राजेन्द्र सिंह भारत में एक जाना पहचाना नाम, जो प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. वह प्राकृतिक संसाधन खासकर जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए जाने जाते हैं. इनका जन्म 6 अगस्त 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गाँव में हुआ था मगर इनकी कर्मभूमि राजस्थान है. वैसे तो राजेन्द्र सिंह देश भर में कार्य करते हैं मगर राजस्थान के लिए इन्होंने विशेष कार्य किये हैं शायद इसीलिए इन्हें ‘वाटर मैन ऑफ राजस्थान यानि 'राजस्थान के जल व्यक्ति' के रूप में भी जाना जाता है.
राजेंद्र सिंह की जिंदगी में बदलाव तब आया जब उनकी मुलाकात गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े रमेश शर्मा से हुई. रमेश शर्मा के सुधार कार्यों को देख वह बेहद प्रभावित हुए. इस समय वह हाई स्कूल में ही थे मगर रमेश शर्मा के साथ मिलकर राजेन्द्र जी ने कई सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यों में अपनी भागीदारी निभाई. इस मुलाकात ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी. अपनी शिक्षा पूरी करते ही उन्हें सन् 1980 में सरकारी नौकरी मिल गई. जिस कारण उन्हें नेशनल सर्विस वालिंटियर फॉर एजुकेशन बन कर जयपुर जाना पड़ा. वहां इन्हें राजस्थान के दौसा जिले में प्रौढ़ शिक्षा का प्रोजेक्ट दिया गया. मगर यह नौकरी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई, उन्हें यह काम रास नहीं आया और महज डेढ़ वर्ष नौकरी करने के बाद उन्होंने उसे छोड़ दिया. वह राजस्थान की स्थिति से धीरे-धीरे परेशान हो रहे थे. पानी का संकट उन्हें एक चुनौती पेश कर रहा था. नौकरी छोड़ने के बाद कुल तेईस हजार की जमा पूंजी लिए वह मैदान में उतर आए. उन्होंने ठान लिया था कि राजस्थान में पानी के इस विकट संकट के निपटारे के लिए वह प्रयास करेंगे. इसके लिए उन्होंने 1980 के दशक में इस पर काम करना शुरू किया.
राजेंद्र सिंह ने अपने अन्य चार साथियों के साथ मिलकर तरुण भारत संघ नाम के गैर सरकारी संगठन को स्थापित किया. इनके यह चार साथी थे नरेंद्र, सतेन्द्र, केदार तथा हनुमान जिन्होंने उस दौर में इस संस्थान को जीवित किया जो की मृत पड़ी हुई थी. दरअसल एनजीओ जयपुर यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई थी लेकिन सक्रिय नहीं थी. जिसको इन पांचों ने मिलकर संवारा और अपना लिया.
राजस्थान उस समय पानी की समस्या से जूझ रहा था. जल संकट एक विकट परिस्थिति पैदा कर रही थी. और इसी जल संकट कि समस्या को लेकर राजेंद्र सिंह ने काम करना शुरू किया. उन्होंने भूजल स्तर बढ़ाने के लिए और बारिश के पानी को धरती के तह तक लाने के लिए प्राचीन भारतीय प्रणाली को ही आधुनिक तरीके से अपनाया. इसके लिए उन्होंने स्थानीय लोगों यानी गांव वालों की ही मदद ली और जगह-जगह छोटे-छोटे पोखर तालाब बनाने शुरू किए. इसका नतीजा यह हुआ की छोटे-छोटे पोखर और तालाबों में बारिश के दौरान पानी पूरी तरह से भर जाता था. जिसके कारण धीरे-धीरे धरती उसे सोख लेती थी जिससे जमीन का भूजल स्तर भी बढ़ता चला गया. राजेंद्र सिंह को इसके लिए काफी कुछ सहना पड़ा शुरूआत में बहुत से लोगों ने उनका मजाक बनाया. लोगों ने यह कहकर उनकी हंसी उड़ाई की इन छोटे-छोटे पोखर से कितने लोगों की प्यास बुझ पाएगी? कितने खेतों कि सिचाई हो पाएगी? मगर राजेंद्र सिंह को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा. धीरे-धीरे उनका यह प्रयास बढ़ता चला गया जल संचय के लिए ज्यादा लोग उनसे जुड़ने लगे. इसका नतीजा यह हुआ गांवों में जोहड़ बनने लगे और बंजर पड़ी धरती फिर से हरी भरी दिखने लगी.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा राजेंद्र सिंह के इस प्रयास के कारण जल संचय के जरिए साढ़े छह हजार से ज्यादा जोहड़ों का निर्माण हो चुका है और राजस्थान कि करीब एक हजार गांव में फिर से पानी उपलब्ध हो चुका है. यह किसी चमत्कार और बहुत बड़ी उपलब्धि से कम नहीं और यह सब कुछ बस ऐसे ही नहीं हो गया इसके पीछे राजेंद्र सिंह के साथ काफी लोगों का प्रयास और संघर्ष जुड़ा हुआ है. यही नहीं राजेंद्र सिंह ने अपने इस प्रयास से राजस्थान के अलवर शहर की पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी. गर्मियों में यहां पानी की इतनी किल्लत होती थी की लोग बूंद बूंद पानी को तरसते थे वहां आज पानी की कोई समस्या नहीं है.
