Designation : Retired Professor , BHU and Environmentalist
प्रोफेसर
उदय कांत चौधरी यानी यू.के.चौधरी नदी व
पर्यावरण, स्वच्छता एवम् संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हैं. प्रोफेसर साहब लम्बे अरसे तक शिक्षण जगत से जुड़े रहे हैं. वह 2011 तक
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर पद पर रहे. उन्होंने 1970-72 में मुंबई से एम.टेक किया, जिसके बाद उन्होंने पीएचडी करने का निश्चय किया तथा 1974 में उन्होंने रिवर इंजीनियरिंग में पीएचडी की. हालांकि शुरुआत में सिविल की तरफ भी उनका झुकाव था किन्तु बाद में उन्हें शिक्षण क्षेत्र में ही जाने का फैसला लिया.
इस क्षेत्र में रहते हुए उन्होंने 35 वर्ष तक एम.टेक के छात्रों को रिवर इंजीनियरिंग की शिक्षा दी है. अतः रिवर इंजीनियरिंग का उन्हें काफी अच्छा ज्ञान और अनुभव है. अपने इसी ज्ञान और अनुभव के माध्यम से उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं. जिसमें THE LIVING SIMILARITY BETWEEN THE
GANGA AND THE HUMAN BODY (
गंगा और मानव में जीवंत समानता प्रमुख है. इसके अलावा उन्होंने FIVE THEORIES OF RIVER MANAGEMENT नामक 37 पेज की एक किताब भी लिखी है, जिसमें उन्होंने तकनीकी बिन्दुओं के आधार पर नदी का लिविंग सिस्टम के रूप में विश्लेषण किया है.
इतना ही नहीं उन्होंने पुल ऑफिसर के पद पर भी कार्य किया है तथा कई समितियों में भी जुड़े रहे हैं. जिसमें
गोमती रिवर फ्रंट तथा टिहरी डैम समिति शामिल है, उन्हें
गोमती रिवर फ्रंट समिति में तकनीकी विशेषज्ञ भी नियुक्त किया गया था.
प्रोफेसर यू.के.चौधरी का मुख्य लक्ष्य टेक्निकल मैनेजमेंट के माध्यम से गंगा नदी को बचाना है. उनका मानना है कि जिस तरह से मनुष्य के शरीर का एक सिस्टम और संरचना होती है, उसी प्रकार से नदी का भी एक सिस्टम और संरचना होती है.
गंगा नदी के संरक्षण और स्वच्छता के लिए वह अत्यंत गंभीर व सक्रिय हैं. प्रोफेसर साहब के अनुसार
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, यह देश की लाइफ लाइन है. जिस तरह से हर चीज़ का एक केंद्र या मुख्य बिंदु होता है, उसी तरह से
गंगा का भी एक केंद्र है. आज लोग यह बात समझ नहीं पा रहे हैं, कि गंगा को बचाना मतलब पूरे पर्यावरण को बचाना है.
प्रोफेसर साहब ने नदियों को बचाने तथा उनके संरक्षण से सम्बन्धित कई सुझाव दिए हैं. इसके अलावा उनके पास कई योजनाएं हैं, जिनके द्वारा बाढ़ मैनेजमेंट तथा शुद्ध जल को बचाया जा सकता है. इनता ही नहीं बल्कि वह लगातार इन योजनाओं को लागू करने के लिए कार्यरत भी हैं.
उन्होंने अपनी किताबों में बताया है कि किस तरह से शुद्ध जल को बचाने के लिए सिंचाई व्यवस्था में सुधार करने की जरुरत है. इसके अलावा आज हम ऊंचे- ऊंचे डैम तो बना रहे हैं किन्तु हम यह नहीं जानते कि हम जितना ऊँचा डैम बनायेंगे, बाढ़ और भूकंप का खतरा उतना ही बढ़ेगा. वहीं अगर गंगा नदी के जल के संरक्षण की बात करें तो उनके मुताबिक, जिस तरह से एसटीपी के माध्यम
गंगा नदी को बचाने का प्रयास किया जा रहा है, उस तरह से गंगा को नहीं बचाया जा सकता. अगर हमें एसटीपी का प्रयोग करना ही है तो सैंड बेड के ज़रिये करना चाहिए, क्योंकि सैंड बेड ज्यादा अच्छे तरीके से पानी को अवशोषित और फिल्टर करते हैं. इसके अलावा जल स्तर के सम्बन्ध में उनका कहना है कि ग्राउंड वाटर को हम जितना नीचे धकेलेंगे, समुद्र का पानी उतना ही ऊपर आयेगा तथा शुद्ध पानी समुद्र में जायेगा. इसके अलावा स्वाइल वाटर बैलेंस को बनाये रखने के लिए ग्राउंड वाटर लेवल को बढ़ाना पड़ेगा.
