डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस – भारतीय जनसंघ के संस्थापक को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि
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By
Shivpal Sawariya Contributors
Deepika Chaudhary
Kavita Chaudhary 346
इन गुंजायमान नारों के साथ अपने 66वें बलिदान दिवस पर भारतीय जन संघ के प्रणेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद किया गया. अविभाजित भारत की संकल्पना मन में लिए अपने जीवन का बलिदान कर देने वाली इस महान शख्सियत के सम्मान में लखनऊ की पश्चिमी विधानसभा मंडल 3 में कुंवर ज्योति प्रसाद वार्ड के अंतर्गत पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सभी कार्यकर्ताओं ने उपस्थिति दर्ज कर आदरणीय श्याम प्रसाद मुखर्जी को भावभीनी पुष्पांजलि दी.
गौरतलब है कि महान राष्ट्रवादी, प्रखर शिक्षाविद् और अविभाजित भारत के समर्थक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कोलकाता के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्में थे. उन्होंने मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में कुलपति पद पर कार्य करने का गौरव प्राप्त किया था. पेशे से बैरिस्टर और प्रख्यात शिक्षक के साथ साथ वें इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस, बंगलौर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे.
सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनते हुए श्यामा प्रसाद जी ने अगस्त 1947 में वित्त मंत्रालय की बागड़ोर अपने हाथों में ली. देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करने के मंतव्य से बहुत से बड़े उद्योगों की स्थापना करने के साथ साथ सदैव अटूट व अविभाजित भारत की संकल्पना की. राष्ट्रीय अखंडता को शिरोधार्य करते हुए श्यामा प्रसाद जी ने राजनीति के स्वच्छ स्वरुप को सबके सामने रखा और हर उस विचार से असहमति दिखाई जो राष्ट्र की एकता को धर्म के आधार पर तोड़ने की बात करता हो. अपने इन्हीं सर्वोच्च विचारों के चलते उन्होंने बहुत से प्रतिष्ठित पदों को ठुकराया और वर्ष 1951 में “भारतीय जनसंघ” की स्थापना की.
मानवता के सच्चे सेवक श्यामा प्रसाद जी का मानना था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. आज़ादी के समय जम्मू-कश्मीर का पृथक संविधान हुआ करता था, जिसके कारण यह भारत से अलग-थलग ही था. श्यामा प्रसाद जी ने न केवल जम्मू-कश्मीर को देश में विलय करने की बात की, अपितु धारा 370 को समाप्त करने की भी पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि,
समस्त देशवासियों को एकसूत्र में पिरोने की पैरवी करने वाले श्यामा प्रसाद जी ने अगस्त 1952 में जम्मू में अपनी विशाल जनरैली में संकल्प लेते हुए कहा था कि वो या तो जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनायेंगे नहीं तो वें अपने जीवन का बलिदान दे देंगे और अंतत: धरती माता के इस वीर सपूत ने अपने कहे शब्दों को पूर्ण करते हुए अगले ही वर्ष 23 जून को जम्मू में अंतिम श्वास ली.
एकात्मक भारत की संकल्पना के प्रबल समर्थक श्यामा प्रसाद जी अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी वें जम्मू कश्मीर की यात्रा पर थे, जहां उन्हें बिना अनुमति यात्रा करने के लिए गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया था. मानवतावादी विचारों के प्रणेता रहे श्यामा प्रसाद जी की रहस्यमयी मृत्यु उनके साथ हुई अमानवीयता की कहानी बयां करती है और तत्कालीन राजनेताओं की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करती है.
आज भले ही डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी हमारे बीच नहीं हैं, परन्तु उनके विचार, आदर्श और सिद्धांत प्रत्येक भारतवासी के अंतर्मन में रमते हैं. अखंड राष्ट्र के परिचायक, मानवतावाद के सूत्रधार, जुझारू राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने देश को एकता की जो सीख दी है, उसे हर देशवासी याद रखेगा और युगों युगों तक इसी प्रकार आत्मिक श्रृद्धांजली डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दी जाती रहेगी.
आपका पार्षद
शिवपाल सांवरिया
कुंवर ज्योति प्रसाद वार्ड, राजाजीपुरम परिक्षेत्र