साबरमती नदी
साबरमती गुजरात की एक प्रमुख नदी है, इसके तट पर अहमदाबाद शहर बसा है. साबरमती नदी अहमदाबाद के जीवन का एक अभिन्न अंग रही है. यह आज से नहीं बल्कि तबसे है जबसे शहर नदी के किनारे 1411 में स्थापित किया गया था. साबरमती यहाँ के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के साथ-साथ सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है. यही नहीं शुष्क मौसम के दौरान, नदी का सूखा भाग खेती के लिए उपयुक्त स्थान बन जाता है. समय के साथ-साथ ही विभिन्न अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियों के लिए भी यहाँ पेशकश की गई और धीरे-धीरे नदी का बेहद दोहन भी किया गया. धीरे-धीरे, गहन उपयोग ने नदी को बुरी तरह प्रभावित किया है. नदी में प्रवाहित किये जाने वाले सीवेज और औद्योगिक कचरों के डंप ने स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरा पैदा कर दिया है. नदी बैंक के किनारे की बस्तियां विनाशकारी रूप से बाढ़ से ग्रस्त थीं और बुनियादी सुविधाओं की कमी थी.
साबरमती रिवरफ्रंट
साबरमती रिवरफ्रंट, अहमदाबाद में साबरमती नदी के तट पर विकसित एक तट है. साबरमती नदी के तट को लेकर लंबे समय से यह स्वीकार किया गया था कि रिवरफ्रंट गुजरात राज्य का एक प्रमुख शहरी परिसंपत्ति में बदल सकता है. 1960 के दशक में रिवरफ्रंट के प्रस्तावों को बनाया गया. 1998 में इस बहु-आयामी परियोजना की कल्पना की गई थी जबकि इसका निर्माण कार्य 2005 में शुरू हुआ. इसके पूर्व और पश्चिम तटबंधों के 11 किलोमीटर के पहले चरण का कार्य पूर्ण हो चुका है. इस परियोजना के लिए निर्माण अनुक्रम में कई तरह के कदम शामिल हैं. निचले स्तर पर नदी के चारों तरफ, जो कि बाईस किलोमीटर लंबी वाटरपथ पैदल यात्री क्षेत्र है का कार्य पूर्ण हो चुका है. सैर के सभी हिस्से अब सार्वजनिक उपयोग के लिए खुले हुए हैं. तीन नौकायन स्टेशन चल रहे हैं, लाँड्री कैम्पस और दो प्रस्तावित पार्कों में से दो पूरे हो चुके हैं और जनवरी 2014 में सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराए गए हैं. रिवरफ्रंट मार्केट भी पूर्ण है और फरवरी 2014 के बाद से परिचालन चालू है(http://sabarmatiriverfront.com के मुताबिक)
साबरमती रिवरफ्रंट का उद्देश्य
इस परियोजना का उद्देश्य अहमदाबाद को एक सार्थक वाटरफ्रंट वातावरण प्रदान करना है और नदी के चारों ओर अहमदाबाद की पहचान को फिर से परिभाषित करना है. परियोजना नदी के साथ शहर को फिर से जोड़ने का प्रयास करती है और नदी तट के उपेक्षित पहलुओं को सकारात्मक रूप में बदलती है.
इस बहुआयामी परियोजना के उद्देश्यों को तीन विषयों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है-
पर्यावरण सुधार: शहर की रक्षा के लिए क्षरण और बाढ़ में कमी लाना, नदी साफ करने के लिए सीवेज का पानी नहीं आने देना, जल प्रतिधारण और पानी को रिचार्ज करना.
सामाजिक बुनियादी ढांचा: नदी के किनारे निवासियों और गतिविधियों के पुनर्वास और पुनःस्थापन, पार्कों और सार्वजनिक स्थानों का निर्माण, शहर के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक सुविधाओं का प्रावधान.
सतत विकास: संसाधनों का निर्माण, पड़ोसी राज्यों का पुनरोद्धार.
श्री नरेंद्र मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट
साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक रहा है. वर्ष 2001 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की सत्ता संभाली. मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी जी ने साबरमती रिवरफ्रंट के प्रोजेक्ट को प्राथमिकता देने का संकल्प किया था. गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने इस रिवरफ्रंट के किनारे अमेरिका और लंदन की तर्ज पर साबरमती नदी के आसपास के विस्तार को विकसित करने का सपना देखा था. हालांकि इसका बहुत हद तक कार्य हो भी चुका है और इसे आम लोगों के लिए खोला भी जा चुका है मगर इसके बनने के बाद और इस रिवरफ्रंट का अध्ययन करने के बाद हमारे सामने कई प्रश्न खड़े हुए?
