गाजियाबाद की शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल, शिक्षा का अधिकार सबका है मगर लड़कें और लड़कियों की साक्षरता दर में बड़ा अंतर
शिक्षा का अधिकार सबका है मगर गाजियाबाद की शिक्षा व्यवस्था के हालात जब आप देखेंगे तो चौंकने पर मजबूर हो जाएंगे. वास्तव में गाजियाबाद देश की राजधानी से लगा हुआ एक जिला है. यह दिल्ली-एनसीआर का हिस्सा है. मगर यहां की शिक्षा व्यवस्था के हालात संतोषजनक नहीं है.
जनगणना-2011 के मुताबिक गाजियाबाद जिले की साक्षरता दर 78.0 7 प्रतिशत है. इनमें आप लड़कें और लड़कियों में बड़ा अंतर पाएंगे. एक तरफ जहां गाजियाबाद जिले में लड़कों की साक्षरता दर 85.42 प्रतिशत है तो वहीं लड़कियों की साक्षरता दर 69.79 प्रतिशत है जो कि एक बहुत बड़ा अंतर है. हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाया गया ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान आगे जाकर सफल हो मगर फिलहाल लड़के और लड़कियों की साक्षरता दर में इस तरह का अंतर हमें निराश ही करता है.
दूसरे देशों से है सीखने की जरूरत
एक बेहतर समाज और बेहतर कल के लिए सभी का पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना कि किसी एक लड़के का. जहां एक और लड़के और लड़कियों की साक्षरता दर में इतना बड़ा फर्क है तो वहीं गाजियाबाद जिले की साक्षरता दर भी कोई उत्साहजनक नहीं है. आपके सामने कई छोटे छोटे राज्यों के और साथ ही कई देशों के उदाहरण मौजूद हैं जहां की साक्षरता दर यहां से कई गुणा अधिक है. हमसे कहीं छोटे देश एंडोरा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड, नॉर्वे की साक्षरता दर 100 प्रतिशत है. हो सकता है इस तरह की खबरें हमें निराश करें मगर इससे हमें बहुत कुछ सीखने और अपनाने की जरूरत है ताकि हम बेहतर भविष्य के लिए, बेहतर कल के लिए अपने बच्चों को साक्षर बना पाएं.
चुनावों में शिक्षा बने चुनावी मुद्दा
हमारे सामने चुनौतियां बहुत है मगर ज़रूरत भी है इन चीजों में सुधार लाने की. आजादी के इतने सालों बाद भी अगर हम अपने देश के गाजियाबाद जैसे शहर में सो प्रतिशत साक्षरता दर नहीं ला पाए तो यह हमारी सरकार के साथ साथ हम सब की भी नाकामी है. आज चुनावों में रेल किराया का ना बढ़ाया जाना, बिजली की दरें कम कर देना एक चुनावी मुद्दा बन जाता है. इसी आधार पर चुनाव लड़ लिए जाते हैं और जीत हो जाती है. मगर यह हमारी कमजोरी है कि हमने कभी भी शिक्षा को लेकर के, शिक्षा व्यवस्था पर ना तो कभी वोट किया न ही कभी इसकी बात की.
एक समान शिक्षा सभी का अधिकार
यही नहीं गाजियाबाद की शिक्षा व्यवस्था की बात करें, उसकी गुणवत्ता का आंकलन करें तो हमें लज्जा सी आने लगेगी. ऐसा नहीं है कि हम सबके सामने यह बातें पहले नहीं आई है मगर हमने इसे नजरअंदाज कर दिया है. हमारे सामने सब कुछ खुला हुआ है बावजूद इसके हमने अपनी आंखों पर आज तक पट्टी ही बांध रखी है. आज हमें यह समझने की जरूरत है कि सरकारी विद्यालयों में मिड डे मील का प्रबंध कर देना और निजी विद्यालयों में मनमानी फीस देकर पढ़ाई करने वाले इस शिक्षा तंत्र को बदलने की आवश्यकता है. आज जरूरत है अच्छी शिक्षा व्यवस्था पर नीतिगत फैसले लेने का, गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाने की. एक समान शिक्षा सभी का अधिकार होना चाहिए न की इसे अमीरों और गरीबों में विभाजित करके देखा जाए.
