नाम - डॉ दीप्ति सचान
पद - प्रदेश महासचिव (कांग्रेस), महिला विंग, कानपुर देहात
नवप्रवर्तक कोड - 71182841
परिचय
समाज के पुराने रुढ़िवादी नियमों को तोड़कर समाज को एक नयी दिशा देने में विश्वास रखने वाली डॉ दीप्ति सचान कानपुर कार्यक्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के अंतर्गत महिला विंग से प्रदेश महासचिव के पद पर कार्य कर रही हैं. उनकी प्राथमिक शिक्षा कानपुर देहात से संपन्न हुई है और उन्होंने कानपुर की सीएसजेएम यूनिवर्सिटी से बॉटनी में एमएससी की है.
नारी को वास्तव में शक्ति बनाने का संकल्प
अपनी शिक्षा के दौरान डॉ दीप्ति सचान ने अपनी सहपाठियों को कक्षा 11-12 में ही उनके परिवार द्वारा शादी जैसे बंधन में बांधना या फिर शिक्षा ग्रहण करने से रोक देने जैसी समस्याओं से उलझते हुए देखा, जिससे उनके मन में महिला वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए विचार आया.
आधुनिक समय में भी समाज का यह पिछड़ा स्वरूप देखकर उनका मन व्यथित होता था, जिसके चलते उन्होंने अनेकों बार अपनी सहेलियों के परिवार को समझाने की कोशिश भी की. डॉ दीप्ति सचान, जो एक उच्च शिक्षित परिवार और नारी शिक्षा को महत्ता देने वाले परिवार से जुडी थी, उन्होंने समाज के इस अविकसित स्वरुप को बदल देने का निश्चय किया और विश्वविद्यालय में पढा़ई के दौरान नारी शक्ति से संबंधित हर डिबेट में खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. उनके अनुसार उनके जीवन में ऐसे बहुत से क्षण आये जब वह अकेली इन कुप्रथाओं के विरुद्ध खड़ी रही, लेकिन कभी भी उन्होंने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया. वह कहती हैं कि,
“किसी को यह नहीं लगना चाहिए की महिलाएं किसी से कम हैं.”
राजनीतिक जीवन
डॉ दीप्ति सचान की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है और उनके बड़े पापा कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, उन्होंने ही डॉ दीप्ति को भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मिलवाया था. मात्र 9 वर्ष की आयु में मा. इंदिरा गाँधी से मिलने के बाद से ही वह कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित हो गयी थी और यही आगे चलकर इस पार्टी से जुड़ने का प्रमुख कारण बना.
बचपन में पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने डॉ दीप्ति सचान को पहले शिक्षा पूरी करने और फिर राजनीति से जुड़ने का सुझाव दिया था, किन्तु कांग्रेस के प्रति सम्मान और उसके आदर्शों के प्रति उनके मन में रुझान कहीं का कहीं अंकुरित हो चुका था.
राजनीति में डॉ दीप्ति सचान के पदार्पण का एक प्रमुख कारण समाज की अनेकों समस्याओं पर तर्कपूर्ण एवं न्यायसंगत कदम उठाकर देश और समाज को प्रगति की ओर ले जाना है. वह बैलटबॉक्सइंडिया मंच के माध्यम से देश की चुनाव प्रक्रिया में बदलाव की मांग करतीं हैं.
नौकरी छोड़ समाजसेवा के लिए किया खुद को समर्पित
सर्विस करना दीप्ति जी की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन वह समाज में कुछ ऐसा कर दिखाना चाहती थी, जिससे लोग महिलाओं को किसी से कम न आंकें.
लखनऊ में साइंटिस्ट के पद पर काम करने के बावजूद भी उनका लगाव अपने गाँव के लोगों, परम्पराओं और त्यौहारों से रहा है. साथ ही सर्विस करते करते भी उनके मन में समाज कल्याण के लिए, विशेषत: महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कुछ करने के विचार हमेशा से रहे. विवाह के बाद भी काम के साथ साथ उन्होंने समाजसेवा का कारवां जारी रखा, जिसमें उन्हें अपने पति का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ. डॉ दीप्ति सचान के अनुसार, उनके पति ने उनकी काबिलियत एवं विचारधारा को समझा और शादी के बाद उन्हें घर सँभालने के बजाए उन्हें बाहर जाकर कार्य करने की आज़ादी दी.
इसके साथ ही जब डॉ दीप्ति सचान ने महसूस किया कि वह नौकरी के साथ साथ समाजसेवा कार्यों को समय नहीं दे पा रही हैं, तो उन्होंने अपनी साइंटिस्ट की जॉब छोड़ कर अपने आप को पूर्ण रूप से समाज सेवा की और मोड़ दिया और जनता के मध्य जाकर उनकी समस्याओं को समझना शुरू कर दिया. विशेषकर अपने गांव और महिला वर्ग से अधिक लगाव होने के चलते उन्होंने घरेलू हिंसा, दहेज़ प्रताड़ना जैसी समस्याओं पर कार्यवाही शुरू कर दी.
शारीरिक प्रताड़ना से ज्यादा मानसिक प्रताड़ना हिम्मत तोड़ने वाली होती थी
डॉ दीप्ति सचान का विचार है कि शारीरिक प्रताड़ना से अधिक पीड़ा मानसिक प्रताड़ना से होती है, जिससे महिलाएं और अधिक कमज़ोर हो जाती हैं. उनके अनुसार समाज में सबसे बड़ी बाधा लिंग भेद है, जो आज़ादी के 70 साल बाद भी समाज को खोखला बनाये हुए है और ग्रामीण इलाकों में तो यह समस्या और भी अधिक फैली हुयी है. जिसके चलते उन्होंने इस दिशा में कार्य करना आरंभ किया.
महिलाओं के लिए कार्य करने के साथ साथ उन्होंने समाज में फैल राहे भ्रष्टाचार को भी नजदीक से देखा और समझा, जिसके आधार पर उन्होंने परिणाम निकला कि यह न केवल जिला स्तर अपितु ग्राम पंचायतों में भी फैला हुआ है और समाज को दीमक की तरह खा रहा है. जिसके चलते उन्होंने आरटीआई के जरिये अपनी टीम के समर्थन से ग्राम पंचायतों की जाँच करवाकर लगभग 65 लाख के घोटालों का खुलासा किया.
महिलाओं को मिले बराबरी का दर्जा
डॉ दीप्ति सचान एक बड़ी समस्या को साझा करते हुए बताती हैं कि ग्राम पंचायतों में महिला आरक्षण होने से महिलायें प्रधान तो बनी, लेकिन सारा काम उनके पति ही देखते हैं क्योंकि उनके विचार से महिलाओं को केवल घर पर ही काम करने चाहिए, न कि समाज में. महिलाओं को आरक्षण मिलने के बावजूद भी उन्हें लिंग भेद का समाना करना पड़ रहा है क्योंकि उनके पति ग्राम विकास के लिए मिल रहे धन को नशे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. इस समस्या को देखते हुए डॉ दीप्ति सचान ने नशाबंदी की दिशा में सक्रिय होते हुए शराब बंदी अभियान की ओर कदम बढ़ाते हुए महिलाओं में जागरूकता का प्रयास किया.
इसके अतिरिक्त डॉ दीप्ति सचान समज में फैले हुए धार्मिक/जातिगत भेदभाव को भी एक बड़ी समस्या मानती हैं और इसे दूर कर समाज को स्वच्छ बनाने की दिशा में उनके प्रयास जारी हैं.