लोकभारती उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित लगभग 25 सदस्यों द्वारा जिनमें वैज्ञानिक, इंजीनियर्स, पर्यावरणविद, विविध विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, छायाकार एवं एक दर्जन से अधिक सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से गोमती-गंगा यात्रा 27 मार्च, 2011 को प्रातः माधौ टाण्डा पीलीभीत से आरंभ होकर शाहजहांपुर, लखीमपुर, हरदोई सीतापुर, बाराबंकी, सुल्तानपुर जौनपुर आदि 13 जिलों से होते हुए 960 कि.मी. की यात्रा के बाद वाराणसी के पास कैथी घाट में मार्कंडेश्वर महादेव आश्रम के निकट गोमती-गंगा संगम पर 3 अप्रैल को सम्पन्न हुई। यात्रा के दौरान गोमती व गोमती में मिलने वाली 22 से अधिक नदियों व धाराओं के संगमों पर विशेष रूप से सघन संपर्क विविध पहलुओं के अध्ययन व जागरुकता के कार्यक्रम आयोजित किए गए। इनके माध्यम से 250 से अधिक गाँवों के लगभग 10,000 जागरूक नागरिकों, इंजीनियरों, शिक्षकों, महिलाओं एवं महाविद्यालयीन छात्रों ने बड़े उत्साह से भाग लिया, जिसमें 45 से अधिक स्थानों पर श्रमदान, सभाएं एवं गोष्ठियां आयोजित कर स्थानीय लोगों के सहयोग से 30 गोमती मित्र मंडलों का गठन किया गया। इनमें 350 से अधिक लोगों ने स्वेच्छा से अपने सहयोग द्वारा गोमती पुनरुद्धार का संकल्प लिया।
यात्रा के दौरान देखने में आया कि पीलीभीत जिले के लगभग 25 कि.मी. क्षेत्र में गोमती का प्रवाह अनेक स्थानों पर खेतों में विलीन होकर अंतर-भूधारा के रूप में बह रहा है। पीलीभीत के एकोत्तरनाथ से गोमती की धारा में जहां निरंतरता आती है, वहां भी गोमती धारा के निकटवर्ती जंगल समाप्त हो रहे हैं तथा उसके किनारे तक धान और गन्ने की अधिक पानी वाली खेती हो रही है व अत्यधिक जल दोहन के कारण भूजल स्तर 20 से 30 फुट तक गिर गया है, जिससे गोमती जल के मूल स्रोत सूखने लगे हैं या उनका जल प्रवाह कम हो गया है। भूगर्भ-जलस्रोतों की यही स्थिति कमोबेश संपूर्ण गोमती प्रवाह क्षेत्र में है।
गोमती व उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता व उसमें प्रदूषण की जांच के लिए यात्रा के दौरान यात्रा के सहसंयोजक अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के सहप्राध्यापक डॉ. वेंकटेश दत्ता के नेतृत्व में विद्यार्थियों व अन्य विभागों से जिस अध्ययन दल का गठन किया गया था उसके साथियों ने 30 स्थानों पर नदी व भूजल के 60 से अधिक नमूनों के न केवल तत्काल परीक्षण किए वरन् उस पर अन्य परीक्षण बाद में प्रयोगशाला में भी किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त नदी के जलीय जीवों व वनस्पतियों की स्थिति से भी गोमती की दशा का अध्ययन किया गया है। अभी तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार गोमती में जल की मात्रा घटकर 35 प्रतिशत मात्र रह गई है और नाइट्रेट की मात्रा भी बढ़ी है। अधिकांश क्षेत्रों में गाद के कारण गोमती की गहराई कम हो गई है, अतः उन क्षेत्रों में वर्षाकाल में गोमती की बाढ़ से आस-पास की खेती प्रतिवर्ष डूबने से किसानों को भारी क्षति उठानी पड़ती है।
गोमती में सर्वाधिक प्रदूषण लखनऊ में होता है जहां फ़ैक्टरियों के अतिरिक्त 22 नालों का पानी व ठोस अपशिष्ट अभी भी नदी में डाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त गोमती बैराज द्वारा जल रोकने के फलस्वरूप हुए ठहराव से नदी के अंदरूनी जलस्रोत भी बंद हो गए हैं व उसमें भर गई गाद के कारण नदी की नैसर्गिक शोधन शक्ति समाप्तप्राय हो गई है। इन सभी प्रदूषित क्षेत्रों में जल में घुली प्राणवायु (ऑक्सीजन) काफी घट गई है व कचरे के कारण प्राणवायु की मांग (बीओडी) काफी बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर फ्लोराइड व आयरन (लौह) की मात्रा भी अधिक पाई गई है।