बदल दिया गया साबरमती का स्वरुप
सम्पादकीय टिपण्णी - वासना बराज के बाद सूखी साबरमती नदी - भारत की सूखी नदियों का अपना महत्व है इस तरह पानी रोक के मज़स्समा बना देना क्या सही है?
बराज के ठीक पहले भरा लबालब नर्मदा कैनाल का पानी, बराज के ठीक बाद सूखा , क्या शहर को नयन सुख दे कर डाउनस्ट्रीम गाँव और खेती पर संकट की तैयारी विकास का नया पैमाना है ? क्या यही नया भारत है ?
अहमदाबाद गुजरात का एक अहम शहर है जहां साबरमती नदी के किनारों पर वॉटरफ्रंट का विकास करके साबरमती रिवरफ्रंट बनाया गया है. कहते हैं अपने अस्तित्व को जूझ रही साबरमती नदी के ऊपर से नर्मदा नहर की एक चैनल गुजरती है जिसे राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की मदद से इसी चैनल के जरिए साबरमती में पानी पहुंचाया. मगर इसके किनारों पर रह रहे मजबूर और बेबस लोग जो यहां खेती भी किया करते थे उन्हें यहाँ से बेदखल कर दिया गया सरकारी शब्दों में साबरमती नदी के किनारों से अतिक्रमण हटा कर नदी के दोनों किनारों के प्राकृतिक स्वरुप को समाप्त कर कंक्रीट बिछा दिया गया और साबरमती रिवरफ्रंट को पर्यटनीय स्थल के तौर पर विकसित किया गया.
यहां आपको गुरुग्राम का एक उदाहरण देना जरुरी है. आप शायद ही पिछले वर्ष गुरूग्राम में लगे महाजाम को नहीं भूले होंगे. 29 जुलाई 2016 का वह दिन जब दिल्ली गुरुग्राम एक्सप्रेस वे स्थित हीरो होंडा चौक से लगभग 25 किलोमीटर तक लंबा जाम लगा था. जहां रात भर लोग फंसे रहे थे, लोगों का बुरा हाल था. पूरे देश ने मीडिया के जरिये इस सूचना को प्राप्त की थी. मगर उसके पहले ही हमारी एक रिसर्च ने इस बात के संकेत दे दिए थे की ऐसा कुछ हो सकता है.
बैलेटबॉक्सइंडिया की टीम गुडगांव यानी गुरूग्राम में काफी अरसे से एक रिसर्च कर रही थी. इस रिसर्च का उद्देश्य यहां के गिरते भूजल और बाढ़ आने के मुख्य कारण को जानना था. हमारी रिसर्च के दौरान हमें यह पता चला कि गुरूग्राम में प्राकृतिक तौर पर निर्मित लगभग सभी ड्रेन को नष्ट कर दिया गया है. पानी के बहाव को रोक बड़ी-बड़ी बिल्डिंगे खड़ी कर दी गई है. प्राकृतिक ड्रेन को समाप्त कर कंक्रीट के ड्रेन बनाए गए हैं जिसके कारण धरती पानी सोख नहीं पाती है और साथ ही पानी के ज्यादा बहाव को कंक्रीट के ड्रेन सह नहीं पाते हैं और सड़कों पर इस कारण पानी आ जाता है.
