जीवनदायनी हिंडन नदी आज मरने के कगार पर
हिंडन नदी, यमुना नदी की एक सहायक नदी है. कभी जीवनदायनी रही यह नदी कई सभ्यताओं को बहते समय स्थिरता प्रदान करती रही हैं. मगर आज यह नदी खुद मरने के कगार पर है और लोगों के लिए भी घातक साबित हो रही है. सामाजिक व्यवहार के कारण मौत की कागार पर पहुंची इस नदी का पानी जहरीले स्तर से भी अत्यधिक स्तर पर पहुंच गया है. इसमें प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि वह ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित कर रहा है. खतरनाक केमिकल्स के कारण हिंडन विषैली हो गई हैं. उससे होने वाली खेती आम लोगों के लिए मौत की दस्तक के समान है. हमने जीवनदाता नदियों का ही जीवन छीन लिया है. आज जरूरत है कि देश में जल नीति बनाई जाए. सरकार ने नमामि गंगे के तहत गंगा को साफ करने की इच्छा शक्ति तो दिखाई है मगर क्या यह कदम पूर्ण है? वास्तव में हमारी कल कल नदियां जन जन के लिए जीवन का स्वरुप है और यह बात हमें समझ आ जाये तो इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता.
हरनेन्द्री, हरनंदी से हिंडन तक
हम आज जिस हिंडन की बात कर रहे हैं तो उसे कभी हरनेन्द्री कहा गया, तो कभी इसे हरनंदी के नाम से पहचाना गया. हरनंदी का अर्थ हुआ शिव का नन्दी. इसीलिए यह बेहद पूजनीय नदी रही है. लेकिन इसी बीच काल ने करवट बदली, भारत में नई शिक्षा पद्धति का विकास हुआ, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ा. भारत, इंडिया बन गया और हरनंदी हो गई हिंडन. पहले नदी का नाम बदला और कालांतर में इसका स्वरुप भी.
हिंडन का उद्गम शिवालिक पर्वत श्रृंखला
हिंडन उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके से निकलने वाली सबसे प्रमुख नदी है। इसका उद्गम गंगा-यमुना के दोआब जिला सहारनपुर के उत्तर-पूर्वी इलाके के कालुवाला खोल अर्थात् कलुवाला के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला से शुरू होता है और यहीं से हिंडन उत्तर से दक्षिण तक विस्तार पाती है.

कालूवाला नदी जोकि हिंडन नदी है, यह मॉनसून-फेड यानी बरसाती नदी है. इसमें कई छोटी धाराएं प्रवाह होती हैं. एक धारा सहारनपुर जिले में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमाओं को बांटते हुए, शिवालिक पर्वत श्रृंखला में कलुवाला और कोठरी मिलान के निकट दक्षिणी हिस्से में है, जिसे बरसनी नदी के नाम से जाना जाता है। बरसनी में कुछ अन्य छोटी धाराओं के स्रोत, छज्जेवाली, पीरवाली, सपोलिया, कोठरी व अंधाकुन्डी एक निश्चित दूरी पर आकर मिलते रहते हैं. इसके अलावा यहां शिवालिक आरक्षित वन क्षेत्र है जिसमें मोहण्ड, शाहजहांपुर व शाकुम्भरी के वन सीमाएं भी शामिल हैं।
शिवालिक पर्वत की चोटी से उत्तर प्रदेश की ओर ढ़लान से लेकर फ़ॉरेस्ट रिजर्व यानी आरक्षित वन क्षेत्र समाप्त होने तक की दूरी करीब 15 किलोमीटर है। इस 15 किलोमीटर की दूरी में हिंडन नदी के दोनों ओर पहाड़ व घना जंगल है। इन पहाड़ों पर होने वाली वर्षा का पानी भी हिंडन की मुख्य धारा में समाहित हो जाता है। इसके साथ वृक्षों की जड़ों से रिसने वाला पानी भी मुख्य धारा में मिलते रहता है। बरसात के समय इनमें भरपूर पानी आ जाता है, जोकि नीचे तक बहते हुए जाता है। इन सभी धाराओं के मिलने से जो नदी बनती है वही हिंडन है, जोकि पुर का टांडा गांव से बहने वाली धारा को अपने आप में कमालपुर गांव के निकट मिला लेती है।