यद्यपि गोमती लखनऊ के अतिरिक्त 14 अन्य छोटे-बड़े कस्बों के पेयजल का भी मुख्य स्रोत है, लखीमपुर सीतापुर क्षेत्र में चीनी मिलों प्लाईवुड व कागज आदि फ़ैक्टरियों द्वारा बड़ी मात्रा में प्रदूषण सीधे गोमती व उसकी सहयाक नदियों में डाला जाता है। साथ ही इन सभी कस्बों व शहरों के नालों द्वारा मानव अपशिष्ट भी सीधे गोमती में पहुंचता है। जगदीशपुर, सुल्तानपुर एवं जौनपुर में भी नगरीय प्रदूषण की मात्रा अत्यधिक है।
यद्यपि अपनी सहायक नदियों के जल से नैमिषारण्य के पास नदी में जल स्तर में कुछ सुधार हुआ है पर क्षेत्र में वनों की अंधाधुंध कटान व नललकूपों द्वारा बहुत अधिक सिंचाई के कारण भूजल स्तर में कमी आई है। इसी प्रकार 22 अन्य छोटी-बड़ी नदियों व जल धाराओं के गोमती में मिलने से जगह-जगह इसके जल स्तर में सुधार होता है पर प्रदूषण के कारण नदी में जलीय जैव विविधता (वनस्पतियों, मछलियों, कछुओं आदि) की प्रजातियों में काफी कमी पाई गई है। यात्रा के दौरान किए गए अध्ययनों के आधार पर लखनऊ से बाराबंकी तथा सुल्तानपुर से जौनपुर तक का गोमती क्षेत्र ई-श्रेणी में आता है तथा जौनपुर से वाराणसी-गाजीपुर तक का क्षेत्र डी श्रेणी में आता है। शेष क्षेत्रों में नदी में प्रदूषण स्तर अभी सी ग्रेड में ही है।
गोमती - समग्र वर्तमान परिदृश्य
यदि हम गोमती को ऊपरी मध्य एवं निम्न क्षेत्र के रूप में तीन भागों में विभाजित कर अवलोकन करें तो इसके प्रमुख स्वरूप निम्नवत हैं।
ऊपरी क्षेत्र :
माधौ टाण्डा में उद्गम से नैमिषारण्य, सीतापुर तक लगभग 250 किमी के क्षेत्र में उद्गम के बाद नदी लगभग 25-30 किमी तक तो धारा के रूप में उपस्थिति ही नहीं थी। सितंबर, अक्टूबर (वर्षा के बाद) से नदी इस पट्टी में कहीं-कहीं छोटी-छोटी जल संरचनाओं (झील, तालाब, पोखरों) के रूप में ही जून, जुलाई (वर्षा ऋतु के आगमन) तक दृष्टिगोचर होती है यद्यपि सेटेलाइट द्वारा लिए गए चित्रों में नदी की अंतर-धारा स्पष्ट रहती है। घाटमपुर-सहबाजपुर से पहले गोमती गुरुद्वारे से कुछ पूर्व ही स्थानीय बरसाती धाराओं व भूगर्भ जलस्रोतों के कारण गोमती एक पतली धारा के रूप में दृष्टिगोचर होने लगती है जो पीलीभीत जिले के ही सीमावर्ती जंगल स्थित एकोत्तरनाथ में एक बड़ी झील का रूप ले कर आगे शाहजहांपुर जिले की ओर बढ़ती है।
शाहजहांपुर जिले में खुटहर से पहले जब झुकना नदी और पुवायां से पूर्व तेरउना व भैंसी की धाराएं गोमती में मिलती हैं तब गोमती और बड़ा स्वरूप ले लेती है। आगे लखीमपुर जिले में प्रवेश करने के बाद छोहा व अंधरा छोहा वर्षाकाल (20-25 साल पूर्व तक पूरे वर्ष) में इसके जल में वृद्धि करती हैं, लेकिन सीतापुर जिले में ददनामऊ के पास जब कठिना नदी गोमती में मिलने व स्थानीय भूगर्भ जल स्रोतों के मिलने से गोमती नैमिषारण्य में अपना भव्य, नैसर्गिक स्वरूप ले लेती है। इस पूरे ऊपरी क्षेत्र में यद्यपि नदी का स्वरूप अधिकांश स्थानों पर नदी के पेट में उथला (औसत गहराई 5’ -7’) व सिकुड़ा (चौड़ाई 10’-50’) होने के कारण प्रवाह सीमित है पर उसमें जल की गुणवत्ता ठीक (सी ग्रेड) है, जिसमें घुलनशील प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा काफी (4 मिली. ग्राम प्रति ली से अधिक) है व उसकी जैविक प्राणवायु की मांग (बीओडी) सीमित (3 मिली. ग्राम प्रति ली. से कम) है तथा उसमें मल अपशिष्ट की कमी के कारण प्रदूषणकारक कोलीफॉर्म की संख्या 5000 प्रति 100 मिली. से कम है। परंतु इस क्षेत्र में भी रासायनिक खादों व कीटनाशकों के अनियंत्रित प्रयोग के कारण जल में नाइट्रेट की मात्रा अधिक व कहीं-कहीं लौह व फ्लोराइड भी पाया गया है।
फैक्ट्रियां जहां-जहां इसमें अशोधित जल डालती हैं वहां नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तथा जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से कछुओं व मछलियों की संख्या कम हो जाती है। यहां उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि गोमती के उद्गम स्थल फुलहर झील (माधोटाण्डा) में कई दुर्लभ प्रजाति के कछुए व समुचित मात्रा में मछलियां तथा मार्ग के कई स्थानों पर मगरमच्छ भी पाए जाते हैं।