उनके अनुसार यदि किसान अपने खेतों की मेड़ को 30 से 40 CM तक उठा दें तो
गंगा में गंदगी काफी हद तक कम हो जाएगी. इसके अलावा ग्राउंड वाटर का पोटेंशियल बढ़ेगा, जिससे कटाव तथा बाढ़ मैनेजमेंट में मदद मिलेगी. भारत सरकार द्वारा चलायी जा रहीं नमामि गंगे जैसे प्रोजेक्ट्स पर उनकी राय है कि यदि सरकार गंगा में जहाज चलाना चाहती है तो ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाये बिना
गंगा नदी में 2-3 महीने से ज्यादा किसी भी जहाज का टिक पाना संभव नहीं है.
प्रोफेसर यू.के.चौधरी का
गंगा नदी से विशेष लगाव है. उनके अनुसार गंगा का जल मात्र जल नहीं है बल्कि दवा है जिससे कई रोगों का इलाज़ संभव है. अतः गंगा का जल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेचा जाना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वस्थ रखा जा सके. वहीं अगर हम एक नदी से दूसरी नदी को जोड़ने की बात करें तो बिना वाटर लेवल को बराबर किये ऐसा कर पाना संभव नहीं है. अपनी पुस्तक FIVE THEORIES OF RIVER MANAGEMENT में उन्होंने नदी को बचाने की कई नीतियां बताई हैं. जिनके अनुसार मनुष्य के शरीर की तरह नदी में भी सब कुछ नियमित रूप से होता है. यदि नदी के न्यूनतम प्रवाह को घटाया गया तो उसमें भी मानव शरीर के जैसे समस्याएं जन्म लेने लगेंगी. इसके अतिरिक्त ग्राउंड वाटर और सरफेस वाटर में बैलेंस होना भी आवश्यक है. रिवर सिस्टम में कब, कहां, कितना वाटर फ्लो होगा, यह भी निश्चित होना चाहिए, वरना यह सब नदियों के लिए हानिकारक भी हो सकता है.
प्रोफेसर साहब ने
बनारस की अस्सी नदी जो कि आज अस्सी नाले के रूप में बदल चुकी है, इस पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा किया! उनका मानना है कि जिस दिन प्रदेश सरकार घरों का पानी अस्सी नाले में जाने पर रोक लगा देगी, उस दिन यह नाला फिर नदी बन जायेगी. किन्तु आज किसी को भी इसकी चिंता नहीं है. इसके अलावा सेप्टिक टैंक जो कि एक माइक्रो सिस्टम है इसका प्रयोग कर प्रदूषण नियंत्रण तथा बाढ़ मैनेजमेंट किया जा सकता है.
प्रोफेसर यू.के. चौधरी के विचार हैं कि नदी का भी एक शरीर व एक संरचना होती है और हमें इसे समझना होगा, क्योंकि सही अर्थों में किसी चीज़ के महत्त्व को न समझना ही प्रदूषण है. इसी प्रकार जब तक हम नदियों के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक उन्हें स्वच्छ रखने के प्रति भी जागरुक नहीं होंगे. वह चाहते हैं कि नदियों की स्वच्छता और संरक्षण के लिए देश में इससे सम्बंधित संस्थाएं व प्रयोगस्थल बनें, जिससे आने वाली पीढ़ी नदियों के महत्व को समझ सके. प्रोफेसर चौधरी ने नदी संरक्षण से सम्बंधित इन कई नीतियों एवम् योजनओं पर कार्य किया है तथा वह निरंतर इस क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रहे हैं.
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