कमालपुर गांव जहां चाचा राव की धारा और पुर का टांडा आपस में मिलती हैं
कहते हैं जब छोटी धारा और बड़ी धारा आपस में मिलती हैं तो छोटी धारा स्वतः ही अपना अस्तित्व खो देती है और उसे भी बड़ी धारा के नाम से जाना जाता है. हम अगर गंगा नदी के संबंध में देखें तो भगीरथी व अलकनंदा मिलकर ही गंगा बनाती हैं, इसी प्रकार कालूवाला धारा व पुर का टांडा से निकलने वाली धारा ही हिंडन बनाती है। कमालपुर गांव जहां पुर का टांडा की धारा आती है और उसे ही अब तक हिंडन का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता रहा है. सर्वे ऑफ इंडिया के मैप में भी इसी बात की पुष्टि की गई है. जबकि वहीं दूसरी तरफ से चाचा राव जोकि बरसनी की धारा के बाद कालूवाला धारा और उसके बाद चाचा राव की धारा में तब्दील हो जाती है वह कमालपुर गांव में पुर का टांडा में मिलती. चाचा राव की धारा, पुर का टांडा की धारा से बड़ी धारा है और जहां छोटी धारा, बड़ी धारा आपस में आकर मिलती है वह अपना अस्तित्व खो देती है और ऐसे में बरसनी से निकलकर आगे चलकर कालूवाला और बाद में चाचा राव के रूप में तब्दील हो जाने वाली इसी धारा को हम हिंडन का मुख्य उद्गम स्थल के रूप में मान सकते हैं.
विषैली हो चुकी है 355 किलोमीटर की हिंडन
हिंडन नदी गौतमबुद्धनगर जिले के तिलवाड़ा गांव से लगभग 500 मीटर की दूरी पर मोमनाथल गांव के जंगलों में यमुना नदी में मिलने से पहले यह 355 किलोमीटर की यात्रा से पूरी करती है अर्थात हिंडन 355 किलोमीटर लंबी नदी है. सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत और गाजियाबाद जिलों से गुजरता है। हिंडन और इसकी सहायक नदी पर करीब 865 गांव हैं। मगर विडंबना देखिए कि इन गांवों में जहां हिंडन या उसकी सहायक नदियां हैं वहां इसके विषैले पानी से खेती की जाती है और साथ ही साथ पीने के लिए भी इसी अनुपचारित भूजल पानी का इस्तेमाल किया जाता है जो कि कई बीमारियों के रूप में लोगों के लिए अभिशाप बन रहा है.
हिंडन को उसकी सहायक धाराओं से बड़ा बल मिलता है. काली पश्चिम, कृष्णी, धमोला, पांवधोई, नागदेव, चाचाराव, सपोलिया, अंधाकुन्डी व स्रोती जैसी अन्य छोटी धाराएं मिलकर हिंडन को नदी बनाती है.
हिंडन की सहायक नदी नागदेव
शिवालिक पहाड़ियों से ही हिंडन के साथ-साथ हिंडन की पश्चिम दिशा से यानी कोठरी गांव से एक अन्य धारा नागदेव का उद्गम होता है जोकि हिंडन की सहायक नदी है. यह नागदेव नदी करीब 45 किलोमीटर की दूरी तय करने के पश्चात् सहारनपुर में ही घोघ्रेकी गांव के जंगल में आकर हिंडन नदी में मिल जाती है।
हिंडन की सहायक नदी काली पश्चिम
हिंडन की बड़ी सहायक नदियों में एक बड़ा नाम काली पश्चिम नदी का है. यह हिंडन नदी की पूर्वी दिशा से सहारनपुर के ही गंगाली गांव से प्रारम्भ होती है. जहां कहावत मशहूर है काली की जड़ गंगाली. काली पश्चिम गंगाली से होते हुए मुजफ्फरनगर से होकर करीब 145 किलोमीटर की दूरी तय करके मेरठ जनपद के गांव पिठलोकर के जंगल में जाकर हिंडन नदी में मिल जाती है। काली पश्चिम में चुड़ियाला से शुरू होने वाली शीला नदी देवबंद के समीप मतोली गांव के निकट आकर काली नदी पश्चिम में पहले ही समाहित हो जाती है। काली पश्चिम नदी देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है. आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि इसमें मुजफ्फरनगर जनपद के छोटे-बड़े करीब 80 उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा और साथ ही मुजफरनगर शहर का गैर-शोधित घरेलू तरल कचरा भी सीधे तौर पर इसमें डाल दिया जाता है।