इस पूरे क्षेत्र में नदी के खादर क्षेत्र में वर्षा के बाद नदी की सूखी भूमि पर सघन खेती करने के कारण जहां नदी सिकुड़ गई है वहीं गाद की मात्रा भी काफी बढ़ गई है। इस पूरे क्षेत्र में वर्षा ऋतु में अधिकांश स्थानों पर बाढ़ का भीषण प्रकोप इस कारण भी हर वर्ष देखा जाता है क्योंकि नदी के सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र में वनों की अंधाधुंध कटान हुई है जो अभी तक जारी है। साथ ही जल संग्रहण-संरक्षण की जो भी संरचनाएं पारम्परिक रूप से भी थीं उनका अतिक्रमण हो गया है।
मध्य क्षेत्र (1) : नैमिषारण्य-सिंधौली के मध्य गोन-सरायन के गोमती में मिलने के बाद नदी के जल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने लगती है। क्योंकि सरायन में गोला शुगरमिल का व नगरीय अपशिष्ट तथा सीतापुर में नगरीय अपशिष्ट के साथ ही अस्पताल का कूड़ा-कचरा तथा गोन में हरगांव सुगर मिल का प्रदूषित जल गोमती के जल को प्रदूषित करते हैं। लखनऊ से पूर्व ही बेहता नदी भी गोमती में मिलती है फिर भी लखनऊ में प्रवेश से पूर्व बालागंज तक नदी का जल (शारदा नहर से जलापूर्ति के कारण भी) काफी शुद्ध है, जिसमें घुली प्राणवायु 8 मिग्रा प्रति ली. से अधिक व बीओडी 3 मिग्रा प्रति ली. से कम तथा कोलीफार्म की संख्या भी 5000 प्रति 100 मिली से कम है। परंतु लखनऊ में डालीगंज, शहीद स्मारक से पिपराघाट तक सभी स्थानों पर घुलित प्राणवायु जहां बमुश्किल 1 मिग्रा प्रति ली. पाई गई वहीं बीओडी बढ़ कर 10 मिग्रा. प्रति ली. से अधिक और कोलीफार्म की संख्या 2 लाख से अधिक (पिपराघाट में) पाई गई है।
मध्य क्षेत्र (2) : लखनऊ के बाद सुल्तानपुर तक गोमती के तट पर कोई बड़ा शहर व उद्योग नहीं पड़ता जिससे गोमती पर सीधे प्रभाव पड़ता हो। परंतु लखनऊ व हैदरगढ़ के मध्य कादू व अकरद्दी नदियां गोमती के जल प्रवाह को बढ़ाती हैं तो हैदरगढ़ के बाद रेठ नदी बाराबंकी शहर के प्रदूषण को समेटे कल्याणी को अपने में मिलाते हुए जब गोमती में मिलती है तो नदी के प्रवाह को बढ़ाने के साथ-साथ प्रदूषण बढ़ाने का कार्य भी करती है। आगे बढ़ने पर जगदीशपुर की समस्त औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित उत्प्रवाह गोमती नदी में ही मिलता है, जो नदी जल को और अधिक प्रदूषित करने का कार्य करता है। लेकिन सुल्तानपुर पहुंचने पर शहर के जल-मल युक्त पांच नाले रही-सही कसर पूरी कर देते हैं। यहां पर गंगा शुद्धिकरण की पूर्व योजना के अंतर्गत कई करोड़ की लागत से एसटीपी बनाया गया परंतु वह अभी तक चला नहीं है।
निचला भाग सुल्तानपुर शहर के प्रदूषण को भी अपने में समेटे गोमती आगे धोपाप होती हुई पीली नदी के पानी के साथ कुछ सुधार कर जब जौनपुर पहुंचती है, तब वहां इसका स्वागत एक कूड़ा ढोने वाली गाड़ी के रूप में होता है फिर भी मार्ग में मिलने वाली नदियों का जल और नदी प्रवाह में स्वाभाविक शुद्धिकरण प्रकृति के कारण जौनपुर के नदी जल में कोलीफार्म की संख्या 50,000 से अधिक (जो लखनऊ में 2 लाख से कम) पाई गई। यद्यपि जौनपुर के घाटों पर स्थानीय प्रदूषण के कारण असह्य दुर्गंधयुक्त वातावरण रहता है यहां जल प्रवाह में गति तेज है, जो जौनपुर के आगे सई जलालपुर के पास राजेपुर में सई के प्रदूषित (उन्नाव, रायबरेली के शहरी जल-मल व औद्योगिक इकाइयों के अशोधित प्रवाह) जल को अपने में समेटकर कैथीघाट पर गंगा में मिल जाती है। सुल्तानपुर-जौनपुर से गाजीपुर- वाराणसी सीमा पर जहां गोमती गंगा में मिलती है, वह सब क्षेत्र गोमती का निचला भाग है। यद्यपि इस भाग में गोमती में जल प्रवाह ठीक है पर जहां यह जौनपुर में सर्वाधिक प्रदूषित (ई ग्रेड) है वहीं कैथी के पहले तक यह काफी प्रदूषित (डी ग्रेड) में है।
गोमती-गंगा यात्रा की विशेषताएं
