
किसी ने कहा था की तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेके होगा। इस वक़्त मे लग रहा है कि वो कही गयी बात सच होती नज़र आएगी। हमने पानी का नुक्सान बीते कुछ वर्षो मे है यही वजह है कि आज पानी को लेके लोगों मे असहजता है।
हमने बीते कुछ वर्षो मे जल को अँधा धुन इस्तेमाल किया है और जल सतह के ऊपर नदी, तालाब,झील, और अनेक जल स्त्रोतों के प्रारूप मे है ,हमने उसे प्रदूषित किया है। हमने नदियों मे औद्योगिक कचरा डाला, शहर के सीवरेज को नालो के जरिये नदियों मे गिराया, नदियों के फ्लड प्लेन्स पे निर्माण किये, रिवर बेसिन की ज़मीन पे पेड़ों को काट के खेतों मे तब्दील किया, भूजल को पूरी तरह से निकाल के उसे इस्तेमाल कर लिया और और जल का संरक्षण भी नहीं किया।
प्राकृतिक जल के दोहन को बिसलेरी, एक्वाफिना, हिमालया आदि जैसी कंपनियों को अनगिनत वाटर बॉटलिंग प्लांट लगाने दिए और इन प्राकृतिक जल स्त्रोतों पे उनका राज चलने लगा। कोका कोला और पेप्सी जैसे अत्यंत ताकतवर ब्रांड्स को भी छूट दे राखी है।
पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह की माने तो आज़ादी के बाद एक सर्वे से पता चला था के 232 गांव मे ही पानी की कमी थी पर अब 65000 गांव मे पानी नहीं है। इसका मतलब यही है के हमने बिना सोचे समझे अँधा धुन भूमि जल का दोहन किया और उसके भण्डार की फ़िक्र न की। उन्होंने कहा के जल मे मूर्ति विसर्जन पर रोक के साथ नियम आने चाहिए।
सरकारों द्वारा नदियों को विकसित कराये जाने की बात पर पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह ने कहा ये जो लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट डिवेलपमेंट की बात होती है, वह केवल पैसा कमाने का तरीका है। नदी का बिजनेस है। दोनों किनारों पर दीवार खड़ी करके नदी संकरी करो। नदी की जमीन हड़प लो फिर उसको उचित समय पर किसी को बेच दो। मैं पिछले कुछ साल में जब भी लखनऊ आया तो लगातार इस परियोजना को बंद करने की मांग की। लखनऊ में भीषण जलसंकट उपजेगा इससे ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जाएगा। उन्होंने ये भी कहा के नमामि गंगे के नाम पर सरकार दिखावा कर रही है और ऐसी योजनाए ठेकेदारो के लिए जेब भरने का तरीका है। उन्होंने ये भी कहा के अगर गंगा राष्ट्रीय नदी है तो इसके लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल भी तेय होने चाहिए। साथ ही उन्होंने नदियों को न जोड़ने की हिदायत दी।
आइये जान ले के जल का अत्यधिक दोहन से क्या समस्याएं होती है :
- जलस्तर मे भारी गिरावट होगी
- प्राकृतिक जल स्त्रोत जैसे कुँवें, नदी ,तालाब, आदि सूख जाएंगे
- समुद्र के जलस्तर मे तटीय इलाको मे गिरावट होती है
- भू-जल की गुणवत्ता मे गिरावट आती है
अत्यधिक जल दोहन के कारण :
- बढ़ती जनसँख्या
- व्यापारिक गतिविधियां मे बढ़ोतरी
- शहरीकरण मे तीव्रता
- जलवायु परिवर्तन
- प्रदूषण
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
हम इस एक्शन ग्रुप के जरिये गोमती पर हो रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण की समीक्षा कर रहे है। गोमती पर करवाये जा रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण के बहुत दुष्परिणाम हो सकते है। कुछ तो दिखने भी लगे है। लखनऊ मे बहती गोमती के कई हिस्सों पे निर्माण चल रहा है। नदी की सतह में जमी गाद और गन्दगी को करोड़ों खर्च के ड्रेजिंग कर के निकाला जा रहा है। वही दूसरी ओर उसमे नाले सीवेज गिरा रहे है। सरकार गोमती की सफाई के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुकी है और आम जनता का पैसा लगातार अनुयोजित ढंग से खर्च किया जा रहा है। बहुत विशेषज्ञों ने रिवरफ्रण्ट की आलोचना भी की है और इससे रोकने की भी निवेदन किया पर सरकार ने कार्य को बिना रोके कार्यात रखा।
हम इस एक्शन ग्रुप से गोमती रिवरफ्रण्ट की समीक्षा करेंगे और विशेषज्ञों की राय और साइंटिफिक रिसर्च से रिवर फ्रंट के दुष्परिणाम और उसमे मुनासिब बदलाव के मौको को तलाशेंगे और सरकार को सुझाएंगे। इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो तालाब अधिग्रहण मे विशेषज्ञ हो या इस केस से सम्बंधित कुछ जानता हो , तो आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप हमारे साथ कुछ देर अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते है ?