हिंडन की सहायक नदी धमोला
हिंडन की ही एक और सहायक नदी धमोला भी सहारनपुर जनपद में ही हिंडन की पश्चिमी दिशा संसारपुर गांव से आरंभ होकर करीब 25 किलोमीटर का सफर तय करके सहारनपुर जनपद के ही ऐतिहासिक गांव शरकथाल के जंगल में जाकर हिंडन में मिल जाती है। धमोला में उसकी एक सहायक नदी पांवधोई सहारनपुर के शकलापुरी गांव के समीप से बहती है, यहां ऐतिहासिक महादेव मन्दिर भी स्थित है। इसके ऊपरी भाग में महरबानी गांव के करीब से आने वाले दो बरसाती नाले गुना कट व खुर्द भी पांवधोई में आकर मिल जाते हैं। शकलापुरी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी तय करके सहारनपुर शहर के अंदर जाकर पांवधोई धमोला नदी में मिल जाती है। पांवधोई के उद्गम स्थान पर तो साफ पानी है क्योंकि यह नदी चैये के पानी से बहती है, लेकिन इसका साफ पानी धमोला तक आते-आते सहारनपुर शहर का गैर-शोधित तरल और ठोस कचरा खुद में मिला चुका होता है। धमोला नदी सहारनपुर शहर का तमाम सीवर का पानी तथा पांवधोई द्वारा उसमें डाली गई गंदगी को ढ़ोकर आगे बढ़ती है और प्रदूषित हो चुके पानी को हिंडन नदी में उड़ेल देती है।
हिंडन की सहायक नदी कृष्णी
हिंडन नदी की एक और सहायक नदी है कृष्णी. हिंडन की पूर्वी दिशा, सहारनपुर जिले के दरारी गांव से निकलने वाली कृष्णी नदी शामली व बागपत जनपदों से होते हुए करीब 153 किलोमीटर की दूरी नापकर बागपत जनपद के ही बरनावा कस्बे के जंगल में जाकर हिंडन में समाहित हो जाती है। कृष्णी भी मानव व्यवहार के अभिशाप से ग्रसित है और भयंकर प्रदूषण का दंश झेलती है। कृष्णी नदी में ननौता, सिक्का, थानाभवन, चरथावल, शामली व बागपत का गैर-शोधित औद्योगिक तरल कचरा तथा गैर-शौधित घरेलू तरल कचरा मिलता है और अंत में वह जाकर भी हिंडन में मिल जाता है।
परागपुर गांव से प्रारंभ होता है हिंडन का प्रदूषण
हिंडन में आकर मिलने वाली उसकी सहायक नदियां या सहायक छोटी धाराएं उसको नदी का स्वरूप तो देती हैं मगर साथ ही साथ उसे प्रदूषित भी कर देती हैं। हिंडन में प्रदूषण का बड़े स्तर पर प्रारम्भ सीधे तौर पर सहारनपुर जिले के ही परागपुर गांव के जंगल में स्टार पेपर मिल के गैर-शोधित तरल कचरा लेकर आने वाले नाले के मिलने से हो जाता है। यहीं से हिंडन में गंदगी का प्रवेश होना आरंभ होता है। इससे पहले नागदेव नदी के जरिये कुछ छोटे उद्योग अपना गैर-शोधित तरल कचरा नौगजा पीर के पास डालते हैं, लेकिन वह तरल कचरा हिंडन में बहुत कम मात्रा में आ पाता है। हिंडन जिस सहारनपुर की पहाड़ियों से साफ पानी लेकर चलता है वही सहारनपुर उसके पानी को अपनी सीमा से बाहर निकलने से पहले ही जहरीले और प्रदूषित तत्वों व बदबू से भर देता है।
मुजफ्फरनगर व शामली में हिंडन का सफरनामा
सहारनपुर जिले से आगे बढ़ने पर यह नदी मुजफ्फरनगर व शामली जिले में प्रवेश करती है। हिंडन नदी को सीमा रेखा मानकर ही मुजफ्फरनगर व शामली की सीमाएं तय की गई हैं। हिंडन के पूर्व में मुजफ्फरनगर और पश्चिम में शामली जनपद है। इन दोनों जनपदों का कृषि बहिस्राव व बुढ़ाना कस्बे का तरल व ठोस कचरा हिंडन में सीधा आकर मिल जाता है. हिंडन लेकिन मेरठ की सीमा में जैसे ही प्रवेश करती है तो मेरठ जिले में मेरठ-मुजफ्फरनगर सीमा पर बसे गांव पिठलोकर के जंगल में हिंडन नदी के पूर्व से बहकर आने वाली काली पश्चिम नदी में मिल जाती है।