1. यह यात्रा संभवतः पहली बार नदी के आदि से अंत तक उसके स्वरूप को समझने व उस पर जन सहभागिता से वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, संतों, मीडियाकर्मियों एवं नदी से जुड़े समाज की संयुक्त पहल से सरकार को भी साझीदार बनाते हुए ऐसे अभियान का अंग है जो गोमती को सन् 2020 तक अविरल, निर्मल एवं अवरोध मुक्त नैसर्गिक प्रवाह युक्त करने हेतु संकल्पबद्ध है।
2. पूरी यात्रा किसी सरकारी या गैर सरकारी संगठन की वित्तीय सहायता से आयोजित परियोजना न होकर लोकभारती द्वारा एक दर्जन से अधिक संगठनों व सैकड़ों व्यक्तियों के सहयोग से आयोजित की गई जिसमें राज्य एवं केंद्र सरकार के शिक्षकों वैज्ञानिकों एवं विभागों की सहभारिता भी मिली।
3. यात्रा के दौरान 50 से अधिक स्थानों पर 10,000 से अधिक लोगों से संपर्क कर 30 गोमती मित्र मंडलों की स्थापना में 360 से अधिक लोगों ने स्वेच्छा से अपनी सहभागिता प्रस्तुत की है।
4. एक समग्र समझ बनाने हेतु यात्रा में 50 स्थलों से जल के नमूने लेकर उन पर अध्ययन किए गए तथा गोमती की सहायक सभी धाराओं-नदियों का भी अध्ययन-अवलोकन एवं चित्रण किया गया।
5. यात्रा के दौरान गठित मित्र मंडलों, यात्रियों एवं आयोजकों ने स्वयं कुछ संकल्प लिए है। जिनको पूरा करने हेतु वे न केवल वचनबद्ध हैं, वरन् प्रयासरत भी हैं।
गोमती यात्रा की प्रमुख उपलब्धियां एवं सतत् कार्य :
1. यात्रा के दौरान जो 30 गोमती मित्र मंडल बने थे उनमें से अधिकांश गोमती पुनरुद्दार कार्य में लगातार सक्रिय हैं।
2. यात्रा के दौरान कई स्थानों पर श्रमदान स्वच्छता के कार्यों के साथ ही लखनऊ एवं सुल्तानपुर में पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन हेतु कुंडों का निर्माण कर लोकार्पण हुआ।
3. नैमिष एवं उसके चारो ओर चोरसी कोस परिक्रमा मार्ग के पांच ब्लाकों के 11 पड़ाव स्थल सहित लगभग 70 गावों के किसानों, जनप्रतिनिधियों एवं सरकारी अधिकारियों से सघन संपर्क, चर्चा के फलस्वरूप इस वर्षा ऋतु में ही 20,000 से अधिक ईंटों के वृक्षरक्षकों के साथ एवं 50,000 से अधिक पौधे को सामाजिक सुरक्षा सहित जन सहभागिता से लगाने की योजना मूर्त रूप ले रही है। इस हेतु आगामी 1 जून से 25 जून तक श्री राधेकृष्ण दूबे के नेतृत्व में परिक्रमा मार्ग पर सघन पद यात्रा का आयोजन किया जा रहा है ताकि जन सहभागिता को और प्रभावी बना कर वृक्षारोपण कार्य को सफल एवं स्थाई स्वरूप प्रदान किया जा सके। इस अभियान में वृक्षारोपण, वृक्ष संरक्षण एवं प्रत्येक गांव में जल संग्रहण एवं भूजल भरण हेतु पवित्र तीर्थों (तालाबों) के रखरखाव उनकी खुदाई एवं सफाई एवं नवीन निर्माण एवं समग्र ग्राम विकास आदि पर भी सामाजिक जागृति का कार्य किया जाएगा। इसके साथ ही इस क्षेत्र में वर्तमान ऑक्सीजन, जलस्तर, जलगुणवत्ता, जैवविविधता आदि विषयों पर वैज्ञानिक अध्ययन एवं उसके लेखन (डाक्यूमेंटेशन) का कार्य भी किया जाएगा।
4. गोमती की सहायक नदी सई पर दिनांक 5 से 10 जून तक एक पदयात्रा द्वारा अध्ययन एवं जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन उ.प्र. जल बिरादरी द्वारा किया जा रहा है।
5. यात्रा की रिपोर्ट एवं सरकारी अधिकारियों से सतत् संपर्क के फलस्वरूप प्रदेश सरकार के कई प्रमुख अधिकारियों ने माधौटाण्डा क्षेत्र का दौरा करके संबंधित विभागों के अधिकारियों के समन्वित प्रयास से गोमती पुनरुद्धार की एक समग्र योजना के अंतर्गत कार्य आरम्भ किया है।
गोमती एवं उसके जलग्रहण क्षेत्र की मुख्य विशेषताएं
1. गोमती प्रदेश की भूगर्भ से प्रवाहित सदानीरा ऐसी महत्वपूर्ण नदी है जिसका उद्गम प्रदेश से होकर प्रदेश में ही गंगा में संगम हो जाता है।
2. यह नदी गंगा से पूर्व काल की होने के कारण आदि गंगा कहलाती है।
3. गोमती भूगर्भ से निकलने वाली ऐसी नदी है जो हिमालय की तलहटी, में पैलियो चैनल से निकलती है अतः गोमती क जल ग्रहण क्षेत्र में वृक्षों (वनों) की एवं जल संरचनाओं के प्रचुर भंडारों का इसके प्रवाह में विशेष महत्व है। साथ ही गोमती में मिलने वाली अन्य 22 धाराएं भी भूगर्भ से ही निकलती है। अतः हिमनदों का गोमती के जल में कोई योगदान नहीं है।
