नाम - संजय गांधी
पद - राजनीतिक कार्यकर्ता एवं समाजसेवक, मॉडल टाउन (दिल्ली)
नवप्रवर्तक कोड - 71183206
परिचय
राजनीति में नवपरिवर्तन लाने के संकल्प के साथ राजधानी दिल्ली में राजनीतिक-सामाजिक मुहिम चला रहे संजय गांधी वर्तमान के परिदृश्य में जनसेवा, समर्पण और सादगी का जीवंत उदाहरण हैं। विभाजन के दौर में संजय गांधी का परिवार पाकिस्तान से दिल्ली के मॉडल टाउन में आकर बस गया था, उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा भी सिविल लाइंस के गवर्नमेंट मॉडल स्कूल से प्राप्त की।
ग्रेजुएशन के बाद संजय गांधी ने जेडी एक्स्पोर्टस में असिस्टेंट अकाउन्टेंट के पद पर काम करना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने इसी कंपनी में सीनियर अकाउन्टेंट, ब्लॉक मैनेजर, जनरल मैनेजर इत्यादि पदों पर भी दिल्ली, जयपुर, बैंगलुरु इत्यादि शहरों में काम किया। संजय गांधी ने बेहद कुशलतापूर्वक इन सभी पदों पर काम करते हुए कंपनी की ग्रोथ को आगे बढ़ाया। किंतु उनके मन में अपने क्षेत्र के विकास व लोगों की सेवा करने की भावना थी, जिसके चलते उन्होंने राजनीति के माध्यम से समाजसेवा करने का निर्णय लिया।
सामाजिक सरोकार -
संजय गांधी को अपने परिवार से समाज सेवा के संस्कार विरासत में मिले हैं। उनकी माता जी मॉडल टाउन क्षेत्र में जानी मानी समाज सेविका रही हैं, जो जनता के हितों के लिए दिन-रात संघर्ष करती थी। उन्हीं की भांति संजय गांधी भी क्षेत्र की जनता के कल्याण की विचारधारा रखते हैं। वह अपने आस पास की समस्याओं पर भी नजर रखते हैं और उनके समाधान के प्रयासों में भी संलग्न रहते हैं।
राजनीतिक पदार्पण -
जनसेवा और समाज निर्माण के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ते हुए संजय गांधी ने वर्ष 2003 में होने दिल्ली विधानसभा चुनावों में भागीदारी ली। इस दौरान उन्हें मौजूदा विपक्षी दल की ओर से चुनाव से पीछे हटने के लिए धन का लालच दिया गया, जिस पर उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया। इसके बाद विपक्ष के लोगों ने उनपर हमला करा दिया और वह दिल्ली के हिंदुराव अस्पताल में एडमिट रहे। इस घटना से पूरी तरह रिकवरी करने में संजय गांधी को 3-4 वर्ष लगे।
लोगों के उन्हें पीछे हटाने के प्रयासों के बावजूद भी संजय गांधी ने हार नहीं मानी और उन्होंने मन बना लिया कि वह पार्षद के रूप में जनता की सेवा करेंगे। उन्होंने बृज विकास पार्टी से दिल्ली नगर निगम चुनावों में शिरकत की लेकिन भारत में दलगत राजनीति को मिलने वाली प्राथमिकता, इलेक्शन कमीशन का निर्दलीय उम्मीदवारों से भेदभावपूर्ण व्यवहार और जनता की बड़ी पार्टियों को ही वोट देने की वरीयता एक बड़ी चुनौती बनाकर सामने आई। संजय गांधी को जनसमर्थन तो मिला लेकिन वह जीत तक नहीं पहुंच सके।
वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में संजय गांधी ने सांसद प्रत्याशी के तौर पर दिल्ली के सबसे छोटे लोकसभा क्षेत्र चाँदनी चौक से चुनावों में उतरने का मन बनाया। उन्होंने इलेक्शन फाइल भी किया, लेकिन उसके बाद दिल्ली पुलिस के द्वारा उन पर फर्जी चार्ज लगा दिए गए। संजय गांधी बताते हैं कि,
"इलेक्शन फाइल करने के बाद जब मैं बस द्वारा घर वापस आ रहा था तो मैंने देखा कि दिल्ली पुलिस फाइन के नाम पर कुछ युवाओं के साथ मनमानी कर रही हाई। इसका विरोध करने पर पुलिस प्रशासन ने मुझ पर ही एक महिला कांस्टेबल के कपड़े फाड़ने का घिनौना आरोप लगा दिया। वह भी तब जब मेरा एक हाथ चोटिल था और दूसरे हाथ में मैंने इलेक्शन विभाग द्वारा दी गई चार किताबें पकड़ी हुई थी। पुलिस प्रशासन ने फर्जी चार्ज लगाते हुए मुझे 14 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा, जिसके बाद मुझे रिहा किया गया।"