रिवरफ्रंट के लिए नदी की चौड़ाई कर दी गई कम
इन बातों को यहां रखने का उद्देश्य बस इस बात को बताना था की जिस तरह से हम प्राकृतिक निर्मित चीजों में अपनी दखलंदाजी कर रहे हैं कहीं वह किसी विनाश के आने का तो संकेत नहीं? साबरमती के किनारों को उसके मूल रुप से परिवर्तित कर कंक्रीट में बदल देना क्या वाकई एक अच्छा कदम है? आज साबरमती रिवरफ्रंट की जिस खूबसूरती के चर्चें किये जा रहे हैं उसके पीछे कुछ स्याह दाग भी छिपे हुए हैं. 10.4 किलोमीटर तक इसे खूबसूरत बनाया गया है. इसके लिए 185 हेक्टेयर तक जमीन की आवश्यकता थी. आपको आश्चर्य होगा इसके लिए नदी को संकरा कर दिया गया. नदी की इस जमीन पर तटबन्ध और सड़कें बनी. नदियों के खूबसूरती के नाम पर किये जाने वाले दोहन का एक और उदाहरण. सुभाष ब्रिज से वासना बैराज तक आप देखें तो साबरमती चैनल की चौड़ाई 382 मीटर की तो वहीं सबसे संकरा क्रॉस सेक्शन 330 मीटर का है. रिवरफ्रंट बनाने के लिए साबरमती रिवरफ्रंट डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने चैनल की चौड़ाई एक समान करने के लिए उसे 275 मीटर्स तक सिकोड़ कर रख दिया है.
नदियों के मूल स्वरुप से ना हो छेड़छाड़
आपको यहां यह भी जानना जरूरी है कि जिस साबरमती रिवरफ्रंट को अमेरिका और लंदन की तर्ज पर विकसित किए जाने का स्वप्न देखा गया था वहां भी नदियों के मूल स्वरुप से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जाता. हमने जिन देशों की तर्ज पर साबरमती रिवरफ्रंट बनाने की पहल की थी कम से कम हमें वहां से ही कुछ सीख ले लेनी चाहिए थी. हमें यह देखने की जरूरत थी कि वहां मानव निर्मित विकास व प्राकृतिक जल स्रोतों के बीच किस तरह से सामंजस्य बैठाया जाता है. साथ ही इन विकसित देशों के नदी तटों का प्रबंधन कैसे किया जाता है. लंदन की थेम्स हो या अमेरिका की हडसन नदी यहां के किनारों को विकसित किया गया है ना कि नदी के एक्टिव फल्ड प्लेन पर दीवार उठा, नदी को एक कैनाल बनाने और उस पर रिवरफ्रंट की अपनी ही अनूठी व्याख्या निर्मित की गई है. थेम्स और हडसन जैसे नदी के किनारों पर दीवार नहीं खड़ी की गई है बल्कि किनारों को सुरक्षित किया गया है. यह सोचने वाली बात है कि क्यों इन देशों ने नदी के किनारे दीवार खड़ी नहीं की? यहां नदी के तल तक दीवार नहीं बनाई गई है बल्कि प्राकृतिक रूप से उनके किनारों को मिलने दिया गया है, जिससे इसका जलभृत रिचार्ज हो और नदी से भी ना के बराबर ही छेड़छाड़ हो. यहां नदी पर लकड़ी के तटबंध बनाए गए हैं ताकि इसके पाकृतिक बहाव में कोई भी बाधा उत्पन्न ना हो.
विदेशों की नकल
हमने साबरमती रिवरफ्रंट को अमेरिका और लंदन की तर्ज पर विकसित तो कर लिया. मगर हमने थेम्स, हडसन और दूसरी यूरोपियन नदी के व्यवहार और चरित्र को समझने का प्रयास नहीं किया. साबरमती सदा नीरा नदी नहीं है यह और दूसरी विदेशी नदियां आपस में बिलकुल अलग हैं. इनका समय, पर्यावरण, पारिस्थितिकी, बहने का तरीका एक समान नहीं हैं. वहां नदियों पर जो भी निर्माण कार्य किया गया है वह बिलकुल न्यायपूर्ण है, नदियों के स्वभाव से कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया है. जबकि हमने यहां साबरमती के मूल चरित्र को ही बदल कर रख दिया. आखिर कब तक हम प्राकृतिक निर्मित चीजों को अपने हिसाब से चलाते रहेंगे? आखिर कब तक हम सुंदरता को देखते रहेंगे उसकी उपयोगिता को नहीं?