4. यद्यपि नदी का प्रवाह क्षेत्र मूलतः समतल है, पर इसका ढलान नियमित प्रवाह को धारण करने में सक्षम है।
5. यद्यपि नदी में अप्रैल माह में 25 क्यूसेक जल प्रवाह होता है पर वर्षा के उपरांत सितंबर तक सई के संगम (सई जलालपुर) पर बढ़कर 450 क्यूसेक तक हो जाता है।
6. सई और सरायन सहति 22 छोटी-बड़ी नदियां व धाराएं अपना जल गोमती को प्रदान करती है जिसके कारण इस पूरे जलग्रहण क्षेत्र का भूजल पुनर्भरण भी होता है।
7. गोमती बेसिन में 63.25 प्रतिशत सिंचाई ट्यूबवेलों से, 20.5 प्रतिशत नहरों से तथा 12.7 प्रतिशत वर्षा जल से की जाती है।
8. लखनऊ के अतिरिक्त प्रदेश के लगभग 14 अन्य शहरी क्षेत्रों के पेयजल में गोमती प्रवाह की मुख्य भूमिका है।
9. प्रदेश के 13 जिलों में लगभग 950 किमी. दूर की यात्रा में नदी का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 32,000 वर्ग किमी. से अधिक है।
10. गोमती के तट पर 15 से अधिक ऐसे आस्था के स्थल हैं, जहां प्रत्येक अमावस्या को हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
11. जहां प्रदेश का वर्तमान औसत वन क्षेत्र 9.01 प्रतिशत है, गोमती जल ग्रहण क्षेत्र में यह मात्र 4.10 प्रतिशत रह गया है जो लगभग 50 वर्ष पूर्व तक ऊपरी क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक था।
12. वाराणसी के पास कैथी में मार्कर्ण्डेश्वर महादेव घाट के निकट गंगा-गोमती संगम के पश्चात् गंगा के संपूर्ण जल में 15 प्रतिशत योगदान गोमती के जल का होता है।
13. गोमती जलग्रहण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है जिसमें 75 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है अतः कृषि भूमि एवं जल के उपयोग के तरीकों में परिवर्तन भी नदी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
गोमती की प्रमुख समस्याएंँ तथा इनके कुछ कारण:
1. नदी के पेट का संर्कीण होते जाना एवं शहरों और खेतों द्वारा खादर (फ्लडप्लेन) पर कब्जा होते जाना।
2. खादर में मिट्टी का जमाव तथा कटाव का निरन्तर बढ़ना।
3. गोमती तट क्षेत्र की वृक्षावली (जंगल) का समाप्त होना।
4. भूजल के अत्यधिक दोहन से नदी के जल स्तर में निरन्तर कमी आना एवं उसके स्रोतों का सूखना।
5. जल-मल, व उद्योगों के प्रदूषित प्रवाह एवं कई तरह के प्रदूषक भार तथा अवजल का गोमती में अनियन्त्रित प्रवाह जिसके कारण पेयजल की गुणवत्ता का नष्ट हो जाना।
6. अधिक मछली व कम मेहनत की गलत मानसिकता के कारण नदी में विषजन्य रसायनों के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण जल शोधक जलीयजीव विविधता में निरन्तर कमीं का बढ़ता जाना
7. अत्यधिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से गोमती बेसिन की उर्वरा शक्ति का निरन्तर घटते जाना।
8. जलशोधन संयन्त्रों का नदी के फ्लडप्लेन में बनाया जाना।
9. राख, फूल-माला, मूर्तियां एवं धार्मिक अनुष्ठानों के अवशेषों एवं शवों को नदी में प्रवाहित करना।
समाधान-समग्र प्रयास:
जैसा समस्याओं के समग्र अवलोकन से स्पष्ट होता है कि गोमती मैया की वर्तमान दु्र्दशा के लिए मानवीय कृत्य ही उत्तरदायी है अतः इसका समाधान भी समाज के सभी वर्गों के संयुक्त प्रयास से ही, संभव है। चूंकि नदी की यह स्थिति लगभग पिछले 35-40 वर्षों में बिगड़ी है अतः इसके समाधान से गोमती को पूर्ण स्थिति तक लाने में 8-10 वर्ष तो लगेंगे ही अतः इस हेतु आवश्यक प्रयासों की दिशा व रणनीति निम्नवत् होगी।
1. गोमती एवं इसकी सहायक नदियों के खादर क्षेत्र में हुए अतिक्रमणों को हटाए बिना तथा इसकी धारा में जमा गाद की सफाई किए बिना न तो कम जल की ऋतुओं में गोमती प्रवाह सुधरेगा और न ही वर्षा के दिनों में आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण हो सकेगा। अतिक्रमणों की पहचान व उन्हें हटाने के कार् मुख्यतः गोमती के ऊपरी क्षेत्र में माधौटाण्डा के ऊपर से शुरू कर मोहम्मदी, (लखीमपुर खीरी) तक प्राथमिकता से करने होंगे।
