यमुना सिर्फ एक नदी ही नहीं है। इसके अंदर एक संस्कृति बसी है। यमुना की मौत एक युग की मौत होगी। ऐसे में यमुना नदी को बचाने के एक बड़े प्रयास की जरूरत है। इसमें आम आदमी खास तौर पर वह लोग जो सीधे सीधे यमुना से जुड़े है कि सक्रिय भागीदारी जरूरी है।
क्योंकि खत्म होती नदी का खतरा वे सबसे पहले महसूस कर रहे हैं। ऐसा नहीं है सरकार इस बारे में चिंतित नहीं है। सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। लेकिन कुछ कमी है । जापान बैंक की सहायत से यमुना एक्शन प्लान बनाया गया। करीब 12 हजार करोड़ रूपए इस अभियान पर खर्च हुए। नतीजा अपर्याप्त !
सरकारी स्तर पर अभी भी कुछ काम हो रहे हैं। लेकिन बोहोत कुछ कागजों पर ही हो रहा है। यमुना का धार्मिक महत्व है। लगभग हर भारतीय की इससे आस्था जुड़ी है। इलाहबाद के संगम त्रिवेणी की परिकल्पना इसके बिना अधूरी है। यमुनौत्री से लेकर इलाहाबाद तक जगह जगह लोग नदी में स्नान करते हैं। ब्रज भूमि तो यमुना का महत्व तो यमुना से ही है। कृष्ण जी से यमुना का सीधा रिश्ता रहा है। इसके साथ ही यमुना देश की राजधानी दिल्ली को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए एक बड़ा जल स्त्रोत है, वहीं हरियाणा का आधा हिस्सा यमुना पर निर्भर है। यूपी और राजस्थान को यमुना से पानी मिलता है। कल्पना किजिए, यमुना नहीं रहेगी तो क्या होगा?
यमुना को खतरे क्या हैं?
बड़ा
सवाल जब यमुना इतनी महत्वपूर्ण है तो फिर खतरा क्यों? यदि खतरा है तो सरकार क्या कर
रही है। जवाब, यह है कि यमुना महत्वपूर्ण है। लेकिन इसका यहीं महत्व नदी की मौत की
वजह बन रहा है। इस वक्त यमुना का सारा पानी हथनी कुंड बैराज जिला यमुनानगर हरियाणा
में रोक लिया जाता है। यमुनोत्री से मात्र 180
किलोमीटर दूर हथनी कुंड बैराज के आगे यमुना सूख जाती है। सूखी यमुना में एक
ओर जहां माइनिंग माफिया लगातार अपनी गतिविधियां चला रहा है। दूसरी ओर खाली नदी में
गांव व शहरों के सीवर का पानी छोड़ा जा रहा है। जिससे यमुना को गंदे नाले में तब्दील
किया जा रहा है। यमुनानगर, करनाल, पानीपत और सोनीपत तक यमुना नदी में दस हजार फैक्ट्रियों
का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। इन सभी शहरों के 387 जगह गंदे नाले यमुना नदी में गिर
रहे हैं। इस वजह से नदी का साफ पानी तो हथनी कुंड में रोक लिया। बाकी बची नदी में गंदा
पानी धकेल दिया गया। इससे नदी के क्षेत्र में जहां प्रदूषण हो रहा है, वहीं पर्यावरण
और हरियाणाली पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। नदी के गंद पानी की वजह से मछलियां मर चुकी
है। मछलियों पर पलने वाले पक्षी अब नदी किनाने नहीं आते। गंदे पानी की वजह से नदी की
जैव विविधता नष्अ हो रही है। जब मछली नहीं रही तो जो लोग नदी से मछली पकड़ अपना गुजारा
करते थे वह बेरोजगार हो गए। नदी के पानी से सिंचाई कर गुजरा करने वाले किसानों को सिंचाई
के लिए साफ पानी की जगह प्रदूषित पानी मिल रहा है। जिससे वे सब्जी और अनाज पैदा कर
रहे हैं। बहुत सारी रिपोर्ट में सामने आया कि गंदे पानी से पैदा हुई सब्जी सेहत के
लिए बहुत ही नुकसानदायक है।
सरकार
क्या कर रही है
सरकार
इस ओर बस लिपापोती कर रही है। उदाहरण के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक आदेश जारी
कर नदी में यमुनानगर जिले और सहारनपुर जिले में माइनिंग पर रोक लगाई। माइनिंग करने
वालों पर पांच लाख रूपए तक जुर्माना लगाया। इस अवधि में यमुनानगर जिले में 259 ट्रक
व ट्राली अवैध माइनिंग में पकड़ी गई। एक पर भी एनजीटी के निर्देशानुसार जुर्माना नहीं
लगाया गया। यमुना एक्शन प्लान के अंडर यमुना नदी के किनारे वाटर ट्रिटमेंट प्लांट लगे
