कोरोना और शिक्षा व्यवस्था – खामियां, खाईयां और क्या करें?
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कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।
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समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
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By
Rakesh Prasad 65
क्या एक शिक्षक अपने टेबलेट, फ़ोन या लैपटॉप की स्क्रीन पर 28 बच्चों को ठीक से देख सकता है?
क्या हर 28 बच्चे के पास अपना फ़ोन, टेबलेट, कंप्यूटर है, और एक अलग जगह है जहाँ बैठ कर वो क्लास अटेंड कर सके.
जिन बच्चों को पेरेंट्स यूटूब, फेसबुक से बचाने और टीवी का टाइम लिमिट करने के लिए अब तक रोज़ जूझ रहे थे, आज इन सब तकनीकों का सत्यापन अब सीधे इनके स्कूल शिक्षकों की तरफ़ से आ रहा है.
हमारे नेतृत्व को तकनीक, ख़ासकर डिजिटल तकनीक का मतलब सिर्फ मार्क ज़करबर्ग का पढाया मार्केटिंग का पाठ ही लगता है.
और जानने से भी, वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता, फेसबुक, अमेज़न, गूगल कौन सा आपकी सुनेंगे.
तो एक तरह से यह कहा जा सकता है कि प्रकृति ने अपना युद्ध शुरू कर दिया है और युद्ध में लॉक डाउन होते हैं, और आगे भी होंगे.
तो क्या 14 वर्ष से कम आयु के छत्तीस करोड़ बच्चों का यह देश लॉक डाउन के इस दौर के लिए तैयार है?
क्या तकनीक एक equalizer यानि समानता देने वाले एक साधन का काम करेगी या फिर उसी युग की और ले जाएगी, जहाँ एकलव्य और कर्ण हर गुरु द्वारा शापित ही रह जाते हैं.