साबरमती रिवरफ्रंट को मिले कई पुरस्कार
साबरमती रिवरफ्रंट डिवेलपमेंट यह प्रोजेक्ट भारत का पहला रिवरफ्रंट है. इसे अब तक लगभग 24 पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं. जिनमें इसे प्रधानमंत्री का बेस्ट पुरस्कार के साथ साथ बेस्ट इनोवेटिव प्रोजेक्ट ऑफ द ईयर का भी पुरस्कार मिला है. इसे बेस्ट आर्कीटेक्ट ऑफ द ईयर, बेस्ट सिविल प्रोजेक्ट ऑफ द ईयर जैसे कई पुरस्कार मिले हैं. इतना ही नहीं ‘केपीएमजी’ जो कि विश्व की उच्च सलाहकार कंपनी है ने शहरी नवीनीकरण के क्षेत्र में साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट को विश्व के सौ सबसे नवीनतम प्रोजेक्ट्स की सूची में भी शामिल किया है. मगर वास्तव में क्या पर्यावरण से जुड़े किसी पक्ष को लेकर इसे कोई भी पुरस्कार प्राप्त हुआ है? उत्तर होगा ना. यह बिलकुल सही है कि इस प्रोजेक्ट से शहर को काफी लाभ हुआ है. साबरमती रिवरफ्रंट का एरिया बेहद खुबसूरत दिखने लगा है और पर्यटन स्थल भी बन गया है मगर नदी के मूल स्वरुप से इस तरह की छेड़छाड़ कितना वाजिब है.
सूखी नदी को मिला जीवन मगर प्रश्न कई सारे
इतना ही नहीं यह भी सच है कि साबरमती रिवरफ्रंट के कारण अहमदाबाद को साफ और स्वच्छ पानी मिलने लगा है और साबरमती में पानी रहने लगा है. एक समय था जब साबरमती नदी सूख चुकी थी. एक दशक के लंबे अरसे तक नदी सूखी हुई थी. यहाँ साबरमती में पानी मात्र तीन महीने ही रहा करता था बाकी समय या तो यहाँ खेती होती थी या लोग क्रिकेट खेला करते थे. इस प्रोजेक्ट ने बेशक इसमें जान डाल दिया हो और साबरमती पानी से सरोबार रहने लगी हो मगर जिस तरह से इसके किनारों को एक सामान करने के लिए उसका अतिक्रमण किया गया, उसे सिकोड़ा गया क्या यह सही है? क्या कोई और तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिए था? जिस तरह किनारों पर कंक्रीट इस्तेमाल किया गया क्या उससे नदी में बाधा नहीं डाली गई? वास्तव में नदी का धर्म है बहना, उसकी मूल प्रविर्ती है कि वह अपना रास्ता खुद बनाती है. आपने साबरमती के जीणोद्धार का अच्छा प्रयास किया मगर उसके प्राकृतिक संरचना के ध्यान रखे जाने का भी उतना ही ज्यादा जरुरी था. साथ ही कंक्रीट के इस्तेमाल से भूजल स्तर पर भी जिस तरह का प्रभाव है उसके बारे में भी हमें सोचने की जरुरत है.
रिवफ्रंट के दोनों किनारों की जमीन बेचने की तैयारी
इतना ही नहीं हमें यहां यह भी देखना होगा कि हमने जिस तर्ज पर साबरमती रिवरफ्रंट बनाने की सोची थी हमने उसे भी ध्यान नहीं रखा. अमेरिका की बात करें तो यहाँ की हडसन नदी के आसपास की जमीन खाली छोड़ दी गई है. इतनी महंगी जमीन किसी बिल्डर्स को नहीं दी गई है, जबकि वहीं दूसरी तरफ साबरमती रिवरफ्रंट के आस पास काफी निर्माण कार्य किया गया है. साथ ही यहां की जमीन बिल्डर्स को बेची भी जा रही है. गुजरात सरकार ने रिवफ्रंट के दोनों किनारों की जमीन को बेचने का निर्णय लिया है. इसीलिए इसी वर्ष 21 और 22 जून को रिवरफ्रंट के पश्चमी किनारे के दो प्लॉट्स का ई-ऑक्शन किया जाएगा. गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने इसकी घोषणा भी कर दी है.
रिवफ्रंट की अनुशंसा जरुरी
सम्पादकीय टिपण्णी -साबरमती रिवर फ्रंट से ठीक पहले गंदे नाले में तब्दील साबरमती में बहता नर्मदा का पानी. जी हाँ पानी तो ज़रूर है मगर क्या इसी पानी के लिए इतना कंक्रीट और लोहा पहाड़ काट कर नदी के पेट में डाल दिया गया ?
