नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश की हो रही है अनदेखी:
यमुना नदी में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सभी तरह की माइनिंग पर पूरी तरह रोक लगा रखी है। पंचकूला में पंजाब से और बाकी जगहों पर राजस्थान से रेत आ रही है। इधर, एनजीटी की रोक के बावजूद यमुना नदी में अवैध माइनिंग रोकने में प्रशसान सफल नहीं रही है। माइनिंग माफिया इस कदर हावी है कि वह बेरोजगार युवकों की जान जोखिम में डालकर माइनिंग करवा रहे हैं, वहीं माइनिंग की साइट भी नहीं खुलने दे रहे हैं । हमने तीन दिन में माइनिंग डिपार्टमेंट के अधिकारियों, ठेकेदारों, अवैध खनन के काम में लगे युवकों, मकान बनाने वाले लोगों और खनन राज्यमंत्री नायब सिंह सैनी से बात करके अवैध माइनिंग की हकीकत जानने की कोशिश की । यमुना नगर से पानीपत तक के रास्ते में करीब 70 जगहों पर खुलेआम अवैध माइनिंग हो रही है ।
ऐसे चल रहा है अवैध माइनिंग का नेटवर्कः
यमुना नगर इलाके में बेरोजगार युवक जान जोखिम में डालकर अवैध माइनिंग के काम में जुटे हैं। इन्हें 300 से 500 रुपए रोजाना की दिहाड़ी पर लगाकर इनसे यमुना नदी से रेत निकलवाई जाती है। नशे और अन्य जरूरतों के लिए ये युवक रात और दिन नदी में रेत निकाल रहे हैं। इस काम के लिए ऐसे युवाओं का चयन किया जाता है जिन्हें अच्छी तरह से तैरना आता हो। नदी में रेत निकाल रहे रियाजुद्दीन ने बताया कि गहरे पानी में लोहे का एक स्टैंड लगा दिया जाता है। ये युवा बीच नदी में जाकर लोहे के तसलों में रेत निकालते हैं और इस स्टैंड पर रख देते हैं। पानी सूखने के बाद इस रेत को अलग-अलग जगहों पर छोटे-छोटे ढेर बनाकर इकट्ठा कर लिया जाता है। इसी रेत को रात में बुग्गी में भरकर दूसरी जगह पहुंचाया जाता है। वहां से ट्रक में भरकर यह रेत बाजार में बिकने चली जाती है। 5 से 6 युवकों की टीम दिनभर में 3 से 5 बुग्गी रेत निकाल लेती है। पकड़े जाने की बात पर उसने बताया कि जब भी किसी अफसर को नदी की ओर आता देखते हैं तो मोबाइल से उन्हें सूचना मिल जाती है, तब वे इधर-उधर हो जाते हैं। इसके उनके कुछ साथी नदी के सभी रास्तों पर डटे रहते हैं।
आम आदमी लुट रहा है, सरकारी प्रोजेक्ट पर भी असरः
रेत को लेकर आम आदमी माफिया के हाथों लुट रहा है। जबकि सरकारी प्रोजेक्टों पर भी इसका ज्यादा असर आ रहा है। माइनिंग ऑफिसर राजीव कुमार बताते हैं कि बड़े सरकारी प्रोजेक्ट के लिए तो माइनिंग के परमिट जारी होते हैं। छोटे प्रोजेक्ट के लिए ठेकेदार खुद ही रेत-बजरी का इंतजाम करते हैं। प्रोजेक्ट की जब भी आक्शन होती है तो उसमें रेत की कास्ट जोड़ ली जाती है। सरकारी ठेकेदार पानीपत निवासी अशोक और हरबंस ने बताया कि सरकारी प्रोजेक्ट की कॉस्ट 10 से लेकर 20 फीसदी तक बढ़ गई है। ठेकेदारों की मजबूरी है कि वे महंगे दाम पर बजरी व रेत खरीद रहे हैं।
डिफेक्टिव पॉलिसी क्यों बनाती है सरकारः
राज्य सरकार की ओर से हालांकि प्रदेश में कई जगह माइनिंग खोलने के दावे किए जा रहे हैं। जबकि नारायणगढ़ में दो जगह और भिवानी में 4 जगहों पर ही माइनिंग खुली है। प्रदेश में अभी स्टोन क्रेशर नहीं चल पाए हैं। माइनिंग माफिया को फायदा पहुंचाने के लिए अफसर जानबूझकर डिफेक्टिव पॉलिसी बनाते हैं। ताकि माइनिंग साइट अगर खुल भी जाएं तो कोर्ट से स्टे हो जाएं और अवैध माइनिंग होती रहे। पर्यावरण के लिए काम कर रही संस्था आकृति के अध्यक्ष अनुज ने बताया कि एनजीटी की रोक तो माइनिंग माफिया को पैसा कमाने का पूरा मौका दे रही है। डिफेक्टिव पॉलिसी की वजह से ही यमुनानगर, पानीपत, करनाल और सोनीपत समेत 11 युनिट की ऑक्शन रद्द हो चुकी है। इसके साथ ही माइनिंग के दो दर्जन से ज्यादा मामले पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में चल रहे हैं।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने तो अब एनजीटी ने लगाई रोकः