मेरठ व बागपत में हिंडन का प्रवेश
मुजफ्फरनगर-शामली की सीमा से आगे बढ़ने पर हिंडन मेरठ व बागपत जिलों में प्रवेश करती है। इन दोनों जिलों की भी सीमा रेखा का बंटवारा हिंडन नदी को मानकर ही किया गया है। हिंडन के पूर्व में मेरठ जिला है जबकि पश्चिम में बागपत जिला। हिंडन यहां से करीब दस किलोमीटर आगे बढ़ती है तो हिंडन के पश्चिम से बहकर आने वाली कृष्णी नदी बरनावा गांव के निकट इसमें मिल जाती है। बरनावा से पहले हिंडन नदी के पूर्व में स्थित मेरठ जिले के सरधना कस्बे से आने वाला एक गंदा नाला भी मेरठ जिले के ही कलीना गांव के जंगल में हिंडन में मिल चुका होता है।
गाजियाबाद जिले में हिंडन के सामने चुनौतियां अधिक
मेरठ से आगे बढ़ते हुए हिंडन कुछ अन्य उद्योगों, कस्बों व गांवों का गैर-शोधित तरल व ठोस कचरा अपने आप में समा करके गाजियाबाद की सीमा में प्रवेश करती है। गाजियाबाद जिले में हिंडन के सामने चुनौतियां अधिक बढ़ जाती हैं. यहां शहर का सीवेज व ठोस कचरा तथा उद्योगों का तरल कचरा नदी को और भी ज्यादा मैला कर देती है. वहीं नदी के बेसिन पर शहरी विकास के नाम पर किया गया अतिक्रमण हिंडन की देह को कराहने के लिए मजबूर कर देता है और गंभीर समस्या पैदा करता है।
हिंडन का पानी गाजियाबाद के मोहननगर में एक बैराज बनाकर रोक दिया गया है. यहां से हिंडन के कुल पानी का करीब 30 फीसदी पानी ही आगे भेजा जाता है। बाकी पानी हिंडन के पश्चिम से एक नहर के द्वारा यमुना नदी में कालिंदी कुंज बैराज भेज दिया जाता है। मोहननगर से निकलने वाली यह नहर कालिंदी कुंज में यमुना नदी में पूर्व की दिशा से जाकर मिलती है, जितना पानी हिंडन नहर के माध्यम से यमुना नदी में डाला जाता है, उतना ही पानी कालिंदी कुंज में ही यमुना नदी की पश्चिमी दिशा से निकलने वाली आगरा नहर में भेज दिया जाता है।
गौतमबुद्धनगर, हिंडन की अंतिम यात्रा
मोहननगर बैराज पर भी हिंडन में गाजियाबाद के सीवर व उद्योगों के नाले इसमें मिलते रहते हैं। बैराज से आगे बढ़ते हुए हिंडन गौतमबुद्धनगर में जब प्रवेश करती है तो वहां गाजियाबाद से भी अधिक और भयावाह दंश हिंडन को झेलने को विवश है. यहां पर उद्योगों का तरल कचरा, सीवरेज व अतिक्रमण जैसी गंभीर समस्याएं हिंडन की ताबूत में अंतिम कील लगाने का कार्य करती है. कराहते हुए जैसे-तैसे हिंडन जब यमुना नदी के निकट तक पहुंचती हैतो उससे दो किलोमीटर पहले अपर गंगा नहर से करीब 400 क्यूसेक पानी हिंडन की पूर्वी दिशा की ओर से हिंडन नदी में डाला जाता है, लेकिन दुर्भाग्य हिंडन नदी पर जहरीली गंदगी का इतना बड़ा बोझा होता है कि उससे इसपर कोई फर्क ही नहीं पड़ता है।
जीवित नदी का दुखद अंत
अपनी अंतिम यात्रा में अपने दायित्व का हमेशा ख्याल रखने वाली हिंडन कलपती हुई अंत में मोमनाथल गांव के पूर्व तथा तिलवाड़ा गांव के पश्चिम के जंगल में सहारनपुर की शिवालिक से चलने वाली एक जीवित और खिलखिलाती नदी अपनी मौन साधना के साथ यमुना नदी में समाहित हो जाती है। एक जीवित नदी के इस दुखद अंत की साक्षी यमुना भी चुपचाप हिंडन को खुद में समाहित कर लेती है.