जब शिक्षक ही नहीं जानते तो बच्चे क्या पढेंगे
आपके लिए यह नया नहीं हो मगर सोचनीय अवश्य होना चाहिए. दरासल गाजियाबाद के बेसिक शिक्षा अधिकारी विनय कुमार की हाल ही में की गई
औचक निरीक्षण की रिपोर्ट हमें फिर से सोचने के लिए मजबूर करती है. विनय कुमार ने नगरीय क्षेत्र के कई विद्यालयों का औचक निरीक्षण किया उन्हें यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ कि विद्यालयों में पंजीकृत छात्रों की मौजूदगी संख्या के आधे से भी कम थी. विनय कुमार ने एक स्कूल में देखा कि 51 बच्चे पंजीकृत हैं जबकि उनमें से मात्र 17 बच्चे ही उपस्थित थे तो वहीं एक दूसरे विद्यालय में 85 पंजीकृत विद्यार्थियों में से 55 बच्चे अनुपस्थित थे. औचक निरीक्षण के दौरान कई शिक्षक भी विद्यालय में मौजूद नहीं थे. इतना ही नहीं लाखों का वेतन पा रहे उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक विद्यार्थियों को चार में दो का भाग देना सिखा पाने में भी असक्षम हैं. कक्षा 6 से 8 तक के कई बच्चों से विनय कुमार ने 4 में से 2 का भाग देने की बात की मगर बच्चे उनका जवाब नहीं दे पाए. 1/2 और 0.5 में कौन सी संख्या बड़ी है पूछे जाने पर कई छात्रों ने तो उसका जवाब ही नहीं दिया तो कुछ छात्रों ने 0.5 को बड़ा बताया. प्राथमिक विद्यालय में कई विद्यार्थी ऐसे थे जिनको अंग्रेजी तो दूर वह हिंदी भी नहीं पढ़ पा रहे थे. हालात इतने बदतर हैं कि यहां पर आने वाली शिक्षिकाओं को यह तक नहीं पता कि लघुत्तम समापवर्तक क्या होता है.
न ही शिक्षा दे पाए, न ही मिड डे मील
सरकारी विद्यालयों की खस्ताहाल व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है. मगर मिड डे मील द्वारा सरकार की विद्यार्थियों को स्कूल बुलाने की कोशिश पर भी लोगों की बुरी नजर पड़ रही है. गाजियाबाद में गरीब परिवारों के बच्चों के लिए आए
मिड डे मील में गेहूं और चावल में हुए घोटाले की बात सामने आई है. विभिन्न विद्यालयों में भेजे गए राशन में 1336 किलो गेहूं और चावल कम पाया गया है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से की गई जांच में इस घोटाले का पता चला है. शिक्षा के क्षेत्र में हो अरे ही ऐसी ही कई और भी घटनाएं हैं मगर सभी का सामने आ पाना मुश्किल है. इस तरह के घोटाले शिक्षा तंत्र में हो रही लापरवाही को की ओर ही इशारा करते हैं.