हरियाणा में माइनिंग पर पहले वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाया था। तब सरकार के माइनिंग पॉलिसी बनाने के निर्देश दिए गए थे। तत्कालीन हुड्डा सरकार ने जो माइनिंग पॉलिसी बनाई उसमें ग्राउंड वर्क किए बिना ही माइनिंग जोन चिन्हित कर दिए गए। ये जोन इस तरह बनाए गए ताकि कुछ ही लोगों का इस पर एकाधिकार बना रहे। हालात ये बने कि माइनिंग जोन में वह क्षेत्र भी शामिल कर दिए गए जहां लोग खेती कर रहे थे। इससे पर्यावरण क्लीयरेंस में दिक्कतें आने लगीं। इसके बाद यमुना नदी में अवैध माइनिंग की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए एनजीटी 18 फरवरी को यहां 45 दिन के लिए हर तरह की माइनिंग पर रोक लगा दी। इस अवधि को भी अब आगे बढ़ाया जा चुका है।
क्या होना चाहिए था
छोटे घाट बनाए जाने की पालिसी बने। पंजाब की तर्ज पर पर्यावरण क्लीयरेंस सरकार खुद लेकर दे। सरकार सिर्फ घाट की आक्शन करे ठेकेदार खुद किसानों से माइनिंग की जमीन लीज पर ले।क्या कहते हैं जिम्मेदारः
- अवैध माइनिंग को साबित करना मुश्किल हैः राजीव कुमार
माइनिंग ऑफिसर राजीव कुमार का कहना है कि यमुना नदी में कोई भी किसी तरह की माइनिंग करता हुआ पाया जाता है तो ट्राली पर 5 लाख रूपए और ट्रक पर 10 लाख रूपए तक जुर्माना लगाने के निर्देश हैं। लेकिन यह साबित करना मुश्किल है कि यह माइनिंग यमुना के प्रतिबंधित इलाके में ही हुई हैं। इसलिए एनजीटी के निदेशों के मुताबिक कार्यवाही नहीं की गई।
- हम दो माह में दूर करेंगे समस्याः नायब सिंह सैनी
खनन राज्यमंत्री नायब सिंह सैनी विभागीय मंत्री
होने के नाते अवैध खनन न रोकने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। हमने उनसे
की सीधी बातः-
सवाल- रेत बजरी के नाम पर प्रदेश के लोग माफिया के
हाथों लुट रहे हैं आप सस्ती रेत के लिए क्या कर रहे हैं
जवाब- हम छोटे घाट की पालिसी लेकर आ रहे हैं। 29
छोटे घाटों की आक्शन का काम लगभग पूरा हो चुका है।
सवाल- सस्ती रेत मिले इसके लिए क्या हो रहा है
पंजाब में तो सरकार खुद भी रेत बेच रही है
जवाब- छोटे घाट होंगे तो कंपीटिशन बढ़ेगा, ऐसे में
निश्चित ही रेत व बजरी के दाम कम होंगे। हम पारदर्शी तरीके से काम करेंगे। निश्चित
ही इससे जनता को लाभ मिलेगा।
सवाल - ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि माइनिंग विभाग
की पालिसी माफिया को लाभ पहुंचाने की रहती है
जवाब - हम जांच कर रहे हैं। यदि किसी भी अधिकारी
की भूमिका गलत मिली तो उसके खिलाफ तुरंत कार्यवाही की जाएगी। हमारा एक ही उद्देश्य
है, लोगों को सस्ती रेत व बजरी मिले।
- ग्रामीणों और एनजीओ की मदद ले रहे हैं-डीजीपी
यमुनानगर : खनन माफिया के हौंसले इतने बुलंद है कि पश्चिमी यमुना नहर अमादलपुर में बनी दीवार को गिरा दिया।
यमुनानगर : यमुना से निकाले गए रेत को शहर के
खाली प्लाट में किया जा रहा है स्टोर।
यमुनानगर : यमुना नहर से निकाले
रेत को पहले किनारे पर स्टोर किया जाता है बाद में मौका मिलने पर बेच दिया जाता
है।
यमुनानगर : खनन माफिया अब ट्रेक्टर
ट्राली नहर में नहीं लेकर जाता बल्कि पानी में स्टैंड लगाकर(ऊपर टाइटल फोटो) छोटे स्तर पर तसले से
रेत को निकालता है।
यमुना किनारे यूँ रास्ते बनाए गए हैं
रेत निकालने के लिए।
यमुनानगर : अमादलपुर में रेत कारोबार से
जुडी खाली बुग्गी तो बहुत खड़ी है पर पटरी किनारे रेत स्टोर नहीं किया हुआ है।