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टपकती बूंदों में सरस्वती नदी की खोज

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पौराणिक नदी सरस्वती

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पौराणिक नदी सरस्वती

आज सरस्वती नदी जिसे एक पौराणिक नदी माना जाता है और जिसकी चर्चा वेदों में भी है फिर से एक बार खबरों में है. खबर है इसके पुनर्जीवित किये जाने की. वैसे सरस्वती के पुनर्जन्म के लिए किया जाने वाला यह प्रयास नया नहीं है. इससे पहले भी वर्ष 2006 में इस तरह के प्रयास किये गए थे फिर साल 2008 में इसके लिए गंभीरता दिखाई गई, लेकिन तेजी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार बनने के बाद आई.
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ग्रंथों में भी सरवास्ती के सूखने का जिक्र

पौराणिक हिन्दु ग्रंथों तथा ऋग्वेद में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है, यह प्रमुख नदियों में से एक है. ऋग्वेद के नदी सूक्त में एक श्लोक (10.75) आता है जिसमें सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुई बताया गया है. यही नहीं आज जिस तरह से सरस्वती सूख चुकी है वैसा ही कुछ उदहारण हमें उत्तर वैदिक ग्रंथों जैसे ताण्डय और जैमिनिय ब्राह्मण में भी मिलते हैं जहां सरस्वती नदी को मरुस्थल में सुखा हुआ बताया गया है, महाभारत भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नाम के स्थान में अदृश्य होने का वर्णन करता है. सरस्वती नदी एक विशाल नदी थी. यह पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर समाहित हो जाती थी. बार-बार इसका वर्णन ऋग्वेद में आता है. कई मंडलों में इसके बारे में बताया गया है. उस समय सरस्वती आज की गंगा की तरह विशाल नदियों में से एक थी. भूगर्भी बदलाव के कारण सरस्वती नदी का पानी गंगा में चला गया. विद्वानों का मानना है कि भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती नदी का पानी यमुना में गिर गया. इसलिए यमुना में सरस्वती का पानी भी प्रवाहित होने लगा. 

 

विलुप्त नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास 

पौराणिक नदी सरस्वती

सरस्वती को आज लोग विलुप्त नदी मानते हैं. मगर आज इसे फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. हरियाणा सरकार ने इसपर करोड़ों खर्च कर दिए जिसपर कई सवाल खड़े किये गए. हरियाणा सरकार के इसी प्रयास के तहत आदि बद्री से पांच किलोमीटर दूर मुगलवाली गांव में दर्जनों मजदूर मनरेगा के तहत काम कर रहे थे. लगभग आठ फीट की गहराई तक खुदाई होने के बाद कुछ मजदूरों को जमीन से अचानक पानी की धारा निकलते दिखी. शुरुआत में थोड़ा पानी निकला मगर जैसे ही ज्यादा खुदाई हुई वैसे ही पानी की मात्रा बढ़ती चली गई. देखते ही देखते चार जगहों पर पानी निकलने लगा लोगों का मानना है कि यह सरस्वती नदी है.  

 

टपकी बूंदों में सरस्वती नदी की खोज

पौराणिक नदी सरस्वती

आदि बद्री, हरियाणा के यमुनानगर जिले की वह जगह है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है. पानी की बूंद इतनी कम है कि एक लुटिया पानी भरने में भी करीबन 50 सैकेंड लगते हैं. फिर भी सरकार इस पानी में एक भरीपूरी नदी का सपना देख रही है. इस सपने को पूरा करने के लिए पहाड़ के पीछे मुगलवाली गांव में खुदाई कराई गई है. पिछले साल मनरेगा में 50 करोड़ की लागत से यह काम किया गया. तकरीबन 35 किलोमीटर की खुदाई के बाद मुगलवाली गांव में 30 मार्च 2015 को यमुनानगर में लुप्त सरस्वती नदी मिलने की जो घोषणा की गई थी. थोड़ा सा भूजल मिला. दावा किया गया कि यह सरस्वती नदी का पानी है. दावा तो यहां तक है कि यह सरस्वती नदी जमीन के नीचे बह रही है.

 

जरा से पानी पर उतरा आस्था का समंदर

जैसे ही यहां पानी मिला वैसे ही यहां कई नेता पानी को देखने व पूजा के लिए भी पहुंचे. बकायदे से यहां एक पक्का कुआं बनाया गया. जिसमें आज भी यह पानी है. लेकिन पानी कुएं से बाहर नहीं निकल रहा है. कुएं के पास ही एक पूजारी ने अपनी कुटिया बना ली है. पूजारी अब यहां पहुंचने वाले को नदी के बारे में बताते भी हैं.
 

आरटीआई के लपेटे में सरकार

पौराणिक नदी सरस्वती

जैसे ही सरकार ने नदी और पानी खोजने का दावा किया तो आरटीआई एक्टिविस्ट भी सक्रिय हो गए. उन्होंने सरकार के दावे पर सवाल उठाते हुए एक आरटीआई फाइल की. आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने सूचना के अधिकार के तहत जानना चाहा कि नदी की खुदाई का आधार क्या है. राज्य सूचना आयोग में 20 मई 2016 को पेशी के दौरान डीसी यमुनानगर व डीडीपीओ ने स्वीकार किया कि लुप्त सरस्वती नदी के बारे में जो रिपोर्ट यमुनानगर प्रशासन ने तैयार की थी उसकी प्रमाणिकता की जांच नहीं कराई गई. जानकारी उन्हें दी गई वह काफी चौंकाने वाली थी. इससे सरकार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं. पीपी कपूर बताते है कि यमुनानगर प्रशासन ने बताया कि इस बारे में कोई प्रमाणिक तथ्य तो है ही नहीं .