जिसके बाद संजय गांधी लोकसभा चुनाव के लिए प्रयास ही नहीं कर पाए। उनका मानना है कि आज व्यक्ति राजनीति में जाना तो चाहता है लेकिन इस क्षेत्र में दबंगई बहुत है और लोग अपनी पावर का गलत फायदा उठाते हैं।
मॉडल टाउन क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे -
प्रशासनिक विभागों में भ्रष्टाचार, बेहाल सफाई व्यवस्था और पेयजल व्यवस्था के सुचारु नहीं होने को संजय गांधी आज मॉडल टाउन विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्याएं मानते हैं।
उनका कहना है कि मॉडल टाउन में पहले 24 घंटे साफ पानी की सप्लाई होती थी लेकिन बीते कुछ वर्षों से मात्र 2-3 घंटे यहां पानी आता है और वह भी केवल एक समय। ऐसे में आम जनमानस को बेहद समस्या होती है, विशेषकर गर्मियों के मौसम में तो पेयजल वितरण की व्यवस्था चरमरा जाती है।
संजय गांधी के अनुसार मॉडल टाउन दिल्ली का दिल है लेकिन यहां मौजूदा विधायक बस अपने लिए काम करते हैं, उन्हें स्थानीय जनता के विकास की कोई परवाह नहीं है।
राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार -
देश की राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर संजय गांधी का कहना है कि आज देश में सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि लोग भली-भांति शिक्षित होते हुए भी मतदान करते हुए पार्टी या पॉवर देखते हैं, जबकि अपने लिए उसी प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिए, जो आप ही के मध्य से निकला हो और आपके क्षेत्र के विकास की बागडोर थाम सके। संजय गांधी के अनुसार वर्तमान सरकार ने भले ही राष्ट्रीय हित की बात कहकर नोटबंदी या जीएसटी जैसे नीतियाँ बनाई हों लेकिन उनसे छोटे व्यापारियों को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई आज तक भी नहीं हो पाई है।
इसके साथ ही देश में आईपीएस/आईएएस अफसरों की कार्यप्रणाली को लेकर संजय गांधी संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि आईपीएस/आईएएस जैसे पदों पर आने वाले अफसर बहुत मेहनत से इस स्थान पर आते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें सरकारी निर्णयों के आगे विवश होना पड़ता है। देश में नीति निर्माण की सही जिम्मेदारी आईपीएस/आईएएस अफसरों के कंधों पर होनी चाहिए।
देश में विभिन्न स्थानों पर सड़कों की खुदाई को लेकर संजय गांधी कहते हैं कि संरचनात्मक विकास के नाम पर सड़कों की होने वाली बेतरतीब खुदाई से लोग परेशान हो जाते हैं। सरकार व्यवस्था बनाकर भी काम कर सकती हैं लेकिन इसके विपरीत काभी एमटीएनएल, कभी गैस लाइन तो कभी जलबोर्ड के नाम पर सड़कों की जहां-तहां खुदाई होती रहती है और इसका सबसे अधिक खामियाजा वरिष्ठ नागरिकों एवं बच्चों को उठाना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त हेल्थ केयर पॉलिसी के नाम पर छोटी-बड़ी कंपनियों के द्वारा की जा रही लूट पर भी संजय गांधी आवाज उठाते हैं। वह अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताते हैं कि आम लोगों से हेल्थ इन्श्योरेन्स के नाम पर अच्छी खासी रकम बीमा कंपनियां हर साल जमा कराती हैं लेकिन जब लोगों को वास्तव में स्वास्थ्य बीमा की जरूरत होती है तो ये कंपनियां पीछे हट जाती हैं। आज देश में हेल्थ इन्श्योरेन्स के नाम पर जो चोरबाजारी हो रही है, इस पर नियंत्रण करना बेहद जरूरी है।