2. गाद हटाने का कार्य न केवल उपरोक्त क्षेत्र में करना होगा वरन संपूर्ण नदी के मार्ग में करना होगा। यह कार्य उन सभी नगरीय क्षेत्रों में भी प्राथमिकता से करना होगा जो नदी के तटों पर होने के कारण लगभग 45 से अधिक नालों के मध्यम से प्रदूषित जल-मल एवं ठोस अपशिष्ट भी बड़ी मात्रा में डालते हैं। स्वाभाविक ही है कि इन सभी नालों को विकेंद्रित रूप से साफ कर उनका अपशिष्ट नदी में जाने से रोकना होगा।
3. गोमती व उसकी सहायक सभी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जल संरक्षण एवं संग्रहण की संरचनाओं का निर्माण बड़े पैमाने पर करना होगा।
4. गोमती के खादर क्षेत्र में से अतिक्रमण मुक्त कराई भूमि एवं जलग्रहण क्षेत्र में उपलब्ध सामलाती भूमि पर वृक्षारोपण द्वारा मिश्रित वनीकरण के प्रयास करने होंगे और वर्तमान में उपलब्ध वनों की कटान पर तत्काल रोक लगानी होगी।
5. उपरोक्त सभी कार्य समय रहते गोमती की सभी सहायक नदियों एवं धाराओं पर भी करने होंगे।
6. उद्योगों द्वारा किसी भी प्रकार का प्रदूषित जल गोमती या उसकी सहायक नदियों में डालना तत्काल प्रभाव व कठोरता से रोकना होगा।
7. नदी के खादर क्षेत्र में रासायनिक कृषि को हतोत्साहित करना एवं जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने हेतु प्रभावी कदम प्राथमिकता से उठाने होंगे। इस हेतु आवश्यक अध्ययन, शोध, जन-जागरण एवं प्रशिक्षण के अतिरिक्त संसाधनों की उपलब्धता व विपणन में सहायता के भी प्रबन्ध करने होंगे।
8. नदी में पूजन सामग्री, राख, फूल-माला, मूर्तियों का विसर्जन व शवों का प्रवाह रोकने हेतु वैकल्पिक व्यवस्थाएं शीघ्र उपलब्ध करवाकर इस हेतु व्यापक जन-जागरण के अभियान आयोजित करने होंगे।
9. नदी में पाई जाने वाली जैवविविधता के अध्ययन एवं संरक्षण के दूरगामी व प्रभावी कार्यक्रम प्राथमिकता से बना कर लागू किये जाए।
10. उपरोक्त लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु समयबद्ध रूप से निम्न कदम उठाने होंगे।
तात्कालिक कदम (1-2 वर्ष):
1. गोमती को राजकीय नदी घोषित कर उसके पुनरूद्धार हेतु गोमती नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया जाए। प्राधिकरण में भूजल, सिंचाई, लघु सिंचाई, जल संस्थान, कृषि, वन, प्रदूषण नियंत्रण, प्र्यटन एवं जल निकास आदि विभागों के प्रमुख सचिवों/ विभागाध्यक्षों के अतिरिक्त वैज्ञानिकों, सामाजिक संगठनों, विषेशज्ञों, सन्तों, मीडियाकर्मियों आदि का भी समुचित प्रतिनिधित्व हो।
2. गोमती के उद्गम से भी 50 किमी ऊपर से उसके गंगा में संगम तक के सम्पूर्ण मार्ग में नदी के खादर क्षेत्र व उस पर अतिक्रमणों को चिन्हित कर हटाने की प्रभावी योजना पर अमल शासकीय व सामाजिक सहभागिता से किया जाए।
3. गोमती के उद्गम क्षेत्र व उसमें सहायक नदियों के मिलने वाले स्थानों को पारिस्थितिकी के रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर उनके संरक्षण के प्रभावी कार्यक्रम बनाकर लागू किए जाएं।
4. गोमती व उसकी सहायक नदियों में मानव अपशिष्ट डालते सभी नालों के विकेन्द्रित प्रदूषण नियन्त्रण कदम उठाकर उनका नदियों में प्रवाह (रीवर-सीवर अलग के सिद्धान्त के अनुरूप) रोका जाए।
5. गोमती तट पर बसे सभी नगरी क्षेत्रों में बहने वाले नदी के हिस्से की गाद निकालने का कार्य प्राथमिकता से किया जाए व गाद भरने के कारणों का निराकरण भी किया जाए।
मध्यकालीन कार्ययोजना (3-5 वर्ष):
1. गोमती एवं उसकी सहायक नदियों के संपूर्ण खादर क्षेत्र को चिन्हित कर उसको भू-अभिलेखों में दर्ज करवाकर उन पर से 500 मी॰ तक दोनोx ओर कब्जे हटवाना सुनिश्चित करना।
2. जल संग्रहण एवं संरक्षण के साथ ही वनीकरण कार्यों को गोमती की सभी सहायक नदियों के जलग्रहण एवं खादर क्षेत्र में क्रियान्वित करना।
