी महकमे और उनके कर्मचारी इतनी बड़ी संख्या में दर्ज याचिकाओं का दक्ष निष्पादन करने में असमर्थ है और इस के लिए उचित तैयारी भी नजर नहीं आ रही है. इससे ये भी विदित होता है कि आने वाले वर्षों में इस बाबत होने वाले खर्च में विशाल बढ़ोतरी होगी और देश के संसाधनों व फलोत्पादक मानव दिवसों के ह्रास का स्तर भी चिंताजनक अनुपात में बढ़ जायेगा.  अब इस विषय का हम विहंगम अवलोकन करते है. समाचार साधनों से हमें ये पता चलता है कि वर्ष २०१३-१४ में करीब ५० लाख याचिकायें इस अधिनियम के तहत विभिन्न केंद्र और राज्यों के विभागों में दर्ज हुई थी. पूर्व उल्लेखित गणना के अनुसार इसकी मूल्य लागत लगभग १५५७ करोड़ रुपये बैठती है. इतनी बड़ी राशि का अपव्यय को निश्चित ही कम किया जा सकता है अगर हम इसके व्यवस्था तंत्र में व्यापक सुधार लाने का प्रण कर ले.उपरोक्त विशाल राशि की उपादेयता को हम ऐसे भी समझ सकते है. ये राशि भारत सरकार द्वारा सारे देश में फैले केंद्रीय विद्यालयों को प्रदान की जाने वाली राशि का ५० प्रतिशत है ( वर्ष २०१४ में केंद्रीय विद्यालयों से शिक्षा देने के लिए ३००० करोड़ का बजट आवंटित किया गया था और उससे ११७४८१९ बच्चों को लाभ हुआ था). अस्तु इस राशि के सदुपयोग से हम देश के लगभग ५ लाख और बच्चों को केंद्रीय विद्यालयों में शामिल कर सकते थे!

भविष्य के लिए सुझाव:

इस विशाल राशि के अपव्यय के मद्देनज़र, जो मुख्यतः त्रुटिपूर्ण व्यवस्था के कारण हो रही है, हम सभी राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों से जानना चाहेंगे कि:• सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के लागू होने के १० वर्षों बाद भी एक सहज,सुगम और पारदर्शी डिजिटल तंत्र की स्थापना अभी तक क्यों नहीं सुनिश्चित हो पायी है? कम से कम केंद्र की तर्ज पर आपने सभी अधीनस्थ विभागों के लिए http://rti.gov.in जैसी एक मानक और सुचारू तंत्र का निर्माण करने की पहल तो किया ही जा सकता है.• केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा तैयार डिजिटल प्लेटफार्म से जुड़कर भी राज्यों को अपने तंत्र को सुचारू और किफायती बनाने में क्या कठिनाई पेश आ रही है?• सभी राज्यों द्वारा अलग-अलग  शुल्क दर, प्रारूप, पात्रता आदि भिन्नताओं को एकरूप और स्वचालित क्यों नहीं किया जा सका है जिससे व्यवस्था में व्याप्त क्षुद्र अक्षमताओं को तत्काल दूर किया जा सके?• केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल वर्षों से कार्यरत हैं और उनका प्रबंधन राष्ट्रीय सूचना विज्ञानं केंद्र (NIC) के जिम्में है. ये ही संस्था सभी राज्यों के डिजिटल संरचना की देख रेख करती है. अस्तु एक अखंडित, प्रभावी और उदविकासी संरचना का निर्माण rti.gov.in के तर्ज पर आसानी से किया जा सकता है चूंकि इसका वृहद् खाका पहले से ही मौजूद है.  क्या इस विषय पर विमर्श हो रहा है और क्या देश के नागरिक एक समयबद्ध सीमा में इसके अमल की आशा कर सकते है? बैलट बॉक्स इंडिया के माध्यम से सूचना के अधिकार कानून २००५ से जुडी विसंगतियां मिटाने और उसमे दक्षता लाने के लिए हमारा अथक प्रयास जारी रहेगा क्योंकि हम मानते है कि सूचना के सुगम विनिमय से ही नागरिकों का सशक्तिकरण संभव है.  इस विषय पर हमारा पहला कदम होगा कि हम देश के सभी राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों को याचिका प्रेषित कर उनसे उपरोक्त प्रश्नों का आधिकारिक जवाब लेंगे. उनके उत्तर (या मौन) को हम सार्वजनिक पटल पर भी जनसाधारण के समक्ष रखेंगे जो इस कार्य समूह द्वारा आरम्भ की गई दुष्कर यात्रा के मील के पत्थर बनेंगे.हम इस यात्रा में सभी सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं, संविधान विशषज्ञों, सरकारी अधिकारीयों, सूचना आयुक्तों और अन्य सामाजिक संगठनों को आह्वान करते है कि वे भी इस मुहिम से जुड़े और अपने सुविज्ञ विचारों से इसे बल प्रदान करें जिससे हमें इस गंभीर समस्या से शीघ्रताशीघ्र निराकरण मिल सके.हमने नीचे लिखे विवरण में देश के सभी राज्यों की सूचना तंत्र से जुडी वस्तुस्थिति से अवगत होने के लिए राज्य के मुख्य सूचना आयुक्तों से याचिका के माध्यम से जवाब माँगा था कि वो अपने राज्य में  सूचना के अधिकार सम्बन्धी तंत्र को पूरी तरह कब तक ऑनलाइन करेंगे और उसे rti.gov.in से जोड़ सकेंगे अथवा सुगम एवं सुव्यवस्थित विकल्प दे पायेंगे. (सम्बंधित राज्य पर क्लिक करके आप विस्तृत जानकारी देख सकते है) १. हरियाणा – त्वरित सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. अभी ऑनलाइन नहीं हुआ है पर इस दिशा में योजना कार्य जारी है.२. त्रिपुरा – तीन महीने से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्मरण पत्र भेजे जा रहे है.३. केंद्र शासित प्रदेश - तीन महीने से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्मरण पत्र भेजे जा रहे है.४. उत्तराखंड - तीन महीने से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्मरण पत्र भेजे जा रहे है.५. पंजाब – त्वरित सकारात्मक प्रतिक्रिया. अभीतक ऑनलाइन नहीं हुआ है और ना ही ऐसी कोई योजना अभी है. “क्यों नहीं हुई” इसका स्पष्टीकरण प्रदेश जन सूचना अधिकारी नहीं दे सकते. ६. हिमाचल प्रदेश - त्वरित सकारात्मक प्रतिक्रिया. अभीतक ऑनलाइन नहीं हुआ है और “क्यों नहीं हुआ” इसके बाबत कोई जानकारी अभिलेखों में नहीं है  ७. उत्तर प्रदेश - तीन महीने से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्मरण पत्र भेजे जा रहे है.