इतना ही नहीं वह सरकार की गलत नीतियों पर भी आक्रमक रहे हैं. उनका मानना है कि हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गए मगर नए प्रकार की गुलामी में बंधते जा रहे हैं. जीवन का आधार जल, जंगल, जमीन, अन्न, खुदरा व्यापार और नदियों पर कंपनियों का अधिकार हो रहा है. हमारा पानी अब हमारा नहीं रहा उसे दूसरे नियंत्रित कर रहे हैं. आज पानी बोतल बंद हो चुका है जो दूध से भी महंगा बिक रहा है.
यह
कितना दुखद है की सरकार ने 2002 में जलनीति बनाकर पानी का मालिकाना हक कंपनियों को
प्रदान कर दिया है. जो पानी पर सबके हक को समाप्त कर किसी एक व्यक्ति या किसी
कंपनी को इसका मालिक बनाती है. राजेंद्र सिंह का मानना है कि यह जलनीति ईस्ट
इंडिया कंपनी की गुलामी से अधिक भयावाह है जो गुलामी के रास्ते खोलती है. उस समय
उन्होंने हमारी जमीन पर नियंत्रण कर के अपनी हुकूमत चलाई थी आज बहुराष्ट्रीय
कंपनियां पानी पर अपना कब्जा जमाने में लगी है और सरकारें पानी का मालिकाना हक इन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देकर इस नई प्रकार की गुलामी को और भी पुख्ता करने में
लगी हैं. इसीलिए आज पानी पर समाज का हक होना बेहद ही जरुरी हो गया है और इसलिए
हमें सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है और जगने की भी.
तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह की अगुवाई में इस संस्था में काफी बेहतरीन कार्य किया है. देशभर में अब तक हजार से भी ज्यादा जोहड़-तालाब संस्था के द्वारा या उनके प्रयासों की मदद से बनवाए गए हैं. राजेंद्र सिंह जल संरक्षण को लेकर समाज में एक अलख जगाई है. लोगों को जल साक्षर बनाने का अद्भुत प्रयास किया है. लोगों में जल की समझ पैदा कर उन्हें जल बचाने के लिए प्रेरित किया है. यह उनका ही बेहतरीन प्रयास है कि आज कई नदियों को उन्होंने पुनर्जीवित किया है. राजेंद्र सिंह का दूसरा नाम 'जलपुरुष' भी है जो उनके कर्मों को पूरी सार्थकता प्रदान करता है. यह उनके कार्यों का ही प्रयास है कि उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
वर्ष
1998 में राजेंद्र सिंह को उनके प्रयासों के लिए द वीक पत्रिका ने मैन ऑफ द ईयर के
रूप में नामित किया था.
वर्ष
2005 में ग्राम विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में योगदान
देने के लिए जलपुरुष को भारत के सबसे
प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया.
राजेंद्र
सिंह को सामुदायिक नेतृत्व के लिए सन 2011 में एशिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार
रैमन मैग्सेसे से नवाजा गया. इसे एशिया में नोबेल पुरस्कार के रूप में देखा जाता
है.
वर्ष
2015 में राजेंद्र सिंह को पानी का नोबेल माने जाने वाले पुरस्कार स्टॉकहोम वाटर
प्राइज से सम्मानित किया गया.
राजेंद्र सिंह को वर्ष 2016 में ब्रिटेन से अहिंसा पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है.
इस जलपुरुष ने जल संरक्षण का बहुत बड़ा उतरदायित्व अपने कंधे पर उठा रखा है. लोगों को जल साक्षर बनाने का जो लक्ष्य तय किया है उसके पूर्ण होने की कामना के साथ उनके प्रयास की लिए उन्हें शुभकामनाएं.
-स्वर्णताभ