क्या मुझे काम करने के पैसे मिलेंगे? हाँ ! अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है.आपके काम को फण्ड किया जायेगा .
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Rakesh Prasad 17
किसी ने कहा था की तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेके होगा। इस वक़्त मे लग रहा है कि वो कही गयी बात सच होती नज़र आएगी। हमने पानी का नुक्सान बीते कुछ वर्षो मे है यही वजह है कि आज पानी को लेके लोगों मे असहजता है।
हमने बीते कुछ वर्षो मे जल को अँधा धुन इस्तेमाल किया है और जल सतह के ऊपर नदी, तालाब,झील, और अनेक जल स्त्रोतों के प्रारूप मे है ,हमने उसे प्रदूषित किया है। हमने नदियों मे औद्योगिक कचरा डाला, शहर के सीवरेज को नालो के जरिये नदियों मे गिराया, नदियों के फ्लड प्लेन्स पे निर्माण किये, रिवर बेसिन की ज़मीन पे पेड़ों को काट के खेतों मे तब्दील किया, भूजल को पूरी तरह से निकाल के उसे इस्तेमाल कर लिया और और जल का संरक्षण भी नहीं किया।
प्राकृतिक जल के दोहन को बिसलेरी, एक्वाफिना, हिमालया आदि जैसी कंपनियों को अनगिनत वाटर बॉटलिंग प्लांट लगाने दिए और इन प्राकृतिक जल स्त्रोतों पे उनका राज चलने लगा। कोका कोला और पेप्सी जैसे अत्यंत ताकतवर ब्रांड्स को भी छूट दे राखी है।
पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह की माने तो आज़ादी के बाद एक सर्वे से पता चला था के 232 गांव मे ही पानी की कमी थी पर अब 65000 गांव मे पानी नहीं है। इसका मतलब यही है के हमने बिना सोचे समझे अँधा धुन भूमि जल का दोहन किया और उसके भण्डार की फ़िक्र न की। उन्होंने कहा के जल मे मूर्ति विसर्जन पर रोक के साथ नियम आने चाहिए।
सरकारों द्वारा नदियों को विकसित कराये जाने की बात पर पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह ने कहा ये जो लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट डिवेलपमेंट की बात होती है, वह केवल पैसा कमाने का तरीका है। नदी का बिजनेस है। दोनों किनारों पर दीवार खड़ी करके नदी संकरी करो। नदी की जमीन हड़प लो फिर उसको उचित समय पर किसी को बेच दो। मैं पिछले कुछ साल में जब भी लखनऊ आया तो लगातार इस परियोजना को बंद करने की मांग की। लखनऊ में भीषण जलसंकट उपजेगा इससे ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जाएगा। उन्होंने ये भी कहा के नमामि गंगे के नाम पर सरकार दिखावा कर रही है और ऐसी योजनाए ठेकेदारो के लिए जेब भरने का तरीका है। उन्होंने ये भी कहा के अगर गंगा राष्ट्रीय नदी है तो इसके लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल भी तेय होने चाहिए। साथ ही उन्होंने नदियों को न जोड़ने की हिदायत दी।
आइये जान ले के जल का अत्यधिक दोहन से क्या समस्याएं होती है :
अत्यधिक जल दोहन के कारण :
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
हम इस एक्शन ग्रुप के जरिये गोमती पर हो रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण की समीक्षा कर रहे है। गोमती पर करवाये जा रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण के बहुत दुष्परिणाम हो सकते है। कुछ तो दिखने भी लगे है। लखनऊ मे बहती गोमती के कई हिस्सों पे निर्माण चल रहा है। नदी की सतह में जमी गाद और गन्दगी को करोड़ों खर्च के ड्रेजिंग कर के निकाला जा रहा है। वही दूसरी ओर उसमे नाले सीवेज गिरा रहे है। सरकार गोमती की सफाई के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुकी है और आम जनता का पैसा लगातार अनुयोजित ढंग से खर्च किया जा रहा है। बहुत विशेषज्ञों ने रिवरफ्रण्ट की आलोचना भी की है और इससे रोकने की भी निवेदन किया पर सरकार ने कार्य को बिना रोके कार्यात रखा।
हम इस एक्शन ग्रुप से गोमती रिवरफ्रण्ट की समीक्षा करेंगे और विशेषज्ञों की राय और साइंटिफिक रिसर्च से रिवर फ्रंट के दुष्परिणाम और उसमे मुनासिब बदलाव के मौको को तलाशेंगे और सरकार को सुझाएंगे। इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
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अगर आप हमारे साथ कुछ देर अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते है ?
क्या मुझे काम करने के पैसे मिलेंगे? हाँ ! अगर आप किस क्षेत्र के विशेषज्ञ है और हमारे साथ काम करना चाहता है तो ballotboxindia .com सही प्लेटफार्म है.आपके काम को फण्ड किया जायेगा .