८. जम्मू-कश्मीर - तीन महीने से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्मरण पत्र भेजे जा रहे है.९. मध्य प्रदेश – ४ सप्ताह पश्चात् प्रतिक्रिया मिली. हमारी याचिका को इसलिये  ख़ारिज  कर दिया गया क्योंकि हमारी याचिका के साथ १० रुपये का निर्धारित शुल्क संलग्न नहीं पाया गया. हम अपनी याचिका को पूरी सजगता से दाखिल करते है, पोस्टल आर्डर शुल्क सहित, पर विभाग के इस दावे का प्रतिवाद कैसे करें, इस पर हम भी असमंजस में है. बहरहाल, इन्ही मुद्दों के निवारण के लिए हम व्यवस्था में डिजीटलीकरण चाहते है. अपनी हाल की नवीन प्रतिक्रिया में उन्होंने जवाब दिया है कि उनका राज्य सूचना के अधिकार तंत्र का डिजीटलीकरण करने की दिशा में अग्रसर है.१०. गुजरात – प्रतिक्रिया तुरंत मिली. याचिका इसलिए ख़ारिज कर दी गई क्योंकि हमने सिर्फ १० रुपये का शुल्क संलग्न किया था जबकि गुजरात राज्य सूचना आयोग ने २० रुपये का शुल्क निर्धारित किया है. वे अपना जवाब भेज कर भी हमसे बचे हुए १० रुपये जमा करवाने को कह सकते थे. इस कार्य समूह का उद्देश्य इन्ही विसंगतियों से मुक्त होना है.११. बिहार – तीन महीने बीतने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं. संभवतः वो ये सोचने में मग्न है कि मिलने वाली विशेष सहायता पैकेज के १.२६ लाख या २.७५ लाख करोड़ को कैसे खर्च करेंगे ( व्यंग्य इरादतन किया गया है)१२. छत्तीसगढ़ – त्वरित और सकारात्मक जवाब. बतलाया गया कि उनके राज्य में ऑनलाइन ट्रैकिंग सुविधा जारी है और वे अपने “मूल निवासियों” की सुविधा हेतु ऑनलाइन प्रक्रिया भी शीघ्र आरम्भ करने वाले है.१३. झारखण्ड – लगभग तीन महीने बीतने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं१४. सिक्किम – तुरंत प्रतिक्रिया मिली. उन्होंने याचिका इस तकनीकी आधार पर ख़ारिज कर दी कि जवाब देने के लिए उन्हें हमारे नागरिकता पहचान पत्र सम्बन्धी दस्तावेज़ ज़रूरी है. इन्ही व्यवस्थागत त्रुटियों को दूर करना ही इस कार्य समूह का ध्येय है.१५. महाराष्ट्र – करीब १ महीने पश्चात् प्रतिक्रिया मिली. उन्होंने हमारी याचिका को मंत्रालय स्थित सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को अग्रसारित कर दिया और सीधे वहीँ से संपर्क करने को कहा. अच्छी बात है... पर किस्से संपर्क करें? कोई सन्दर्भ संख्या? क्या ३ महीने में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर हमें पुनः स्पीड पोस्ट से याचिका भेजनी होगी? क्या हम फ़ोन पर संपर्क कर सकते है? ये चालाक नौकरशाही का उदहारण है!१६. तेलंगाना – तीन महीने बाद भी कोइ प्रतिक्रिया नहीं.१८. आंध्र प्रदेश – याचिका ख़ारिज. निर्धारित शुल्क अपर्याप्त. हमने १० रुपये का पोस्टल आर्डर संलग्न किया था. हम अभी तक पता नहीं लगा पाए कि वहां कितना शुल्क निर्धारित है. कार्य समूह इन्ही समस्याओं का हल चाहता है.१८. ओडिशा – याचिका खेदपूर्वक ख़ारिज कर दी गई क्योंकि फॉर्म A में नहीं दर्ज थी और नागरिकता सम्बन्धी  पहचान प्रमाण भी संलग्न होना चाहिए. १९. पश्चिम बंगाल – याचिका खारिज क्योंकि याचिका में किसी का हस्ताक्षर नहीं था (हमें भी ये नया कारण जानने को मिला)२०. असम – तीन महीने बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.२१. गोवा - तीन महीने बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.२२. मेघालय – मेघालय में ऑनलाइन प्रणाली की सुविधा नहीं है. “क्यों” के सम्बन्ध में कोई जानकारी देना संभव नहीं है.२३. अरुणाचल प्रदेश – तीन महीने गुजरने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.२४. मणिपुर – त्वरित प्रतिक्रिया मिली जिसमे कहा गया कि हमारा सुझाव प्रशंसनीय लगा और उसे  सम्बंधित विभाग को भेज कर उस पर कार्यवाही करने और जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाने के लिए भेज रहे है. धन्यवाद मणिपुर !२५. नागालैंड – स्वागत योग्य प्रतिक्रिया. उनके राज्य में इ-शहर के लिए एक परियोजना चल रही है जिसके अंतर्गत ये सुविधा भी उपलब्ध होगी. शाबास नागालैंड!२६. कर्नाटक – हमारी याचिका अनुच्छेद 2 (f) के अंतर्गत नहीं आती है अतः इसे खारिज कर दिया गया है. ( ये कैसे संभव है?)२७. तमिलनाडु – तीनी महीने बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं
२८. केरल – हमारी याचिका वापस कर दी गई. पोस्टल आर्डर द्वारा निर्धारित शुल्क अमान्य है. उनके यहाँ शुल्क जमा करने के लिए अदालत शुल्क टिकट अथवा सरकारी खज़ाना में  मद खाता संख्या ००७०-६०-११८-९९ में जमा करना होगा. इसके अलावा डिमांड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक (जो तिरुवनंतपुरम में भुगतान योग्य  हो)  के माध्यम से राज्य सार्वजनिक सूचना पदाधिकारी के नाम पर भी किया जा सकता है. (हमारे द्वारा प्रेषित पोस्टल आर्डर भी हमें वापिस कर दिए गए).  केरल, तुमसे ये उम्मीद नहीं थी!
अगर चंद प्रदेशों जैसे हरियाणा, नागालैंड, मणिपुर और छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों को अपवाद स्वरुप बाहर रख दे तो अधिकांश राज्यों ने हमारी याचिका का कोई उत्तर ही नहीं दिया अथवा गोल मटोल जवाब देकर खारिज कर दिया. हम भी जानना चाहते है कि देश में सभी नागरिक इस व्यवस्था का सुगम तरीके से लाभ उठाने से क्यों वंचित है जबकि उस सुविधा का पूरा तंत्र यहाँ मौजूद है. निस्संदेह, इससे देश का अपार धन भी व्यर्थ जाया होने से बच जायेगा.   हम देश में डिजिटल इंडिया बनने की बड़ी-बड़ी बाते करते है और विदेशी निवेशकों को भारत में आकर “मेक इन इंडिया” जैसे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेंज रहे हैं. सब का  विकास हो इसका प्रयास जरूर कीजिये और भी जो अच्छा हो सके उसका भी प्रयत्न करें पर अफ़सोस कि देश के लोगों को हम सूचना का सुगम तंत्र नहीं दे पा रहे हैं. वो भी तब जब हमने सूचना के अधिकार को सभी नागरिकों को एक दशक पहले ही कानूनन सुलभ करवाने का काम कर दिया था! आइए हम सब मिलकर इस को दुरूस्त करने के लिए आगे बढे. एक दक्ष, सुगम और निर्बाध सूचना का विनिमय तंत्र की स्थापना हमारे देश से भ्रष्टाचार निवारण में, स्थायी विकास प्राप्त करने में, प्रतिभा प्रधान समाज की स्थापना करने में और समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. हम सब को मिलकर इसे साकार बनाना होगा.

क्या चाहते हैं हम?

एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके.सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भारतवासियों के लिए बड़ी उपलब्धि माना गया है. सरकार के कार्यों में पारदर्शिता व प्रशासनिक अधिकारियों में अपने उत्तरदायित्व के प्रति सजगता लाने में इस कानून की बहुत बड़ी भूमिका रही है. ऐसे में भारत के हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?

अगर आप आरटीआई विशेषज्ञ हैं, संविधान विशषज्ञों या आरटीआई कार्यकर्ता जो वास्तव में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.

आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.
अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.
क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय, कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.

चर्चा  जारी रहेगी.

धन्यवाद!
Coordinators @ballotboxindia.com
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Responses

Apply RTI Online@January-23-2022
It was great to read this blog. Lots of great tips here. Thanks for sharing. <a href="https://rtiguru.com/">Apply Online RTI</a> <a href="https://rtiguru.com/"> Apply RTI Online</a>
Suresh Kumar Arora@July-13-2020
In most of cases CICs favour to govt PIO by in language threatings so no body may come to them.What is next step to complain against CC?

ये कैसे कार्य करता है ?

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समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
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