क्या स्कूलों में ऐसे ही होते रहेंगी बच्चों की देखभाल
बार-बार आज हमारे सामने स्कूल प्रबंधन की लापरवाही का जिक्र आता रहता है. हाल ही के दिनों में हुए कई घटनाओं के बाद भी हमने अब तक कोई भी सबक नहीं सीखा. गुरुग्राम के रेयान पब्लिक स्कूल और इंदिरापुरम में मौजूद जी डी गोयनका स्कूल की घटनाएं सभी को याद होंगी मगर लगता नहीं कि दूसरे स्कूलों ने इन घटनाओं से कोई भी सबक सीखा हो. गाजियाबाद के नेहरू नगर स्थित गाजियाबाद पब्लिक स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ने वाला छात्र शिवांग की चलते समय गिर जाने के कारण कोहनी की हड्डी टूट गई मगर
स्कूल प्रबंधन ने शिकायत करने के बावजूद उसे अस्पताल पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई. आधे घंटे बाद उस बच्चे के पिता के आने पर बच्चे को अस्पताल ले जाया गया जहां उसके कोहनी में फ्रैक्चर की बात सामने आई. क्या ऐसी घटनाएं हमें डराने के लिए काफी नहीं? आज व्यवसायिक हो गया शिक्षा तंत्र क्या इतना गिर चुका है कि हमें आज किसी के बच्चे की जान कि भी परवाह नहीं. वाकई समाज को बदलने की जरूरत है.
केंद्र सरकार ने माना कमी, सुधार की एक कोशिश
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बार एक कार्यक्रम '21वीं शताब्दी में शिक्षा का नया मॉडल' विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा था कि
सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी नहीं है. उन्होंने कई सर्वेक्षणों का जिक्र करते हुए कहा था कि विद्यार्थी अपनी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पाते हैं. उन्होंने साथ ही यह भी कहा था कि कक्षा छह के छात्र को कक्षा 4 की गणित भी नहीं आती है. ऐसे में केंद्र सरकार इसमें बदलाव लाने के लिए ठोस नीति पर कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि इसके लिए हर कक्षा का लर्निंग आउटकम फ्रेमवर्क बनवाया जा रहा है. इससे शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए शिक्षकों की जवाबदेही तय की जाएगी. उन्होंने साथ ही साथ यूपी की शिक्षा व्यवस्था पर भी बात करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार के लिए चुनौती भी है और चिंता का विषय भी. उन्होंने बड़ी गंभीरता से अभिभावकों का भी जिक्र करते हुए इस बात की ओर इशारा किया कि बच्चों के अभिवाहक परीक्षा के दौरान उन्हें नकल करवाने आते हैं इस से बच्चों की मदद नहीं बल्कि उनका भविष्य खराब होता है. उन्होंने अभिभावकों को नसीहत दी की परीक्षा हॉल में लिखे जवाब पहुंचाने की बजाय बच्चों को पढ़ाई में मदद करें.
सर्व शिक्षा अभियान को सफल बनाने के प्रयास में जुटी गाजियाबाद की डीएम
दोबारा शुरू हुए सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार ने सभी छात्रों को प्राथमिक शिक्षा देने का वादा किया था. इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए गाजियाबाद की
जिलाधिकारी मिनिस्ती एस ने खुद इस अभियान के निरीक्षण की जिम्मेदारी ली है. गाजियाबाद के सभी सरकारी विद्यालयों में शिक्षा से लेकर विद्यार्थियों की बुनियादी सुविधाओं तक का निरीक्षण खुद ही डीएम करेंगी. ऐसे 100 विद्यालयों की सूची मिनिस्ती एस ने खुद ही तैयार करवाई है. वह इन विद्यालयों में जाकर बच्चों से बातचीत करके शिक्षा के स्तर को परखेंगी. जिलाधिकारी के मुताबिक गरीब तबके के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई करने आते हैं, ऐसे में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था करवाना हमारी जिम्मेदारी है. निरीक्षण करने के दौरान अगर उन्हें खामियां या लापरवाही नजर आई तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
गाजियाबाद के बेसिक शिक्षा अधिकारी शिक्षकों की करेंगे निगरानी
राज्य सरकार के निर्देश के अनुसार
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी अब शिक्षकों पर खास नजर रखेंगे. सरकार ने सत्र 2017-2018 को शैक्षिक गुणवत्ता उन्नयन वर्ष के तौर पर मनाए जाने का आदेश दिया है. बेसिक शिक्षा विभाग के द्वारा जल्द ही वेब मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाएगा. इसके तहत राज्य स्तर मंडल स्तर जनपद और विकासखंड स्तर पर अधिकारियों के माध्यम से विद्यालयों का लगातार सघन निरीक्षण किया जाएगा निरीक्षण का विश्लेषण तथा उस पर प्रभावी कार्रवाई ऑनलाइन ही की जा सकेगी. प्राइमरी विद्यालयों के बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता अगर खराब पाई जाती है तो शिक्षकों पर कार्रवाई होगी, इतना ही नहीं विद्यार्थियों के बुरे व्यवहार का खामियाजा भी शिक्षकों को ही अब भुगतना पड़ेगा. शिक्षा स्तर में सुधार लाने के लिए कई प्रकार का सर्वे भी करवाया जाएगा.