3. गोमती एवं उसकी सहायक नदियों के उद्गम एवं संगम क्षेत्रों के अध्ययन के आधार पर जैवविविधता संरक्षण के प्रभावी कार्यक्रम, राज्य एवं केन्द्र सरकार के सहयोग से क्रियान्वित करना। इन क्षेत्रो को पवित्र वनों के रूप में विकसित करना।
4. गोमती एवं उसकी सहायक नदियों के खादर क्षेत्र के किसानों को विविधीकृत जैविक खेती हेतु आवश्यक प्रशिक्षण, संसाधन एवं विपणन व्यवस्था उपलब्ध कराकर इन सारे क्षेत्रों को रसायनों के दुष्प्रभाव से मुक्त करना।
5. जनसहभागिता से गोमती नदी के सम्पूर्ण मार्ग में वृक्षारोपण अभियान द्वारा इसे 30 प्रतिषत तक पहुंचाना साथ ही प्रदूषण नियन्त्रण, रसायन मुक्त कृषि एवं वनों की कटाई रोकने हेतु सजग दस्ते तैयार करना, जिसमें गोमती मित्र मण्डलों के माध्यम से जनसहभागिता सुनिश्चित करना।
6. गोमती क्षेत्र में स्थित सांस्कृतिक व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्पूर्ण एवं राष्ट्रीय धरोहर स्थलों कोे चिन्हित कर पर्यावरण मित्र एवं पारंपरिक रूप से उन्हें विकसित करना।
7. विद्यालयीन शैक्षिक पाठ्यक्रमों में जल, नदी एवं पर्यावरण संस्कृति विषय को जोड़कर एन.एस.एस. एन.सी.सी. एवं स्काउट आदि के पाठ्यक्रम को जोड़ कर उनकी कार्य योजना का अंग बनाना।
यात्रा के सामाजिक संकल्प:
गोमती-गंगा यात्रा गोमती संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है जिसमें जगह-जगह अनेक संस्थाओं ने सक्रिय रूप से सहकार किया है और आगे भी सभी सहयोगी मिलकर शीघ्र ही आगे की क्रमशः कार्ययोजना बना रहे हैं ताकि वर्ष 2020 तक गोमती को निर्मल, अविरल व नैसर्गिक स्वरूप में लाया जा सके, इस हेतु यात्रा के दौरान अनेक सकारात्मक संकल्प लेने के लिए लोग उत्साह से आगे आये, जिससे इस अभियान में लगे सभी लोगों को उत्साह व प्रेरणा मिलती है। ये संकल्प सभी को आगे बढ़ने की शक्ति देंगे जोे गोमती संरक्षण के कार्य में मील का पत्थर साबित होंगे। संकल्प इस प्रकार हैं-
1. गोमती पर तथ्यपरक रिपोर्ट का प्रकाशन एवं समग्र कार्ययोजना -
लोक भारती के तत्वाव्धान एवं सभी सहयोगी संस्थाओं व गठित गोमती मित्रमण्डलों की सहभागिता से गोमती पर एक तथ्यपरक रिपोर्ट का प्रकाशन एवं गोमती यात्रा के संकल्प के सभी कार्य्रक्रमों को सुचारू रूप से संचालित कराना एवं शासन व समाज से सहयोग प्राप्त करना। संयोजनः- डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा, श्री वी॰एन॰खेमका, डा॰वेंकटेश दत्ता, जे॰एम॰गुप्ता, राधेकृष्ण दूबे, गोपाल मोहन उपाध्याय, श्रीकृष्ण चौधरी।
2. पंचवटी अभियान -
सीतापुर के नैमिषारण्य क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा क्षेत्र में 88 हजार ऋषियों की स्मृति में पंचवटी के पौधों का रोपण तथा प्रत्येक गांव में पवित्र ऋषि-स्मृति सरोवर के निर्माण का संकल्प लिया गया व उसकी कार्य योजना पर कार्य भी प्रारम्भ हो गया है। इस कार्य में वनविभाग के अधिकारी राधेकृष्ण दूबे, आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी, पहला आश्रम के महन्त भरत दास, दधीचि आश्रम के महन्त देवदत्त गिरि, स्वामी नारदानन्द आश्रम के जगदाचार्य जी, लालनशर्मा, बालशास्त्री, प्रेमशंकर अवस्थी एवं देवमणि (व.वि.अ.) सहित मिश्रित, नैमिषारण्य व परिक्रमा क्षेत्र के समस्त प्रमुखों तथा ग्राम प्रधानों के संयोजन में पूरा होगा।
3. सुनासीरनाथ घाट व देवस्थान को पर्यावरण के अनुरूप स्वच्छ व सुन्दर बनाने का संकल्प-
शाहजहांपुर में बण्डा के निकट गोमती तट पर स्थित सुनासीरनाथ घाट व देवस्थान को आदर्श तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने हेतु मास में दो बार क्षेत्रीय जनसहभागिता से कारसेवा (श्रमदान) व वृक्षारोपण की योजना बनी, जिसके क्रियान्वयन हेतु डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा वहां जाकर स्थानीय डा॰ संजय अवस्थी, विश्राम सिंह व कृपाल सिंह के संयोजन में कार्य को मूर्तरूप देंगे।
4. गोमती संरक्षण व ग्राम विकास केंद्र विकास का संकल्प -
बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ नगर मे स्थित विजयी हनुमान मन्दिर को गोमती संरक्षण, ग्राम स्वावलम्बन, गोसेवा एवं शिक्षा के माॅडल के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया गया, जिसके संयोजन में महन्त रामसेवक दास, श्रीकृष्ण चौधरी, नरेन्द्र टण्डन की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
5. मूर्ति विसर्जन कुण्ड की योजना -
सुल्तानपुर के सीताकुण्ड पर प्रभाकर सक्सेना, अरविन्द चतुर्वेदी एवं प्रवीण अग्रवाल (नगर पालिका अध्यक्ष) के संयोजन में तथा लखनऊ के कुडियाघाट पर शुभ् संस्कार समिति द्वारा मूर्ति विसर्जन कुण्ड निर्माण करने व इस हेतु सामाजिक जागरूकता बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
6. स्वच्छघाट व्यवस्था -
माधौ टाण्डा गोमत ताल पर तपन मण्डल, लखीमपुर रवीन्द्र नगर (मोहम्मदी के निकट) विवेकानन्द घाट पर तपन सरकार, मैगलगंज के पास मढि़यानाथ घाट पर विजयकान्त तिवारी, जौनपुर में हनुमान घाट पर शशिकान्त वर्मा एवं वेदप्रकाश सेठ आदि ने सामाजिक सहयोग एवं कारसेवा (श्रमदान) द्वारा नदी तट को स्वच्छ एवं आदर्श बनाने हेतु संकल्प लिया।
7. नदी की खुदाई हेतु श्रमदान-
गुरूद्वारा सहबाजपुर (पीलीभीत) एवं गुटैया घाट (शहजहांपुर) में किसानों, झालों एवं संगतों की योजना से स्थानीय नदी में कारसेवा द्वारा नदी के बहाव में सुधार लाने हेतु कारसेवा। संयोजन- लाहोरी सिंह (प्रधान, सहवाजपुर) ऋषिपाल सिंह (प्रधान, घाटमपुर), सरदार मिल्कियत सिंह, गुटैयाघाट।
8. पंचवटी लगवाना तथा अंधराछोहा संरक्षण -
अजवापुर क्षेत्र की सुखेता नदी की सफाई एवं उसका गहरीकरण तथा गांवों में प्राथमिकता के आधार पर पंचवटी का रोपण एवं स्थानीय व्यवस्था बनाकर संरक्षण सुनिश्चित करने का दायित्व रमेश भैया, विनोबा सेवा आश्रम, विशम्भर सिंह जंगबहादुरगंज, सरदार सिंह प्रधान एवं ए॰ए॰ बेग, प्रबन्धक शुगर मिल ने स्वेच्छा से लिया।
9. जैविक खेती हेतु प्रशिक्षण व जागरूकता -
गोमती क्षेत्र में जैविक कृषि हेतु जागरूकता व प्रशिक्षण शिविर शाहजहांपुर के विनोवा सेवा आश्रम में प्रस्तावित है, संयोजन- श्री रमेश भैया, श्रीकृष्ण चौधरी।
10. मित्र मण्डलों द्वारा कार्य -
सभी क्षेत्रों में मित्र मण्डलों के सहयोग से स्वच्छता, प्रदूषण नियन्त्रण, जल प्रबन्धन एवं वृक्षारोपण के कार्यक्रम लेना।
11. विद्यालय केन्द्रित अभियान -
आगामी अगस्त से अक्टूबर माह के बीच विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के मध्य सहभागिता हेतु सघन कार्यक्रम।
12. अनुवर्ती व्यवस्था -
डा॰ प्रशान्त नाटू, महन्त रामसेवक दास, सर्वश्री रामसरन, चन्द्र भूषण तिवारी, रिद्धी गौड़, नीलकंठ, अशोक सिंह, सारिका शुक्ला एवं विनोवा सेवा आश्रम, गोमती मित्र मण्डल, जल बिरादरी, गायत्री परिवार, अध्ययन दल, माईक्लीन इडिया, डा॰ यू॰एन॰राय, (एनवीआरआई) तथा समस्त यात्रा संयोजक व गोमती मित्र-मण्डल आदि सभी अपने-अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए आगामी कार्ययोजना बनाने तथा उसकी सफलता के लिए आवश्यक सभी प्रकार के सहयोगी एवं संसाधन जुटान के लिए कृत संकल्प हैं। आदि गंगा गोमती के इस पावन अभियान में अनेक लोग जुड़ें हैं तथा सभी अपने-अपने ढ़ंग से आवश्यक सभी प्रकार के कार्य संपन्न करेंगे, सभी का स्वागत है।
संपर्क
प्रेम शंकर शुक्ल (अध्यक्ष), विजय अग्रवाल (सचिव), यात्रा समन्वयक, डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा, डा॰ वेकटेश दत्त एवं ब्रजेन्द्र पाल सिंह (संगठन सचिव) लोक भारती उत्तर प्रदेश, कोठी न॰-1, चोपड़ अस्पताल परिसर, नवल किशोर रोड, हजरतगंज, लखनऊ-226 001, फोन व फैक्स: 0522-4065759, 2613536 मो॰-9415018456, E-Mail: lokbharti@yahoo.com, Website: www.lokbhartiup.com
By Rakesh Prasad {{descmodel.currdesc.readstats }}
27 मार्च, से 4 अप्रैल, 2011 एक संक्षिप्त रिपोर्ट
यात्रा एक दृष्टि में :
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