है। सात में से तीन तो दो साल से बंद है। चार को ठेके पर दिया गया। लेकिन ठेकेदार प्लांट
चलाता ही नहीं। वह सीधे ही गंदा पानी नदी में डाल देता है। क्योंकि विभाग इस ओर ध्यान
ही नहीं देता। हरियाणा में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बने हैं। लेकिन इस साल अभी तक एक
भी व्यक्ति पर जुर्माना नहीं लगाया गया। यमुना नदी को प्रदूषित करने पर पांच हजार रूपए
जुर्माने का प्रावधान एनजीटी ने किया। इस साल अभी तक एक भी व्यक्ति पर यह जुर्माना
नहीं लगा। सरकार ने स्वच्छ गंगा अभियान चलाया। इसके लिए अलग मंत्रालय बना उमाभारती जी को इसका मंत्री बनाया।
जब तक यमुना साफ व स्वच्छ नहीं होगी तब तक स्वच्छ गंगा की कल्पना बेमानी है। इसइके
बाद भी यमुना नदी की ओर सरकार का ध्यान नहीं है।
तो
क्या करना होगा
यमुना को बचाने के लिए एक बड़ा अभियान चलाना होगा। इसमें स्थानीय लोगों को जोड़ा जाए। ऐसा नहीं है यह लोग काम नहीं कर रहे हैं। बस इन्हें एकजुट कर एक मंच पर लाना ही होगा। जैसे यमुना के लिए काम कर रहे मथुरा वासियों ने आंदोलन चलाया और इसके बाद यमुना नदी में पहले जहां 160 क्यूसिक पानी छोड़ा जाता था, अब वहां 350 क्सूसिक पानी छोड़ा जा रहा है। यह बहुत बड़ी कामयाबी है। पानी अब करनाल तक पहुंच गया है। थोड़ा ही सही यमुना को इसका हिस्सा तो मिला। यह सार्थक प्रयास है। जिसका परिणाम भी सामने आया। इसी तरह से यमुना नदी पर यमुनानगर, करनाल, पानीपत व सोनीपत में भी प्रयास हो रहे हैं। यह सब लोग अपने अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। इस वजह से कोई बड़ा रिजेल्ट सामने नहीं आ रहा है। यमुना के लिए काम करने वाले सभी एक ग्रुप मंच पर लेकर आना है। इसके साथ ही आरटीआई एक्टिविस्ट, एडवोकेट को साथ जोड़ना होगा। आरटीआई एक्टिविस्ट जहां सूचना लेकर सरकार की कार्यप्रणाली को जनता के सामने लेकर आएंगे वहीं एडवोकट कोर्ट और एनजीटी में नदी को लेकर केस फाइल करेंगे। जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
कैसे
करेंगे
पहला
चरण
इसके
लिए पहले तो यमुना की डिटेल स्टडी करनी होगी। जिसमें यमुना की अभी स्थिति क्या है?
मसलन यमुना में पानी का लेवल कितना कम हो गया। उत्तराखंड में यमुनोत्री के ग्लेशियर
की स्थिति क्या है? इसकी फोटोग्राफ, जो कि आम आदमी को आने वाले खतरे के बारे में आगह
करेंगे। इसकी एक डेक्यूमेंट्री भी बनाई जा सकती है। दूसरा यह पता लगाया जाएगा कि नदी
में प्रदूषण कहां कहां हो रहा है। क्यों हो रहा है। कैसे हो रहा है। क्या इसे रोका
जा सकता है। इसके लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए यदि सीवरेज का पानी
डाला जा रहा है तो इस सीवर को नदी में डालने की बजाय कहां डाला जाए। जिससे शहर को भी
दिक्कत न आए। हम समस्या के हल निकालने की कोशिश करेंगे न कि सिर्फ विरोध ही करेंगे।
इसी तरह से उद्योग के गंदे पानी के लिए क्या विकल्प हो सकते है। इस पर भी विचार करेंगे।
दूसरा
चरण
इस
डिटेल स्टडी को लेकर नदी के लिए काम कर रहे ग्रुप से बातचीत करना। जो लोग सीधे तौर
पर यमुना नदी से जुड़े हैं, उनके साथ बैठक कर उन्हें अभियान के साथ् स्थानीय मीडिया में इन मुद्दों को उठाना। जिससे
लोगों में जागरूकता आए। लोगों को मोटिवेट कर एक प्रेशर ग्रुप बनाया जाएगा। इस ग्रुप
की गतिविधियों को मीडिया में उठाया जाएगा। अधिकारियों के साथ यमुना को लेकर पत्राचार
किया जाएगा। हमारी कोशिश रहेगी कि प्रदूषण नियत्रण बोर्ड और यमुना को लेकर होने वाली
बैठक में हमारे द्वारा बनाए गए प्रेशर ग्रुप के सदस्य भी भाग लें। सदस्यों को एजुकेट
किया जाएगा कि उन्हें कैसे नदी के मुद्दों को उठाना है।
चर्चा ज़ारी रहेगी
धन्यवाद, मनोज ठाकुर
Image Credits - Francisco Anzola