बेसिक शिक्षा मंत्री स्वतंत्र प्रभार का वादा शिक्षा के स्तर में होगा सुधार
उत्तर प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद
बेसिक शिक्षा मंत्री स्वतंत्र प्रभार अनुपमा जायसवाल ने यह वादा किया की पिछली सरकार में जो भी चीजें मिली थी उन्हीं को वह दुरुस्त कर बच्चों की पढ़ाई में बेहतर परिणाम देने की कोशिश करेंगी. अनुपमा जी ने यह भरोसा दिया कि गाजियाबाद में जिन विद्यालयों में बैठने की व्यवस्था मौजूद नहीं है या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है उनके लिए वह जल्द से जल्द संसाधन मुहैया करवाएंगी. इसके साथ ही उन्होंने एक बड़ा बयान देते हुए फीस वृद्धि पर बोला कि आज जगह-जगह फीस में हो रही वृद्धि को लेकर अभिभावकों के द्वारा धरना प्रदर्शन हो रहे हैं जिसके लिए एक कमेटी बनाई है. इस पर जल्द ही उचित फैसला लेते हुए अभिभावकों और स्कूल दोनों का ही नुकसान ना हो उसे देखकर फैसला लिया जाएगा.
'ई-शिक्षा गाजियाबाद' ऐप से विद्यालयों में पारदर्शिता लाने की कोशिश
उत्तर प्रदेश सरकार ने कई वादों और कुछ सुधार के बाद शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए एक और ठोस कदम उठाया है. सरकार ने
'ई-शिक्षा गाजियाबाद' ऐप जारी किया है जिससे परिषदीय विद्यालयों के अध्यापकों को ड्यूटी पर समय से पहुंचकर अपनी सेल्फी अपलोड करनी पड़ेगी. अध्यापकों को अगर छुट्टी की आवश्यकता हो तो इसी ऐप के द्वारा छुट्टी प्रदान की जाएगी. इसके लिए स्मार्टफोन की आवश्यकता होगी अध्यापकों को इसके लिए आदेश जारी किया जा चुका है.
बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए सबका प्रयास जरूरी
देखना है इन प्रयासों का क्या परिणाम आएगा मगर इतना जरूर है कि यह सरकार के साथ-साथ सभ्य समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह इस दिशा में आगे बढ़े और हमारे शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मिलकर कदम बढ़ाए. तभी हम बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं. बेशक हमारे सामने शिक्षा के क्षेत्र में ढेर सारी चुनौतियां है मगर इससे निपटने की भी जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं हम सब की भी है. आज सभ्य समाज के साथ नेताओं को इसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता है. हमारे नेता और हमारे समाज के लोग मिलकर ही एक सतत शिक्षा प्रणाली का विकास कर सकते हैं. इस रिसर्च में हम गाजियाबाद में होने वाले शिक्षण तंत्र से जुड़े कार्यों का अवलोकन करेंगे. समस्याओं और उनके समाधान जो स्थानीय तौर पर लाए जा रहे हैं उन पर ध्यान देते हुए उनकी संभावनाओं की तलाश करेंगे. जिससे गाजियाबाद की शिक्षा व्यवस्था सुधरे. आज हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो स्वत: ही इस दिशा में आगे बढ़ काम करने के लिए सामने आए और समाज के लिए एक प्रेरणा का काम कर सके.