323 उद्योगों का कचरा सहती है हिंडन
कुल मिलाकर लगभग 316 उद्योग हैं जो हिंडन के किनारे या इसके और सभी सात जिलों में स्थित हैं। इनमें से सात उद्योग शीला नदी के बैंक के पास स्थित हैं जो हरिद्वार जिले में बहती है और काली पश्चिम नदी में जिसका विलय हो जाता है. इसलिए, कुल 323 उद्योग हिंडन को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं और इसमें गैर-शोधित/ शोधित कचरा डाल दिया जाता है.
1215.43 एमएलडी सीवेज सहने को मजबूर हिंडन
उत्तर प्रदेश जल विभाग के अनुसार, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुढ़ाना, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा शहर से 1215.43 एमएलडी सीवेज का उत्पादन किया जाता है जो 68 नालों के माध्यम से ले जाया जाता है। इनमें से 450 एमएलडी शहरों की विभिन्न प्रणालियों में फ़िल्टर्ड किया जा रहा है, लेकिन सीवेज उपचार प्रणाली की अनुपलब्धता के कारण बाकी 765.43 एमएलडी को अनफ़िल्टर्ड ही हिंडन और इसकी सहायक नदियों में छोड़ दिया जाता है.
हिंडन व उसकी सहायक नदियों का विवरण
हिंडन नदी, उदगम स्थल - शिवालिक की पहाड़ियां, (कालूवाला पास) जनपद -सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- गांव- तिलवाड़ा/मोमनाथल गांव, जनपद-गौतमबुद्धनगर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 355
कृष्णी नदी, उदगम स्थल - दरारी गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- गांव -बरनावा, जनपद-बागपत (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 153
काली नदी (पश्चिम), उदगम स्थल - गंगाली गांव, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- गांव-अटाली/पिठलोकर गांव जनपद-मेरठ (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 145
शीला नदी, उदगम स्थल - कस्बा-भगवानपुर, जनपद-हरिद्धार (उत्तराखण्ड), विलीन स्थल- गांव-मतौली, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-61
धमोला नदी, उदगम स्थल - संसारपुर गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- शरकथाल/सढ़ौली हरिया गांव, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-52
पांवधोई नदी, उदगम स्थल - गांव-शंकलापुरी, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- सहारनपुर शहर, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 7
नागदेव नदी, उदगम स्थल - कोठारी गांव, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- घोंघ्रेकी गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 45
चाचा रौ, उदगम स्थल - गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल- कमालपुर गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-18
सुरक्षित जल का हक मानव अधिकार
सुरक्षित जल का अधिकार एक बुनियादी मानव अधिकार है, जिसके आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है - 'पानी का मानव अधिकार सभी को हक देता है व्यक्तिगत और घरेलू उपयोगों के लिए पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, शारीरिक रूप से सुलभ और सस्ते पानी के लिए.'
मगर हमने जिस तरह से नदियों का दोहन किया है, उसके चरित्र को बदलने की कोशिश की है उसने नदी तंत्र को ही समाप्त करने के कागार पर खड़ा कर दिया है. शिवालिक से निकलने वाला हिंडन और यमुना में समाहित होने से पहले हिंडन के पानी में इतना बड़ा फर्क आ जाता है कि अपने उद्गम स्थान से निकलने वाला हिंडन नदी है तो वहीं शहरों में प्रवेश करने वाला हिंडन नाला. मानव विकास के इस चलन में हमने खुद को आज कहां पहुंचा दिया है इसका आंकलन किसी और की जगह हम खुद करें तो शायद बेहतर हो. खैर यह थी हिंडन की व्यथा आगे हिंडन को लेकर किये जा रहे किसी भी नवीनतम कार्य की जानकारी हम आपतक पहुँचाने की कोशिश करेंगे.