हमने नदी के सूखेपन को तो दूर कर दिया मगर हमने साथ ही पूरे नदी के व्यवहार को ही बदल कर रख दिया है. क्या यह पर्यावरण और प्राकृतिक तौर पर निर्मित व्यवस्था के साथ सही है? साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट को एक्सपेरिमेंट के तौर पर शुरू किया गया था, आज जरूरी है कि इसकी व्याख्या की जाए. जिस समय रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का कार्य हो रहा था उस दौरान किसी भी तरह का कोई भी क्लीयरेंस नहीं लिया गया था मगर आज की स्थिति काफी बदल चुकी है. आज इसी के तर्ज पर देश में कई जगह रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का काम किया जा रहा है. ऐसे में इस बात की अनुशंसा तो की ही जानी चाहिए थी कि साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का समाज में, पर्यावरण आदि पर क्या असर हुआ है. आज देश में जहां कहीं भी रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का कार्य हो रहा है क्या उन्होंने साबरमती रिवरफ्रंट का आंकलन किया है यह बहुत ही बड़ा प्रश्न है.
साबरमती रिवरफ्रंट की तर्ज पर बने कई और रिवरफ्रंट
आपके सामने लखनऊ के
गोमती रिवरफ्रंट का एक उदाहरण मौजूद है जिसने साबरमती की तर्ज पर यहाँ रिवरफ्रंट बनाने का कार्य किया है जिसके दुष्परिणाम अभी से ही आने शुरू हो चुके हैं. आप इससे संबंधित शोध आधारित डाक्यूमेंट्री नीचे देख सकते हैं :
यहीं नहीं साबरमती रिवरफ्रंट की तर्ज पर ही मध्यप्रदेश में भी रिवरफ्रंट बनाने की योजना अपने पूरे जोर पर है. मध्यप्रदेश के जबलपुर को इसके लिए चुना गया है. जबलपुर के भटौली से लेकर तिलवारा तक नर्मदा रिवरफ्रंट बनाने का लक्ष्य रखा गया है जो कि लगभग 10 किमी तक होगी. इतना ही नहीं ताजनगरी आगरा में भी रिवरफ्रंट डेवलपमेंट की बात चल रही है. इसके लिए एक सर्वे भी कर लिया गया है और डीएम के सामने इसका प्रेजेंटेशन भी दिया जा चुका है. आगरा में रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के लिए संरक्षित स्मारक चीनी का रोजा से लेकर ग्यारह सीढ़ी तक की जगह को चुना गया है. इतना भर ही नहीं साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट की तर्ज पर पाकिस्तान में भी काम होने जा रहा है. इसके लिए पाकिस्तान से एक टीम भी आ चुकी है. साबरमती रिवरफ्रंट जैसा प्रोजेक्ट लाहौर में भी रावी नदी पर तैयार किया जाएगा. मगर यहाँ एक सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या इसके लिए पर्यावरण और प्रकृति के बारे में भी तसल्ली से सोचा गया है?
क्या हमने कुदरत के हजारों सालों के किये इंतजामों को नष्ट कर दिया है?
साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट ने भले ही आज अहमदाबाद को बदल दिया है. साबरमती नदी के किनारों के खूबसूरत नजारे आपको आकर्षित करते हो. नदी के दोनों ओर आपको सुंदर बगीचों के अलावा सुंदर निर्माण कार्य लुभाते हो. यहां बने रेस्टोरेंट के साथ एम्फिबियन बस, छोटे-छोटे क्रूज शिप, तैरते होटल, वाटर स्पोर्ट्स जैसी सुविधा भी प्रदान की गई हो. यहीं नहीं सूख चुकी साबरमती नदी को नया जीवन मिला हो मगर क्या यह सभी आपको इतना हक दे देते हैं कि प्राकृतिक तौर पर निर्मित संरचना के साथ आप इतना बड़ा बदलाव करें? नदी के उपर इस तरह का बड़ा बदलाव इतना तो बताने के लिए काफी ही है कि आपने नदी की जमीन हड़प ली है. नदी की अपनी एक प्रक्रिया होती है जो कई वर्षों में तैयार होती है. आपने कुछ अच्छा करने की कोशिश में कुदरत के हजारों सालों के किये इंतजामों को नष्ट कर दिया है इसका पर्यावरण पर कैसा असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही तय करेगा मगर कहीं यह हमें बहुत ही महंगा ना पड़े.