 

आरटीआई एक्टिविस्ट से डरी सरकार

कपूर इसे पैसे की बर्बादी बता रहे हैं. उनका कहना है कि नदी के नाम पर किसानों को मूर्ख बनाया जा रहा है. इससे जमीन खराब होगी. उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह से नदी नहीं बन सकती. पीपी कपूर ने जब नदी पर सवाल उठा तो सरकार ने नदी की खुदाई काम बंद कर दिया है. तकरीबन एक साल से नदी का काम बंद है. अब जहां जहां नदी की खुदाई हुई, वहां झाड़ आदि उग गई है.

 

नदी के पक्ष में भी हैं अपने तर्क 

हालांकि नदी के पक्ष में तर्क देने वाले भी बहुत ज्यादा हैं. कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी विभाग के डॉक्टर एआर चौधरी की  देखरेख में नदी की खुदाई हुई थी, उनके अपने तर्क और साक्ष्य है. जिसके दम पर वें यह साबित कर रहे हैं कि जहां जहां खुदाई हुई, वह जगह सरस्वती नदी की है. इसका आधार क्या है यह पूछने पर उनका जवाब है कि सेटलाइट पिक्चर इस बात की पुष्टी करते हैं.
खुदाई के वक्त उन्होंने दावा किया था कि यह पेलियों चैनल है, पेलियो चैनल उस जगह को कहते हैं जहां पहले कभी नदी गुजरती थी. उनका यह भी दावा है कि खुदाई में रेत की तो तह मिल रही है, वह नदी की पुष्टि कर रही है. 

 

एक पुजारी ने सरकारी दावों पर उठायें सवाल 

आदि बद्री के पुजारी विनयस्वरूप ब्रह्मचारी सरकारी दावों पर सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि आदि बद्री में जगह जगह पहाड़ से इस तरह पानी टपकता रहता है. यह पानी सोमनदी से होता हुआ यमुना में चला जाता है. सोमनदी भी कुछ खास अच्छी स्थिति में नहीं है. सरकार को चाहिए कि इस नदी के ही सौंदर्यकरण पर ध्यान दे. इससे नदी बची रहेगी. यहां घाट बनाए जा सकते हैं. ठीक जिस तरह से हरिद्वार में घाट बनाए गए हैं. इससे लोगों की आस्था भी नदी के साथ जुड़ेगी.
 

 कई सवाल जिसके जवाब नहीं 

जब नदी पर काम शुरू हुआ तो सरकार ने हरियाणा सरस्वती विकास बोर्ड का गठन कर दिया. इसके चेयमरैन सीएम और डिप्टी चेयरमैन प्रशांत भारद्वाज है हालांकि बोर्ड की गतिविधियां काफी समय से ठप है. बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन प्रशांत भारद्वाज ने बताया कि नदी में पानी आएगा. हालांकि कब आएगा इस बारे में वें कुछ भी कहने की स्थिति में तो नहीं है. उनके पास उन सवालों का भी जवाब नहीं है जो आम तौर पर पीपी कूपर या अन्य स्थानीय ग्रामीण उठा रहे हैं.
पौराणिक नदी सरस्वती

 

यमुना में खुद पानी की कमी, नहर को कैसे मिलेगा पानी?

अब सरकार के सामने बड़ा सवाल यह बन गया कि नदी में पानी कब आएगा. इसका जवाब देने के लिए सरकार ने एक और कदम उठाया. पिछले साल जुलाई में यमुना नदी के दादुपुर हेड से एक नहर हुड्‌डा सरकार के समय में निकाली गई थी. दावा था कि इस नहर से पानी अंबाला जिले से होते हुआ कुरुक्षेत्र के नलवी गांव तक जाएगा. यह अलग बात है कि हुड्‌डा सरकार अपने दस साल के शासनकाल में इस नहर में पानी नहीं ला सकी. इसकी वजह यह है कि यमुना नदी में ही इतना पानी नहीं है, पहले ही दिल्ली और दक्षिण हरियाणा में पानी की कमी को पूरा नहीं किया जा पा रहा. इसलिए दादुपुर नलवी नहर में पानी नहीं आया. यह नहर मुस्तफाबाद के पास सरस्वती नदी को क्रास करती है. खट्‌टर सरकार इस कोशिश में है कि दादुपुर नलवी नहर के रास्ते यमुना का पानी मुस्तफाबाद तक लाया जाए. यहां से दादुपुर की ओर जा रही नहर का रास्ता बंद कर इस पानी को सरस्वती नदी में डाल दिया जाए.
स्थानीय ग्रामीण बताते है कि यह प्रयोग भी कोई बहुत अच्छा नहीं है. उनकी तो मांग यह है कि दादुपुर नलवी नहर को सरकार बंद कर दे. क्योंकि न तो यमुना में इतना पानी है और सरस्वती में तो पानी है ही नहीं. इसलिए यह बेकार की कोशिश है.

 

सरस्वती, खोज अभी बाकी

अब जो भी , बड़ा सवाल यह है कि आदि बद्री में सरस्वती नदी के उदगम स्थल में टपकता हुअ यह पानी सरकार के सरस्वती नदी के सपने को कितना साकार करता है. यह तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो यहां टपकता यह पानी है. नदी के नाम पर खुदी हुई जमीन है. और सरस्वती में पानी के नाम पर दादुपुर नहर में सड़ा हुआ काला पानी है.
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